by Pragya

विश्व तंबाकू निषेध दिवस

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विश्व तंबाकू निषेध दिवस:-
छोड़ो गुटखा पान तुम
इससे होता है नुकसान
बीड़ी पी पीकर तेरी
खतरे में आयेगी जान
खतरे में आएगी जान
वक्त रहते तुम संभलो
दूध का सेवन करो
आज से आदत बदलो।।

by Pragya

मेरी तन्हाईयों को

May 22, 2021 in शेर-ओ-शायरी

मेरी तन्हाईयों को अब
और ना सताओ
मुझे रातों में अब
और ना जगाओ
यूँ तो हम भी तुम्हें इश्क करते हैं
पर बार-बार मेरे दिल को यह एहसास ना दिलाओ।।

by Pragya

तुम्हारी सिसकियां

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी खामोशी
अब मेरे कानों को सुनाई देती है
तुम्हारी सिसकियां
मेरे हृदय को व्यथित करती हैं
तुम्हारे निश्चल प्रेम को
मैं समझ ना सकी
वक्त रहते मैं संभल ना सकी
क्या करूं अब ह्रदय को आराम नहीं
मेरे हृदय में तू ही तू है
और किसी का नाम नहीं ।।

by Pragya

ऐ फूल! तुम्हारा स्वागत है

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ फूल! तुम्हारा स्वागत है
तू लगता मुझको आगत है
तेरी सुगंध से महक रहा
है सारा परिवार
महका दे तू चमन को
यही है मेरी आस
यही है मेरी आस
जहान में तू छा जाए
तेरा सुंदर रूप
जहान में सबको भाए।।

by Pragya

“तुम्हारा समर्पण”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारा समर्पण देखकर
भर आई मेरी आंख
कितना सुंदर ह्रदय है
कितनी सुंदर बात
कितनी सुंदर बात कही है
तुमने मुझसे
तेरे इस मनुहार पर
हार जाऊंगी तुझसे
तेरा सानिध्य पाकर सदा
कलम चले मेरी पाक
मेरे मन में ना हो ईर्ष्या
मन हो बिल्कुल साफ।।

by Pragya

है आभा बड़ी मनोरम”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सीमित शब्दों में मैंने
रखी है अपनी बात
सुंदर-सुंदर वृक्ष हैं
चिकने इसके पात,
चिकने इसके पात
है आभा बड़ी मनोरम
सुंदर-सुंदर पुष्पों से
भरा है आंगन
कैसी सुंदर छटा है
कितनी सुंदर बात
यूं ही मिलता रहे सदा
मुझको तेरा साथ
तेरा साथ पाकर के
पुलकित हो जाऊंगी
तेरी खातिर दुनिया से लड़ जाऊंगी।।

by Pragya

नेह की सुन्दर कलम से”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन की आभा खिले
खिले विश्व में चहुँ ओर
लेखनी मेरी प्रखर हो
हो दीप्तिमान चहुं ओर
नेह की सुंदर कलम से
लिखा हुआ साहित्य
स्वार्थ हीन हो हिय मेरा
ईर्ष्या हीन कर्तव्य
दीनों के दिल की पीर हो
बेसहारे की हो सहाय
कुछ ऐसा लिख जाऊँ मैं
हो चहुँ ओर सुनाय।।

by Pragya

बढ़े विश्व का मान”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिलता प्रेम अपार है
मिलता यहां सम्मान
अपनी लेखनी से सदा
बढ़े विश्व का मान
बढ़े विश्व का मान
लेखनी ऐसी हो मेरी
ना मन में हो कलेश
ना किसी से द्वेष,
यही आकांक्षा मेरी
लिखूँ मैं कुछ ऐसा कि
सभी का नेह पा सकूँ
जिनके दिल में है द्वेष
उस दिल की आह पर सकूं।।

by Pragya

मीठा मीठा साहित्य”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीत हार से परे है
काव्य की अनुपम छटा
नवांगतुक कविजन
लिखते बहुत ही अच्छा
लिखते बहुत ही अच्छा
चाहे जो भी जीते
जीत हार की काव्य में नहीं हैं रीतें
मुझे नेह है मिल रहा
है इनका सानिध्य
मीठा मीठा लिख कवि
मीठा मीठा साहित्य।।

by Pragya

सावन का आँगन

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन में आज फिर
बहे प्रेम की धार
गा रहे कवि सभी
मीठा मीठा राग
मीठा मीठा राग गायें
मिल सभी कविजन,
ना मन हो छोटा
यह है सावन का आँगन
बिना अनर्गल बातों में आये
लिखो कहानी
जो पढ़कर बच्चा बच्चा,
हर्षित हो राजधानी।।

by Pragya

दहेज प्रथा का प्रचलन

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दहेज प्रथा का प्रचलन किसने चलाया ?
यह सवाल मन में बार-बार उठता है
दहेज प्रथा के कारण ही बेटियां जलाई जाती हैं।
दुनिया में आने से पहले ही कोख में मार दी जाती हैं।
जो दहेज की लालसा मनुष्य के मन में ना होती
तो आज दुनिया,
बेटा और बेटी में फर्क ना समझती।।

by Pragya

वृक्षारोपण कवच है।।

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वृक्षारोपण कवच है
वृक्षारोपण ही वैक्सीन
वृक्षारोपण से धरती सुंदर हो
हो मन हरा रंग भरा रंगीन
हो मन हरा भरा रंगीन
सुगंधित पुष्प खिलेंगे
धरती उपवन बनेगी
देवता आन मिलेंगे।।

by Pragya

अपने जन्मदिवस पर एक पौधा लगाओ

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुंदर-सुंदर वृक्ष हैं
सुंदर-सुंदर पात
वृक्षारोपण करके ही
प्रदूषण से मिलेगी निजात
प्रदूषण से मिलेगी निजात
सैकड़ों वृक्ष लगाओ
अपने जन्मदिवस पर
एक-एक पौधा सभी लगाओ
वृक्ष लगाने से ऑक्सीजन लेवल बढ़ेगा
महामारियों से निजात मिलेगी, प्रदूषण घटेगा।।

by Pragya

आस्तीन का सांप

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भेड़िए की शक्ल लिए
बैठा हर इंसान
इनसे अब कैसे भला
बच पाएगी जान,
बच पाएगी जान
करें अब कौन उपाय ?
जब आस्तीन का सांप
दोस्ती यार निभाए।।

by Pragya

ब्लैक फंगस का वार”

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोरोना से जूझता था
हर एक परिवार
तभी कहीं से आ गया
ब्लैक फंगस का वार,
ब्लैक फंगस का वार
हाय ! है बड़ा भयानक
जिसको यह लग जाए
मृत्यु हो जाए अचानक
कैसे-कैसे लोग हैं
मिटता जाए संसार
कोरोना अभी ना खत्म हुआ
आ गया ब्लैक फंगस का वार।।

by Pragya

नैनों के तटबंध

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नैनों के तटबंध से
बहे अश्रु की धार
मुख तो पट बंद हैं
भीतर घोर अन्धकार
भीतर घोर अंधकार,
कहां से दिया जलाएँ
बैठे-बैठे लुट गए
किसे अब दोष लगाएं??

by Pragya

दिखे राह में श्याम..!!!

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन मन में ऐसो रमो
राम- श्याम का नाम
काया हो गई श्याम रंग
मन में राम का नाम,
मन में राम का नाम
लगन अब प्रेम की लागी
राम से मिलने शबरी जैसी
पीछे भागी
दिखे राह में श्याम हाय!
मैं बन गई राधा
बईयाँ पकड़ी मोरि
रह गया सपना आधा।।

by Pragya

आकाश गंगा में…

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मित्रता करने को
हाँथ फ़ैल जाते हैं
उड़ने को आसमान में
पंख खुल जाते हैं
जी करता है एक लम्बी साँस लूँ
उड़ चलूँ गगन में
बादलों से करूं आँख मिचौली
बैठूँ सितारों के साथ
चाँद से नूर चुरा लूँ
आकाश गंगा में थोड़ा तैर लूँ।।

by Pragya

बांहे फैलाये आसमान…

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखा बांहे फैलाये
आसमान खड़ा है
गुलाब में कुछ नई कोपलें फूटी,
अजूबा सर उठाये खड़ा है
शायद ये कल की बारिश का
नतीजा है,
जो सूखे पत्तों में भी जान फूंक दी।।

by Pragya

मन के अन्दर बैठा पापी…

May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुरा कोई नहीं,
बुरी हमारी सोंच है
मन के अन्दर ही बैठा पापी,
कहने में क्या संकोच है।
ढूँढ़ोगे जहान में
यदि तुम अच्छा इन्सान,
मिलना तब तो मुश्किल है
जब बुरी तुम्हारी सोंच है।।

by Pragya

बादलों के पीछे…

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसमान में स्याह
बादलों के पीछे,
मैने तुम्हें देखा
सफेद रंग की टोपी लगाए
लाल रंग की शर्ट पहने
तुम कोई चित्र बना रहे थे
किसी की घनी जुल्फें,
गोरी रंगत, पैरों में पायल
होंठो पे लाली
तुम्हारी पेंटिंग देखकर
लगा जैसे तुम मेरा ही चेहरा
उतार रहे हो,
पर तुम्हारे चित्र में और मुझमें
बस एक अन्तर था,
वो तुम्हारी कल्पना थी
और मैं तुम्हारी प्रेयसी…

by Pragya

एक लम्बी साँस लेकर°°°

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सो जाते हैं हम
एक लम्बी साँस लेकर,
नींद में तुम्हें देखने की
तमन्ना रखते हैं ।
बार-बार खोलते हैं हम आँखें,
इस तरह तुम्हारे इन्तज़ार में
हम पूरी रात नहीं सोते हैं।।

by Pragya

कविता मन तक आती है

May 21, 2021 in मुक्तक

तुम्हें बोलने को कुछ
कविता मन तक आती है
पर संस्कार हमारे
हमें गूंगा बना देते हैं…

by Pragya

मैं भारत माँ की जाई हूँ….

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये भारत भूमि है अपनी
मैं भारत माँ की जाई हूँ
किसी दीवाने के दिल की
मैं मीठी सी रुबाई हूँ
मेरे संबंध है सब कुछ
यही अब मेरी दौलत हैं
नहीं ये पूंछो अब मुझसे
मैं कितनी चोट खाई हूँ ।।

by Pragya

“वो अब कहते हैं मत बोलो” (छंद बद्ध)

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तबाही मेरे मन की तुम
हंसी में लेके मत डोलो
मेरे गीतों को अपने
प्रेम के भेंट मत बोलो
जो कभी मरते-मिटते थे
मेरे अल्फाजों के दम पर,
कि अब देकर हमें कसमें
वो अब कहते हैं मत बोलो।।

by Pragya

“सुख की प्राप्ति”

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज अर्ध-निद्रा में ही
कुछ जागने की चेष्टा की
जाने कितनी दूर चलकर
मैं जाने कहाँ पहुँच गई !
अर्द्ध विक्षिप्त अवस्था में,
देखा तो हजारों पुष्प
सोने के सरोवर में स्नान करके
पूजा करने जा रहे हैं
माँ गौरी की पूजा
मैने भी उस स्वर्ण सरोवर में
स्नान किया और
पूजा की,
मन को शांति मिली
सुख की प्राप्ति हुई।।

by Pragya

आकांक्षाओं की माला

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आकांक्षाओं माला
इतनी वृहद होती है कि
उनकी एक माला जपते-जपते
हीरे जैसे कीमती संबंध
बिखर जाते हैं ।।

by Pragya

अक्सर बंद कमरे में सिसकियाँ निकल जाती हैं…

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम महफिल में रकीबों से
घिरे रहते हैं,
अक्सर बंद कमरे में
सिसकियाँ निकल जाती हैं।।

by Pragya

हिसाब नहीं••••

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हृदय पर कितने पत्थर रखे हैं
हिसाब नहीं
हम तुम्हें याद कर कितना रोए हैं हिसाब नहीं।
तुम देते रहे सितम अपनी मदहोशी में
हमारे जमीर को कितनी चोट लगी हिसाब नहीं।।

by Pragya

कुष्ठ रोग:- मन बूढ़ा हो गया….

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन बूढ़ा हो गया
मगर ना मन की
पीर गई
सडकों पर ही
जन्म लिया और
सड़कों पर ही
मर गई,
कोढ़ की काठी,
कोढ़ की काया,
कोढ़ हुआ यह जीवन
मन खनके कितने
कंगना
मिल पाये ना साजन,
मिल पाये ना साजन
ऐसा रूप ही पाया
देखा सबने हँसकर
बस माखौल उड़ाया
अब भी दिल के अंगारे
अक्सर जल पड़ते हैं
ना मिलते दो पैसे
भूख से हम
मरते हैं।।

by Pragya

“भारतीय संस्कृति”

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारतीय संस्कृति,
अमिट
अडिग
अति सुन्दर
मनभावन,
स्वीकृत भावों की
भंगिमा है
जिसे अपनाया
सहेजा
संवारा और
ह्रदय तल से
स्वीकृत किया जाता है
जो सदा सबका
हित
लिये रहती है और
संस्कारों की धरोहर
हर मनुष्य को देती है
जिससे सुदृढ़ होता है,
मन
वचन
कर्म
व्यक्तित्व,
जो समयानुसार
परिवर्तित भी होती है
अपने अन्दर
सर्व धर्म समभाव
की भावना लिये रहती है।।

by Pragya

अंतर्राष्ट्रीय शांति:- इजराइल और हमास”

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीच सड़क पर जलते देखो
शोले और अंगारे,

बूढ़े बच्चे और जवान
इस अशांति से हारे।

प्रेम से रहने का पाठ पढ़ाती
है हमारी संस्कृति,

अंतरराष्ट्रीय शांति पर कितनी
लिखी जा चुकी हैं ​कृति।

पर निस-दिन इस विश्व में देखो
होता रहता है युद्ध,

इतनी अशांति देखकर जग में
प्रज्ञा’ का मन है क्षुब्ध।

इजरायल और हमास को
जाने क्या है सूझा !

ऐसी महामारी के चलते भी
आपस में लड़-जूझा।

बंद करो यह लड़ना-भिड़ना
आपस में सौहार्द बढ़ाओ,

प्रेम से मिलकर रहो और
मित्रता का हाथ बढ़ाओ।।

by Pragya

इसे वर्षों में मत तोलो।।

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये रिश्ते अब अमानत
इन्हें तुम ऐसे मत तोड़ो
अगर कोई शिकायत है
तो हमसे बेझिझक बोलो
मगर ए हुस्न के मालिक !
ना इतरा तू इस तरह से
क्षणिक है हुस्न की महफिल
इसे वर्षों में मत तोलो।।

by Pragya

एकाकीपन…

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल के दर्मियां कुछ जख्म
हरे हो रहे हैं
वो हमारे और करीब हो रहे हैं
वह अब यह नहीं जानते
इन रिश्तों से मेरा दम घुटने लगा है
हमें अब उनके सहारे से ज्यादा, एकाकीपन भाने लगा है।।

by Pragya

“रिश्तों का यह मेला”

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूलों से भी प्यारा लगता
रिश्तों का यह मेला
जिन रिश्तों ने मुझको पाला
दिया जीवन को नया सवेरा
कुछ रिश्ते दम घोंट रहे
जो स्वार्थ की करते
सवारी हैं
जो देते हैं मुझे प्रेरणा
हम उनके आभारी हैं।।

by Pragya

गौ माता

May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुदन कर रही देखो प्यारे
गौ माता निज राहों में
अपने बछड़े को मनुहार से बुलाती
आजा प्यारे बाहों में
अब यह दुनिया नहीं रही
विश्वास के लायक
गौ माता बस एक जानवर
हो चाहे जितनी फलदायक
मिले अगर मौका तो मुझको
मार मार खा जाते हैं
दुनिया के सामने मगर
गौ रक्षा चिल्लाते हैं
पापी दुनिया, पापी पालक
पापी इनकी सोंच है
गौ माता निकले राहों में
दिल में लिये संकोच है।।

by Pragya

“प्रारब्ध की ऊँघ”

May 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अदृश्य,
अकल्पनीय,
प्रारब्ध की ऊँघ,
उच्छ्वास प्रकृति का
है मां का प्यार
प्रभाकर की रोशनी
से भी तीव्र है
ममता की लौ
जिसमें पुलकित होते हैं
नन्हें सुमन
और देते हैं जहान को
सुन्दर सुगंध
प्रदीप्त हो जाती हैं
जीवन की लडियाँ
भर जाता है
जीवन का हर कोना-कोना।।

by Pragya

प्रकृति भी रो रही है…

May 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विश्वास रखते हैं पर फिर भी
टूट जाता है
जब कोई जनाजा
सामने से गुजरता है
क्या कमी थी इस जहान में
सब कुछ तो था
इतनी खूबसूरत थी दुनिया
कोरोना का डर ना था
अब तो चंद मिनटों में ही आदमी
सिमटता जाता है
हर रोज किसी का
अपना चला जाता है
जनाजे दफनाने को भी
जमी कम पड़ रही है
प्रकृति भी यह सब देखकर
रो रही है।।

by Pragya

कुछ उम्मीदों के सिक्के…

May 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ उम्मीदों के सिक्के
यूं ही खनकते रहते हैं
हम आगे बढ़े, तुम आगे बढ़ो
ये ही कहते रहते हैं
पर क्या करें
पैरों में बेड़ियां हैं
सपने बड़े हैं पर
रास्ते में रोड़ियां हैं
इसीलिए पैर थम जाते हैं
जो करना चाहते हैं हम
नहीं कर पाते हैं।।

by Pragya

ऐ खुदा ! तू ही बचा….

May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चांद आया है जमीं पर
आज मिलने को गले

रमजान पूरे हो गए और
ईद मिलने हम चले

रोंकती राहें हमें है
मिलने जा तू ना कहीं

खौफ दिल में ये भरा है
साँस थम जाए ना कहीं

जो होगा देखा जाएगा
हम ईद मिलने जाएंगे

सवाल उठता है बार-बार
क्या घर लौट के फिर आएंगे ?

कैसा वक्त आया है खुदा ?
इंसान ही बैरी बना

कैसी दूरियां ये आ गईं ?
सब कहते हैं इसे कोरोना

ऐ खुदा ! अब तू ही बचा
अपने मासूम बंदो को

फिर जलाकर के चिराग
रौशन कर दे चमन को।।

by Pragya

शेषनाग पर सोते हैं….

May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना सोचा था हमने कभी भी
ऐसे दिन में आएंगे
घर में बैठकर तोडेंगे रोटी
कमाने कहीं ना जाएंगे
होंगे इतने आराम पसंद
दरवाजे पर ही सब्जी लेंगे
जो बन जाएगा वह खा लेंगे
दिन में भी खर्राटे लेंगे
फोन उठाने में भी आलस
हमको अब आ जाएगा
लेटे-लेटे कमर दुखेगी
बिजली का बिल बढ़ जाएगा
लॉकडाउन ने हमें सिखाया
एक दिन में कितने सेकंड होते हैं
घर की महिलाएं काम करें और हम
विष्णु जी के जैसे शेषनाग पर सोते हैं।।

by Pragya

“ईद मुबारक”

May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत का पैगाम लेकर
आया है यह चांद
अम्मी, अब्बू, खाला और
आओ भाई जान
बड़े तसव्वुर से गुजरे
रोजे-रमजान
ईद मुबारक हो सबको
हिंदू हो या मुसलमान
मस्जिद से आया बंदों
एक जरुरी पैगाम
अपने घर में ही नमाज पढ़ो
है यह अल्लाह का फरमान।।

by Pragya

सड़क दुर्घटना:- मानवता निष्प्राण पड़ी है…

May 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मानवता निष्प्राण पड़ी है
कब से देखो तड़प रही है
कोई सहारा देने ना आया
कितने लोगों की भीड़ लगी है
कोई खींचता फोन से फोटो
मेरी लाईव वीडियो वायरल हुई है
हाय करे कोई तौबा बोले
मेले जैसी भीड़ लगी है
नहीं सहारा दिया किसी ने
हाथ भी लगाया नहीं किसी ने
मेरी आत्मा सिसक रही है
मानवता निष्प्राण पड़ी है
कब से देखो तड़प रही है।।

by Pragya

कितनी रातें…

May 13, 2021 in शेर-ओ-शायरी

जाने कितनी रातें रो कर बता देती हूं
तेरी याद में खुद को भी भुला देती हूं

by Pragya

कौन मुझे अब अपनाएगा…???

May 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोरोना से सिमटते परिवारों की व्यथा:-

कैसा जीवन हाय ! हमारा
लगता ना कोई भी प्यारा
मम्मी, पापा, दादी, बाबा
भाई जो कल ही था
दुनिया में आया,
चले गए सब छोड़ मुझे अब
कौन करेगा प्यार मुझे अब !
कौन बलाएं मेरी लेगा ?
कौन अब मेरे संग खेलेगा ?
किसको अब मैं तंग करूंगी ?
किसकी गोदी में खेलूंगी ?
सोच रही है यह प्यारी गुड़िया
जो कल तक थी आफत की पुड़िया आज बैठी है चुप्पी बांधे
निज आँखों के अश्रु साधे
शेष बची बस एक ही दौलत-
गोद में गुड़िया और साँसों की मोहलत
कैसे जीवन जिया जायेगा !
कौन मुझे अब अपनायेगा…!!

by Pragya

दिन गुजरेंगे ये दुखदाई….

May 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

असमंजस में जीवन गुजरा
विपरीत दिशा जाती सांसें
कोहराम मचा चहुँ ओर
रोती बिलखती दिखती आंखें
पीर उठे दिल में ‘प्रज्ञा
चीख उठे पत्थर दिल भी
ऐसे दृश्य ना देखे हमने
कल्पना भी कभी न की
दिन गुजरेंगे ये दुखदाई
होगा फिर से नया सवेरा
विनती करते हैं ईश्वर से
मिट जाएगा यह घोर अंधेरा

by Pragya

सवाल उठाते रहे…

May 10, 2021 in शेर-ओ-शायरी

मेरी मोहब्बत पर तुम
सवाल उठाते रहे
ऐसा तुम यार बार-बार
करते रहे

by Pragya

तुम आओगे मुझे मिलने…..

May 10, 2021 in मुक्तक

तुम आओगे मुझे मिलने
खबर ये जब से सुन ली है
अपने अरमानों की डोली
हमने फिर से बुन ली है….

by Pragya

है नामुमकिन मिटा पाना…..

May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

है नामुमकिन
मिटा पाना
मेरे दिल से
मोहब्बत को
तेरी नजरों की
शोखी को
होंठों के हस्ताक्षर को
जो तन से लेकर
मन तक छपे उन
मौनी चुंबनो के ठप्पे
मिट कैसे पाएगें
लगे तन से जो मन तक हैं
छपे तन पे जो छापे हैं
वो अब हरगिज
ना जाएगे
बड़ी मुश्किल में
अब हैं हम
मिटा अब कैसे पायेंगे…. !!!

by Pragya

कलम और स्याही°°°

May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी कलम और मेरी स्याही
लिखते लिखते बोल रही
ओ सखि ! तू किन ख्वाबों को
पन्नों पर उकेरती रहती है ?
रातों को जगकर
खामोंखा जाने क्या लिखती रहती है!
मैं बोली-
ओ बावरी कलम और स्याही!
लिखती मैं दिल के जज्बातों को
तू ना समझी क्यों ना समझी
मेरे ऐसे हालातों को
बातें जो रह जाती हैं दिल में
होंठों तक ना आती हैं
मेरे दिल में पावस बनकर
दिल में ही रह जाती हैं
मैं उन बातों जज्बातों को
पन्नों पर लिख देती हूँ और
इसी बहाने से खुद को कवयित्री कह लेती हूँ…

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