ख्याब क्या होगा

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन्हाइयों से ही जिसने
बात की है जिंदगी भर
मेरे आने का उनको
एहसास क्या होगा
वीरानियां ही जिनका आशियाना हो
उन्हें महलों का ख्वाब क्या होगा
जिंदगी जिनकी एक सवाल बन चुकी है
पास उनके मेरा जवाब क्या होगा
जो देखकर आंखों में गम
हकीकत बयां कर देते हैं
उनके दिलों में छुपा राज क्या होगा।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

हिन्दी की बेबसी

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने देश में अपनी भाषा
बदनसीब हो गई
आगे आओ युवा देश के
हिंदी गरीब हो गई
मातृभाषा है राष्ट्रभाषा है
फिर क्यों तुम शर्माते हो
प्रणाम छोड़कर गैरों से तुम
हाय हेलो अपनाते हो
मीरा तुलसी के देश की
कैसी तहजीब हो गई
आगे आओ युवा देश के
हिंदी गरीब हो गई
अंग्रेजी शासन से तो मुक्त हुए
पर भाषा से मुक्ति कब मिल पाएगी
अपने देश में अपनी भाषा
कब तक यूं शर्माएगी
आयोजन कर – कर खाते-पीते
दिनकर और रसखान की हिंदी लजीज हो गई
आगे आओ युवा देश के हिंदी गरीब हो गई
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

बेटी

September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पापा के लिए तो
परी हैं बेटियां
हर दुख दर्द में
संघ खड़ी है बेटियां
फिर क्यों कहते हैं कि
तू धन है पराया
क्यों बेटी का कमरा भुला दिया
जब घर बनाया
बेटी नहीं तू बेटा है
कहते हैं सब अपने
फिर वक्त पर क्यों
भुला दिए जाते हैं सपने
बेटी कभी घर में
हिस्सा नहीं लेती
क्या इसीलिए वह घर का
हिस्सा नहीं होती
गूंजा था हर कोना
बेटी की किलकारी में
क्यों आज पराए हो गए
हम रिश्तो की बलिहारी में।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

लाक डाउन

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लॉक डाउन का हम पति घर में रहकर
शत-प्रतिशत सम्मान कर रहे हैं
बीवी से जो भी मिली है ड्यूटी लिस्ट
उसी के मुताबिक सारे काम कर रहे हैं
ड्यूटी लिस्ट में खाना बनाना
छोड़कर सब कुछ करना है
ओखल में जब सर दिया तो
अब मुसल से क्या डरना है
पहले दिन घर की डस्टिंग का
बेगम ने आदेश दिया
अगले दो दिन क्या करना है
यह भी संग संदेश दिया
कमरे के हर पंखे खिड़की
चद्दर तकिया भी है साफ करना
जब कभी किचन में आए छिपकली
उसे भगाने से नहीं है डरना
रोज सुबह की चाय बनाना
नींद से फिर हमको जगाना
अगर उठूं न एक बार में
नहीं दुबारा आवाज लगाना
नींद नहीं पूरी हुई अब तक
समझ ही जाना मत चिल्लाना
मोबाइल की बैटरी फुल हो
यह भी जिम्मेदारी निभाना
झाड़ू-पोछा और बर्तन की चमक देख
खुश हो, संग अक्षय की फिल्म दिखाती
स्वच्छता का पाठ पढ़ा कर सासू मां की बिटिया
हर दूसरे दिन टॉयलेट धुलवाती
अजब पति की गजब कहानी
बाहर डंडा, घर में राज है बीवी का
जब जी चाहा खूब कथा सुनाया
वॉल्यूम तेज करके टीवी का
परिहास कर रही दुनिया सारी
अब तो पति नाम के प्राणी पर
अदृश्य कोरोना का है आशीर्वाद
दुनिया में हर लेवल की नारी पर
लॉक डाउन के दौरान जो शख्स हर हाल में
पत्नी संग खुश रह कर साथ निभाएगा
वही अपना नाम 2021 में होने वाली
भारत की जनगणना में दर्ज करवाएगा।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

गीता

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गीता का सार जिसने भी समझ लिया
संसार में उसी ने औरों से कुछ अलग किया
तेरा मेरा अपना पराया माया मोह से जो दूर हुआ
उसी को मिला मोक्ष का द्वार
वही हर आंखों का नूर हुआ
तुम क्यों खिलखिलाते हो
क्यों उदास होते हो
ना तुम कुछ लेकर आए
जो यहां खोते हो
हंसना है तो दूसरों की खुशियों में
शामिल हो जाओ
दूसरों की पीड़ा अपनी समझ कर
उनके काम आओ
तुम दूसरों के दूसरे तुम्हारे
जब काम आने लगेंगे
कोई नहीं कह सकता कि
गीता को समझने में जमाने लगेंगे
मैं कितना खुश नसीब हूं
मेरे घर में गीता वास करती है
परिवार सुखमय रहे शायद
इसीलिए ही उपवास करती है
मैं दूसरों की क्या कहूं
गीता को समझने में हमें भी जमाने लगे
अब ज्ञान गीता का हमको मिल गया है
तो लगता है कि मेरे हाथ जैसे खजाने लगे
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

दुल्हन

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओस के मोतियों जड़ा
एक हर बनाऊ मैं
फलक के सितारों से
तेरी मांग सजाऊंगा मैं ।
काली घटाओं से मांग लूं
तेरी आंखों का काजल
झिलमिलाती लहरों से
बनाऊं तेरी पायल ।
श्वेत चांदनी से बुनकर
पहनाऊं तुझे चुनरी
सागरों के सीपो जड़ी हो
तेरी अंगुलियों की मुंदरी ।
डूबते सूरज की
सिंदूरी शाम से लेकर
एक चुटकी भर दूं
तेरी मांग में ।
प्रकृति के अनमोल गहनों से
सजी फिर उस दुल्हन का
मैं घुंघट उठाऊं
उसी की आंखों में खो जाऊं
उसी की बाहों में सो जाऊं।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

शहीद

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

कृतज्ञ देश है उन वीरों का
जिसने लहू बहाया अपना
देश की खातिर तन मन धन
सब कुछ है लुटाया अपना
बलिदान दिया है कितनी मां ने
कितनी बहनों ने है भाई खोया
आज शहीदों को नमन किया
आज देश है खूब रोया
सारी जवानी भेंट चढ़ा दी
अपनी भारत मां के लिए
दिवाली पर घर आंगन से पहले
शहीदों की चिताओं पर जले दिए
अनमोल दिया है तोहफा हमको
हम सब की आजादी का
गांधी देश के वासी हो तुम
तो कपड़े पहनो खादी का
एक प्रतिज्ञा फिर से ले लो
सवा सौ करोड़ तुम हिंदुस्तानी
अब न वतन से करने देंगे
दुश्मन को अपनी मनमानी
दुश्मन को अपनी मनमानी

– वीरेंद्र सेन प्रयागराज

व्यथा

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अध ढकें तन को छिपाए
दुनिया के बाजार में
गुमसुम सी बैठी
एक नारी
लोग आते हैं और
रुक कर आगे बढ़ जाते हैं
हो रहा हो यहां
कोई तमाशा जैसे
किसी मनचले की नजरें
उसके अधरों पर है
किसी की है उसके खुले
तन बदन पर पर
कोई ऐसा ना मिला
जो समझ सके उसके
आंसुओं की भाषा
शामिल हो सके उसके
जिंदगी की वीरान गलियों में
लगता है सती सीता की गाथा
पन्नों पर रह जाएगी
मां बहन बेटी के आदर्शों से
भरे इस देश में
पग पग व्यथा नारी की
सुनी जाती है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

कर्तव्य

August 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिंदुस्तान की रक्षा करना
कर्तव्य है हिंदुस्तानी का
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
है एक ही दरिया पानी का ।
जब-जब है हिंसा की कटार से
किसी धर्म का रक्त बहेगा
रक्त बहा है किस धर्म का बोलो
फिर ना तुमसे कोई कहेगा ।
इंसानियत को भूलकर जो
भारत को बर्बाद करेंगे
आज के हम दीवाने उन्हें
फिर कभी ना माफ करेंगे ।
15 अगस्त के दिन शपथ लो
भारत को चमकाने का
इस राष्ट्र को एक फूल समझकर
वादा करो महकाने का ।
कुछ तो डरो भगवान से तुम
छोड़ दो रास्ता मनमानी का
कुछ तो बदला देश को दो
इंदिरा की कुर्बानी का।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

बहुत प्यारा था वह जहान

August 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत प्यारा था वह जहान
लोग जहां मिलजुल कर करते थे काम
जब कोई बगल से गुजरता
कहता जाता भैया राम राम।
जहां लोग एक दूसरे का दर्द बांटते हो
जहां बुजुर्गों की बातें बेटे न काटते हो
जहां मांयें बेटों के लिए दुआएं मांगती हो
जहां दोस्ती की हो एक अलग पहचान ।
बहुत प्यारा था वह जहान
दुश्मनी के लिए जहां कोई जगह नहीं थी
अपनों में दरार की भी कोई वजह नहीं थी
जहां भूख से नहीं जाती थी किसी की जान
जहां नारी की भी थी एक अलग पहचान ।
बहुत प्यारा था वह जहान
लोग जहां मिलजुल कर करते थे काम
जब कोई बगल से गुजरता
कहता जाता भैया राम राम भैया राम राम।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

प्रियतम

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रियतम की बस एक झलक पर
हर आशिक जी जाता है
आंखों की मदहोशी में वह
जाने क्या-क्या पी जाता है
अधखिली कली जब गालों पर
ठहर ठहर मंडराती है
मन के अंतर्द्वंद से मिलकर
आंख खुली शर्माती है
प्रिय का चुंबन लेकर भंवरा
मदमस्त हुआ फिर मचल गया
मेघों के संग घूम रहा मन
कभी गिरा कभी संभल गया
तुम बिन क्यों कटती नहीं
जीवन की अब रात प्रिये
क्या सचमुच तुम में जादू है
कर दो पूरी मुराद प्रिये ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

भारत देश

August 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सारे जहां से प्यारा है
आसमान से न्यारा है ।
गोदी में ममता का आंचल
पैरों में नदियों की पायल ।
राम-कृष्ण के कर्मों का
इतिहासों के वर्णों का ।
यह भारत देश निराला है
यह सब देशों से प्यारा है ।
हर धर्म के लोग यहां
हर धर्म को आजाद हैं ।
सती सीता की जीवन गाथा
भारत में विख्यात है ।
बच्चों की मनमानी का
इंदिरा की कुर्बानी का ।
यह देश चमकता तारा है
यह भारत देश हमारा है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

रूक जाना विकल्प नहीं

July 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सडकें ठहर गई सी लगती हैं
हर तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा है
बचकर निकलना अब चमन में
फूलों के संग मिल गया कांटा है।
कोरोना का कहर कहें या कहें
प्रकृति से खिलवाड़ की सजा
जो कल तक बस मस्त मलंग रहे
आज कर रहे इंकार लेने से मजा।
कोरोना काल में जीने का तरीका
हर किसी को हर हाल में बदलना होगा
थक कर रुक जाना विकल्प नहीं
उठकर सम्हलना और फिर चलना होगा।
वीरेंद्र

शायरी

June 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सितमगारों की बस्ती में सही
मेरा भी नाम हो जाए
मेरी नींदें छीन कर
चैन से सोने वाली
आज के बाद
तेरी नींद भी हराम हो जाए
किया था वादा हमसे
तुम्हें याद ना करेंगे
तुम्हें याद भी ना आएंगे
लगता है वह अब
अपनी बात से मुकर गए हैं
सच तो यह है वह फिर से
मेरी खातिर सवर गए हैं
अब होता है जो, वह प्यार में
अंजाम हो जाए
मेरी नींदें छीन कर
चैन से सोने वाली
आज की रात
तेरी नींद भी हराम हो जाए ।

उम्र पार की

June 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन सुर्ख अधरों को
मेरे गालों तक मत लाना
चाहत और बढ़ जाएगी
प्यार की
अपनी जुल्फों को अब
और मत लहराना
रात लंबी हो जाएगी
इंतजार की
तड़पते रहेंगे उम्र भर मगर
जुबां से कुछ ना कहेंगे
उनको भी तो खबर होगी
दिल ए बेकरार की
तुम्हारी यादों को शब्दों में
किस तरह ढालूं
सुबह की धूप हो या
कली अनार की
कभी सावन कभी भादो
जैसी लगती हो तुम
सच क्या है देखूं
एक बार उम्र प्यार की।
वीरेंद्र

यादों का सृजन

June 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी यादों के लम्हे
चुन-चुन कर
सृजन मत करो
जिंदा लाश हूं मैं
मेरे अर्थहीन शरीर से
लगन मत करो
बेनूर हो जाएंगी
यह निगाहें
जो अभी चमकती है
भूल जाओ मुझे
खुद को इस कदर
मगन मत करो
तुम्हारा रूप तुम्हारा रंग
खुदा की अमानत है
इसे मेरे लिए दफन मत करो
उम्र भर तड़पोगे
मेरी यादों का सृजन करके
ऐसा जुल्म खुद से
मेरे सजन मत करो।
वीरेंद्र

कैद

June 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम्हारी जुल्फों की कैद मिले
तो हर गुनाह कर जाऊं ।
कत्ल करूं कातिल बनूं
फिर तेरे पहलू में आऊं।
वीरेंद्र

नारी

June 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अबला थी जो नारी अब तक
सबला बनके दिखलाएगी
पुरुष के हाथों की कठपुतली
अब दुनिया को चलाएगी ।
घुट घुट के यह मरती रही
मुंह से कभी भी आह न की
पुरुष ने अपनी राह बना ली
पर नारी को राह न दी ।
अब खुद अपने दम पर
वह परचम ऊंचा लहराएगी
अबला थी जो नारी अब तक
सबला बन के दिखलाएगी ।
त्याग और बलिदान में आगे
भारत की हर नारी है
चुप चुप रहकर हर जुल्म सहे
रो रो कर रात गुजारी है ।
अब ना सहेंगे जुल्म पुरुष का
संदेश यह जन-जन में पहुंचाएगी
अबला थी जो नारी अब तक
सबला बनकर दिखलाएगी।
वीरेंद्र

मन की पतंग

June 10, 2020 in गीत

मीठे मीठे सपने संजोने दो
होता है जो उसे होने दो
कल का पता नहीं क्या होगा
बाहों में और थोड़ा सोने दो ।………..
जागी है अखियां हम सो गए हैं
यादों में उनके हम खो गए हैं
रोको ना रस्ता उनकी निगाहों का
प्यार के बीज और बोने दो ।
मीठे मीठे सपने संजोने दो ………….
कैसे बुझाए अब दिल की लगी को
खिलने से कौन रोके मन की कली को
प्यार की राहों में छिप जाए अगर
ढूंढना न मुझको और खोने दो
मीठे मीठे सपनों संजोने दो …………
मन की पतंग बिन डोर उड़ी
जहां भी चाहा न, उस ओर मुड़ी
यौवन भी लेने लगा अंगड़ाई
दिल ने कहा मेरे मन से, होता है जो और होने दो।
मीठे मीठे सपने संजोने दो …………
होता है जो उसे होने दो
कल का पता नहीं क्या होगा
बाहों में और थोड़ा सा दो।
वीरेंद्र

ईश्वर की खोज

June 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढूंढता है तू जिसको
सागर की गहराइयों में
वह तो छिपा है खुद
तुम्हारी ही परछाइयों में ।
क्यों दर-दर की ठोकरें खाता है
उसे पाने के लिए
समझना है तो समझो खुद को
जमाने के लिए ।
ना प्रयाग में मिलेगा
ना हरिद्वार में मिलेगा
मन की आंखों से निहारो
जीवन के तार तार में मिलेगा ।
वीरेंद्र

शायरी

June 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सितम गैरों की बस्ती में सही
मेरा भी नाम हो जाए
मेरी नींदें छीन कर
चैन से सोने वाली
आज की रात
तेरी नींद भी हराम हो जाए
वीरेंद्र

मौत घूम रही है

June 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल फिर महफिलें सजेगी
हम भीड़ के हिस्से होंगे ।
खुद को कैद कर लो आशियाने में
वरना हम ना होंगे सिर्फ हमारे किस्से से होंगे ।
हमसे भी मजबूत देश आज असहाय है
कोई नजर नहीं आता दर्द लेने वाला
खौफ पहचान लो कुछ दिन ही तो हैं
वरना कल कोई नहीं होगा कफन देने वाला ।
हर गली हर मोड़ पर अदृश्य हो
मौत टहलने निकली है दर से
प्यार है अगर अपनों से
भूलकर भी ना निकलना घर से ।
प्रशासन की अपील आज भी
कुछ बेदर्द मानने को तैयार नहीं
वह हिंदुस्तानी हो सकते नहीं
जिन्हें अपने देश से प्यार नहीं ।
कर बद्ध निवेदन करता कोई
हम सब की खातिर बारंबार
कुछ तो फर्ज निभाओ तुम भी
मन आंखों से देखो अपना सा लगता संसार ।
घृणित कर्म के भागीदार
क्यों बनते हो जीवन में
ईश्वर अल्लाह देख रहा है
रुक जाओ अब आंगन में ।
हर अपने बेगाने को
बिना मजहब के चूम रही है
सड़कों पर सन्नाटा है
केवल मौत ही घूम रही है।
वीरेंद्र

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