वक़्त के खेल में

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक़्त के खेल में मौका देर से सही
आदमी की पारी भी आती है
                 राजेश’अरमान’

मिलती है आशीष झुकने से

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिलती है आशीष झुकने से
इंसा फिर अकड़ता क्यों है
राजेश’अरमान’

कोई तीर निकला कमान से बेवज़ह

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई तीर निकला कमान से बेवज़ह
न जाने किसकी बारी आई बेवज़ह
राजेश’अरमान’

सुना है बहुत दूर की सोचते है वो

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुना है बहुत दूर की सोचते है वो
हमें वो सोचे इसके वास्ते शायद दूर जाना पड़ेगा
राजेश’अरमान’

कितने मुश्किल सफर तय किये

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितने मुश्किल सफर तय किये है मुड़ के तो देख
अब रूक क्यों गया है फिर चल के तो देख
राजेश’अरमान’

लुप्त होते रहे गर

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लुप्त होते रहे गर अच्छे इन्सां इसी तरह ,
इक दिन ये कहीं डाइनासोर न हो जाए
राजेश’अरमान’

कल छोड़ के आया था

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल छोड़ के आया था जिसे अँधेरे में
वो तन्हाई आज , फिर मुझे रोशन कर रहीं है
राजेश’अरमान’

न तख्तो पे न

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

न तख्तो पे न ताज़ों पे नज़र रखता हूँ
न कोई जलवा न रिवाज़ों पे नज़र रखता हूँ
जो देखने का मुझे बंद आँखों से जुनूँ रखते है
बंद आँखों से , उन बंद आँखों पे नज़र रखता हूँ
राजेश’अरमान’

रस्म कुछ फेस बुक में

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

फ्रेंडशिप डे पर फेस बुक के सभी दोस्तों के लिए

रस्म कुछ फेस बुक में हम इस तरह निभाते है
बिन मिले कभी हम दोस्ती का फ़र्ज़ निभाते है

हर वक़्त आँखें गड़ी रहती दोस्तों की पोस्ट पर
अपनी आँखों से हम दोस्तों की पोस्ट को सजाते है

कुछ लोग टैग करने में लगे रहते है दूजों की वाल में
गर्व ऐसे वीरों पे जो दूसरी सरहदों पे झंडा अपना लहराते है

होड़ लगी रहती है यहाँ लाइक्स और कमेंट की इस तरह
जैसे फेसबुक पे लाइक्स का सब नोबेल पुरुस्कार पाते है

अच्छे को अच्छा कहना अच्छा ही लगता सब को लेकिन
ऐसे भी दोस्त है जो सच को दर्पण दिखाने से शर्माते है

सभी धर्मों का आदर करते सबका साथ रहता है सदा
इस फेसबुक की दुनिया में हम संग सारे त्यौहार मनाते है

हमें है विश्वास यहाँ,सम्मान यहाँ , इक दूजे के विचारों का
विचारों का मिलना जहाँ में मुश्किल, यहाँ पल में मिल जाते है

इस दोस्ती को नाम क्या आखिर दे दिल से ‘अरमान’
सलाम सब दोस्तों को जो खून से बढ़कर रिश्ते निभाते है

राजेश’अरमान’

फिर तुम्हे याद किया

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर तुम्हे याद किया
याद न आने की फ़रियाद किया
राजेश’अरमान’

कदम रुकने से मंज़िल कुछ

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कदम रुकने से मंज़िल कुछ और दूर हो जाती है
मुसाफिर की थकन से राह मजबूर हो जाती है
हौसलों की हवा से उड़े है जहाँ के गुब्बारे,
उड़ते गुब्बारों की दुनिया में हस्ती मशहूर हो जाती है
राजेश’अरमान’

काश दिलासो की कश्तियों में

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश दिलासो की कश्तियों में
कोई छेद न होता
            राजेश’अरमान’

अक्सर हादसे सहते रहे

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्सर हादसे सहते रहे
काश ख्वाब भी कोई हादसा होता
                राजेश’अरमान’

ख्वाब तो आफताब है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाब तो आफताब है
शाम होते ही ढल जाते है
             राजेश’अरमान’

हिचकोलों से भरी ज़िंदगी

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिचकोलों से भरी ज़िंदगी
ढूंढ़ती किनारा चुपचाप सा
          राजेश’अरमान’

वो ज़ज़्बा कहा खो गया

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो ज़ज़्बा कहा खो गया
जब इंसा सिर्फ इंसा था
          राजेश’अरमान’

वास्ता नहीं खुद से

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वास्ता नहीं खुद से लेकिन
दुनिया की फ़िक्र रखते है
राजेश’अरमान’

सच से दूर हो रहा इंसा

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच से दूर हो रहा इंसा
कोई चढ़ा दे पारा चेहरे पर
राजेश’अरमान’

जब वो बेवज़ह मुस्कराते है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब वो बेवज़ह मुस्कराते है
गम लेता है अंगड़ाई चुपके से
राजेश’अरमान”

आईने को कोई झूठ

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आईने को कोई झूठ सीखा दे
आईने को कोई आईना दिखा दे
            राजेश’अरमान’

काफिलों के साथ साथ चलते रहे

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काफिलों के साथ साथ चलते रहे
दुनिया के रंग में बस ढलते रहे
राजेश’अरमान’

अपने ही लोग फिर शहर

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने ही लोग फिर शहर में दहशत क्यूँ
अपनी ही आँखों में जहर सी वहशत क्यूँ
कहीं तो सुनी जाएगी आख़िर फ़रियाद
किसी सजदे को ,किसी दुआ की हसरत क्यूँ
राजेश’अरमान’

कुछ अकेले से एहसास

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अकेले से एहसास
फिरते है दरम्या मेरे
कुछ कशिश है उदास
फासलों के घने अँधेरे
दबे कदम चलती साँसें
सहमे कदम आते सबेरे
हलकी बारिश का मौसम
आँखों में धुँआ के फेरे
सोती रात जागती ज़िंदगी
आये शायद नए सवेरे
राजेश’अरमान’

खुद को बदलने से जरूरी है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद को बदलने से जरूरी है खुद का किरदार बदलना
आदमी दुनिया में पहचाना जाता है किरदारों से
राजेश’अरमान”

ना खुद को बदल सका

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना खुद को बदल सका ना तेरी निगाहों को
सिलसिला बस चलता रहा खत्म होने के लिए
राजेश’अरमान’

मेरी उठती सांसों की तरह

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी उठती सांसों की तरह
वो दबे- दबे से एहसास
कैसे उठते चले गए

वज़ूद को भेदने लगी
तेरी लफ़्ज़ों की सौगाते
कैसे सुनते चले गए

तेरे हँसने से झर रहे फूल
चाहा था चुनना मगर
कैसे बिखरते चले गए

वक़्त जो चलता साथ तेरे
न जाने किस मोड़ पर
कैसे ठहरते चले गए

तुममें छिपा वर्तमान
और तुम भविष्य की तरह
कैसे छुपते चले गए

तेरे चेहरे के बदलते रंग
दिल की कैनवास में
कैसे उतरते चले गए
राजेश’अरमान’

तूफां ने लहरों को कब ज़िंदगी दी है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तूफां ने लहरों को कब ज़िंदगी दी है
हवाओं ने चरागों को कब रौशनी दी है
चाँद को तकता है थोड़ी सी रौशनी के लिए ,
सूरज ने कब जुगनुओं को रौशनी दी है
राजेश’अरमान ‘

तुमने मेरे बाग़ के फूलों को

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने मेरे बाग़ के फूलों को पत्थर कर दिया,
मैं तेरी गली के पत्थरों को फूल करके आया हूँ
जाना मुझे तेरी गली ,आना तुझे मेरे बाग़ों में
इस आने जाने को कितना माकूल करके आया हूँ
राजेश’अरमान’

वादियों में गूंजती आवाज़

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वादियों में गूंजती आवाज़ लौट सकती है
घटाओं में छुपी बिजलियाँ कौंध सकती है
ना ले मेरी खामोशियों का इम्तेहान इस कदर,
मेरी ख़ामोशी तेरे लफ़्ज़ों को रौंद सकती है
राजेश’अरमान’

तुम आसमाँ मैं ज़मीं ही सही

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम आसमाँ मैं ज़मीं ही सही
तुम हो आंसूं मैं नमीं ही सही
यूँ पलट के देखना तेरा बार बार
कुछ नहीं मेरी कमीं ही सही
राजेश’अरमान ‘

शोर नहीं जो दबा दिया जाऊँ

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शोर नहीं जो दबा दिया जाऊँ
हर्फ़ नहीं जो मिटा दिया जाऊँ
कोई दीवार पे टंगी तस्वीर नहीं
जब चाहे जिसे हटा दिया जाऊँ
राजेश’अरमान’

जो बिकता सरे आम वो ईमान होता है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो बिकता सरे आम वो ईमान होता है
जो जहाँ को समझे वो नादान होता है
बदलते रंग में ढल गयी सारी दुनिया
जो अधूरा रहे सदा वो ‘अरमान’ होता है
राजेश’अरमान’

आ ज़िंदगी तुझे रिश्वत दूँ

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आ ज़िंदगी तुझे रिश्वत दूँ
एक नई तुझे तबियत दूँ
गुफ्तगू ये तेरे मेरे बीच की ,
आ नई तुझे शख्शियत दूँ
राजेश’अरमान’

मैं रास्ते खुद अपने बना लूँगा

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं रास्ते खुद अपने बना लूँगा
वक़्त जैसे चलना है अपनी चाल चल
राजेश’अरमान’

अब गुनाह में नीयत नहीं देखी जाती

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब गुनाह में नीयत नहीं देखी जाती
अब प्यार में सीरत नहीं देखी जाती

सब के अपने फलसफे ,सबके अपने तजुर्बे
अब उम्र के लिहाज़ की इज्जत नहीं देखी जाती

धन दौलत का चारों तरफ है डंका अब तो
अब किसी पाक दिल की ज़ीनत नहीं देखी जाती

नज़राने तेरे प्यार के अब तक सहेज के बैठा हूँ
नज़रानों में जन्नत होती ,इसकी कीमत नहीं देखी जाती

चेहरों को याद रखना मुश्किल ,पहचानना मुश्किल
अब बदलते चेहरों की सूरत नहीं देखी जाती

चिकनी चुपड़ी बातें और बातों में छुपी और बातें
अब बातों की दबी अस्लियत नहीं देखी जाती

सीधे सीधे भी सीधी ज़िंदगी काट जाते ‘अरमान’
दुनिया की उलटी सीधी फितरत नहीं देखी जाती

राजेश’अरमान’

जुदा हो जाते पिंजरे

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुदा हो जाते पिंजरे से पखेरू
लिख जाते कोई दास्तां अधूरी
राजेश’अरमान’

कोई शजर शाख से बैर

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई शजर शाख से बैर नहीं रखती
कोई शाख पत्तों को गैर नहीं रखती
अपने हौसलों से ही जहाँ मिलता है
कोई दरवाज़े पे किस्मत पैर नहीं रखती
राजेश’अरमान’

इतना न पशेमाँ हो

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना न पशेमाँ हो की मैं पिघल जाऊं
कुछ तो रहने दो पत्थर मेरे अंदर
राजेश’अरमान’

दे के वो गिनते रहे

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

 
दे के वो गिनते रहे ज़ख्म मेरे
मैं उनकी सादगी पे फ़िदा हो गया
राजेश’अरमान’

या रब्ब दुश्मनों को सलामत रखे सदा

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

या रब्ब दुश्मनों को सलामत रखे सदा
न जाने कब आरज़ू क़त्ल की मचल जाये
राजेश’अरमान’

अंधेरों में वो नज़र

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंधेरों में वो नज़र आते है
उजालों में जो ठहर जाते है
चाक रखते है दामन अपना
पर महफ़िलों में संवर जाते है
राजेश’अरमान’

अक्स आईने में दिखता

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्स आईने में दिखता तो जरूर है
हम ही तोहमत लगा जाते है आईने पे
राजेश’अरमान’

मसला सिर्फ इतना है

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मसला सिर्फ इतना है
वो समझते नहीं मुझे
गर समझते तो इक नया
मसला खड़ा होता
ठीक से नहीं समझते
इस ठीक से समझने की
कोई परिभाषा नहीं है
अंदर से तालमेल की
कोई अभिलाषा नहीं है
उम्र गुजर जाती समझने में
जीने के लिए उम्र
कोई उधार नहीं देता
कुछ लम्हे इक दूजे से
उधार लिए थे
जिसका सूद न तुम चूका पाये
न मैं चूका पाया
बस बढ़ता जा रहा है सूद
काश फासलों में
कुछ तालमेल होता
छोटी छोटी बातों में
जीवन का खेल होता
मसला सिर्फ इतना है
राजेश’अरमान’

बारिश की बूंदो की

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारिश की बूंदो की
हल्की हल्की आवाज़
कानो में रस घोलते
जेहन में उतर जाती है
कौंधती बिजलियाँ कुछ
ठक ठक सी दस्तक
देती है मन के कोने में
जिस कोने को बंद दरवाज़ा
बना के रखा है वक़्त ने
दरवाज़ा कभी खुलता तो
कभी फस जाता है चौखट में
हवाएँ भी बारिश में कुछ
अल्हड हो जाती है
चलती है जैसे
बारिश उन्हें जवाँ कर गई
इन ठंडी हवाओं से
लिपट कर सब बंद दरवाज़े
खुल जाते है
प्रकृति की इस छटा
से लिपटने को
राजेश’अरमान’

गुथियाँ सुलझाने में

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुथियाँ सुलझाने में
उलझ जाता जीवन
पकड़ के कान
खींचता है जीवन
कभी इस तरफ
कभी उस तरफ
सीधी रेखाएं
खींचता हूँ जीवन की, पर
जा के मिल जाती है ये
हाथ की टेढी रेखाओं से
मेरी रेखाएं दब जाती
उभर के आती बस
हाथ की रेखाएं
जिसे मैंने नहीं खींचा
जिस पर मेरा अंकुश नहीं
एक खींचतान चलती
दोनों रेखाओं में
मैं बच्चो की तरह
पाल रहा हूँ
दोनों रेखाओं को
और लगा रहता हूँ
गुथियाँ सुलझाने में
राजेश अरमान

एक जानी पहचानी सड़क पर

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक जानी पहचानी सड़क पर
चला जा था मैं बेखबर
तभी कुछ पहचानी सी आवाज़ें सुनाई दी
पुलिस की गाडी की आवाज़ सुनाई दी
देखा सड़क पर पड़ी हुई थी एक लाश
जिसके कातिल को कर रहे थे लोग तलाश
मैं भी लाश के समीप पंहुचा
देखने लगा सब के साथ लाश को
पुलिस ले रही थी लाश के जेबों की तलाशी
निकली कुछ उधार के कागज़ के पुरजे
निकले कुछ बिलों के अदायगी के स्मरणपत्र
बिजली काटने के धमकीपत्र
और न जाने कितने ऐसे पत्र
जो रौंद के रख दे किसी को भी
एक पास खड़ा व्यक्ति बोला
लगता कोई गाडी इसे कुचल गई
देखो इस के शरीर पर निशान पहियों के
मैं भीड़ को चीरता हुआ लाश के करीब पंहुचा
किसी ने कहा ,क्या तुम इसे जानते हो ?
क्या इस लाश को पहचानते हो ?
मैंने कहा हा ,इसे मैं पहचानता हूँ
इसके शरीर पर पड़े पहियों के निशान
आज की महंगाई रुपी गाड़ी के है
ये मेरे देश का आम आदमी है
राजेश’अरमान’

खुद से जुदा भी नहीं

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद से जुदा भी नहीं मुखातिब भी नहीं
खुद को बयां करूँ ऐसा कातिब भी नहीं
गुमगश्ता फिरती है नाशाद रूह जिसकी
फ़िदाई बन भी सकूँ ऐसा जाज़िब भी नहीं
राजेश’अरमान’

फ़िदाई= प्रेमी
कातिब= लेखक
गुमगश्ता= भटकता हुआ, खोया हुआ
जाज़िब= मनमोहक, आकर्षक

तेरी याद आज

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी याद आज
बैठी है गुमसुम
शायद थक गई
यादों की भी उम्र होती है
एक उम्र बाद यादें धुँधली
पड़ जाती है लेकिन
तुम्हारी यादों की ताप बढ़
गई है उम्र के साथ
राजेश’अरमान’

कुछ खट्टी मीठी छोटी छोटी बातों

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ खट्टी मीठी छोटी छोटी बातों
का एक छोटा सा संसार है जिसे
न जाने कितनी सरहदों
कितने धर्मों में बाँट रखा है
बस आती जाती सोच का तमाशा है
जरूरी है तय होना
कौन सी सोच को आना है
कौन सी सोच को जाना है
जाने वाली सोच का विसर्जन
बेहद जरूरी है, जिसमे
मूर्ति भी तुम हो मूर्तिकार भी तुम
राजेश’अरमान’

सहमी सी शाम

March 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सहमी सी शाम
रातों के घने साये
काँपती सुबह
दिन वही अजनबी
लोग कहते है की
अब ज़माना बदल गया है
राजेश’अरमान’

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