तिरंगा महान

January 26, 2019 in मुक्तक

ना होली-दिवाली ना ईद रमजान।
एक ही जश्न हिफाजत-ए-हिंदुस्तान।
गर हो जाऊं शहीद सरहद पे ‘देव’,
पहना देना बतौर कफन तिरंगा-महान।

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

ममता की छांव

January 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे कांधे पे सर रख, रोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।

तू लोरी गाकर, थपकी देकर सुला दे मुझे,
मैं सुखद सपनों में, खोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

इतना बड़ा, इतनी दूर न जाने कब हो गया,
तेरा आंचल पकड़कर, चलना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

जीने के लिए, खाना तो पड़ता ही है,
तेरे हाथों से भरपेट, खाना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

जिंदगी का बोझ, अब उठाया जाता नहीं,
बस्ता कांधों पर फिर, ढोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

जिंदगी की भाग दौड़ से, थक गया हूं अब,
बचपन फिर से मैं, जीना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

जिंदगी के थपेड़े, बहुत सह चुका ‘देव’,
ममता की छांव में, पलना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।

देवेश साखरे ‘देव’

कतरा बन गिरो

January 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कतरा बन गिरो,
पत्ते पर ओंस की भांति।

कतरा बन गिरो,
शीतल बारिश की भांति।

कतरा बन गिरो,
सीप में मोती की भांति।

कतरा बन गिरो,
पिघलते मोम सी ज्योति की भांति।

कतरा बन गिरो,
मातृभूमि पर लहू की भांति।

कतरा बन ऐसे न गिरो,
किसी आंखों से आंसू की भांति।

देवेश साखरे ‘देव’

मैं शायर हूं

January 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्दों से खेलना हुनर है मेरा,
जज़्बातों से खेलना, हमें आता नहीं।

कलम हथियार है मेरा,
बाज़ुओं की ताक़त, मैं दिखाता नहीं।

नर्म दिल हूं, हां मैं शायर हूं,
मोहब्बत के सिवा, कुछ भाता नहीं।

दिलों में रहने की आदत है,
दिल की लगी को, दिल्लगी बनाता नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

दुनिया के रंग

January 16, 2019 in मुक्तक

देखा है दुनिया को रंग बदलते।
मुंह में राम बगल में छुरा लिए चलते।
गैरों को मतलब कहां हैं हमसे ‘देव’,
यहां अपने ही अपनों को हैं छलते।

देवेश साखरे ‘देव’

मकर संक्रांति

January 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।
भिन्न बोली-भाषाएं, खान-पान, भिन्न परिवेश है।

आओ मैं भारत दर्शन कराता हूं।
महत्त्व मकर संक्रांति की बताता हूं।
सूर्य का मकर राशि में गमन,
कहलाता है उत्तरायण।
मनाते हम सभी इस दिन,
मकर संक्रांति का पर्व पावन।
दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य का प्रवेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।

गुजरात, उत्तराखंड में उत्तरायण कहते।
इस दिन पतंग प्रतियोगिता हैं करते।
उड़ाते उन्नति की पतंग,
बांध विश्वास की डोर संग।
भरता जीवन में उमंग,
देख आसमान रंग- बिरंग।
यह त्योहार जीवन में, सभी रंगों का संदेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।

पंजाब, हरियाणा में माघी, तो
दक्षिण भारत में पोंगल मनाते।
इस दिन लोहड़ी और बोगी जलाते।
करते सकारात्मकता की अग्नि प्रज्वलित।
कर नकारात्मकता की आहुति सम्मिलित।
सभी मिलकर गाते खुशियों के गीत,
कामना कर भविष्य हो उज्जवलित।
हम भी करते दहन, अपने ईर्ष्या और द्वेष हैं।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।

बिहार, उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी कहते।
इस दिन दही-चूड़ा, खिचड़ी ग्रहण करते।
आत्म शुद्धि हेतु, प्रथा गंगा स्नान का।
महत्त्व है सूर्य देव के आह्वान का।
पुण्य प्राप्ति हेतु, महत्व है दान का।
यह पर्व है, पौराणिक ज्ञान का।
सुने हमने कई गाथा, कई संतों के उपदेश हैं।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।

असम में बिहु, शेष भारत में,
इसे मकर संक्रांति कहते।
तिल, गुड़ की मिठास के संग,
फसल कटाई का उत्सव करते।
यूं तो त्योहार एक है।
प्रांतिय नाम अनेक हैं।
अनेकता में एकता का प्रतीक, भारत विशेष है।
भिन्न बोली-भाषाएं, खान-पान, भिन्न परिवेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।

देवेश साखरे ‘देव’

जीवन सारथी

January 11, 2019 in मुक्तक

जीवन न्यौछावर कर दो हेतु परमार्थ।
प्रतिफल की अभिलाषा बिना निःस्वार्थ।
ईश्वर स्वयं बन जाएंगे जीवन सारथी,
और बना लेंगे अपना सखा पार्थ।

देवेश साखरे ‘देव’

हार

January 10, 2019 in शेर-ओ-शायरी

तेरे बाहों के हार में, सब कुछ हार जाऊं।
तुझ पर अपना दिलो – जां मैं वार जाऊं।
तुझ से हार कर भी जीत है मेरी ‘देव’,
तेरे आगोश में, जन्नत का मैं करार पाऊं।

आकांक्षाएं

January 9, 2019 in शेर-ओ-शायरी

अपनी आकांक्षाओं को, मैं पर देना चाहता हूं।
खुले आसमान को, मुट्ठी में कर लेना चाहता हूं।
कल्पनाओं को आकार देना इतना भी मुश्किल नहीं,
बस अपनी सोच को, नई नजर देना चाहता हूं।

देवेश साखरे ‘देव’

कोशिश

January 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हुनर किसी ज़रिए का मोहताज नहीं होता ।
कल उन्हीं का है, जो कुछ आज नहीं होता ।
गिरने से डरता क्यों है, पहले उड़ान तो भर,
वो भी सीख जाता, जिनका परवाज़ नहीं होता ।
मंजिल मिलेगी ज़रूर, पहले शुरुआत तो कर,
अंजाम नहीं होता, जब तक आगाज़ नहीं होता ।
खुद पे यकीं रख, शिद्दत से अपना काम तो कर,
कामयाबी शोर करेगी, उसमें आवाज़ नहीं होता।
यूं हिम्मत ना हार ‘देव’, पहले कोशिश तो कर,
कोशिश करने वालों से, ख़ुदा नाराज़ नहीं होता ।

देवेश साखरे ‘देव’

असमंजस में पड़ा इंसान

January 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।

दौलत के रिश्ते हैं,
रिश्तों की यही अहमियत है ।
वक्त के साथ अपने,
जज़्बात बदलने की सहुलियत है ।
जरूरत खत्म, रिश्ते खत्म,
कड़वी, पर यही असलियत है ।
दौलत बड़ी या रिश्ते,
किस बंधन में जकड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।

डूबते को बचाना छोड़ कर,
‘वीडियो’ बनाने में हम मशगूल।
तड़पते का ‘फोटो’ खींचने में,
इलाज कराना गए हम भूल।
हमदर्दी को ताक पर रख,
इंसानियत की बात करना फिजूल।
कैसी विडंबना है आज,
इंसानियत से हुआ बड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।

संयुक्त परिवार,
मात्र एक कल्पना है।
एकल परिवार,
आज सभी का सपना है।
व्यस्त जीवन में,
कौन किसी का अपना है।
विकट परिस्थिति में कब,
मुश्किलों से अकेले लड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।

देवेश साखरे ‘देव’

नया साल

January 1, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दिल की कलम से ये पैगाम लिखता हूं।
तुम्हारे हिस्से खुशियां तमाम लिखता हूं।
खुशियों से रोशन हो हर राह तुम्हारा,
नये साल का नया कलाम लिखता हूं।।

उम्मीदों का नववर्ष

December 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।

आगे बढ़ते हैं, कड़वे पल भुला कर।
छोड़ वो यादें, जो चली गई रुला कर।
मधुर यादों के साथ, आओ नववर्ष का,
स्वागत करें, उम्मीद का दीप जलाकर।
बात करें मात्र खुशियां और हर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की ।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।

आओ नववर्ष में होते हैं संकल्पित।
जल की हर बूंद करते हैं संरक्षित।
स्वच्छ वातावरण बनाने का प्रयास,
क‌रते‌‌ हैं, पर्यावरण प्रदूषण रहित।
लालसा किए बगैर निष्कर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।

संसार हो दहशत और आतंक मुक्त।
अमन – चैन, समरस और सौहार्द्र युक्त ।
कल्पना साकार हो इस नववर्ष ‘देव’,
परस्पर प्रेम सूत्र में विश्व हो संयुक्त।
त्याग कर मानसिकता संघर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की।।

सभी को नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।

देवेश साखरे ‘देव’

चिड़ियाघर

December 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक दिन गया मैं चिड़ियाघर,
एक भी जानवर न था वहां पर ।
यह देख मैं रह गया हैरान,
हर पिंजरे में था एक इंसान ।।

एक पिंजरे में लिखा था ‘ भेड़िया दुराचारी ‘
उसमें बंद था एक क्रूर बलात्कारी ।
अगले पिंजरे में लिखा था ‘ शेर खूंखार ‘
उसमें बंद था मासूमों का कातिल गुनहगार ।
अगले पिंजरे में लिखा था ‘ बंदर नकलची ‘
उसमें बंद था झूठा- मक्कार नेता लालची ।
अगले पिंजरे में लीखा था ‘ सियार रंगी ‘
उसमें बंद था एक ठगी बाबा ढोंगी ।
अगले पिंजरे में लिखा था ‘ गीदड़ भभकी ‘
उसमें बंद था एक शातिर आतंकी ।

हर पिंजरे में था एक कुख्यात गुनाहगार,
दो-चार नहीं जिन पर थे आरोप हजार ।

ऐसे इंसान क्या किसी जानवर से कम हैं?
इन्हें देख जानवर भी शर्माएंगे ।
जंगली जानवरों से डर ना होगा,
ऐसे इंसानी हैवानों के बीच खौफ खाएंगे ।

फिर से यह इंसानी जानवर हमारे बीच,
नए गुनाह करने को आजाद किए जाएंगे।
और बेगुनाह जानवरों को चिड़ियाघर में,
मनोरंजन के लिए कैद किए जाएंगे ।।

देवेश साखरे ‘देव’

तारीफ तेरी

December 19, 2018 in ग़ज़ल

तारीफ तेरी, नहीं मेरी जुबां करती है ।
नजरें पढ़ ले, हाले-दिल बयां करती है ।।
इश्क में हूँ तेरे आज भी, जहां जानता है,
तेरा हुश्ने-मुकाबला, कोई कहाँ करती है ।।
माना बरसों पुराना, इश्के-फसाना हमारा,
पर आज भी, इश्के-मिसाल जहां करती है ।।
एक तेरे सिवाय, नहीं कोई और जिंदगी में,
शक मुझ पर, बेवजह, ख़ामख़ाह करती है ।।
कल के लिए, हम अपना आज ना खो दें ‘देव’,
कल का फैसला, जिंदगी की इम्तहां करती है।।

देवेश साखरे ‘देव’

किसान की व्यथा

December 18, 2018 in Poetry on Picture Contest

पसीना सूखता नहीं धूप में।
किसान होता नहीं सुख में।।

अतिवृष्टि हो या फिर अनावृष्टि।
प्रकृति की हो कैसी भी दृष्टि।
किसानों के परिश्रम के बिना,
कैसे पोषित हो पाएगी सृष्टि।
संसार का पोषण करने वाला,
क्यों रह जाता है भूख में।
पसीना सूखता नहीं धूप में।
किसान होता नहीं सुख में।।

इनके परिश्रम का मूल्यांकन, हमारी औकात नहीं।
ना मिल पाए उचित मूल्य, ऐसी भी कोई बात नहीं।
मौसम की मार और सर पर कर्ज का भार,
क्यों इनके हिस्से भी, खुशियों की सौगात नहीं।
आत्महत्या करने पर विवश,
कर्ज़ अदायगी की चूक में।
पसीना सूखता नहीं धूप में।
किसान होता नहीं सुख में।।

सरकारें तो बस आएंगी और जाएंगी।
किसानों को सही परितोष मिल पाएगी?
इनका भी परिवार है, जरूरतें हैं, सपने हैं,
अछूता वर्ग, मुख्यधारा से जुड़ पाएगी?
हमें सुख में रखने वाला,
क्यों रह जाता है दुख में।
पसीना सूखता नहीं धूप में।
किसान होता नहीं सुख में।।

देवेश साखरे ‘देव’

आजादी

December 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

कभी नक्सलियों, आतंकियों से आजादी,
कभी रिश्वतखोरों, भ्रष्टाचारियों से आजादी ।
कब ली राहत की साँस हमने,
भूली बिसरी बातें हैं, नहीं अब याद भी ।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

चल रही कहीं जिस्म की निलामी,
बरकरार है दहशत की गुलामी ।
बारूद के ढेर पे बैठे हम सारे,
कब निगल जाए हमें और हमारे औलाद भी।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

कभी जात – पात की बंदिशें,
कभी मजहब के नाम पे रंजिशें।
साम्प्रदायिक बेड़ियों में जकड़े हुए हम,
समानता की लाख कर लो फरियाद भी।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

अदृश्य गुलामी से हम क्या उबर पायेंगे,
सही मायने में आजादी महसूस कर पायेंगे ।
दूसरों की गुलामी ही क्या गुलामी है,
पल-पल की गुलामी से हो रहे भले बर्बाद भी।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

आओ आजादी की एक लौ जलाते हैं,
जश्ने – आजादी दिल से मनाते हैं ।
संकल्प लें आज स्वस्थ भारत बनाने की,
नई पीढ़ी को दें, संपूर्ण आजादी की सौगात भी।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी,
आजादी को हम जूझ रहे आज भी ।।

देवेश साखरे ‘देव’

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