लोकतन्त्र

April 24, 2021 in शेर-ओ-शायरी

जहर मत फैलाओ यहां, नेवले और बाज हैं
गुस्ताखी माफ नहीं होती वहां, जहां लोकतन्त्र का राज है

भारत माता कह रही (दोहे)

April 24, 2021 in मुक्तक

भारत माता कह रही, एक जुट हो सब लाल
शत्रु की ईंट जवाव दो, पत्थर से तत्काल
भारत माता कह रही, संकट में इंसान
मत भूलो इंसानियत, सब मारो शैतान
भारत माता कह रही, ईश्वर जैसे एक
वैसी है सब आत्मा, चाहे पंथ अनेक
भारत माता कह रही, भाई चारा खेत
बोय फसल तैयार कर, दुनिया को सुख देत
भारत माता कह रही, देश को अपना मान
सबके त्याग से लिखित औ निर्मित है संविधान
भारत माता कह रही, जीने का अधिकार
संविधान सबको दिया, पशु पक्षी मत मार
भारत माता कह रही, फौजी जैसे मान
रक्षक बनिए देश के, चाहे जाए प्राण

राजनीतिक दोहे

April 24, 2021 in मुक्तक

पाँच साल में अब नहीं, हो हर साल चुनाव
बहती गंगा प्रेम की, होते दूर तनाव
पढ लिख कर नौकर बने, या होते बेकार
एक बार नेता बनो, दो कई पीढ़ी तार
कानो को प्यारे लगे, नेता जी के बोल
पर इनका होता नहीं, सचमुच कोई मोल
नेता जी के वेश में, आया भ्रष्टाचार
डरकर लोगों ने कहा, स्वागत है सरकार
बदल गए नेता मगर, बदल सके ना चाल
महगाई बढ़ती गयी, मुस्किल रोटी दाल
एक बार बनवाइए, हे जनता सरकार
करेंगे अपने क्षेत्र में, घोटाला बौछार
बहरे राजा सो रहे, प्रजा कर रही शोर
सुंदर सपना देखते, महल बने चहुं ओर

बेकारी

April 24, 2021 in मुक्तक

घर बनाने गए दो हाथ
घर बनाने के लिए
हाथ जोड़ते रह गए
आखिर जबाब मिल ही गया
काम नहीं
तब से बनी हुई इमारत और
पलंग तोड़ते रह गए

एक थी नारी

April 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक थी नारी
सबको थी प्यारी
सब चाहते थे हो जाए हमारी
ममता की मूर्ति और दुनिया पुजारी
तभी एक दिन दवे पांव आया नरवाद
ममता के मंदिर में मचाया हाहाकार
स्वार्थ और अहं से जो था लाचार
तब तक शांति प्रिय नारी ने कर लिया था उसकी अधीनता स्वीकार
उस पर होने लगे जुल्म अत्याचार
सहनशीलता की सीमा पार
ना राम को बुलाया ना कृष्ण की पुकार
तरस खा कर नर वाद ने उसे दिया शिक्षा का अधिकार
्‍यही बना उसका अचूक हथियार
अपने अधीन किया फिर संसार
एक है नारी ढोती जो जग का भार
देती है प्यार करती उपकार
तब ‘वाद, ‘मर गया

प्रथ्वी के सौंदर्य वर्णन का उल्लास

April 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कई दिनो से सोच रहा था
पंत की तरह प्रकृति चित्रण करूं
पद्मकार की तरह ऋतु वर्णन करूँ
परंतु एक दिन सुबह का अखबार पढ़कर मेरा विचार बदल गया
अखबार का शीर्षक था
मनुष्य ने प्रकृति का अपहरण कर लिया है
फिरौती मे मांगा है
बहु मंजिला इमारतें
उद्योगों के लिए स्थान
अधिक उत्पादन का वरदान
वन्य जीवों का वालीदान
भूमि का टुकड़ा जिसमें बना सके श्मशान
और अंत में प्रकृति के प्राण
प्राण बचाने के लिए प्रकृति ने उसकी उपरोक्त शर्ते मान लिया था
इसलिए मनुष्य ने उसे दे दिया प्राण दान
लेकिन प्रकृति के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर के
या तो बेंच दिया या तो दफनाया
या फिर जला कर राख कर दिया
तब तक मेरा प्रथ्वी के प्रकृति चित्रण का उल्लास
शोक में तब्दील हो चुका था

राष्टीय एकता के दोहे

April 24, 2021 in मुक्तक

शक्कर पानी ज्यों घुले, ऐसे घुलमिल देश
शर्बत पी लें शांति का, यह भारत संदेश
भारत है एक बाग सा, कई प्रजाति के फूल
औ माली भगवान् हैं, सींच रखे अनुकूल
भाषाए होंगी अलग, होंगे अलग विचार
क्रिस्मस होली ईद सब, भारत मां त्योहार
भारत महिमा गा गए, स्वामी विवेकानंद
भारत महिमा को सुना, विश्व हुआ मुख बंद

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