badal

March 3, 2017 in Other

बादलों बरसने को आँखें तरस गई है
तुम तो न बरसे पर आँखें बरस गई है

राजेश “अरमान ”

ज़िंदगी

June 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िंदगी जब भी ठहरी लगती है
अंधी ,गूंगी और बहरी लगती है

राजेश”अरमान”

राजेश”अरमान”

June 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी

वज़ूद आईने का सामने आ गया
जब कोई पत्थर से ठोकर खा गया

तब से सम्भाल रखता हूँ ज़ख्मों को
जब कोई दोस्त नमक ले आ गया

राजेश”अरमान”

वक़्त

June 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी

गुजरे वक़्त की स्याही पन्नो पे रहती काबिज़
अब के दौर की दास्ताँ को कोई कलम न दे

– राजेश ”अरमान”

दहकती आग थी

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

दहकती आग थी कुछ चिंगारियां थी
ये तो बस अपनों की ही रुसवाईयाँ थी

जो कभी पैरहन से लिपटे मेरे चारसू
अब वो न उनकी साथ परछाइयाँ थी

राजेश’अरमान’

वो प्यार

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो प्यार इतना मुझे करते है
ख्वाबों में आने से भी डरते है

इन्तहा इश्क़ का न आलम पूछो
वो ज़ख्म देते भी और भरते है

राजेश’अरमान’

सवाल .जवाब

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

      सवाल .जवाब
बहुत कहा कोई नई राह चल
उसने कहा भीड़ के साथ चल
कुछ तो दिल की भी रख लो
 दिल बस धड़कने के लिया रखा
कुछ तो जज़्बात होते है
ये कमजोरों की सौगात होते है
तनहा सफर फिर कैसे कटेगा
कौन से मुसाफिर मंज़िलें देते है
खुद से खफा क्यों होते हो     
कौन सी तुम वफ़ा देते हो
अपने मौन को शब्दों में बदलो
मौन की चाबी फेंक डाली है
खुद को रिहा करों क़ैद से
क़ैद की चाबी फेंक डाली है

                        राजेश’अरमान’

कभी खुद को मदारी

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी खुद को मदारी बना दिया
कभी खुद ही तमाशा बन गए

कभी खुद सिमट कर बैठ गए
कभी खुद ही दिलासा बन गए

राजेश’अरमान’

युँ तो देखे

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

युँ तो देखे हर पल रंग ज़िंदगी के
समुंदर ने बख्शे दिन तिश्नगी के

युँ तो काफिलें भी थे मंज़िलें भी
तलाश रही मुकाम पाकीजगी के

राजेश’अरमान’

अब जो चेहरे पे

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब जो चेहरे पे नज़र जाती है
साँसें कुछ देर को ठहर जाती है

सब यहाँ मौजू मगर खुद ग़ुम
कुछ खोने की अब खबर जाती है

राजेश’अरमान’

कुछ तो बदले हम

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो बदले हम , कुछ बदल गई फ़िज़ा भी
कुछ तो हैरा है चमन और कुछ खिजाँ भी
अपने चेहरे का गांव कब तब्दील हुआ शहर में
कुछ तो मज़बूरियां थी मगर और कुछ रजा भी

राजेश’अरमान’

ज़ेहन में बैठे

May 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ज़ेहन में बैठे कई अफ़सोस है
बोलते सन्नाटे जुबां खामोश है

अब वज़ूद कछुए का मिट गया
बाज़ी जीतता सोता खरगोश है

राजेश’अरमान’

वो न बदल सका

May 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो न बदल सका पर मुझे बदल गया
मुझे भी न बदलने का हुनर आ गया
राजेश’अरमान’

हाथ की रेखाओं को

May 6, 2016 in ग़ज़ल

हाथ की रेखाओं को क्यों बदनाम करते हो
खुद ही हर सुबह को क्यों शाम करते हो

पशेमाँ होके न बैठेगा ये बेदर्द जमाना
आप बेवजह बैठे क्यों जाम भरते हो

किसको फुर्सत जो देखे चाकजीगर
शिकायत फिर क्यों खुलेआम करते हो

हर फ़तेह तेरा खुद का मुक़द्दर
हर शिकस्त मेरे क्यों नाम करते हो

जब कोई मरासिम नहीं रहा फिर
दूर से देख के क्यों सलाम करते हो

राजेश’अरमान’

धुँधले आईने से

May 6, 2016 in ग़ज़ल

धुँधले आईने से कोई अक्स निकल नहीं पाता
वक़्त की सुइयाँ पकड़ने से वक़्त बदल नहीं जाता

वो मोम सा बना रहता , कोई पत्थर नहीं था
क्या हुआ शख्स वो अब पिघल नहीं पाता

वो कहता रहा रिश्तों को परतों में रहने दो
कुरेदने से कोई रिश्तों का सच बदल नहीं जाता

उसकी हसरत महफूज रहूँ हाथों की लकीरों में
जिन लकीरों को कभी वक़्त बदल नहीं पाता

कितने देखे है ज़माने कितने लड़खड़ाते कदम
जान कर सब फिर वो क्यों संभल नहीं पाता

कौन देखेगा इन हवाओं में मुड़ के ‘अरमान’
साथ दुनिया के आखिर वो क्यों चल नहीं पाता
राजेश’अरमान’

सब अच्छे बुरे का

May 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब अच्छे बुरे का मैं दोषी नहीं सब कुछ तय है
फिर मेरे होने का मुझे ही क्यों हर पल भय है/
मैं फिर क्यों इस चक्र के चलने रूकने का भागी हूँ
आत्मा शरीर के इस खेल में क्या मैं त्यागी हूँ /
नहीं होता मैं तो क्या कुछ अंश अंश से न्यून हो जाते /
जब तुम मुझमे हो तो क्या मेरे अंश कभी शुन्य हो जाते /
हर छन मेरे होने और न होने का बोध साथ रहता है
अहंकार, मोह माया वासना और क्रोध साथ रहता है /
आप सतगुणो के स्वामी और पूजनीय होते है
आपका अंश होकर भी हम निंदनीय होते है
इन अंशों के अनुपात पर मन आपसे र्विचार चाहता है
बस यही बस प्रभु आपसे उपकार चाहता है /
बस यही बस प्रभु आपसे उपकार चाहता है /

राजेश ‘अरमान ‘

कुछ तो शोलों

May 6, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कुछ तो शोलों को भी खबर थी
एक दुनिया थी जो बेखबर थी

कुछ चिंगारिया दबी थी कोने में
ये गुजरती हवाओं को भी खबर थी

राजेश’अरमान’

इन काँटों को

May 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन काँटों को फूलों से अलग न करना
इनमे दबे है कुछ एहसास मुरझाए
राजेश’अरमान’

गांठ बंधे रिश्तों में

May 6, 2016 in ग़ज़ल

गांठ बंधे रिश्तों में एहसास क्यों ढूँढ़ते हो
सेहरा की रेत में प्यास क्यों ढूँढ़ते हो

हर शख्स कुछ न कुछ दे ही गया ज़ख्म
ऐसे माहौल में तुम कोई खास क्यों ढूँढ़ते हो

वहां साथ रहते भी कौन कितने करीब थे
ऐसे हालात में फिर वनवास क्यों ढूँढ़ते हो

हर तरफ जब पतझड़ सा ही आलम है
तारीखे क्यों गिनते हो फिर मास क्यों ढूँढ़ते हो

अपने ही घर में अपना वज़ूद अजनबी सा
किसी राह की तलाश में संन्यास क्यों ढूँढ़ते हो

राजेश’अरमान’

दुनिया की रस्मों

May 6, 2016 in ग़ज़ल

दुनिया की रस्मों में इन्सां कहाँ मगर गया
वो शहर की रौनक में कौन भर जहर गया

अब भी बैठे ही उन लम्हों की चादर ओढ़कर
वो भी एक दौर था वक़्त के साथ गुजर गया

कल भी उस बात को छूं गया एक नया झोका
वो तेरी बात थी वो इस बात से मुकर गया

जो बनाए थे उसूल हमने बेहतरी के जानिब
तोड़ कर सब वो जाने क्यों बिखर गया

जाने कब आ जाये फिर वही मौसम पुराने
बस यही सोचते वो न जाने फिर किधर गया

राजेश’अरमान’

बदलते रहे वही

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदलते रहे वही नज़रें बार-बार
हमने तो बस अपना चश्मा बदला

राजेश’अरमान”

कितना होता है गुरूर

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना होता है गुरूर इंसान को
ये करता अपनों से दूर इंसान को

जिसको देखो वही मद में चूर है
वक़्त देता सबक जरूर इंसान को

राजेश’अरमान’

इतना भी मुश्किल

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना भी मुश्किल तो न था
मुश्किल कहने में जो देर लगी
राजेश’अरमान’

लो फिर

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लो फिर मौसम बदला
फिर तेरी याद आई
राजेश’अरमान’

खुद से अंजान

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद से अंजान आदमी
पूछता जनाब आप कौन
राजेश’अरमान’

अब तो धब्बों

April 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब तो धब्बों की भी नुमाइश होती है
बस चर्चे में रहने की खवाइश होती है

ज़िक्र उसका भला क्यों करता जमाना
यहाँ तो सुर्खिओं की परस्तिश होती है
राजेश’अरमान’

दुनिया की रस्मों

April 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया की रस्मों में इन्सां कहाँ मगर गया
वो शहर की रौनक में कौन भर जहर गया

अब भी बैठे ही उन लम्हों की चादर ओढ़कर
वो भी एक दौर था वक़्त के साथ गुजर गया

कल भी उस बात को छूं गया एक नया झोका
वो तेरी बात थी वो इस बात से मुकर गया

जो बनाए थे उसूल हमने बेहतरी के जानिब
तोड़ कर सब वो जाने क्यों बिखर गया

जाने कब आ जाये फिर वही मौसम पुराने
बस यही सोचते वो न जाने फिर किधर गया

राजेश’अरमान’

उसके जाने आने के

April 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

 उसके जाने  आने के दरम्यां  छुपी सदियाँ थी
  कुछ था पतझड़ सा  तो कुछ हरी वादियां थी

उसकी ख़ामोशी में दबी दबी सी बैठी थी
उसकी आँखों में कुछ बोलती चिंगारियां थी

 लिपटी है बदन से किसी पैरहन की तरह
 वो तेरी यादों की बस पुरवाइयाँ थी

कोई आहट नहीं मगर कुछ तो जरूर था
 तू न सहीं मगर तेरी परछाइयाँ थी

चाक जिगर के  कोई सिता भी कैसे
अपनी आँखों में कुछ ऐसी रुस्वाइयां थी
                          राजेश’अरमान’

खार भी रखते

April 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खार भी रखते पर आँखों में बसे फूल भी है
सादगी की मिसाल पर चेहरे में पड़े शूल भी है

वो बदलते रहे कुछ ज़माने ज्यादा मेरे वास्ते
नए अंदाज़ भी है कुछ पुराने से उसूल भी है

वो निहारते है बैठ अब भी बचपन को
जिसमे जमके बैठी कुछ पुरानी धूल भी है

उम्र भर लड़ते देखा बस खुद से उनको
पैरों में ज़ंजीर पर हाथों में त्रिशूल भी है

वो मेरे सब कुछ  जाना जब दुनिया देखी
मेरी किताबें भी  है वो मेरा स्कूल भी है  

                         राजेश’अरमान’
                       समस्त पिताओं को समर्पित

खार भी रखता

April 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खार भी रखता पर आँखों में बसे फूल भी है
सादगी की मिसाल पर चेहरे में पड़े शूल भी है

वो बदलते रहे कुछ ज़माने ज्यादा मेरे वास्ते
नए अंदाज़ भी है कुछ पुराने से उसूल भी है

वो निहारते है बैठ अब भी बचपन को
जिसमे जमके बैठी कुछ पुरानी धूल भी है

उम्र भर लड़ते देखा बस खुद से उनको
पैरों में ज़ंजीर पर हाथों में त्रिशूल भी है

वो मेरे सब कुछ  जाना जब दुनिया देखी
मेरी किताबें भी  है वो मेरा स्कूल भी है  

                         राजेश’अरमान’
                       समस्त पिताओं को समर्पित

मुझ से उकता

April 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझ से उकता कर
खिड़की से भाग गई
वो शाम जो साथ थी मेरे
ले आई पकड़ एक रात
और खुद छुप कर भाग गई
रात सिरहाने पे बैठी रही
रात भर देती रहे ताने
कुछ मेरे अपने से कुछ अनजाने
गुफ्तगू करती रही मुझसे
कुछ मेरे ही अंदर के पुराने
न सहर की कोई बात न नई सौगात
वही रात की कहानी वही रात की बात
राजेश’अरमान’

कुछ ख्वाब कुछ अफ़साने

April 17, 2016 in ग़ज़ल

कुछ ख्वाब कुछ अफ़साने
वही लोग आये कुछ सुनाने

अपनी अपनी वीरानी सब की
देखने आये वो तेरे कुछ वीराने

देखने आये वो फिर ज़ख्म तेरे
कहते आये तेरे ज़ख्म कुछ सहलाने

वो भी उकता गए ग़मे ज़िंदगी से
जो आते थे कभी दिल कुछ बहलाने

सबके अपने वही ख़ज़ाने है
कुछ नए है और वही कुछ पुराने

राजेश’अरमान’

वो फुरसतों के काफिले

April 17, 2016 in ग़ज़ल

वो फुरसतों के काफिले
वो रोज़ मिलने के सिलसिले

वो शहर कहाँ खो गया
जहाँ पास रहते थे फासले

कुछ तो हुआ अजीब सा
खो गए रास्ते ग़ुम है मंज़िलें

हर निगाह में जूनून सा
हर आँख में है अब वलवले

कौन क़ातिल है वफाओं का
क्यों सोचता है दिलजले
राजेश’अरमान’

सुरमा लगाया था आँखों

March 30, 2016 in हाइकु

सुरमा लगाया था आँखों में जिसका
नज़रें मिलते ही खफा हो गए

रिश्ते तो अब बौने हो गए है

March 30, 2016 in हाइकु

रिश्ते तो  अब बौने हो गए है
ख्वाब तो बस बिछोने हो गए है

नवाजिश नवाज़िश जेहन में रहा

March 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

नवाजिश नवाज़िश जेहन में रहा
वो दूर निकल गए अदावत लेकर

जुम्बिश न सही खलिश ही सही

March 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुम्बिश न सही खलिश ही सही
तुझे भूलने की कोशिश ही सही
वो पा न सके जुस्तजू जो थी
कुछ नहीं , इक खवाइश ही सही
 राजेश’अरमान’

लिखे जो भी तराने वो तेरे लिए थे

March 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लिखे जो भी तराने वो तेरे लिए थे
तुमने उसे रेत पे लिखा समझा

किधर से आया वो मालूम नहीं

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किधर से आया वो मालूम नहीं
अँधेरे में ही कोई आवागमन था

पत्थर के बुतों में बस ढूँढ़ते रहे

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्थर के बुतों में बस  ढूँढ़ते रहे
अपने अंदर के ख़ुदा को पत्थर करके

बंदिशें तोड़ के रख दी

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बंदिशें तोड़ के रख दी
पिंजरे में रहते रहते

काफिर ही सही

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काफिर ही सही
मुसाफिर ही सही
वक़्त का खिलौना
हाज़िर ही सही

तिनके बटोर बनाया आशियाना

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तिनके बटोर बनाया आशियाना
बर्क ने फिर गिराया आशियाना
मेरे हाथों से लिपटी फिर रेखाएं
रेखाओं ने फिर बनाया आशियाना
         राजेश’अरमान’

ख्वाइशों की उम्र नहीं होती

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाइशों  की उम्र नहीं होती
कमबख्त अजर अमर होती है

अपने ख़्वाबों के लिए

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने ख़्वाबों के लिए कोई रात रखना
अपने हिस्से की खुद से मुलाकात रखना
मौसम चाहे जैसा बदले जब बदले
अपने ही अंदर कोई बरसात रखना
            राजेश’अरमान’

मृगतृष्णा

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी खोज
मृगतृष्णा
तेरी वफ़ाएं
मृगतृष्णा
सारा जीवन
मृगतृष्णा

वो फिर मिलेंगे

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो फिर मिलेंगे
फूल फिर खिलेंगे
कुछ  हादसें होंगे
कुछ फासले होंगे
कमबख्त वफ़ा
ताउम्र इम्तहान देती रही
            राजेश’अरमान’

बर्क को नशेमन से क्या आश्ना

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बर्क को नशेमन से क्या आश्ना
आवाज़ कब देख सकी जलते आशियाने  
            राजेश’अरमान’

रिश्तों में कोई फासला सा रखना

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्तों में कोई फासला सा रखना
   तूफानों में हौसला सा  रखना
अपने ही घर में चाहे जितने कमरे हो  
  अपने लिए इक  घोसला सा रखना
         राजेश’अरमान’

किसी रंजिश से दो चार नहीं

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी रंजिश से दो चार नहीं
लोग जुगनुओं का भी फ्यूज  ढूँढ़ते है

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