मुक्तक
तुम मेरी जिंदगी में बेहद बेशुमार हो! तुम मेरे तसव्वुर में आते बार–बार हो! मुश्किल बहुत है रोकना तेरे सूरूर को, तुम मेरी नज़र में…
तुम मेरी जिंदगी में बेहद बेशुमार हो! तुम मेरे तसव्वुर में आते बार–बार हो! मुश्किल बहुत है रोकना तेरे सूरूर को, तुम मेरी नज़र में…
तुम मेरी जिंदगी में बेहद बेशुमार हो! तुम मेरे तसव्वुर में आते बार–बार हो! मुश्किल बहुत है रोकना तेरे सूरूर को, तुम मेरी नज़र में…
बेशक खुशबू से भरा होगा मेरे दोस्त तेरा सनम, मगर मुझे तो माँ का मैला आँचल ही सुहाता है।। – राही (अंजाना)
जब किसी ने ना देखा एक नज़र मुझे पलटकर, तब आइना भी रो दिया मेरा चेहरा देखकर।। – राही (अंजाना)
खामोश तस्वीरों की जैसे कोई आवाज बन गया हूँ, अनजाने में ही जैसे उनके अल्फ़ाज़ बन गया हूँ, जो कह नहीं पाती वो अपनी आँखों…
सब कुछ चाहिए जुबाएँ ना साथ देती, जब आती है रिश्ते शादी की जुबाएँ पर मिठास होती, देख अच्छे से ऐसी — वैसी बात होती–…
ए वक्त अब उससे दुर ना कर , ए वक्त इतना मुझे मजबुर मत कर। वरना टुट जाऊँगी, उसके बिना मुझे उससे इतन दुर ना…
वक्ते-सितम से रिश्ते टूट जाते हैं! राहे-वफा में रहबर छूट जाते हैं! दूरियाँ हो जाती हैं जिनसे दिलों की, बेरहम बनकर हमसे रूठ जाते हैं!…
किसी से गिला नही किसी से सिकवा नही, एक दिन आएगा , एेसा की मै कही नजर नही आऊँगा—- बहुत दु:ख दिया अपनो ने दिल…
तु कहती तो तेरे कदमो मे गिर जाता, मै इतना मजबुर था चाहता था, तुझे क्योकि मेरे दिल को तु मंजुर था। प्यार के ब़दले…
मेरी लाल– लाल आँख देखकर मत कहना, एे यार , तुम बहुत रोया है। दरअसल दिल पर धुल जमीं थी—– जिसे आँसु से धोया है।।…
मैंने अपनी “मैं” को “हम” कर लिया है, जिस पल से तुमको अपने संग कर लिया है॥ राही (अंजाना)
रेत हाथों से यूँ ही न सरक पाएगा, गर उँगलियों में दूरी रखोगे नहीं, रंग चेहरे का फीका न हो पायेगा, गर रिश्तों में किस्से…
माँ के दिल और पिता के दिमाग से परखा जाएगा, ये बचपन का पौधा बड़े हिसाब से ख़र्चा जाएगा, मेहनत लगी है गहन किसकी परवरिश…
पत्थरों को भी खड़े होने का सलीका सिखाने में, कितना काबिल दिखता है वो पिरामिड बनाने में, सन्तुलन कोई रखता नहीं दो रिश्ते निभाने में,…
सिखाता कोई नहीं बस सीखना पड़ता है, अपने रिश्तों को खुद ही सूझना पड़ता है, दिल की जितनी ही पहरेदारी की जाती है, उसको उतनी…
शीर्षक – अस्थिर जो सोचती हूँ अपने बारे में शायद किसी को समझा पाऊँ, मैं वो पानी की बूंद हूँ जो आँखों से आँसू बनकर…
शीर्षक – मृत्योपरांत स्मरण (एक बेटी के भाव अपने पिता की मृत्यु पर ) जिसने हाथ पकड़कर चलना सिखाया आज साथ छोड़ कर जा रहा…
जब दिल नहीं कोई आत्मा दुखाने लगे, आँखों में ठहरा वो पानी छलकाने लगे, स्वप्नो की बनाई दुनियाँ को भुलाने लगे, अपने ही रिश्ते का…
मेरे जिस्म से हर रोज़ मेरे वस्त्र उतारे जाते हैं, दरख्त काटकर पंछियों के घर उजाड़े जाते हैं, साँसे हैं मेरी ही बदौलत यहाँ जिनके…
जाने अनजाने रिश्तों के मध्य खड़ा नज़र मैं आता हूँ, मैं मतलब हूँ बेमतलब लोगों के साथ कभी जुड़ जाता हूँ, कभी मैं आता काम…
मेरी ग़ज़ल सग्रंह की बुक “नाराज़गी” बहुत जल्द आपके सामने होगी ।ये सब आपकी दुआओं का असर है । बेहद शुक्रिया । आपका लकी निमेष
होंठो पर झूठी हंसी और आँखों में नमी लिए बैठी थी, वो अंदर से हजार बार टूटकर भी बाहर से जुडी बैठी थी।। राही (अंजाना)
स्वप्नों के तराजू पर वजन मेरी जिम्मेदारी का ज्यादा निकला, मेहनत के कागज़ों पर नोटों का रंग थोड़ा ज्यादा निकला, बहुत बहाया पसीना दो रोटी…
जब मैंने पूछा – आज तुम्हारा बदन इतना मैला क्यों है क्यों हो तुम इतने गुस्से में, क्या कोई संताप है? उसने घूर कर देखा…
तुम खुद को किसी की याद में क्यों खोते हो? तुम जिंदगी को अश्कों से क्यों भिगोते हो? आती हुई बहारों को न रोको दर्द…
केवल बेटी ही नही, बेटे भी घर जाते। दो जुम के रोटी के लिए अपना घर– परिवार छोड़ जाते। जो आज तक पला बाप के…
वो दर्द वो खामोशी का मंजर नहीं बदला! तेरी अदा-ए-हुस्न का खंजर नहीं बदला! शामों-सहर चुभते रहते हैं तीर यादों के, मेरी तन्हाई का वो…
वो दर्द वो खामोशी का मंजर नहीं बदला! तेरी अदा-ए-हुस्न का खंजर नहीं बदला! शामों-सहर चुभते रहते हैं तीर यादों के, मेरी तन्हाई का वो…
उत्कर्ष मेल में पहली बार मेरी ग़ज़ल बहुत बहुत शुक्रिया संपादक महोदय जी का । आपका सहयोग यूँ ही बना रहे ।
भारतीय हो-भारतीय रहो ———————————- भारतीय हो–भारतीय रहो सर ऊँचा कर भारतीय कहो मिट्टी यहाँ की,संस्कृति यहाँ की संस्कारों में पली-बढ़ी है शक़्ल-ओ-सूरत मनुष्य एक सा…
सारी यादें बन्द दरवाज़े के पीछे कैद कर रहा हूँ, हर एक निशानी को मैं कैसे सुफैद कर रहा हूँ, कोई आंकलन ही नहीं मुझे…
हमारे दिल की धड़कन है तू हमारे जिगर का टुकड़ा है तू छुए तू इतनी ऊंचाइयों के कि दुनियां जहाँ में मशहूर हो तू।।
दुनिया की भीड़ में जब कभी अकेली होती हूँ तो बहुत याद आती है मुझे मेरी माँ खुशियाँ हो या गम हो हर सुख दुःख…
तेरे रवैये पे तू इतराया ना कर, ऐ दोस्त तू चेहरे को अपने यूँ बनाया ना कर, तू झूठ पर पर्दा उढ़ाया ना कर, यूँ…
अब डूबने के डर से बेखौफ हो गया हूँ मैं, लहरों से सीख़ आया हूँ वापस लौट के आने का हुनर।। – राही (अंजाना)
पेट भरने को कितनी जद्दोजहद दिखाता है, जब कोई बच्चा सड़कों पर खेल दिखाता है, चोट दिल पे लगे और जिस्म को झुकाता है, क्यों…
जब देख ही लिया उनके चेहरे को जी भर के, तो अब किसी तस्वीर को आढ़ा देख कर क्या होगा, बदल ही गया जब वक्त…
एहसासों की एक चादर को रोज़ बिछाया करता हूँ, अपने दिल के टुकड़ों को उसपे रोज़ सजाया करता हूँ, बहुत अन्धेरा लगता है जब कभी…
बात करते हैं मगर चेहरा छिपा लेते हैं लोग, अक्सर खुद पर ही पेहरा लगा लेते हैं लोग, आते क्यों नहीं भला खुल के सामने…
भला मौन रहकर भी कैसे कोई गहरे तीर चला लेता है, छोटी-छोटी बातों से ही मन की तस्वीर बना लेता है, लगे चोट अपनों से…
जो उड़ रहे थे परिंदे बेख़ौफ़ खुले आसमाँ में, आज उस खुदा ने उन्हें ज़मी का मुरीद कर दिया॥ – राही
अब कोई तो बादल ही ढूंढ ले मुझको, बारिश ए बून्द ही सही चूम ले मुझको, एक अरसे से सूखी हैं ये आँखे मेरी, कोई…
जब बात करो तो बातों से बातें निकलती हैं, उलझी हुई राहों से सुलझी राहें निकली हैं।। – राही (अंजाना)
जानते हैं के सभी को बीमारी हो गई है, रिश्तों के मध्य खड़ी चार दीवारी हो गई है, कभी बैठ कर साथ में जो बना…
बड़ा अकड़ रहे थे वो चन्द बर्फ के टुकड़े बैठकर, जो मेरे सनम के हाथ लगते ही पानी पानी हो गये।। – राही (अंजाना)
सारे प्रयास प्रत्यक्ष है के विफल हो रहे हैं, सभी अक्षर मुख से निकल अस्त वयस्त हो रहे हैं, पहुँच ही नहीं रही है आवाज़…
चेहरे के हर भाव पढ़ने लगती है, जब कोई लड़की बढ़ने लगती है, कहती कुछ नहीं मुख से फिरभी, चुप्पी आँखों में गढ़ने लगती है,…
कल तक जिस आँगन में पली और बड़ी हुई आज उसी के लिए पराया हो गया है कल तक जिस चीज़ को मन करता उठाया…
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