Ekta
हर किसी के बस का नहीं
April 18, 2023 in Other
हर एक इंसान के चेहरे को पढ़ लेना, हर किसी के बस की बात नहीं।
निज स्वार्थ से ही फुर्सत नहीं मिलती, ठहर जाता मन स्वयं पर ही।
स्वरचित एवं मौलिक
–✍️ एकता गुप्ता*काव्या*
जय जय हो तेरी प्रभु जगन्नाथ सरकार
July 1, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
विषय –जगन्नाथ रथयात्रा
(*जय जय हो तेरी प्रभु जगन्नाथ सरकार*)
हरि बोल के जयकारों से
गूंज रहा सम्पूर्ण संसार
बजते ढोल नगाड़े मंजीरा,
जय जगन्नाथ स्वामी मंत्रोच्चार
रथ के लिए काष्ठ का चयन
होता बसंत पंचमी शुभवार
अक्षय तृतीया के पावन पर्व से
होता पावन रथों का निर्माण
छर-पहनरा अनुष्ठान है होता
जब होते तीनों रथ तैयार
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष में
द्वितीया की महिमा बड़ी अपार
ढोल नगाड़े तुरही बाजे मंजीरा
शंखध्वनि संग बाजे करताल
राजसी तलध्वज रथ पर बैठे
भ्राता श्री बलराम सरकार
दूजे दर्पदलन रथ पर बैठी
सुभद्रा मां करके श्रृंगार
नंदीघोष रथ पर हैं विराजे
प्रभु श्री जगन्नाथ सरकार
जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव
की शुभ मंगल बेला आई
जय घोष गूंज रही जग में
शोभा बड़ी मनोरम निराली
जगन्नाथ पुरी से चलकर
पहुंचेगी गुंडिचा द्वार
आगे- आगे बलदाऊ भैया
बीच में हैं सुभद्रा मैया
सोलह पहिये वाले रथ में
विराजें जग के पालनहार
जो भी भक्त श्रद्धा भाव से
भगवन् के रथ की करता सेवा
मोक्ष की प्राप्ति उसको होती
हो जाए भवसागर से पार
प्रभु करूं मैं तेरा सदा ही वंदन
करदो अल्पज्ञ एकता का बेड़ा पार
जय जय हो तेरी प्रभु जगन्नाथ सरकार
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—✍️ एकता गुप्ता “काव्या”
उन्नाव उत्तर प्रदेश
पिता की छांव
June 19, 2022 in गीत
विषय– पिता की छांव
मां-पापा हैं मेरे जीवन की पतवार
कैसे चुका पाएंगे हम अपने पापा के उपकार
चलना सिखाया पापा ने
मुझे गोद उठा दिखलाया संसार
एक साया बनकर चलते संग
मुझे खुशियां देते अपार।
पापा से शुरू मेरा जीवन
लाते हैं खुशियों की बहार
कभी डांट न मिली मुझको
बस पाया प्यार स्नेह दुलार।
पापा के साये में पलता
मेरा संयुक्त परिवार
पापा की हर सीख हमें करे
हर चुनौती से लड़ने को तैयार।
हर ख्वाहिश पूरी करते
करते मेरा जग उजियार
नमन करूं मैं अपने पापा को
पापा की छांव में है जीवन गुलजार।
हर कदम पर साथ देते मेरे
पापा के दिये गये संस्कार
जब तक जिंदगी, करूंगी बंदगी
पापा आपको नमन वंदन बारंबार
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—✍️ एकता गुप्ता “काव्या”
उन्नाव उत्तर प्रदेश
*आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम*
June 6, 2022 in Other
विधा– नारा लेखन*
🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
वसुधा को बनाएं फिर से रत्नगर्भा हम
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।
🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
सिर्फ एक दिन ही वृक्ष लगाने से न पूरा होगा कर्तव्य
पर्यावरण और हरित धरा बचाने को लुटाना है निज सर्वस्व
🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
एक अकेले से कुछ न होगा
हमें चाहिए सबका साथ
धरती मां की रक्षा को
मिलकर बढ़ाओ सब अपने हाथ
🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
स्वरचित एवं मौलिक
–✍️ एकता गुप्ता ‘काव्या’
पृथ्वी दिवस
April 22, 2022 in Other
आप सभी को पृथ्वी दिवस की हार्दिक बधाई एवं अनन्त मंगल शुभकामनाएं 🙏🙏🌹🌹
अपना सनातन नूतन वर्ष है आया लेकर अनंत खुशियां अपार
April 1, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपना सनातन नूतन वर्ष है आया
लेकर अनंत खुशियां अपार
करिए अभिनन्दन नववर्ष का
चहुंओर ले आएं प्रेम की बहार
दो पल का जीवन है मिला
यूं हीं मत करिए बेकार
वसुधैव कुटुंबकम् की महत्ता को
करना है हमको विस्तार
ज्ञान का दीपक हम जलाकर
मिटाएं मन का अंधकार
बड़े बुजुर्गों की आंखों से अब
और न बहने देंगें अश्रुधार
फैली कुरीतियों बुराइयों का
आओ मिलकर करें संघार
नैतिकता मानवता की राह चलें हम
करें अपनी गलतियों में सुधार
स्वयं जाग्रत हो, जागरूकता लाएं
करना है हमको सबसे सद्व्यवहार
मान बढ़ाएं अपनी संस्कृति का
खुशियों से भरा हो घर संसार
सार्थक करें मानव जन्म हम
ईश्वर का व्यक्त करें आभार
अपना सनातन नूतन वर्ष है आया
लेकर अनंत खुशियां अपार
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—✍️ एकता गुप्ता “काव्या”
उन्नाव उत्तर प्रदेश
*नारी तू नारायणी*
March 8, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
अबला बनकर रह लिया बहुत
अब स्वयं सबला तुम्हें बनना होगा
कभी पुत्री बहन मॉं पत्नी बन
सखा निभाती फर्ज सभी
हर फर्ज निभाया तुमने बखूबी से
निज पहचान बनाने को बढ़ना होगा।
कहीं अशिक्षा, घूंघट कहीं दहेज रुपी दानव की भेंट
इन कुप्रथाओं पर लगाम अब कसना होगा।
दकियानूसी कुरीतियों की जंजीरों में न उलझना
तोड़ इन कुप्रथाओं की बेड़ियों को नया मुकाम तुम्हें गढ़ना होगा।
सृष्टि का आधार तुम्हीं,
अस्तित्व बचानें को अपना
बेबसी लाचारी का भाव अब तुम्हें तजना होगा।
न आंएगे कोई चक्रधारी चीर बढ़ाने को तुम्हारा
होकर सशक्त सारथी भी स्वयं का बनना होगा।
ईश्वर भी तेरी मातृत्व शक्ति का यशगान करतें
नारी तू है नारायणी का प्रतिमान नया रचना होगा।
हे नारी! पहचानों अपनी शौर्य शक्ति
शिक्षित सशक्त सक्षम बन अंशुमान तुम्हें बनना होगा।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
–✍️ एकता गुप्ता “काव्या”
**कश्मकश** ( एक बेटी की अभिव्यक्ति)
January 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
जन्म लिया जब बेटी ने
खुशी थी घर में छाई,
घर में आनन्द मगन सब
घर की बगिया महकाई
खेलकूद कर बड़ी हुई
सुंदर सी शिक्षा पाई
बिखेर देती चहुंओर खुशियां
बनकर रहती मां की परछाई
दिन बीतते देर लगी न
विवाह की उम्र हो आई
मिल जाए कोई सुयोग्य वर
पिता ने घर-घर दौड़ लगाई
रिश्ता तय हुआ लाखों में
विवाह की मंगल बेला आई
चल रही बेटी के मन में
ये ****कश्मकश***
मैं भी तो मां की जाई
भाई लगता सबको अपना सा
मैं भी मां-पापा की बेटी
फिर मैं हुई कैसे पराई ?
फिर मैं हुई कैसे पराई
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—✍️एकता गुप्ता *काव्या*
*किताबें और कलम*
November 7, 2021 in मुक्तक
किताबें और कलम होती हैं हमारी मार्गदर्शिका*
हमारे जीवन में निभाती है महत्वपूर्ण भूमिका*
ताउम्र हम सीखते हैं इनसे, ये हैं हमारी विरासत
मानव विकास के लिए हैं सर्वोपरि दिग्दर्शिका*
–✍️एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
*सुख-दुख* तो लगा रहेगा साथी
October 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दो पल का है यह *स्वर्णिम जीवन* बाकी
*सुख दुख* तो लगा रहेगा साथी
नैतिकता* मानवता* सादगी* का गहना
पहनकर सत्कर्म* करो मेरे साथी
मत अभिमान करो इस तन पर
यह तन तो हो जाना एक दिन माटी
कर परोपकार*, सद्भावना* रख
अपनी अमिट पहचान बना ले ओ साथी*
स्वरचित एवं मौलिक रचना
–✍️एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
सिंहवाहिनी मां दुर्गा**
October 10, 2021 in हाइकु
सिंहसवारी
मां अष्टभुजाधारी
पालनहारी–१
ममतामयी
सौभाग्य प्रदायिनी
भवमोचनी–२
वरदायिनी
विमल मति देती
पीडा़ हरती–३
जगजननी
बारंबार प्रणाम
है प्यारा धाम–४
करूं विनती
मां झोलियां भरती
तुझसे सृष्टि–५
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—✍️एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
मां पापा इस जीवन की पतवार
July 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मां पापा तो मेरे इस जीवन की पतवार
नहीं चुका पाएंगे हम मां पापा के उपकार
मां से पाया जीवन और मिले संस्कार
पापा ने दी शिक्षा, दिखलाया है संसार
मां पापा से ही जीवन में है खुशियां
मां पापा से ही जीवन है उजियार
दिल ना दुखाओ कभी इनका भूल से भी
सेवा करना है सदा इनकी करना है सत्कार
सर्वस्व हम बच्चों पर
*आओ वक्त के साथ चलें*
July 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
समय तो है निरंतर गतिमान
आओ वक्त के साथ चलें ।
घंटों खड़े होकर आईने के सामने
सूरत को ही क्यों सजाते रहते
आओ अपनी सीरत को भी
हम निखारतें चलें ।
आओ वक्त के साथ चलें ।
परिस्थितियां सम भी होती और विषम भी
परिस्थितियों से घबराए बिना ,
उनका डटकर सामना करके चलें
आओ वक्त के साथ चलें ।
दो पल की है जिंदगानी मिली,
कब रुक जाए यह सांसे
तो क्यों ना सभी को
अपना बना कर चले
आओ वक्त के साथ चलें
स्वरचित एवं मौलिक रचना
—-✍️एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
प्रेरणा
June 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जीवन के हर मोड़ पर
नई चुनौतियां आती है
कहीं दे जाती है हार हमें
कहीं जीत दे जाती है ।
कहीं मिलती है समीक्षाएं
कहीं आलोचनाएं मिल जाती हैं ।
जीवन में मिली हर एक चुनौती
हम एक नई प्रेरणा दी जाती है ।
जीवन में मिली सुंदर सीख
हमें हमेशा प्रेरित कर जाती है।
प्रेरणाओ से प्रेरित होकर
हमें नया सृजन कराती है ।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
——✍️ एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश
जिंदगी हैरान करती है*
June 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
रूठ जाते हैं जब
कभी सब अपने
जिंदगी परेशान करती है
भटक जाते हैं जब
राही अपनी मंजिल
जिंदगी इम्तिहान लेती है
बिखरते हैं जब
सपने
अपनों की नजरें ही
हैरान करती है
नहीं दिखता कोई साथी
जिंदगी हैरान करती है
—✍️एकता गुप्ता “काव्या”
अहंकार
June 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
प्रजापति दक्ष हो या
हिरना कश्यप सा राजा
विद्वान रावण हो या
हो कौरव वंश का कुनबा
इनके हनन का भी
अहंकार ही बना संघारक ।
युगो युगो से अहंकारियों
का क्या हश्र हुआ ?
क्यूं भूल गया तू उनका कारक?
दम्भ को रख जीवन में
क्यों जीता है तू बन कर चातक ।
जीवन प्रगति में मनुष्य का
अहंकार बहुत बड़ा है बाधक ।
अहंकार को त्याग कर
मानवता का मान रख ,
बन जा तू फिर से जातक ।
त्याग दुरूह दुर्गम
श्रेयपथ की यात्रा ,
चल प्रेम स्नेह की डगर
बन जा तू प्रेम का साधक
—✍️एकता गुप्ता “काव्या”
रात सोती क्यों नहीं
May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
थक जाते है ये मानव तन
थके हारे है सबके मन
सुलाती गोद में सबको
रात तू सोती क्यों नहीं ?
सितारे गगन में टिमटिमाते
करता तो तुझसे चांद भी बातें
रात तू रहती मुस्कुरा के
मिटा कर सब की थकान
रात क्यों थकती नही
तेरा स्पर्श मीठा सा
सुबह तक भी आंखें खुलती नहीं
रात तू सोती क्यों नहीं ?
—-✍️एकता
ना करें पलायन
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जरूरतमंद आए नजर
तो न करें
वहां से
‘पलायन’
करें मदद उसकी
दें कुछ
उसे ‘उपायन’
निज तन से
करी मदद उसकी
ना करें
चहुंओर ‘गायन’
अपने संग दूजे का
होता रहे ‘कलायन’
कदम बढ़ाए
हम सब संग में
जहां हो ‘मंगलायन’ ।
__✍️एकता गुप्ता ‘काव्या’
मेरी ख्वाहिश इतनी सी
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कहीं लाऊं मैं खुशियां
कहीं खुशनुमा माहौल लाती हूं
कभी लिखती हूं कविताएं
कभी भजन गुनगुनाती हूं
चहुंओर बरसे प्रेम, स्नेह
ऐसी बहार लाती हूं
हो रही स्पर्धा में
अपनों को जिताने में
चलो मैं हार जाती हूं
मेरी ख्वाहिश इतनी सी
सभी का स्नेहिल
आभार चाहती हूं
__✍️ एकता
सावन परिवार अनूठा है
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
साहित्य एक विधा है
न कुछ दिनों की संविदा है
लिखूं कुछ ऐसा
जिसकी सबको प्रतिक्षा है
कहीं मिले आलोचना
कहीं मिले सुंदर समीक्षा है
अभी मैं हूं एक ‘नन्हीं कलम’
पर आकाश छूने की उत्कंठा है
ना चाहूं किसी से हार जीत
ना कोई प्रतिस्पर्धा है
मिलता रहे सभी का सानिध्य हमें
क्योंकि सावन परिवार अनूठा है
—✍️ एकता
प्रकृति का सुंदर सवेरा
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिन पर दिन दिखा रही
प्रकृति रौद्र रूप
फिर भी हम कर रहे
प्रकृति की अवहेलना
अभी भी मानव ने
नहीं बंद किया
प्रकृति से खेलना
गर अभी नहीं सचेते
रे मानव
ना जाने क्या-क्या
पड़ेगा झेलना ??
करें कुछ अच्छे कृत्य
प्रकृति को शांत
हम सब चाहें
प्रकृति का सुंदर सवेरा देखना
–✍️एकता
जिस डाल पर बैठा मानव काट रहा वही डाल
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
है कितना मूर्ख मानव ??
बैठा जिस डाल पर
काट रहा वही डाल है
यदि कोई गरीब
उसे समझाएं
उस गरीब की उधेड़
देता खाल है
पैसे कमाने के होड में
भूल गया अच्छा बुरा
काली कमाई की
अब ना संभाल है
पैसों के ढेर पर बैठा
नोच रहा खुद के बाल है
खुद के ही नियम बनाएं
खुद ही उठा रहा सवाल है
–✍️एकता
बूढ़े मां बाप की व्यथा
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दो वक्त की रोटी भी
ना दे सके वो बच्चे
“उनको” (बूढे मां-बाप )
जिनके खातिर
‘खुद’ का जीवन
लगा दिया कमाने में
उस घर में एक
कोना भी ना
” उनका”
“जिन्होनें” सारी उम्र
निकाल दी
‘ घर को घर ‘
बनाने में
बूढ़े मां बाप ने
गरीबी में
पाल लिए पॉच बच्चे !
इन्ही बच्चो ने
बूढ़े मां बाप को
छोड़ दिया
बेबस लाचार जमाने में
–✍️एकता
मानवता
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मानवता का मत
हनन करो
ईर्ष्या द्वेष नफरत को
अब दफन करो
ना जाने कब
रुक जाएं यें सांसे ?
अब तो अच्छे
कर्म करो
खुद में जगाकर
मानवता
प्रेम से रहने का
जतन करो
संसार में सुंदर
छवि हो अपनी
इस पर भी
कुछ मनन करो
_✍️ एकता
नेताओं के बेटे क्यों नहीं बनते सिपाही
May 20, 2021 in Other
नेताओं के बेटे
क्यूं नहीं बनते सिपाही ?
माना की राजनीति
उन्होंने विरासत में पाई
युवा नेता खुद को बताकर
करते रहते तानाशाही
यदि शहीद कहीं पर
हो जाए कोई सैनिक
ढाँढस बंधाने के नाम पर
अपनी-अपनी पार्टियो की
करते रहते वाहवाही
क्यूं नेताओं के बेटो ने
राजनीति ही अपनानी चाही
कभी किसी नेता के बेटे ने
ना सरहद पर गोली खाई
सवाल यही उठता है जेहन मे
नेताओं के बेटे
क्यूं नहीं बनते सिपाही
_✍️एकता
अच्छे दिन आएंगे मितवा
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आई है जब से महामारी ये मितवा
हर तरफ का मंजर दुखदाई है मितवा
न हर्षित मन न पुलकित तन
गुनगुनाया जाये न कोई गीतवा
सरकार अऊ डॉक्टर देते एकै संदेशवा
‘दो गज दूरी’ और ‘मास्क जरूरी’
‘घर पर रहो’ हाथ सैनिटाइज’ करो
रखौ पूरी तैयारी रे मितवा
आए जब वैक्सीनेशन की बारी
टीका लगवाना जरूरी रे मितवा
मिलना नही जरूरी है इतना
तुम्हारा सबके बीच होना ज़रूरी है मितवा
इस महामारी के काले बादल छट जाएंगे मितवा
मन में रखों विश्वास
अच्छे दिन आयेंगें मितवा
__✍️ एकता
मिठास कहां
May 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब मिठास बची कहां
ना रिश्तो में
ना नातों में
ना अपनों की
बातों में
कड़वाहट के बीज
बोयें जा रहे
ना जाने कहां-कहां ?
अब मिठास बची कहां ?
बातें भी शुरू होती
सिर्फ तानों से
तानें तो ऐसे
नासूर होते
बस प्यार बचा है
अपने ही प्राणों से
होता मतलब जब
बस दो बूंद टपकती
मिठास वहां
–✍️–एकता
मन बड़ा चंचल
May 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह मन बड़ा चंचल
कभी डोलता इधर
कभी डोलता उधर
ना जाने कब हो जाए किधर
कभी दूजे की
कभी अपनी फिकर
मन में चलता रहता उछल-पुथल
कभी रहती सद्भावना
कभी रहता स्वार्थ
कभी सोचे मुनाफा
कभी काज करे परमार्थ
कभी होता अधीर
कभी हो जाता विह्वल
यह मन बड़ा चंचल
–✍️ –एकता
जब से आया मानव जीवन में दूरसंचार
May 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आप सभी को विश्व दूरसंचार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मैं और मेरी कलम
May 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जुल्म सितम बढ़ रहा था हर तरफ
मै हुयी बिल्कुल अकेली
ना कोई पास मेरे
ना कोई साथ मेरे
किससे करूं हंसी ठिठोली
तभी नजर आई मुझे कलम
कलम बोली मुझसे
क्यूँ रहती हो अकेली
कर लो मुझे से दोस्ती
मुझे बना लो अपनी सहेली
मैंने भी झट से करी कलम से दोस्ती
कलम बन गई मेरी सहेली
मिला कलम का जब से साथ
सुलझा सकती हूं हर एक पहेली
—–✍️एकता
ना बिखरे कोई परिवार
May 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
सावन परिवार के सभी सदस्यों को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।।
ना पड़े रिश्तो में कोई दरारें
अब न टूटे न बिखरे कोई परिवार
मिलता रहे सभी को
अपनों का स्नेह और प्यार
जात-पात का भेद मिटे
सब साथ रहकर आगे बढ़े
बनाये रिश्तें नातों से भरा संसार
चाहे अपने हो या हो बेगाने
सबके लिए रहे उदार
जहां दिलों में प्रेम स्नेह हो
भरे होने का विचार
जोड़कर दिलों को
फिर से व्यक्त करें आभार
ऐसे ही हिल मिल कर रहे हम सब,
और जुड़ा रहे सावन परिवार
—✍️एकता गुप्ता
बच्चों को कराएं अपनी संस्कृति का ज्ञान
May 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कविता का संपूर्ण सार
उद्देश्य-कविता के माध्यम से बच्चों को संस्कृति का ज्ञान कराना
बच्चों को कराएं अपनी संस्कृति का ज्ञान
May 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
इक्कीसवीं सदी के बच्चे हैं अपनी संस्कृति से अंजान,
रामचरितमानस हो या हो भगवत गीता,इनका तनिक भी नहीं ज्ञान,
पूछा कुछ बच्चों से…..
कौन था रावण और कौन थे श्री राम,
कौन थी अपनी सीता माता कौन थे हनुमान,
बच्चे जवाब न दे पाते इनकाे तनिक भी नहीं ज्ञान,
कौन थे सुदामा कौन थे कृष्ण भगवान,
कौन थी राधा रानी कौन थे वृषभान
बच्चे कुछ नहीं जानते इनकाे तनिक भी नहीं ज्ञान,
कौन है गिरोह बजरंगी भाईजान
होकर सनाथ हम देखे जहान
May 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हे ईश्वर हम सब तेरी ही संतान
करती हूं प्रार्थना इतनी सी,
प्रभु दे दो वरदान
मत छीनो हम बच्चों से
मां पापा के साए
लौटा दो अपने बच्चों की
फिर से मुस्कान
मत छीनो ,क्षीण हो रही जो सांसे
सबका जीवन हो फिर से हो आसान
ताकि होकर सनाथ हम सब बच्चे
देख सके ,
आप का बनाया हुआ सुंदर सा जहान
—✍️एकता गुप्ता ”काव्या”
एक कोशिश बिना मोमबत्ती बुझाए जन्मदिन मनाने की(२)
May 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
सगे संबंधियों को भी बुलाते हैं
केक काटने से पहले मोमबत्ती भी बुझाते हैं
पर यह क्या ??
जिस कुलदीपक और घर की लक्ष्मी की खातिर
मंदिरों में दिए जलाते हैं
जिन के खातिर पूजा में आरती के हम थाल सजाते हैं
हम नये फ़ैशन मे जलती हुई मोमबत्तियाँ बुझवाते है
बुझा कर हम उस मोमबत्ती को यह कैसी रस्म निभाते हैं ??
भूल कर अपने रीति रिवाजो को
विदेशी फैशन क्यूं अपनाते हैं??
आओ एक कोशिश करें
मोमबत्तियां ना बुझाएं
मोमबत्तियाँ भी जलने दे ,
उन्हें अलग थाल में सजायें
बिना बुझाये मोमबत्तियों को
अपने बच्चों के जन्मदिन मनाएं
—✍️–एकता
एक कोशिश बिना मोमबत्ती बुझाए जन्मदिन मनाने की
May 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेटी को घर की लक्ष्मी और बेटे को घर का कुलदीपक बुलाते हैं,
आए जब भी बेटी और बेटे का जन्म दिवस,
बड़ी धूमधाम से जन्मदिन मनाते हैं,
हुई सजावट रंग-बिरंगे गुब्बारों से,
मंगाया सुंदर सा केक,केक पर मोमबत्तियां भी जलाते हैं,
दादी बुआ चाची ताई
कौन विछिप्त है??
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
रास्ते से एक विछिप्त महिला थी गुजर रही,
याकायक मेरी नजर पड़ी,
चली जा रही थी अपनी धुन में,
ना जाने क्या थी बड़बड़ा रही,
कुछ बच्चों ने उस पर पत्थर चलाएं,
कुछ बच्चे उसे चिल्लाकर डरा कर दौड़ाए,
बच्चे तो बच्चे ,संग बड़े बूढ़े भी उसके मजे उठाएं,
अचानक से एक महापुरुष उसकी मदद को नजर आए,
जो डांट कर बच्चों को भगाएं,
बोली उस विक्षिप्त महिला से,’खाना खाओगी’
बड़े ही ढंग से बाहर बिठाकर स्त्री को खाना खिलाएं,
वहीं दूसरी तरफ बनकर दलाल उस स्त्री की सौदेबाजी कराएं,
पर हम यह ना समझ पाए कि उस आदमी,ने न जाने कितने मुखौटे लगाए,
महापुरुष की महानता तो नजर आए,
पर उसकी दलाल गिरी समझ ना पाए,
आखिर विक्षिप्त हुई तो क्या हुआ,किसने अधिकार दिया कि उसके सौंदर्य पर दाग लगाएं,
वो स्त्री भी मानवता की भूखी प्यार और स्नेह चाहे,
यह कोई एक विछिप्त स्त्री की बात नहीं,
यह तो हो रहा हर गली हर शहर हर चौराहे,
पर समझ ना पाया उसका विछिप्त होना श्राप है,
क्या हम देख कर भी देखना नहीं चाहते,दानव रूपी दलाल का पाप है।।
–✍️एकता—
एक दिन का मातृ दिवस(२)
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक ही घर में चार चूल्हे रख लिए,
मां को निकाल बाहर करो,करो नई गृहस्थी की शुरुआत,
जिस मां की उंगली थाम दुनिया देखी,
उस मां को साथ लेकर चलने में आज बेटे भी शर्मात हैं,
वाह भाई क्या बात है,
365 दिन में सिर्फ एक ही दिन क्यों मनाए मातृ दिवस,
365 दिन में रोज अपनी मां को सम्मान और प्यार देकर मनाए मातृ दिवस,
तब तो भाई कुछ बात है।।
–✍️एकता–
एक दिन का मातृ दिवस
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
वाह भाई क्या बात है,
पर समझ ना पाया आदमी की क्या औकात है,
सुबह से मना रहे मातृ दिवस,स्टेटस पर स्टेटस लगा रहे,
व्हाट्सएप, इंस्टा, फेसबुक, शेयर चैट, कुछ भी बाकी नहीं
भेज दिया बूढ़े मां बाप को वृद्ध आश्रम,दिखावे में मातृ दिवस मना रहे,
मां-बाप को जलील करने में,कोई कसर छोड़ते नहीं,
बिल्कुल भी ना पछताते हैं,
वाह भाई क्या बात है,
खुद को मिटाया जिस मां ने बेटों के खातिर,
नई गृहस्थी बसाई मां ने अपने बेटों के खातिर,
पता नहीं था मां को बहुएं आ गई शातिर
जन्मदात्री “मां”
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मां मेरी इल्तजा, मां मेरी प्रार्थना,
मां की ममता का मोल चुका पाऊं ना,
मां वेद भी है,मां पुराण भी है,
मां है ईसा की बाइबिल,मां मोहम्मद की कुरान है,
मां का प्यार असीम है मां की ममता को तोल पाऊं ना,
मां की ममता का मोल चुका पाऊं ना,
मां क्षमा की प्रतिमा, मां दयालुता की मूरत,
भगवान ने एक मां को ही दी अपनी सूरत,
मां बनकर सूरज बच्चों के जीवन में उजाला करें,
छू भी पाए कहीं हमें अंधकार ना
नई वेबसाइट के शुभारंभ पर सावन मंच का आभार
May 8, 2021 in Other
काव्य की शोभा बढ़ाने को सावन ने लिया नया अवतार,
हमेशा नई ऊंचाइयां छूता रहे हमारा सावन परिवार,
ह्र्दय से करती अभिनंदन,सबका व्यक्त करती आभार,
धन्यवाद है बड़ा छोटा सा शब्द,एकता का अभिवादन करो स्वीकार,
करती हूं प्रार्थना ईश्वर से,
हमेशा स्वस्थ और खुशहाल रहे हमारा सावन परिवार।।
हम सबका भविष्य बेटियां
May 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कैसी यह जमाने की सोच हुई,
जब कोख में बेटियां मारी जाती है,
तो क्यों नवरात्रि में दिखावे के लिए,
कन्या पूजी जाती है??
मां चाहिए, पत्नी चाहिए,बहन चाहिए,
ये वक्त भी बीत जाएगा
May 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक दिन मधुसूदन ने,पार्थ को था विचलित देखा,
मन बड़ा व्याकुल और व्यथित देखा,
पूछते मधुसूदन,पार्थ!कहो क्या है बात ,
बोले पार्थ, हे मधुसूदन,ऐसा बतला दो कोई राज,
यदि बड़ा प्रसन्न मन हो जाए,
करो कुछ ऐसा कि प्रसन्नता छुप जाए,
यदि बड़ा दुखी मन हो जाए,करो कुछ ऐसा चमत्कार जो दुख के बादल छंट जाएं,
दिया मधुसूदन ने पार्थ को जवाब,
“ये वक्त भी बीत जाएगा” यह रखो हमेशा याद
बस इस जीवन के सुख दुख का यही है राज
इतना ही समझ लो तुम हे पार्थ।।।
ऐसी स्थिति हम सब के साथ भी बनी है आज
बनना होगा हम सब को भी पार्थ
कान्हा की स्तुति करें सब साथ
धन्वंतरि जी को भी करें याद
ईश्वर पर रखें अपना विश्वास
सोचे हम सब मिलकर साथ
“”ये वक्त भी बीत जाएगा””
—-✍️— एकता
क्यूं नहीं समझते
May 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम क्यूं नहीं समझ पाते हैं मजदूरों की लाचारी को,
उधारी का ठप्पा लगाकर
ना देते पैसे मजदूरों की दिहाड़ी को,
मजदूर दिवस मनाने को तो कर दी शुरुआत,
ना मजदूरों की मजबूरी को ना जानना चाहा,
ना करी कभी प्यार से बात,
बस सत्ता के मद में चूर हो लजाते इनकी मजबूरी को,
हम क्यूं नहीं समझ पाते मजदूरों की लाचारी को।
असीम मेहनत करते,खूब पसीना बहाते,
दिन भर की मेहनत करके, तीन सौ रूपये की पगार बस पाते,
घर में यदि कोई बीमार हुआ,
पगार तो सब खत्म हुई थोड़ा और उधार लिया,
ज्यादा से ज्यादा मेहनत कराते,
परेशान करते उसको,कहकर ली गई उधारी को,
हम क्यूं नहीं समझ पाते मजदूरों की लाचारी को,
आज आई जैसे 1 मई मनाने लगे सब मजदूर दिवस,
मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठा,मत करो उन्हें अब और विवश,
मजदूरों की मेहनत को समझो,हथियार मत बनाओ उसकी कमजोरी को,
हम क्यूं नहीं समझ पाते मजदूरों की लाचारी को।।
—–✍️–एकता—
वक्त के रंग
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
वक्त कब क्या रंग दिखाए हम नहीं जानते
वक्त के दिए हुए जख्म कैसे मिटाएं हम नहीं जानते
क्या पता था उस देवकी को,
जिस डोली में बिठाकर ,विदा कर रहे थे कंस
याकायाक उसे कारावास ना भेजतें
वक्त कब क्या रंग दिखाए हम नहीं जानते
क्या पता था उस राम को ,
जिसे रात में राज्य मिलने वाला था ,
उन्हे सुबह बनवास ना भेजतें
वक्त कब क्या रंग दिखाए हम नहीं जानते
क्यों रौब झाड़ते फिर रहे अपनी कमाई दौलत शोहरत पर
कुछ अपनी ऐसी छवि बनाए ,
ताकि लोग भी मजबूर हो जाए
आंसू बहाने के लिए हमारी भी मय्यत पर
सुना है मैंने , अच्छे लोगों को लोग नहीं भूलते
सरकार पर तंज
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब नई सरकार बनानी हो , तो चलता महागठबंधन का चक्र है,
जब है महामारी अपने चरम पर पर बरसाती हर तरफ कहर है,
फिर भी मनाया जा रहा है लोकतंत्र का पर्व ,है तो चुप क्यों बैठा महागठबंधन इसका भी क्रीडाचक्र है,
जब तक ना बीता चुनाव तब तक खुली हर गली हर डगर है
पक्ष विपक्ष पर आरोप लगाती बस इसका ही तो जिकर है,
नेताओं को भी अपनी सत्ता से मतलब , कहां जनता की फिकर है,
आज संकट की घड़ी में कहां सो रहा महांगठबंधन बेफिकर है ,
बस अभी हो पाया है चुनाव , दिखने लगा एक बार फिर लॉक डाउन का असर है।।
–✍️एकता—
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस (भाग -२)
April 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आओ अपने भारत का भ्रमण कर ले,
बिसरी हुई नृत्यकला फिर से चित्रण कर ले,
दक्षिण भारत की नृत्य शैली है भरतनाट्यम,
अपने केरल की नृत्य शैली है मोहिनीअट्टम,
अपने उत्तर भारत का प्रमुख कत्थक नृत्य,
जो कभी श्री कृष्ण ने किया नटवरी नृत्य,
उड़ीसा में जगन्नाथ जी को समर्पित नृत्य ओड़िसी,
अपने आंध्र प्रदेश का प्रसिद्ध नृत्य कुचिपुड़ी,
मणिपुर और असम जाकर देखा नृत्य बिहू और मणिपुरी,
पहुंची गुजरात तो देखा गरबा और डांडिया,
उत्तराखंड का मन भाया नृत्य थडिया और छोलिया,
पहुंची राजस्थान जो देखा घूमर, झांझी,कठपुतली,
रऊ नृत्य जम्मू का देखा,गढ़वाल का नृत्य है गढ़वाली,
पहुंची महाराष्ट्र तो देखा, टिपरी कोली गोक नृत्य गौरीचा,
जाना हुआ पंजाब रोक न पाई खुद को,हमने भी कर लिया गिद्दा और भांगड़ा,
उत्तर प्रदेश का मनभावन है अंबर नीला,देखा सुंदर सा चट्टा नृत्य,थाली नृत्य,और रासलीला,
झारखंड में देखा छऊ नृत्य और देखा नृत्य फगुआ,
आज है नृत्य दिवस यह याद रखो बबुआ।
अपने कर्नाटक की संपन्न नृत्य शैली तो यक्षगान है,
अपने देश की सुंदर नृत्य शैली अपने भारत का सम्मान है।
सब मिल अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाए यह तो विश्व की शान है।
एकता की कलम कर रही आज नृत्यों का बखान है।।
—✍️—-एकता—
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस (भाग१)
April 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
नृत्य कला तो ईश्वर की कृपा से मिला हुआ वरदान है,
पर नृत्य को “नाच” कहकर संबोधित करना यह नृत्य कला का अपमान है।
नृत्य कला युगो-युगो से चली आई,
क्या इसका तुमको भान है?
चाहे कान्हा की हो नगरी ,या राम की हो अवध नगरी,
होता कोई उत्सव तो,नृत्य कर आनंदित होती जनता सगरी,
पूरे घट-वासी संग पशु-पक्षी भी झूमे,
करते सुंदर स्तुति नृत्यगान है।
क्यों हम भूल गए अपनी नृत्य कला,
क्यों हम इससे अनजान हैं,
आओ मनाले आज अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस,
यह संपूर्ण विश्व की पहचान है।।
–✍️–एकता—–
भले मानुष बनो
April 29, 2021 in मुक्तक
दिन पर दिन कर रहे व्यभिचार क्यों बढ़ा रहे हौं तुम ऐब,
खुद बीड़ी सिगरेट गुटखा खाए तम्बाकू पिये दारू, बच्चा खाए ना पावे एको सेब,
मक्कारी चोरी छल से ना धन जोड़िए , ना मिलिहै कफन में जेब,
उनका सबका पर्दाफाश करो ,जो तुम्हरा इस्तेमाल करि रहें अपनी रोटी सेंक,
कथनी करनी सब जन याद करिहै ,कहिहै तो बंदा रहै एक
व्यभिचार छोड़ भले मानुष बनो,इंसां बनो तुम नेक।।
—✍️–एकता—–