by Pragya

सौन्दर्य एक परम अनुभूति है।।

June 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सौंदर्य एक परम अनुभूति है,
हमारे नेत्रों से आत्मसात होकर
अन्तस तक जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य हर मन को भाता है।
काव्यगत सौंदर्य काव्य के गुण-धर्म
से परिचित कराता है।
विचारों का सौंदर्य व्यक्तित्व को
आकर्षक बनाता है।
दैहिक सौंदर्य कामी बनाता है।
परंतु आन्तरिक सौंदर्य जीवन को
बहुमूल्य बनाता है।।

by Pragya

गीत नया गाता हूँ

June 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी कल्पनाओं का
कायल हुआ जाता हूँ
भावनाओं में तेरी
बहता-सा जाता हूँ
शब्द तुम्हारे फूटते हैं
अंकुरित होकर
तेरी स्मृतियों में खोया सा जाता हूँ
दोपहर में तू घनी छांव सी है प्रज्ञा’
तेरी आँखों में डूबा सा जाता हूँ
गीत तेरे बोलते हैं
जो ना बोल पाती तू
तेरे उन गीतों को मैं
एकाकी में गुनगुनाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
गीत नया गाता हूँ ।।
———-✍✍
प्रज्ञा शुक्ला

by Pragya

जब हौसला हो, दृढ़ निश्चय हो..तब क्या डर तूफानों से

June 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशियों के रंग फैलाओ
बिखरा दो तुम पुष्पों को
नए नवेले पंख लगाकर
सच कर दो तुम स्वप्नों को
चित चंचल है नयन बिछाए
देख रहा है अम्बर में
चाँद को शायद लाज़ आ गई
जा के चुप गया बादल में
घोर अँधेरा जो छाया है
मिटा दो तुम मुस्कानों से
जब हौसला हो, दृढ़ निश्चय हो
तब क्या दर तूफानों से..!!

by Pragya

“बन्धन में होना बाध्य नहीं”

June 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बन्धन में होना बाध्य नहीं
अपितु एक स्वतंत्रता है
विचारों की स्वतंत्रता,
भावों की स्वतंत्रता,
जीवन के अद्भुत अनुभवों की स्वतंत्रता,
सागर के विशाल गर्भ में
विचरण करने की स्वतंत्रता,
नव- विटप के वातास होने की स्वतंत्रता,
प्रेमपूर्ण आलिंगन के विनिमय की
स्वतंत्रता।।

by Pragya

फिर कोई खत रहा होगा

June 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर मुझे याद कर रहा होगा
फिर वो आँसू बहा रहा होगा

उसके नैनों की झील से बहकर
फिर कोई खत आ रहा होगा।।

by Pragya

अमावस की रात बना गया।।

June 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुंजाइश ही नहीं थी कि
चांद यूँ बदली में अपना मुँह
छुपा लेगा,
मुझे देखेगा और कुछ ना बोलेगा।
मेरी नाउम्मीदी को नकार कर
पूर्णिमा की अनघ चांदनी में संवर कर,
चला गया वो घने बादलों की बाहों में,
मेरी बेचैनी को और बढा गया पूर्णिमा के सुंदर यौवन को
अपने अप्रतिम वेग से
अमावस की रात बना गया।।

by Pragya

“खामोशियां एक राज हैं”

May 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामोशियों को अपनी
बस एक राज रहने दो
आज कुछ मोहब्बत की बातें हो जायें,
शिकायतों के पुलिंदे कल खोल लेना,
आज रहने दो।
अंधेरों की, उजालों की,
बातें आज करते हैं,
बड़ा गमगीन है दिल,
गम की बातें आज रहने दो।।

by Pragya

धुयें से सेंकते क्यों हो…!!

May 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस:-
जीवन में ये जहर क्यों
घोलते हो
अपने फेफडों को तुम
धुयें से क्यों सेंकते हो
छोंड़ दो तम्बाकू का सेवन करना
सीख लो तंबाकू छोड़ कर जीना
ये तुम्हारी सेहत को नुकसान
पहुंचायेगा
जीवन को तुम्हारे दुष्कर बनाएगा।।

by Pragya

बहुत रो लिये हम अंधेरों में जाकर..

May 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों लुटती हुई जिन्दगानी
मिली है
क्यों हर नब्ज़ आज
पानी से भरी है
बहुत रो लिये हम
अंधेरों में जाकर
क्यों हमको ये पीर की निशानी मिली है
ना आँखों में अब रह गये
बाकी आँसू
क्यों वेदना की ये सूरत
पुरानी मिली है???

by Pragya

चीख

May 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी बेसुध, बेजान
पड़ी रूह
बेआबरू हुआ जिस्म
आज फना हो रहा है
जा रहा है अन्तरिक्ष की
वृहद सैर पर,
जीवन में कुछ लूटेरों
मेरे वजूद को ही मार दिया
मेरे औरत होने पर
एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया
धिक्कारती हुई सी चीख निकली
मेरे टूटते जिस्म से,
आवाज रुंध गई जैसे कंठ में
भीग कर
कोयले की कालिख में
मेरा तन
निर्जीव हो गया
जिसने भी सुना मुझे ही
कोसता गया
आज जिन्दगी के मैले बर्तन से
निकल कर,
दुर्गंध छोड़ते समाज के चंगुल से मुक्त हो कर,
जा रही हूँ,
न्याय की आशा नहीं है पर
अभिलाषा लेकर जा रही हूँ।।

by Pragya

कर्जदार होते जा रहे हैं

May 29, 2021 in शेर-ओ-शायरी

जख्मों को हमारे वह
कुरेदते जा रहे हैं,
कुछ इस तरह वह
मुझे आजमा रहे हैं।
मेरी रूह में सांस
धुंधली हुई जाती,
हम उनकी मोहब्बत के
कर्जदार होते जा रहे हैं।

by Pragya

कैसे सहेगी वो…

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे ईश्वर!
उस दिवंगत आत्मा को शांति दे
ममता की घनी छांव आज
उदास हुई
उस माँ की ममता को
शक्ति प्रदान करे
कोख का उजड़ जाना कैसे
सहेगी वो,
भला बेटी बिन अब
कैसे रहेगी वो
काश! ये सिर्फ एक छलावा हो
उस मासूम को अभय दान करे
हे ईश्वर!
उसे शक्ति दे और मन को
शांति प्रदान करे।।

by Pragya

कहां तुम चले गए…!!

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोई तो होगी आज
चांदनी भी,
टपक के गिरी होगी जमीं पर
बूंद बूंद बन के पिघली होगी वो
हाय ! कैसे संभली होगी वो
निराश नैन पथरा गये होंगे
दिल के टुकड़े हो गए होंगे
ना पाई होगी जब
अपने आस पास अपनी गुड़िया वो
लब अवश्य थरथराए होंगे
बोले होंगे बेचैन नैन
बिन कहे कुछ भी
ओ मेरे आंचल के नन्हे पुष्प
‘कहाँ तुम चले गए..!!!

by Pragya

तू अभी जिंदा है…!!

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओ मेरी घृणित, उपेक्षित ईर्श्या!
तू अभी जिंदा है!!
मेरे पीर के तम में
मेरे आज में कल में
पर्वतों की विशालता सम
तू अभी जिंदा है!!

मेरे जीवन में उजास-सी
किसी क्लेश की तलाश-सी
सरिता में मलिन नीरस सम
तू अभी जिंदा है!!

कालसर्प के दंश में
रात्रि के अंक में
राक्षसी प्रवृति सम
तू अभी जिंदा है!!

by Pragya

बेटी का तर्पण

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुक गई सांस,
भर आया हृदय
दुख के सागर में मन डूब गया
व्यथित हुआ
भारी हुई पलकें
तुझसे मिलने को
मन छटपटाने लगा..
कैसे तुझसे अब कहूँ कुछ मैं
कैसे तुझको अब संभालूँ मैं
बाप तो मैं भी हूँ
पीर में डूबा हुआ हूँ
कैसे बेटी का तर्पण करूं अब मैं…

by Pragya

गुरूर है मुझे

May 29, 2021 in शेर-ओ-शायरी

गुरूर है मुझे अपने
चांद से चेहरे पर,
किसी की आरजू मुझे
बेदाग करती है।

by Pragya

मेरा साया

May 29, 2021 in शेर-ओ-शायरी

तू ऐसा रम गया मन में
ना कुछ अब तो पराया है,
मैं तेरी रूह जैसी हूँ और
तू मेरा साया है।

by Pragya

अंतस में दिए जलते, रोशनी आसमां तक हो

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू जर्रों की तरह उड़कर
मेरी सांसों में मिलता है
ये मन योगी हुआ
तन भस्म देखो मलता रहता है
अन्तस में दिये जलते
रोशनी आसमां तक हो
पुष्प जोगी बने फिरते
कहो फिर इश्क कैसे हो !!

by Pragya

वह सरोवर और पारस पत्थर

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने कहां और
कितनी दूर चली,
चलकर हिमालय की
पर्वत श्रृंखला में पहुंच गई
वहां पड़े पारस पत्थर को उठाया अर्ध निंद्रा में ही थी-
सरोवर में बहते सुंदर
नीले जल पर
कमल की पंखुड़ियों से लिख दिया “वह सिर्फ मेरा है”
तभी फोन की घंटी बजी और आंख खुल गई….

मुझे सब याद था,
वह हिमालय, वह सरोवर और पारस पत्थर।।

by Pragya

मेरा गीत बन कर तो देख….

May 29, 2021 in शेर-ओ-शायरी

कभी झांक कर देख मेरी नजरों में
हो जाएगा तू दीवाना।
एक बार दिल में आकर तो देख
आ तुझे मैं लबों से छू लूं
तू कभी मेरा गीत बन कर तो देख।

by Pragya

तो फिर आवाज दे देना

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत के सफर में एक नया
आगाज़ कर देना
मैं तुझसे दूर गर जाऊं
तो फिर आवाज दे देना
मैं लिखती हूं तुझे हर रोज
अपने दिल के पन्नों पर
कभी फुर्सत मिले तो
उन गीतों को तुम गुनगुना देना।।

by Pragya

कागजी प्रेम

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कागजी प्रेम,कागज़ के
कुछ पन्नों तक ही सिमट कर रह जाता है।
कुछ आंशिक शब्दों से
शुरू होकर,
आंशिक ही रह जाता है।
विश्वास की डोर बड़ी
कच्ची होती है
प्रेम की मिठास बस
जिस्म तक होती है
रूह तक एहसास ना पहुँच कर
जिस्मानी ही रह जाता है
कागजी प्रेम,
कागज के कुछ पन्नों तक ही सिमट कर रह जाता है।

by Pragya

“देह की उर्मियाँ”

May 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसमानी रंग में
अब तो रंगी दुनिया
नेह के दीपक तले
जल रही तनहाईयाँ
दूधिया रोशनी में सज रहा प्रियतम
मेरी चुनरी ओढ़ कर
पवन ले रही अंगड़ाइयां
बारिश की बूंदों से
दिल की सज रही महफिल
अश्क तकिए पर पड़े हैं
मुस्कुरा रही हैं दह की उर्मियाँ।।

by Pragya

रात की दहलीज पर…

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आकाश की बाहों में
चुप जाने को जी चाहता है
सूरज की गर्मी में तप जाने को
जी चाहता है
रात की दहलीज़ पर
नंगे पांव रखकर
चांद की चांदनी में नहाने को
जी चाहता है
शराब की बोतल में
बन्द कर दूं सारे जख्म
आज खुशगवार हो जाने को जी चाहता है।

by Pragya

“झूठी मुस्कान”

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभिनय की इस परंपरा को
मैंने अब तक खूब निभाया
दिल के आंसू छुपा लिया और
झूठी मुस्कान से सब को रिझाया
बात बना ली, जख्म छुपाए
रात-रात भर नींद ना आए
चंदा से आंख मिचोली करके
खेल-खेल में उसे हराया।।

by Pragya

“जीवित ही बेजान किया है”

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबक-सुबक कर निकल रहे हैं
गम के आंसू ढलक रहे हैं
कुछ गालों से रेंग रेंग कर
कवि के मन को भिगा रहे हैं
कुछ आंचल के छोटे टुकड़े में
अपने अस्तित्व को छुपा रहे हैं
कुछ गालों पर ढुलक रहे हैं
कुछ कंठ के नीचे तक जा रहे हैं
क्या किसी ने इनका
अपमान किया है ?
या अपनों ने अनजान किया है ?
या समय की बलिवेदी पर चढ़कर
सब ने अपना मुंह फेर लिया है !
क्या बीता इस बेचारी पर,
जो जीवित ही बेजान किया है !!

by Pragya

बूढ़ी-सी झुर्रियों में…!!!

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन बूढ़ी-सी झुर्रियों में
जाने कितने राज़ हैं
नजरों को है इंतजार और
जाने कितने ख्वाब है
उम्र की दहलीज पर
बैठा तन का मेमना
बूंद आंखों में छुपी है
ह्रदय में जाने कितनी बरसात हैं
तन जला और मन जला है
जिंदगी के कोयले में
भाप बन कर उठ रहे हैं
यह दिलों के आगाज हैं।।

by Pragya

कुछ मन्नतों की बात हो

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ राहतों की बात हो
कुछ चाहतों की बात हो
आओ सपनों में रंग भरे
कुछ रंगतों की बात हो
आभार करें ईश्वर का हम
कुछ मन्नतों की बात हो
आज भूल जायें हम सारा जहान
कुछ तेरी मेरी बात हो।।

by Pragya

मनमर्जियां

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल देते हैं दिल को राहतें
करते हैं कुछ मनमर्जियां
सपनों को लगा दे पंख
जी ले अपनी जिंदगी
ना करें दुनिया की फिक्र
हो जाए थोड़ा बेशर्म
जो भी सवारे सपनों को
दे दें उसको अपना मन।

by Pragya

मोहब्बत किससे होती है???

May 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो चेहरे से नहीं होती
मोहब्बत किससे होती है ?
जो आंखों से नहीं होती
मोहब्बत किससे होती है ?
दिल तो आजकल बिकते हैं
सरेआम बाजारों में,
अगर दिल से नहीं होती
मोहब्बत किससे होती है??

by Pragya

चांद को बंद करके मुट्ठी में (यमक अलंकार से अलंकृत)

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात किसकी मोहब्बत में
भला सारी रात जगती है
उसे किससे मोहब्बत
जो ना पलकों को झपकती
चांद को बंद करके मुट्ठी में
पूँछ लूंगी आसमान से
रात क्या दिन से मिलने खातिर ही
सारी रात तड़पती है।।

by Pragya

इबादत किसकी होती है ???

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी यादों में अक्सर
सुबह से शाम होती है
ना अब दिन ही गुजरते हैं
ना अब तो रात होती है
खुदा भी सामने मुझसे
कभी मिलने को आ जाए
बता देंगे उसे भी हम
इबादत किसकी होती है ??

by Pragya

मेरी मुस्कान में कुछ राज हैं

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी मुस्कान में कुछ राज हैं
जो राज रहते हैं
वो मेरे हैं आजकल ये
भरे बाजार में कहते हैं
मेरे महबूब में दिखते हैं
मुझको देवता सारे
मुझको दोस्त मेरे
आजकल बीमार कहते हैं।।

by Pragya

किताबों में ही दिखती हैं

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये हमदर्दी की बातें
बस किताबों में ही दिखती हैं
मोहब्बत तो आजकल यार
बाजारों में बिकती है
भरोसा किस पर करें और
प्यार भी किससे करें आखिर
आजकल तो दिल की दुनिया
महज अपनों से लुटती है।।

by Pragya

मैं तेरी ग़ज़ल हूं

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं तेरा ख्वाब हूं
तू मेरा ख्वाब है
मैं तेरा जुनून हूं
तू मेरा रूआब है
तेरी साँसों की खुशबू से
तुझे पहचान लेती हूँ
मैं तेरी गज़ल हूँ
तू मेरे दिल का साज है।।

by Pragya

ये तय है

May 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुनून है तेरे दिल में हम तो
अपना घर बनाएंगे
तुझ में डूब जाएंगे तुझी में खो जाएंगे
करे कोशिश अगर जुदा करने की हमें कोई
तुझसे बिछड़ के हम तो तय है मर ही जाएंगे।

by Pragya

राम जन्म स्पेशल:- अवध में बाजे चहुँ ओर बधइया

May 26, 2021 in अवधी

अवध में बाजे चहुँ ओर बधइया।
राजा दशरथ के भवन में
जन्म लियो चारों भैया
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर नाचत
धन्य कौशल्या मैया
अवध में बाजे चहुँ ओर बधइया।
भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न
राम के छोटे-छोटे भईया
अवध में बाजे चहुँ ओर बधइया।
अवध की प्रजा बहुत ही हर्षित
रिझि-रिझि लेत बलइया
अवध में बाजे चहुँ ओर बधइया।।

by Pragya

अंतरनाद हो रहा।।

May 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंतरनाद हो रहा देखो
प्रकृति में चहुं ओर
नित नवीन गुंजन उठे
बादल उठे घनघोर
ढोल मृदंग बज रहे सब
अप्सराएं भी गुणगान करें
राम ने अवध में जन्म लिया
हर्षित है पूरा लोक।

by Pragya

“कुछ नवीन विधाएं”

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश ! हम सीख पाते तुमसे
साहित्य की कुछ नवीन विधाएं
पर ना जाने कहां तुम खो गई
ओ सखी! तुम कहां चली गई
यूँ तो उम्र में तुम मुझसे
बहुत बड़ी हो
पर हमारा रिश्ता तो दोस्ती का है ना
काश! तुम समझ जाती
कि मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ
हर रोज तुम्हारा इंतजार करती हूँ तुम्हारी कविताओं को पढ़ कर
हँस देती हूँ,
और उन जज्बातों में थोड़ा जी लेती हूँ।

by Pragya

उम्र भर पछताते रहे

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे होठों पर वो लफ़्ज़
कभी ना आए
जो हम सुनने के लिए बेकरार रहे
मिलने तो रोज आते रहे तुम
पर दिल के जज्बात
कभी ना कहे
देने को रोज
लाते रहे गुलाब तुम
पर हमेशा पीठ के
पीछे छुपाते रहे,
कहा नहीं जो कहना था मुझसे
बस यूं ही उम्र भर पछताते रहे।

by Pragya

विदिशा एक अर्धांगिनी :-हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगी

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारा सहयोग,
तुम्हारा प्रेम पाकर
मैं कृतार्थ हुई
मैं तुम्हारे सहयोग की आभारी हूं
तुम्हारा सहयोग,
तुम्हारी संवेदनाएं,
तुम्हारी भावनाएं
तुम्हारे लफ्जों में यूं ही
बलवती होती रहे
मैं तुम्हारा सम्मान करूंगी
तुम्हारे मन में भी
मेरे सम्मान की बातें चलती रहे
जब तुम मेरा हर कदम पर
साथ दोगे
तो भला मैं पीछे कैसे रहूंगी
तुम्हारी अर्धांगिनी हूं मैं
तुम्हारे हर सुख दुख में
तुम्हारा साथ दूंगी।।

by Pragya

कोरोना की तीसरी लहर

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोरोना की तीसरी लहर के लिए
आदित्यनाथ योगी हैं तैयार
अबकी बार कोरोना का
बच्चों पर है वार
बच्चों पर है वार,
कैसे जान बचेगी
बच्चे इतने कोमल हैं
कैसे सरकार उनका ध्यान रखेगी
कहती है यूपी सरकार
आक्सीजन के लिए है आत्मनिर्भर
वैक्सीनेश प्रक्रिया भी
अब है अपने चरम पर
प्रार्थना है ईश्वर से
सफल हो यूपी सरकार
अबकी बार कोरोना का
बच्चों पर है वार।।

by Pragya

“नेत्रदान करने का लो प्राण”

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी की आंखों को
दो जीवन ज्योति
किसी के जीवन में
भरो रोशनी
कोई तो हो जो
तुम्हारे जाने के बाद भी
तुम्हारी आँखों से
यह दुनिया देख पाए
बुझे चिरागों को दो रोशनी
मिटा दो जीवन का तम
मानव होकर मानवता दिखलाओ
नेत्रदान करने का लो प्रण।।

by Pragya

आत्मनिर्भर भारत(व्यंग्यात्मक काव्य शैली)

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे दिन आये हैं!
नौकरी की बात करो तो
उज्जवला योजना गिनवाते हैं
बेरोजगारी का मुद्दा उठाओ तो आत्मनिर्भर का पाठ पढ़ाते हैं
इतना पढ़ लिख कर यदि
पकौड़े तलना था
तो आखिर हमने क्यों
दिन रात किताबों को सीने से लगाया
आत्म निर्भर ही बनना था तो
क्यों मां बाप ने पढ़ाया
हम भी तो अपने मां बाप का व्यवसाय चुन सकते थे
उनकी गरीबी में उनका हाथ बटा सकते थे
सोचा था मां बाप ने
बेटा पढ़ लिख कर बनेगा अफ़सर तभी तो तूने खूब पढ़ाया
खेतों में मेहनत कर कर कर
अब बैठा है घर में बेटा
परचून की दुकान लगाकर
बाप की छाती फटे और
बेटा बन गया आत्मनिर्भर।।

by Pragya

“तुझे भुला दिया”

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल तक गुंजाइश थी
तुम्हें माफ कर देने की
आज ना रही
कल अगर तुम
अपने सर को झुका लेते
तो आज मेरे दिल में
जगह भी पा लेते
पर अब हमारा रिश्ता
माफी से बहुत दूर जा चुका है
सच कहूं,
तो मेरे दिल में
कोई और घर बना चुका है
बहुत रुलाया, तड़पाया तुमने मुझे
बहुत ढाये सितम
अब मुझ में ताकत ना रही
भुला दिया
मैने तेरा दिया हुआ हर गम।।

by Pragya

तुम्हें याद है वो मंजर…!!!

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हें याद है वो मंजर
जब हम तुमसे मिला करते थे
तुम्हारे हाथों में हाथ रखकर
अपने दिल की हर बात कहा करते थे
तुम रोज सोचते थे कि
बता दोगे मुझे
अपने दिल की बात और हम भी तुमसे वह लफज सुनने के लिए बेकरार रहते थे
तुम आते थे गुलाब का फूल
अपने हाथों में लेकर,
मुझे देखते ही उसे छुपा देते थे कहना कुछ चाहते थे और
कह कुछ जाते थे,
फिर निराश होकर तुम चले जाते थे।
मैं भी तुम्हारे इस भोलेपन पर
हंस देती थी,
सोचती थी कि शायद कल
बोल दोगे अपने दिल की बात
पर तुम कभी ना कह पाये
दिल में ही छुपाये रहे जज्बात
तुम्हें याद तो है ना वह मंजर..!!!

by Pragya

वो बूढ़ा बरगद”

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तुम्हारे साथ
कुछ वक्त बिताने को जी चाहता है हां, तुम्हारी याद
बहुत जोरों से आ रही है
क्या है तुम्हारे पास वक्त मेरे लिए ?
अगर है,
तो आ जाओ वहीं
जहां हम रोज मिला करते थे,
कॉलेज खत्म होने के बाद
जहां आ जाया करते थे
वह बूढ़ा बरगद
आज फिर
हमारे इंतजार का तलबगार है।
आज फिर मेरे पास
आकर कुछ देर बैठो,
अपनी जिंदगी की कुछ सच्चाई मुझसे बया करो और
मुझसे कुछ सुनो।
क्यों ना फिर हम
पहले जैसे दोस्त हो जाए
काश! हमारी मुलाकात हो और
वह पल वहीं पर थम जाए।।

by Pragya

अंधी लड़की:-कोई तो होगा जो भरेगा मेरे जीवन में ज्योति!!

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी दूरदर्शिता से
मैं देख पा रही हूं
अंधी हूं मगर
सपने देखती जा रही हूं
देखती हूं यह सपना
की एक दिन देखूंगी मैं दुनिया
फूल चुनूगी चमन से
बिखरा दूंगी कलियां
कोई तो होगा
जो मेरे जीवन में भरेगा ज्योति
कल सुबह देखूंगी दुनिया
यही स्वप्न लेकर हूँ सोती।

by Pragya

कितना छल है संसार में

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

निस दिन गिरता जाए
मानव देखो यार
बातें मुंह पर मीठी करें
पीठ पीछे गरियाए
घोल के शर्बत जहर का
पीने को देता है
इतना छल है संसार में
मानव धोखे देता है।

by Pragya

“कृषक की आत्महत्या”

May 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कृषक हमारा दुखी है
फसल नहीं हो पाई
पानी दिया था, बीज बोए थे,
की थी खूब रोपाई
फिर भी ना उपजा अन्न
आया ऐसा मानसून
बाढ़ में सारी फसल हुई बर्बाद
रोटी भी ना हो पाई दो जून
क्या खुद खाते, क्या बच्चों को खिलाते
प्रश्न यही था
मस्तिष्क में घूम रहा
नहीं उत्तर कोई सूझा
बस एक ही चढ़ा जुनून
मार दिया हमने खुद को
कर दिया हालात के आगे समर्पण
करते भी तो क्या करते
जब जीवन में थी इतनी अर्चन।।

New Report

Close