कविता : देखो ,नया वर्ष आया है

December 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता : देखो ,नया वर्ष आया है
आ रहा व्योम से मदभरा प्यार
बह रही हर गली में सुधा धार
कौमुदी का बिखरता मदिर गान
हर किरन के अधर पर सरस तान
प्रगति का नया दौर आया है
जीवन में खुशियां लाया है
देखो नया वर्ष आया है ||
जलाओ पौरुष अनल महान
वेद गाता जिसका यश गान
उठ रहा खुशियों का ज्वार
कर रहा गर्जन बारम्बार
लुटाने को तुम पर सर्वस्व
धरती पर ,आकाश आया है
देखो नया वर्ष आया है ||
पहन रही धरती नव पीताम्बर
गगन से उतरी है श्री धरा पर
मंगल आरती के स्वर निनादित
दुन्दुभी गुरु घोष है गर्जित
भीना भीना मादक सौरभ
अभिसार निमंत्रण लाया है
देखो नया वर्ष आया है
जीवन में खुशियां लाया है
देखो नया वर्ष आया है ||

शायद, अब तुमको मेरी जरुरत नहीं

September 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या करीने से महफ़िल सजी आपकी
फिर क्यों रहमत नहीं है अजी आपकी
आँखों का है धोखा या धोखा मिट रहा
खो गया है चैन ,सुकून मिलता नहीं
हुस्नवालों में होती है ,चाहत नहीं
फिर भी इनके बिना ,दिल को राहत नहीं
तू जानती है बिन तेरे ,दम घुटता मेरा
शायद अब तुमको मेरी जरुरत नहीं ||
अश्क इन आँखों से ,न यूँ ही बह जाएं कहीं
जो कहा मैंने ,तुमने सुना ही नहीं
मजबूर है तू गर्दिशे अय्याम के आगे
मेरी चाहत में शायद वो सिद्दत नहीं
मेरे दर्द का किश्तों में आदाब आ रहा
मेरे हसरतों की ,कोई अब कहानी नहीं
तू जानती है बिन तेरे ,दम घुटता मेरा
शायद अब तुमको मेरी जरुरत नहीं ||
तेरी तस्वीर ही तो अमानत मेरी
इनसे अनमोल मेरे पास कुछ भी नहीं
यकीन न हो ,तो ले लो कसम
झूंठ से अब मेरा कोई वास्ता नहीं
मैं तेरी राहों में ,महज एक मुफ़लिस हूँ
इसलिए तेरे पास ,मेरे लिए फुर्सत नहीं
तू जानती है बिन तेरे ,दम घुटता मेरा
शायद अब तुमको मेरी जरुरत नहीं ||

कविता : माँ (हैपी मदर्स डे )

May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ के जीवन की सब साँसे
बच्चों के ही हित होती हैं
चोट लगे जब बालक के तन को
आँखें तो माँ की रोती हैं
ख़ुशी में हमारी ,वो खुश हो जाती है
दुःख में हमारे ,वो आंसू बहाती है
निभाएं न निभाएं हम
अपना वो फ़र्ज़ निभाती है
ऐसे ही नहीं वो ,करुणामयी कहलाती है
प्रेम के सागर में माँ ,अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की ,सच्ची सौदागर है ||
व्यर्थ प्रेम के पीछे घूमती है दुनिया
माँ के प्रेम से बढकर ,कोई प्रेम नहीं है
जितनी भी जीवित संज्ञाएँ भू पर उदित हैं
वे सब माँ के नभ की ,प्राची में अवतरित हैं
जो जीवन को नई दिशा देने ,अवतरित हुए हैं
जो अज्ञान तिमिर में ,बनकर सूरज अवतरित हुए हैं
उन सबके ऊपर ,बचपन में माँ की कृपा थी
उनके जीवन पर माँ के उपकारों की वर्षा थी
अगर ईश्वर कहीं है ,उसे देखा कहाँ किसने
माँ ईश्वर की है रचना ,पर ईश्वर से बढ़कर है
छीन लाती है अपने औलाद के खातिर खुशियां
इसकी दुआ जय के शिखरों पर बैठाती
हर रूह ,हर धड़कन में
जीने का हौसला माँ भरती
घना अंधेरा हो तो माँ दीपक बन जाती
ऐसे नहीं वो करुणामयी कहलाती
प्रेम के सागर में माँ ,अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की ,सच्ची सौदागर है ||

वीवो आईपीएल २०२१

April 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिक्सर कौन लगायेगा
कौन नाम बनायेगा
किसके सिर पर सजेगा ताज
यह अब तय हो जायेगा
सही गिरेगी गुगली या स्विच हिट लग जायेगा
बाउंसर गुजरेगी कानों से
या हुक शॉट खेला जायेगा
क्या गेंद रहेगी नीची या सिर से टकरायेगी
क्या पिच लेगी स्पिन या ओस साथ निभायेगी
कौन लक्ष्य को भेदेगा ,कौन जश्न मनायेगा
यह तो,वीवो आईपीएल ही बतायेगा ||
क्या दिखेगी हिट मैन की दादागिरी
या गुस्सा कोहली का साथ निभायेगा
क्या पोलार्ड की दिखेगी पावर हिटिंग
या धोनी का रिव्यू रंग जमायेगा
चलेगी बेन की आंधी
या गेल नामक तूफान आयेगा
यह तो,वीवो आईपीएल ही बतायेगा ||
भुवनेश्वर की कटर का क्या होगा असर
क्या बुमराह की यार्कर की होगी फिकर
रबाडा की रफ़्तार पर सबकी नजर
शमी भी है सबसे बेहतर
किसका चलेगा जादू ,होगा किसका असर
क्या पता टॉस हो जाये डिसाइडर
गेंद शिकार करेगी बल्ले का
या बल्ला रंग जमायेगा
यह तो,वीवो आईपीएल ही बतायेगा ||

कविता : गांधी के सपनों का ,उड़ता नित्य उपहास है ..

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं
राज है सिर्फ अंधेरों का
उजालों को वनवास है
यहाँ तो गांधी के सपनों का
उड़ता नित्य उपहास है ||
महफ़िल है इन्सानों की ,
निर्णायक शैतान है
प्रश्न ,पहेली ,उलझन सब हैं
गुम तो सिर्फ समाधान है
वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं ||
राजनीति की हैं प्रदूषित गलियां
खरपतवारों की पोर है
गूंज उठा धुन दल बदल का
अदल बदल का दिखता दौर है
देश प्रेम भावों का हो गया पतन
जन धन के पीछे भागे है
धन की भूँख बढ़ी ऐसी
जन तन के पैसे मांगे है
महँगाई नित बढ़ रही
जनता को खूब रुलाया है
समझ न आए अपना है कौन यहाँ
जनवाद का अच्छा ढोंग रचाया है
बढ़े भाव ,रह अभाव में पौध हमारी सूखी है
ली तिकड़म की डिग्री जिन्होंने
उन्ही की बगिया फूली है
अब तो है राज अंधेरों का
उजालों को वनवास है
यहाँ तो गांधी के सपनों का
उड़ता नित्य उपहास है
वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं ||

कविता : समय का पहिया

February 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मानो तो मोती ,अनमोल है समय
नहीं तो मिट्टी के मोल है समय
कभी पाषाण सी कठोरता सा है समय
कभी एकान्त नीरसता सा है समय
समय किसी को नहीं छोड़ता
किसी के आंसुओं से नहीं पिघलता
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
स्वर्ण महल में रहने वाले
तेरा मरघट से नाता है
सारे ठौर ठिकाने तजकर
मानव इसी ठिकाने आता है ||
भूले से ऐसा ना करना
अपनी नजर में गिर जाए पड़ना
ये जग सारा बंदी खाना
जीव यहाँ आता जाता है
विषय ,विलास ,भोग वैभव सब देकर
खूब वो छला जाता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
जग के खेल खिलाने वाले को
मूरख तू खेल दिखाता है ||
कर्म बिना सफल जनम नहीं है
रौंदे इंसा को वो धरम नहीं है
दिलों को नहीं है पढ़ने वाले
जटिलताओं का अब दलदल है
भाग दौड़ में जीवन काटा
जोड़ा कितना नाता है
अन्तिम साथ चिता जलने को
कोई नहीं आता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
मानवता को तज कर मानव
खोटे सिक्कों में बिक जाता है ||

कविता : सम्मान तिरंगा (२६ जनवरी विशेष )

January 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह तिरंगा तो ,हमारी आन बान है

यह दुनिया में रखता ,अजब शान है

यह राष्ट्र का ईमान है ,गर्व और सम्मान है

स्वतन्त्रता और अस्मिता की ,यह एक पहचान है

क्रान्तिकारियों की गर्जन हुंकार है

विभिन्नता में एकता की मिसाल है

एकता सम्प्रभुता का कराता ज्ञान है

धर्म है निरपेक्ष इसका ,जाति एक समान है

यह तिरंगा तो ,हमारी आन बान है

यह दुनिया में रखता ,अजब शान है ||

भेदभाव की तोड़ दीवारें

यह सबको गले लगाता है

राष्ट्र पर्व की पावन बेला में

यह देश प्रेम जगाता है

जल थल नभ में गौरवता से

इसने अपना रंग जमाया है

कश्मीर से कन्याकुमारी तक

वीरों की गाथा को सुनाया है

यह तिरंगा तो ,सरहद का निगेह बान है

नयनों की थकानों का अभिराम है

यह तिरंगा तो ,हमारी आन बान है

यह दुनिया में रखता ,अजब शान है ||

‘प्रभात ‘ अर्जुन के धनुष की टंकार है तिरंगा

मुरलीधर की मुरली की पुकार है तिरंगा

बंकिम की स्वर लहरी का राग है तिरंगा

“आनन्द मठ ” के पृष्ठों की आग है तिरंगा

प्रगति विकास का प्रतीक ,उच्च निशान है तिरंगा

सीमा पर लड़ने वालों का ,आत्म सम्मान है तिरंगा

ऐ तिरंगे तेरी खातिर ,वीरों ने गोली खाई है

अनगिनत शीष चढ़ाये ,तब आजादी पायी है

यह तिरंगा तो , मेरे देश की माटी की मुस्कान है

यह तिरंगा तो ,हमारी आन बान है

यह दुनिया में रखता ,अजब शान है ||

कविता : हौसला

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हौसला निशीथ में व्योम का विस्तार है
हौसला विहान में बाल रवि का भास है
नाउम्मीदी में है हौसला खिलती हुई एक कली
हौसला ही है कुसमय में सुसमय की इकफली
हौसला ही है श्रृंगार जीवन का
हौसला ही भगवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
हौसले की नाव में बैठ जो आगे बढ़ा
मुश्किलों के पर्वतों पर वो चढ़ा
हौसला नव योजनाओं का निर्माण है
हौसला विधा का महाप्राण है
हौसले से ही उतरा धरती पर आकाश है
हौसला ही शक्तियों का पारावार है
हौसला है सच्चा मीत जीवन का
हौसला ही भगवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
चलो खुद अपनी ताकत पर
बदल सकते हो तकदीरें
चमकेगा भाग्य का सूरज
तुम्हारे मेहनतकश पसीने से
मंजिलें दूर दिखेंगी
अपने ख्वाबों को मत छोड़ो
आलस छोड़ कर करो मेहनत
व्यर्थ नहीं यों डोलो
हौसलों के द्वारा ही मानव
विजयपथ पर गतिवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
‘प्रभात ‘ रात दिवस जीवन का धागा
यहाँ वहां से उलझा है
ओर नहीं है ,छोर नहीं है
सिर्फ हौसलों से सुलझा है
हौसलों के आगे झुक जाते
बड़े से बड़ा शत्रु भी
हौसले के आगे नतमस्तक है
बड़े से बड़ा कष्ट भी
हौसले ने ही हराया ,असम्भव शब्द को
हर्ष में बदला है दर्द और विशाद को
हौसलों के द्वारा ही मानव
विजयपथ पर गतिवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||

कविता : इन्सान नहीं मिल पाया है

January 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर मन्दिर को पूजा हमने

भगवान नहीँ मिल पाया है

इस भूल भुलैया सी दुनिया में

इन्सान नहीं मिल पाया है ||

हर व्यक्ति स्वार्थ में डूब रहा

मन डूब गया भौतिकता में

संवेदनाओं का क़त्ल हुआ

झूंठ दगाबाजी करने में

कौन यहाँ पर ज़िन्दा है

मुझे समझ न आया है

इन तथा कथित इन्सानों में

इन्सान नहीं मिल पाया है

हर मन्दिर को पूजा हमने

भगवान नहीँ मिल पाया है

इस भूल भुलैया सी दुनिया में

इन्सान नहीं मिल पाया है ||

रहकर साथ अलग दिखते हैं

दौलत पर इतराते हैं

अपनों को छोड़कर लोग

गैरों को अपनाते हैं

भड़काने को आग विकल है

सबके मन में छुपी जलन है

कलियुग का सब दोष कहूँ क्या

इनकी वाणी में फिसलन है

देवत्व दिला सकने वाला

वह स्वार्थहीन उपकार नहीं मिल पाया है

इन तथा कथित इन्सानों में

इन्सान नहीं मिल पाया है

हर मन्दिर को पूजा हमने

भगवान नहीँ मिल पाया है

इस भूल भुलैया सी दुनिया में

इन्सान नहीं मिल पाया है ||

आओ सब मिलकर नव वर्ष मनाएं…

December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुखद हो जीवन हम सबका

क्लेश पीड़ा दूर हो जाए

स्वप्न हों साकार सभी के

हर्ष से भरपूर हो जाएं

मिलन के सुरों से बजे बांसुरी

ये धरती हरी भरी हो जाए

हों प्रेम से रंजीत सभी

ऐसा कुछ करके दिखलायें

आओ सब मिलकर नव वर्ष मनाएं ||

हम उठें व उठावें जगत को

सृजन का सुर ताल हो

हम सजग हों

सुखद हो जीवन हमारा

उच्च उन्नत भाल हों

अब न कोई अलगाव हो

बस जोड़ने की बात हो

बढ़ न पावे असत हिंसा

शान्त सुरभित प्राण हों

सतत प्रयास और लगन से ही

हम अपना हर कदम बढ़ाएं

आओ सब मिलकर नव वर्ष मनाएं ||

मित्र सखा सत्कार करें सब

जगत तुम्हारा यश गाए

गुलशन सा महके सबका आंगन

हर घर मंदिर सा पावन हो जाए

बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि

मन में मिसरी सी घुलती जाए

सबके आँगन हों सुखद सगुन

कोकिल पंचम स्वर में गाए

भूखा प्यासा रहे न कोई

घर घर समता दीप जलाएं

आओ सब मिलकर नव वर्ष मनाएं ||

कविता : मोहब्बत

December 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नदी की बहती धारा है मोहब्बत
सुदूर आकाश का ,एक सितारा है मोहब्बत
सागर की गहराई सी है मोहब्बत
निर्जन वनों की तन्हाई सी है मोहब्बत
ख्वाहिशों की महफिलों का ,ठहरा पल है मोहब्बत
शाख पर अरमानों के गुल है मोहब्बत
ख्वाहिशों के दरमियां ,एक सवाल है मोहब्बत
दर्द का किश्तों में ,आदाब है मोहब्बत
लबों से दिल का पैगाम है मोहब्बत
शब्द कलम की साज है मोहब्बत
भटकी चाह मृग तृष्णा सी है मोहब्बत
भावों की मधुर आवाज है मोहब्बत
प्यार विश्वास की नींव है मोहब्बत
उदास लम्हो को आईना दिखाती है मोहब्बत
आंशू का खारापन पी लेती है मोहब्बत
टूटती बिखरती सांसों संग
जी लेती है मोहब्बत ||
मोहब्बत है ज़िन्दगी ,मोहब्बत जुबान है
मोहब्बत दिलों के प्यार का ,करती मिलान है
मोहब्बत लुटाती है रहमो करम वफ़ा
मोहब्बत किसी की ,दर्द भरी दास्तान है
‘प्रभात ‘ मोहब्बत प्रतिफल नहीं चाहती कभी
मोहब्बत हक़ भी नहीं मांगती कभी
मोहब्बत मिटने को रहती है तत्पर
मोहब्बत भय को नहीं मानती कभी
पर आज सच्ची मोहब्बत दिखती नहीं
दिखे स्वार्थ ही नज़रों में
भटक रहा है प्यासा बदल
भूला शहरी डगरों में
पैसों के बाजार में
मोहब्बत कथानक हो गई
मोहब्बत भूली यादों का आसरा हो गई ||

कविता : यह कैसा धुआँ है

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लरजती लौ चरागों की
यही संदेश देती है
अर्पण चाहत बन जाये
तो मन अभिलाषी होता है
बदलते चेहरे की फितरत से
क्यों हैरान है कैमरा
जग में कोई नहीं ऐसा
जो न गुमराह होता है
भरोसा उगता ढलता है
हर एक की सांसो से
तन मरता है एक बार
आज ,जमीर सौ सौ बार मरता है ||
उसी को मारना ,फिर कल उसे खुदा कहना
न जाने किसके इशारे से
ये वक्त चलता है
नदी ,झीलेँ ,समुन्दर ,खून इन्सानों ने पी डाले
बचा औरों की नज़रों से
वो अपराध करता है
आज ,जीवन की पगडंडी पर
सत चिंतन हो नहीं पाता
तृष्णा का तर्पण करने पर ही
तन मन काशी होता है ||
‘प्रभात’ कैसी है यह मानवता ,जिसमें मानवता का नाम नहीं है
होती बड़ी बड़ी बातें ,पर बातों का दाम नहीं है
मजहब के उसूलों का उड़ाता है वह मजाक
डंके की चोट पर कहता ,भगवान नहीं है
देखो नफ़रत की दीवारें ,कितनी ऊँची उठ गईं
घृणा द्धेष की ईंटे ,आज मजबूती से जम गईं
खोटे ही अपने नाम की शोहरत पे तुले हैं
अच्छों को अपने इल्म का अभिमान नहीं है
कहीं भूंखा है तन कोई ,कहीं भूंख तन की है
पुते हैं सबके चेहरे ,यह कैसा धुआँ है ||

कविता : जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज था …

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज था
क्या पता था वो अन्दर से कमजोर है
जिन वादों पे हमको बड़ा नाज था
क्या पता था कि डोर उसकी कमजोर है ||
करूँ किसकी याद ,जो तसल्ली मिले
रात के बाद आती रही भोर है
जिक्रे गम क्यों करें ,कोई कम तो नहीं
थोड़े नैना भी उसके चितचोर हैं
इतना दूर न जाओ कि मिल न सके
प्यार की उमंगें ,हवा में बिना डोर है
वो छिंडकते हैं नमक ,मेरे हर ज़ख्म पर
क्या पता था कि सोंच ,कैद उनकी दीवारों में है
जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज था
क्या पता था वो अन्दर से कमजोर है ||

रोशनी हो गई अब ,तीरगी की तरह
पास आकर मिलो ज़िन्दगी की तरह
गम के लम्हे मुझे जो उसने दिये
उनको जीता हूँ मैं ,अब ख़ुशी की तरह
प्यार के वादों का ,उसपे कोई असर ही नहीं
उसकी फितरत है बहती नदी की तरह
बेवफाई का जिस दिन से खेल खेला गया
अपने लोगों में मैं रहा अजनबी की तरह
वक्त के दलदलों ने बदला चलन देखिये
मुहब्बत भी पिघलती बर्फ की तरह
सोंचता हूँ कहाँ दम लेगी ज़िन्दगी
कुछ खटकता है दिल में कमी की तरह
जिस प्यार पे हमको बड़ा नाज था
क्या पता था वो अन्दर से कमजोर है
जिन वादों पे हमको बड़ा नाज था
क्या पता था कि डोर उसकी कमजोर है ||

कविता : इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है

December 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मौत के बाद क्या है

किसी ने जाना नहीं है

प्रकृति को क्यों

किसी ने पहचाना नहीं है

आखिर मृत्यु के रहस्य को

ईश्वर ने क्यों छिपाया

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

क्यों नहीं बन पाया

वो दूसरा चांद तारा

क्यों नहीं बना दूजा ,सूर्य सा सितारा

बरमूडा ट्राएंगल का ,रहस्य क्यों न सुलझा

कैलाश पर्वत पर क्यों

कोई चढ़ पाया नहीं है

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

क्यों नहीं बनी दूजी नदियां

क्यों नहीं बना दूजा समुन्दर

क्यों नहीं बनी हवाएँ ,खिलती हुई घटाएं

इंसान मृत व्यक्ति को

क्यों जिला पाया नहीं है

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

जीव एक बार चला गया ,यहाँ फिर नहीं है आना

फिर न कोई अपना है ,न कोई बेगाना

अकेले है आना ,अकेले है जाना

जीवन मरण का रहस्य ,कोई जान पाया नहीं है

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

पढ़ लिख कर सब अपना करियर बनाते

जीवन सुरक्षा के लिए पॉलिसी कराते

अगले जन्म का करियर कैसे बनेगा

कोई क्यों सोंच पाया नहीं है

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

‘प्रभात ‘ ईश्वर को न हिन्दू ,न मुसलमान चाहिए

भगवान को सिर्फ एक नेकदिल इंसान चाहिए

मन्दिर न चाहिए ,न उसे मस्जिद चाहिए

धरती को स्वर्ग बना दे ,उसे ऐसा व्यक्तित्व चाहिए

बड़ी बड़ी बातें करने वाला

रक्त भी बना पाया नहीं है

इंसान ईश्वर के रहस्य को समझ पाया नहीं है ||

कविता : वंदे मातरम का ,फिर से अलख जगाना होगा

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इधर चुनावों की हलचल है और कुर्सियों की टक्कर
उधर बुझ रहे माँ के दीपक ,जलते जलते सरहद पर
क्या होगा ऐसी कुर्सी का
जनता की मातमपुर्सी का
सत्ता के इन भूंखे प्यासों को
अब तो कुछ समझाना होगा
वंदे मातरम का ,फिर से अलख जगाना होगा ||
कितना कष्ट सहा घाटी ने
कितना खून बहा माटी में
कितनी मिटी मांग की लाली
कितनी गोद हो गयी खाली
हिमगिरि के हर कण कण को
ज्वालामुखी बनाना होगा
वंदे मातरम का ,फिर से अलख जगाना होगा ||
गाँधी के सपनों का भारत
झोपड़ियों में सिसक रहा है
मर्यादा ,विश्वास अहिंसा
सत्य दृगों में सिमट रहा है
मेहनतकश हाथों में अविरल
अब तो विश्वास जगाना होगा
वंदे मातरम का ,फिर से अलख जगाना होगा ||
‘प्रभात ‘ भ्रष्टाचार लोगों की ,अब नश नश में समाया है
बिन मेहनत किये घर में ,देखो कितना धन आया है
आज ,सड़क जाम और शोर शराबा
सब घटना के बाद हुआ है
बिक जाते हैं सारे प्यांदे
धन का यूँ उन्माद हुआ है
कितने भूंखे पेट से सोये
तंग हाल बेकार फिरे हैं
संसद में जिन्हे चुनकर भेजा
भ्रष्टाचारी कुछ उनमें निकले हैं
कैसे सुधरे देश हमारा
लोग सोंच रहे ,पर डरे डरे हैं
पश्चिम के रंग ढंग अपनाकर
पाल लिये विषधर काले हैं
रहबर की रहजन बनकर
ये वतन का सौदा करते हैं
मीर जाफर और जयचन्दों का
ये अनुसरण करते हैं
इनकी इन हरकतों का
अच्छा सबक सिखाना होगा
वंदे मातरम का ,फिर से अलख जगाना होगा ||

कविता : वो सारे जज्बात बंट गए

November 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गिरी इमारत कौन मर गया
टूट गया पुल जाने कौन तर गया
हक़ मार कर किसी का
ये बताओ कौन बन गया
जिहादी विचारों से
ईश्वर कैसे खुश हो गया
धर्म परिवर्तन करने से
ये बताओ किसे क्या मिल गया
जाति ,धर्म समाज बंट गये
आकाओं में राज बट गये
आज लड़े कल गले मिलेंगे
वो सारे जज्बात बंट गए ||

नफरतों की आग में
यूँ बस्तियां रख दी गईं
मुफ़लिसों के रूबरू
मजबूरियां रख दी गईं
जीवन से मृत्यु तक का सफर ,कुछ भी न था
बस हमारे दिलों में
दूरियां रख दी गई
लोगों ने जंग छेड़ी
जब भी कुरीतियों के खिलाफ
उनके सीने पर तभी
कुछ बरछियाँ रख दी गईं ||

मुजरिम बरी हो गया
सबूत के अभाव में
देखो न्याय की आश में
कितनी जमीनें बिक गईं
बेकारी में पीड़ित है
देश का हर कोना
फिज़ा -बहार ,धूप -छांव
यूँ ही बदल गई
लोगों ने जब कभी , एकता का मन किया
धर्म की दोनों तरफ ,बारीकियां रख दी गईं ||

‘प्रभात ‘ भूमिकाएं अब नेताओं की ,श्यामली शंकित हुई
मुस्कान के सूखे सरोवर ,भ्रष्ट हर काठी हुई
दिन के काले आचरण पर ,रात फरियादी हुई
रोशनी भी बस्तियों में ,लग रही दागी हुई
डगमगाती है तुलायें , पंगु नीतियां हुई
असली पर नकली है भारी ,मात सी छायी हुई ||

सूखे दरख्त रोते हैं क्यों

November 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहाँ सबसे पहले सूरज निकले
वहाँ खौफ का मरघट क्यों
जहाँ काबा -काशी एक धरा पर
उस माटी में दलदल क्यों
खून के आंसू रो रहे हैं
क्रांतिवीर बलिदानी क्यों
नेताओं की लोलुपता पर
सबको है हैरानी क्यों
नंगे सभी हमाम में दिखे
सबकी एक कहानी क्यों ||
गाँधी और सुभाष के सपने
जलते उबल रहे हैं क्यों
महंगाई बढ़ रही निरन्तर
बनी दुधारू गइया जनता क्यों
फर्क हम में और सूरज में कहाँ है
हमारी सहम सी विकल किरणें क्यों
देश में बनने वाली नीतियां
नतीजे में शून्य आती है क्यों
सवालात मन में है सबके
जवाब नहीं मिलता है क्यों ||
जिसे सुनकर नफ़रत पलती हो दिल में
ऐसी बातें रास आती है क्यों
स्वार्थ सिद्धि के लिये काटा वृक्षों को
सूखे दरख्त रोते है क्यों
भाई भाई राजनीति दलदल में
फिर भी दिखती है मारामारी क्यों
भूल विकाश की राहों में
बाँट चले जन जन कलिहारी क्यों ||
धुंआ उगल रहे हैं कारखाने
फैक्ट्रियां विष फेंक रही हैं क्यों
पृथ्वी भी अपनी आँखों से
मृत्यु का दृश्य देख रही है क्यों
मानवीय बुद्धिमतता ही अब
मूर्खता की परिचयक बन रही है क्यों
आतंकी रूपी पिशाचनी यहाँ
तांडव का अभिनायक हो रही है क्यों
‘प्रभात ‘ ऋषि मुनियों की इस धरती पर
नफ़रत भरा ये जंगल क्यों
जहाँ हर त्यौहार हो ईद दिवाली
उस नजर में नफ़रत क्यों
वैश्विक खगोलीकरण के दौर में
बेपर्दा हुई है नारी क्यों
इंसानों के दुःख दर्द में
हम बन न पाये सहभागी क्यों ||

कविता : ये दिल बहार दुनियां कितनी बदल रही है

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मानवता बिलख रही है
दानवता विहँस रही है
है आह आवाजों में
अस्मिता सिसक रही है
ये दिल बहार दुनियां कितनी बदल रही है ||
ये शाम रंगीली ,सुबह नशीली
उनकी हो रही है
जहाँ निशा निरन्तर ,नृत्य नशा में
भय से क्रन्दन कर रही है
बीच आंगन में मजहबी
दीवार खिंच रही है
नग्नता सौन्दर्य का ,अर्थ हो रही है
ये दिल बहार दुनियां कितनी बदल रही है ||
अँधेरी निशा है ,दिशा रो रही है
नदी वासना की अगम बह रही है
सब कुछ उलट पलट है
काँटों के सिर मुकुट है
कलियों की गर्दनों पर ,शमशीर चल रही है
ये दिल बहार दुनियां कितनी बदल रही है ||
‘प्रभात ‘ रंग रूप की बहारें ,रहती सदा नहीं हैं
बेकार मनुज इस पर ,अभिमान कर रहा है
आज इंसान भी कितना बदल गया है
सम्मान का है धोखा ,अपमान कर रहा है
अभिमान देखिए सिर कितना चढ़ रहा है
है मित्र कौन बैरी ,अनुमान कर रहा है
भू को विनाशने की अणुवाहिनी सज रही है
जर्जर व्यवस्था की ,अर्थी निकल रही है
ये दिल बहार दुनियां कितनी बदल रही है ||

सफलता ,ऊँची उड़ान

November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता : सफलता ,ऊँची उड़ान
जीवन है छणिक तुम्हारा
भूल कभी कोई न जाना
बनकर सूरज इस वसुधा का
जर्रे जर्रे को चमकानां ||
सूरज ,चांद सितारे छुपते
हम ,तुमने भी है एक दिन जाना
नाम रहे जो जग में रोशन
ऐसा कुछ करके दिखलाना
बनकर गुल इस वसुधा का
जर्रे जर्रे को दमकाना ||
जैसा चाहते हो औरों से
वैसा ही करके दिखलाना
गर प्रकाश में चाहो रहना
प्रकाश बन कर जग में है छाना
बनकर खुशियां इस वसुधा की
जर्रे जर्रे को हर्षाना ||
किस ओर है मंजिल ,किस ओर जाना
अनदेखी राहें भटक तुम न जाना
संजोए हैं जो सपने ,जीवन में अपने
पूरा उन्हें करके है दिखाना
बनकर पुष्प इस वसुधा का
जर्रे जर्रे को महकाना ||
‘प्रभात ‘ समय और पानी की धारा
दोनों कभी न रुक सकते हैं
वे ही सिर धुन धुन रोते हैं
जिनके साथ न वे चलते हैं
हिम्मत और लगन से डरकर
आफत सदैव छिपती है
हो निडर आगे बढ़ो तुम
सुखद सपनों मे न फूलो
हर व्यथा की घूंट पीकर
कठिनाइयों के बीच झूलो
हिम्मत का पतवार पकड़ लो
फिर तुम अपनी नाव चलाओ
फिर सफलता मिलकर रहेगी
नियति भी तुमसे थर्राकर
आनंद की वर्षा करेगी ||

कविता : भाई दूज

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भाई दूज का पर्व है आया
सजी हुई थाली हाथों में
अधरों पर मुस्कान है लाया
भाई दूज का पर्व है आया ||
अपने संग कुछ स्वप्न सुहाने लेकर
अपने आंचल में खुशियां भरकर
कितना पावन दिन यह आया
बचपन के वो लड़ाई झगड़े
बीती यादों का दौर ये लाया
भाई दूज का पर्व है आया ||
कुछ वादों को याद दिलाने
किसी की सुनने अपनी सुनाने
प्रेम सौहार्द का तिलक लगाने
रिश्तों की सौगात है लाया
भाई दूज का पर्व है आया ||
‘प्रभात ‘बहना ही भाई का दर्द देखकर,
छुप छुप कर रोती है
बहना ही ,जीवन को
सुवासित महकता इत्र कर देती है
प्रेम ,स्नेह ,अपनत्व ,विश्वास
जिसके ह्रदय सरोवर में समाया है
बहना ही वो शब्द है
जिस शब्द में ईश्वर समाया है ||

कविता :दीपों का त्यौहार

November 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दीपों की जगमग है दिवाली
दीपों का श्रृंगार दिवाली
है माटी के दीप दिवाली
मन में खुशियाँ लाती दिवाली ||
रंगोली के रंग दिवाली
लक्ष्मी संग गणपति का आगमन दिवाली
स्नेह समर्पण प्यार भरी
मिठास का विस्तार दिवाली
अपनों के संग अपनों के रंग में
घुल जाने की प्रीति दिवाली
हाथी घोड़े मिट्टी के बर्तन
फुलझड़ियों का खेल दिवाली ||
जब कृष्ण ने बजाई थी बांसुरी
होली के रंग छलके थे
राम राज्य के आगमन से
झिलमिल तारे चमके थे
ईश्वर प्रदत्त वरदान है ये
मिलकर पर्व मनाते हैं
तन में तिमिर न आए फिर से
ज्योतिर्गमय मन को बनाते हैं
तम को दूर भगाकर
प्यार का रास रचती दिवाली
फूलों की खुशबू में ,चंदन सी खुशबू दिवाली ||
‘प्रभात’ जग में कैसी रीति है आई
लोगों ने जाति धर्म से है प्रीति लगाई
मन्दिर मस्जिद हों भले अनेक
ईश्वर तो सिर्फ एक है भाई
जाति धर्म की रीत पाटकर ,बनो सभी भाई भाई
आओ ,मन मुटाव से दूर निकलकर
आशा के दीप जलाते हैं
जिसमें सभी संग दिखें
कुछ ऐसी तस्वीर बनाते हैं
जो जीवन के पथ में हैं भटके
उनको नई राह दिखलाते हैं
आओ मिल जुल कर
दीपावली मनाते हैं ||

देश में कुछ ऐसा बदलाव होना चाहिए

November 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन में बुलन्दियों को छूना है अगर
कुछ कर दिखाने का दिल में,जुनून होना चाहिए
दामन को रखिए दूर ,दलदलों से पाप की
शालीनता और स्वच्छता को ,जीवन में होना चाहिए ||
अधिकार गर समान सभी के लिये नहीं
अब ऐसी व्यवस्था में,बदलाव होना चाहिए
पीढ़ी है दिग्भ्रमित ,यहाँ निर्णय हैं खोखले
अब शिक्षा व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए ||
अज्ञान वश ही आज तक ,हम आपस में लड़े हैं
अब शिक्षित ,सुयोग्य समाज होना चाहिए
है जज्बा और जुनूँ ,लक्ष्मीबाई सा जिनमें
उन्ही की हांथ में तलवार होना चाहिए ||
वासना से लिप्त हैं ,क्यों आज की पीढ़ियां
इस विषय पर सबसे पहले ,शोध होना चाहिए
ऑनर किलिंग के नाम पर क्यों मरती हैं बेटियां
प्यार मगर क्या है ,हमें बोध होना चाहिए ||
‘प्रभात ‘ क्यों आज मतभेद के गड्ढे हैं ,और मजहब की खाइयां
दिल चीज मिलाने की है ,दिल को मिलाना चाहिए
उठा दे जो गिरती हुई मानसिकता
देश में कुछ ऐसा बदलाव होना चाहिए ||

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना

November 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज ,अखण्ड सौभाग्यवती का

माँ उमा से है वर पाना

ऐ चाँद, तुम जल्दी आ जाना ||

आज पिया के लिये है सजना संवरना

अमर रहे सदा मेरा सजना

ऐसा वर तुम देते जाना

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना ||

अहसानों के बोझ तले

मुझे मत दबाना

आज आरजू है यही

इबादत में मोहब्बत का विस्तार कराना

रहे सदा साथ सजना का

ऐसा वर तुम देते जाना

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना ||

पिया ही तो है मेरा गहना

उसके लिए है ,आज गजरे को पहना

मेरे गजरे को , है चांदनी से नहलाना

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना ||

तू है नटखट बड़ा

न मुझे तू सताना

बादलों के पर्दों में

कहीं छिप न जाना

चलेगा न तेरा ,अब कोई बहाना

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना ||

दिखाऊंगी तुझे ,कैसा पहना है कंगना

पीली सरसों सा दमकता मेरा गहना

गीत सौभाग्य का तुम ऐसा गुनगुनाना

जीवन की बगिया में मृदुल सुख महकाना

प्राण उपवन खिला कर ,मत मुरझाना

नित्य मधुमास जीवन में,आज कलियाँ खिलाना

ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना ||

जीवन परिभाषा

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

धर्म ईमान -इन्साफ को मानकर
आदमी बनकर तुम जगमगाते रहो
त्याग से ही मनुज बन सका देवता
देवता बन सबों में समाते रहो ||
न घबराओ तुम संघर्षों से कभी
तूफानों में भी उगता तारा है
चलते चलते थक मत जाना कहीं
विश्वास जगत का एक सहारा है
पथ की बाधा न होगी कहीं
सिर्फ आशा का दीप तुम जलाते रहो ||
शान्ति मिलती नहीं मन को कभी
काया जब तक ,इच्छाओं की दासी है
फैलती दीप्ति व्यक्तित्व की ,ढोंग आडम्बरों से नहीं
ईश्वर अन्तर्यामी ,घट घट वासी है
धन सम्पत्ति वैभव पास होगा तेरे
बिन सन्तोष न होती ,दूर उदासी है
रूप जीवन का तेरा निखर जाएगा
आत्मदर्पण सदा तुम ,निहारते रहो ||
तंगदिली के चकमे में न आना कभी
ठोकरें उसके सर पर जमाते रहो
धन के मद में न अन्धे बनो भूलकर
हाथ दुःख में सबों के बंटाते रहो
ये महल और दुमहले
बंजारों के डेरे हैं
दूसरों के लिए चोट खाते रहो ||
‘प्रभात ‘ सम्प्रदाओं की सीमाओं का ,न कोई अर्थ है
रूढ़ियों की कगारों को ढहाते रहो
न परतंत्र हो साँस नारी की कोई
अशिक्षित इरादों को मिटाते रहो ||

कविता : दर्द

October 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब याद तुम्हारी आती है

दिल यादों में खो जाता है

आँखों में उमड़ते हैं बादल

जी मेरा घुट घुट जाता है ||

प्यार की सूनी गलियों में

हर वक्त भटकता रहता हूँ

जिन राहों में साथ थे हम

उनको ही तकता रहता हूँ

सारा मन्जर अब बदल गया

धुंआ धुंआ सा दिखता है

अब तो रातों का रहजन भी

दिन में रहबर लगता है ||

कब तक मैं खामोश रहूँ

किससे अपना दर्द कहूँ

प्यार के वादों की डोली को

कब तक लेकर साथ चलूँ

अपना कोई बदल गया

हर शख्स बेगाना लगता है

उल्फत का ये ताजमहल

अब खण्डहर लगता है ||

अरमान भरे दिल से मैंने

कभी उनकी तस्वीर बनाई थी

पर भूल से उसको भी मैंने

बस शीशे में जड़वाई थी

खुदगर्जी के पत्थर ने

उस शीशे को तोड़ा है

उसने प्यार की बहती कश्ती को

तूफानों संग छोड़ा है

भूल गया सब ,वह वक्त न भूला

तेरे संग जो गुजरा है

गुजरी हुई यादों का बादल

फिर से मन मष्तिस्क में उमड़ा है

खुश रहो तुम ,जिओ ज़िन्दगी

सिर्फ मेरा घर ही उजड़ा है

प्यार को जो मोल दे सके

तू ऐसा सौदागर निकला है||

कविता : जीवन की सच्चाई ,एक कटु सत्य

October 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनियां में किसकी मौत और किसकी जिन्दगी
है जिन्दगी ही मौत और मौत जिन्दगी
जीवन मिला तो तय है ,मरना भी पड़ेगा
हम सबको एक राह ,गुजरना ही पड़ेगा ||
जीवन तो खाना -वदोश है
संभव इसका नहीं होश है
झांक ले उस पार भी
नहीं कोई रोक टोक है
अच्छाई और बुराई का भी
उस पार द्वन्द है
नेकी और सच्चाई
अगले जन्म का मापदण्ड है
निश्चय ही यह पंचमहल
कल खाली करना पड़ेगा
हम सबको एक राह ,गुजरना ही पड़ेगा ||
अमीर हो या गरीब हो या हो कोई सतवन्त
यदि जन्म सबका आदि है तो मौत है सबका अन्त
पता नहीं किस दिन ढह जाये ,यह माटी का ढेरा
किसे पता कब उखड़ चलेगा ,यह चलताऊ डेरा
सब कुछ देर के मेहमान है ,इक दिन जाना पड़ेगा
राम नाम सत्य है ,अन्त में वर्वस रटना पड़ेगा
हम सबको एक राह ,गुजरना ही पड़ेगा ||
‘प्रभात ‘ जीवन है उड़ती चिड़िया ,उसे फंसा न सकोगे
जाल पर ही जाल तुम ऐसे बुनते रहोगे
पाप की गठरी तुम्हारी हो सके हल्की
दोष औरों के सिर तुम मढ़ते रहोगे
अभी भी वक्त है बन्धु
पाठ जीवन के ठीक से पढ़ लो
वरना अभी और चौरासी घाट भटकते रहोगे ||

कविता : पतित पावनी गंगा मैया

October 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देवी देवता करते हैं गंगा का गुणगान
इसके घाटों पर बसे हैं ,सारे पावन धाम
गंगा गरिमा देश की ,शिव जी का वरदान
गोमुख से रत्नाकर तक ,है गंगा का विस्तार
भागीरथी भी इन्हे ,कहता है संसार
सदियों से करती आई लोगों का उद्धार
शस्य श्यामल गंगा के जल से ,हुआ है ये संसार
जन्म से लेकर मृत्यु तक ,करती है सब पर उपकार
लेकिन बदले में मानव ने ,कैसा किया व्यवहार ||
आज देवी का प्रतीक
प्लास्टिक प्रदूषण के जाल में फंस गई
बड़े बड़े मैदानों में दौड़ने वाली
न जाने क्यों सिकुड़ गई
दूसरों की प्यास बुझाने वाली
आज खुद ही प्यासी हो गई
अन्धे विकाश की दौड़ में
आज गंगा, खूँटे से बंधी गाय हो गई
ज्यों ज्यों शहर अमीर हुए
गंगा गरीब हो गई
बेटों की आघातों से
गंगा मैया रूठ गईं ||
‘प्रभात ‘ क्यों लोग ना समझ हो जाते हैं
गंगा मैली कर जाते हैं
सुजला -सुफला वसुधा ऊपर
जन जीवन इससे सुख पाते हैं
आओ सब मिल प्रण करें
गंगा मैया को बचाना है
पावन निर्मल शीतल जल में
कूड़ा करकट नहीं बहाना है
कल कल छल छल करती निनाद
फिर से मिल ,अमृत कलश बहाना है ||

कविता : भ्रष्टाचार बेलगाम हो रहा है

October 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कथनी का कर्म से
कोई मेल नहीं है
कहने को बातें ऊँची
करने को कुछ नहीं है
गीता रामायण की धरती पर
हिंसा का संगीत चढ़ा है
कैसे बचेगी मानवता
दानवता का दल बहुत बड़ा है
अब प्रेम का पथ
शूल पथ हो रहा है
अब सत्य का रथ ध्वस्त हो रहा है
अब बांसुरी का स्वर लजीला हो रहा है
अब काग का स्वर ही सुरीला हो रहा है
नयी सभ्यता आचरण खो रही है
बिष बीज अपने ही घर बो रही है
मंहगाई दावानल सी दिन ब दिन बढ़ रही है
फिक्र है किसे
जनता किस तरह जी रही है
देश की बन्धुता विषाक्त सी बन रही है
राजनीति शनै शनै
स्वार्थ में सन रही है
सुरक्षित नहीं है बेटी
नफरती सैलाब उमड़ रहा है
लोग बौने हो रहे हैं
दुःशासन हंस रहा है
अब रोटी के टुकड़ों को
दूर से दिखा रहे हैं
ये कैसा नंगा भूंखा
समाजवाद ला रहे हैं
अन्तस से असन्तोष
जन जन में उमड़ रहा है
झूठा आश्वासन ही केवल
शासन चला रहा है
‘प्रभात ‘ सामन्ती युग से इस वर्तमान युग तक
परिवर्तन इतना ही हो रहा है
राजा तो आधुनिकतम बन गया
भ्रष्टाचार बेलगाम हो रहा है||

दशहरा विशेष

October 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दशहरा का पर्व है आया

अच्छाई ने बुराई को हराया

विजय गीत सब मिल गाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

सोंचो तरक्की के जुनून में

हम खुद से हो गए पराए

हमको लगे जकड़ने ,ख्वाहिशों के मकड़ी साए

तज कुरीतियां अन्तस्तल में प्रेम दीप जलाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

लूटपाट और छीना झपटी तोड़ फोड़ को छोड़ो

विघटनकारी घृणित भावना से अपना मन मोड़ो

अब नैतिक पथ पर चलो चलाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

रक्त विषैला दौड़ रहा है नर की नस नस में

कर्म घिनौना भरा हुआ है उर की हर धड़कन में

वाणी विष का वमन कर रही कर की गति अति उलझन में

ला परिवर्तन सभी क्षेत्र में सुरभित देश बनाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

लोग झगड़ रहे स्वार्थपरत हो ,भूलकर देश की उन्नति को

अन्दर कुछ है ,बाहर कुछ है

भावना यही ,रोकती प्रगति को

घिरते तम में कुछ धैर्य बंधे ,ऐसी अलख जगाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

रिश्वतखोरी ,भृष्टाचार ,भूलो तुम सीनाजोरी

निज पौरुष कर्तव्य दिखाओ ,करो न बातें कोरी

अब हर जन मानवता अपनाओ

कुछ ऐसा पर्व मनाओ ||

‘प्रभात ‘ शिक्षा मन्दिर में बिकती है ,ईमान बिकता गलियों में

सुख सुविधा सब मिलकर बंट गई देश के ढोंगी छलियों में

रावण कर रहा उन्माद ,अब संसद की प्राचीरों में

आओ सब मिल, इन ढोंगी छलियों का पुतला जलाएं

कुछ ऐसा पर्व मनाएं ||

आखिर क्यों

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों सपनों के विम्ब ,अचानक धुंधले पड़ते जा रहे
पीड़ा के पर्वत जीवन राहों पर अड़ते जा रहे
क्यों कदमों को नहीं सूझ रही ,राह लक्ष्य पाने की
क्यों अस्मिता भीड़ के अन्दर खोती जा रही
क्यों आंसू का खारा जल दृग का आंचल धो रहा
क्यों अतृप्त भावों से मन व्याकुल हो रहा
क्यों लोग वेदना देकर मानस को तड़पा रहे
क्यों दुःख की सरिता में प्राण डूबते जा रहे
क्यों अब ईमान सरे बाजार बिक रहा
क्यों तल्खियों के बीच इन्सान पिस रहा
क्यों फूलों का शबनमी सीना ,अब रेगिस्तान बन रहा
क्यों व्यथित ह्रदय में करुणा का सिन्धु नहीं उमड़ रहा
क्यों नेता अपने श्वेत परिधान में ,आशा के बीज नहीं बो रहा
क्यों शीत की शीतता में कृषक संघर्षरत हो रहा
क्यों इन्सान अपनों से ही छल कर रहा
क्यों युवा अवसाद की गहराइयों में खो रहा
‘प्रभात ‘ क्यों यहाँ पत्तों की रूहें कांप रहीं
क्यों मानवता की जड़ें इस सघन धरती से ,रह रह कर कतरा रहीं ||

कविता : माँ दुर्गा

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों न होगा दूर तम ,माँ को याद करके देखिये
भावनाओं के भवन से भय भगाकर देखिये
ज़िंदगी खुशियों से भरी नज़र आयेगी
जागती ज़िन्दादिली से ,माँ को हृदय में बसाकर तो देखिये ||
माँ की भक्ति से जिंदगी जाफरानी लगे
पूस की धूप जैसी सुहानी लगे
माँ की कृपा है दवा ज़िन्दगी के लिये
आशीष अपरिमित माँ का ,पाकर तो देखिये ||
जीवन में जब दुःख सताने लगे
चहुँ ओर अंधेरा नजर आने लगे
उम्मीदों के दिये जब बुझने लगें
बर्बाद ख्वाबों का शहर जब दिखने लगे
माँ की भक्ति है शक्ति ,तब हौसलों के लिये
गीत माँ की भक्ति का ,गुनगुनाकर तो देखिये ||
जी रहे हैं सभी सुख शान्ति के लिये
पी रहे हैं गरल समृद्धि के लिये
ज़िंदगी खुशियों से भर जायेगी
दरबार माँ के जाकर तो देखिये ||
जब आप अपनों से धोखा खाने लगें
लुटा वफ़ा जख्म हज़ार पाने लगें
जगमगाते दीप प्यार ,स्नेह के बुझने लगें
अमन चैन चाह की हवा सब भगने लगे
माँ की कृपा है किरण ,तब ज़िन्दगी के लिये
‘प्रभात ‘ दीपक माँ के नाम का जलाकर तो देखिये
ज़िंदगी खुशियों से भरी नजर आयेगी
जागती ज़िन्दादिली से ,माँ को हृदय में बसाकर तो देखिये ||

कविता : वो एकतरफा प्यार

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो एकतरफा प्यार ,जिसके लिये हुआ दिल बेक़रार
मैं ढूंढता रहा उसे ,होकर बेक़रार
उसका मुस्कुराना देखकर
आँखों का झुकना देखकर
उसके आगे लगने लगे
महखाने सारे बेअसर
वो जाते जिधर जिधर
मैं पहुंचता उधर उधर
जैसे मृग कस्तूरी के लिए ,भटके इधर उधर
अब तो दिन कटता था ,रस्ता उनका देखकर
उनसे मिलने का मौका ढूंढता था ,दिल तो जानभूझकर ।।

वो कॉलेज कैन्टीन में मिलना ,न कोई इत्तेफाक था
वो क्यूँ न समझ पाए ,ये इत्तेफाक ही मेरा प्यार था
अब तो प्यार का रंग मुझ पर चढ़ने लगा था
चेहरे पर मेरे ,गज़ब निखार आने लगा था
मैं फ़िल्मी गीतों को गुनगुनाने लगा था
हर गीत हमको अपनी ही दास्तान लगने लगा था
बेतुकी बातें भी उसकी ,अच्छी लगने लगी थीं
सारी कमियों में उसकी ,खूबियां दिखने लगी थी ||

खूबसूरत दिखूं मैं कैसे ,परेशान रहता था
वो कॉलेज क्यों नहीँ आई ,सवाल रहता था
अपने बर्थडे से ज्यादा ,उसके बर्थडे का इंतज़ार रहता था
उसे पहले विश करना ,ऐसा ख्याल होता था
अगर वह विश कर दे,तो अपना बर्थडे यादगार होता था ||

सोंचता था कह दूँ उससे अपने दिल की बात
याद तुझे करता हूँ मैं दिन और रात
डरता था कर दे न कहीं वो मेरे प्यार को इंकार
कर दे न कहीं मेरी भावनाओं को तार तार
जब बताने गया उसे ,अपने दिल की ये बात
तो देखा किसी और को उसके साथ
टूट गया मेरा दिल कांच की तरह
बिखर गए सपने मेरे रेत की तरह
अफ़सोस है जिस प्यार का बरसों किया इंतज़ार था
मेरा पहला प्यार ही एकतरफा प्यार था ||

कविता :मोहनदास करमचन्द गांधी

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनियां में हैं शख्स लाख ,पर दिल के पास हैं गाँधी

अहिंसा ,सत्य ,समता शांति की तलवार हैं गाँधी

अटल ,अविजेय ,अविचल ,वज्र की दीवार हैं गाँधी

अडिग विश्वास ,जीवन का उमड़ता ज्वार हैं गाँधी

उमड़ता कोटि प्राणों का ,पुलकमय प्यार हैं गाँधी

मनुजता के अमर आदर्श की झंकार हैं गाँधी

सूर्य सम कांतिमयी दीप्तिमान हैं गाँधी | |

खादी के द्वारा स्वावलंबन का ,सपना गाँधी ने देखा था

स्वदेशी का उनका विचार सबसे अनोखा था

गीता कर्मयोग में उन्हें विश्वास था

अंजनि के लाल सा ,उनमे उजास था

कहतें हैं लोग व्यक्ति बड़ा वो महान था

आंधियों के बीच मानो तूफान था

वह क्रान्ति की एक मशाल था

वह सत्य का ही आदि था

अंधकार मध्य में वो ही प्रकाश था

गहन दासत्व -तम में मुक्ति -मंत्रोच्चार था

भारत छोड़ो नारे का वो सूत्रधार था

परतंत्र भारत की नव शक्ति की ललकार था | |

“प्रभात ” गाँधी जी का जीवन है मानवता का सार

कहते थे सदा ही वो ,बुरे को नहीं बुराई को दो मार

संजोकर अपने मन में ,हमको रखना है आबाद

आओ मिलकर मनाएं ,गाँधी जयंती का त्यौहार

आओ खुशहाली के फूल बिखेरें ,खुश्बू से चमन महकाएं

राम राज्य लाकर देश में देश का मान बढ़ाएं | |

कविता :पति -पत्नी का रिश्ता और कड़वाहटें

October 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पति पत्नी का सम्बन्ध,मनभाव का एक आनन्द होता है
यह पुष्पित सुमन का मकरंद होता है
यह है पावन प्रणय की उद्भावना
यह कविता का एक अनछुआ छन्द होता है

यह अन्धेरे में राह दिखाता है
जीवन में रोशनी भर देता है
रेगिस्तान को जन्नत बनाता है
अंगारों को ठंडक पहुंचाता है
ये रिश्ता बड़ा ही नाजुक होता है
इसे अटूट बनाना दोनोँ के हाँथ में होता है

इस रिश्ते में मीठा अहसास होता है
दूर होकर भी हर मोड़ पर ,आपस का साथ होता है
यह संगम है दो आत्माओं का ,जो जन्म से नहीं जुड़ता है
यह मिलन है दो एहसासों का ,जो अन्त का साथी होता है
यह एक साथ है दो साथगारों का ,जिसमें प्यार ,समर्पण होता है
यह गीत है दो राग़ों का ,इससे सुखद एहसास
दूजा कोई नहीं होता है

“प्रभात” यह रिश्ता कांच सा है
दो लोगों के बीच रहे ,तो अच्छे से पनपता है
अगर ये बिखर जाए ,तो अदालतों में भटकता है
जैसे दीमक लकड़ी को ,धीरे धीरे खोखला करती है
इक दूजे पर विश्वास की कमी ,इस रिश्ते का खात्मा करती है
आज दुःख इस बात का है ,इन संबंधों की दरिया सूख रही
प्यार का फ़ूल मुरझा रहा
है तलाक की कलियाँ खिल रहीं
पति पत्नी अपनी इज़्ज़त को अदालतों में उछाल रहे
प्यार की लड़ियों को बिखराकर ,ईश्वर का दिल भी दुखा रहे

आज दुःख इस बात का है ,लोग अग्नि की क़समें खाते हैं
अंत में जिस अग्नि में जलना है
उस अग्नि में रिश्तों को जलाते हैं
कुछ माँ बाप भी दुनिया में हैं ऐसे ,जो बेटी का घर उजाड़ते हैं
ठीक से न रहना ससुराल में तुम ,यह बेटी को सिखलाते हैं
इन टूटते बिखरते रिश्तों में
आज एक ही कारण होता है
जब दो लोगों के बीच में ,तीसरे का आगमन होता है
मत दफनाओ इन रिश्तों को
खुदा ही इसको रचता है
इस पावन रिश्ते में ,अमन चैन ही बसता है।

कविता : आईपीएल २०२०

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लो आ गया चौके छक्कों का सफर ये सुहाना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

गूंजा रण ताली से सारा जमाना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

बुमराह की यार्कर ,रसेल का सिक्सर

आर्चर की बाउन्सर ,डी विलियर्स का स्कूपर

संजू सैमसन का गेंदबाजों को डराना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

चहल की गुगली ,है अबूझ पहेली

रबाडा का बाउन्सर ,जाता है सिर के ऊपर

केएल राहुल का इनसाइड आउट शॉट लगाना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

कोहली का हुक पुल शॉट लगाना

रोहित का मुम्बई इंडियन्स में ,जीत का जज्बा जगाना

धोनी का विकेट के पीछे से चिल्लाना

डुप्लेसिस का गेंद पर नजरें जमाना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

चौपड़ा की कमेंट्री ,करती है दिल में एंट्री

जतिन सप्रू का तंज ,करता है दिल को रंज

गावस्कर का क्रिकेटर की खूबियां बताना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना

आईपीएल ने ही हार्दिक पांड्या दिलाया

कुलदीप यादव सा चाइनामैन दिलाया

इसने युवाओं का हुनर दिखाया

कुछ कर दिखाने का जुनून जगाया

क्रिकेट की लोकप्रियता को घर घर तक पहुँचाया

हारी हुई बाजी को जीतना सिखाया

नाचना सिखाया ,झूमना सिखाया

टीवी मोबाइल के आगे

स्कोर पर नजर रखना सिखाया

आईपीएल के लिए क्रिकेट मैच जारी है

आओ मिल देखते हैं किसका पलड़ा भारी है

जीतेगा वही ,जो श्रेष्ठ होगा

कला और फन में माहिर होगा

अब छिड़ चुका है युद्ध का तराना

आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना।

कविता :आओ जियें जिन्दगी ,बन्दगी के लिए

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पता नहीं किस बात पर इतराता है आदमी
कब समझेगा अर्थ ढाई आखर का आदमी
भूल बैठा है आज वो निज कर्तव्य को
खून क्यों मानव का बहाता है आदमी
क्यों शब्दों के बाण से
औरों का दिल दुखाता है आदमी
“जियो और जीने दो “कब समझेगा ये आदमी
खुद से क्या भगवान से है बेखबर
आज आस्था के मंदिर गिराता है आदमी
एक दूजे से बाबस्ता है हर आदमी
सोंचकर कल की मरता है आज आदमी
आज धर्म के हिस्सों मैं बंटा है आदमी
जाति वर्ण की चक्की में पिस रहा है आदमी
है नहीं उसे संतोष छूकर के फलक को
नर्क जीवन को बना रहा है आदमी
क्यों किसी को अच्छी नहीं लग रही मेहनत की कमाई
पाप के निवालों को शौक से खा रहा है आदमी
जब सुख में होता है ,तो ईर्ष्या करता है आदमी
और उपदेस दिया जाए ,तो मुंह मोड़ लेता है आदमी
ये लूट ,हत्या अपहरण किसके लिए
जब अंत में ,कुछ न लेके साथ जाता है आदमी
‘प्रभात’ थोड़ी सी जमीन ही तो चाहिए बाद में
फिर जमीन के वास्ते क्यों लड़ रहा है आदमी
ये रूपया पैसा काम नहीं आएगा हमेशा
फिर क्यों मोह रूपी गठरी ढ़ो रहा है आदमी
आओ मिल कर जला दें ख़ुशी के दिये
कुछ चमन के लिए कुछ अमन के लिये
आदमी आदमी से मोहब्बत करे
आओ जियें जिन्दगी ,बन्दगी के लिए …..

तड़प

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे जो अपने थे ,न जाने आज वो किधर गये
जो सपने संजोये थे ,वो सारे टूटकर बिखर गये
खुशियां मेरे आंगन की ,न जाने कहाँ बरष गयीं
और एक हम जो बूँद बूँद को तरस गये
अब तो सुनाई दे रहीं हैं नफरती रुबाइयाँ
न जाने कहाँ प्यार के नगमात खो गये
आंशुओं का अबकी बार ऐसा चला सिलसिला
कि क़त्ल सब दिलों के जज्बात हो गये
याद में उसके सारे पल गुजर गए
जैसे प्रेम फाग के सुहाने रंग उतर गए
याद में उसकी कुछ चित्र उभर कर आ गए
जैसे बरसों के प्यासे मरुस्थल में ,मेघ उतर कर आ गए
बह जाये जो अश्कों में कभी दिल को तोड़कर
तारों के जैसे टूटते ,वो ख्वाब हमको दे गए
फिर जग गई चमन में कुछ भूली दास्ताँ
कलियाँ चमन की वो ,सारी खिलाकर चले गए
अब जलाना बाकी रहा ,कंधों पर यादों का जो बोझा है
यादों की लकड़ियों की ,वो चिता बनाकर चले गए
सोंचता हूँ छोड़ दूँ यूँ घुट घुट कर जीना
मुझ बदनसीब को वो ,यूँ ठुकरा कर चले गए
हमें लगता था कि ताउम्र उनका साथ होगा
ढूंढते हैं उनके निशां ,न जाने कहाँ वो चले गए
कर बैठे थे प्यार जिनको ,वो तो बेवफा निकले
जिन्हे बादल समझ बैठे हम ,वो धुआं बनकर उड़ गए ….

बेरोजगारी

September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सरकारें बदलती हैं यहाँ पर
नवयुवकों को आश्वासन देती हैं
झूठे भाषण देती हैं
पर नौकरियां नहीं देती हैं
हर जगह लम्बी हैं कतारें
व्यवस्था में हैं खामियां
बड़बड़ाते हुये घिसट जाती हैं ,देखो कितनी जिन्दगानियाँ
आत्मनिर्भरता का स्वप्न दिखाती
झूठी दिलासाएँ देती है
सब कुछ है कागजों पर
पर नौकरियां नहीं देती हैं
बेरोजगारी का आलम है ऐसा ,लोग कितना तड़प रहे
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर
आज खुद ही इस दौर से गुजर रहे
सरकारें अपनी महिमामण्डन का गीत गा रही
डिग्रियां नवुवकों को बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहीं
अधूरे सपनों से लदे इस कंधे पर
काम का बोझ उठा रहीं
बेरोजगारी की इस महामारी में ,विद्वता दम तोड़ रही
मां बाप के सपनों को ये ,पैरों तले रौंद रही
बेशर्मी का आलम देखो
सरकारें इसे ही राम राज्य कह रहीं
देश के इस गम्भीर मुद्दे पर
मीडिया भी चर्चा नहीं कर रही
सोंचती क्यों नहीं सरकारें
भारत कैसे विश्वशक्ति कहलायेगा
यदि यहाँ का युवा बेरोजगार रह जायेगा

सच्ची मोहब्बत ही, ताजमहल बनवाती है

September 9, 2020 in गीत

कविता : सच्ची मोहब्बत ही, ताजमहल बनवाती है
जो खो गया है मेरी जिंदगी में आकर
उस पर गजल लिखने के दिन आ गए हैं
दिल दिमाग का हुआ है बुरा हाल
अब तो रात भर जागने के दिन आ गए हैं
प्यार की लहरें जब से दिल में उठ गई
सजने संवरने के दिन आ गए हैं
मोहब्बत ने वो एहसास जगाया है दिल में
अब तो तकदीर पलटने के दिन आ गए हैं
सच्ची मोहब्बत वो मझधार है
संग इसके तैरने के दिन आ गए हैं
वो ही करना पड़ा जो चाहा न दिल ने कभी
इंतज़ार करने के दिन आ गए हैं
अब न कुछ खोने का गम है न पाने की ख़ुशी
तुम्हे याद करने के दिन आ गए हैं
याद करके उनको ,सांस दोगुनी हुई
प्यार के शुरुर के दिन आ गए हैं
याद करके तुमको भीड़ में पाता हूँ अकेला
सांसों की तपिश में पिघलने के दिन आ गए हैं
ये दूरियाँ हम दोनों के दरमियान कैसी
अब तो ख्वाब सजाने के दिन आ गए हैं
मोहब्बत की दुनिया निःस्वार्थ की दुनिया है
धोखा ,मौकापरस्ती की कोई जगह नहीं है
अगर ये नहीं कर सकते ,तो मोहब्बत न करना
क्योंकि सच्चे जज़्बातों की ये नगरी है
सच्ची मोहब्बत ही ताजमहल बनवाती है
नहीं तो सुशांत रिया सा हस्र करवाती है
सच्ची मोहब्बत को जो प्रोफेशन बनाते हैं
अंत में वो सब कुछ गंवाते हैं …..

घर जलाना औरों का आसान है

September 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अगर जग बदलता है बदलने दीजिए
वक्त के साथ ही चलना सीखिए
आसमानों को छूने की हसरत है अगर
दिल में कोई ख्वाब पालना सीखिए
जीवन जीने का आनन्द है तभी
दर्द औरों का उठाकर देखिये
खुद ब खुद जीना तुम्हे आ जायेगा
निज पसीने को बहाकर देखिये
मुश्किलों का अपना मजा है दोस्तों
मुश्किलों को जीत कर देखिये
रहोगे भीड़ में लोगों की कब तक
कभी खुद की पहचान बना कर देखिये
घर जलाना औरों का आसान है
किसी का घर बसाकर देखिये
हर ह्रदय में छुपा हुआ भगवान है
सच्चे ह्रदय से गले लगाकर देखिये
अगर गलती से भी पैसे का गुमान है
अन्त सबका एक सा ,श्मशान जाकर देखिये ….

यह कैसा अच्छा दिन आया है

September 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन्सानियत को हमने रुलाया है
आज डर ने मुकाम दिल में बनाया है
मंदिर से अधिक मधुशालाएं हैं
ऐसा बदलाव अपने देश में आया है
ये वस्त्रहीन सभ्यता अपने देश की नहीं
पर्दा ही आज ,लाज पर से उठाया है
बेकारी ,भूंख प्यास ने सबको रुलाया है
भारत में यह कैसा अच्छा दिन आया है
साहित्य से क्यों दूर हैं आज की पीढ़ियां
इस विषय पर क्यों शोध नहीं है
कैसा ये सभ्य समाज बन रहा है
आधुनिक संगीत अश्लीलता परोस रहा है
आज सियासत क्रूरता को वर रही है
सच्चाई कहीं कटघरे में डर रही है
अब खून देखकर भी दिल कांपता नहीं है
दो गज जमीन के लिए तकरार हो रही है
फैलाते हैं जो जहर यहाँ धर्म जात की
वो सोंचते हैं जीत है ,पर ये उनकी हार है
प्रभात कैसे करे सलाम ऐसे अमीरों को
जिन्होंने चन्द रुपयों की खातिर ,बेच डाला है जमीर को
ऐसे लोग बोझ हैं धरा में सोंचिए
महसूस न करे जो ज़माने के दर्द को …..

गुरु महिमा

September 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुरु अर्चना ,गुरु प्रार्थना ,गुरु जीवन का आलंबन है
गुरु की महिमा ,गुरु की वाणी जैसे परमात्मा का वंदन है
प्रेम का आधार गुरु है ,ज्ञान का विस्तार गुरु है
भविष्य का निर्माण वही है ,कर्म का आकाश वही है
मैं तो हूँ एक कोरा कागज़ ,मेरा अंतरज्ञान वही है
वो उद्धारक ,वो विस्तारक, वक्क की आवाज वही है
ज्ञान रूपी गागर भर दे ,सच्चा द्रोणाचार्य वही है
अर्जुन और एकलव्य सा जीवन देखे सब में
सच्चे गुरु का ज्ञान वही है
ज्ञान मार्ग पर सफल परीक्षण करता अनुसन्धान वही है
वंदन है उस कर्मयोगी को
जिसने जीवन राह पे चलना सिखलाया
माँ की ममता सा ,प्यार पिता सा
तपते जीवन की है छाया
हूँ ह्रदय से आज आभारी पथ के अनमोल प्रदर्शक का
दिल से है अभिनंदन उस कर्म के पुजारी का ….
(शिक्षक दिवस” की हार्दिक शुभकामनाएं)

माँ

September 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम के सागर में अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की सच्ची सौदागर है
भूल कर अपनी सारी खुशियां
हमको मुस्कुराहट भरा समंदर दे जाती है
अगर ईश्वर कहीं है ,उसे देखा कहाँ किसने
माँ धरा पर तो तू ही ,ईश्वर का रूप है
हमारी आँखों के अंशु ,अपनी आँखों में समा लेती है
अपने ओंठों की हंसी हम पर लुटा देती है
हमारी ख़ुशी में खुश हो जाती है
दुःख में हमारे आंसू बहाती है
हम निभाएं न निभाएं
अपना फ़र्ज़ निभाती है
ऐसे ही नहीं वो करुणामयी कहलाती है
व्यर्थ के प्रेम के पीछे घूमती है दुनिया
माँ के प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं है
आवाज़ में उसके शब्द मृदुल हैं
ममता रूपी औरत के प्रेम में देवी है
अपलक निहारूं उसके रूप को
ऐसी करुणामयी प्यार की मूरत है
प्रेम के सागर में अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की सच्ची सौदागर है

क्योंकि आज रविवार है

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

थोड़ी देर और मस्ती करने दो
क्योंकि आज रविवार है
सपनों की दुनिया में खोने दो
क्योंकि आज रविवार है
जिंदगी बहुत हैं शिकवे तुमसे
चल रहने दे छोड़ सब
क्योंकि आज रविवार है
मुझे मालूम है ये ख्वाब झूठे और ख्वाहिशें अधूरी हैं
मगर जिंदा रहने के लिए कुछ चिंतन जरुरी है
आज ख़ुशी व चिंतन का वार है
क्योंकि आज रविवार है
समझो तो कोई पराया नहीं
खुद न रूठो ,सबको हंसा दो
यही जीवन का सार है
क्योंकि आज रविवार है
हफ्ते भर बाद फिर आएगी छुटटी
चलो सुख की छांव में ,मुकाम कर ले
पोंछ कर रोते लोगों के आंसू
खुद बने कृष्ण खुद को राम कर लें
आओ बहा दें मिल प्यार की सरिता
सूरज बाबा ने दिया हमको यह उपहार है
क्योंकि आज रविवार है
सबको जाना है ,जाने से पहले
प्रभात लेखन की दुनिया में ,अपना नाम तो कर ले
लिख रहा हूँ ,साहित्य को मेरा उपहार है
क्योंकि आज रविवार है….

बेटे के जन्मदिन पर कविता

August 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक छोटा सा सपना पूरा हुआ

जब मेरा बेटा आर्यन आया

तोतली सी बोली से जब तुमने मुझे पापा बुलाया

दिल के सारे दर्द दूर हुए

जब नन्हा चेहरा मुस्कुराया

तू मेरा लाडला राजकुमार मेरा ही दर्पण कहलाया

नटखट भोली सी शैतानी तेरी ,सबके मन को भाए

दादा दादी देख देखकर मंद मंद मुस्काए

मम्मी तेरी नजर उतारे वारी वारी जाये

बुआ फूफा चाची ताई तू सबके मन को भाये

है आज तुम्हारा जन्मदिवस 27 अगस्त है आया

कृतार्थ हुआ प्रभु का जो ,तू मेरी दुनिया में आया

दुखों से तू दूर रहे ,खुशियों के सावन आयें

तेरी जीवन की बगिया में ,रहे सभी की दुआयें

तोहफे खिलौने और मिठाई सब तुमको दे सकता हूँ

मगर परमपिता श्री परमब्रह्म से

तुम्हारी लंबी हो उमर दुआएँ करता हूँ

रहे हमेशा सदा सलामत जीवन अपना साकार करे

देकर दूसरों को खुशियों का जीवन

अपने जीवन में हर रंग भरे।

ॐ साई राम

August 25, 2020 in गीत

बाबा जी मैं जपूं तेरा नाम
सांई नाम की अलख जगा ले
भोली सी सूरत अपने मन में बिठा ले
सच्चा प्यारे सांई नाम
बाबा जी जपूं मैं तेरा नाम
कृपा दृष्टि की तेरी माया
मन कोमल मृदु शीतल काया
तेरी महिमा कोई जान न पाया
मुखमंडल पर आभा की छाया
प्यार का जो अमृत बरसाया
सुमिरन कर लो सांई नाम
बाबा जी मैं जपूं तेरा नाम
मन में अपने भाव जगा लो
जिस चाहे उस रूप में पा लो
मिट जाता मन का अंधियारा
मन को मिलता शांत किनारा
भटके मन का तू एक सहारा
चरणों में हैं चारों धाम
बाबा जी मैं जपूं तेरा नाम
हांथ जोड़ कर करूं प्रणाम
विनती करता सुबह शाम
हर बिगड़े बनते हैं काम
शृद्धा सुमन तुम्हे अर्पण कर
मेरे दिल से निकले सांई राम
शिरडी मंदिर तेरा धाम
बाबा जी मैं जपूं तेरा नाम।|

गणपति बप्पा मोरिया

August 23, 2020 in गीत

बुद्धि विनायक पार्वतीनंदन ,मंगलकारी हे गजबंदन
वक्रकुंड तुम महाकाय तुम ,करता हूँ तेरा अभिनंदन
कंचन -कंचन काया तेरी ,मुखमंडल पर तेज समाया है
मूषक वाहन करो सवारी ,मोदक तुमको प्यारा है
भक्ति भाव में तेरी देखो,खोया ये जग सारा है
मोहनी मूरत सुन्दर सूरत
भोले बाबा के तुम प्यारे हो
गौरी माता के लाल तुम्ही
तुम ही आँखों के तारे हो
विघ्न हरण तुम विघ्न को हर लो
खुशियों से झोली को भर दो
धन यश वैभव के भंडार भरो
हमारे सारे दुःख हरो
दिशाहीन हम ज्ञानहीन हम
दिशा का तुम आधार बनो
हे दुखहर्ता ,हैं हम भाग्यहीन
उदय हमारा भाग्य करो
हे अंतर्यामी जग के स्वामी ,पूजे तुमको सारा संसार है
मेरी दुविधा दूर करो प्रभु ,तेरी महिमा अपरंपार है

अंजान सफर

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चला जा रहा हूँ अंजान से एक सफर में
साथ न कोई साथी किसी मंजिल का
एक साये के पीछे न जाने किसकी तलाश में
एक चेहरा ढूंढता हूँ न जाने किसकी आस में
कभी कोई मिलता है तो ये सोंचता हूँ
कि ये वही तो नहीं जिसका ये साया है
इस अंजान से चेहरे ने ,न जाने किसका चेहरा पाया है
क्यूँ नहीं समझ पाता ,मैं उसकी बातें
इसी शरारत में निकल गयीं ,न जाने कितनी रातें
हंसता हूँ कभी कभी अपनी इसी नासमझी पर
पल हैं ये बड़े मजेदार अपनी जिंदगी के
देखता हूँ कब वह खूबसूरत मुकाम मिलता है
जीवन के इस सफर में ,हमसफ़र कोई मिलता है
ऐ अंजान से साये
मुझ पर कुछ तो तरस खा
तेरे पीछे ये कौन छिपा है
उसका चेहरा मुझे बता
दिल के इस कोरे कागज़ पर कोई तो नाम हो
आँखों पर जिसका चेहरा
होंठों पर दुआओं का काम तो हो ….

बचपन के दिन…..

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो भी क्या उमर थी,जब मस्ती अपने संग थी ,

सारी फिकर और जिम्मेदारियाँ, किसी ताले मे बंद थी,

वो गलियाँ जिसमे खेलते थे क्रिकेट,पतंग उड़ाते कभी थे,

कभी तोड़ते थे कांच तो कभी पेंच लड़ाते वो हम थे,

क्या सच में वो दिन थे बचपन के ?

बारिश मे भीगना ,क्लासेस बँक करना ,

कीचड़ के पानी मे खुद को भिगोना,

छत पे खड़े होके सीटी बजाना,

मोहल्ले मे अपनी शानो -शौकत दिखाना ,

क्या सच में वो दिन थे बचपन के ?

दोस्तों के साथ सारे-सारे दिन का बिताना,

गणपती की पूजा मे पंडाल सजाना,

विसर्जन मे ढोल की थाप पे थिरकना,

गप्पे लड़ाना, रूठना मनाना,हँसना हँसाना,

क्या सच मे वो दिन थे बचपन के?

रेट के टीले पे चढ़ना घरोंदे बनाना,

दोस्तों की मोहब्बत को अपना बताना,

किराये पे साइकिल लाकर दस मिनट ज्यादा चलाना,

गिर जाने पर कितनी चोट खाना,

क्या सच में वो दिन थे बचपन के ?

कभी भूली हुई तो कभी यादों की दस्तक,

गुजरे जमानों के पुराने पन्नों की हसरत ,

दादी नानी के वो बूढ़े मगर सपने सयाने,

अभी भी छुपे हैं वो नगमे सुहाने,

क्या सच मे वो दिन थे बचपन के ?

हाँ सच मे वो वही दिन थे बचपन के!!!

खुशहाली

August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने पन की बगिया है ,खुशहाली का द्वार

जीवन भर की पूंजी है ,एक सुखी परिवार

खुशहाली वह दीप है यारों ,हर कोई जलाना चाहता है

खुशहाली वह रंग है यार्रों ,हर कोई रमना चाहता है

खुशहाली वह दौर था यारों ,कागज़ की नावें होती थीं

मिट्टी के घरौंदे थे ,छप्पर की दुकानें होती थी

कहीं सुनाई देती थी रामायण ,कहीं रोज अजानें होती थी

खुशहाली को नजर लग गयी ,अब मद सब पर छाया है

खुशहाली कहीं दब गई ,इंसानों ने इसे हराया है

यह बदकिश्मती है खुशहाली की ,हर रोज दंगा होता है

गणतंत्र यहाँ चौराहों पर ,रोज रोज ही रोता है

जो शासक है वो ईश्वर से ,खुद की तुलना करते हैं

और नेता आज के दौर का बस ,गिरगिट सा रंग बदलता है

खुशहाली को कोई समझ न पाया ,यह दौलत से नहीं मिलती है

खुशहाली को नजर लग गई ,अब वह रुदन करती है ||

New Report

Close