नाम

December 18, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हें उठाने मे बेशक, हम सौ बार गिरे।
तुमने भी तो गिर – गिर के उठने की जिद की।
आज मंजिल की पनाह मे तेरा नाम मुस्कुराया है।
कल हम रहें न रहें, मेरा दिया नाम जिन्दा रह जायेगा।

मुकम्मल

May 27, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुना हैं कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।
हमें जैसा भी मिला है किसी को ऐसा भी आसमां नहीं मिलता।

मेरे अपने

June 10, 2021 in शेर-ओ-शायरी

हम गिरें भी तो वहीं
जहां इर्द-गिर्द मेरे अपने थे।
शायद ना थी खबर हमें
रेत पर बने मेरे सपने थे।
वीरेंद्र

नए साल ने दस्तक दी है

January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest, हिन्दी-उर्दू कविता

नए साल ने दस्तक दी है
आओ इसको हग कर लें ।
मन तन वचन ध्यान से
अपना सारा जग कर ले।
बीत गया सो बीत गया
कुछ सीख गए कुछ सिखा गया ।
कल का नहीं पता क्या हो
अपनों की कुछ दूरी मिटा गया।
माना कि बहुत सताया सबको
कल गया साल जो बीत गया।
पर हमने भी कुछ छीना उसका
वह तभी तो बाजी जीत गया।
धरती पर नहीं है हक केवल इंसानों का
सीख दे गया ये जाने वाला साल ।
अपने पराए की पहचान हो गई
खोखला साबित हो गया संबंधों का जाल।
अदृश्य करोना ने बदल दिया है
सबके जीवन जीने का तरीका।
स्वच्छ सतर्कता का पाठ बहुत पढ़ा
पर 2020 में ही आकर हमने सीखा।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

सावधान

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करने
आए हैं हम नौजवान
देख रहा नतमस्तक होकर
अपनी  दिलेरी आसमान
भारत के लाडलें हम
मातृभूमि पर प्राण चढ़ाएं
तन मन धन से हम सब
जग जननी का मान बढ़ाएं
कण-कण मिलकर एक हुआ
और बन गया तूफान
इस मिट्टी के कर्जदार हैं
बहुत है हम पर एहसान
अपने वतन से किसी को भी
अब करने नहीं देगें गद्दारी
आत्म समर्पण कर दो तुम
हो जाओ फिर सावधान।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

प्यार के धागे

December 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार के धागों से रिश्तो को सिल रहा हूं
बड़ा हूं फिर भी झुक कर मिल रहा हूं
सुना है प्यार में ताकत बहुत होती है
हर बिगड़े काम आसान बना देती है
उम्मीद है, आज भी सब से मिल रहा हूं
प्यार के धागों से रिश्तो को सिल रहा हूं।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

सोच

December 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहोगे जीतना तभी जीत पाओगे
मानोगे अपने हैं तभी अपनाओगे
लोभ और ईर्ष्या के दलदल से
जब तक निकलने की सोच ना होगी
मन के रावण को तुम कैसे जला पाओगे।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

माटी की मूरत

December 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माटी की मूरत होते हैं बच्चे
जैसा बनाओगे वैसे बन जाएंगे
चाहो तो उनको गांधी बना दो
जो सत्य की राह का पथिक बनेगा
चाहो तो उसको भगत सिंह बुलाओ
वो देश की खातिर मर मर मिटेगा
चाहो तो उसको ध्रुव नाम दो
चमकेगा आसमां में सितारा बनके
नेहरू बनेगा तिलक भी बनेगा
देश की तन मन से सेवा करेगा
झांसी की रानी भी उनको बनाओ
वह मैदान से पीछे कभी ना हटेगी
संस्कारों भरा अगर होगा बचपन
जवानी की दहलीज पर न बहकेंगे कदम
मां-बाप को सम्मान तब ही मिलेगा
अगर वह सम्मान देते रहे हैं
जैसा जो बोता है वैसा ही काटेगा
बच्चे तो हैं एक कला का रुप
मां बाप उसके कलाकार हैं।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

उम्मीद

December 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यह जो नाजुक सा दौर है
आहिस्ता आहिस्ता खत्म हो जाएगा
बस उम्मीदों का दीपक तुम
यूं ही आगे भी जलाए रखना।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

इम्तहान

December 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भोग विलास के लिबास पहनकर
कब तक खुद से प्यार करोगे
काम क्रोध ईर्ष्या को त्यागो
जीवन का भव पार करोगे
माया मोह के इम्तहान में
जब तक सफल ना होगे तुम
लोगों के दिल में बस न सकोगे
खुद की नजर से रहोगे गुम
जब तक जीवन की गाथा का
कोई सार नहीं मिल जाता है
तब तक प्यार के सागर में
कोई गोता कैसे लगाता है।
जन्म मरण अच्छा बुरा
ये सब जीवन की रचना है
हमको तो बस इम्तिहान में
इन सभी से ही तो बचना है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

खता

December 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लम्हों ने खता की है
सजा हमको मिल रही है
ये मौसम की बेरुखी है
खिजां हमको मिल रही है
सोचा था लौटकर फिर ना
आएंगे तेरे दर पर
बैठे हैं तेरी महफिल में
खुद से ही हार कर
कह लेते हाले दिल
क्यों ये जुबां सिल रही है
ये मौसम की बेरुखी है
खिजां हमको मिल रही है
लम्हों ने खता की है
सजा हमको मिल रही है
हम भी तो मानते हैं
दिल के महल का राजा
जाने से पहले दिलबर
एक बार फिर से आजा
मुरझा चुकी कली भी
फिर आज खिल रही है
ये मौसम की बेरुखी है
खिजां हमको मिल रही है
लम्हों ने खता की है
सजा हमको मिल रही है
तेरे बगैर काटेंगे हम
कैसे उम्र भर
तू ही बता दे हल मुझे
ऐ मेरे हमसफ़र
बचपन से तू ही तू 
मेरी मंजिल रही है
लम्हों ने खता की है
सजा हमको मिल रही है
ये मौसम की बेरुखी है
खिजां हमको मिल रही है।
         वीरेंद्र सेन प्रयागराज

पर्यावरण

December 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पर्यावरण के असंतुलन की
तस्वीर हर ओर दिखने लगी है
जिंदगी जीने की एक नई
परिभाषा चहुं ओर लिखने लगी है
विकट गर्मी का परिणाम दिख रहा है
सूख रहे तालाब पेड़ कट कट बिक रहा है
धरा की हरियाली से खिलवाड़ बंद करो
भविष्य का सुकून चाहिए तो अब वार बंद करो
पक्षियों का झुंड भी उड़ चला है
अब तो हरियाली छांव की तलाश में
प्यासे पशु पक्षी, व्याकुल गरीब
मर रहा है अब तो पानी के प्यास में
कल के भविष्य को बचाना है अगर
जीवन और पर्यावरण का संतुलन बनाना होगा
सोचो कल अगर पेड़ न होंगे न होगा पानी
न होगा पक्षियों का ठौर न अपना ठिकाना होगा
आने वाले कल को क्या तुम
इतनी भयावह सौगात देकर जाओगे
आओ प्रण करें, पेड़ लगाएं जल बचाएं
नौनिहालों को फिर वही वातावरण दिए बिना
मर कर भी चैन नहीं पाओगे।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

कितना अच्छा होता

December 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना अच्छा होता
हर हिंदू मुस्लिम बन जाता
हर मुस्लिम हिंदू बन जाता
हर घर में अल्लाह आ जाते
हर घर में आ जाते राम
कितना अच्छा होता
हर गरीब अमीर बन जाता
हर अमीर बन जाता सज्जन
हर आंखों में सपने सजने
हर आंगन में खिलते फूल
कितना अच्छा होता
ना कहीं भी दंगा होता
ना किसी से पंगा होता
हर कोई होता अपना भाई
हर तरफ बजती शहनाई
कितना अच्छा होता
हर हिंदू मुस्लिम बन जाता
हर मुस्लिम हिंदू बन जाता
हर घर में अल्लाह आ जाते
हर घर में आ जाते राम
कितना अच्छा होता।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

तुम कब बाहर घर से

December 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निकलूं कब बाहर मैं घर से
हरदम बैठा रहता मौसम के डर से
एक साल में बारह महीने
चार महीने गिरे पसीने
फिर सोचूं मैं निकलूं बनके
तब होती बरसात जमके
आठ महीने यूं ही गुजरे
फिर आए जाड़े की करवट
बाहर निकले कांपे थरथर
तुम ही बताओ बारह महीने
ऐसे ही मौसम के डर से
निकलूं कब बाहर में घर से।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

बाट

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

राधा ने सिर पर
धर मटकी
बैठी छांव तले
वट की
जोह रही है
श्याम को अखियां
दिन बीता अब
बीती रतियां
श्याम बिना निष्प्राण
है गैया
देख रही सुध खोकर
मैया
क्यों निष्ठुर तू
बना कन्हाई
क्या तनिक भी
मेरी याद न आई।
       वीरेंद्र सेन प्रयागराज

ओस के मोती जड़े हैं

December 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूलों ने पंखुड़ियों का
हार बना कर पहना है
प्रकृति की हरियाली का
आज यही बस कहना है
परियों के गहनों में
सोने के बूटे पड़े हैं
हम पत्तों के हारों में
ओस मोती जड़ें हैं
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

परिणीता

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रिय की प्रियतमा बनकर
आनंदमय जीवन का सूत्रधार बनो
अशोविता हो एक सशक्त जीवन
एक ऐसा ही तुम सार बनो
संलग्न कर जीवन तुम अपना
करो पथिक का पूरा सपना
जीवन जिसका तुम संग बीता
बनी रहो उसकी परिणीता।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

चाहत

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आंखों में शर्म
पलकों में हया
लब पर मोहब्बत
की दास्तां है
आपके दिल से
शुरू मेरा सफर
आपकी बाहों में ही
खत्म मेरा रास्ता है
जी ना पाएंगे हम
आपके सांसो के बिना
आपकी चाहत भरी हंसी
भी अब जरूरी है
आते हैं आप तो
रोज ही मेरे ख्यालों में
हकीकत में नहीं आते
क्यों कौन सी मजबूरी है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

रानी बिटिया

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मम्मी की मैं रानी बिटिया
पापा कहते सयानी बिटिया
धमा चौकड़ी भागम – भाग
कूद – कूद कर करती बात
कहती मम्मी कहो कहानी
जिसमें हो राजा और रानी
हाथी घोड़ा शेर भी हो
और हो उसमें नाना नानी
इधर से जाती है उधर से आती
कभी हंसाती कभी रुलाती
दिन भर करती शैतानी बिटिया
मम्मी की मैं रानी बिटिया
पापा कहते सयानी बिटिया।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

बेतार का तार

December 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेतार का तार भी क्या अजब खेल दिखाता है
किसी हेलो पर चेहरा खिलखिलाता है
तो किसी हेलो पर मुरझा जाता है
हर एक कॉल की अलग कहानी है
किसी में घुटन भरी छटपटाहट
किसी में झरनों से बहता पानी है
बिना तार के किसी के साथ
जीवन का संबंध बना देता है
किसी हारे हुए इंसान को
जीने की वजह देता है
सबके जीवन में रस घुले
ऐसी ही चाह हर राह मे होती है
मगर दुख की घड़ी भी जरूरी है
वही जीवन का सच्चा पाठ पढ़ाती है
अपने परायों की पहचान कराती है
दुख और सुख तराजू की तरह
हर इंसान के धड़कन में समाई है
जीवन के सच को जन-जन तक
पहुंचाने की मुहिम बेतार के तार ने उठाई है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

मेरा विचार

December 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न ही मंदिर का न मस्जिद का
इस दुनिया को इंतजार है
गरीबों के लिए बने शिक्षा का आलय
यह मेरा अपना विचार है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

डर

December 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहक ना जाएं कहीं कदम हमारे
डरते हैं इसी बात से हम
क्योंकि गुजरते हैं हर रोज
हम भी मैखानें के करीब से।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

तेरा जवाब

December 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ऐ खूबसूरत बहारों की मलिका
कहां से लाऊं ढूंढ कर तेरा जवाब
आसमां में चमकता है जो चांद
लगा है उसमें भी दाग।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

विरासत

December 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब मां की कोख में
मेरी जिंदगी पल रही थी
मेरे बाप की चिता भी
श्मशान में जल रही थी
जब हमने इस दुनिया में
अपनी आंखें खोली
देखी खून की होली
सुनी बंदूकों की गोली
चारों तरफ बनता गया
बस मौत का ही नक्शा
सुहागन तो सुहागन
विधवा को भी ना बक्शा
मैंने जब धरती पर
कदम रखकर चलना सीखा
बदले की आग में साथ ही
हमने जलना सीखा
उठा ली बंदूक हमने
किया मौत को हिरासत
क्योंकि मेरे अपनो से मिली थी
यह दौलत हमें विरासत।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

माता-पिता

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे हर प्रश्न का जवाब है मां
मेरे हर दर्द का इलाज है मां
भीड़ में भी जो पहचान लेती है
अपने बच्चों की हर एक आहट
ऐसी अनपढ़ी, अनलिखी एक किताब है मां
मेरे हर प्रश्न का जवाब है मां
मेरे पापा सबसे अच्छे
प्रणाम करते हम सब बच्चे
बाहर से सख्त भले ही हो
मगर अंदर से नरम होते हैं
जो हार को जीत में बदलने की सीख देते हैं
हौसला बढ़ाते हैं, मार्गदर्शक बन आगे आते हैं
वही तो सचमुच में पिता कहलाते हैं
जब जब दुनिया में आए हम
आप ही मेरे जनक बनो
रब से बस यह मांगा है
हर जन्म में मां तेरी कोख मिले
इर्ष्या क्रोध छल कपट की गठरी
आज भी नहीं उठाते हम
आप ना देते गर ऐसी शिक्षा
तो संस्कार कहां से पाते हम
हवा हैं पापा तो बैलून है मां
बिन दोनों, हम सब का उड़ना मुश्किल है
त्याग और संस्कार के दम पर
मुकाम वह पाया जो काबिल है
माता-पिता के कदमों में
बच्चों का सारा जहान है
सबके सीता-राम होंगे
हम सब भाई-बहनों के
मां-बाप ही भगवान हैं
मां-बाप ही भगवान हैं
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

तिलक

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विजय श्री का तिलक
तभी तो लगेगा
जब बन के चट्टान
अग्नि पथ पर चलेगा
कमजोर खुद को समझना है भूल
कीचड़ में भी तो खिलता है फूल
प्रश्न चिन्ह की मुद्रा से
तुम ना निहारो जीत का बिगुल
बजा के ना हारो
सरहद पर जब भी
कोई लड़कर मरेगा
विजय श्री का तिलक
तभी तो लगेगा
एहसास जीत का होता वही
जो गिर गिर संभल के चलते रहे हैं
हारे तो वह जो निकले नहीं
पथरीले पथ से डरते रहे हैं
रोशन उसी का नाम हुआ
जो अपनी ही धुन में बढ़ता गया
टूटा गिरा फिर भी जिंदा रहा
लक्ष्य का प्रतिबिंब मन में गढ़ता गया
घर घर में होगा खुशियों का वास
मन का रावण खुद से डरेगा
विजय श्री का तिलक
तभी तो लगेगा
जब बनके चट्टान
अग्निपथ पर चलेगा
अग्नि पथ पर चलेगा
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

भक्ति

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईश्वर की भक्ति में छिपा है
जीवन का आनंद
शब्दों को ताकत देता है
जैसे अलंकार और छंद
उसके बिना इस जीवन में
कुछ भी नहीं अस्तित्व हमारा
मां बाप भी एक रूप है उनके
लाठी बन, बन जाओ सहारा
विपरीत हवा का रुख रहा
फिर भी बच्चों में ही मां का सुख रहा है
धैर्य धरा पर अगर कहीं है
वह ममता का आंचल है
दुख सुख आशा और निराशा
यह तो एक परीक्षा है
फिर भी मन के कोने कोने
मचा हुआ है द्वंद
शब्दों को ताकत देता है
जैसे अलंकार और छंद
जिसने सूरज चांद बनाया ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

पिया मिलन

November 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं भुलाई जाती वो
पिया मिलन की रात
उस रोज पहली बार की
हमने आंखों से बात
सुहाग सेज के फूलों ने
जाने कैसा जादू किया
बेचैन निगाहों में है
बस उन्हीं का इंतजार
जो आज हद चाहत की
कर जाएंगे पार
वह मेरे इतने करीब थे
कि सांसे टकरा रही थी
मेरी पलके झुकती
बस झुकती ही जा रही थी
सूरज की पहली किरण ने
जब खिड़की से झांका
तब हमने जाना गुजर चुके हैं
जिंदगी के हसीन लम्हात
नहीं बुलाई जाती वो
पिया मिलन की रात
उस रोज पहली बार कि
हमने आंखों से बात न
हीं भुलाई जाती
वो पिया मिलन की रात।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

सरहद

November 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सौ दफा मैं हारा बेशक
जिद है फिर भी जीत की
सरहद नहीं होती कोई
परिंदों और प्रीत की।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

न दिखे

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमें मालूम होता अगर
उनकी आदत है रूठ जाने की
तो हम कभी परवाह ना करते
इस जमाने की ।
तोड़कर दुनिया की
सारी रस्में कसमें
चले आते तेरे पहलू में
दिल अपना रखने ।
अगर जिंदगी के सफर में
आप मेरे संग होते
तो इस तरह से मेरे ख्वाब
ना बेरंग होते ।
उन्हें तलाशने में हम
एक जिंदगी में सौ बार बिके
घूंघट की आड़ से
हर तरफ देखा उन्हें
किसी ओर भी ना दिखे।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

जवां दर्द

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन्हाई के आलम में घुट-घुटकर
जब दर्द जवां होता है
चाहत में खिले फूलों का
पत्थर पर निशां होता है ।
टूट कर बिखरने से पहले
यूं बाहों में समेट लेते हैं
जैसे धरती को समेटे
सारा आसमां होता है।
सच है कि दूर रहने से प्यार बढ़ता है
चुप रहने की कसम खा कर भी
राज ए इजहार बयां होता है।
जवां दिल को तड़पने दूं
या कुछ घड़ी आराम दे दूं
सोचकर लम्हें मोहब्बत के
वक्त पर गुमां होता है ।
नींद आती नहीं चैन भी खोया सा है
प्रेम के रोग में ना जाने
ये दर्द कहां -कहां होता है ।
चाहत में खिले फूलों का
पत्थर पर निशां होता है
तन्हाई के आंगन में घुट-घुटकर
जब दर्द जवां होता है ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

महत्व

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लड़की है तो क्या हुआ
हम भी लिख पढ़ ले अगर
दुनिया के दरवाजे खुलेंगे
मिलेगी हमको भी डगर
विद्या में है ताकत कितनी
बात समझ में आ गई
दुनिया के हर क्षेत्र में नारी
आसमान सी छा गई
पढ़ लिख कर हम उन्हें बताएं
जो अब तक हैं अंधियारे में
ज्ञान का दीप जला कर मन में
अब आ जाओ उजियारे में
खुद को समझो खुद को जानो
कल कि शायद हस्ती हो तुम
ना पढती ना लिखती तो
दुनिया में रह जाती गुम
खुल गई है आंखें अपनी
पढ़ लिख कर हम बने महान
ऐसा काम करें जग में की
याद करें हमें हिंदुस्तान।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

जेड प्लस

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुंदर महिलाओं की सुरक्षा पर
संसद में एक बिल पास हुआ
पास होते ही बिल
देश के कोने कोने में खास हुआ
सरकार बोली सुंदर महिलाओं को
जेड प्लस की सुरक्षा मिलनी चाहिए
हर खूबसूरत कली सुरक्षित खिलनी चाहिए
तभी विपक्ष से एक आवाज आई
शादी के बाद क्या सुरक्षा श्रेणी रिवाइज की जाएगी
मंत्री महोदय ने फरमाया, नहीं
इस काम की जिम्मेदारी पति द्वारा निभाई जाएगी।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

इजाजत

November 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आपकी आंखों में खोना चाहता हूं
आपकी जुल्फों में सोना चाहता हूं ।
अर्जी डाल रखी है हमने भी इजाजत की
मंजूरी मिल गई, तो आपका होना चाहता हूं।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

पहले प्यार का एहसास

November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम कहानी की शुरुआत जब हुई
किस्तों में सही पर बात दिन रात हुई
आंखों की नींद जाने कहां गुम हो गई
अपनी भी खबर नहीं जब पास वह हुई।
बिस्तर पर करवटें बदलते ही रहते हैं
अनचाही से राह पर चलते ही रहते हैं
अपनों से दुश्मनी भी अच्छी लगती है
दिल के किसी कोने में वह खास जब हुई ।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

पूर्ण विराम

November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंसानियत कब इंसान की जिंदा होगी
क्या तब जब हर आत्मा से निंदा होगी
जागो देखो सोचो
सुलग रहा है समाज
कब तक बंद रखोगे अपनी आवाज
बोलो जो चाहते हो, कहो जो सोचते हो
किसी का इंतजार अब नहीं
समाज गूंगा है, बहरा है
खुद अपनी सुनो
वही करो जो बेहतर है
काट दो हर उस जड़ को
जो दीमक बनकर
खोखला कर रही है मर्यादाओं को
बदलो इन रिवाजों को
जो सबके लिए नहीं है
एक लंबी जीवन यात्रा
बिना लक्ष्य कब तक
हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार में
खो रहा है तुम्हारा देश
उठो जागो हिंदुस्तान
कब लगेगा पूर्ण विराम
कब लगेगा पूर्ण विराम
‌ वीरेंद्र सेन प्रयागराज

पगडंडियां

November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पगडंडियां जिंदगी के सफर में
बहुत कुछ सिखा जाती हैं।
कभी नफरत के साए में जीना
कभी प्यार का पाठ पढ़ा जाती हैं।
जिंदगी की पगडंडियों पर चलते हुए
उम्र के कई पड़ाव पार कर गए हैं ।
कभी खुशी कभी ग़म का दौर आया
कभी रोए कभी मदद हाथ हजार कर गए हैं।
पगडंडियों ने कभी राह बदलने का
हुनर सीखने की ख्वाहिश नहीं की।
ये तो हम हैं जो वक्त – वक्त पर
बदल जाने की बात किया करते हैं।
पगडंडियों पर कभी पत्थर तोड़ते लोग मिले
कभी मदिरापान में डूबी शोख हसीना।
रास्ता वही है मंजिल भी है अपने दर पे
मुसाफिर ही बेवक्त बदल जाया करते हैं।
उड़ते हैं जो वक्त को नजर अंदाज कर
धरती पर वही अकेला पन पाया करते हैं।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

मोहब्बत

November 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये पता है कि दुश्वारियां बहुत हैं
मोहब्बत की पथरीली राहों में ।
न जाने फिर भी क्यों बेचैन रहता है
दिल सिमटने को किसी की बाहों में।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

सतर्क भारत समृद्ध भारत

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुसीबत के दौर में सतर्कता ही
हर संकट का हल होगा ।
सतर्कता का लिबास पहन लो
कल भविष्य तुम्हारा उज्जवल होगा ।
समृद्ध भारत के राह का उद्गम
है, स्वच्छ, सतर्क और जोश भरे समाज से ।
बदल रही हैं फिजा देश की, युग बदलेगा
विश्वास है, यह चल पड़ेंगे अपने अपनों की आवाज से।
डिजिटल के इस दौर में
हर काम बहुत आसान हुआ ।
विश्व में भारत का अब
मजबूत बहुत ही नाम हुआ ।
अपडेट हो रहे बच्चे बूढ़े
स्मार्ट हो गया है भारत अपना ।
नामुमकिन अब कुछ भी नहीं
खुली आंखों से देखो सपना ।
वैर भाव की इतिश्री कर
जागरूक हुआ हर हिंदुस्तानी ।
अपनी भारत मां के संग
किसी को ना करने देंगे मनमानी ।
नियम ज्ञान की कमी के कारण
किसी का सब कुछ बिखर गया
वक्त के जो पाबंद रहे हैं
जीवन उनका संवर गया ।
मूल मंत्र का द्वार सतर्कता
कोरोना की विषम परिस्थितियों में ।
भारत की शान न कम होने देंगे
हर हाल में हर स्थितियों में ।
जीवन के चौराहों पर
सिग्नल को मत ओवरटेक करो ।
बदलते भारत की तस्वीर में
अपने सपनों का तुम रंग भरो ।
अपने कर्तव्यों के प्रति
सतर्क रहें यदि हिंदुस्तानी ।
विश्व में भारत का कभी
मैला नहीं आंचल होगा ।
सतर्कता का लिबास पहन लो
भविष्य तुम्हारा उज्जवल होगा।

दायरा

November 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कुछ इस तरह से बढ़ता गया दायरा मोहब्बत का
कि हम जान भी ना पाए कि दिल ने कब करवट बदल ली।

हर कोना रोशन हो जमी का

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर घर से भाग रहा है
बुराई का अंधेरा
सोने वाले जाग गए हैं
कल एक नया सवेरा
मन की आंखों से निहारो
हर बुराई में छिपी अच्छाई
इसी सोच को सच करने
फिर से लौट कर दिवाली आई
कभी किसी का बुरा न सोचो
कभी ना तोड़ो दिल किसी का
जलो दिए की तरह अगर तुम
हर कोना रोशन हो जमी का।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

उम्र प्यार की

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन सुर्ख अधरों को
मेरे गालों तक मत लाना
चाहत और बढ़ जाएगी
प्यार की ।
अपनी जुल्फों को अब
और मत लहराना
रात लंबी हो जाएगी
इंतजार की ।
तड़पते रहेंगे उम्र भर मगर
जुबां से कुछ ना कहेंगे
उनको भी तो खबर होगी
दिल ए बेकरार की ।
तुम्हारी यादों को शब्दों में
किस तरह ढालूं
सुबह की धूप हो या
कली अनार की ।
कभी सावन कभी भादो
जैसी लगती हो तुम
सच क्या है देखूं
एक बार उम्र प्यार की।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

वर्तमान ही जिंदगी है

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुखी वही है
जिसका वर्तमान खोया है
कल जो बीत गया
कल जो आने वाला है
दो कल के अदृश्य महलों में
मन विचरता रहता है
मन कितना निष्ठुर है
खुद देख लो, दो कल के बीच
वर्तमान को देखने की इच्छा ही नहीं करता
हम वर्तमान में जीते हैं
हमारा मन तो कल के नाव में सवार है
यही हमारे दुखों का कारण है
आज को देखो कोशिश करो
कि तुम्हारा मन आज को देखें
हर जतन करो वर्तमान में मन का वास हो
क्योंकि वर्तमान ही तन की खुशी है
वर्तमान ही संपूर्ण जिंदगी है
जो हाथ से फिसल गया
जो अपने हाथ में है नहीं
हम उन में उलझ कर
कष्टमय जीवन जीने के आदी हो गए हैं
ना भूत बदल सकते हो
ना भविष्य पकड़ सकते हो
वर्तमान तुम्हारा है अवहेलना मत करो
जिंदगी वहां है, जहां तुम जीते हो
वर्तमान सवांरो वर्तमान से प्यार करो
वर्तमान ही भविष्य की बुनियाद है
वर्तमान हमारा है
हम वर्तमान में जीते हैं
आओ दोनों हाथों से
जी भर कर खुशियों को समेत ले
खुद भी जिए औरों को भी
जीने का हक दे
हमारे इर्द-गिर्द जो मंडरा रही हैं
बच्चों की किलकारी वही तो खुशी है
जी लो जी भर कर जिंदगी क्योंकि
वर्तमान ही जिंदगी है।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

हालात

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आप चाहते तो हालात बदल सकते थे, आप के आंसू मेरी आंखो से निकल सकते थे । मगर आप तो ठहर गए झील के पानी की तरह, दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे।

ऐ सनम

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब से देखा तुमको ऐ सनम, हमसे ही दिल हमारा नहीं जाए संभाला । रात आंखों में ही कट जाती है, लगता है नींद ने आंखों से रिश्ता ही तोड़ डाला।

इश्क

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरे इश्क का जुनून मेरे रग रग में बस गया है। ये एहसास मुझे अब हद से ज्यादा होने लगा है।

गुल्लक

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशियों की गुल्लक टूट गई
जब अपनों से ही शूल मिला
विश्वास करें भी तो कैसे
जब कांटो में लिपटा फूल मिला।
सगे-संबंधियों ने मुंह मोड़ा
शायद कुछ हम मांग न ले
कहीं मिले तो ऐसे मिलते
जैसे हम पहचान न लें।
वक्त बदला तो अपने बदले
किस-किस को हम दर्द सुनाएं
चुप रहने को मजबूर हुए
शायद है किस्मत की सजाएं।
सपनों का हर धागा है टूटा
पर विश्वास है मंजिल पाएगें
बुरा किसी का कभी किया ना
तो लौटकर फिर दिन आएंगे
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

तुम्हारे बिना

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आपके बिन अब तो
गुजरते नहीं जिंदगी के एक भी पल
रोज रातों को आपकी तस्वीर से पूछता हूं
कि काटेंगे कैसे तुम्हारे बिना कल।

मर्जी आपकी

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरे सपनों का रास्ता गुजरता है
आपकी जिंदगी से ।
मर्जी आपकी ठुकरा दे हमें
या लगा ले गले खुशी से।

पहली रात

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पहली रात के मिलन का
वो एहसास याद रखना ।
हवाएं भी चलेंगी थम-थम कर
मौसम भी होगा खास याद रखना।

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