शायरी

July 8, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ऐसा तपा के सुन्न किया है तेरी तड़प ने
कि अब नहीं लगती मुझे गर्मी-सर्दी

शायरी

July 8, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ऊपर से टपक रही है छत
नीचे सीलन आ गई दीवारों में
दाम किसी काम के मिलते नहीं
चाहे हम खुद भी बिक जाएँ बाज़ारों में।

तेरे न होने का वज़ूद

September 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक तू ही है
जो नहीं है
बाकि तो सब हैं
लेकिन…
तेरे न होने का वज़ूद भी
सबके होने पे भारी है
मुझे भी जैसे
तुझे सोचते रहने की
एक अज़ीब बीमारी है।

नहीं कर सकता आंखे बंद
क्योंकि तेरा ही अक्ष
नज़र आना है उसके बाद
तब तक
जब तक मैं बेखबर न हो जाऊ
खुद के होने की खबर से
और अगर आंखे खुली रखूँ
तो दुनिया की फ्रेम में
एक बहुत गहरी कमी
मुझे साफ नज़र आती है
जो बहुत ही ज्यादा
चुभती चली जाती है
क्योंकि उस फ्रेम में मुझे
तू कहीं दिख नहीं पाती है।

-KUMAR BUNTY

SHAYARI

September 21, 2017 in शेर-ओ-शायरी

उसके चुप रहने का अंदाज़
बहुत कुछ कहता है
इशारो की बातें हैं
कोई लफ्ज़ भी
इतने सलीखे से नहीं कहता है।

अपने ही सूरज की रोशनी में

May 25, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने ही सूरज की रोशनी में

मोतीसा चमकता

औस का कतरा है आज़ वो

जो कल तक था

अंधेरे में जी रहा।

 

कितनो की आँखों का

तारा है आज़ वो

जो कल तक था

अज़नबी बनकर जी रहा।

 

दूसरो के कितने ही

कटे जख्मों को  है वो सी रहा

लेकिन अपने ग़मों को

अभी भी

वो खुद ही है पी रहा।

 

 

कितनी ही बार जमाने ने

उसे गिराया लेकिन

वो फिरफिर उठकर

जमाने को ही

सँवारने की तैयारी में

है जी रहा।

 

अपने दीया होने का

उसने कभी घमण्ड नहीं किया

तभी तो आज़ वो

सूरज सी चमक लेकर

है जी रहा।

 

 

जीवन कि दिशा पाकर

आज़ वो दुनियाँ को है जीत रहा

जो कल तक था

खुद से ही

हारा हुआ सा जी रहा।

 

अपनी मौत का भी

डर नहीं अब उसको

क्योंकि उसे मालूम हो गया

कि गडकर इन पन्नों पर

वो सदियों तक होगा जी रहा।

 

                                              –   कुमार बन्टी

 

 

ख़ुशी क्या है ?

May 25, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या सिर्फ

चेहरे पर बनी कुछ लकीरें

तय करती हैं ख़ुशी ?

या फिर

किसीके पूछने पर

ये कह देना

“मैँ खु़श हूँ”

इससे ख़ुशी का पता लग सकता है ?

  — KUMAR BUNTY

क्या लिखूँ ?

May 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिनरात लिखूँ

हर बात लिखूँ

दिल के राज़ लिखूँ

मन के साज़ लिखूँ।

 

अपने वो दिन बेनाम लिखूँ

लेकिन नहीं हुआ बदनाम लिखूँ

कितना बनकर रहा गुमनाम लिखूँ

इतना कुछ पाने पर भी

बनकर रहा मैं प्राणी आम लिखूँ।

 

मन तो मेरा कहता है

कि लगातार लिखूँ

और दिल भी पुकारता है

कि सबके सामने सरेआअम लिखूँ।

 

 

 

कितनों ने दिया साथ

और कितनों ने

दिखाया खाली हाथ

क्या वो भी लिखूँ।

 

वक़्त केसे पड़ गया कम

होते हुए भी मन में

समुद्रसी अनगिनत,

लेकिन हर धार नज़ारेदार

ये गुत्थी भी है मज़ेदार

दिल तो कहता है

ये भी लिखूँ।

 

कहां से लेकर कहां तक लिखूँ

जब मुझे आदि और अंत का

ज्ञान ही नहीं

किसकिस ज़माने की गाथाऐं लिखूँ

जब मुझे अबतक सही और गलत की

पहचान ही नहीं

 

और हां

तुम जो कोई भी हो

जो ये पढ़ रहे हो

उसके खातिर

उसे बिना जाने ही

आखिरखार क्या लिखूँ?

 

                                       कुमार बन्टी

 

                         

 

तू ही बता दे जिंदगी

May 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ खो गया है मेरा

या फिर

मैं खुद ही लुटा रहा हूँ

जिंदगी कहीं

चल तू ही बता दे जिंदगी

आज़ नहीं तो

कल किसी और मोड़ पे सही

मुझे कोई जल्दी नहीं

लेकिन तुम

इतनी भी देर मत करना

कि खो चुका हूँ मैं

खुद को ही कहीं।

                                                                                                                                                                                        कुमार बन्टी

 

लकीरों के बीच तस्वीर

May 17, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभीकभी

कागज पर खिंची

लकीरों के बीच भी

कोई तस्वीर

इस कदर से

जिंदा हो जाती है

कि जिसकी होती है

वो तस्वीर

उससे मिले बगैर ही

उससे मिलकर होने वाली बातें

उस तस्वीर से हो जाती है।

 

                                     कुमार बन्टी

 

सिर्फ मधु ही नहीं

May 17, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे होठों का

सिर्फ मधु ही

मुझे प्यारा नहीं

बल्कि प्यारी लगती हैं

वो कड़वी बातें भी

जो तुम कहती हो

क्योंकि वो होती हैं

हमेशा ही

मेरे भले की।

 

                                              –   कुमार बन्टी

 

QUOTES

May 13, 2017 in English Poetry

”Prepare for future

But just

Not so vast

That you might have lost

The present”

                                                         – KUMAR BUNTY

LIFE IS SO COOL

May 13, 2017 in English Poetry

Life is so cool

Because how easily it makes us fool

When it wants

And we can’t denied to it

Because we are actually so unaware about it

Till even it passes through

To me and also to you

 

HAPPINESS

May 13, 2017 in English Poetry

Happiness is just the way to get it

Someone who learnt

Can become expert

Who doesn’t, may be lost self

 

SHAYARI

May 12, 2017 in शेर-ओ-शायरी

उससे दोबारा होगी मुलाकात  क्योंकि गोल है दुनिया,

इस उम्मीद में इंतजार उसका आज़ भी बरकरार है।

SHAYARI

May 12, 2017 in शेर-ओ-शायरी

तेरे नैनों की किताबें पढ़ने की जिद्द पकड़ी है इस दिल ने,

तू अपनी पलकों का ये पहला पन्ना तो पलट दे।

SHAYARI

May 12, 2017 in शेर-ओ-शायरी

 

तुझसे  मिलने का  मुझे कोई  आसार भी नहीं दिखता।

लेकिन इंतज़ार तेरा करतेकरते मैं फिर भी नहीं थकता।

SHAYARI

May 5, 2017 in शेर-ओ-शायरी

साथ देने में मेरा

जिंदगी के दुखों का

कोई सानी नहीं

असल में तो

दुख के बिना

सुख का भी

कोई मानी नहीं।

                                                                          मानी= अर्थ

SHAYARI

May 5, 2017 in शेर-ओ-शायरी

तंग नहीं करता हूँ मैँ उसे आज़कल

ये बात भी तो  उसे  तंग करती है

SHAYARI

May 1, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कभीकभी सोचता हूँ

कि

कुछ देर

सोचना बंद कर दूँ।

SHAYARI

May 1, 2017 in शेर-ओ-शायरी

अंत तो तेरा भी वही होगा अंत मेरा भी वही होगा

लेकिन फर्क इस बात से पड़ेगा

कि किसकी जगह लेने वाला कोई नहीं होगा।

SHAYARI

April 30, 2017 in शेर-ओ-शायरी

 

साथी तो मेरे वो भी खूब रहे

जो लगातार मेरी तनकीद करते रहे

लेकिन अमलअंगेज़ तो मेरे वो बखूबी रहे

जो लगातार मुझसे कोई उम्मीद करते रहे।

तनकीद=आलोचना

अमलअंगेज़ = उत्प्रेरक

 

SHAYARI

April 30, 2017 in शेर-ओ-शायरी

 

जिंदगी की जंग  मुझसे जारी है

कभी मैं उसपे

तो कभी वो मुझपे भारी है।

SHAYRI

April 22, 2017 in शेर-ओ-शायरी

 

ज्ञानी को होता है एकांत पसंद

लेकिन किसीसे मिलने की तलब

मूर्खता का प्रमाण तो नहीं होता

कम से कम प्यार में तो नहीं होता।

SHAYRI

April 22, 2017 in शेर-ओ-शायरी

क्या नाम है उसका

कौन से देश से है वो

असल मे दिल देने वाला तो

सोचता ही नहीं इन सब बातों को।

SHAYARI

April 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी

है मुझे एक मर्ज़

लेकिन मुझे खौफ नहीं

क्योंकि है वो मर्ज़

बेखौफी का ही।

SHAYARI

April 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी

प्रेम के बारे में क्या बात करूँ

प्रेम की अभिव्यक्ति शब्दों मे कहां होती है

मिले सबको प्रेम वो अलग बात है

लेकिन प्रेम की चाह तो हरेक दिल में होती है।

कोई क्या करे तब….

April 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक़्ता भी क्या बोले

जब कोई उसे

ध्यान से

सुनने को तैयार नहीं।

 

लेखक भी क्यों लिखे

जब कोई कुछ

दिल से

पढ़ने को तैयार नहीं।

 

गायक भी कैसे गाए

जब कोई

सुरों की

कदर करने को तैयार नहीं।

 

आशिक़ भी अपने दिल को

क्यों खोले

जब उसका प्यार उसे

समझने को तैयार नहीं।

 

दर्द में भी कोई

क्यों चींखे

जब कोई उसकी

चींख सुनने को तैयार नहीं।

 

गम में भी कोई

कैसे रोए

किसीके आगे

जब कोई उसका गम

समझने को ही तैयार नहीं।

 

 

कोई कैसे जीए

जब जीने का कोई

सहारा ही नहीं

और तो और

उससे मिलना भी

किसीको गवारा नहीं।

 

इंसान किसे ढूँढे

जब उसे

खुद की ही

मालूमात नहीं।

 

                                  कुमार बन्टी

सीखता रहता हूँ मैं

April 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने

क्याक्या चीजें

लिखता रहता हूँ मैं

वक़्त की इस महँगाई में

खुद के ही हाथों

खुद को

बिकता रहता हूँ मैं

सब से दूर होकर

पता नहीं

किसके करीब

खुद को

खींचता रहता हूँ मैं

कईं बार तो

इसी वज़ह से

खुद पे ही

झींकता रहता हूँ मैं

लेकिन आखिर में

चाहे हार जाऊँ

या जीत जाऊँ

फिर भी

कुछ कुछ

सीखता रहता हूँ मैं।

 

                                                                      –        कुमार बन्टी

 

 

अधूरापन ये मेरा

April 9, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अधूरापन ये मेरा

क्या पता

मेरे भीतर

कोई आग जला दे

और फिर कभी

मेरे भीतर कोई

 कामयाब सूरज़ उगा दे।

 

                                    कुमार बन्टी

 

कौन मिलेगा कहां

April 8, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन जानता है

कि कौन मिलेगा कहां

देखौं

मैं तो हूँ यहां

और तुम हो

जाने कहां

लेकिन तुम

मिल रहे हो मुझसे

पढ़कर मेरी लिखी जुबां।

 

                               कुमार बन्टी

 

काबिल सदा

April 8, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बातें दिल की बयां करना
आसां नहीं इतना
लेकिन
अपनी सदा को
इतना काबिल तो
जरूरी है बनाना
कि डर से भी कभी
न पड़े डरना।

                                                                                                                                                  सदा= आवाज़
– कुमार बन्टी

कोशिश की राह

April 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं हारनी है हिम्मत

जब तक ये साँस हैं

क्योंकि मुझे

उम्मीद की चाह से ज्यादा

कोशिश की राह पे विश्वाश है।

 

                                      –   कुमार बन्टी

नफ़रत

April 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अमीर लोगों की अमीरी से

बड़े लोगों की बड़लोकी से

मुझे नफरत नहीं

मुझे नफ़रत है

उनके नखरों से

और मुझे ये भी मालूम है

कि जिन लोगों में

है ये नखरे

उन्हें ही नफ़रत होगी

मेरे इन अखरों से।

 

                                  कुमार बन्टी

 

दौड़ सी लगी है।

April 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

वर और वधू के लिए

जितनी दौड़ दिख रही है

उससे ज्यादा तो

लड़कों में गर्लफ्रेंड

और लड़कियों में

बॉयफ्रेंड के लिए

आजकल एक

दौड़ सी लगी है।

 

माँबाप से ज्यादा

भाई तो है ही कौन

पैसों के लिए

पता नहीं क्यों लगी है

लेकिन एक

दौड़ सी लगी है।

 

पत्नी व्यवहारकुशल हो

तो भी चलेगा

लेकिन अपने साथ वो

लाई है दहेज़ कितना

इस बात के लिए

आज़ भी एक

दौड़ सी लगी है।

 

गुरुशिष्य का रिश्ता

जो सबसे महान होता था

उसे औपचारिक बनाने खातिर

दोनो ही तरफ

पता नहीं क्यों

एक दौड़ सी लगी है।

 

 

ज्ञान से ज्यादा

खोखली सफलता ही

बस पाने खातिर

आज़ के

बहुत से विधार्थियों में भी

एक दौड़ सी लगी है।

 

नोट देकर

वोट लेने खतिर भी

आज़ के बहुत से नेताओं में

एक दौड़ सी लगी है।

 

भूलकर गुणवत्ता खानपान की

हटाकर आवश्यकता दिमाग की

नशे मे आयाम बनाने खातिर

और मन को मचलाने खातिर

आज़ के बहुत से युवाओ में

जो घिनौनी

लेकिन फिर भी

दिनदरदिन

एक दौड़ सी लगी है।

 

युवा देश है हमारा

कह रहा है ये जहान सारा

रख रहा है पैनी नज़र

कि इस देश के ये युवक

ले जाएँगे देश को

किस डगर

और किस कदर

लेकिन इन युवाऔं में तो

कामनियों के पीछे पागल होकर

खुद को खुद ही

कमजोर बनाने खातिर

एक बहुत ही निराशाजनक

दौड़ सी लगी है।

                                                      कुमार न्टी

दिन और रात का सपना

March 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिन में देखा सपना

रात को देखा सपना

रात का जब टूटा सपना

दिन में जगा हुआ पाया

लेकिन दिन का जब टूटा सपना

रात में भी सो पाया।

 

 

                                कुमार बन्टी

 

धागे-मोती

March 27, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोती को धागे से

और धागे को मोती से

जब तक होता नहीं प्यार

तब तक

उनकी नहीं बनती

कोई विशिष्ट पहचान।

 

 मोती=शब्द

 धागे=विचार

                                  कुमार बन्टी

 

दिन और रात का सपना

March 27, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिन में देखा सपना

रात को देखा सपना

रात का जब टूटा सपना

दिन में जगा हुआ पाया

लेकिन रात का जब टूटा सपना

दिन में भी सो पाया।

 

 

                                          कुमार बन्टी

 

टिकते वाले रिश्ते

March 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूँ तो रिश्ते

रोज़ ही बनते हैं

इस जहां में

कुछ टूट जाते हैं

कुछ बिक भी जाते हैं

लेकर बहाने तरहतरह के

लेकिन

टिकते हैं रिश्ते

वो ही

जिन रिश्तों में

दोनो पक्षों ने

वफा के अलावा

और कोई माँग

कभी की ही नहीं।

                                                        कुमार बन्टी

जिसको जरूरत होती है….

March 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसको जरूरत होती है

वही साथ चलता है

बिन जरूरत वाला तो बस

तनक़ीद करने को ही मिलता है।

 

अपना मतलब सोचे

दूसरे की मदद करते वक़्त

आज़ इस दुनियाँ में

ऐसा इंसान कम मिलता है।

 

जो दूर से दिखाती हैं निगाहें

पास जाकर छानने पर

वही मंजर

हर बार कब मिलता है।

 

बड़ीबड़ी नावें

पैदा करती है

दरिया में बहुत भारी हलकम

लेकिन अगर

डूब जाएँ वें कभी

तो उनका नामोनिशान कहां मिलता है।

 

खुदखुद

पा लेता है

वो अध्द्भुत औषधि

जो अपने घावों से पहले

दूसरो का जख्म

बखूबी सिलता है।

 

और

तब क्या गम होगा

किसीके हिज्र का       

जब बंदा उसके करीब हो

जिसकी मर्जी बगैर

एक पता भी नहीं हिलता है।

                                                           

                                    कुमार बन्टी

जिसको जरूरत होती है….

 

जिसको जरूरत होती है

वही साथ चलता है

बिन जरूरत वाला तो बस

तनक़ीद करने को ही मिलता है।

 

अपना मतलब सोचे

दूसरे की मदद करते वक़्त

आज़ इस दुनियाँ में

ऐसा इंसान कम मिलता है।

 

जो दूर से दिखाती हैं निगाहें

पास जाकर छानने पर

वही मंजर

हर बार कब मिलता है।

 

बड़ीबड़ी नावें

पैदा करती है

दरिया में बहुत भारी हलकम

लेकिन अगर

डूब जाएँ वें कभी

तो उनका नामोनिशान कहां मिलता है।

 

खुदखुद

पा लेता है

वो अध्द्भुत औषधि

जो अपने घावों से पहले

दूसरो का जख्म

बखूबी सिलता है।

 

और

तब क्या गम होगा

किसीके हिज्र का       

जब बंदा उसके करीब हो

जिसकी मर्जी बगैर

एक पता भी नहीं हिलता है।

                                                           

                                    कुमार बन्टी

खुद को खोने के डर में

March 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

भीड़ भरी इस तन्हाई में

जीना

एक अलग नज़रिए के साथ

कितना

जरुरी बन गया

दिनदिन

बदलता

यहां हर मुकाम

मुझे

ये जाहिर कर गया।

 

शोर भरे सन्नाटे में

कैसे

मैं ढ़ल गाया

ये तो

बस मैं ही जानता हूँ

लेकिन

खुद को खोने के डर में

इस

भीड़ भरी तन्हाई में

जब से मैं

खुद से मिल गया

तब से मैं

खुद को

बड़ा खुशनसीब मानता हूँ।

 

                                                       –   कुमार बन्टी

 

खुली किताब नहीं

March 17, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक ही झटके में

सबकुछ समझ जाओ तुम

मेरा जीवन

ऐसी कोई

खुली किताब नहीं

राह हासिल करने को

गंदी नाली को स्वीकारले

ऐसा ये कोई

बेवकूफ आब नहीं।

 

                                                                     -कुमार बन्टी

उनके सपनों का भारत

March 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

वज़न उठता नहीं

तुमसे दो मण भी

कहां गई शक्ति

तुम्हारे यौवन की

और कहां है अभिव्यक्ति

तुम्हारे मन की।

 

चलो ये वज़न तो

तुम भारी कह सकते हो

इससे इंकार भी कर दो

तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा

लेकिन तुम तो वो वज़न भी

उठाने को तैयार नहीं

जो होता है

देश के प्रति

कुछ प्रण का

और जो दायित्व है

तुम्हारे इस युवानपन का।

 

उन्होंने तो

अपना बलिदान देकर

तुम्हें ये भारत सोंपा

लेकिन तुमने

कितना योगदान देकर

देश के बारे में सोचा

सहो ये देशभक्ति का झोंका।

 

ये भारत

उनके सपनों का भारत

लगता ही नहीं

या फिर कहूँ

कि है ही नहीं।

 

उन्होने तो

अपने प्राणों को भी

देश के खातिर झोंका

लेकिन क्या तुम्हारे ज़मीर ने

तुम्हारा उत्तरदायित्व निभाने के लिए

तुम्हें कभी नहीं टोका

चलते हुए उन राहों पर

जिनकी मंज़िल वो तो नहीं

जो उन वीरों ने सोची थी

सच में ये भारत

उन वीरों के

सपनों का भारत

है ही नहीं।

 

काबिल हैं इस देश में अभी भी

काबलियत की भी कमी नहीं

लेकिन कर नहीं पा रहे सभी

अभिव्यक्ति अपनी असलियत की

जब असलियत अपनी

और अपने कर्तव्य की

सभी युवा जान जाएंगे

तो फिर

वो बनकर कारगर युवाशक्ति

इस देश का सितारा

और भी चमकाएंगे

और कभी कभी तो

इस भारत को

उनके सपनों का भारत

बनाकर ही दिखाएंगे।

 

                                                         कुमार बन्टी

 

SHAYARI

March 14, 2017 in हाइकु

तेरी देहलीज टपने खातिर काफी दिनों से कुछ किया ही नहीं।

ऐसा लगा मानो  जिंदा रहके भी इस दौरान  मैं जिया ही नहीं।

उदासी खूबसूरत

March 14, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी उदासी भी

मेरे लिए

बन गई खूबसूरत

ये किसीका

कोई असर ही है खूबसूरत।

 

लेकर बैठा रहता मैं

जब अपनी

रोनी सूरत

उस वक़्त भी

गढ़ी जा रही होती

मेरे भीतर

उसकी कोई नूरत।

 

असल में तो

मेरे लिये

वो ही है

सबसे ज्यादा खूबसूरत

जिसके असर से

मुझे दिख रहा है

सब कुछ खूबसूरत।

 

                                                         –   कुमार बन्टी

 

SHAYARI

March 13, 2017 in शेर-ओ-शायरी

SHAYARI

March 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

उसके इंतजार में मेरी पूरी जिंदगी गुज़र गई।

मोहब्बत की  ये कीमत भी  मुझे कम लगी।

SHAYARI

March 13, 2017 in शेर-ओ-शायरी

तुझसे  मिलने का  मुझे कोई  आसार भी नहीं दिखता।

लेकिन इंतज़ार तेरा करतेकरते मैं फिर भी नहीं थकता।

SHAYARI

March 12, 2017 in शेर-ओ-शायरी

उसके जैसी कोई लडकी नहीं मिली कभी आजतक

लेकिन  वो भी तो  मुझे  नहीं मिली कभी आजतक।।

उससे मिलके  अनजाने में ही  सँवरे थे हम  लेकिन,

बिगडने की कोई वजह भी मिली कभी आज़तक।

अकेले होने का मतलब

March 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अकेले होने का मतलब हर बार

बस उदास होना ही  नहीं होता

हो सकता था  मैं  भी  बरबाद

पास अगर मैं  खुद के होता।

 

किसीकी कोई चोट

ऐसी भी होती है

जिसका एक निशाँ ही

कईं चोटो से कम नहीं होता।

 

कुछ गम

सीख देने वाले भी होते हैं

सिर्फ रूलाने खातिर ही

हर गम नहीं होता।

 

गम किसीके जाने का

कईं बार इतना गहरा होता है

कि वो

आँसुओं के ख़त्म होने पर भी

कम नहीं होता।

 

लेकिन जिसने

परमप्रकाश पा लिया हो

उसके लिए किसी भी मुकाम पे

तम नहीं होता।

 

और वो तो इंसान कईं बार

यूँ ही भ्रम पाले फिरता है

वरना यहां कोई भी इंसान

किसी से कम नहीं होता।

 

                                                                           –   कुमार बन्टी

 

कुछ पल

March 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ पल

बन जाते हैं

सब कुछ।

 

कुछ पल

कह देते हैं

खुद ही कुछ।

 

कुछ पल

छोड़ते नहीं

संग में कुछ।

 

कुछ पल

जिनका मिलता नहीं

किसीकी को भी

कोई भी हल।

 

कुछ पल

यूँ ही

जाते हैं ढ़ल।

 

कुछ पल

टिकते नहीं

कुछ भी पल।

 

कुछ पल

रहते वहीं सदा

आज़ और कल।

 

कुछ पल

खो जाते हैं कहीं

हो जाते हैं गुम

बनकर सबसे हसीं पल।

 

कुछ पल

रूलाते हैं बहुत

जब याद जाएँ

किसी पल।

 

कुछ पल

देते हैं सकून

अगर मिल जाएँ

कुछ ही पल।

 

कुछ पल

जो सस्ते हैं आज़

क्या पता

महँगे हो जाए कल।

 

 

 

कुछ पल

कर देते हैं

जीना मुश्किल।

 

कुछ पल

होते हैं

हर समस्या का हल।

 

कुछ पल होते हैं

जीवन के हालात

सँवारने के लिए

डरना नहीं

क्योंकि ये हो सकते हैं

तुम्हे तपाने के रास्ते

साथ लिये हुए

चलते हैं तुम पर

व्यंग्य कसते हुए।

 

कुछ पल होते हैं

जीवन में निखार लाने के लिए

लगते हैं वो पल

कईं बार

तुम्हे ही कैद करते हुए।

 

कुछ पल

कईं बार

देते हैं

बहुत कुछ बदल।

 

कुछ पल

बस मिलते हैं

कुछ ही पल

नहीं उम्रभर

उन्हें वापिस लाने के लिए

 कोई

कर भी नहीं सकता कुछ।

 

कुछ पल

समझे जा सकते हैं

बस उन्हें

जीकर ही

कुछ पल।

                                                                                                         कुमार बन्टी

 

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