गिरफ्त

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कौन कहता है तेरी अदा के कायल हम नहीं है।
रात दिन तेरी गेसुओं मे उलझा रहता हूँ ए क्या कम है।।

आँखें

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यों न देख इस अदा से कहीं मर हम न जाए।
ए आँखें देखे है कई मर्तबा दीवानो को मरते हुए।।

कोई एक दीवाना

May 5, 2020 in ग़ज़ल

मुद्दत बाद ए दोस्त भेजा उसने मेरे नाम इश्क़ ए पैगाम।
गुजर गया वो जमाना कभी याद करते थे उनको सुबह शाम।।
न मै बेवफा थी न वो बेवफा था बेवफा था ए ज़ुल्मी जमाना।।
सोचा था मुकद्दर साथ देगा ए दोस्त निकला वह भी बेगाना।।
कुदरत के तमाशा तो देखिए मै कहाँ आज वो कहाँ
सूखे पत्तों पे मेंहदी के रंग चढाने चले है फिर कोई एक दीवाना।।

आवारा सावन

May 3, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

सावन के एक एक बूंद जो गिरा मेरे होंठो पे।
कैसे बयां करू अपनी दास्तां इन सुर्ख होंठो से।।
उन्हें क्या पता कब चढी सोलहवां सावन मुझ पे।
आ कर एक मर्तबा देख तो ले क्या गुजरा है इस दिल पे।।
बहकने लगे है मेरे कदम यही बेईमान फीजाओ में।
उलझन में फंस गए हम इसी बरस के सावन मे।।

जुस्तजू

May 2, 2020 in ग़ज़ल

आज की रात कयामत की रात है।
गर तुम हो मेरे साथ तो जन्नत की बात है।।
थी जुस्तजू तुम्हें पाने को मगर।
क्या करू सब की अपनी मुकद्दर है।।
डर है मुझे कहीं ए चिराग बुझ न जाए।
इसलिए हवा के रुख बदलने का इरादा है।।

दीवानगी

April 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

चलो हम भी बनाए एक ताजमहल दिल के आगरा में।
शाहजहाँ जैसे बनाउंगा एक महल दीवानो के कब्र में ।।

ए नारी

April 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

राह में रोडे़ है ए नारी तुझे चलना ही होगा।
दुःख सहने वाली ए देवी तुझे जीना ही होगा।।
माना कि, पुरूष के हाथों तू हमेशा छलती आई।
फिर भी हर हाल में तुझे मुकाबला करना ही होगा।।
कोई तुझे माँ कहा , बेटी कहा, बहन कहा,देवी कहा।
माँ, बेटी, बहन, देवी होता है क्या , आज नहीं तो कल उसे समझना ही होगा।।

बे-वफा

April 25, 2020 in ग़ज़ल

उनके मस्त अदाओं के जाल में,हम गिरफ्तार हो गए।
जुस्तजू के मेले में हमारी मुकद्दर, हम से ही खफ़ा हो गए।।
वफा से बे -वफा बनेंगे वो , हमने ऐसा सोचा ही कब था ।
हम तो बस उनके लिए छोटा सा महल बनाने में लग गए।।
बने थे कभी वो मेरे दोस्त, मेरे हमदम, मेरे इब्तिदा ।
उनके मुस्कान को हम इश्क़ के सिलसिला समझने लग गए।।

दो शेर

April 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नजर मिला के मेरे हमराज़ वहाँ छोड़ा ।
देखने आते हैं दो गुलाब जहाँ तालकटोरा।।
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इश्क़ -ए-राहत के दवा लाया जब इन्दौर से।
उतरने लगा तब इश्क़ -ए- जुनून मेरे सिर से।।

एक न एक दिन

April 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रात के अंधेरे में मुंह छुपा कर चलने वाले .
एक न एक दिन तुम्हें उजाले में आना ही पड़ेगा।
अपने किए करनी के हिसाब ए चतुर इन्सान,
दुनिया के सामने तुझे रखना ही पड़ेगा ।।

रोग

April 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब मै अपना नब्ज दिखाया “मीर ” को।
उसने कहा इश्क़ -ए -बुखार है आपको।।

गीत

April 16, 2020 in भोजपुरी कविता

हो….. सुन ऽऽ ए चँदनिया, सुन ऽऽ ए दिलजनिया
जियरा मे सटायी के, लहराई ल ऽऽ चुनरिया
हो…… सुन ऽऽ ए चँदनिया, सुनऽऽ ए दिलजनिया
……………………………………………………………………………..
गर न तोहके नियरा हम अवऽती
प्यार हम तोहसे कयीसे कऽरती
गर न तोहके नियरा………………….
प्यार हम तोहसे ……………………….
चऽलऽ किनऽ तानी तोहर झुमका
अईसे ना मटकाऽव रानी तू ठुमका
हो…… सुन ऽऽ ए चँदनिया, सुन ऽऽ ए दिलजनिया
………………………………………………………………………………
चऽलऽ गोरी जाईं सावन मेला
मेला मे ना भेंटायी हमर साला
चऽलऽ गोरी जाईं……………….. …..
मेला में ना भेंटायी…………………….
देखिहे तऽ करिहें हम से दुशऽमऽनी
चऽढल बा तोह पे नयी जवानी
…………………………………………………..

बसंत ऋतु

April 12, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

बसंत ऋतु में जब बहा बसंती ब्यार।
गिरने लगी आसमान से सावन के फुहार।।
कहीं दूरऽ से जब कोयलिया मधुर गीत सुनाए ।
दिल के बगिया में सैंकड़ों कलियां खिल जाए।।
ए रिमझिम के नजारा लगता है कितना न्यारा।
दिल में एहसास जगाए मीठा मीठा प्यारा प्यारा।।
पतझर जीवन में साल भर पे आया बसंत बहार।
यही मौसम में होता है किसी से किसी को प्यार।।
कहे कवि — काश ऽऽ यह बसंत ऋतु न आता।
सोंचो – सुखी डाली पे मेंहदी के रंग कैसे चढ पाता।।

कड़ाई से लड़ाई

April 11, 2020 in ग़ज़ल

आओ साथी करे हम कोरोना पे कड़ाई।
यही से होगी हमारी भारत की लड़ाई ।।
वार पे वार हम सहते गए,अब न सहेंगे ।
चलो चलें हम करे पीड़ितों की भलाई।।
यही बनता है हमारा अपना परम धरम ।
इसी में छिपी है मानवता की सच्चाई ।।

,,,,,, क्या कम है ?

April 10, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

,,,,,,क्या कम है (कविता) Independence day

कौन कहता है हमारे वतन में, प्रेम की गंगा नहीं बहती है।
हिमालय से गंगा, यमुना, और सरस्वती के मिलन ए क्या कम है?
यही वो देश है जो कभी, सैकड़ों सपूतो ने लिया था जन्म।
देश पर हो गये थे सभी कुर्बान,उनकी कुर्बानी की दास्तां अन्य दास्तां से कम है?
हमारा आन तिरंगा बान तिरंगा शान तिरंगा ,
तीन रंगो में लिपटी हमारी धरती माता, यही रंग भारत को
भाता ,कितना मनोहर कितना प्यारा, यह तीन रंगा किसी अन्य रंग से कम है ?
आजादी बनी हमारी एकता की निशानी,हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई, सभी को था आजादी प्यारा, बड़े ही लगन से देश में नया प्रभात उगाया, उन सभी के लगन अन्य लगन से कम है।

वफा से बे – वफा

April 9, 2020 in ग़ज़ल

माथे पे आज पसीना के बूंद आया है क्यों।
जो कल तक थे हमारे आज अजनबी है क्यों।।
दामन – ए – यार का जब साथ पकड़ा था मैने।
हल्की मुस्कान से हम पर वार किए थे क्यों।।
जन्म जन्म का वादा था साथ निभाने का ।
आज वादे को कबर में दफना के मुस्करा रहे है क्यों।।
गैर के हाथों में है आज उनके नाजुक से हाथ।
वफा के दिलासा दिलाने वाली तू बे-वफा बनी क्यों।।
सोचा था सारी खुशियां तुम्हारे दामन में डाल दूँगा।
ए मेरे खुदा मेरी मुहब्बत में तूने नजर लगायी ही क्यों।।

शायद

April 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आँखों में अश्क लिए शायद,मेरे कब्र पे आ गया है कोई।
मैं नहीं था बे-वफा शायद, यही गीत गुनगुना रहा है कोई।।

ए साथी

April 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रुह अधूरे जिस्म अधूरे एक दूजे के लिए।
तेरा साथ चाहिए ए साथी जन्म जन्म के लिए।।

एहे बरस के सावन मे (भोजपुरी गीत)

April 4, 2020 in भोजपुरी कविता

सावन में सावन में, एहे बरस के सावन मे
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं एहे बरस के सावन मे
सावन में सावन में , एहे……………………………………..
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं…………………………..
+++++++++++++-+++++++±+++±+++
साजन बऽनऽब हम सजनी तोहार
कोरस — सजनी तोहार गोलकी सजनी तोहार
झूला के लागल बा उहां कतार
कोरस —- उहां कतार गोलकी उहां कतार
सावन के चऽलऽता रंगीन ब्यार
कोरस —रंगीन ब्यार गोलकी रंगीन ब्यार
चारो ओरिया के देखऽ नजारा(२) एहे बरस के सावन मे
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं, एहे बरस के सावन में
सावन में सावन में, एहे _————————
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं…………………………
+±+++++++±++++++++++±±++++++++++++
धरती पे गिरल रिमझिम फुहार
कोरस — रिमझिम फुहार गोलकी रिमझिम फुहार
प्यार के चऽढऽल बा नयेका बुखार
कोरस —-नयेका बुखार गोलकी नयेका बुखार
रुस बू तऽ हो जाई मौसम बेकार
कोरस —मौसम बेकार गोलकी मौसम बेकार
साल भर पे आईल बसंत बहार (२ ) एहे बरस के सावन में
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं, एहे बरस के सावन मे
सावन में सावन में एहे,……………………………………..
आवऽ न गोलकी झूला झूलाईं…………. . ………..

एहे बरस के सावन मे (भोजपुरी गीत)

April 3, 2020 in भोजपुरी कविता

सावन में सावन में एहे बरस के सावन मे
आव न गोलकी झूला झूलाईं, एहे बरस के सावन मे
सावन में सावन में एहे…………………………………………….
आव न गोलकी झूला झूलाईं………………………………….
+++++++–+++++++++++++++++++++++++++++
साजन बनब हम सजनी तोहार
कोरस –सजनी तोहार गोलकी सजनी तोहार
झूला के लागल बा उहां कतार
कोरस —उहां कतार गोलकी उहां कतार
सावन के चल

चितचोर सावन

March 31, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

ए साजन आम के बाग में,
झूला लगा दे।
अब की बरस
सावन के मधुर गीत सुना दे।
रिमझिम बारिश में
भीगे है मेरा तन बदन
मोरनी की भाँति
मै बलखाउँ
ऐसा एक धून बजा दे।
चारो तरफ के रुत है
प्रेम – ए- इकरार के
सतरंगी रंग मन को लूभाए
इन्ही रंगो से मुझे सजा दे।
जब से सावन आए
आए दिन बहार के
प्रेम रस की मै प्यासी
बस एक घूँट पिला दे।
नींद चुराए
चितचोर सावन के महीना
इन झूलो की कतारो में
मेरा भी झूला लगा दे।

सावन के फुहार

March 28, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

पतझर के मौसम
उस पे बसंत बहार
आसमान से बरसे
सावन के फुहार।
कहीं मन जले
कहीं ख्वाबो के
आशियाना जले
यही मौसम में होता है
अपनो से अपनो का प्यार।।
बिन पायल के
पग में घूंघरू बजे
कोयल की बोली
साजन के याद दिलाये
बड़ा दर्द जगाता है
सावन के फुहार।

ऐसा भारत बनाए

March 27, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कविता
ऐसा एक भारत बनाए
नैतिकता क अभाव में, हमने जो स्वच्छता को अपनो से अलग किया।
तरह तरह के बीमारियों को गले लगा कर, अपना अनमोल जीवन नष्ट किया।।
आओ हिन्द देश के निवासी, स्वच्छता के एक नया संसार बनाए।
चारो दिशाओं में हो हरियाली ही हरियाली ऐसा
एक भारत बनाए।।

ऐसा भारत बनाए

March 27, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कविता
ऐसा एक भारत बनाए
नैतिकता क अभाव में, हमने जो स्वच्छता को अपनो से अलग किया।
तरह तरह के बीमारियों को गले लगा कर, अपना अनमोल जीवन नष्ट किया।।
आओ हिन्द देश के निवासी, स्वच्छता के एक नया संसार बनाए।
चारो दिशाओं में हो हरियाली ही हरियाली ऐसा
एक भारत बनाए।।

कोरोना से डरा ना

March 23, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कविता
कोरोना से डरो ना
स्वच्छता को अपनाओ, कोरोना को ठेंगा दिखाओ।
जहाँ से आया हमारे देश में, उसे वहाँ भगाओ।।
चारो तरफ मचा दिया कोहराम, परेशान हो गए हैं हम।
महाकाल न रहे हमारे बीच, ऐसा एक माहौल बनाए।।
समस्त नियम के पालन कर के, हम उस पर हावी हो जाए।
मिटा सके न हम सब को, ऐसा एक पर्यावरण बनाओ।।
बहुत सह लिए दर्द, अब दर्द हम से सहा नहीं जाता।
स्वच्छता के हथियार बना कर, कोरोना पर तोप चलाओ।।
कहे “प्रधुमन “कोरोना से क्यों डरना, ए देश के नौजवानो ।
डरना हमने सिखा ही कब था, यही दास्तान उसे सुनाओ।।
-_— प्रधुमन “अमित “

स्वच्छता

March 22, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

स्वच्छता के डगर पे,
देशवासीयो दिखाओ चल के।
करोना भागेगा डर से,
तुम और हम ही योद्धा है आज के।।
पल दो पल के जीवन में,
क्यों गँवाए हम जान के।
बल बुद्धि दिया भारत ने,
फिर क्यों रहे हम डर-डर के।।
आओ बजाय ताली दो हाथों से ,
प्रहरी जो बन बैठे हैं हमारे।
अस्वच्छता के ब्यार मिटा के,
आओ — स्वच्छता अभियान चलाए जम के।।

जब ही जीवन है

March 17, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कविता
जल ही जीवन है

मेघा रे मेघा रे जल बरसा दे ।
पतझर जीवन खुशहाल बना दे।।
गर जल नहीं तो यह संसार नहीं।
एक बार धरती पर अमृत बरसा दे।।
चारो तरफ है प्यास ही प्यास ।
अपनी धारा से धरती की प्यास बुझा दे।।
जल नहीं तो माटी में बल नहीं।
जल बल से हमारी तकदीर बना दे।।
बड़ी उम्मीद से सिंचा अपनी तकदीर को।
हमारी मेहनत में नया रंग भर दे।।
कहाँ गए वो रिमझिम के फुहार।
अब की बरस खेतो में हरियाली भर दे।।

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