तुम्हें क्या कहूँ

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हें चांद कहूं,
नहीं, तुम उससे भी हंसीन हो।
तुम्हें फूल कहूं,
नहीं, तुम उससे भी कमसीन हो।
तुम्हें नूर कहूं,
नहीं, तुम उससे ज्यादा रौशन हो।
तुम्हें बहार कहूं,
नहीं, तुम सावन का मौसम हो।
तुम्हें मय कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा खुमार है।
तुम्हें नगीना कहूं,
नहीं, तुम्हारे हुस्न का दौलत बेशुमार है।
तुम्हें सूरज कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा तपीश है।
तुम्हें तश्नगी कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा कशिश है।
तुम्हें ख्वाब कहूं,
नहीं, तुम तो हकीकत हो।
तुम्हें यकीन कहूं,
नहीं, तुम तो अकीदत हो।
तुम्हें हुस्न-ए-बूत कहूं,
नहीं, खुदा ने तराशा तुम वो मूरत हो।
तुम्हें हूर कहूं,
नहीं, तुम उससे भी खूबसूरत हो।
अब तुम ही बताओ,
तुम्हें क्या कहूं,
तुम इन सबसे जुदा हो।
सिर्फ मेरी महबूबा हो।

देवेश साखरे ‘देव’

जन्नत

September 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी

तेरे कांधे पर, सर रख सोना चाहता हूँ।
तेरे आगोश में, सब कुछ खोना चाहता हूँ।
जन्नत सुना था, तेरी बाँहों में देख भी लिया,
दो जिस्म और एक जान होना चाहता हूँ।

मायूस

September 15, 2019 in ग़ज़ल

बड़े मायूस होकर, तेरे कूचे से हम निकले।
देखा न एक नज़र, तुम क्यों बेरहम निकले।

तेरी गलियों में फिरता हूँ, एक दीद को तेरी,
दर से बाहर फिर क्यों न, तेरे कदम निकले।

घूरती निगाहें अक्सर मुझसे पूछा करती हैं,
क्यों यह आवारा, गलियों से हरदम निकले।

मेरी शराफत की लोग मिसाल देते न थकते,
फिर क्यों उनकी नज़रों में, बेशरम निकले।

ख्वाहिश पाने की नहीं, अपना बनाने की है,
हमदम के बाँहों में ही, बस मेरा दम निकले।

देवेश साखरे ‘देव’

हिंदी की व्यथा

September 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

“हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ”

क्या सुनाऊँ मैं, हिंदी की व्यथा।
वर्तमान सत्य है, नहीं कोई कथा।

आजकल के बच्चे
A B C D… तो फर्राटे से हाँकते हैं।
‘ककहरा’ पूछ लो तो बंगले झाँकते हैं।

आजकल के बच्चे
वन, टू, थ्री… तो एक लय में बोलते हैं।
‘उन्यासी’ बोल दो तो मुँह ताकते हैं।

आजकल के बच्चे
अंग्रेजी शब्दों में ‘Silent’ अक्षर भी लिख जाते हैं।
हिंदी मात्रा, वर्तनी की अशुद्धियाँ ईश्वर ही वाचते हैं।

आजकल के बच्चे
अंग्रेजी ‘Quotes’ तो बखूबी जानते हैं।
मुहावरे का अर्थ पूछ लो तो काँपते हैं।

हिंदी भाषा का उत्तरदायित्व,
आने वाली पीढ़ी ऊठा पाएगी?
हिंदी भाषा का अस्तित्व बचेगा,
या फिर ‘हिnglish’ बन जाएगी?

अभी उचित कदम न उठाएँ तो,
ग्लानि ही शेष बचेगी अन्यथा।
क्या सुनाऊँ मैं, हिंदी की व्यथा।
वर्तमान सत्य है, नहीं कोई कथा।

देवेश साखरे ‘देव’

नाज़ करे

September 14, 2019 in शेर-ओ-शायरी

ऐसी हो जिंदगी जिस पर नाज़ करे।
खुदा तुम्हें, मेरी भी उम्र दराज़ करें।
हर राह रौशन, काँटों से महफूज़ दामन,
इतनी खुशियाँ बख्शे गम ना आज करें।

किसे कदर देखेगा

September 13, 2019 in ग़ज़ल

कुछ ऐसा कर जाएंगे, सारा शहर देखेगा।
मेरे शहर का, अब हर एक बशर देखेगा।

मेरे सितारे भी चमकेंगे एक दिन यकीनन,
गुज़रूं जहां से, हर शख्स एक नज़र देखेगा।

कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश है गर तुझमें,
तो फिर क्या शब और क्या सहर देखेगा।

चलना है ज़िंदगी, मुश्किलें हजार फिर भी,
तेरा ज़ुनून अब यह लंबा सफर देखेगा।

जिन्हें शक था ‘देव’ काबिलियत पर कभी,
आज वह भी हैरत से किस कदर देखेगा।

देवेश साखरे ‘देव’

क्या वजूद है मेरा

September 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन हूँ मैं, और क्या वजूद है मेरा।
जहाँ में क्या पहचान मौजूद है मेरा।

शायद ऊँचा कोई मुकाम पा न सका,
और कोई नहीं, ये कसुर खुद है मेरा।

गर कोई पूछे, क्या हासिल किया तूने,
ताले पड़ गए, जुबाँ दम-ब-खुद है मेरा।

शराफत को लोग कमजोरी समझ बैठे,
किसी का दिल ना टूटे मक़्सूद है मेरा।

कई दफा धोखा खा चुका ‘देव’, फिर भी,
यकीन करने का दिल बावजूद है मेरा।

देवेश साखरे ‘देव’
दम-ब-खुद- शांत, मक़्सूद- उद्देश्य,

सोचा न था

September 12, 2019 in ग़ज़ल

सुन सदा मेरी, वो चल निकले।
मेरे अपने ही संगदिल निकले।

जिन पे भरोसा किया था हमने,
वो भी साजिशों में शामिल निकले।

ना रही कोई उम्मीद उनसे अब,
मेरे जज़्बातों के, वो कातिल निकले।

हम तो नादान, नासमझ ठहरे,
समझदार हो, क्यों नाकाबिल निकले।

हमें तैरने का हुनर आता नहीं,
बीच मझधार छोड़, वो साहिल निकले।

उन्हें अंदाजा है, ‘देव’ की ताकत का,
पीठ पर वार कर, वो बुजदिल निकले।

देवेश साखरे ‘देव’

कहां जाओगे

September 11, 2019 in ग़ज़ल

दस्तकश कहां जाओगे।
क्या मुझे भूल पाओगे।

मैं तो तुम्हारी आदत हूं,
क्या आदत बदल पाओगे।

ख्वाब में मैं, जेहन में मैं,
हर-शू मुझे हर पल पाओगे।

इतना आसां नहीं भूल पाना,
बगैर मेरे संभल पाओगे।

दिल से ‘देव’ पुकार तो लो,
आज पाओगे, मुझे कल पाओगे।

देवेश साखरे ‘देव’

दस्तकश- हाथ छुड़ा कर

क्या है शबाब

September 10, 2019 in ग़ज़ल

तुम्हें देख फीका लगने लगा माहताब।
चुरा लिया तुमने, मेरी नींदें मेरे ख्वाब।

शाने पे रख के सर, जुल्फों से खेलना,
तुम्हें गले लगाकर जाना, क्या है शबाब।

तुम्हारा समझाना, हद से न गुजर जाना,
वरना संभल ना सकोगे, फिर तुम जनाब।

यहां सीता भी ना बच सकी रुसवाई से,
ना किया करो हंसकर, किसी को आदाब।

इसे शिकायत कहो, या दिल-ए-मजबूरी,
गलत ना समझना, मोहब्बत है बेहिसाब।

ढल जाओ बस यूं ‘देव’ की चाहत में,
दुनिया से लड़कर, मैं दे सकूं जवाब।

देवेश साखरे ‘देव’

शाने- कंधे

कुछ नहीं है

September 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ नहीं है मेरे पास,
अपना तुम्हें देने के लिए ।
मन, तो तुम्हारे पास ही है,
बेचैन तुमसे मिलने के लिए ।
दिल, तुम्हारे सीने में धड़कता है,
साँस लेता हूँ बस जीने के लिए ।
वक्त, दूसरों को बेच दिया,
जरूरतों को पूरी करने के लिए ।
खुशियाँ, तुम्हारे साथ में है,
विवश, विरह का जहर पीने के लिए ।
जिंदगी, तुम्हारे नाम ही है,
जी रहा हूँ बस जीने के लिए ।
जज्बात, बस तुम्हें दे सकता हूँ,
वजह तुम हो लिखने के लिए ।
और कुछ नहीं है मेरे पास,
अपना तुम्हें देने के लिए ।

देवेश साखरे ‘देव’

परिंदा

September 9, 2019 in मुक्तक

ऊड़ न सकूँ, पंख कतरा मैं परिंदा हूँ।
पर मरा नहीं अभी तक, मैं जिंदा हूँ।
आजादी तुझे ही नहीं हमें भी है पसंद,
तू ना सही, तेरे कृत्य पर मैं शर्मिन्दा हूँ।

पहचान

September 9, 2019 in ग़ज़ल

स्याह रात की चादर ओढ़ कर।
खुद्दारी की सभी हदें तोड़ कर।

निकला हूं गुमनामी में पहचान ढूंढने,
शोहरत की सभी ख्वाहिशें छोड़कर।

घरौंदा ख्वाब का कहीं बिखर न जाए,
बुना था जो तिनका तिनका जोड़कर।

ये भी एक वक्त है, वक्त गुज़र जाएगा,
वक्त से आगे ना निकला कोई दौड़कर।

हौसला तो है, कुछ कर गुजरने की ‘देव’,
राह निकाल लूं दरिया का रुख मोड़ कर।

देवेश साखरे ‘देव’

अनकही

September 8, 2019 in शेर-ओ-शायरी

तू नहीं तेरी यादें ही सही।
बातें कुछ कही, कुछ अनकही।
जमाने के साथ तू बदल गई यकिनन,
तेरा दीवाना हूँ मैं आज भी वही।

किस्मत

September 8, 2019 in शेर-ओ-शायरी

ऐ मेरी किस्मत तू मुझे किस ओर ले जाएगी।
सुलझेगी जिंदगी या और उलझती जाएगी।
अभी इम्तहान और बाकी है शायद जिंदगी,
पता नहीं और कौन कौन से दौर दिखाएगी।

मोहब्बत पे नाज़

September 8, 2019 in ग़ज़ल

मोहब्बत का ऐलान, हम आज करते हैं।
तुझपे जां कुर्बान, मोहब्बत पे नाज़ करते हैं।

उन्हें इल्म है, हमारी मोहब्बत की हद का,
जज़्बात से खेलकर, हमें नाराज करते हैं।

ऐसे आज तक हमने चारागर नहीं देखे,
खुद ही जख्म देकर, खुद इलाज करते हैं।

अपनी मोहब्बत पर ‘देव’ हमें है पूरा यकीं,
तुम्हें ही दिलसाज, तुम्हें ही हमराज करते हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

चारागर-चिकित्सक

फुर्सत

September 8, 2019 in शेर-ओ-शायरी

गैरों को फुर्सत कहां है,
अपना ही अपने को मारता है।
कुल्हाड़ी से मिलकर लकड़ी,
लकड़ी को ही काटता है।

दोस्ती

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दोस्ती ईमान है, मजहब है, खुदा है,
ना ऐसा कोई रिश्ता, सबसे जुदा है।

दोस्ती दवा है, दुआ है, जिंदगी है,
डूबते जिंदगी की कश्ती का नाखुदा है।

दोस्ती प्यार है, तकरार है, ऐतबार है,
ना टूटने देंगे एतबार यह वादा है।

दोस्ती परस्तिस है, कशिश है, अज़ीज़ है,
यह बेहिसाब, न कम न ज्यादा है।

दोस्तों की दोस्ती पे कुर्बान ये जहां है,
अटूट हो दोस्ती ये ‘देव’ की दुआ है।

देवेश साखरे ‘देव’

परस्तिस- पूजा

प्रकृति का प्रकोप

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रकृति की कैसी भयावह दृष्टि।
कभी अनावृष्टि, कभी अतिवृष्टि।

संजोये सपनों के, मकान ढह गए।
जान, सामान संग अरमान बह गए।
पानी की तेज रवानी से, जीते वह जो,
जीवन-मृत्यु का द्वंद्व घमासान सह गए।
कितनों को काल ने निगल लिया,
कितनों को प्राप्त न हुई अंत्येष्टि।
प्रकृति की कैसी भयावह दृष्टि।

बाढ़ के प्रकोप से हाहाकार मचा है।
मातम मना रहा वो, जो भी बचा है।
रहने का ठिकाना है ना खाने को दाना,
प्रकृति ने कैसा वीभत्स विनाश रचा है।
वर्षा का प्रचण्ड प्रकोप बरसा,
चारों ओर जलमग्न है सृष्टि।
प्रकृति की कैसी भयावह दृष्टि।

इस विकट परिस्थिति में हम उनका साथ दें।
संभालने में उनको, आओ मिलकर हाथ दें।
नियति से लड़ नहीं सकते, बदल नहीं सकते,
आपदा से उबरने में उन्हें, सहायता पर्याप्त दें।
जरूरतमंद की सहायता करके,
प्राप्त होती है आत्मसंतुष्टि।
प्रकृति की कैसी भयावह दृष्टि।

देवेश साखरे ‘देव’

शौक रखते हैं

September 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

कुछ लोग इलाके में अपनी धाक रखते हैं।
कुछ लोग दौलत पर अपना हक रखते हैं।
ना सियासत, ना वसीयत की चाह हमें ‘देव’,
हम तो दिलों में बसने का शौक रखते हैं।

प्रकृति का संदेश

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पपीहे का ज़ुनून देखो, नहीं छोड़ता आस।
बारीश की पहली बूंद से ही बुझाता प्यास।

चींटी दोगुना बोझ लाद, चढ़ती ऊंचाई पर,
गिरती बारम्बार वो, पर करती पुनः प्रयास।

वफादारी आज इंसानों में दिखाई नहीं देती,
नि:संदेह ही श्वान पर, कर सकते हैं विश्वास।

दरिया के रफ्तार को रोकना, है नामुमकिन,
आगे बढ़ना प्रकृति है, चट्टान को भी तराश।

छांव, फल, आश्रय करती नि:स्वार्थ प्रदान,
पेड़ों के बगैर पृथ्वी का निश्चित है विनाश।

देवेश साखरे ‘देव’

गुमराह

September 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मेरे सपने बेशक जरूर बड़े हैं,
पर आसमां छूने की चाह नहीं ।
जमीं पर रह, कुछ ना कर गुजरूं,
इतना भी ‘देव’ गुमराह नहीं ।

पयाम आया है

September 6, 2019 in ग़ज़ल

महफ़िल में तेरे आने का पयाम आया है।
हर ज़ुबान पर बस तेरा ही नाम आया है।

सब कि नज़रें टिकी रही, तेरी ही राह पर,
तेरी निगाहों से बस मुझे सलाम आया है।

पढ़ती रही सारी बज़्म, तेरे हुस्न पे ग़ज़लें,
तेरी ज़ुबां पर बस मेरा, कलाम आया है।

तेरे हुस्न के चरचे होती रही दबी आवाज़,
मेरे पहलू में देख तुझे, कोहराम आया है।

सादगी की कद्र तो है, कद्रदानों के सदक़े,
मेरी सादगी पर तुझे, एहतराम आया है।

देवेश साखरे ‘देव’

पयाम आया है

September 6, 2019 in ग़ज़ल

महफ़िल में तेरे आने का पयाम आया है।
हर ज़ुबान पर बस तेरा ही नाम आया है।

सब कि नज़रें टिकी रही, तेरी ही राह पर,
तेरी निगाहों से बस मुझे सलाम आया है।

पढ़ती रही सारी बज़्म, तेरे हुस्न पे ग़ज़लें,
तेरी ज़ुबां पर बस मेरा, कलाम आया है।

तेरे हुस्न के चरचे होती रही दबी आवाज़,
मेरे पहलू में देख तुझे, कोहराम आया है।

सादगी की कद्र तो है, कद्रदानों के सदक़े,
मेरी सादगी पर तुझे, एहतराम आया है।

देवेश साखरे ‘देव’

निवेदन

September 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों चलाते हो तेज गाड़ियाँ,
ऐसी तो कोई मजबूरी नहीं ।
मंजिल तक पहुँचना जरूरी है,
जल्दी पहुँचना तो जरूरी नहीं ।।

चंद मिनट बचे भी तो क्या,
जब जिंदगी होगी पूरी नहीं ।
फासले तो तय हो ही जायेंगे,
लंबी इतनी कोई दूरी नहीं ।।

कुचलते आगे जाने की होड़ में,
क्यों थोड़ी भी सबूरी नहीं ।
गलती अपनी, सजा निर्दोष पाते,
होश में चलो, सुरूरी नहीं ।।

राह तकती बच्चों की निगाहें,
बीवी की मांग पसंद सिंदूरी नहीं ।
परिवार हमसे पूरा है ‘देव’,
असमय इसे करो अधूरी नहीं ।।

देवेश साखरे ‘देव’

गुरु का स्थान

September 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सर्वप्रथम गुरु का स्थान।
तत्पश्चात पूज्य हैं भगवान।

प्राचीन काल से ही,
गुरुओं ने दिए संस्कार।
किताबी ज्ञान के साथ,
सांसारिक नीति व्यवहार।
धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया,
बना जीवन का आधार।
असंभव गुरुओं के बिना,
समृद्ध राष्ट्र का निर्माण।
सर्वप्रथम गुरु का स्थान।
तत्पश्चात पूज्य हैं भगवान।

अबोध कच्चे मिट्टी को,
ज्ञान के जल से मिलाकर।
सुनिश्चित आकर देते,
शिक्षा के चाक में घुमाकर।
सुदृढ़ता प्रदान करते,
अनुशासन के ताप में पकाकर।
अंधकार से प्रकाश तक,
गुरुओं की महिमा महान।
सर्वप्रथम गुरु का स्थान।
तत्पश्चात पूज्य हैं भगवान।

शिक्षकों के प्रयास से बनते,
चिकित्सक या अभियंता।
वैज्ञानिक, खगोल विज्ञानी,
या वक्ता, अभिवक्ता।
चित्रकार या पत्रकार,
या फिर नेता, अभिनेता।
प्रतिष्ठित प्रत्येक व्यक्ति का,
शिक्षक ही करते निर्माण।
समाज के विभिन्न क्षेत्रों में,
वे देेते महत्वपूर्ण योगदान।
सर्वप्रथम गुरु का स्थान।
तत्पश्चात पूज्य हैं भगवान।

देवेश साखरे ‘देव’

बाकी है

August 28, 2019 in ग़ज़ल

साथ मेरे एक तू और तेरा प्यार बाकी है।
बाकी सब बेजान चीजें बेकार बाकी है।

हालात संग, लोगों के मिजाज बदल गये,
टूटा हूँ, बिखरा नहीं, अभी धार बाकी है।

कितने ही इम्तहानों से तो गुजर चूका हूँ,
लगता अभी और वक्त की मार बाकी है।

नजरें चुराकर चले हैं ऐसे, कि जानते न हो,
लगता है जैसै, मेरा उन पर उधार बाकी है।

हर एक शख्स से पूछा, पहचानते हो मुझे,
कुछ तो मुकर गये, कुछ के करार बाकी हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

# समाप्त धारा 370

August 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।

हो सकते हैं अपने भी,
अब सेब के बागान।
डल झील में तैरता,
होगा अपना भी मकान।
दिलों से शंका हटा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।

काश्मीर में भी अब तिरंगा,
शान से लहराने लगा।
धरती का स्वर्ग यकिनन,
अब स्वर्ग कहलाने लगा।
गौरव का झोंका बहा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।

बहुत भोग लिए अब तक,
तुम दोहरी नागरिकता।
अनुभव करो अब केवल,
और केवल भारतीयता।
जेहन से आशंका हटा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।

देवेश साखरे ‘देव’

और एक जाम

August 4, 2019 in ग़ज़ल

खत्म न हो जश्ने-रौनक हँसीन शाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।

देखो साकी खाली ना होने पाए पैमाना,
ले आओ सारी मय, मयकदे तमाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।

वक्त की क्या हो बात, जब दोस्त हों साथ,
फिर किसे परवाह, हालाते-अंजाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।

कोई गम नहीं, फिर होश रहे या ना रहे ,
पर्ची लिख छोड़ी जेब में, अपने नाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।

चार दिन की है ये जवानी, ये जिंदगानी,
फिर ना तेरे काम की, ना मेरे काम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।

देवेश साखरे ‘देव’

मुहब्बत का खुमार

April 18, 2019 in ग़ज़ल

तेरे आने से दिल को करार आया है।
तुझे पाकर खुशियां बेशुमार पाया है।

मैंने पी नहीं लेकिन, मैं नशे में चूर हूं,
मुहब्बत का ये कैसा, खुमार छाया है।

मौसमें भी अब रंगीन सी लगने लगी,
पतझड़ ने भी कैसा, बहार लाया है।

एक दूजे में हम, डूबे कुछ इस कदर,
तू जिस्म है, तो मेरा आकार साया है।

मेरी जिंदगी तो है, एक खुली किताब,
फिर क्यों लगता, असरार छिपाया है।

तेरे सिवा कोई और नज़र आता नहीं,
निगाहों में बस तेरा, निगार बसाया है।

देवेश साखरे ‘देव’

1. असरार-भेद, 2. निगार-छवि

मैं ऐसा होता काश…..

April 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोचता हूं, मैं पानी होता काश,
तुम्हारे प्यासे होठों की बुझाता प्यास।
सोचता हूं, मैं हवा होता काश,
हर पल अपने स्पर्श का दिलाता एहसास।
सोचता हूं, मैं खुशबू होता काश,
तुम्हारे तन को महकाता मैं बेतहाश।
सोचता हूं, मैं खुशी होता काश,
ना होने देता तुम्हें कभी उदास।
सोचता हूं, मैं उम्मीद होता काश,
आंखें बंद कर मुझ पर करती विश्वास।
सोचता हूं, मैं मंजिल होता काश,
तो खत्म मुझ पर होती तुम्हारी तलाश।
सोचता हूं, मैं ख्वाब होता काश,
तुम्हारी नींदों में, होता तुम्हारे पास।
सोचता हूं मैं, नहीं कुछ भी, फिर भी,
तुम्हें पाने के बाद ना रही और कोई आस।

देवेश साखरे ‘देव’

नारी सब पर भारी

April 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सत्य है नारी, सब पर है भारी।

अब मलेरिया को ही देख लो,
नर एनाफिलीज की, नहीं है औकात।
ये तो है मादा एनाफिलीज की सौगात।
दुनिया होती, भगवान को प्यारी।
सत्य है नारी, सब पर है भारी।

सुन्दरता की गर बात करें तो,
मोरनी ने भले, सुन्दर पंख नहीं पाया।
परन्तु मोर को, स्वयं के लिए नचाया।
मूक जीव भी, नारी पर बलिहारी।
सत्य है नारी, सब पर है भारी।।

विश्वामित्र जैसे तपस्वी भी,
अछूते ना रहे, कामदेव के काम वार से।
बच ना सके, रूपसी मेनका के प्यार से।
व्रत भी अपनी, तोड़ दे ब्रम्हचारी।
सत्य है नारी, सब पर है भारी।।

देखें तुलनात्मक दृष्टिकोण तो,
नारी ही समूची प्रकृति है।
प्रकृति की अप्रतिम कृति है।
प्रकृति से छेड़छाड़ है प्रलयकारी।
सत्य है नारी, सब पर है भारी।।

चिन्तन करें नारी के बिना,
जन्म से मृत्यु तक पुरुष है अधूरा।
हर कदम पर नारी करती उसे पूरा।
नारी का सदैव, पुरूष है आभारी।
सत्य है नारी, सब पर है भारी।।

देवेश साखरे ‘देव’

खुदा का फैसला

April 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुदा से बढ़ कर खुद कोई, नवाब नहीं होता।
उसकी मर्ज़ी के बिना कोई, कामयाब नही होता।

खुदा से खौफ खा बंदे, गुनाह करने से पहले,
कौन कहता गुनाहों का कोई, हिसाब नहीं होता।

यहीं भुगतना सभी को, अपने कर्मों का फल,
उसके फैसले का भी कोई, ज़वाब नहीं होता।

देवेश साखरे ‘देव’

छोड़ दिया

April 3, 2019 in ग़ज़ल

मैंने ज़ाम से ज़ाम टकराना छोड़ दिया।
यारों मैंने पीना – पिलाना छोड़ दिया।

खबर जो फैली, कि मैं हो चला बै-रागी,
दोस्तों ने महफ़िल में बुलाना छोड़ दिया।

दोस्ती का मतलब जानता हूं मैं, लेकिन,
मतलब कि दोस्ती निभाना छोड़ दिया।

हुए क्या ज़रा जो दूर, हम महफ़िल से,
मुश्किलों में मिलना मिलाना छोड़ दिया।

दोस्तों पे दोस्ती निसार है आज भी ‘देव’,
दोस्तों ने दोस्ती आजमाना छोड़ दिया।

देवेश साखरे ‘देव’

अहंकार

March 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

उन दरख्तों को हमने उखड़ते देखा है।
जो तूफान में तन कर खड़े होते हैं।

तूफान का झुककर जो सम्मान नहीं करते,
वो जमीन पर उखड़ कर पड़े होते हैं।

इंसानों को भी टूट कर बिखरते देखा है,
जो झूठे अहंकार में जकड़े होते हैं।

अक्सर तन्हा रह जाते हैं वो इंसान,
खुद की नजर में जो दूसरों से बड़े होते हैं।

बद हालातों में जो खुदा को याद नहीं करते,
उनसे ‘देव’ खुदा भी मुंह मोड़े होते हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

अंजान सफर

March 27, 2019 in ग़ज़ल

मंज़िल पता नहीं, निकला हूं अंजान सफर में।
अमृत ढुंढने निकला हूं , दुनिया भरी ज़हर में।

इंसानियत बांध कर सभी ने, रख दी ताक पर,
डरता हूं कहीं गिर ना जाऊं, खुद की नज़र में।

नज़रें चुराकर चले हैं जो, ज़ुल्म होता देखकर,
आईना बेचने निकला हूं मैं, अंधों के शहर में।

आबरू महफूज़ है, ना कोई जाने- हाफ़िज़ है,
लूटने के बाद निकले हैं लेकर, शम्मा डगर में।

ख़ुदा भी खुद रोया होगा, हालाते-जहां देखकर,
ऐसी तो न सौंपी थी दुनिया, ‘देव’ मेरी खबर में।

देवेश साखरे ‘देव’

दौर आ चला है

March 25, 2019 in ग़ज़ल

देखो फिर किचड़ उछालने का दौर आ चला है।
खुद का दामन संभालने का दौर आ चला है।

लाख दाग सही, खुद का गिरेबां बेदाग नहीं,
दुसरों की गलतियां गिनाने का दौर आ चला है।

वादों की फेहरिस्त तो, फिर से लंबी हो चली,
इरादों को समझने समझाने का दौर आ चला है।

बरसों से निशां पे फ़ना हैं, कुछ एक नादां मुरीद,
शख्सियत पे बदलाव लाने का दौर आ चला है।

वहां रसूख़दारों की मिलीभगत, पूरे ज़ोरों पर है,
यहां दोस्तों के लड़ने लड़ाने का दौर आ चला है।

देवेश साखरे ‘देव’

1. फेहरिस्त-सूची, 2. मुरीद-अनुयायी

मैं जाम नहीं

March 23, 2019 in ग़ज़ल

छलक जाए पैमाना, मैं जाम नहीं।
भले खास ना सही, पर आम नहीं।

एक बार गले लगा कर तो देखो,
भूला सको मुझे, वो मैं नाम नहीं।

गुरूर नहीं मेरा, खुद पर यकीन है,
आज़मा लो, पीछे हटाता गाम नहीं।

तुमको माना देवकी, मुझ ‘देव’ की,
पर अफसोस है, की मैं राम नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

1.गाम- कदम

तारीफ़ तेरी

March 16, 2019 in ग़ज़ल

तारीफ़ तेरी, नहीं मेरी जुबां करती है ।
नजरें पढ़ ले, हाले-दिल बयां करती है ।

इश्क में हूँ तेरे आज भी, जहां जानता है,
तेरा हुश्ने-मुकाबला, कोई कहाँ करती है ।

माना बरसों पुराना, इश्के-फसाना हमारा,
पर आज भी, इश्के-मिसाल जहां करती है ।

एक तेरे सिवाय, नहीं कोई और जिंदगी में,
शक मुझ पर, बेवजह, ख़ामख़ाह करती है ।

कल के लिए, हम अपना आज ना खो दें,
कल का फैसला, जिंदगी की इम्तहां करती है।

देवेश साखरे ‘देव’

नक़ाब

March 16, 2019 in ग़ज़ल

नक़ाब से जो चेहरा, छिपा कर चलती हो।
मनचलों से या गर्द से, बचा कर चलती हो।

सरका दो फिर, गर जो तुम रुख से नक़ाब,
महफिल में खलबली, मचा कर चलती हो।

तेरे आने से पहले, आने का पैगाम आता है,
पाज़ेब की छन – छन, बजा कर चलती हो।

तेरी एक दीद को, तेरी राह पे खड़ा कब से,
तिरछी नज़रों से दीदार, अदा कर चलती हो।

डसती है नागिन सी, तेरी बलखाती गेसू,
पतली कमर जब, बलखा कर चलती हो।

देवेश साखरे ‘देव’

नारी शक्ति

March 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की, समस्त महिलाओं को ससम्मान शुभकामनाएँ, छोटी सी रचना के माध्यम से प्रेषित है –

नारी में शक्ति है,
नारी से भक्ति है,
यह वस्तु नहीं मात्र उपभोग की।
नारी रूप बलिदान,
कन्यादान महादान,
घर हो जिनके बेटी, बात है संजोग की ।
नारी से सृष्टि है,
ममता की वृष्टि है,
नहीं कोई किमत माँ के कोख की ।
नारी समर्पण है,
प्रेम का दर्पण है,
नहीं कोई पर्याय पत्नी के सहयोग की।
देख कर सूनी कलाई,
बहन बिन अधूरा भाई,
दूजा न कोई वेदना, विदाई के वियोग की ।
चार पुत्रों से एक पुत्री भली,
खिलने तो दो मासूम कली,
बात है पुत्र मोह में फँसे उन लोग की ।
नारी का सम्मान करो,
रक्षा इनकी आन करो,
इलाज करो दूषित मानसिक रोग की।

देवेश साखरे ‘देव’

शहीदों को नमन

March 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

भगत, सुखदेव क्रांति वीरों के,
इंक़लाब का डंका बजता था।
‘तिलक’ के विचारों का तिलक,
राजगुरु के भाल सजता था।
आज़ाद भारत का सपना,
दिलों में इनके बसता था।
स्वराज के अधिकार को पाना,
ख़्वाब आज़ादी के अरमानों का।
नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

अंग्रेजी हुकूमत हिला डाली,
क्रांतिकारियों की टोली।
फिरंगी डर से कांपते,
सुन इंक़लाब की बोली।
‘लाला’ का बदला लिया,
मार सांडर्स को गोली।
बहुत सह चुके, ज़ुल्मो-सितम,
संकल्प, दमन सभी हैवानों का।
नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

बहरी सरकार को सुनाने,
भरी सभा बम फोड़ा था।
अपनी बात रखने को,
लिख पर्चा एक छोड़ा था।
‘साइमन कमीशन’ के खिलाफ,
शोषण पर चुप्पी तोड़ा था।
सिंहों की गर्जना सुन हिला,
तख्त फिरंगी हुक्मरानों का।
नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

इनके देश भक्ति को,
अपराध का नाम मिला।
चला ढोंग मुकदमें का,
मृत्यु दंड पैगाम मिला।
रात में इन कायरों से,
फांसी का इनाम मिला।
सांसें छिन ली, असमय ही तुमने,
आवाज़ ना घोंटा आह्वानों का।
नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

हंसते हुए चुम,
सूली पर वह झूल गए।
मां भारती पर,
मां की ममता भूल गए।
प्रबल हुआ संग्राम,
दे उनकी छाती में शूल गए।
शहादत उनकी बनी आंदोलन,
रण शंखनाद हुआ दीवानों का।
नमन आज़ादी के परवानों का।
वंदन क्रांति वीर जवानों का।।

“आंखें नम हुई, कर उन शहीदों को याद।
बुलंद उद्घोष हुआ, उनकी शहादत के बाद।
अंग्रेजों भारत छोड़ो, अंग्रेजों भारत छोड़ो,
इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद।”

देवेश साखरे ‘देव’

तुम पर एक ग़ज़ल लिखूं

March 6, 2019 in ग़ज़ल

तुम्हें गुलाब लिखूं या फिर कंवल लिखूं।
जी चाहता है तुझ पर एक ग़ज़ल लिखूं।

गुल लिखूं, गुलफ़ाम या लिखूं गुलिस्तां,
या फिर तुम्हें महकता हुआ संदल लिखूं।

तन्हाई छोड़ बना लूं तुम्हें शरीक-ए-हयात,
ज़िंदगी के पन्ने पर ये हॅसीन पल लिखूं ।

ज़िंदगी तुम्हारे नाम लिख तो दी है ‘देव’,
तुम्हें अपना आज लिखूं, अपना कल लिखूं।

देवेश साखरे ‘देव’

जुल्फ़ों की छांव

March 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुकूने-तलाश में भटकते, कई नगर कई गांव मिले।
आरज़ू है बस यही, तेरी जुल्फ़ों की छांव मिले।

तेरे इंतज़ार में, कई ज़ख्म लिए बैठा मैं दिल में,
या रब ना अब, जुदाई का और कोई घाव मिले।

तुम जो मिले जीने की तमन्ना फिर जाग उठी,
जैसे किसी डुबते को, तिनके की नाव मिले।

यही वक्त है, दुनिया कदमों में झुकाने की ‘देव’
फिर ना कहना कि, बस एक और दांव मिले।

देवेश साखरे ‘देव’

आतिशबाज़ी का नज़ारा

February 26, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुश्मनों का सर्वनाश जवानों ने ठाना है।
नेस्तेनाबूत आतंकियों का ठिकाना है।।

क्या सोचा, कुछ भी कर बच निकलोगे,
घर में घुसकर मारना आदत पुराना है।
दुश्मनों का सर्वनाश जवानों ने ठाना है।।

आतिशबाज़ी का नज़ारा देखा तो होगा,
हमारा लोहा तो सारे संसार ने माना है।
दुश्मनों का सर्वनाश जवानों ने ठाना है।।

बारूद से अब बहुत खेल लिया तुमने,
उसी बारूद से तुम्हारा घर जलाना है।
दुश्मनों का सर्वनाश जवानों ने ठाना है।।

सौ बार सोच लें, हमसे टकराने से पहले,
वक्त से पहले तुम्हें ख़ाक में मिलाना है।
दुश्मनों का सर्वनाश जवानों ने ठाना है।।

देवेश साखरे ‘देव’

हम वह नशा हैं

February 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम वह नशा हैं, जो कहीं बिकते नहीं।
जिसे लत लग जाए तो फिर छुटते नहीं।

कीमत मेरी तो फकत प्यार ही है दोस्तों,
लगा लो लत, दस्तकस कहीं रुकते नहीं।

दुनिया में कोई कमी नहीं, नशे की दोस्तों,
प्यार से बढ़कर नशा, कहीं मिलते नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

सिपाही की पुकार

February 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कब कोई सिपाही ज़ंग चाहता है।
वो भी परिवार का संग चाहता है।

पर बात हो वतन के हिफाजत की,
न्यौछावर, अंग-प्रत्यंग चाहता है।

पहल हमने कभी की नहीं लेकिन,
समझाना, उन्हीं के ढंग चाहता है।

बेगैरत कभी अमन चाहते ही नहीं,
वतन भी उनका रक्त रंग चाहता है।

खौफ हो उन्हें, अपने कुकृत्य पर,
नृत्य तांडव थाप मृदंग चाहता है।

ख़ून के बदले ख़ून, यही है पुकार,
कलम उनका अंग-भंग चाहता है।

देवेश साखरे ‘देव’

कायरता

February 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

“पुलवामा शहीदों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली”

पीठ पे वार करना, तुम्हारी पुरानी कुनीति है।
आमने – सामने की रण, तुमने कब जीती है।

कायरता के प्रमाण से तुम्हारे, अनभिज्ञ नहीं,
पराजय की, सदैव तुम्हारे हृदय में भीति है।

पौरूषता तो तुममें, कभी देखी नहीं हमने,
धृष्टता दर्शाती, नपुंसकता तुम्हारी प्रकृति है।

मानवता की बात बेमानी, जरा ना तुमने जानी,
निर्दोषों को मारना, तुम्हारी मानसिक विकृति है।

किया पीठ पर वार, अब हो जाओ तुम तैयार,
चुन – चुन कर तुम्हारी, अब चढ़ानी आहुति है।

देवेश साखरे ‘देव’

पहचानी सी है

February 9, 2019 in ग़ज़ल

फिज़ा में खुशबू, पहचानी सी है।
छिपी कहां, मुझमें तू सानी सी है।

ढूंढे उसे जो खुद से अलग हो ,
मैं जिस्म और तू रूहानी सी है।

सूखी, बंजर जिंदगानी थी पहले,
मैं तपता सहरा, तू नीसानी सी है।

तेरे बगैर कुछ भी नहीं वजूद मेरा,
मेरी जिंदगी में, तू शादमानी सी है।

तूने छुआ तो, मैं फिर से जी उठा,
लगता परियों की, तू कहानी सी है।

कोई शक नहीं, तू ‘देव’ के लिए बनी,
खुदा की नेमत, तू निशानी सी है।

देवेश साखरे ‘देव’

1.सानी-मिलाया हुआ, 2.सहरा-रेगिस्तान,
3.नीसानी-बारिश की बूंदों जैसी, 4.शादमानी-ख़ुशी

दौलत

February 1, 2019 in ग़ज़ल

कोई ज़मीं बेचता, कोई आसमां बेचता ।
दौलत के नशे में चूर, ये ज़हां बेचता ।

कब परवान चढ़ा, मोहब्बत मुफ्लिशी का,
दौलत मोहब्बत का है, आशीयां बेचता ।

दर-दर की ठोकरें, मुफ्लिशी के हालात,
दौलत की खातिर इंसां, अरमां बेचता ।

तारीख़ गवाह, कब दौलत किसका हुआ,
दौलत को ख़ुदा मान, अपना ख़ुदा बेचता ।

लूटे हैं कई घर, ये दौलतमंद मानूस,
दौलत की बदौलत, वो खुशियाँ बेचता ।

देवेश साखरे ‘देव’

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