दुर्गा भाभी-01
उम्मीद की लौ जल-जल के बुझ रही थी नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी परालम्बन भरे जीवन से मुक्ति हमें दिलाने वीर- वीरान्गनाओ की टोली कफ़न बाँध चल रही थी ।। दिन के उजाले में भी, तमस से हम घिरे थे खुद के ही घरों में, हम बंधक बन रह गये थे तब दुर्गा रूपी पुष्प, कौशांबी में, खिल रही थी नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी —- “हिंद की अग्नि” से थी जो विभूषित वीरता से अपनी, ब... »