कस्तूरी मृग

October 29, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कस्तूरी अपनी नाभि में रख मृग,
सुगंध के पीछे भागती सारे वन में।

काम, मोह, माया के पीछे भाग,
व्यर्थ समय ना गंवाओ जीवन में।

धैर्य, शील, शांति पाना कठिन नहीं,
खोज सकते हैं स्वयं अंतर्मन में।

देवेश साखरे ‘देव’

घुंघरू की पुकार

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभी उम्र ही क्या थी,
वक्त ने बांधे घुंघरू पांव में।
अभी बचपन पूरा बीता नहीं,
मां की आंचल के छांव में।
हुई अवसर मौकापरस्तों की,
चंद रुपयों के अभाव में।
मजबूरियां पहुंचाईं कोठे पर,
यादें दफन रह गई गांव में।
इन वहशी खरीदारों के बीच,
जवानी लूट गई मोलभाव में।
इनके जख्म सहलाने के बजाय,
एक और घाव दे जाते घाव में।
खत्म करो यह तवायफ लफ्ज़,
क्यों लगाते मासूम जिंदगी दांव में।

देवेश साखरे ‘देव’

एक दीप

October 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी

एक दीप जवानों के नाम, जो सरहद पर खड़े हैं।
एक दीप शहीदों के नाम, जो हमारे लिए लड़े हैं।
इनके हिस्से कोई पर्व, खुशियाँ या परिवार कहाँ,
देश की सुरक्षा इनके लिए सब खुशियों से बड़े हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

मुफ़लिस

October 26, 2019 in ग़ज़ल

गुजर कभी मुफ़लिसों की बस्ती में।
मिल कर हर खुशी मनाते मस्ती में।

जरूरतें पूरी होने से बस मतलब इन्हें,
क्या रखा दिखावे की महंगी सस्ती में।

परवाह किसे, किनारा मिले ना मिले,
कश्ती पानी में है, या पानी कश्ती में।

दौलतमंद को खुद से ही फुर्सत कहाँ,
मद में चूर, वो अपनी बड़ी हस्ती में।

दूसरों के गम से, इन्हें सरोकार कहाँ,
जीते हैं ये, बस अपनी खुदपरस्ती में।

देवेश साखरे ‘देव’

जख्म

October 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

जख्म हरा रहता हरदम नहीं।
वक़्त से बड़ा कोई मरहम नहीं।
जिस्मानी घाव तो भर जाते हैं,
मिटता दिल पर लगा जख्म नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

नई सहर

October 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रौशनी की किरण आई नजर,
कभी तो आएगी नई सहर ।

कभी तो गम का अंधेरा हटेगा,
कभी तो आएगी खुशियों की लहर ।
स्याह रात का पर्दा,
कभी तो हटाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का बादल छटेगा,
कभी तो आएगी सुनहरी पहर ।
मेरी उम्मीदों का सूरज,
कभी तो लाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का जख्म मिटेगा,
कभी तो खत्म होगी ये कहर ।
मेरे दुखते रग में खुशियाँ,
कभी तो फैलाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का बांध टुटेगा,
अभी तो जिंदगी थोड़ी और ठहर ।
मेरे उजड़े चमन में गुल,
कभी तो खिलाएगी नई सहर ।

देवेश साखरे ‘देव’

सहर- सुबह

ख़त

October 24, 2019 in ग़ज़ल

गुज़रा ज़माना याद दिलाता है ख़त।
अब बीता ज़माना कहलाता है ख़त।

रूठे को मनाना, हाले-दिल बताना,
अपनों को अपना बनाता है ख़त।

ना हुई कभी मुलाक़ात ना कोई बात,
दो अंजानो को करीब लाता है ख़त।

जो बात ज़बान ना कर पाये बयान,
तेरे – मेरे जज़्बात मिलाता है ख़त।

जवाब का इंतजार, करता बेकरार,
एक नया एहसास दिलाता है ख़त।

देवेश साखरे ‘देव’

दोस्ती

October 23, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दोस्ती ऐसा, जैसे खुदा की परस्तिश।
दोस्ती में है, बेइंतिहा प्यार की कशिश।
दोस्तों की दोस्ती पे है कुर्बान ये जान,
हमें अज़ीज़ हैं, अपने सभी मोनिस।

देवेश साखरे ‘देव’

परस्तिश- पूजा, मोनिस- दोस्त

मय की तलब

October 23, 2019 in ग़ज़ल

जो तू सीने से लगा ले ।
मय की तलब भूला दे ।

खुमारी कम नहीं मय से,
लबों से जाम पिला दे ।

यूँ तो पीता नहीं लेकिन,
नशा तेरा जहाँ भूला दे ।

ये लत मेरी ना छूटे कभी,
बेसुध तू मुझको डूबा दे ।

नश्तर सी ख़लिश दिल में,
जुदाई तेरी मुझको रुला दे ।

देवेश साखरे ‘देव’

तकदीर

October 22, 2019 in शेर-ओ-शायरी

हर पल आँखों में रहती तेरी तस्वीर है।
माने या ना माने, तू ही मेरी तकदीर है।
गर बन जाओ तुम, मेरी सदा के लिये,
ये सुहाने पल हो सकती मेरी जागीर है।

देवेश साखरे ‘देव’

वंदेमातरम

October 22, 2019 in ग़ज़ल

मां तुझ से है मेरी यही इल्तज़ा।
तेरी खिदमत में निकले मेरी जां।

तेरे कदमों में दुश्मनों का सर होगा,
गुस्ताख़ी की उनको देंगे ऐसी सजा।

गर उठा कर देखेगा नजर इधर,
रूह तक कांपेगी देखके उनकी कज़ा।

कभी बाज नहीं आते ये बेगैरत,
हर बार शिकस्त का चखकर मज़ा।

दुश्मन थर – थर कांपेगा डर से,
वंदे मातरम गूंजे जब सारी फिज़ा।

देवेश साखरे ‘देव’

चौदहवीं का चाँद

October 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे महबूब के हुस्न की जो बात है।
चौदहवीं के चांद तेरी क्या बिसात है।।

चांद भी देख गश खाएगा,
मेरे महबूब को देख शर्माएगा।
मेरे महबूब से हंसीन ये रात है।
चौदहवीं के चांद तेरी क्या बिसात है।।

ले अंगड़ाई, दिन निकल आए,
खोल दे गेसूं, शाम ढल जाए।
झटक दें जुल्फें तो होती बरसात है।
चौदहवीं के चांद तेरी क्या बिसात है।।

चांद तू क्यों उखड़ा उखड़ा है,
मेरे महबूब की चूड़ी का टुकड़ा है।
खनकती चूड़ियां तो मचलते जज़्बात हैं।
चौदहवीं के चांद तेरी क्या बिसात है।।

देवेश साखरे ‘देव’

दहेज़

October 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

उम्र भर पिता ने जो, पाई पाई रखा था सहेज।
बिटिया के ब्याह में, आज वह दे दिया दहेज।।

ब्याह में लिए कर्ज का चुका रहे अभी किस्तें।
थमा दिया जाता मांगों के फिर नए फेहरिस्ते।
भीख के दहेज से क्या सारी जिंदगी गुजार लेंगे,
दूषित सोच को हक नहीं, बनाने के नए रिश्ते।
ब्याह कोई व्यवसाय नहीं, दो परिवारों का संबंध है,
मां बाप भी आंखें बंद कर, बिटिया को ना दें भेज।
उम्र भर पिता ने जो, पाई पाई रखा था सहेज।
बिटिया के ब्याह में, आज वह दे दिया दहेज।।

बेटी को धन के लोभियों के घर दिया।
जालिमों ने आंखों में खून के आंसू भर दिया।
कलेजे का टुकड़ा क्या दिल पर इतनी बोझ थी,
अपने ही हाथों कलेजे को टुकड़े टुकड़े कर दिया।
फूलों की नजाकत से पाला जिसे पलकों पे बिठाकर,
कैसे चुना बिटिया के लिए कांटो भरा सेज।
उम्र भर पिता ने जो, पाई पाई रखा था सहेज।
बिटिया के ब्याह में, आज वह दे दिया दहेज।।

बेटी से बढ़कर दूजा और कोई धन नहीं।
समझ लें लोग तो जलेगी कोई दुल्हन नहीं।
सब कुछ छोड़ अपना, एक डोर से बंधी आती,
बहु को बेटी मानें, उससे सुंदर कोई जेहन नहीं।
हाथ जोड़ इस समाज से विनती करता है ‘देव’,
दहेज रूपी नासूर कुप्रथा से हम करें परहेज।
उम्र भर पिता ने जो, पाई पाई रखा था सहेज।
बिटिया के ब्याह में, आज वह दे दिया दहेज।।

देवेश साखरे ‘देव’

नशा ही नशा

October 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी को इश्क का नशा,
किसी को रश्क का नशा।
किसी को शय का नशा,
किसी को मय का नशा।
किसी को दौलत का नशा,
किसी को शोहरत का नशा।
किसी को इबादत का नशा,
किसी को शहादत का नशा।
किसी को हिफाज़त का नशा,
किसी को अदावत का नशा।
किसी को शराफ़त का नशा,
किसी को शरारत का नशा।
किसी को नफ़रत का नशा,
किसी को मोहब्बत का नशा।
किसी को गीत का नशा,
किसी को संगीत का नशा।
किसी को ख़ुशी का नशा।
किसी को ख़ामोशी का नशा।
किसी को गम का नशा,
किसी को अहम् का नशा।
किसी को जीत का नशा,
किसी को ज़िद का नशा।
कौन कहता मैं नशे से दूर,
सारी दुनिया है नशे में चूर।
कौन निकला और कौन फँसा,
जिधर देखो बस नशा ही नशा।

देवेश साखरे ‘देव’

अपना बनाया क्यों

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भूलना ही था तो अपना बनाया क्यों।
भटके को सही राह, तुमने दिखाया क्यों।

तन्हा हम कैसे भी हो, जी ही तो रहे थे,
उम्मीद का शम्मा जला, तुमने बुझाया क्यों।

भूलने की बात से, एक तूफान सा उठा है,
कश्ती को मझधार से, तुमने बचाया क्यों।

छोड़ दिया होता हमारे हाल पे उसी वक्त,
गमे-जुदाई दिल पर, तुमने लगाया क्यों।

आज हाल ये है, न ही जीते हैं, न मर सकते,
हाथ थाम कर मरने से, तुमने बचाया क्यों।

तुम्हें भूल पाना नामुमकिन सा लगता है,
इतना प्यार मुझ पर, तुमने लुटाया क्यों।

तेरे बगैर रह नहीं सकता, साथ न छोड़ना,
कुछ कर गुजरूं तो ना कहना, नहीं बताया क्यों।

देवेश साखरे ‘देव’

करवा-चौथ विषेश

October 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ चाँद तू आज भाव खाना नहीं।
मेरे चाँद को तू आज सताना नहीं।

बैठी पलकें बिछाए,
तेरा दीदार हो जाए,
तेरे इंतज़ार की घड़ी बढ़ाना नहीं।
ऐ चाँद तू आज भाव खाना नहीं।
मेरे चाँद को तू आज सताना नहीं।

बगैर आबो-दाना,
मुश्किल दिन बिताना,
मकसद मेरा, तुझे बताना नहीं।
ऐ चाँद तू आज भाव खाना नहीं।
मेरे चाँद को तू आज सताना नहीं।

मेरी लंबी उम्र का जिक्र है,
मुझे मेरे चाँद की फिक्र है,
मंज़ूर मुझे बादलों का बहाना नहीं।
ऐ चाँद तू आज भाव खाना नहीं।
मेरे चाँद को तू आज सताना नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

आबो-दाना – अन्न और जल

कहावतें

October 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया में ‘चेहरे पर चेहरा चढ़ाए’ हुए लोग।
‘मुंह में राम बगल में छुरा’ छिपाए हुए लोग।
‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनते हुए देखे हैं,
‘नाच ना आवें आंगन टेढ़ा’ बताए हुए लोग।
‘पूत के पांव पालने में ही नजर आते हैं’,
फिर भी ‘सपोले को दूध पिलाए’ हुए लोग।
यूं तो ‘आस्तीन के सांप’ नज़र नहीं आते,
अपनों ही से ‘मुंह की खाए’ हुए लोग।
‘दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है’,
फिर भी ‘यकीन पर दुनिया टिकाए’ हुए लोग।
‘दूध का दूध पानी का पानी’ हो ही जाता है,
‘सांच को आंच नहीं’ सिद्ध कराए हुए लोग।
‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ ऐसे भी हैं,
‘आम के आम गुठलियों के दाम’ भुनाए हुए लोग।
‘बाल की खाल निकालना’ आदत है जिनकी,
देखो ‘बात का बतंगड़’ बनाए हुए लोग।
‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’ कहते हैं,
‘बंदर के हाथ उस्तरा’ पकड़ाए हुए लोग।
‘गड़े मुर्दे उखाड़ना’ फितरत है जिनकी,
‘सांप जाने पर भी लकीर पिटाए’ हुए लोग।
‘दूर के ढोल सुहावने’ ही सुनाई देते हैं,
करीब से ‘ढोल की पोल’ खुलाए हुए लोग।
‘भैंस के आगे बीन बजाने’ का फायदा नहीं,
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कराए हुए लोग।
सदैव ‘सब्र का फल मीठा ही होता है’,
अमल कर ‘चैन की बंसी बजाए’ हुए लोग।

देवेश साखरे ‘देव’

तेरी याद में

October 16, 2019 in ग़ज़ल

दिल रोया, आंखों ने अश्क बहाया तेरी याद में।
रौशनी भाती नहीं, चराग़ बुझाया तेरी याद में।

तस्वीर बातें करती नहीं, अब जी भरता नहीं,
इंतजार में दिन गिन-गिन बिताया तेरी याद में।

ख्वाबों में तेरा आना, मेरा चैन, मेरी नींदें उड़ाना,
किसी रात फिर नींद ना आया तेरी याद में।

कब होगा तुमसे मिलन, ना मैं जानू या रब जाने,
अब जुदाई और सह ना पाया तेरी याद में।

देवेश साखरे ‘देव’

इंतज़ार

October 15, 2019 in शेर-ओ-शायरी

रौशनी में अक्स दिखा, लगा तुम आए।
हर एक आहट पर ऐसा लगा तुम आए।
इंतज़ारे-बेक़रारी बढ़ती गई, साँसे घटती गई,
हर एक सदा पर ऐसा लगा तुम आए।

देवेश साखरे ‘देव’

पराकाष्ठा

October 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये विलासिता, वैभवता व भौतिकता की पराकाष्ठा।
ये क्षणिक सुविधाएं प्राप्त होती, करने से थोड़ी चेष्टा।

परंतु छू सकते हैं, गगन की ऊंचाई मात्र ही नहीं,
सुदूर क्षितिज भी, गर मन में हो दृढ़ आत्मनिष्ठा।

मोह, छल, आलस्य त्याग जो करे अथक परिश्रम,
वो ही प्राप्त कर सकता है, संसार में उच्च पद प्रतिष्ठा।

देवेश साखरे ‘देव’

फ़तह

October 14, 2019 in शेर-ओ-शायरी

गुलाब सी हो जिंदगी तुम्हारी,
जो काँटों के बीच भी हँसीन हो।
हर कदम हो तुम्हारा फ़तह का,
हर पल जिंदगी बेहतरीन हो।

देवेश साखरे ‘देव’

बयां करती है

October 14, 2019 in ग़ज़ल

बिस्तर की सलवटें, शबे-हाल बयां करती है।
भीगा सिरहाना, हिज़्रे-मलाल बयां करती है।

बेशक लाख छुपाओ, ग़मे-जुदाई का दर्द लेकिन,
बेरंग सा चेहरा, बेनूर हुस्नो-जमाल बयां करती है।

मुस्कुराहट के पीछे, गम छुपाने का हुनर आता है ‘देव’,
फिर भी तसव्वुर तेरी, महबुबे-खयाल बयां करती है।

देवेश साखरे ‘देव’

रिंद

October 13, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बेक़रारी का आलम है, दीवाने की मानिंद।
ना सहरे-सकूँ मिलता, ना आती शबे-नींद।
तेरी आँखों से पिया करते थे जामे-शराब,
तेरी जुदाई में अब कहीं, हो ना जाऊँ रिंद।

देवेश साखरे ‘देव’

रिंद- शराबी

ज़ुल्फ तुम्हारा

October 13, 2019 in ग़ज़ल

ज़ुल्फ तुम्हारा, जैसे काली घटा हो।
चाँद के रुख़्सार से, इसे तुम हटा दो।

बिखरने दो चाँदनी हुस्नो-जमाल की,
इसपे जैसे कोई चकोर मर मिटा हो।

पहलू में बैठो, लौटा दो मुझे दिले-सुकूँ,
मेरी नींद, मेरा चैन जो तुमने लूटा हो।

सारी रात यूँ ही, आँखों में गुज़रने दो,
करें पूरी, गर कोई बात अधूरा छूटा हो।

माँगु मुराद, ये मंजर यहीं ठहर जाए,
देखो दूर कहीं कोई सितारा टूटा हो।

देवेश साखरे ‘देव’

सत्ता का खेल

October 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।
पन्ने पलट लो, इतिहास गवाह बतौर है ।

तख्तो-ताज लूट गये ।
राजे-महराजे मिट गये ।
इस सियासती जंग में,
अपने अपनों से छुट गये ।
बेटा बाप को मारता, भाई-भाई को काटता,
सत्ता के खेल में बहता खून चारों ओर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

सत्ता पैसे वालों की ।
घोटाले और हवालों की ।
चोर-चोर मौसेरे भाई,
हम प्याले, हम निवालों की।
पूंजीपति और सत्ताधारी, देश के पालनहारी,
सत्ता से बढ़कर इनके लिए नहीं कुछ और है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

सत्ता में आने से पहले ।
गधे को भी बाप कह लें ।
फिर वादे याद दिलाते,
लाख नाक आगे रगड़ लें ।
गरीबी और महंगाई, घरों के चुल्हे बुझाई,
छिनता गरीबों के मुँह से रोटी का कौर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

ये सियासती दाँव-पेंच ।
एक दुसरे की टाँग खींच ।
क्यों कर लेते इनपे यकीं,
बगैर सोचे आँखें भींच ।
साधनों संसाधनों का अभाव, हमारे मतों का प्रभाव,
सर पे छत नहीं, फुटपाथ ही ठौर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

देवेश साखरे ‘देव’

तुम्हारे लिए

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्द-शब्द पिरोकर,
कविता की माला बनाऊं तुम्हारे लिए।

माला के हर मनके में,
मन के मनोभाव सजाऊं तुम्हारे लिए।

लहराते उजले दामन में,
प्रेम का रंग चढ़ाऊं तुम्हारे लिए।

थरथराते गुलाबी अधरों पे,
प्रेम का रस बरसाऊं तुम्हारे लिए।

महकाया जीवन के उपवन को,
फूलों से सेज महकाऊं तुम्हारे लिए।

रौशनी लजाती गर प्रेमालाप में,
जलता दीपक बुझाऊं तुम्हारे लिए।

देवेश साखरे ‘देव’

दर्द

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नन्हा सा बेटा बोला,
लिपट कर मेरे पैर।
आज ले चलोगे पापा,
संग अपने सैर।
कब जाते हो,
कब आते हो,
पता ही नहीं चलता,
लगाते हो बड़ी देर।
ना चलेगा कोई बहाना,
थक गया हूं मैं,
या फिर मुझे है जाना।
मुझसे प्यार है,
या कोई बैर।
ले चलोगे मुझे,
संग अपने सैर।।

उस अबोध को,
मैं कैसे समझाऊं।
दर्द अपना उसे,
मैं क्या बताऊं।
रोटी की जद्दोजहद में,
इस भागदौड़ बेहद में,
परिवार के लिए,
समय कहां से लाऊं।
कर्म देखूं तो,
कर्तव्य छूटता है।
कर्तव्य देखूं तो,
कर्म कैसे बचाऊं।
अपना दर्द,
मैं किसे बताऊं।।

देवेश साखरे ‘देव’

मैं ख़्वाब में नहीं

October 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे सुर्ख लबो में वो कशिश है,
जो किसी शराब में नहीं।
तुम्हारे तन कि वो मदहोश खुशबू है,
जो किसी गुलाब में नहीं।
तुम्हारे आगोश में वो जादू है,
जो किसी भी शबाब में नहीं।
तुम मेरी हो यही हकीकत है,
जमाने से कह दो मैं ख़्वाब में नहीं।
मेरी मोहब्बत में वो ज़लज़ला है।
जो दरिया के सैलाब में नहीं।
तुम्हारी ज़ुदाई में वो तकलीफ है।
जो किसी अज़ाब में नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

इश्के-फ़साना

October 9, 2019 in ग़ज़ल

इश्के-फ़साना हमारा, मशहूर जमाने में।
हमारी मोहब्बत पाक है, सही माने में।

सीने में दिल तेरे नाम से ही धड़कता है,
दिलो-जाँ कुर्बान, क्या रखा नज़राने में।

बे-इंतिहा इश्क की इंतिहा गर गुलामी है,
मुझे शर्म नहीं, तेरा गुलाम फ़रमाने में।

दिले-सूकूँ जो तेरी आँखों के ज़ाम में है,
मिला नहीं डूब कर, किसी मयखाने में।

मुतमइन है ‘देव’, मुकम्मल है इश्क मेरा,
कम हैं, जो यकीं रखते ताउम्र निभाने में।

देवेश साखरे ‘देव’

मुतमइन- संतुष्ट, मुकम्मल- पूर्ण

विजयादशमी

October 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएं

नि:संदेह मेरा दहन किया जाए।
परंतु केवल वो ही समक्ष आए।

जिसमें न हो रत्ती भर अहंकार।
जिसने न किया हो व्यभिचार।
जिसने किया पतितों का उद्धार।
जिसने किया पर-दुखों का संहार।

केवल वो ही समक्ष आए।

जो माता-पिता का आज्ञाकारी हो।
जो बंधु-बांधुओं का हितकारी हो।
जो धैर्य, शील और संयम धारी हो।
जिसके शरण में सुरक्षित नारी हो।

केवल वो ही समक्ष आए।

जो स्त्रियों का सम्मान करता हो।
जो अंश भर भी मर्यादा धरता हो।
जो कोई पाप करने से डरता हो।
जो पाप की ग्लानि से मरता हो।

केवल वो ही समक्ष आए।

जिसने पर-स्त्री पर कुदृष्टि न डाली हो।
जिसने स्त्रियों की अस्मत संभाली हो।
जिसने गर्भ से बचाकर बेटियाँ पाली हो।
जिसने वृद्धों को, घर से ना निकालीं हो।

केवल वो ही समक्ष आए।

अपने मन-अंतर्मन के रावण का करो हनन।
श्रीराम के मर्यादा का, अंश मात्र करो वहन।
वचन देता मैं दशानन, स्वयं हो जाऊँगा दहन।
मनाएँ असत्य पर सत्य विजय का पर्व पावन।

देवेश साखरे ‘देव’

काश ऐसा होता

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।

सब एक ही तो है,
ये हवा जिसमें हम सांस लेते हैं।
ये पानी जो हम सभी पीते हैं।
एक ही तो है,
यह धरती जहां हम महफूज़ रहते हैं।
फूलों की खुशबू सभी महसूस करते हैं।
एक ही तो है,
सभी के खून का रंग।
जीवन मृत्यु का ढंग।
एक ही तो है,
फिर क्यों धर्म को लेकर आपसी लड़ाई।
मैं हिंदू, मैं मुस्लिम, मैं सिख्ख, मैं ईसाई।
इस ‘मैं’ के दायरे से निकल, हो सभी में प्यार।
क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।।

काश ऐसा होता,
एक ही धर्म हो,
मानवता का।
एक ही जात हो,
समानता का।
काश ऐसा होता,
एक ही ईश्वर हो,
सच्चाई का।
एक ही देवालय हो,
अच्छाई का।
काश ऐसा होता,
आओ असमानता रूपी गुलामी की जंजीरें तोड़ दें।
सभी को समानता के एक सूत्र में जोड़ दें।
आओ संगठित होकर एकता की सोच को करें साकार।
क्यों है ये जात-पात की ऊंची दीवार।
धर्म के नाम पर हर कोई लड़ने को तैयार।

देवेश साखरे ‘देव’

प्रति उत्तर

October 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक दिन मैंने पुत्र से कहा,
बेटा, तू मेरा हमसूरत है,
तू ही मेरी ज़रूरत है।
छोड़ अकेले मुझे जाना नहीं,
खून के आंसू मुझे रुलाना नहीं।
तुम से ही ज़िंदगी ख़ूबसूरत है।
तू ही तो मेरी ज़रूरत है।।

पुत्र ने कहा पापा,
आप नहीं दादाजी के हमसूरत हैं?
आप नहीं उनकी ज़रूरत है।
आप भी तो उनको छोड़ आए हो,
मुझसे कैसी उम्मीद लगाए हो।
सुन हुआ स्तब्ध, जैसे मूरत है।
आप नहीं उनकी ज़रूरत हैं।।

यह तो प्रकृति का नियम है,

इंसान जो बोएगा,
वही तो काटेगा।
दुख देकर किसी को,
खुशियां कैसे बांटेगा।।

देवेश साखरे ‘देव’

कहानी

October 5, 2019 in ग़ज़ल

वो जिंदगी बेमानी, जिसमें कोई रवानी ना हो।
किस काम की जवानी, जिसकी कहानी ना हो।

मैंने भी मोहब्बत किया है, हाँ बेहद किया है,
किसी से दिल्लगी नहीं की, जो निभानी ना हो।

हमारा भी जमाना था, मशहूर इश्के-फसाना था,
इश्क ऐसा कीजिए, फिर जिसे छिपानी ना हो।

कहने को नहीं कहता, जिया जो वही लिखता हूँ,
सच कहता ‘देव’, वो नहीं कहता जो सुनानी ना हो।

देवेश साखरे ‘देव’

आंगन

October 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन का आंगन कहीं छूट गया ।
पुराना मकान था जो टूट गया ।।

ऊँची इमारतें खड़ी वहाँ,
सैकड़ों परिवारों का बसेरा है ।
चारदीवारी में ही रात,
घर के भीतर ही सवेरा है।
ऊँची इमारतें आज हँसती हम पर,
मजबूरी में इंसान खून के पी घूंट गया ।
बचपन का आंगन कहीं छूट गया ।।

हवाओं में रहता इंसान,
आंगन तो एक सपना है ।
ना तो जमीन अपनी,
ना ही छत अपना है ।
जमीन का एक टुकड़ा आज बचा नहीं,
लगता है किस्मत भी हमसे रूठ गया ।
बचपन का आंगन कहीं छूट गया ।।

आंगन के बगीचे में,
फूलों की खुशबू बहती थी।
ठंडी हवा, चिड़ियों की चहक,
हरियाली सदा रहती थी।
तुलसी घर आंगन की शोभा होती,
सारा बगीचा गमलों में सिमट गया ।
बचपन का आंगन कहीं छूट गया ।।

घर के आंगन में ही,
दोस्तों संग खेला करते थे ।
कूद – फांद, धमा – चौकड़ी,
पेड़ों में झूला करते थे ।
खेला हमने कल जिस आंगन में,
बच्चों से हमारे आज वो लूट गया ।
बचपन का आंगन कहीं छूट गया ।।

देवेश साखरे ‘देव’

तेरे शहर में

October 4, 2019 in ग़ज़ल

यूं तो हंसीनों की कमी नहीं तेरे शहर में।
एक तुझ पे ही दिल आया पहली नज़र में।

और कोई नजर आता नहीं, एक तेरे सिवा,
इंकार नहीं, प्यार घोलकर पिला दो ज़हर में।

रहने को तो हम हुस्नों के बीच भी रहे हैं,
ना थी वह बात, उन हुस्नों के असर में।

नहीं कहता चांद तारे कदमों में बिछा दूंगा,
सजाकर रखूंगा ताउम्र तुम्हें दिल के घर में।

दिल की गहराई में ‘देव’ उतर कर तो देख,
नहीं मिलेगा ऐसा सैलाब गहरे समंदर में।

देवेश साखरे ‘देव’

हँसीन नजारा

October 3, 2019 in ग़ज़ल

ये रंगे – बहारा, ये हँसीन नजारा।
खुदा ने तुझको, फुर्सत से संवारा।

ना मैंने सुना कुछ, ना तुने पुकारा,
समझते हैं तेरी, नजरों का इशारा।

तू बहती धारा, मैं शांत किनारा,
दिल की गहराई में, तुमने उतारा।

मचलते जज्बात पर, न जोर हमारा,
तू भी हँसीन है, और मैं भी कंवारा।

ना मेरा कसुर कुछ, ना दोष तुम्हारा,
यह तो खेल है देखो, वक्त का सारा।

बैठ पास मेरे, करूँ तुझको निहारा,
पल भर की जुदाई, ना मुझे गवारा।

तू मेरी जरूरत और मैं तेरा सहारा,
तू मेरी चाहत, ‘देव’ दीवाना तुम्हारा।

देवेश साखरे ‘देव’

जय जवान जय किसान जय विज्ञान

October 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

“शास्त्री जी” को अवतरण दिवस पर शत शत नमन

शास्त्री जी का नारा था
‘जय जवान’
ना होली दिवाली, ना ईद रमजान।
एक ही जश्न, हिफाजते-हिंदुस्तान।
सुकून से मनाते हम खुशियाँ यहाँ,
सरहद पर खड़ा, वहाँ वीर जवान।

‘जय किसान’
सुस्ताने बैठ जाए मेहनतकश किसान।
तो फिर भूखा रह जाए समस्त जहान।
निःस्वार्थता से करता, अथक परीश्रम,
खून पसीने से सिंचता, खेत खलिहान।

अटल जी ने जोड़ा
‘जय विज्ञान’
बुलंदियाँ छू लिया आज हमारा विज्ञान।
मंगल मिशन या फिर प्रक्षेपण चंद्रयान।
घातक प्रक्षेपास्त्र हो या परमाणु परीक्षण,
विश्व में कर दिए स्थापित नये कीर्तिमान।

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।
हमारे देश की शान, मेरा भारत महान।।

देवेश साखरे ‘देव’

खुली किताब

October 1, 2019 in ग़ज़ल

मैं तो खुली किताब हूँ, यूँ भी कभी पढ़ा करो।
अच्छा लगता है, बेवजह भी कभी लड़ा करो।

मेरे कदम तेरी ओर उठते, तुझपे ही रूकते हैं,
एक कदम मेरी ओर, तुम भी कभी बढ़ा करो।

काँटों से दामन तेरा, ना उलझने दिया कभी,
फुल बनकर मुझपे, तुम भी कभी झड़ा करो।

मैं तो तेरे इश्क में, पहले से ही गिरफ़्तार हूँ,
शक के कटघरे में, मुझे ना कभी खड़ा करो।

बदला नहीं, आज भी हूँ वही, देखो तो गौर से,
बदलने का दोष मुझपे, यूँ ना कभी मढ़ा करो।

देवेश साखरे ‘देव’

मुकाम

September 29, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

साम दाम दण्ड भेद से मुकाम तो पा लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?

काबिलियत कितनी है, गिरेबां में झाँक लो,
काबिल हकदार से उसका हक तो चुरा लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?

मुकाम पाना आसान है, वहाँ ठहरना कठिन,
गलत की जोर पे अपनी जगह तो बना लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?

ज़मीर जानता है, मुझसे भी बेहतर यहाँ पर,
ज़मीर को मारकर, खुद को बेहतर बना लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?

देवेश साखरे ‘देव’

‘गांधी’ एक विचारधारा

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गांधी जी पर कविता तो हर कोई रचते हैं।
आओ बापू के विचारों पर चर्चा करते हैं।

बापू ने कहा था बुरा मत देखो।
मैं मुँह फेर लेता हूँ,
देख कमजोरों पर अत्याचार होते।
मैं आँखें फेर लेता हूँ,
देख शोषण और भ्रष्टाचार होते।
मुझे वो कागज का टुकड़ा भाता है।
जिस पर छपा बापू मुस्कुराता है।
बुरा तो मैं देखता ही नहीं,
मुझे बस हरा ही हरा नजर आता है।
बुरा कर, ईश्वर से हम क्यों नहीं डरते हैं।
आओ बापू के विचारों पर चर्चा करते हैं।

बापू ने कहा था बुरा मत सुनो।
मैं कान बंद कर लेता हूँ,
करुण चीख पुकार सुनकर।
कानों में हाथ रख लेता हूँ,
सहायता की चीत्कार सुनकर।
मदद की गुहार मेरे कानों में चुभता है।
बेमतलब की बातें कौन यहाँ सुनता है।
बुरा तो मैं सुनता ही नहीं,
चापलूसी कानों में शहद बन घुलता है।
हृदय किसी का दुखाकर हम कैसे हँसते हैं।
आओ बापू के विचारों पर चर्चा करते हैं।

बापू ने कहा था बुरा मत बोलो।
मैं मुँह बंद कर लेता हूँ,
जहाँ सच बोलने की आवश्यकता हो।
मैं होंठ सील लेता हूँ,
फिर भले ही निर्दोष क्यों न मरता हो।
झूठों का बोल बाला है।
सत्य कहाँ बचने वाला है।
बुरा तो मैं बोलता ही नहीं,
पैसों ने मुँह बंद कर डाला है।
क्यों भूल जाते हम, सत्य कहाँ मरते हैं।
आओ बापू के विचारों पर चर्चा करते हैं।

बापू को न केवल,
तस्वीरों, मूर्तियों में जगह दो।
उन्हें दिल में उतारो,
आदर्शों का अलख जगा दो।
सत्य और अहिंसा ही,
आत्मा को परमात्मा बनाता है।
गांधी जी के विचार ही,
गांधी को महात्मा बनाता है।
मजहब के नाम पर, हम क्यों लड़ते हैं।
सत्य, अहिंसा का पाठ क्यों नहीं पढ़ते हैं।
गांधी जी पर कविता तो हर कोई रचते हैं।
आओ बापू के विचारों पर चर्चा करते हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

तक़दीर

September 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी

सागर किनारे रेत पर फेरी उँगलियाँ,
देखा जो गौर से बन गई तस्वीर तेरी।
ख्वाब से हकीकत में ले आई मुझे,
एक लहर बहा ले गई तक़दीर मेरी।

ये जिंदगी

September 26, 2019 in ग़ज़ल

ये जिंदगी भी कैसे करवट बदलती है ।
इस करवट खुशी, दूसरे गम मिलती है।

रेत की मानिंद हो गई हसरतें सारी,
जितना समेटो, मुठ्ठी से फिसलती है।

जमीं छोड़ा आसमां छूने की ख्वाहिश में,
जमीं पर ही ला औंधे मुँह पटकती है ।

भीड़ में उँगली छूटे बच्चे सी जिंदगी,
गिरते पड़ते भी अब नहीं संभलती है ।

राजा से फकीर पल में बना दे,
जिंदगी भी कैसे कैसे खेल खेलती है ।

नहीं पास कोई, आज हालात ऐसे हैं,
हर निगाहें मुझसे बच निकलती है।

जो थकते ना थे ‘देव’ नाम लेते हमारा,
आज वो जुबां खिलाफ जहर उगलती है ।

देवेश साखरे ‘देव’

अवचेतन मन

September 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम अवचेतन मन की चेतना।
तुम विरह की मधुर वेदना।
तुम इच्छित फल की साधना।
तुम ईश्वर की आराधना।
तुम सुंदर अदृश्य सपना।
तुम साकार मेरी कल्पना।
तुम संपूर्ण मेरी कामना।
हाथ सदैव ‘देव’ का थामना।

देवेश साखरे ‘देव’

अदावत

September 25, 2019 in ग़ज़ल

ऐसे भी रफ़ीक़ जो कयामत ढाते हैं।
दावत देकर वो अदावत निभाते हैं।

जान बनाकर जान लेने की कोशिश की,
ज़ख्मों का सेज देकर अयादत आते हैं।

ज़ुल्म करने से सहने वाला गुनहगार,
यही सोच कर अब बगावत लाते हैं।

ऐ दगा करने वाले, कुछ तो वफ़ा कर,
दोस्ती पर से लोग अकीदत उठाते हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

1.रफ़ीक़ – दोस्त, 2. अदावत – दुश्मनी, 3.अयादत – रोगी का हाल पुछना 4. अकीदत – आस्था

फोन पर बातें

September 23, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब रूबरू हों।
तो गुफ्तगु हो।
एक मैं रहूँ,
और एक तू हो।
कुछ अनकही बातें,
आँखों से सुन लूं।
फोन पर बातें मुझे भाती नहीं,
बगैर देखे बातें समझ आती नहीं।

होंठ से तेरे, शब्दों का झड़ना,
दिल में उतरना, कानों में पड़ना।
प्रेम मनुहार, वो मीठी तकरार,
तेरा रुठना, और मुझसे लड़ना।
दिल की धड़कनें,
दिल से सुन लूं।
फोन पर बातें मुझे भाती नहीं,
बगैर देखे बातें समझ आती नहीं।

तेरी बातों की चहक।
तेरे तन की महक।
तेरे चेहरे का नूर,
तेरी आँखों की चमक।
फोन में कहाँ पाता हूँ ,
सामने हो तो सुन लूं।
फोन पर बातें मुझे भाती नहीं,
बगैर देखे बातें समझ आती नहीं।

देवेश साखरे ‘देव’

वो क्या जाने

September 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुह जिसकी बिक चुकी है,
दिल के जज्बात वो क्या जाने।

इंसानियत भी जो बेच चुका,
गम की बात वो क्या जाने।

खुशियों का लुटेरा है जो,
खुशियों की सौगात वो क्या जाने।

दूसरों के फूंक, घर अपना रौशन करें,
घनघोर स्याह रात वो क्या जाने।

मुंह से निवाला, छीनने वाला,
भूख के हालात वो क्या जाने।

अस्मत जिनके बिस्तर पे दम तोड़ती,
संजोए सपनों की बारात वो क्या जाने।

दौलत ही जिनका खुदा हो ‘देव’,
खुदा से मुलाकात वो क्या जाने।

देवेश साखरे ‘देव’

बुजुर्गों का साया

September 21, 2019 in ग़ज़ल

बेशक दौलत बेशुमार नहीं कमाया है।
मगर मेरे सर पर, बुजुर्गों का साया है।

ज़हां की दौलत कम है, मेरे खजाने से,
दुआओं का खजाना, मेरा सरमाया है।

हादसा सर से गुजर गया, मैं बच गया,
लगता है, दुआओं ने असर दिखाया है।

पाँव में काँटा, कभी चुभ नहीं सकता,
पाँव जिसने भी, बुजुर्गों का दबाया है।

जन्नत सुना था, ज़मीं पर ही देख लिया,
कदमों में इनके, जब भी सर झुकाया है।

देवेश साखरे ‘देव’

सरमाया- संपत्ति

दुनिया एक अखाड़ा

September 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।।

कभी मजहब के नाम फसाद।
तो कभी सबब ज़मीं जायदाद।
हर एक, दूसरे से बड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

भाई, भाई के खून का प्यासा।
नहीं बचा प्रेमभाव जरा सा।
इंसान किस फेर में पड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

कल तक, नारी को पूजता संसार।
आज है, उनकी आबरू तार-तार।
देखो कैसे मानसिकता सड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

देवेश साखरे ‘देव’

गुरूर है

September 18, 2019 in ग़ज़ल

देर मिलता है, पर मिलता जरूर है।
किस्मत पे अपने, इतना तो गुरूर है।

खामोशी मेरी, लगने लगी कमजोरी,
रहम दिल हूं, बस इतना कुसूर है।

छत है सर, फिर भी हूं बेघर,
घर जिनके हैं, वो कितने मगरूर हैं।

हैं सब, पर कोई भी नहीं अब,
सोच है मेरी, या मेरा फितूर है।

हर हाल में, करुं ना मलाल मैं,
नफरत से तो ‘देव’ होते सभी दूर हैं।

देवेश साखरे ‘देव’

तसव्वुर तेरी

September 17, 2019 in ग़ज़ल

कम्बख़त तसव्वुर तेरी की जाती नहीं है।
भरी महफिल भी मुझे अब भाती नहीं है।

जिंदगी तो अब बेसुर-ताल सी होने लगी,
नया तराना भी कोई अब गाती नहीं है।

पुकारूं कैसे, अल्फ़ाज़ हलक में घुटने लगे,
सदा भी सुन मेरी तू अब आती नहीं है।

कहकहे नस्तर से दिल में चुभने लगे,
सूखी निगाहें अश्क अब बहाती नहीं है।

संग दिल से दिल मेरा संगदिल हो गया,
कोई गम भी मुझे अब रुलाती नहीं है।

देवेश साखरे ‘देव’

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