देवेश
जुनून
February 24, 2024 in ग़ज़ल
जुनून जिंदा है इस बात का सुकून तो है।
बगैर जुनून के जिंदगी बस जहन्नुम तो है।
सोचो मौसीक़ी न होती, जहान कैसा होता,
शुक्र है कानों में घुलता मधुर तरन्नुम तो है।
क्या सोचेगी, खौफ से खत कभी भेजा नहीं,
हाले-दिल लिख रखा खत में मज़मून तो है।
खुदा न करे तेरी उदासी का कभी सबब बनूं,
जीने का जरिया तेरे लबों की तबस्सुम तो है।
जुगनुओं से ज्यादा जगमग है जो तेरा दामन,
तुम्हारे दामन में सजे अनगिनत अंजुम तो है।
चाहता हूँ माँ
June 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तेरे कांधे पे सर रख, रोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।
तू लोरी गाकर, थपकी देकर सुला दे मुझे,
मैं सुखद सपनों में, खोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
इतना बड़ा, इतनी दूर न जाने कब हो गया,
तेरा आंचल पकड़कर, चलना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
जीने के लिए, खाना तो पड़ता ही है,
तेरे हाथों से भरपेट, खाना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
जिंदगी का बोझ, अब उठाया जाता नहीं,
बस्ता कांधों पर फिर, ढोना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
जिंदगी की भाग दौड़ से, थक गया हूं अब,
बचपन फिर से मैं, जीना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
जिंदगी के थपेड़े, बहुत सह चुका ‘देव’,
ममता की छांव में, पलना चाहता हूं मां।
तेरी गोद में सर रख, सोना चाहता हूं मां।।
देवेश साखरे ‘देव’
वंदेमातरम
June 29, 2020 in Poetry on Picture Contest
मां तुझ से है मेरी यही इल्तज़ा।
तेरी खिदमत में निकले मेरी जां।
तेरे कदमों में दुश्मनों का सर होगा,
गुस्ताख़ी की उनको देंगे ऐसी सजा।
गर उठा कर देखेगा नजर इधर,
रूह तक कांपेगी देख उनकी कज़ा।
कभी बाज नहीं आते ये बेगैरत,
हर बार शिकस्त का चखकर मज़ा।
दुश्मन थर – थर कांपेगा डर से,
वंदे मातरम गूंजे जब सारी फिज़ा।
देवेश साखरे ‘देव’
सेना का सम्मान
June 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
समस्त देश आज सेना के सम्मान में खड़ा है।
पता नहीं तू किस मानसिकता से विरोध में अड़ा है।
राजनीति के मौके, और भी आएंगे भविष्य में,
विरोधाभास भूल प्रमाण दो, हृदय तुम्हारा भी बड़ा है।
चाटुकारों की चाटुकारिता भी, चरम पर है आज,
‘सरगना’ से भी ज्यादा ज्ञान, इनके खजानों में पड़ा है।
सेना की शौर्यता पर, प्रश्न चिन्ह उठाने वालों,
देश के लिए वो कल भी लड़ा है, और आज भी लड़ा है।
देवेश साखरे ‘देव’
दिवस विशेष
June 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या माँ ने कभी विशेष दिन ही ममता लुटाया है।
क्या माँ ने मात्र किसी खास दिन ही खिलाया है।
क्या पिता ने कोई दिन देखकर जरूरतें पूरी की,
या फिर केवल एक दिन सही गलत सिखाया है।
इन्हें किसी एक दिन पूजना हमारी संस्कृति नहीं,
फिर मात्र एक दिन ही विशेष किसने बनाया है।
कैसी विडंबना है, हम कहने को तो आजाद हैं,
परंतु पाश्चात्य सभ्यता ने हमें गुलाम बनाया है।
देवेश साखरे ‘देव’
विपक्ष की राजनीति
June 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
विपक्ष की गंदी राजनीति, हक से बेशक करो।
सैन्य बल कि शौर्यता पर, नाहक ना शक करो।
जो तुम निशस्त्र वीरों को ज्ञान बाँट रहे।
तुम्हारे पूर्वजों का बोया ही वह काट रहे।
हाथ अब बंधे नहीं, आदेश की प्रतीक्षा नहीं,
विजय तिलक से सजता अब ललाट रहे।
वीरों की वीरता पर प्रश्न खड़े करने वालों को,
उत्तर मिल जाए, विध्वंस इतना विनाशक करो।
सैन्य बल कि शौर्यता पर, नाहक ना शक करो।
विपक्ष की गंदी राजनीति, हक से बेशक करो।
तुम्हारी कथनी-करनी मेल नहीं खाती है।
झूठ और बस झूठ ही तुम्हारी थाती है।
ज्ञात हमें, इसमें दोष कुछ तुम्हारा नहीं,
शिशु वही सीखता, जो माँ उसे सिखाती है।
इस विकट परिस्थिति में, पक्ष-विपक्ष भूलाकर,
सेना का मनोबल बढ़े, बात ऐसी उद्देशक करो।
सैन्य बल कि शौर्यता पर, नाहक ना शक करो।
विपक्ष की गंदी राजनीति, हक से बेशक करो।
वीरों की शहादत पर सियासत, कुछ तो शर्म करो।
स्वयं पर गर्व हो, देशहित में कुछ ऐसा कर्म करो।।
देवेश साखरे ‘देव’
कब कोई सिपाही जंग चाहता है
June 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कब कोई सिपाही ज़ंग चाहता है।
वो भी परिवार का संग चाहता है।
पर बात हो वतन के हिफाजत की,
न्यौछावर, अंग-प्रत्यंग चाहता है।
पहल हमने कभी की नहीं लेकिन,
समझाना, उन्हीं के ढंग चाहता है।
बेगैरत कभी अमन चाहते ही नहीं,
वतन भी उनका रक्त रंग चाहता है।
खौफ हो उन्हें, अपने कुकृत्य पर,
नृत्य तांडव थाप मृदंग चाहता है।
ख़ून के बदले ख़ून, यही है पुकार,
कलम उनका अंग-भंग चाहता है।
देवेश साखरे ‘देव’
शहीदों को शत-शत नमन
June 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
# शहीदों को शत-शत नमन
कोई शहादत ज़ाया नहीं जाएगा।
दुश्मन कदम पीछे जरूर हटाएगा।
ये आज का सुदृढ़ भारत है,
तू फिर से मुँह की खाएगा।
आँखें पूरी खोल कर देख,
सामने खड़ा शेर को पाएगा।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
सदा ही शान से लहराएगा।
देवेश साखरे ‘देव’
बहुत याद आते हैं
June 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बहुत याद आते हैं,
वो गुजरे हुए पल।
वो तुम्हारे खत का इंतजार।
हर पल मिलने को बेकरार।
गलियों में घुमना बनकर आवारा,
पाने को एक झलक का दीदार।
बहुत याद आते हैं।
तुम्हारे मिलने का वादा।
बेकरारी बढ़ाती और ज्यादा।
मिलने के बाद तुमसे,
ना जाने देने का इरादा।
बहुत याद आते हैं ।
बेपरवाह थे, क्या कहेगा जमाना।
फिर भी छुप कर मिलना मिलाना।
छिपकर मिलने का अलग मजा था,
हर जुबां पे था बस हमारा फसाना।
बहुत याद आते हैं।
जुबां से बगैर कुछ भी कहे।
हाले-दिल बयां करती निगाहें।
वो शरमा कर पलकें झुकाना,
गले में डाल कर अपनी बाँहें।
बहुत याद आते हैं ।
गुजरे वक्त लौट कर नहीं आते।
हसरत है, ये भलीभाँति जानते।
जहाँ मैं तुम्हारा दिवाना, तुम मेरी चाहत,
फिर से वो पल हैं जीना चाहते।
बहुत याद आते हैं।
वो गुजरे हुए पल।
देवेश साखरे ‘देव’
मिलेंगे फिर ज़रूर
June 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं वादा नहीं करता,
पर मिलेंगे फिर जरूर।
किसी न किसी मोड़ पर,
किसी न किसी राहे-आम पर।
किसी न किसी मंजिल पर,
किसी न किसी मुकाम पर।
मैं वादा नहीं करता,
पर मिलेंगे फिर जरूर।
कि ज़मीं गोल है,
राहें मिलती तो है,
कहीं ना कहीं पर।
कि जिंदगी थोड़ी है,
और लंबा है सफर।
मैं वादा नहीं करता,
पर मिलेंगे फिर जरूर।
देवेश साखरे ‘देव’
श्रद्धांजलि
June 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये तो साबित हो गया कि,
तूने ख़ुदकुशी कि कोशिश की है।
पर लगता है शायद किसी ने,
तेरे क़त्ल की साज़िश की है।
कामयाब तू हो गया और वो भी,
जिसने इसकी ख़्वाहिश की है।
देवेश साखरे ‘देव’
श्रद्धांजलि # सुशांत सिंह राजपूत
# लाॅकडाऊन
June 13, 2020 in मुक्तक
मौके और मिलेंगे घुमने के फिर बेहद।
गर आज ना लाँघे अपने घरों की हद।
शिकायत थी, परिवार के लिए वक्त नहीं,
समय बिताने का अवसर मिला सुखद।
देवेश साखरे ‘देव’
द्रौपदी का प्रण
June 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बाहुबल से सबल रहे,
फिर क्यों विफल रहे।
केश पकड़ घसीटा गया,
भरी सभा मुझे लुटा गया।
दुःशासन का दुस्साहस तुम देखते रहे,
दुर्योधन का अट्टहास कर्ण भेदते रहे।
वरिष्ठ सभासद मूक दर्शक बने रहे,
कौरवों के भृकुटी क्यों तने रहे।
वो चीर मेरा हरते रहे,
अस्मिता तार करते रहे।
केशव ने रक्षा-सूत्र का धर्म निभाया,
भरी सभा मुझे चीरहरण से बचाया।
क्यों पतिधर्म का खयाल न आया,
क्यों तुम्हारे रक्त में उबाल न आया।
अंहकार के मद में चूर वो ऐंठे रहे,
क्यों हाथ पर हाथ धरे तुम बैठे रहे।
कौरवों से ज्यादा पांडवों का दोष है,
निर्जीव वस्तु माना इस बात का रोष है।
दाँव लगाने से पूर्व लज्जा तनिक न आई,
भार्या और वस्तु का भान क्षणिक न आई।
सभी मूक सभासदों का नाश चाहिए,
कौरव वंश का समूल विनाश चाहिए।
प्रण है, केश मेरे तब तक बंधेंगे नहीं,
कौरवों के रक्त से जब तक धुलेंगे नहीं।
धरती पर सभी स्त्रियों का सम्मान चाहिए,
भारत भूमि पर महाभारत का ज्ञान चाहिए।
देवेश साखरे ‘देव’
धधक रहा है मुल्क
June 11, 2020 in ग़ज़ल
धधक रहा है मुल्क, और कुछ आग मेरे सीने में।
वफ़ादारी खून में नहीं तो फिर क्या रखा जीने में।
वतन परस्ति से बढ़कर, और कोई इबादत नहीं,
वतन परस्ति का सुकून, न काशी में न मदीने में।
सियासत के ठेकेदार, देश जला सेंक रहे हैं रोटी,
हमारे घरों में रोटी, मिलती मेहनत के पसीने में।
अच्छे ताल्लुकात हैं उनसे जिन्हें मैं जानता हूँ, वो
पत्थर नहीं फेंकते, चढ़ ऊँची इमारत के ज़ीने में।
बिखरना लाज़मी है, जब मजहबी दरार पड़ जाए,
डूबने से बच नहीं सकते, गर छेद हो सफ़ीने में।
देवेश साखरे ‘देव’
ज़ीना- सीढ़ी, सफ़ीना- नाव
लाचार
June 10, 2020 in Poetry on Picture Contest
वक्त ने कैसा करवट बदला बेज़ार होकर।
तेरे शहर से निकले हैं बेहद लाचार होकर।
पराया शहर, मदद के आसार न आते नज़र,
भूखमरी करीब से देखी है बेरोजगार होकर।
तय है भूख और गरीबी हमें जरूर मार देगी,
भले ही ना मरे महामारी के शिकार होकर।
आये थे गाँव से, आँखों में कुछ सपने संजोए,
जिंदगी गुज़र रही अब रेल की रफ़्तार होकर।
बेकार हम कल भी न थे, और ना आज हैं,
दर-ब-दर भटक रहे, फिर भी बेकार होकर।
जरूरत मेरी फिर कल तुझको जरूर पड़ेगी,
खड़ा मैं तुझको मिलूँगा फिर तैयार होकर।
देवेश साखरे ‘देव’
मैं मजदूर हूँ
June 9, 2020 in Poetry on Picture Contest
विलासता से कोसों दूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
उँची अट्टालिकाएँ आलिशान।
भवन या फिर सड़क निर्माण।
संसार की समस्त भव्य कृतियाँ,
असम्भव बिन मेरे श्रम योगदान।
फिर भी टपकते छप्पर के तले,
रहने को मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
वस्त्र, दवाईयाँ या फिर वाहन।
संसार की अनन्य उत्पादन।
असम्भव बिन मेरे परिश्रम,
कारखानों की धूरी का घूर्णन।
तपती धूप में पैदल नंगे पाँव,
चलने को मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
कर्ण भेदती करुण क्रंदन।
आतुर तीव्र हृदय स्पंदन।
सुंदर वस्त्र, सजे खिलौने,
निहारती बच्चों के नयन।
बाल हठाग्रह पूर्ण करने में,
असमर्थ हूँ, मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
छप्पन भोग तो मुझे ज्ञात नहीं।
दो समय भी रोटी पर्याप्त नहीं।
संसार की क्षुधा मैं तृप्त करता,
किंतु मेरी व्यथा समाप्त नहीं।
शांत करने क्षुधा की अग्नि,
जल पीने को मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
जहाँ-तहाँ फैला कूड़े का अंबार।
जिसे देख करते घृणित व्यवहार।
अस्पृश्य गंदगी अपने हाथों से ,
मैं स्वच्छ करता हूँ सारा संसार।
फिर भी गंदी बस्ती में,
रहने को मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
सदियों से हम शोषित, उपेक्षित वर्ग हैं।
वैसे कई योजनाएँ, नाम हमारे दर्ज़ है।
ज्ञात नहीं लाभ उसका किनको मिला,
साहूकारों का सर पर हमारे कर्ज है।
अंतहीन ॠण से उॠण होने हेतु,
बाध्य हूँ, मैं मजबूर हूँ।
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
देवेश साखरे ‘देव’
लाॅकडाऊन vs शराब
June 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
मर रहा था, अब बेहतर हो गया।।
कल जो खाने की तलाश में, कतार में थे खड़े।
आज उनके भी कदम, मयकदे को चल पड़े।
चेहरे से लाचारी का झूठा नकाब,
शराब देख कर रफूचक्कर हो गया।
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
हुक़्मरानों का हर हुक़्म सर आँखों पे सजाया।
मौत के सामान का सौगात, फिर क्यों पाया।
बगैर इसके हमारी साँसे तो रुकी नहीं,
सरकार का हाल क्यों बदतर हो गया।
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
जहाँ घर से निकलने पर थी सख्त पाबंदी।
हर गली चौराहे पर थी कड़ी नाकेबंदी।
फिर क्यों सड़कों पर खुला छोड़ दिया,
डूब कर शराब में तर बतर हो गया।
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
शराब के दम पर देश की अर्थव्यवस्था बचाएंगे।
महामारी का खौफ, क्या अब भूल जायेंगे।
हिफाज़त की बात अब कहाँ चली गई,
कथनी और करनी में क्यों अंतर हो गया।
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
मुफ़लिसी के दौर से अभी कई गुज़र रहे।
यह अपना सरकारी खजाना भर रहे।
शराब की तलब में कहीं ऐसा न हो,
कि जुर्म करने पर आतुर हो गया।
मुद्दतें बाद आज गला तर हो गया।
देवेश साखरे ‘देव’
नासूर
June 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जख़्म गर नासूर बन जाए, उसे पालना बहुत भारी है।
ज़िन्दगी बचाने के लिए, अंग काटने में समझदारी है।
यह फलसफ़ा असर करता है, हर उस नासूर पर,
चाहे वह शारीरिक हो या फिर सामाजिक बिमारी है।
जहाँ – तहाँ फन उठाए घुम रहे हैं, आस्तीन के साँप,
डसने से पहले ही, जहरीले फन कुचलने की बारी है।
अच्छाई का झूठा नकाब, अब हटने लगा चेहरों से,
जब भी गले लगाया, तुमने पीठ में खंजर उतारी है।
गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं बची हममें,
नज़र अंदाज़ करने की भी, यह कैसी लाचारी है।
शराफ़त को कमजोरी समझने की भूल ना करना,
क्रांति पर यकीं रखते, हम नहीं अहिंसा के पुजारी हैं।
देवेश साखरे ‘देव’
इंसानियत के दुश्मन
April 8, 2020 in ग़ज़ल
जो इंसानियत की दुश्मन बन जाये, वो जमाअत कैसी।
खुदा ने भी लानत भेजी होगी, इबादत की ये बात कैसी।
खुद की नहीं ना सही, अपनों की तो परवाह कर लेते,
जिन्हें अपनों की परवाह नहीं, दिलों में जज़्बात कैसी।
जहाँ जंग छिड़ी मौत के खिलाफ, जिंदगी बचाने को,
वहाँ मौत के तांडव की, फिर से नई शुरुआत कैसी।
मौत किसी का नाम पूछ कर तो, दस्तक नहीं देती,
ये कोई मजहबी खेल नहीं, फिर यह बिसात कैसी।
जूझ रहे कई कर्मवीर, हमारी हिफाज़त के लिए,
मदद ना सही, फिर मुसीबत की ये हालात कैसी।
घरों में महफ़ूज रहें, मिलने के मौके और भी मिलेंगे,
जहाँ मिलने से मौत मिलती हो, फिर मुलाक़ात कैसी।
देवेश साखरे ‘देव’
ज़रिया
January 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बूँद-बूँद से मैं दरिया बन जाऊँ।
तिश्नगी का मैं ज़रिया बन जाऊँ।
डूबाने की मंशा बिलकुल नहीं है,
ज़िन्दगी का मैं नज़रिया बन जाऊँ।
देवेश साखरे ‘देव’
मकर संक्रांति
January 9, 2020 in साप्ताहिक कविता प्रतियोगिता
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।
भिन्न बोली-भाषाएं, खान-पान, भिन्न परिवेश है।
आओ मैं भारत दर्शन कराता हूं।
महत्त्व मकर संक्रांति की बताता हूं।
सूर्य का मकर राशि में गमन,
कहलाता है उत्तरायण।
मनाते हम सभी इस दिन,
मकर संक्रांति का पर्व पावन।
दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य का प्रवेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।
गुजरात, उत्तराखंड में उत्तरायण कहते।
इस दिन पतंग प्रतियोगिता हैं करते।
उड़ाते उन्नति की पतंग,
बांध विश्वास की डोर संग।
भरता जीवन में उमंग,
देख आसमान रंग- बिरंग।
यह त्योहार जीवन में, सभी रंगों का संदेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।
पंजाब, हरियाणा में माघी, तो
दक्षिण भारत में पोंगल मनाते।
इस दिन लोहड़ी और बोगी जलाते।
करते सकारात्मकता की अग्नि प्रज्वलित।
कर नकारात्मकता की आहुति सम्मिलित।
सभी मिलकर गाते खुशियों के गीत,
कामना कर भविष्य हो उज्जवलित।
हम भी करते दहन, अपने ईर्ष्या और द्वेष हैं।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।
बिहार, उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी कहते।
इस दिन दही-चूड़ा, खिचड़ी ग्रहण करते।
आत्म शुद्धि हेतु, प्रथा गंगा स्नान का।
महत्त्व है सूर्य देव के आह्वान का।
पुण्य प्राप्ति हेतु, महत्व है दान का।
यह पर्व है, पौराणिक ज्ञान का।
सुने हमने कई गाथा, कई संतों के उपदेश हैं।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।
असम में बिहु, शेष भारत में,
इसे मकर संक्रांति कहते।
तिल, गुड़ की मिठास के संग,
फसल कटाई का उत्सव करते।
यूं तो त्योहार एक है।
प्रांतिय नाम अनेक हैं।
अनेकता में एकता का प्रतीक, भारत विशेष है।
भिन्न बोली-भाषाएं, खान-पान, भिन्न परिवेश है।
यूं तो भारतवर्ष, कई पर्वों त्योहारों का देश है।।
देवेश साखरे ‘देव’
नसीहत
January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस भीड़ अपार में,
सैकड़ों – हजार में,
ढूंढ पाना है मुश्किल हमसफर,
छिपा होता है दुश्मन यार में।
नहीं होता जहां में कोई अपना,
साथ छोड़ देते सभी मझधार में।
करते हैैं साथ निभाने का वादा,
पर दिल तोड़ते हैं एतबार में।
गर पूछे कोई, देगा यही नसीहत ‘देव’,
कभी दिल ना लगाना प्यार में।
देवेश साखरे ‘देव’
शायद
January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं उससे प्यार करता हूँ,
पर इजहार से डरता हूँ।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
मुझसे भी प्यार वो करती होगी शायद।
दौड़कर खिड़की पर आना,
मुझे देख प्यार से मुस्कुराना।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
मेरे इंतजार में राह वो तकती होगी शायद।
वो मेरी बातें सोचती होगी,
रात आँखों में काटती होगी।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
इकरारे-मोहब्बत से वो डरती होगी शायद।
देवेश साखरे ‘देव’
नववर्ष
January 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।
आगे बढ़ते हैं, कड़वे पल भुला कर।
छोड़ वो यादें, जो चली गई रुला कर।
मधुर यादों के साथ, आओ नववर्ष का,
स्वागत करें, उम्मीद का दीप जलाकर।
बात करें मात्र खुशियां और हर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की ।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।
आओ नववर्ष में होते हैं संकल्पित।
जल की हर बूंद करते हैं संरक्षित।
स्वच्छ वातावरण बनाने का प्रयास,
करते हैं, पर्यावरण प्रदूषण रहित।
लालसा किए बगैर निष्कर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की ।।
संसार हो दहशत और आतंक मुक्त।
अमन-चैन, समरस और सौहार्द्र युक्त ।
कल्पना साकार हो इस नववर्ष ‘देव’,
परस्पर प्रेम सूत्र में विश्व हो संयुक्त।
त्याग कर मानसिकता संघर्ष की।
उम्मीदों की नई सुबह नववर्ष की।
सुख – समृद्धि और उत्कर्ष की।।
देवेश साखरे ‘देव’
हवा का झोंका
December 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
हवा का झोंका जो तेरी ज़ुल्फे उड़ाता है।
तुझे ख़बर नहीं मुझे कितना तड़पाता है।।
हाथों से जब तुम ज़ुल्फे संवारती हो,
कानों के पीछे जब लटें सम्भालती हो,
तेरी हर एक अदा मेरी होश उड़ाता है।
तुझे ख़बर नहीं मुझे कितना तड़पाता है।।
हवा का झोंका जो तुझे छु कर आती है,
तेरी खुशबू मुझे मदहोश कर जाती है,
तेरी महक दिल के अरमान भड़काता है।
तुझे ख़बर नहीं मुझे कितना तड़पाता है।।
हवा का झोंका तेरी चुनर लहराती है,
गुज़रे तू करीब से मुझे छू कर जाती है,
तेरी चुनरी का ही छुना दिल धड़काता है।
तुझे ख़बर नहीं मुझे कितना तड़पाता है।।
देवेश साखरे ‘देव’
ख़तावार
December 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोई तो बताये कहाँ है वो,
मुद्दत से उनका दीदार ना हुआ।
तड़प रहा हूँ मैं दिन-रात,
फिर कैसे कहूँ बेकरार ना हुआ।।
हमें तो कब से है इंतजार,
पर उन्हीं से इकरार ना हुआ।
दिन को सुकून ना रात को चैन,
फिर कैसे कहूँ प्यार ना हुआ।।
जब सामने उसे पाया तो,
खुद पे हमें एतबार ना हुआ।
कुछ भी ना कह सका उससे,
फिर कैसे कहूँ ख़तावार ना हुआ।।
देवेश साखरे ‘देव’
फ़ासले
December 29, 2019 in शेर-ओ-शायरी
गमे-जुदाई किसी से बाँटी नहीं जाती।
बगैर तेरे ये रातें अब काटी नहीं जाती।
मिटा दो फ़ासले, जो हमारे दरम्यान है,
गहरी कितनी खाई, जो पाटी नहीं जाती।
देवेश साखरे ‘देव’
हादसा
December 28, 2019 in ग़ज़ल
तेरी दुआओं का असर है,
वरना मैं तो मरने वाला था।
एक हादसा जो टल गया,
सर से जो गुजरने वाला था।
जिंदा तो हूं पर हाथ नहीं है,
वरना मांग तेरी भरने वाला था।
आवाज तुमने भी दिया नहीं,
वरना मैं तो ठहरने वाला था।
ख़ैर, जहां भी रहो खुश रहो,
जिंदगी नाम तेरे करने वाला था।
देवेश साखरे ‘देव’
ज़िन्दगी आसान नहीं
December 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं,
हर कदम मुश्किलों से लड़ना है,
तो कभी हँस कर आगे बढ़ना है।।
ज़िन्दगी एक जंग से कम नहीं,
ख़ुद से, कभी गम से झगड़ना है,
जीत अपने दम पर ख़ुद गढ़ना है।।
यह जैसे सांप सीढ़ी का खेल है,
कभी सांप का जहर सहना है,
तो कभी सीढ़ी भी तो चढ़ना है।।
उतार चढ़ाव का नाम है जिंदगी,
कभी गहरी खाई में उतरना है,
तो कभी बुलंदी पर भी चढ़ना है।।
गुमराह करते हैं, लोग यहाँ पर,
तलवार नहीं, क़लम पकड़ना है,
अज्ञानता मिटाने के लिए पढ़ना है।।
देवेश साखरे ‘देव’
नज़रे-करम
December 26, 2019 in ग़ज़ल
मोहब्बत की कर नज़रे-करम मुझ पर।
यूँ ना बरपा बेरुख़ी की सितम मुझ पर।
तेरी मोहब्बत के तलबगार हैं सदियों से,
अपनी मोहब्बत की कर रहम मुझ पर।
न मिलेगा मुझसा आशिक कहीं तुझे,
तेरी तलाश कर बस ख़तम मुझ पर।
तोड़ दे गुरूर मेरा, गर तुझे लगता है,
पर ना तोड़ अपनी क़लम मुझ पर।
एक तू ही है, नहीं कोई और जिंदगी में,
आज़मा ले, पर ना कर वहम मुझ पर।
देवेश साखरे ‘देव’
एहसास
December 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी एहसास तू है।
मेरी हर सांस तू है।
यहीं है, तू यहीं कहीं है,
मेरे आस-पास तू है।
मेरी जज़्बात तू है।
मेरी कायनात तू है।
कटे न एक पल तुझ बिन,
मेरी दिन-रात तू है।
तुझसे शुरू, तुझपे ख़त्म,
मेरी तलाश तू है।
मेरी एहसास तू है।।
मेरा क़रार तू है।
मेरा प्यार तू है।
बंद आँखें, कर सकता हूँ,
मेरा एतबार तू है।
ख़ुद से ज्यादा यकीं तुझपे,
मेरा विश्वास तू है।
मेरी एहसास तू है।।
मेरा ज़हान तू है।
दिलो-जान तू है।
हर जनम तुझे ही पाऊँ,
मेरा अरमान तू है।
न चाहा कुछ और, तेरे सिवा,
मेरी आस तू है।
मेरी एहसास तू है।।
मेरी हमराज तू है।
मेरी दिलसाज तू है।
मुझ बेज़बाँ की तू आवाज़,
मेरी अल्फ़ाज़ तू है।
नहीं कोई आरज़ू ज़िन्दगी से,
मेरे पास तू है।
मेरी एहसास तू है।।
मेरी बंदगी तू है।
दिल की लगी तू है।
मय बुझा नहीं सकती,
मेरी तिश्नगी तू है।
दरिया ने भी प्यासा ही रखा,
मेरी प्यास तू है।
मेरी एहसास तू है।।
देवेश साखरे ‘देव’
तुम पास नहीं
December 24, 2019 in ग़ज़ल
वाह रे कुदरत तेरा भी खेल अजीब।
मिलाकर जुदा किया कैसा है नसीब।
जब सख्त जरूरत होती है तुम्हारी,
तब तुम होती नहीं हो, मेरे करीब।
सब कुछ है पास मेरे, पर तुम नहीं,
महसूस होता है, मैं कितना हूं गरीब।
या खुदा, ये इल्तज़ा करता है ‘देव’,
वस्ले-सनम की सुझाओं कोई तरकीब।
देवेश साखरे ‘देव’
नागरिक संशोधन बिल
December 23, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये कुछ नहीं गंदी राजनीति का किस्सा है।
पता ही नहीं वो क्यों भीड़ का हिस्सा हैं।
ये जो लोग सड़कों पर उतर आए हैं।
असली चेहरा दुनिया को दिखाए हैं।
शरणार्थी तो देश के नागरिक नहीं, पर
नागरिक भी क्या देशभक्ति निभाएँ है।
जो नागरिक हैं, उन पर तो कोई आँच नहीं,
फिर बेवजह वो किस बात पर गुस्सा हैं।
ये कुछ नहीं गंदी राजनीति का किस्सा है।
पता ही नहीं वो क्यों भीड़ का हिस्सा हैं।
बपौती समझ क्यों राष्ट्र संपत्ति फूंक रहे।
अपने संस्कारों पर वह स्वयं ही थूक रहे।
बात नागरिकता संशोधन की है, फिर क्यों
धर्म के नाम पर सियासी रोटियाँ सेंक रहे।
देश बर्बाद करने खेल रहे हैं, धर्म के नाम पर,
राजनीति का खेल खींच-तान एक रस्सा है।
ये कुछ नहीं गंदी राजनीति का किस्सा है।
पता ही नहीं वो क्यों भीड़ का हिस्सा हैं।
देवेश साखरे ‘देव’
अफ़सोस
December 22, 2019 in ग़ज़ल
किसी को देख, ना कर अफ़सोस ।
यूँ ना अपनी किस्मत को तू कोस ।
भले ही तन से नहीं हैं हम पास,
भले ही ना ले सकूँ तुझे आगोश ।
पर मन तो एक दूजे के पास ही है,
दिल की सदा सुन, ज़ुबां है ख़ामोश।
ख़ुदा ने एक दूजे के लिए ही बनाया,
आंखें मूंद, नज़र आएगी फ़िरदौस।
देवेश साखरे ‘देव’
सदा- आवाज़, फ़िरदौस- स्वर्ग
क्या लीजिएगा
December 21, 2019 in ग़ज़ल
कहिए हुज़ूर और क्या लीजिएगा।
दिल तो ले चुके अब जाँ लीजिएगा।
तुम्हें हमसे मोहब्बत है या फिर नहीं,
फैसला जो भी लो बजा लीजिएगा।
मेरी ज़ुबाँ पर बस एक तेरा ही नाम,
नाम मेरा भी तेरी ज़ुबाँ लीजिएगा।
डूब ना जाऊँ कहीं गम के पैमाने में,
जाम आँखों से छलका लीजिएगा।
खो ना जाऊँ ज़हाँ की भीड़ में कहीं,
अपनी आगोश में समा लीजिएगा।
‘देव’ जीना मरना रख छोड़ा हाथ तेरे,
गर साथ जीना हो तो बचा लीजिएगा।
देवेश साखरे ‘देव’
बजा- ठीक,
विरान सहरा
December 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
विरान सहरा, चढ़ता सूरज,
और ये तन्हाई।
दूर तक पानी का कोई निशान,
देता नहीं दिखाई।
शायद ये आखरी सफर है, बस
हर पल तेरी याद आई।
देवेश साखरे ‘देव’
गलतफहमी
December 19, 2019 in ग़ज़ल
तीरे-नज़र से दिल जार-जार हुआ।
ऐसा एक बार नहीं, बार-बार हुआ।
देख उनकी तीरे-निगाहें, ऐसा लगा,
कि उन्हें भी हमसे, प्यार-प्यार हुआ।
करीब आते, हकीक़त से वास्ता पड़ा,
मोहब्बत नहीं, दिल पे वार-वार हुआ।
जिंदगी की रहगुज़र में ‘देव’ अकेला,
ना कोई हमसफर, ना यार-यार हुआ।
देवेश साखरे ‘देव’
पूस की रात
December 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।
पत्तों से ओस की बूँदें टपकना याद है मुझे।
आँखों से आँसूओं का बहना याद है मुझे।
सन्नाटे को चीरती, तेज धड़कनों की आवाज़,
ख़ामोश ज़ुबाँ, कुछ ना कहना याद है मुझे।
हमारे मोहब्बत के गवाह थे जो सारे,
नदारद हैं वो चाँद तारों की बारात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।
कोहरे से धुंधला हुआ वो मंज़र याद है मुझे।
चीरती सर्द हवाओं का ख़ंज़र याद है मुझे।
छुटता हाथों से तेरा हाथ, जुदा होने की बात,
प्यार का चमन, हो चला बंजर याद है मुझे।
तेरी जुदाई का गम रह-रह कर,
हृदय में टीस कर रही कोई बात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।
बगैर तुम्हारे रहने का गम रुला गई मुझे।
फिर गुज़रे लम्हों की याद दिला गई मुझे।
फिर से आई है, वही पूस की काली रात,
न जाने कहाँ हो तुम क्यों भूला गई मुझे।
यादों के समंदर में डूबता जा रहा,
मेरे काबू में नहीं हैं, मेरे जज़्बात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।
देवेश साखरे ‘देव’
झंझावात- तूफान
तिजारत बन गई है
December 17, 2019 in ग़ज़ल
तालीम और इलाज, तिजारत बन गई है।
कठपुतली अमीरों की, सियासत बन गई है।
मज़हबी और तहज़ीबी था, कभी मुल्क मेरा,
वह गुज़रा ज़माना, अब इबारत बन गई है।
लोग इंसानियत की मिसाल हुआ करते कभी,
आज दौलत ही लोगों की इबादत बन गई है।
धधक रहा मुल्क, कुछ आग मेरे सीने में भी,
दहशतगर्दों का गुनाह हिक़ारत बन गई है।
यहाँ कौन सुने दुहाई, कहाँ मिलेगी रिहाई,
ज़ेहन ख़ुद-परस्ती की हिरासत बन गई है।
देवेश साखरे ‘देव’
तिजारत- व्यापार, इबारत- अनुलेख,
इबादत- पूजा, हिक़ारत- तिरस्कार,
ज़िन्दगी रंगीन हो जाता
December 16, 2019 in ग़ज़ल
कर गुज़रता कुछ तो, ज़िन्दगी रंगीन हो जाता।
जो किया ही नहीं, वो भी ज़ुर्म संगीन हो जाता।
मैं क्या हूँ, ये मैं जानता हूँ, मेरा ख़ुदा जानता है,
आग पर चल जाता तो, क्या यकीन हो जाता।
कुसूर बस इतना था, मैंने भला चाहा उसका,
काश ज़माने की तरह, मैं भी ज़हीन हो जाता।
तोहमतें मुझ पर सभी ने, लाख लगाई लेकिन,
ज़माने की सुनता गर मैं, तो गमगीन हो जाता।
नशे में जहाँ है, मैं भी गुज़रा हूँ, उन गलियों से,
सम्भल गया वरना, ‘देव’ भी शौकीन हो जाता।
देवेश साखरे ‘देव’
ज़हीन- intelligent,
मार गई मुझे
December 15, 2019 in ग़ज़ल
तेरी अदाएँ, तेरी नज़ाकत मार गई मुझे।
तेरी शोख़ियाँ, तेरी शरारत मार गई मुझे।
बेशक मोहब्बत है, पर डरता हूँ इज़हार से,
मेरी खामोशी, मेरी शराफ़त मार गई मुझे।
मैं करना चाहता था, अकेले दिल की बातें,
पर तेरे दोस्तों की, जमाअत मार गई मुझे।
तेरी नज़रें बहुत कुछ कहना चाही मगर,
मेरी नादानी, मेरी हिमाक़त मार गई मुझे।
दिल चाहता है तेरी धड़कने महसूस करना,
गले में तेरी बाहों की हिरासत मार गई मुझे।
देवेश साखरे ‘देव’
जमाअत- मंडली, हिमाक़त- बेवकूफी
ज़िन्दगी के फ़लसफ़े
December 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुद्दतें गुज़र जाती है, ज़िन्दगी के फ़लसफ़े समझते।
जब जिंदगी समझ आती, हाथ वक्त ही नहीं बचते।
खेल-कूद में बचपन बीता, जवानी मौज़-मस्ती में,
फिर सारी उम्र वो, दूसरों के टुकड़ों पर ही पलते।
बड़े-बुजुर्गों की समझाईश, या हो तजुर्बा ता-उम्र का,
जो भी नसीहत दें, वो सभी अपने दुश्मन ही लगते।
वक़्त गुज़र जाता है, पीछे पछतावा बस रह जाता,
वक्त पे वक्त को समझते, काश वक्त के साथ चलते।
देवेश साखरे ‘देव’
फ़लसफ़े- philosophy,
ज़िन्दगी से अनबन
December 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़िन्दगी से आज मेरी, हो गई कुछ अनबन।
हमेशा अपनी कहती, कभी मेरी भी तो सून।
ना ही दौलत मांगा, ना ही चाही शोहरत कभी,
क्या मांगा तुझसे, बस पल दो पल का सुकून।
कर लो सितम मुझ पर, जितना तेरे हद में है,
ना हारा कभी मैं, ना ही हारने देगा मेरा जुनून।
तुने अकेला कर दिया, फिर भी ना कोई गिला,
मेरे चाहने वालों पर है, तुझसे ज्यादा यकीन।
देवेश साखरे ‘देव’
सर्दी
December 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
रज़ाई ओढ़ जब चैन की नींद हम सोते हैं।
ठण्ड की मार सहते, ऐसे भी कुछ होते हैं।।
जिनके न घर-बार, ना ठौर-ठिकाना।
मुश्किल दो वक़्त कि रोटी जुटाना।
दिन तो जैसे – तैसे कट ही जाता है,
रूह काँपती सोच, सर्द रातें बिताना।
गरीबी का अभिशाप ये सर अपने ढोते हैं।
ठण्ड की मार सहते, ऐसे भी कुछ होते हैं।।
भले हम छत का इंतज़ाम न कर सकें।
पर जो कर सकते भलाई से क्यों चूकें।
ठंड से बचने में मदद कर ही सकते हैं,
ताकि इनकी भी ज़िन्दगी सुरक्षित बचे।
कर भला तो, हो भला का बीज बोते हैं।
ठण्ड की मार सहते, ऐसे भी कुछ होते हैं।।
ज़रूरी नहीं, युद्ध हर बार करना पड़े।
आहत होते कई बार जवान बगैर लड़े।
तत्पर वतन की सुरक्षा के लिए हमेशा,
ठण्ड में भी सरहद पर सदा होते खड़े।
खून भी जम जाए पर संयम नहीं खोते हैं।
ठण्ड की मार सहते, ऐसे भी कुछ होते हैं।।
देवेश साखरे ‘देव’
कोई भरोसा नहीं
December 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
मांगी थी चंद लम्हों की मोहब्बत,
जो मुझे तुमसे कभी मिला नहीं।
चंद लम्हों की ही यह जिंदगी है,
जिंदगी का भी कोई भरोसा नहीं।
क्या तुमसे मोहब्बत की उम्मीद करें,
जिंदगी से या तुमसे कोई गिला नहीं।
हम ही मोहब्बत के काबिल ना थे,
जो हमें कभी, तुमसे मिला नहीं।
लौटना मुश्किल, दूर तक चला आया,
दो कदम भी साथ तुमने चला नहीं।
देवेश साखरे ‘देव’
ज़माने का चित्र
December 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
देखो उभर कर ज़माने का कैसा चित्र आया है।
कल्पना से परे भयावह कैसा विचित्र आया है।
गले लगा कर पीठ में खंजर उतार दिया उसने,
मैं तो समझा मुझसे मिलने मेरा मित्र आया है।
साँस लेना है दूभर, फ़िज़ा में इतना ज़हर घुला,
साँसे बंद हुई तो जनाज़े पर लेकर इत्र आया है।
इंसानियत शर्मसार हो, कुछ ऐसा गुज़र जाता,
जब भी लगता कि अब समय पवित्र आया है।
चेहरे पर चेहरा चढ़ाये फिरते हैं, लोग यहाँ पर,
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, कैसा चरित्र आया है।
देवेश साखरे ‘देव’
मज़बूरी
December 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
रूह काँप जाती थी सोचकर, बगैर तेरे रहना ।
आज ये आलम है, पड़ रहा गमे-जुदाई सहना ।
इसे वक्त की मार कहूँ, या मज़बूरी का नाम दूँ,
गलत ना होगा, इसे जिंदगी की जरूरत कहना ।
किस दोराहे पर वक्त ने ला खड़ा कर दिया ‘देव’,
कुछ वक्त ने, कुछ तुमने, सीखा दिया तन्हां जीना ।
देवेश साखरे ‘देव’
यकीं तुझे दिला न सका
December 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुझे पाकर भी मैं पा न सका।
तेरे दिल में जगह बना न सका।
सोचता हमारे बीच कोई ना होगा,
जहां से अपना प्यार बचा न सका।
जाने से पहले थोड़ा जहर ला देना,
जिंदगी में किसी और को ला न सका।
मुझे अपना कर तुझे जो मलाल है,
इस बात का बोझ मैं उठा न सका।
किस नाकारा से तुमने नाता जोड़ा,
किसी सोच पर खरा उतर न सका।
हो सके तो मुझे माफ कर देना,
जिंदा लाश माफी मांगने आ न सका।
कहीं प्यार समझौता ना बन जाए,
समझौते को प्यार मैं बना न सका।
मुझे बेइंतहा मोहब्बत है तुमसे,
शायद यकीं तुझे मैं दिला न सका।
देवेश साखरे ‘देव’