मैं निर्दोष हूँ मैया

August 7, 2020 in Poetry on Picture Contest

मैया यशोदा से लिपट के, हँस के बोले नंदलाला।
माखन कहाँ खाया है, तेरा सबसे दुलारा नंदलाला ।।
दोष लगाना कान खिंचवाना, यही सभी को भाता है।
बाल सखा से पूछ ले मैया, कहाँ था तेरा नंदगोपाला।।
मैया – सारा दिन भाग रहा था मैं, गैया के पीछे पीछे।
फिर कैसे दोष दे रही है, ब्रज के समस्त ब्रजवाला ।।
झूठ के खेती करने आ पहुँचे है, समस्त ब्रजवासी।
कहना मान ले मैया, सच कहता है तेरा कन्हैया लल्ला।।

तकाजा

August 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम तो शदियों से खुद को संभालना जानते है।
अपना ख्याल रख ए नादान वक्त के तकाजा है।।

बीते लम्हे

August 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम वो राह छोड़ दिए ” ग़ालिब “,
जिस राह पे हम कभी चला करते थे।
वह डायरी हम आज फाड़ दिए,
जिस डायरी पे हम कभी, किसी के लिए
ग़ज़ल लिखा करते थे।।

मैं नहीं माखन खाया

August 6, 2020 in Poetry on Picture Contest

कहे नटवर मैया से, मैं कब माखन खाया।
झूठ के गगरी, समस्त ब्रजवासी है लाया।।
मैं तो था ,अपने भैया बलराम के संग।
अब आप ही बताए, मै कैसे माखन खाया।।

आदत से लाचार मेरा कान्हां

August 5, 2020 in Poetry on Picture Contest

चुरा के माखन खाए नटवर नागर नंदा।
कान पकड़ के खींचीआज मैया यशोदा ।।
माखन चोर है, मैया यशोदा के नंद लाला।
तभी तो शिकायत कर गयी समस्त ब्रजबाला ।।
घर 🏡 घर में मटकी तोड़ना माखन खाना।
पकड़े जाने पर सुंदर सुंदर बहाना बनाना।।
परेशान हो कर जब पीटने दौड़ती यशोदा मैया।
फूट फूट कर रो पड़ते ब्रज के छोटे छोटे गैया।।
चुरा कर माखन ए मैया अब कभी न खाऊंगा।
अपनी माँ के मन को अब न ठेस पहुंचाऊंगा।।
यही सुन के लगा लेती गले अपने कान्हां को।
लाचार कान्हां चल पड़े फिर माखन चुराने को।।

गोविंदा

माखन चोर

August 5, 2020 in Poetry on Picture Contest

माखन चोर माखन चोर।
ब्रज में मचा है यही शोर ।।
सब से नजरे बचा के देखो।
कैसे भागे माखन चोर।।
कहीं मटकी फूटी ,
कहीं माखन बिखरे ।
पकड़ो पकड़ो दौड़ो दौड़ो,
व्रज में आया कैसा चोर।।
कान पकड़ के मैया बोली,
कहाँ गया था, रात से हो गई भोर।।

अपने देश में (INDEPENDENCE DAY)

August 4, 2020 in Poetry on Picture Contest

हम उस देश के प्रहरी है जिस देश में तिरंगा लहराता है।
बुलंदी वाले छत्रपति शिवाजी के चर्चे शत्रु भी करता है।।
पंजाबी गुजराती मराठी गोरखा मद्रासी और मुसलमान।
सभी देश पे आज भी अपनी जान न्योछावर करता है।।
रणनीति के डगर पे ए वीर दिखाओ अब शान से चल के।
हिम गंगे के मिलन आज भी देश का इतिहास बताता है।।
सुभाष भगत आज़ाद और सावरकर के इस गुलिस्ताँ में। आज भी तिरंगा अपनी सुंदरता बड़ी शान से बिखेरता है।

सितम

August 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वह ज़ालिम हर मर्तबा इस दिल पे सितम पे ढाते रहे।
हम उनके सितम को अपनी धड़कन समझते रहे।।

एक बूंद

July 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आ कर कब्र पे बेरहम एक बूंद 💧 आंसू गिरा दिया।
बिजली चमक के गिर पड़ी सारा जिस्म जला दिया।।

इल्तिजा

July 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आशिक़ो के मज़ार के करीब,
ए खुदा दो गज़ ज़मीन दे देना।
गर हो गए वो वफा से बे- वफा,
तो सुन मुझे वहीं दफ़ना देना।।

हाय रे आज के इंसान

July 25, 2020 in मुक्तक

कितने बदल गये है इंसान।
बेच कर अपना ईमान।।
सच्चाई से कोस दूर भागे।
झूठ के बीज बोये बेईमान।।
बुरी नजर वाले का मुंह है गोरा।
नेकी करने वाले को बना दिए हैवान।।
झूठ के पर्दे में छूप कर।
बनते है आज के दयावान।।
अधर्म पे चलने वालों को।
गर्व से कह गए हम आज का ‘महान’।।

बेचैनी

July 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए ‘ग़ालिब’ कहीं गिरे ,अश्क के सैलाब।
तो कहीं किसी के लिए , दिल है बेताब।।

तमाशा

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम तुम पले – बढ़े अपने ही भारत के गोद में।
फिर क्यों दरार पड़ी है आज अपने ही रिश्ते में।।
देखो कैसे चली आज चारो तरफ नफरत की आँधी।
कैसे क़त्ल पे क़त्ल कर रहे अमानुष मनुष्य के भेष में।।
हम किसी से कम नहीं बस यही घमण्ड है सभी को।
चिराग जलाओ भटक गये है इंसान नफरत के भीड़ में ।।
आज अपने ही घर में आग लगा कर चिल्लाते है ‘बचाओ’।
परेशान हो गए आज हम और तुम अपने ही समाज में ।

मस्तानो के टोली (Independence day)

July 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब झेल रहे थे वीर, सरहद पे दुश्मनों के गोली।
तब चारो दिशाओं में, गूंजा था इंक़लाब की बोली।।
अश्क भर आयी आसमां को, लहू के दरिया देख कर।
न जाने कितने सुहागन, गर्व से अपनी मांग पोंछ ली।।
सभी धर्म कसमे खायी, आज़ादी ही हमारा लक्ष्य है।
खेलेंगे होली जरूर मगर, वह होगी लहू की होली।।
कहीं नरम दल के विचार, कहीं गरम दल के विचार।
यही विचार धारे पे, चल पड़ी थी मस्तानो के टोली।।

स्वतंत्रता दिवस (Independence day

July 21, 2020 in गीत

ले के तिरंगा नारा लगाया, जय जवान जय किसान।
देश के ख़ातिर मरना सिखाया, वाह रे वीर इन्सान।।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में आज़ादी के डंका बाजे।
धरती से लिपटा तिरंगा तीन रंग में देखो कैसे साजे।।
कई वर्षों बाद माँ का सपना आज हो गया साकार ।
तभी तो मनाया स्वतंत्रता दिवस भारत में पहली बार।।

….. तभी तो (Independence day)

July 20, 2020 in गीत

हिमालय से गंगा के मिलन ,यही तो देश की पहचान है।
तभी तो हम सब, गर्व से कहते हैं मेरा भारत महान है।।
शास्त्री गोखले मौलाना राजेन्द्र, सभी देश के शान है।
तभी तो हजारों वीर, हिन्दुस्तान पे आज भी कुर्बान है।।
सरोजनी लक्ष्मी उषा इंदिरा, सभी आर्यावर्त के वरदान है।
तभी तो धरती माँ को, अपने वीरांगनाओ पे अभिमान है।। जो कर गुजर गए उन पर ही, आज भारत मेहरबान है।
तभी तो हम उन क्रान्तिकारियों के आज भी कदरदान है।।

ख्वाईश

July 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज की रात सावन की बरसात है,
क्या पता कल हम मिले या न मिले।
वक्त के सिकंदर मैं कल रहूं या न रहूं
खत्म न हो जाए मिलन के सिलसिले।।
आ कुछ मीठी मीठी दो बातें तो कर ले,
ए रिमझिम फुहार कहीं थम न जाए।
हमारी हसरतों को यों न मायूस करना,
कहीं मेरी ख्वाईश ख्वाईश न रह जाए।।

जाँबाज

July 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बज उठी सन सैंतालीस में, वह आज़ादी का डंका था।
हिमालय पे गाड़ दिए थे हम, वह भारत का तिरंगा था।।

सनम

July 19, 2020 in ग़ज़ल

राज़ को राज़ ही रहने दो ए सनम।
मुझे गवारा नहीं कि तुझे कोई बेवफा कहे सनम।
मैने मुहब्बत की है कोई खिलवाड़ नहीं।
तेरी रुसवाई को सिन्हे में छुपाया है सनम।।
माना कि वफा के बदले मिला बेवफाई ।
यही तोहफ़ा मेरे लिए अनमोल है सनम ।।
मर के भी यह दिल तुझे ही ढूंढेगा।
यह झूठ नहीं सच है सनम तेरी कसम।।

प्रिया (कविता)

July 18, 2020 in मुक्तक

रखे रहो हाथो पे हाथ प्रिया ,
सोचती रहो कोई अनसोंची बात प्रिया,
सर्द हवा के झोंके में,
जरा- ठहर जाओ रात प्रिया,
हम मिलजुल कर सुख दुःख बाटेंगे,
जो मिलेगा जन्म जात प्रिया।

कर्तव्य (Independence day)

July 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लगी है सिन्हे पे, दुश्मनों के गोली,
एक तरफ है ,इंकलाब की बोली।
मरते दम तक, हिम्मत न हारेंगे,
उड़ा देंगे हम, दुश्मनों के टोली।।
मुद्दत बाद ,सपना होगा साकार,
जाने दे मत रोक, ए मेरे हमजोली ।
देश प्रेमियों से ,आगे बढ़ना सिखा है,
लौटेगा जरूर, भारत में हरियाली ।।
चारो तरफ, दुश्मनों के फौज खड़ी है,
खेलेंगे जरूर हम, आज लहू के होली।
सुन क्या कह रही है, हमारी धरती माँ,
धरती माँ माँ है, माँ नहीं होती मुँहबोली।।

शामत

July 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आपकी चोटी के पेंच किसी नागन से कम नहीं।
कोई आप से टकरा जाए किसी में इतनी शामत नहीं।।

…… भारत का (Independence Day)

July 16, 2020 in Poetry on Picture Contest

गुलामी को आज़ादी में बदल दिया,
हम वो शख्स है अपने भारत का।
हर दिन लहू से सिंचे है देश को,
इसलिए कहलाता हूँ सपूत भारत का।।
गैरो ने लगाई थी पुरी ताक़त,
फिर भी बाल न बांका कर सका।
राहों में भी बिछाए काँटे ही काँटे,
काँटे को ही फूल समझ कर चल पड़े ,
किया नाम रौशन अपने भारत का।।
भ्रष्टाचारों के भी क्या तेवर थे,
थर्रा उठी इन्सानियत था राज हैवानो के।
फिर भी हम न घबड़ाए न रुके ,
क्योंकि लाज बचाना था अपने भारत का।।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा “,
यही नारा था निडर वीर सुभाष का।
भारत के हर कोने से जाग उठे थे सपूत,
तब जा के सिर उँचा हुआ अपने भारत का।।
हारे बाज़ी को जीत गए,
वे सब सिकंदर थे अपने भारत का।
वीर जवानो के लहू की भेंट चढ़ी,
तब आन बची अपने भारत का।।

तीन रंग में रंगा मेरा देश (Independence Day

July 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

झूम के तिरंगा देखो आया।
१५ अगस्त में खूब लहराया।।
क्या बच्चे क्या बूढ़े क्या जवान।
सभी वंदेमातरम के गीत सुनाया।।
तिरंगा जब बना देश की पहचान।
सुभाष भगत आज़ाद को भी हर्षाया।।
हिंदु ,मुस्लिम, सिख ,ईसाई ।
सभी के मन मन्दिर अपना घर बनाया।।
तीन रंग के धागे से बंधा यह देश।
तभी तो मैं भारत के गीत सुनाया।।
तीन रंग के हो गए हम दीवाने।
इसलिए तो आज तिरंगा पे पुष्प चढ़ाया।।

छतरी (काव्य प्रतियोगिता)

July 14, 2020 in Other

फिर याद आया मुझे, सावन के वो…. दो पहरी।
भीग रहे थे हम दो, थी हमारे पास एक ही छतरी।।
उनसे कभी चिपक जाना, फिर अलग हो जाना।
हवा के झोंको से कभी, उड़ जाती थी अपनी छतरी।।
धीरे धीरे कदमों से कदम, मिला कर आगे बढ़ना।
खींचातानी की आ जाती नौबत, थी एक ही छतरी।।
बूढ़े बरगद के नीचे ठहरना, मीठी मीठी बातें करना।
बात बात पे घुमाते थे, कभी कभी हम अपनी छतरी।।
सुनसान राहों में जब कोई राही पे, नजर पड़ जाता।
हम चेहरे को छुपा लेते थे, झुका के अपनी छतरी।। ।
(सावन में छतरी की भूमिका)

….न बुझाओ तूम पहेलियाँ

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुना है हमने अपने वतन पे,
अपने वतन की कहानियाँ।
तिलक पटेल आज़ाद छोड़ गए थे,
अपनी कई निशानियांँ।।
खेले – पले हुए थे, अनेक वीर जवां,
थी यही धरती माँ की मेहरबानियाँ ।
कर्ज चुकाने की जब आई घड़ी,
कहे थे भगत – “न बुझाओ तुम पहेलियाँ”।।
आज़ादी बन गई उनके लिए , आन बान और शान,
तभी तो कर दिए वीर, वतन के नाम जिंदगानियाँ।
सन १९४७ में, जब लहराया तिरंगा आज़ादी का,
तब धरती माँ ने ली थी, बड़ी जोर से अंगड़ाईयाँ।।

न जाने क्यों

July 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब सावन के एक एक बूंद,
अंबर से धरती पे गिरती है।
तब न जाने क्यों ए ग़ालिब,
अश्क मेरी गालो को भिगोती है।।

आज अपने देश मे

July 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर शान से लहराया तिरंगा, देखो आज अपने देश में।
बड़ा सुहावन लगे जन गण मन गीत, आज अपने देश मे।।
कहीं इंक़िलाब जिंदाबाद तो कहीं जय जवान जय किसान।
यही नारे से प्रेरित हो कर, दिए तिरंगा को सलामी आज अपने देश मे।।
पढ़ा था हमने सुभाष, भगत, आज़ाद की सच्ची बलिदानी।
उन सब की बलिदानी ही रंग लायी, आज अपने देश मे।।
शहीदों के समाधि पे ,श्रद्धा के दो फूल चढ़ा कर ।
स्वतंत्रता दिवस के गुण गान करेंगे आज अपने देश मे।।
क्या हिन्दू ,क्या मुस्लिम ,क्या सिख ,क्या ईसाई ।
हम सबका मज़हब एक है, यही बात दोहरायेंगे आज अपने देश में।।

एक दिन

July 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वतन फ़रामोश तेरा अंतिम घड़ी एक दिन आएगा।
तेरी चौड़ी छाती पे देखना, हमारा तिरंगा फहराएगा।।
बहुत सह लिए तेरा जुर्म एक दिन फैसला हो जाएगा।
सुभाष भगत आज़ाद की दास्तान मेरा पंजा बताएगा।।
फौलादी दिल में एक दिन देखना शोला ले लेगा जन्म । तिरंगा की कसम आज नहीं तो कल फैसला हो जाएगा।।

देश से प्रेम

July 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम वो वीर है जो मरने से कभी डरे ही नहीं।
सिन्हे पे गोली खा के भी सिर झुकाए ही नहीं।।

धैर्य

July 7, 2020 in ग़ज़ल

चारो तरफ कयामत ही कयामत है।
जिधर देखो करोना के ही क़हर है।।
महामारी में जी रहे है हम और आप।
फिर भी उम्मीद के किरण जलाए बैठे है।।
आज नहीं तो कल होंगे कामयाब हम।
बस कुछ और धैर्य रखने की जरूरत है ।।

इम्तहान की घड़ी

July 5, 2020 in Poetry on Picture Contest

उठा के बंदूक हाथ में, ए वीर तुम अब बढ़े चलो।
जान हथेली पे रख के, अपना कर्तव्य निभाते चलो।।
इस देश को तुम्हारे जैसे ही, सपूतों की जरुरत है।
जंग की घड़ी आई है, सिर पे कफ़न बांधते चलो।।
ए सपूतों कोई धर्म वीर बनो, तो कोई कर्म वीर बनो । धर्म कर्म के औजार से, दुश्मनों को अंत करते चलो।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि

July 4, 2020 in लघुकथा

एक समय की बात है। गुरू द्रोण अपने दो शिष्य युधिष्ठिर एवं दुर्योधन को पास बुलाया।द्रोण -“तुम दोनो संसार को देख आओ, कौन अच्छा है कौन बुरा है “।दोनो आदेश के पालन करने के लिए निकल पड़े । कुछ दिन गुजरने के बाद दोनों गुरू द्रोण के पास पहुँचे। पहले युधिष्ठिर बोला -“मुझे छोड़ कर संसार में सभी अच्छे थे “।दुर्योधन बोला -“मुझे छोड़ कर संसार में सभी बुरे व्यक्ति थे “।ठीक उसी प्रकार जैसी हमारी दृष्टि होगी, वैसी हमारी सृष्टि होगी।

करिश्मा अपने वतन के

July 3, 2020 in Poetry on Picture Contest

मेरा आन वतन, मेरा बान वतन, मेरा शान वतन।
गैरो में दम कहाँ जो करे, हमारे वतन को पतन।।
अनेक आए अनेक गए, बाल न बांका कर सका।
मेरा भारत भारत ही रहा, कोई न इसे झुका सका।।
मशाल ले कर जंग में कूदना, यही हमारी करामाती है ।
वतन पे हो जाएं हँस के कुर्बान, यही हमारी शरारती है ।।
कहे कवि- दुश्मनो ने राहों में कांटे ही कांटे बिछा दिए।
हम कांटे को सिंच कर नेहरू के लिए गुलाब बना दिए।।

ललकार

July 2, 2020 in Poetry on Picture Contest

देखो चली नौजवानो की टोली।
खेलेंगे लाल फिर लहू की होली।।
चारो दिशाओं में गूंज रहा है।
इंक़िलाब जिंदाबाद की बोली।।
अग्निपथ पे चल पड़े है सपूत।
ललकारे छोड़ के आसमां में गोली।।

जागो

July 1, 2020 in Poetry on Picture Contest

आज फिर ए वीर, इम्तहान की घडी आई है।
जागो ए सपूत, माँ फिर बेटा कह के बुलाई है।।
उठा के बंदूक हाथ में शरहद के तरफ चलना है।
माँ के कर्ज चुकाने का यही शुभ अवसर आया हैं।।
देश द्रोही आज फिर ,मुद्दत बाद माँ पे उंगलि उठाई है।
हमारे सुख चैन में फिर काली ग्रहण दुश्मन ने लगाई है।।

आज़ादी

June 30, 2020 in Poetry on Picture Contest

लगा के निशाना दुश्मन पे,
अपनी ताक़त दिखा देंगे।
ज़ुल्म के सिन्हा चीर कर,
वतन को आज़ाद कर देंगे।।

जंग

June 30, 2020 in Poetry on Picture Contest

सिर पे कफ़न बांध चले हम,
ईट के जवाब पत्थर से देने।
देखे किस में कितना है दम,
चले बस हम यही आजमाने।।

दम

June 29, 2020 in Poetry on Picture Contest

जब जब ज़ुल्म कीआंधी हमारे देश में आयी।
तब तब हम प्रहरी अपने देश की लाज बचायी।।
निशाना हमारा चूक जाए ऐसा कभी हुआ नहीं।
गर निकल गयी गोली तो समझ ले तेरी खैर नही।।
आए हैं सिर पे कफन बांध कर छक्के छुड़ायेंगे हम।
हम किस मिट्टी के बने है आज तुझे बतायेंगे हम।।
डरा दे हमें किसी माई के लाल में इतना दम कहाँ।
विजयी पताका गाड़ेंगे हम शहीदों के कब्र है जहाँ।।

क्या से क्या हो गया

June 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

धर्मनीति व राजनीति के आगोश में समा गया है देश।
उन्नति के ओर क्या बढेंगे यहाँ बदले है सब अपने भेष ।।
अब मानव में मानवता नहीं पहरेदार भी अब सच्चा नहीं।
ए वीर सुभाष भगत आज़ाद देख कहाँ जा रहा है ए देश।।

कुर्बानी

June 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जंगबाजों से पूछ कितना मजा हैं देश के कुर्बानी में।
हम मर कर भी अमर है हिन्दुस्तान के इतिहास में।।

ए माँ

June 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए माँ देख आज हम भी, अपने वतन पे शहीद हो गए।
इतिहास के पन्ने पे फिर, एक सिपाही के नाम जुड़ गए।।

शोले ही शोले

June 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ए रवि, शरहद पे शहीद होने वाले ।
थे वे सभी , वतन के रखवाले।।
हिन्दुस्तान , क्यों न नाज़ करे।
जब सपूत ही निकले, वतन के मतवाले।।
दिल्लगी करना, हमने सिखा ही कहाँ ।
धधक रहे हैं देखो, शोले ही शोले।।
गोला बारूद, ए सब है खेल खिलौने।
डरना छोड चूके है, वतन पे हम है मिटने वाले।।
हम अकेले दस पर, भाड़ी पर जायेंगे।
हम वो है अपने,भारत के दिलवाले।।

रात के अंधेरे में

June 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जरूर वहाँ कोई खड़ा है, रात के अंधेरे में।
लगता है डर घेर लो, अपने बांहो के घेरों में।।

राहत

June 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब राहत के दवा लाया राहत इन्दौरी से ।
तब उतरने लगा इश्क़ ए बुखार मेरे सिर से।।

स्याही

June 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए सनम स्याही नहीं है तो क्या हुआ ।
तेरी नैनो के स्याही से काम चला लुंगा।।

खुद की खुदाई

June 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए खुदा तू ने जो उन्हें, खुबसुरती से बनाई।
लूट गयी कई शायरों की, खुद की खुदाई।।

मरज़ीना

June 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम तो लूट गए ” फिराक ” इश्क़ के बाजार में।
मरज़ीना जब जीना दुशवार किया कायनात में।।

नश्तर

June 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कहीं दिल पे नश्तर , तो कहीं नश्तर पे दिल।
ज़माना खराब है ग़ालिब जरा संभल के मिल।।

विचित्र इंसान

June 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुदरत के जहां में ए दोस्त, भ्रष्टाचारो के कमी नहीं।
लोभ हवस में डूबा, किसी को किसी से वास्ता नहीं।।
रिश्ते मे आयी खट्टास कैसे हो गए है आज के इंसान।
पराए घर में आग लगा के कहते है हम वो इंसान नहीं।।
आस्तिक में जीना नहीं चाहते उच्च विचार के नास्तिक।
गर मनोकामना पूर्ण न हो तो कहे भक्ति में शक्ति नहीं।।

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