by Panna

मार लो कितने

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

मार लो कितने भी हाथी और घोड़े तुम,
जान तो मेरी बसा करती है प्यादों में।

by Panna

गुरूर हो हमें

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

गुरूर हो हमें तो अपनी किस अज़मत1 का,
जर्रा भर भी नहीं हम, कायनात-ए-अज़ीम2में।

1. प्रतिष्ठा; 2. बहुत बड़ी दुनिया।

by Panna

जब शागिर्द-ए-शाम

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

जब शागिर्द-ए-शाम तुम हो, ख़्याल-ए-ख़ल्क़ 1 क्या करें,
जुस्तुजू 2 ही नहीं किसी जवाब की जब, सवाल क्या करें।

1. दुनिया की परवाह; 2. तलाश।

by Panna

देखने वालों ने

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

देखने वालों ने मुझमें कुछ नहीं देखा,
बस मेरी जिद देखी, जुनूँ नहीं देखा

by Panna

ज़िंदगी मेरी

October 24, 2025 in ग़ज़ल

ज़िंदगी मेरी आज ज़िंदगी से परेशान है,
बात इतनी है, लिबास 1 रूह 2 से अनजान है।

तारीकी3 है मगर, दीया भी जला नहीं सकते,
क्या करें, घर में लाख4 के सब सामान है।

ऐसा नहीं कि कोई नहीं जहाँ में हमारा,
दोस्त हैं कई मगर, क्या करें सब नादान हैं।

हर कोई है बेख़बर, बना बैठा है नासमझ,
जो लोग करीब हैं मेरे, दूरियों से अनजान हैं।

घर छोड़ बैठ गए हैं हम मयख़ाने में आकर,
कुछ नहीं तो मय के मिलने का इमकान5 है।

ढूँढ रहा हूँ ख़ुद को, कहीं कभी मिलता नहीं,
चेहरे की तो नहीं, सूरत-ए-दिल की पहचान है।

गुज़र जाएगी ज़िंदगी, ज़िंदगी से क्या डरें,
अब रह गई जो कुछ पलों की मेहमान है।

 

1. कपड़े; 2. आत्मा; 3. अंधकार; 4. एक ज्वलनशील पदार्थ; 5. संभावना।

by Panna

वो है बहती

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

वो है बहती नदी, मैं एक किनारा हूँ,
पाकर भी मैं उसे, हर दफ़ा हारा हूँ।

by Panna

जानता हूँ तुम

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

जानता हूँ तुम नहीं हो पास, समझता भी हूँ,
मगर जो मैं महसूस करता हूँ, उसे झुठलाऊँ कैसे।

by Panna

हैरान हूँ मैं

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

हैरान हूँ मैं आज अपना बर्ताव देखकर,
मैं ऐसा तो नहीं था, न ऐसा होना चाहिए।

by Panna

इस वीराने में

October 24, 2025 in शेर-ओ-शायरी

इस वीराने में अचानक बहार कहाँ से आ गई,
गौर से देखा तो ये महज़ इज़हार-ए-तसव्वुर1 था।

1. कल्पना की अभिव्यक्ति।

by Panna

ख़्वाहिशें थीं कई

October 21, 2025 in ग़ज़ल

ख़्वाहिशें थीं कई, कब ख़त्म हुईं, ख़बर नहीं,
कब रूह जिस्म से रुख़्सत1 हुई, ख़बर नहीं।

उनसे दीदार2 की दरकार3 थी दिल को कभी,
कब ये तमन्ना टूटकर बिखर गई, ख़बर नहीं।

ज़ेहन में उनके ख़्याल आते रहते हैं अक्सर,
आँखें कब नम होकर बरस गईं, ख़बर नहीं।

बाँध के रखी थी पुड़िया में हमने उनकी यादें,
कब इसकी गिरह 4 खुल गई, ख़बर नहीं।

खेलती रहती है ज़िंदगी अजीब खेल हरदम,
जीत कब हमारी हार हो गई, ख़बर नहीं।

हो गई थी ज़िंदगी ख़ाक अरसे पहले ही,
ख़ाक में कब कली खिल गई, ख़बर नहीं।

1. विदा; 2. मुलाकात; 3. ज़रूरत; 4. गाँठ।

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

ग़म में भी मुस्कुराते रहे

October 21, 2025 in ग़ज़ल

ग़म में भी मुस्कुराते रहे हम आपकी ख़ातिर,
जाम-ए-अश्क1 पीते रहे हम आपकी ख़ातिर।

कोई शाम लाएगी आपका पैग़ाम, ये सोच,
परवाना बन जलते रहे हम आपकी ख़ातिर।

अनजानी थीं राहें, न ख़बर मंज़िल की हमें,
ज़िंदगी भर भटकते रहे हम आपकी ख़ातिर।

सावन के इंतज़ार में सूख गईं हैं आँखें हमारी,
सूखे पत्तों से गिरते रहे हम आपकी ख़ातिर।

चाहते थे हम ज़िंदगी करना बसर2 साथ मगर,
पल-पल तनहा मरते रहे हम आपकी ख़ातिर।

 

1. आँसुओं का प्याला; 2. बिताना।

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

ऐसे ही कहाँ

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

ऐसे ही कहाँ एक नज़्म बना करती है,
दर्द घुलता है रूह बनकर अल्फ़ाज़ों में।

by Panna

इश्तिहार सी गुजर

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

इश्तिहार सी गुजर रही है ज़िंदगी मेरी,
जैसी दिखती है, वैसी होती नहीं कभी।

by Panna

रुख़्सत हो गई

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

रुख़्सत हो गई रूह मेरी, मुझे सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दो,
इरादे-पाक से जी लिया बहुत, अब मुझे नापाक कर दो।

by Panna

इस दुनिया के

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

इस दुनिया के दस्तूर बड़े ही निराले हैं,
इक ख़ुशी की ख़ातिर, कई रंज पाले हैं।

by Panna

उन्हें हर रोज़

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

उन्हें हर रोज़ नए चाँद-सा नया पाया हमने,
मगर उन्होंने हमें देखा वही पुरानी नज़रों से।

by Panna

भीख नहीं, मुझे

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

भीख नहीं, मुझे मेरी मज़दूरी दे दो साहब,
कमीज़ फट गई मेरी, रेल का झाड़ू बनकर।

by Panna

शोक-ए-हिज्र

October 21, 2025 in शेर-ओ-शायरी

शोक-ए-हिज्र1 करूँ या फिर आज जश्न-ए-वस्ल2 करूँ
उनके पलभर के आने-जाने में, जिंदगीभर का रसद3 था।

 

1. विरह का दुख; 2. मिलन का उत्सव; 3. आपूर्ति (भावनाओं की)।

by Panna

अपनों को दूर से

October 16, 2025 in ग़ज़ल

अपनों को दूर से रू-ब-रू 1 होते हुए देखा है,
हमने अपनी तमन्ना को लहू होते हुए देखा है।

इक कसक जो दिल में दफ़न थी कहीं पर,
दरारों से आज उसको झाँकते हुए देखा है।

इक वक़्त था कभी जब सारा जहाँ था अपना,
आज हमने अपनों को राहें बदलते हुए देखा है।

ज़िन्दगी ने हमारी ओढ़ ली ग़ुरबत 2 की चादर
हसरतों को अपनी नीलाम होते हुए देखा है।

रंग-ओ-रोशनी ने रुख़्सत3 ली ज़िंदगी से जब,
पन्ने पर सुर्ख़4 स्याही को तड़पते हुए देखा है।

 

1. आमने-सामने; 2. ग़रीबी; 3. विदाई; 4. लाल।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

अँधेरी बस्ती में

October 16, 2025 in ग़ज़ल

अँधेरी बस्ती में रोशनी राशन में बाँटी जाती है,
लोहे के हार पहनकर, ज़िंदगी काटी जाती है।

आजकल आफ़ताब1भी आता नहीं है नज़र,
हुकूमत चाँद-सितारों को भी खाती जाती है।

मुहताज है मुक़द्दर जिनका एक रोटी के लिए,
कई मर्तबा लाठी उनके पीठ पे मारी जाती है।

एक निवाला भी नहीं नसीब जिसे ज़माने से,
भूख को ही खुराक समझ वो खाती जाती है।

जीकर ज़ुल्मों में जो जिस्म-ओ-रूह ख़ाक हुए,
बेदर्द हवा उनको भी फ़ौरन उड़ाती जाती है।

कैसे बुझा पाओगे ऐ क़ादिर2तुम उस आग को,
जो अश्क-ए-रवाँ3 मज़लूम की लगाती जाती है।

कितने ही दर्द छुपे हैं शहर की तंग गलियों में,
हर गली इक कहानी चुपचाप सुनाती जाती है।

 

1. सूरज; 2. शक्तिशाली भगवान; 3. बहते आँसू।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

शोले से जलते जिगर

October 16, 2025 in ग़ज़ल

शोले से जलते जिगर¹, जुगनू से टिमटिमाने लगे,
तूफ़ान भी अब यहाँ, झोंके हवा के खाने लगे।

तेग़-ए-पुश्त² शायद हो गई है गायब उनकी,
जो जुनूनी शजर³ सारे, सर आज झुकाने लगे।

हार गई ये ज़िंदगी बिन लड़े ही, देखो तो ज़रा,
लोहे के हथियार फिर से यहाँ जंग खाने लगे।

लो अब मैं भी तैयार हूँ दफ़न होने ख़ाक4 में,
मुर्दे होकर खड़े जिंदगियों को दफ़नाने लगे।

बिक रही है ज़िंदगी मासिक किस्तों पे यहाँ,
हसरतों को ज़रूरतों के हाथ बिकवाने लगे।

हर तरफ़ फैली हुई है बदनसीबी ख़ाक-सी,
ग़म को अपने भूल, आँसू भी मुस्कुराने लगे।

 

1. दिल; 2. रीढ़ की हड्डी; 3. पेड़।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

सख़्त मग़रूर चश्म में

October 16, 2025 in ग़ज़ल

सख़्त मग़रूर 1 चश्म 2 में ज़रा इंतज़ार तो हो
इश्क़ उनके लिए भी ज़रा दुस्वार3 तो हो।

बता दे अपनी हक़ीक़त जल्दी ही हम क्यों,
जगते ख़्वाबों से तेरे चश्म ज़रा बेदार4 तो हो।

इक ज़माने से तुमसे मिली नहीं नज़रे हमारी,
कभी सूने दरीचे5 में तुम्हारा ज़रा दीदार तो हो।

देने को दे देंगे हम, सारा जहाँ अपना तुम्हे,
लेकिन इसकी तुमको ज़रा दरकार6 तो हो।

समझ लेंगे जुनून-ए-इश्क़ आया कुछ काम,
तुम्हारी आँखों में इसका ज़रा ख़ुमार7 तो हो।

दश्त-ए-दिल8 है अरसे से बारिश का मुंतज़िर,
दर्द-ख़ेज़ 9 दिल हमारा ज़रा गुलज़ार 10 तो हो।

 

1. घमंडी; 2. आँख; 3. कठिन; 4. जागृत; 5. खिड़की; 6. ज़रूरी; 7. नशा; 8. दिल का रेगिस्तान; 9. दर्द भरा; 10. फूलों का बगीचा।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

जाने कैसा शहर था

October 16, 2025 in ग़ज़ल

जाने कैसा शहर था, हर तरफ़ कहर था,
धूप ही धूप मिली, दोपहर का पहर था।

ख़ामोशी हर तरफ़, ख़ाक-सी फैली हुई,
कैसे हो गुफ़्तगू 1, हर जुबान पर जहर था।

घूम रहा हर शख़्स कटार को छुपाए हुए,
लाश के लाख ले लो, ऐलान मुश्तहर 2 था।

प्यासा था हर शख़्स शहर में फिरता हुआ,
सूख गए ताल सारे, आफ़ताब3अहर 4 था।

चिराग़ भी जलते नहीं रात भर इस शहर में,
तमाम रात मुकाबला तम5से ता-सहर6 था।

 

1. बातचीत; 2. सार्वजनिक; 3. सूरज; 4. बहुत गर्म; 5. अंधकार; 6. सुबह तक।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

सो जाते हैं

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पर आसमाँ को ओढ़कर,
मरे हुए जिस्म कभी ठंड से ठिठुरा नहीं करते।

by Panna

आह निकली है

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

आह निकली है बहुत यहाँ तक आते-आते,
बच आए हैं ज़रा सा, जाँ तक जाते-जाते।

by Panna

मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ1 बदल गया होगा,
जो आया है दर पे आज, कल गया होगा।

मकाँ-ए-रंक2 में जो आया है इतराता हुआ,
ज़रूर वो कल किसी के महल गया होगा।

मुकर कर चला गया वो अपने वादे से आज,
आख़िर वो मौसम सा था, बदल गया होगा।

दिल पर पत्थर रखे बैठा था अब तक जो,
मेरे अश्कों के सैलाब में पिघल गया होगा।

वो जो मेरे नसीब में न था लिखा हुआ कभी,
किसी की किताब का पन्ना निकल गया होगा।

देखा न जिसने कभी आँखों में अक्स अपना,
आज किसी और के अक्स में ढल गया होगा।

1. समय के चक्र का स्वभाव; 2. गरीब का घर।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

लफ़्ज़ लहूलुहान हैं

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

लफ़्ज़ 1 लहूलुहान हैं, कैसे उठाएँगे दर्द का बोझ,
हर्फ़2 हसरत लिए किसी की, सो जाते हैं हर रोज़।

1. शब्द; 2. अक्षर।

by Panna

मेरी नज़्म को

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मेरी नज़्म को अपने ज़ेहन 1 में उतर जाने दे,
अहसासों को मेरे ज़रा सा असर कर जाने दे।

भटकता रहा हूँ ताउम्र अजनबी दुनिया में,
तेरी ज़िंदगी में अब मुझे घर कर जाने दे।

तलाश रहे हैं मेरे लफ़्ज़ एक हसीन आईना,
अपनी आँखों में इन्हें ज़रा सा संवर जाने दे।

सिमटे हुए रखे थे जो जज़्बात ज़ेहन में हमारे,
उनको दिल में अपने ज़रा सा बिखर जाने दे।

मक्र-ओ-फ़रेब2 की दुनिया में जी लिए बहुत,
अब तसल्ली से मोहब्बत में हमें मर जाने दे।

1. मन; 2. छल-कपट।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

जुगनुओं का क़त्ल करने

October 3, 2025 in ग़ज़ल

जुगनुओं का क़त्ल करने, काली रात आई है,
माहताबों 1 ने अपनी सूरत, बादलों में छुपाई है।

सहर का नाम मत लो, शब न ख़त्म होगी कभी,
तूफ़ानों के तांडव ने, हर तरफ़ तबाही मचाई है।

मौन है जर्रा-जर्रा 2, ख़ल्क 3 कब से ख़ामोश है,
गुलिस्ताँ उजड़ गए सब, वीरानों की बारी आई है।

इक दीये को ख़त्म करने, हजारों तूफ़ाँ चल पड़े,
रोशनी ने अपनी रूह, अब ज़मीन में दफ़नाई है।

लहू-सा लाल आफ़ताब कब आयेगा, सवाल है,
हर तरफ़, हर जगह बस काली घटा ही छाई है।

1. चाँद; 2. कण-कण; 3. सृष्टि।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

इतराता फिरता है

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

इतराता फिरता है हर शख़्स भरे बाज़ार में,
बिकने वाले सब ख़रीदार का लिबास1 पहने हैं।

1. पोशाक।

by Panna

जिंदगी को जिंदगी से

October 3, 2025 in ग़ज़ल

जिंदगी को जिंदगी से जुदा कर रखा है,
हमने अपनी मौत का गुनाह कर रखा है।

बस्ती को रोशन करने की ख़ातिर हमने,
अपना घर शब-भर 1 जला कर रखा है।

रह न जाएं तनहा इस जहाँ में कहीं हम,
हमने ख़ुद को भीड़ में छुपा कर रखा है।

सोये नहीं हैं हम इक ज़माने से मगर,
आँखों में इक ख़्वाब सजाकर रखा है।

आओ खेलें लगाकर दाव पर दर्द को,
हमने बहुत सारा दर्द जमाकर रखा है।

मयख़ाने 2 अक्सर जाने वालों ने घर में,
शरबत का इंतज़ाम करवाकर रखा है।

प्यार का सबक सिखाता था जो हमको,
आस्तीन में खंजर उसने छुपाकर रखा है।

1. रात भर; 2. मदिरालय।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

चंद सिक्के हैं

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

चंद सिक्के हैं जेब में और बेशुमार जरूरतें,
चलो चलकर बाज़ार से कुछ ख़्वाहिशें ख़रीद लें।

by Panna

क्या बताएँ आपको

October 3, 2025 in ग़ज़ल

क्या बताएँ आपको दास्ताँ-ए-दिल 1 अब हम,
क़त्ल कर के ख़ुद का, हुए क़ातिल अब हम।

तमीज़दार ख़ल्क़ 2 में तमाशबीन 3 हम बन गए,
मुहज़्ज़ब 4 बज़्म में, इकलौते जाहिल अब हम।

समंदर-ए-इश्क़ में लहर बनकर हम चल पड़े,
रेत से सूखे रह गए, बनकर साहिल5 अब हम।

जमाना जब जा पहुँचा, चाँद-ओ-फ़लक6 तक,
कूचे7 से ही जो न निकले, वो राहिल8 अब हम।

देखने वाले सब देखते ही रह जाएँगे अब हमें,
दिखेंगे नहीं कभी, चश्म 9 से ग़ाफ़िल10 अब हम।

1. दिल की कहानी; 2. दुनिया; 3. तमाशा देखने वाले; 4. सभ्य; 5. किनारा; 6. चाँद और आसमान; 7. गली; 8. पथ प्रदर्शक; 9. आँख; 10. बेख़बर।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

आपकी बेरहम यादें

October 3, 2025 in ग़ज़ल

आपकी बेरहम यादें और मैं,
बहुत सारी फरियादें और मैं।

चुप रहेंगी खींचकर आज साँसें,
मेरी बेबस निनादें 1 और मैं।

इंतज़ार कर रही हैं बरखा 2 का,
सूखी पड़ी ये आँखें और मैं।

लगा रहे हैं सब इंक़लाबी नारे,
ख़ामोश हैं मेरी बातें और मैं।

बंद है वज़ीर शतरंजी चाल में,
लावारिस हो गए प्यादे और मैं।

चलेंगे सच पर अदालती मुक़दमे,
झूठे हैं सारे हलफ़नामे3 और मैं।

जागती रहेंगी रात भर फिर से,
आपकी बज़्म4 में शामें और मैं।

1. ज़ोर की आवाज़; 2. बारिश; 3. शपथपत्र; 4. सभा।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

मर्ज़ नहीं मालूम

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मर्ज़ 1 नहीं मालूम गर तो दवा न दीजिए,
बुझा न सको आग तो, हवा न दीजिये।

छुपा लो जख्म-ओ-दर्द ज़ेहन 2 में कहीं,
यूँ ही पिघल कर, जू-ए-रवाँ3 न कीजिये।

कुचल देती है दुनिया हर ख्वाब को यहाँ,
यूँ ही अपनी आरज़ू को जवाँ न कीजिये।

बुज़दिल नहीं तुम चाहे लाख कहे ज़माना,
शेर हो तुम, खुद को यूँ अवा4 न कीजिये।

कौन समझेगा यहाँ दुख-दर्द को तुम्हारे,
यूँ ही ग़ैरों में इसे तुम बयाँ न कीजिये।

लबों पे प्यास और सर पर बादल रहेंगे,
दिल-ओ-दिमाग को, हमनवा5 न कीजिये।

1. रोग; 2. मन; 3. पानी की धारा; 4. गीदड़; 5. साथी।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

साथ तो सब हैं

October 3, 2025 in ग़ज़ल

साथ तो सब हैं, फिर भी तनहा सफ़र अपना,
हज़ारों मकाँ की बस्ती में, अकेला घर अपना।

तुम हो ख़ामोश, मैं भी गुमशुम-सा हूँ यहाँ,
तूफ़ाँ में झुकाए सर बैठा है शजर1 अपना।

दुनिया के ये करामात-ओ-करतब देखकर,
भूल गए हैं कलाकार भी अब हुनर अपना।

चीख भी नहीं सकते सुकून से अब हम यहाँ,
छुपाकर रखा है हमने, सन्दूक में डर अपना।

ऊँची-ऊँची इमारतों के ओछे मंसूबे देखकर,
लगता है बेहद अज़ीज़ अब खंडहर अपना।

कैद है दीवारों में कई सारे दरिया जमाने के,
खुला है अब भी आसमाँ सा समंदर अपना।

मरासिम2 के लिए आए हो तो लौट जाओ,
छेड़ो न इसे, दिल है अब भी ख़ुदसर3 अपना।

1. पेड़; 2. रिश्ते; 3. हठी।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

शजर सूखा है

October 3, 2025 in ग़ज़ल

शजर1 सूखा है, खिज़ाँ2 अरसे से ठहरी है,
लगेगा वक़्त कुछ और, चोट ज़रा गहरी है।

लगता है एक और बम पड़ेगा फोड़ना,
सुना है सरकार यहाँ की ज़रा बहरी है।

मायूस मख़्लूक़ 3 को हँसाए हम तो कैसे,
हर किसी के लबों पे खड़ा इक पहरी है।

बर्बादियों का सिलसिला यूँ ही चलेगा यहाँ,
जब तक है ज़मीं पर खींची ये लकीरी4 है।

अचानक आकर झोंके ने घूँघट उठा दिया,
माफ़ कर दो इसे ज़रा, ये हवा शहरी है।

पूछते-पूछते मेरी लापता जिंदगी का पता,
मौत भी आकर मेरे शानों5 पे आ ठहरी है।

अकाल में सूख गई है, हर जिंदगी गाँव की,
फाइल बाबू की मगर, अभी भी सुनहरी है।

1. पेड़; 2. पतझड़; 3. दुनिया के लोग; 4. विभाजन की रेखा; 5. कंधों।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

बेवजह उनका नाम

October 3, 2025 in ग़ज़ल

बेवजह उनका नाम बार-बार याद आता है,
ज़ेहन में जमा दर्द आँखों में पिघल जाता है।

अब निगाहों ने भी पकड़ ली है दिल की राह,
अनजाने चेहरों में भी बस तू नज़र आता है।

जब भी तनहा होता हूँ, पूछता हूँ ख़ुद से,
इस भीड़ में ख़ुद को क्यूँ तू अकेला पाता है।

वो कई दफ़ा करते रहे वादा-ए-वस्ल1 मुझसे,
लेकिन हर दफ़ा वो वादे से मुकर जाता है।

ख़ाक ही है अंजाम हर अफ़साने2 का अगर,
फिर क्यूँ हैरान है ग़र परवाना जल जाता है।

ज़ेहन में जब भी अब्र-ए-ख़्याल3 उमड़ते हैं,
आसमाँ का बादल जाने क्यूँ बरस जाता है।

1. मिलन का वादा; 2. कहानी; 3. विचारों के बादल।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

मुस्कुराता हूँ

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मुस्कुराता हूँ ग़म को, लिखता जाता हूँ,
क़त्ल कर जिंदगी को, मैं जीता जाता हूँ।

पन्ने पलटता हूँ जब जिंदगी की किताब के,
तेरा नाम ही, हर वरक़1 पर मैं पाता हूँ।

जो बातें रह गई थीं अधूरी हमारे दरमियान2,
वक्त-बेवक़्त उन्हीं को बस मैं गुनगुनाता हूँ।

क्या है इश्क़, इसका इल्म3 तो नहीं है हमें,
हर जगह तुम्हें ही बस साये-सा मैं पाता हूँ।

ख़ुशी के परिंदे उड़ गए, छोड़ मेरे मकाँ को,
ग़म के घोंसले हर तरफ़ फैले हुए मैं पाता हूँ।

बुलाते हैं अक्सर वो भी हमें अपनी बज़्म4 में,
ग़ैरत5 इतनी है मुझमें कि जा नहीं मैं पाता हूँ।

1. पन्ना; 2. बीच में; 3. ज्ञान; 4. महफ़िल; 5. स्वाभिमान।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

अपने फ़साने-ए-ग़म

October 3, 2025 in ग़ज़ल

अपने फ़साने-ए-ग़म मैं किसको सुनाऊँ,
हाल-ए-दिल-ए-हस्सास1 किसको बताऊँ।

ये दिल की उलझन, ये सितम-ए-हयात2,
अब इन हालातों को मैं कैसे सुलझाऊँ।

हर शख़्स ख़ुश है, अपनी ही दुनिया में,
अपनी तन्हाई से मैं किसको मिलाऊँ।

आँसुओं की ज़ुबाँ कौन समझेगा यहाँ,
पन्ना-ए-जज़्बात मैं अब किसको पढ़ाऊँ।

रातें लम्बी हैं और सितारे हैं ग़ुम कहीं,
शमा को आख़िर अकेले कैसे जलाऊँ।

बड़ा बेदर्द है ज़माना और इसकी रिवायतें3,
जहाँ के बद-नुमा4 रिवाज़ मैं कैसे निभाऊँ।

1. संवेदनशील दिल की दशा; 2. जीवन की निर्दयता; 3. परंपराएं; 4. भद्दे।

by Panna

ये ग़म मेरे प्यार का

October 3, 2025 in ग़ज़ल

ये ग़म मेरे प्यार का उन्वान 1 बन गया,
जो था अपना आज अनजान बन गया।

मलहम की चाह में सूखे सारे ज़ख़्म,
हर ज़ख़्म अब एक निशान बन गया।

रहम-ए-इश्क़ की दरकार 2 थी हमें,
इंतज़ार अब मेरा इम्तिहान बन गया।

ख़ामोशी भी मुझसे बोलने लगी है,
पसरा सन्नाटा मेरा बयान बन गया।

जिस तरफ़ देखूँ, बस तुझे ही देखूँ,
हर नज़र मेरी तेरा पैग़ाम बन गया।

अंधेरों से घिरे मकाँ में गुज़री जिंदगी,
अँधेरा ही मेरा रोशनदान बन गया।

हो गया नाम मेरे नाम का तेरे नाम से,
अब तेरा नाम ही मेरा ईमान बन गया।

1. परिचय; 2. ज़रूरत।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

मेरी आँखों से

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मेरी आँखों से इतना बहा है तू,
देखूँ मैं जिस जगह, वहाँ है तू।

मुबालग़ा1 नहीं है ये मोहब्बत का,
मुत्तसिल 2 है मेरा मकाँ, जहाँ है तू।

कैसे देखोगी तुम दर्द का मंज़र,
खुली नहीं अभी वो निगाह है तू।

खोये हुए हैं हम ख़ल्क़3 में कहीं,
भटके हुए इश्क़ की पनाह है तू।

क्या गुज़री है तेरे बाद क्या बताऊँ,
मैं मर गया, मुझमें बस रहा है तू।

1. अतिशयोक्ति; 2. नज़दीक; 3. दुनिया।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

जिंदगी

October 3, 2025 in ग़ज़ल

जिंदगी कैसे – कैसे जली देखो,
कुंदन – सी 1 निखर चली देखो।

ख़िज़ाँ-दीदा2 काँटों से सँवर कर,
गुलशन हो गई मेरी गली देखो।

मीठी मोहब्बत की तासीर 3 में घुल,
निबोली बनी, मिस्री की डली देखो।

ज़माने की ज़िद-ओ-जुल्म सहकर,
गुंचा 4 हो गई, खिलती कली देखो।

रात भर अँधेरे से आँख मल कर,
सहर5 हो गई, कितनी हँसी देखो।

1. स्वर्ण-सी; 2. पतझड़ से गुज़रा हुआ; 3. गुण; 4. बंद कली; 5. सुबह।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

जिक्र करता हूँ

October 3, 2025 in ग़ज़ल

जिक्र करता हूँ बस हिज़्र1 का, ऐसी बात नहीं,
कभी वस्ल2 का कुछ न कहा, ऐसी बात नहीं।

ठहरे हुए हैं कई ख़्याल, आकर ज़ेहन3 में मेरे,
कोई ख़्याल आँखों से न बहा, ऐसी बात नहीं।

छुपाता हूँ अपनी शख़्सियत दुनिया से दोस्तों,
कभी ख़ुद को किया न बयाँ, ऐसी बात नहीं।

मेरी चुप्पी को सुन सको तो कोई बात बने,
ख़ामोश है मेरे दिल का जहाँ, ऐसी बात नहीं।

मुकम्मल4 ज़िन्दगी की तलाश है दिल को मिरे,
मुकम्मल नहीं कुछ भी यहाँ, ऐसी बात नहीं।

चार दीवारों के दरमियान 5 मैं रहा करता हूँ,
छत भी नहीं नसीब-ए-मकाँ6, ऐसी बात नहीं।

कट कर गिरती रहती है पतंग आसमाँ से,
कभी भी मैं उड़ न सका, ऐसी बात नहीं।

1. जुदाई; 2. मिलन; 3. मन; 4. संपूर्ण; 5. बीच में; 6. घर का भाग्य।

by Panna

मु’अय्यन मंज़िल न सही

October 3, 2025 in ग़ज़ल

मु’अय्यन 1 मंज़िल न सही, कहीं तो पहुँच जाऊँ,
मुकम्मल2 नज़्म न सही, चंद लफ़्ज़ में ढल जाऊँ।

इक मुब्हम3 मुअम्मा4 सी हो गई है ज़िंदगी मेरी,
जितना सुलझाऊँ, उतना ही मैं उलझता जाऊँ।

मेरे तवज़्ज़ु’-ए-ज़मीर5 की थाह कैसे पाओगे,
जंग की तंग गलियों में तुम्हें मैं कैसे ले जाऊँ।

सुना है बहुत हमने, डूबते को सहारा तिनके का,
बीच मझधार में तिनका, अब मैं कहाँ से लाऊँ।

हर लम्हा बदलती रहती है रंगत दुनिया की,
मस्लहत6 है कि अब मैं फीका ही रह जाऊँ।

माटी और कुम्हार को जब देखा बारीकी से,
सोचा जैसे ढाले दुनिया, वैसे ही ढलता जाऊँ।

गोल रास्तों का है मेरी ज़िंदगी का तन्हा सफ़र,
जहाँ से करूँ शुरू, वहीं फिर से पहुँचता जाऊँ।

1. तय; 2. पूर्ण; 3. अस्पष्ट; 4. पहेली; 5. मन की चिंता; 6. समझदारी।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

लिखा है बस वही

October 3, 2025 in ग़ज़ल

लिखा है बस वही, जो दिल पे गुज़री है,
कैसे कहें ये शब 1, कैसे अकेले गुज़री है।

ओढ़ कर आ गए वो आज मेरे हालातों को,
कैसे बताएंगे वो क्या शानों2 पे गुज़री है।

वो एक सवाल है, और मैं जवाब उसका,
ज़िन्दगी इन्हीं सिलसिलों को ले गुज़री है।

जर्रा-जर्रा3 ख़ामोश है आज उनके ख़ौफ़ से,
डरते-डरते अभी हवा बस यहीं से गुज़री है।

रह-ए-ग़ुर्बत4 में ये सबक हमको मिला,
तारीकी 5 की फ़ज़ा6 चिराग़ तले गुज़री है।

1. रात; 2. कंधों; 3. हर कण; 4. गरीबी में जीवन; 5. अंधेरा; 6. माहौल।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

दर-दर गिरते हैं

October 3, 2025 in ग़ज़ल

दर-दर गिरते रहते हैं, अक्सर संभलने वाले,
खाते हैं अक्सर घाव, मरहम रखने वाले।

कर लिया था तौबा इश्क़ की गलियों से,
मगर मिले हर तरफ़ मोहब्बत करने वाले।

किसके ख़्वाबों में खोया रहेगा हमारा दिल,
अगर आ गए करीब ख़्वाबों में रहने वाले।

बेकरार हैं वो भी शायद हमारी ही तरह,
ख़ामोश हैं इसलिए अक्सर चहकने वाले।

इक झलक भी नहीं मयस्सर1, गुम हैं कहीं,
हो जाएँगे हाज़िर कभी भी, ये कहने वाले।

हो गया है मयख़ाने2 का हर शख़्स अजनबी,
किससे कहे हाल-ए-दिल इश्क़ करने वाले।

घटती जा रही है गिनती ग़म के मारों की,
रह गए हैं दो-चार कुछ, दर्द सहने वाले।

1. उपलब्ध; 2. मदिरालय।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

जिंदगी अंधेरों में

October 3, 2025 in ग़ज़ल

जिंदगी अंधेरों में तो हमें गँवानी थी,
रोशनी दो पल की जो कमानी थी।

जिन्हें हमने ख़ुद से भी करीब माना,
वो शख़्सियत असल में बेगानी थी।

रैली के जमघट 1 ने जाम2 किए रास्ते,
उसे बीमार माँ अस्पताल ले जानी थी।

आ गया है बचपन, बुढ़ापे के दर पर,
चार दिन की थी हमारी जो जवानी थी।

वो उठ चल दिए महफ़िल से पहले ही,
जिनको ये ग़ज़ल आज हमें सुनानी थी।

1. भीड़; 2. रुकावट।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

by Panna

इंतज़ार के बाद

October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी

इंतज़ार के बाद की कैसी सहर 1 होगी,
बिन तनहाई के जिंदगी कैसे बसर2 होगी।

1. सुबह; 2. गुज़ारना।

by Panna

अपने अश्क़ो को

October 3, 2025 in ग़ज़ल

अपने अश्क़ो को हम दफ़नाने आए हैं,
दर्द की नई फसल हम उगाने आए हैं।

चुनावी वादों को पूरा करेंगे आज वो,
अंधी भीड़ को जो आईने बंटवाने आए हैं।

इस बार खिलेंगे सूखी दरख़्तों 1 पर फूल,
मौसम गलियों में फिर से मुस्कुराने आए हैं।

इत्र की पेशकश करके जो गए थे हमसे,
आज फिर से तेज़ाब वो छिड़काने आए हैं।

छँट जाएगा ये अँधेरा चंद लम्हों में अब,
वो नज़्म-ए-रोशनी 2 जो लिखवाने आए हैं।

1. पेड़; 2. प्रकाश की कविता।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

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