किसी सेहरा की रेत

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी सेहरा की रेत पे लिखा कोई गीत नहीं हूँ
समुन्दर की लहरों पे सजा कोई संगीत नहीं हूँ
हर खेल मैंने खेले , अपने ही उसूलों -कायदों से ,
किसी शतरंज की बाज़ी की कोई हार-जीत नहीं हूँ

राजेश’अरमान ‘

कुछ ख्वाब के

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ ख्वाब के
पत्थर सिर पे लगे है,
खून रिसता नहीं
बस जम सा गया है
हर लम्हा जैसे
बस थम सा गया है
राजेश ‘अरमान ‘

इन रास्तों पे

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन रास्तों पे कोई कितना यकीं करें
इन रास्तों के भी कितने मोड़ होते है
राजेश’अरमान’

डूबती कश्तियों को

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

डूबती कश्तियों को किनारा मिल भी जाएँ ,
नाखुदा की नीयत भी कुछ मायने रखती है
राजेश’अरमान ‘

कभी ख़ामोशी बंद

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी ख़ामोशी बंद संदूक की देखना
सामान सब भरा पर फिर भी गुमसुम
राजेश’अरमान’

ग़ुम हुए इंसा

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ग़ुम हुए इंसा की तलाश क्या
ग़ुम ही रहेगा जहाँ रहेगा
राजेश’अरमान’

गिरगिट की सभा

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गिरगिट की सभा
नया गुरु चुनने के लिए
कई बुजुर्ग गिरगिट ,
दावेदार बने
पर किसी पर न ,
बन सकी सहमति
युवा गिरगिटों की
मांग सूची में
पहली और आखरी मांग
आजकल रंग बदलने के
नए नए तरीके आ गए है
हम अब तक पुरानी
प्रथा चला रहे है
हमें गुरु ऐसा चाहिए
जो हमारे रंग बदलने का
आधुनिकीकरण करें
सब देखने लगे इधर उधर,
सभी युवा गिरगिटों ने
एक स्वर में कहा
अब हमें गुरु गिरगिट नहीं ,
इंसान चाहिए
राजेश’अरमान’

काफिलों के साथ साथ

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काफिलों के साथ साथ चलते रहे
दुनिया के रंग में बस ढलते रहे
राजेश’अरमान’

पतंग आसमाँ में

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पतंग आसमाँ में उड़ती भी है
और आसमाँ में कटती भी है
राजेश’अरमान’

खामख्वाह वो अपने अंदाज़

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामख्वाह वो अपने अंदाज़ सितम के बदलते है
पुराने अंदाज़ भी सितम के कम लाज़वाब न थे
राजेश’अरमान’

 

वो पढ़ना भी चाहते है

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो पढ़ना भी चाहते है मुझे पूरा ,
और आँखों में मेरी किताब भी नहीं
राजेश’अरमान’

इन पत्थरों में तुम

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन पत्थरों में तुम न जाने क्या ढूँढ़ते हो
दुनिया में रहकर कौन सी दुनिया ढूँढ़ते हो

बिक गया हर शख्स अपने ही बाजार में
अब बाजार में कौन सी परछाईया ढूँढ़ते हो

परिंदे आसमाँ में उड़ते ही भले लगते है
फिर अपने घर में क्यों पिंजरे ढूँढ़ते हो

हक़ीक़त से दो-चार जब सारा जहाँ हो गया
तुम किस खबर के वास्ते अखबार ढूँढ़ते हो

किस शक्ल की तलाश में गुम फिर रहे हो
आईने में अपनी कौन सी सूरत ढूँढ़ते हो

मंसूबे किस गुलिश्ता के रखते हो जेहन में
फूलों को जलाकर कौन से फूल ढूँढ़ते हो

जुल्म आखिर इन्तहा में हो गया मुक्कमल
तुम अब तक ज़ुल्म की इब्तेदा ढूँढ़ते हो

तुम कौन से मुकाम पे जा बैठे ‘अरमान’
अपने ही शहर में अपना घर ढूँढ़ते हो

राजेश’अरमान’

अपने ही लोग फिर शहर

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने ही लोग फिर शहर में दहशत क्यूँ
अपनी ही आँखों में जहर सी वहशत क्यूँ
कहीं तो सुनी जाएगी आख़िर फ़रियाद
किसी सजदे को ,किसी दुआ की हसरत क्यूँ
राजेश’अरमान’

रास्तों का कष्ट उस

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रास्तों का कष्ट उस मुसाफिर को क्या
जिस मुसाफिर ने इसे जीवन पथ समझा
जिनकी मंज़िल ही उलझी बैठी हो
उसने कब जीवन का मतलब समझा
रास्ते चाहे सुलझे हो या उलझे
कब रास्तों ने किसी को है अपना समझा
जितनी गहरी होती है खाई देखने में
उतना ही खौफ उसमे भरा समझा
मेरे पैरो तले जमीं पर थी उसकी नज़र
जिसे उम्र भर मैंने अपना रहनुमा समझा
ठोकर पत्थरों की हो या फूलों की
हर शख्स ने इसे अपनी किस्मत समझा
कल की बात हो या आने वाले कल की
वक़्त की चाल को किस ने अब तक समझा
राजेश’अरमान’

कुछ अकेले से एहसास

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अकेले से एहसास
फिरते है दरम्या मेरे
कुछ कशिश है उदास
फासलों के घने अँधेरे
दबे कदम चलती साँसें
सहमे कदम आते सबेरे
हलकी बारिश का मौसम
आँखों में धुँआ के फेरे
सोती रात जागती ज़िंदगी
आये शायद नए सवेरे
राजेश’अरमान’

खुद को बदलने से जरूरी है

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद को बदलने से जरूरी है खुद का किरदार बदलना
आदमी दुनिया में पहचाना जाता है किरदारों से
राजेश’अरमान”

मेरे खत चाहो जब जला दो

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे खत चाहो जब जला दो
पर उसकी राख मुझे दे दो /
इस रूह से लिखा था जिसे ,
रूह को राख की अमानत दे दो /
राजेश’अरमान’

देखा जब भी लहरों को मचलते

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखा जब भी लहरों को मचलते
समुन्दर की गोद में
लगता कोई बच्चा मचल रहा है
अपनी माँ की गोद में
देखा जब भी बादलों को मचलते
आसमां की गोद में
लगता कोई युवा मचल रहा है
अपनी ख्वाइशों की गोद में
देखा जब भी जमीं की रेत तपते
किसी सेहरा की गोद में
लगता कोई बुढ़ापा तप रहा है
अपनी परछाइयों की गोद में
राजेश’अरमान’

प्रेम सिर्फ अनुभूति है

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम सिर्फ अनुभूति है
नहीं, प्रेम अनुभूति से
अलग कोई एहसास है
जिसे देखा जा सकता है
किसी की आँखों में
किसी की साँसों में
किसी की ख़ामोशी में
किसी की सरगमों में
किसी की यादों में
किसी की ज़ुबाँ में
बंद होती है आँखें
बस इस एहसास को
देखने के लिए
राजेश’अरमान’

 

जहाँ में दिल टूटने

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहाँ में दिल टूटने का यूँ न हादसा होता
वफ़ा की तालीम का गर कोई मदरसा होता
राजेश’अरमान’

काँपते ख़्वाबों को हक़ीक़त

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काँपते ख़्वाबों को हक़ीक़त की जुम्बिश न मिली
रूठे अल्फ़ाज़ों को किसी प्यार की बंदिश न मिली

तिश्नगी लबों तक आकर खामोश हो जाती है
कशिश को भी और कोई, फिर कशिश न मिली

फ़लसफ़े इश्क़ के कब हुए मुक़म्मल इस जहाँ में
किसी को बंदगी तो किसी को नवाज़िश न मिली

वो फिक्र भी करते है फिक्र पे करम कर के
ऐसे ज़ुल्म की हद बतौर ऐसी साज़िश न मिली

तिरी गुनाहों की परस्तिश कैसे करता ‘अरमान
खैर बस ये तुझे मेरे जज़्बात की रंजिश न मिली
राजेश’अरमान’

चुनिंदा लम्हें घूम गए आँखों में

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुनिंदा लम्हें घूम गए आँखों में
जो लिपटे न थे दर्द की चाश्नी में
कुछ तेरे साथ के वो पल
जो शिकवा से न लिपटे थे
कुछ तेरे साथ के वो पल
जो लिपटे थे खुश्बुओं से
कुछ तेरे साथ के वो पल
जिनमे पल साँझा रहते थे
कुछ तेरे साथ के वो पल
जिनमें कुछ भी आधा न था
कुछ तेरे साथ के वो पल
जिसमे कदम कदम से मिलते थे
कुछ तेरे साथ के वो पल
एहसास हमसे ज्यादा जिन्दा थे
कुछ तेरे साथ के वो पल
ख़ामोशी सब कुछ कह जाती थी
कुछ तेरे साथ के वो पल
आँखें देखने सी ज्यादा बोलती थी
कुछ तेरे साथ के वो पल
जिनमे सच सचमुच रहता था
कुछ तेरे साथ के वो पल
जिनकी फ़िज़ाएं गवाह थी
कुछ तेरे साथ के वो पल
जो अब भी महकते है ,फिर
चुनिंदा लम्हें घूम गए आँखों में
जो लिपटे न थे दर्द की चाश्नी में
राजेश’अरमान’

झूठ के पैर

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

झूठ के पैर बहुत लम्बे होते है
और सच के हाथ
राजेश’अरमान’

ना खुद को बदल सका ना

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना खुद को बदल सका ना तेरी निगाहों को
सिलसिला बस चलता रहा खत्म होने के लिए
राजेश’अरमान’

टुकड़े से पड़े है

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

टुकड़े से पड़े है तेरे दिल के आसपास
देखना कहीं मेरा दिल तो नहीं
राजेश ‘अरमान’

चुपके से कोई शाम ढल जाती है

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुपके से कोई शाम ढल जाती है
और छोड़ जाती है जागती रातें
रातें करवटें बदलती है
तारे जागते पहरा देते है
ख्वाब आँखों में जगमगाते है
होती फिर तैयार एक सुबह
आतुर है मन देखने को एक नई सुबह
व्याकुल है मन पड़ेगी देखनी फिर वही सुबह
सुबह आती है कुछ श्रृंगार किये
सूरज ले के आता सवालों के पुलिंदे
जवाब जिनका छुपा बैठा है तारों में
आँखे खुलती है सवालों की भीड़ में
साँसें चलती है जवाबों की तलाश में
फिर खो जाता हूँ दिन भर के लिए
बस खो जाता हूँ फिर ढूंढ़ता हूँ
खुद को अपने ही इर्दगिर्द
इसी कश्मकश में फिर ,
चुपके से कोई शाम ढल जाती है
राजेश’अरमान’

मासूमियत उसके चेहरे

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मासूमियत उसके चेहरे की यूँ ग़ुम हुई
जैसे कोई गाँव ,शहर में तब्दील हो गया हो
राजेश’अरमान’

न जाने किस तरक्की की

March 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

न जाने किस तरक्की की बात करते हो
जब देखो नफरतों की बरसात करते हो

हम बैठे है सरेराह जवाबों के तस्सवुर में
जनाब तुम हो की हमसे सवालात करते हो

जब भी मिलते हो नकाब ओढ़े मिलते हो
बड़े अजीब हो कैसी ये मुलाकात करते हो

ख़ाली हाथों की हक़ीक़त से वाकिफ लेकिन
काम कैसे कैसे फिर   दिन रात करते हो

उम्र को नवाज़ों आखिर  किसी दहलीज से
क्या बारहा  ये बच्चों सी खुराफात करते हो

             राजेश’अरमान’
 
        

धर्मों में बिखरा इंसान

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

धर्मों में बिखरा इंसान
सही मायने में नास्तिक है
राजेश’अरमान’

उनके जुमलों से

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

उनके जुमलों से आती है बूँ जलन की
हमने देखी है कुछ ताप उस अगन की
फाकामस्ती भी कोई  जागीर से कम नहीं
 लुत्फ़ उगते नहीं बदनसीबी है चमन की
                    राजेश’अरमान’

मखौल ज़माने का

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मखौल ज़माने का उड़ाने वाले गुनहगार तुम भी हो
नफरतों के पेड़ उगाने वाले तलबगार तुम भी हो

गुस्ताखी औरों की तो दिखती है नंगी आँखों से
खुद के गिरेबां पे होती हाहाकार तुम भी हो

कौन से समुन्दर की बात तुम करते हो
समुन्दर के इस पार और उस पार तुम भी हो

हक़ीक़त बयां करते हो किस बात की
अपने हाथों बनाई एक मज़ार तुम भी हो

बातों से तो सिर्फ बातें ही होती है अक्सर
जहाँ को बनाने वाले एक शिल्पकार तुम भी हो

इतिहास के पन्नो पे फ़ैल रहा नफरत का जहर
इतिहास को इतिहास बनाने वाले कलमकार तुम भी हो

राजेश’अरमान’

लफ्जों की कबड्डी से

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लफ्जों की कबड्डी से
मौन की कुश्ती भली
राजेश’अरमान’

किसी ने कहा ,लिखते क्यों हो?

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी ने कहा ,लिखते क्यों हो?
मैंने कहा नहीं लिखता तो कहते
कुछ लिखते क्यों नहीं?
अपनी सोच को कलम में भर के
लिखने को कोशिश कर रहा हूँ
क्या करते हो ?
सुरंग बनाता हूँ
जो हर लिखने वाला बनाता है
अपने और दुनिया के बीच
चल सके वो उस भीड़ भरे
रास्तों से भिन्न
उन रास्तों से अलग जहां
पहचाने नहीं जाते ,
अपने ही क़दमों के निशां
बस रोंदते चलते है सड़को पर
एक दूसरे के क़दमों के निशां
चीखती चिल्लाती सड़कों पर
भागते रास्तों में गुम
ज़िंदगी की तलाश
करता हूँ इस सुरंग में
कुछ दबे हुए से पत्थरों
को तराशता हूँ
अपने लिए नई राह बनाता हूँ
अंदर की सिसकियों को
तस्सली देने का कारोबार करता हूँ
सन्नाटों को मुर्गा बन
बांग देता हूँ
शायद सवेरे का एहसास हो
इन सन्नाटों को
सुरंग के ऊपर बसी दुनिया
को बस महसूस करता हूँ
सुरंग ही है मेरा रास्ता
जिससे निकल मैं मिलता हूँ
अपने और अपने लोगों से
आप अब मत पूछिए
मैं करता क्या हूँ ?
राजेश’अरमान’
२३/०४/१९९१

स्पर्श करके देखा

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्पर्श करके देखा
जब कभी इस दुनिया को
हाथ मेरे लहूलुहान हुए

स्पर्श करके देखा
जब कभी सन्नाटों को
सन्नाटे कुछ ओर सुनसान हुए

स्पर्श करके देखा
जब कभी अपने ज़ख्मों को
दर्द कुछ और ही मेहरबान हुए

स्पर्श करके देखा
जब कभी तन्हाइयों को
रास्ते और कुछ वीरान हुए

स्पर्श करके देखा
जब कभी फासलों को
निस्बत देख के हैरान हुए

राजेश’अरमान’

खुद की तो अब

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद की तो अब तक तलाश अधूरी है
बन्दे तुझे बन्दे रहने की आस जरूरी है
कदम कदम पर फैले है आडम्बर इतने
इन्हे खत्म करने का प्रयास जरूरी है
राजेश’अरमान’

वज़ह कुछ नहीं फिर भी

March 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वज़ह कुछ नहीं फिर भी
अंदर कुछ नहीं फिर भी
धर्म क्या मैं जानता नहीं
सबसे आगे खड़ा फिर भी
जन्नत तो कोई ख्वाब है
गर्क ज़िंदगी हुई फिर भी
जुल्म अपने पे ही ढाये
सजा औरों को दी फिर भी
चलते रहने का राज न पूछों
मसले कन्धों पे रहे फिर भी
राजेश’अरमान’

आँखों के तहखाने

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

 
आँखों के तहखाने
ख़ामोशी के वीराने
बेकसूर को लगते
बेवज़ह के जुर्माने
राजेश’अरमान’

मेरा रंग उड़ने लगा है

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

मेरा रंग उड़ने लगा है, देखकर ,
रंग बदलना उनका
राजेश’अरमान’

फुर्सत जब से

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

फुर्सत जब से ग़ुम हुई
तन्हाई तब से जुर्म हुई
राजेश’अरमान’

ज़िद कभी न हारने की

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ज़िद कभी न हारने की
वज़ह कभी बनती है हार की
राजेश’अरमान’

इधर आग लगी है

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इधर आग लगी है बस्तिओं में
उधर जनाब तैर रहे है पानी में
राजेश’अरमान’

दर्द में भी अब

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

दर्द में भी अब मज़ा न रहा
क़ल्ब भी अब पाकीज़ा न रहा
परियों की कहानी पर भी यकीं था,
हक़ीक़त में अब मोज़ेजा न रहा
राजेश’अरमान’

कुछ तो हैरान होगी

March 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कुछ तो हैरान होगी ज़िंदगी भी
जब हमने अपना मुँह मोड़ लिया
राजेश’अरमान’

कदम रुकने से मंज़िल

March 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कदम रुकने से मंज़िल कुछ और दूर हो जाती है
मुसाफिर की थकन से राह मजबूर हो जाती है
हौसलों की हवा से उड़े है जहाँ के गुब्बारे,
उड़ते गुब्बारों की दुनिया में हस्ती मशहूर हो जाती है
राजेश’अरमान’

खुद की भागम -भाग

March 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद की भागम -भाग
उसपे रस्ते आग ही आग
कुछ शीतल भी है
अम्बर के नीचे
कुछ शांति भी है
अम्बर के नीचे
अपने ही हाथों से
हमने खुद मानव
से बदल कर बना दिया
मानवरूपी मशीन
जिसके हर कलपुर्जे
हमारी प्रगति तो दिखाते है
पर अंदर की घुटन को
बस हम हरदम छुपाते है
क्या फिर मशीन से मानव
बनना संभव नहीं है
यदि हो सके तो ढूंढे
खोई हुई ज़िंदगी को दुबारा
कहीं हमने खुद ही उसे
कहीं दबा कर तो
रख नहीं दिया है
हम सचमुच जी रहे है
या जीने की कोशिश कर रहे है
यदि कोशिश है तो फिर ज़िंदगी
दफ़न कर हम साँसें हवा में
बिखेर रहे है ,ले नहीं रहे
साँसें लेने से भी घुटन
सी होती है अब ,क्योकि
खुद की भागम -भाग
उसपे रस्ते आग ही आग
राजेश’अरमान’

कुछ तो दायरे हो

March 12, 2016 in ग़ज़ल

कुछ तो दायरे हो , जिसमे रहना जरूरी है
जिस के अंदर खुद को भी रखना जरूरी है

प्रगति के हम एक कारीगर है मगर
वक़्त के साथ कारीगर बदलते रहना भी जरूरी है

कुछ क़र्ज़ हमारे ऊपर खुद का भी है
अदा उसका होते रहना भी जरूरी है

अनंत है इच्छाए उस पर कई दौड़
कुछ दौड़ में पिछड़ते रहना भी जरूरी है

ज़िंदगीकी कोई डोर नहीं है तेरे हाथों में
हर साँसों को जीते रहना भी जरूरी है

राजेश’अरमान’

कभी मन करता है

March 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी मन करता है
फिर से दुनिया को
औरों की नज़र से देखूँ
शायद मेरी नज़र में
कोई भ्रान्ति दोष हो
एक बार देखा
जब दुनिया को
दूसरी नज़र से
लगा आँखों पे
कोई चाबुक सा पड़ा
जिसके दर्द से
आज भी कराह रहा हूँ
राजेश’अरमान’

कुछ परछाइयाँ सी

March 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कुछ परछाइयाँ सी चलती है मेरे पीछे ,
वक़्त भी बहरूपिया होता है गुमाँ न था
राजेश’अरमान’

डोर रिश्तों की नाज़ुक

March 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी

डोर रिश्तों की नाज़ुक होती है
कभी फूल ,कभी चाबुक होती है
राजेश’अरमान’

गहरे राज़ छुपे है

March 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी

गहरे राज़ छुपे है अपनी ही साँसों में
लो तो ठंडी छोड़ों तो गर्म -गर्म
राजेश’अरमान’

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