हैसियत

June 14, 2020 in लघुकथा

एक औरत अपने आठ महीने के बेटे के संग बीच चौराहे पे आयी। वह हमेशा की तरह एक मैली थैली में से एक कटोरा निकाल कर बैठ गयी। आने जाने वालों से कहती -“पापी पेट का सवाल है। भगवान के नाम पे कुछ दे दो साहब “।मै उसे वहाँ दो साल से देखता आ रहा था। मैं जब जब वहाँ से गुज़रता था तब तब उसके कटोरे में दस या बीस रुपये रख दिया करता था। एक दिन अचानक एक स्कॉरपियो गाड़ी उसके सामने रुकी। अंदर से कोई कुछ कहा ।फिर आगे बढ गयी। वह भीखारन मैली थैली मे कटोरा रखी, बच्चे को गोद में ले के वहाँ से चल पड़ी। यह माजरा मैं समझ नहीं पाया। कुछ क्षण पश्चात मैं देखा कि, वह औरत गाडी़ में बैठ गयी। मैं अपनी बाइक से उसे पीछा करने लगा। कुछ देर बाद वह गाड़ी एक आलीशान बंगले के करीब रुकी। वाचमैन दौड़ कर गेट खोला। गाड़ी अंदर चली गयी। मै अपनी शक को दूर करने के लिए वाचमैन से कुछ जानना चाहा उस औरत के बारे में। जब मैं अपनी उलझन वाचमैन को बताया तो वह हंसते हुए कहा -” भाई। वह मेरे मालकिन है।यह बंगला गाड़ी सब उन्हीं के तो है। “मैं इतना सुन कर वहाँ से चल पड़ा। सोचने लगा किसी की हैसियत उसके गंदे कपड़ों से कभी लगाई नहीं जा सकती।

आलम

June 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुहब्बत के नश्तर मिटाने वाले,
तुझे क्या पता है चाहत ए आलम।
तू ने कभी मुहब्बत 💘की ही नहीं,
तू क्या समझे मेरे दर्द ए आलम।।

दिव्य

June 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

फ़रेबी से पूछो फ़रेब के सुत्र।
बहुत दिव्य है ए मूल मंत्र।।

लत

June 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कहते है इश्क़-ए-लत, बहुत बुरी बला है।
फिर भी लोग,अपने को कहाँ सँभाला है।।

कविता (स्वतंत्रता दिवस प्रतियोगिता)

June 12, 2020 in Poetry on Picture Contest

झांक हमारे अंदर लहू है, पानी नहीं।
आज़मा कर देख, हम किसी से कम नहीं
क्यों इतराता है, तू अपनी ताक़त पे।
गर आज हम नहीं, तो कल तू भी नहीं।।
अपना हक़, सिन्हा चीर कर ले लेंगे हम।
झुका दे मुझे , तुझ में इतना दम नहीं।।
गर गिर गये हम तो, संभलना जानते हैं।
हम से है जमाना , जमाने से हम नहीं।।
यही मिट्टी मांगा था , कभी लाल लहू।
लहू से सिंचे है भारत को, पानी से नहीं।।
मेरे वतन पे, बुरी नज़र रखने वाले।
धूल न चटा दूं तो हम भी, वतन के सपूत नहीं।।
तिरंगा मेरी आन बान शान के प्रतीक है।
संभल जा देश द्रोही, अब तेरा खैर नहीं।।
मिट्टी के कण कण में , लिखा है हमारे देश के नाम।
वक्त आने पर आगे बढेंगे, पिछे कभी हटेंगे नहीं।।

आ अब लौट चले

June 9, 2020 in Poetry on Picture Contest

अब छोड़ चले हम परदेश ।
जब से लगी किस्मत में ठेस ।।
घर परिवार में मिल जायेंगे ।
वहीं पे रूखी सुखी खायेंगे।।
एक तरफ करोना के शैलाब ।
दूसरे तरफ मौत के शैलाब ।।
कहीं काल हमें निगल न ले ।
क्यों न इससे पहले लौट चले। ।
जान है तो ए सारा जहान है ।
यहाँ सब अपनो में परेशान है ।।
मास्क लगाये दिल घबड़ाए ।
देखो सब अपनो से दूरी बनाए। ।
सारे काम काज हो गए बंद ।
करोना जो दिखाया अपना रंग ।।
न मिला सहारा न मिला दाना पानी ।
यही है प्रवासी मजदूर की कहानी।।

टूटे अपने सपने

June 7, 2020 in Poetry on Picture Contest, काव्य प्रतियोगिता

थी ख्वाईश हमारे दिल को मगर,
इतफाकन गम करोना के मिल गए।
जब होने लगे थे साकार अपने सपने,
तब महामारी के आगोश में हम समा गए।।
क्या करे घर में जवान बहन बेटी थी हमारी,
बेरोजगारी के देश में रोजगार कहाँ मिलता।
पापी पेट का सवाल लिए खड़े थे हमारे बच्चे,
गर न जाता परदेश होंठों पे हंसी कैसे आता।।
सोचा था अपने गुलशन में गुल खिलायेंगे,
गुल न खिल कर किस्मत में काँटे ही मिले।
गरीब की गठरी सिर पर ले कर ए दोस्त,
देखो जरा शहर से हम अपने गाँव चले।।

दिल हार गया

June 6, 2020 in Poetry on Picture Contest, काव्य प्रतियोगिता

गये थे परदेश दो वक्त के रोटी कमाने।
क्या पता था करोना आएगा दिल जलाने।।
दिल में सपने ले के, चले थे हम परदेश ।
सपने सपने ही रह गए बदल गये हमारे भेष।।
कभी एक गज की दूरी तो कभी दो गज की दूरी।
कैसे कमाते हम यही थी हमारी मजबूरी।।
किस्मत व करोना ने क्या क्या रंग दिखाए।
मुंह (👄) में पट्टी बगल में करोना हाए हाए।।
कहे कवि चलो वापस चले बहुत कमा लिए यार ।
जिंदगी है अनमोल यही कहता है घर परिवार।।

रात

June 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कब्र की रात 🌃 है ,या कयामत की रात है।
पूछ तो लूं मीर इशारा, आखिर किस तरफ है।।

जनाजा

June 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शायद फिर किसी का आशियाना जला।
जनाजे के संग फिर बे -वफा रोते चला।।

शाहील

June 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अश्कों के समंदर में ए ग़ालिब, गोता लगाए जा रहा हूँ मै।
शाहील मुकद्दर में है या नहीं, बस यही सोचे जा रहा हूँ मैं।।

आप आए बहार आई

June 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब लिखता था मैं, ग़ज़ल मयखाने में,
तब सुबह से शाम हो जाया करता था।
ए दोस्त जब वह आते थे सज धज कर,
तब मेरी जान में जान आ जाया करता था।।

लाॅकडाउन में लाॅकजीवन

May 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाॅकडाउन में लाॅकजीवन ,आखिर कब तक चले।
कोरोना का असर सब पे भारी, हम तुम हाथ मले ।।
सब कुछ चाह कर भी ए दोस्त, कहाँ कुछ कर पाए।
जो भी कुछ था हमारे पास ,अब कोरोना के हो चले।।
थी जुस्तजू दिल को मगर ,कोरोना के गम मिल गए।
मिलि थी खुशी हमे, बे-खौफ रोटी तलाशने परदेश चले।।

जमाना

May 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अब मैसेज से ही काम चलाना।
यही कहे आज कोरोना जमाना।।

दिल ए नादान

May 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

संभल संभल दिल ए नादान।
यहाँ कोई नहीं इश्क़ ए क़द्रदान।।

गलतफहमी

May 30, 2020 in लघुकथा

बारह वर्ष की बब्ली कोचिंग पढ कर घर आयी। वह चुपचाप अपने कमरे में जा कर रोने लगी। जब बब्ली की माँ को पता चला कि, बब्ली अपने कमरे में रो रही है। वह दौड़ती हुयी बब्ली के पास आयी –“क्या बात है बेटी। किसी ने कुछ कहा क्या “?बब्ली रोती हुयी –“मम्मी ।कोचिंग के सर आज मुझे क्लास के अन्दर जाने नहीं दिया।
वे सब कहते है कि, तुम्हारे पापा बाहर से आए है। हो सकता है वह कोरोना के चपेट में हो “।मम्मी –“बेटी। कोरोन्टाईन सेंटर में तुम्हारे पापा चौदह दिन रह कर आए है। अगर बिमारी होता तो क्या वो घर आ सकते? “कल तुम अपने पापा के कोरोन्टाईन के प्रमाणपत्र अपने सर को दिखा देना। दूसरे दिन बब्ली ने वैसा ही किया। जब कोचिंग के सभी शिक्षकों को पता चला तो सभी अपनी गलती को स्वीकार किया। बब्ली को अन्य छात्रों व छात्राओं के संग बैठ कर पढने का अवसर पुनः प्राप्त हुआ।

यही कहते है

May 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पागल, आवारा, लोफर, दीवानापन, यही इनाम मिला है मुझे।
कागज की किश्ती दरिया में नहीं चलती, यही कहते हैं वो मुझे।।

पुरानी बड़गद (रहस्य रोमांच)

May 28, 2020 in लघुकथा

यह घटना बिहार जिले में स्थित समस्तीपुर की है। बैशाख का महीना था। गाँव के लोग गर्मी से व्याकुल थे। उसी गाँव के ३५ वर्ष के युवक महेश गर्मी से परेशान हो कर रात के बिछावन आंगन में बिछा कर सो गया। अगल बगल के लोग भी सोए हुए थे। अचानक महेश की आंखे रात के दो बजे खुल गयी। वह उठ कर चारो तरफ देखा। चांदनी रात पूरी अपनी जवानी पर थी। दूर दूर के पेंड़ पौधे साफ साफ दिखाई दे रहा था। चांदनी( 🌙) रात सुनसान की आगोश समायी हुई थी। महेश को धीरे धीरे नींद आने लगा। वह सिर झूकाए पुरिया में से तंबाकू निकाल कर हंथेलियों पे रगड़ने लगा। अचानक कोई शख्स 🌃 हाथ बढाया।उसको, तंबाकू मांगने का ईशारा था। महेश सोचा कि शायद गेना होगा। वह उसके तरफ नहीं देखते हुए अपनी चुटकी से तंबाकू उसके तरफ बढा दिया। वह शख्स ले लिया फिर, वहाँ से पुरानी बड़गद के तरफ चल पड़ा। जब वह दस कदम आगे बढा तब महेश उसके तरफ जैसे देखा उसके रोंगटे खड़े हो गए। वह देखने में दस फीट का रहा होगा। उसका लिवाश सफेद धोती व कमीज था। महेश के कंठ सुखने लगा। वह चाह कर भी चीख नहीं पाया। वह बेहोश हो कर गिर पड़ा। उसके गिरने की आवाज़ उसकी पत्नी के कानो में सुनाई पड़ी । वह चीखती हुयी महेश के तरफ दौड़ पड़ी। अगल बगल के लोग घबड़ा गए। सभी दौड़ कर महेश के दरवाजे पर पहुंचे ।महेश की पत्नी छाती पीट पीट कर रोने लगी। इतने में ही एक तंत्र मंत्र जानने वाला गाँव के ही एक व्यक्ति आ कर झाड़ फूंक शुरू किया। दो घंटे बाद महेश को होश आया। तब जा कर पुरी घटना विस्तार पूर्वक बताया। गाँव के बड़े बुजुर्ग रामटहल ने कहा –यह बात सही है कि, यह पुरानी बड़गद के पेड़ पड़ कली साया का बसेरा है।

समाप्त

खाश

May 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ज़िन्दगी में गर किसी को, कोई खाश नहीं रहता।
किसी को आज किसी का, इंतजार ही क्यों रहता।।

जेष्ठ की तपती धूप

May 25, 2020 in लघुकथा

जेष्ठ की तपती धूप में, एक माँ अपने छह महीने के बेटे को अपनी पीठ में बांध कर मजदूरी कर रही थी। बच्चा भूख व गर्मी से तड़प रहा था। वह जोर जोर से चिल्ला रहा था। वहाँ के मुंशी जी का कहना था कि,कोई मजदूर मेरे मौजूदगी में अगर बैठा पाया गया तो ,उसकी उस दिन की हाजरी काट दिया जाएगा। यही सोच कर माँ अपने बच्चे को दूध पिलाने में असमर्थ थी। वह बच्चा रो रो कर व्याकुल था। बच्चे की तड़प और पसीने से भीगी दुखियारी माँ की हालत मुझ से देखी नहीं गयी। मैं उसके करीब जा कर कहा –“कैसी है आप। काम तो होता रहेगा। कम से कम बच्चे को एक मर्तबा दूध तो पिला दीजिए “। माँ –“बेटा। मेरी आज की हाजरी मुंशी जी से कैसे कटवाउं? यदि ऐसा आज हो गया तो मैं अपने बीमार पति के दवा कहाँ से लाऊंगी। वह अस्पताल में दवाई के बगैर आखरी सांसे गिन रहा है”।उस माँ की इतनी बातें सुन कर मेरी आँखें भर आयी। मै उन्हें दस हजार रुपये देते हुए कहा—“माँ जी। यह पैसों से आप अपने पति का इलाज करा ले। ताकि,
कभी भी आप अपने पति के इलाज के लिए जेष्ठ की तपती धूप में अपने बच्चे को दूध पिलाने मे असमर्थ न हो। ” इतना कह कर वहाँ से मै चल पड़ा। रास्ते में मैं यही सोचता रहा कि, इस माया के संसार में कितने गम है????

कफ़न

May 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए मेहज़बी , दिलनशी , मेहक़शी , ए गुलबदन ।
नजरे चार हो उससे पहले ले आए अपनी कफ़न ।।

फ़िदा

May 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उनका महकना भी एक अजीब अदा है।
इसलिए तो हर शायर उन पर फ़िदा है।।

ज़हरीली नागन

May 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए ग़ालिब जरा जरा देख तो सही,
कहीं वो वही बे -वफा तो नहीं।
जो कभी दिल के बदले दर्द दिया था,
कहीं वो वही ज़हरीली नागन तो नहीं।।

जवानी

May 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

माना अपनी जवानी पे जोड़ नहीं।
फिर भी हम किसी से कम नहीं।।

क्यों

May 22, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

सावन मे सखी मन 💕 क्यों बहके ।
सारे पपीहा पेड़ पर क्यों चहके।।
काली घटा प्रेम रुत क्यों ले आई।
उसके आने से मन 💕 क्यों धड़के ।।
सावन के 💧 बूंद गालो को क्यों चूमे।
इस मौसम में अंग अंग क्यों फड़के।।

बरखा रानी

May 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तन मन 💕 में आग 🔥लगाए ए जलता पानी।
जरा थम थम के बरस ए बरखा रानी । ।

बयार

May 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पूरब से बही सावन के बयार। झूम के आयी बरखा बहार।।

सावन के बूंद

May 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सावन के एक एक बूंद गिरा जो मेरे होंठों पे।
कैसे बयां करू अपनी उल्फतें दासतां सुर्ख होंठों से।।

दिलवाले

May 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मिट जाओगे , पाक मुहब्बत को खाक में मिलाने वाले।
आसमान के, कदमों पे झुका देंगे हम है वो दिलवाले।।

ज़ुल्मी जमाना

May 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुहब्बत (💘) के गुनहगार जरा होश में आ जाओ।
कब्र खोदे हो किस के लिए जरा यह तो बताओ।।

बे-रहम

May 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शीशे से बेरहम पत्थर को तोड़ता रहा ।
मेरे रकीब मुझ पर तोहमत लगाता रहा।।

सच्ची दोस्ती सच्चा प्यार (भाग -२)

May 16, 2020 in लघुकथा

(आपने अगले पेज में पढा कि, अमित अपनी उलफत की दास्तां अपने दोस्त सुरेश को सुनाया। क्योंकि, अनिता के प्यार में वह पागल हो गया था। सुरेश अमित को किस तरह सही रास्ते पर ला कर खड़ा किया। आगे पढिए—-)
——————————–
सुरेश -“वह तुम्हारा अमानत नहीं है। अपने को संभालो अमित। इस संसार में लड़कियां उसे ही चाहती है जिसके पास दौलत और गुण हो। गुण तभी जन्म लेगा जब तुम मन लगा कर पढाई में मेहनत करोगे। हर लड़की की एक सपना देखती है कि, उसका पति एक अच्छे एमप्लाएड हो ताकि, सुकून से दो वक्त की रोटी उसे खिला सके। आज तुम्हारे पास है ही क्या? सिवाए दुःख के।दोस्त, इस संसार में डूबता हुआ सुरज को कोई नहीं देखता। मै चाहता हूँ कि
तुम एक नयी प्रभात बन कर उसे प्रभावित करो जिसने तुम्हें धिक्कारा है”।सुरेश के बातों का प्रभाव अमित पर गहड़ा पड़ा। बस उसी दिन से कुछ करने का जज्बा उसने ठान लिया। अनिता से अमित धीरे धीरे दूरी बनाने के प्रयास करने लगा। वक्त यों ही गुज़रता गया। अमित अच्छी पढाई के लिए वह शहर छोड़ दिया। जिस शहर में उसे नफरत ही नफरत मिला। एक नया जीवन शुरू करने के लिए वह दक्षिण भारत चला गया। वहाँ वह दिन में कहीं काम करता था और रात में पढाई किया करता था। उसका मेहनत व इमानदारी को देख कर एक सेठ अपनी कंपनी के प्रबंधक बना दिया। वह अपनी मेहनत व लगन से उस कंपनी को आगे बढाने का प्रयास करने लगा।
(शेष हम अगले पेज में लिखेंगे। धन्यवाद दोस्तों)

नकाब

May 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एक नकाब है चेहरे का ,दूसरा नकाब है हिजाब का।
हमने कयी गुलाब देखे है पर ,देखा न चेहरा जनाब का।।

सच्ची दोस्ती सच्चा प्यार(भाग-१)

May 15, 2020 in लघुकथा

अनिता नाम था। देखने में साँवली सलोनी। उसकी आँखें किसी गहड़ी झील से कम नहीं था। उसकी मुस्कान व अदा का क्या नाम दें, मेरे पास शब्द ही नहीं है। कुदरत ने केवल उससे गोरा रंग ही चुराया था। चंचल स्वभाव के कारण ही अमित उसे कब कहाँ क्यों और कैसे दिल दे दिया पता तक नहीं चला। वह हमेशा अमित के संग हंसी मजाक, लड़ाई झगडा कर लिया करती थी। कभी कभी एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे। दो तीन दिन बाद फिर एक दूसरे को देख कर मुस्करा दिया करते थे। अनिता में बचपना कूट कूट के भरी हुई थी। कयी मर्तबा अपनी नजरों के किताब भी उसके सामने खोला मगर, वह पढने में नाकामयाब रही। अल्हड़पन में ही उसकी जवानी दो दगा़ बाजों के बीच फंसा हुआ था। वक्त यों ही गुज़रता गया। एक दिन अनिता कॉलेज से घर आ रही थी। अमित अनिता को रोकते हुए कहा -“अनिता ।ंमै तुम से कुछ कहना चाहता हूँ “।अनिता अपनी नजर दूसरे तरफ फेंकती हुयी –“बोलो”।अमित –“मैं…. मैं…… “।अनिता –“ए मैं मैं क्या लगा रखे हो। जल्दी बोलो मेरे पास समय नही है”।अमित -“मैं तुम्हें अपने दिल से चाहता हूँ। क्या मेरे लिए तुम्हारे दिल में कोई जगह है”?अनिता –“व्हाट नोनसेंस। कहीं तुम्हारा दिमाग खराब तो नहीं हो गया। प्यार मुहब्बत अपने से बराबर वालों के साथ होता है। तूम कहाँ और मैं कहाँ। अपने दिल से मेरा सपना देखना छोड़ दो। जीवन में कुछ कर लो अमित यदि यह समय गुजर गया तो हाथ मलते रह जाओगे। प्यार मुहब्बत ही हर इनसान का लक्ष्य नहीं होता है”। इतना सुनते ही अमित को गहड़ा झटका लगा। उसका दिमाग सुन्न हो गया। उस दिन से अमित अनिता से दूर रहने लगा। अमित अपनी जख़्म दिखाए तो किसको दिखाए। कुछ दिन गुजरने के बाद, एक दिन शाम के समय अमित अनिता को किसी गैर के साथ देखा। शायद वह गैर उसका अपना था। तभी तो दोनों एक दूसरे के हाथो हाथ रखे जीने मरने की कसमे खा रहे थे। आधा घंटा गुजरने के बाद वह अपनी बाइक से वहाँ से चल पड़ा। उसका चेहरा मैं देख नहीं पाया। क्योंकि वह अपनी पीठ मेरी ओर घूमा कर बाते करने में मगन था। अनिता जैसे ही अपने घर की ओर चलने लगी वैसे ही अमित उसे पुकारा –“जरा ठहरो “।अनिता –“तूम मेरे पीछे क्यों पड़े हो। मै तुमसे प्यार व्यार नहीं करती”।वह और आंसू के झील में डूब कर रह गया। अंत में उसने अपनी प्रेम कहानी अपने जिगरी दोस्त सुरेश को सुनाया। सुरेश –“तू कहीं पागल तो नहीं हो गया है। अगर वह तुम से प्यार नहीं करती है तो तुम्हें जबरदस्ती भी करने का कोई हक नहीं…….. (शेष अगले पेज में इस कहानी के अंत करेंगे। धन्यवाद)

कोरोना चालीसा

May 15, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कोरोना कोरोना कहते हो कोरोना से क्यों डरते हो।
शाम सवेरे जब देखो कोरोना चालीसा भजते हो।।
कोरोना के डर से तुम कोरोना की उपासना करते हो।
सोते जागते उठते बैठते कोरोना चालीसा भजते हो।।
कहे कवि डट के मुकाबला करना तुम कहाँ सिखते हो।
भूखा प्यासा चौक चौराहे पे कोरोना चालीसा भजते हो।।

कैसी खता?

May 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए सनम कहाँ खो गये हो ।
बोलो न ए सनम कहाँ खो गये हो।।
किस खता की सजा हमने पायी।
एक मर्तबा बता तो दे ए हरजाई।।

……किसी से कम है?

May 14, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

मेरे देश की मिट्टी किसी सोने से कम नहीं।
खेतो में लगी फसल किसी हीरे मोती से कम नहीं।।
यही धरती की गोद में खेले पले हुए हम जवां।
हिमालय से निकली गंगा किसी अमृत धारा से कम नहीं।।
हमारे देश पे बुरी नजर रखने वाले जरा सुन तो ले।
शहीदों के लहू से रंगी यह धरती किसी चंदन से कम नहीं।।

दो गज की दूरी

May 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ साथी मास्क लगाए।
अपनो से दो गज की दूरी बनाये।।
स्वस्थ खुशहाल तो देश खुशहाल।
यही मंत्र सभी को काम आए।।
हर मर्ज के दवा है हमारे पास।
बस थोड़ा सावधानी बरती जाए।।
कोरोना से हम नहीं हम से है कोरोना।
फिर क्यों डर कर हम जीवन बिताए।।
माना कि हमने नियमों को उलंघन किया।
बस, बस अब भी नियमों के पालन किया जाए।।

नागन

May 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए नागन ज़रा देखें तो तुझ में कितना है जहर।
तूने अनगिनत आशिकों के दिल ढाया है कहर।।

तारीफ़

May 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

फलक के सितारे भी तारीफ़ करते हैं तेरी अदा को।
जरा मैं भी तो देखूं खुदा ने किस कदर बनाया है आपको।।

नये जमाने की नयी बेटियाँ

May 13, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कामयाबी के डगर पे चल पड़ी है,
नये जमाने की नयी बेटियाँ।
बेटी से नफरत करने वाले जालीम समाज,
देख आसमां में छा गयी आज की नयी बेटियाँ।।
वो जमाना गया जब हम जुल्म के शिकार थे,
अब ईंट के जवाब पत्थर से दे सकती है बेटियाँ।
हम से है जमाना जमाने से हम नहीं,
यही एलान करती है आज की नयी बेटियाँ।।
बेटी को जन्म से पहले ही माड़ने वाले,
जरा सोच तेरी माँ भी किसी की रही होगी बेटियाँ ।
क्या होता जब माड़ देती तुझे वह अपनी ही कोख में,
जिसने तुझे जन्म दिया होगी वह उच्च विचार की बेटियाँ।।

ए माँ

May 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मत माड़ ए माँ मुझे, तू अपनी कोख में।
बेटा बन कर दिखाउंगी, आ जाने दे जग में।।

थप्पड़

May 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उनका एक थप्पड़ इश्क़ में घी का काम कर गया।
बुझे चिंगारी को बेशर्म शोला और शबनम बना दिया।।

अब पछताए होत क्या (कोरोना)

May 11, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कोरोना से न करना यारी।
यह है जान लेवा बिमारी।।
कितने को डसा ए काला नाग।
आज पर गया हम सब पे भारी।।
क्यों सो चूके थे हम और तुम।
चुपके से कोरोना का वार था करारी।।
अच्छा होता काश!! हम संभल जाते।
शायद ही देखने को मिलता ए महामारी।।

मय

May 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मै अपनी जवानी गुजार दी मय के मयख़ाने में।
अब तो बस खाली पैमाना बच गया मेरे जिंदगानी में।।

सावन व महबूब

May 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एक तरफ सावन के रुसवाई तो दूसरे तरफ महबूब की जुदाई।
ए मेरे खुदा तू ही बता कैसी है सावन व महबूब की खुदाई।।

बेताब

May 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एक तरफ सावन के बरसात तो दूसरे तरफ अश्कों के शैलाब। जब जब बैरी कँगना खनके तब तब दिल हो जाए बेताब।।

महफूज

May 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिल के वीराने में फिर, उल्फते गीत गा रहा है कोई।
महफूज धड़कनो में मुद्दत बाद, एहसास दे रहा कोई।।

मय

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ए आँखें, ए होंठ किसी मय से कम नहीं।
वो मय किस काम का जिस मय में आप नहीं।।

कयानात

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

काली स्याह जुल्फे तेरी, काली घटा पे कयामत ढाती है।
गर बिखरा दे अपनी जुल्फ, मेरी कयानात में रौशनी आ जाती है।।

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