Panna
यह दुःख ही सच्चा अपना
June 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी
सुख के झूठे मुखोटो का क्या मौल
यह दुःख ही सच्चा अपना, जो हमने झैला है
दुनिया भयी बाबरी
June 15, 2020 in मुक्तक
कोरोना बीमारी के लगातार बढने के बावजूद किसी भी तरह की कोई सावधानी लेने से लोग परहेज कर रहे हैंं
यह ऐसा समय है जब सबको अपने और अपने परिवार का ख्याल रखना चाहिये और हर संभव सावधानी रखनी चाहिये
लेकिन लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुये, बेपरवाह, बिना किसी काज के घूमते आपको हर जगह मिल जायेंगे, इसी स्थिति पर दो लाइन प्रस्तुत हैं –
दुनिया भयी बाबरी, छोड़ समझ को संग
बैठ के देखत रहो, अब तरह तरह के रंग
क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को
June 1, 2020 in मुक्तक
क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को?
जो मांग रहा है हजार का हर्जाना
मेरी दो सो की दिहाड़ी से
हर बार टूट जाते है अहसास
May 18, 2020 in मुक्तक
बेहिसाब अहसासों को हम सिमटे कैसे
कहां हो पाता है मुकम्मल मकां-ए-नज्म मिरा
हर बार टूट जाते है अहसास,
ख्वाबों के जैसे
बन रंगरेज इस तरह रंग डाले
March 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बन रंगरेज इस तरह रंग डाले,
रंग ए रूह और भी निखर जाए।
मिले गले इस तरह दोस्त बनकर,
दुश्मनी हो अगर, टूटकर बिखर जाए।।
जिंदगी के किनारे
December 30, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जिंदगी के किनारे रहकर जिंदगी गुजार दी
मझधार में आये तो जिंदगी ने दबोच लिया
मिलना ना हुआ
February 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी
कितनी मन्नतें माँगी, तब तुझसे मिलना हुआ,
मगर मिलकर भी, हमारा मिलना ना हुआ।
जानता हूं तुम नहीं हो पास
July 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी
जानता हूं तुम नहीं हो पास,
समझता भी हूं|
मगर जो मैं महसूस करता हूं हर पल
उसे झुठलाऊं कैसे?
जिंदगी
April 13, 2018 in शेर-ओ-शायरी
गुजरती जाती है जिंदगी चुपके से लम्हो में छुपकर
बहुत ढूढता हूं इसे, मगर कभी मिलती ही नहीं
नज्म
March 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी
इक नज्म है जो दबी हूई है दिल की दरारों में
आज फिर बहुत कोशिश की मगर निकल ना पाई
जिंदगी
March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
जितना जिंदगी को पास बुलाओ
जिंदगी उतना दूर हो जाती है
मंजिलो पर नजर रखते रखते
पैरों से राह गुम हो जाती है
मुक्तक
March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी
देखा है दुनिया को अपनी दिशा बदलते
अपने लोगो को अपनो से आंखे फ़ेरते
कतरा कतरा जिंदगी का रेत फिसलता जाता है
देखा है जिंदगी को मौत में बदलते
वक्त
March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं मालूम कहां गुम है वक्त
सब ढूढ़ना चाहते है
मगर ढ़ूढ़ने को आखिर
वक्त कहां है
सब कहते फिरते है,
वक्त निकालूंगा
वक्त निकालने को आखिर वक्त कहां है
मुखौटा
January 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
इक मुखौटा है जिसे लगा कर रखता हूं
जमाने से खुद को छुपा कर रखता हूं
दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं
सच्चाई को दिल में दबा कर रखता हूै
बस रोना आता है जमाने की सूरत देखकर
मगर झूठी हंसी चेहरे से सटा कर रखता हूं
आयेगी कभी तो जिंदगी लौट के मेरे पास
इंतजार में पलके बिछा कर रखता हूं
आज इक नया मुखौटा लगा कर आया हूं
मैं कई सारे मुखौटा बना कर रखता हूं
नजरे
January 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी
इक अरसे बाद नजरे मिली उनसे हमारी
नजरों ने पहचाना और अन्जान कर दिया
दिन, महीने और साल
January 1, 2018 in शेर-ओ-शायरी
दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|
मिलना न हुआ
March 3, 2017 in शेर-ओ-शायरी
कितनी मिन्नतों के बाद में मिला तुझसे
मगर मिलकर भी मेरा मिलना न हुआ
क़ी कई बातें, कई मर्तबा हमने
मगर इक बात पे कभी फैसला ना हुआ
अब नहीं होगा जिक्र
February 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी
अब नहीं होगा जिक्र आपका हमारे आशियाने में
न होगी नज्म कोई आपके नाम से
दिन, महीने और साल
December 28, 2016 in शेर-ओ-शायरी
दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|
बात से बात चले
December 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
गुफ़्तगु बंद न हो, बात से बात चले
मैं तेरे साथ चलूं, तू मेरे साथ चले|
आज कुछ लिखने को जी करता है
November 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी
आज कुछ लिखने को जी करता है
आज फिर से जीने को जी करता है
दबे है जो अहसास ज़हन में जमाने से
उनसे कुछ अल्फ़ाज उखेरने को जी करता है
दास्ता ए जिंदगी
October 18, 2016 in शेर-ओ-शायरी
चंद पन्नों में सिमट गयी दास्ता ए जिंदगी
अब लिखने को बस लहू है, और कुछ नहीं|
इक रब्त
September 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इक रब्त था जो कभी रहता था दरम्या हमारे
किस वक्त रूखसत हुआ, खबर नहीं|
कफ़स
August 20, 2016 in ग़ज़ल
इन परों में वो आसमान, मैं कहॉ से लाऊं
इस कफ़स में वो उडान, मैं कहॉ से लाऊं (कफ़स = cage)
हो गये पेड सूने इस पतझड के शागिर्द में
अब इन पर नये पत्ते, मैं कहॉ से लाऊं
जले हुए गांव में अब बन गये है नये घर
अब इन घरों में रखने को नये लोग, मैं कहॉ से लाऊं
बुझी-बुझी है जिंदगी, बुझे-बुझे से है जज्बात यहॉ
इस बुझी हुई राख में चिन्गारियॉ, मैं कहॉ से लाऊं
पथरा गयी है मेरे ख्यालों की दुनिया
अब इस दुनिया में मुस्कान, मैं कहॉ से लाऊ
चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े
July 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी
चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े, भूरी भूरी सी आंखे
यही है वो मुज़रिम जिसने कत्ल ए दिल किया है
– Panna
लिखते लिखते आज
May 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी
लिखते लिखते आज कलम रूक गयी
इक ख्याल अटक सा गया था
दिल की दरारों में कहीं|
खेल
May 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जिंदगी खेलती है खेल
हर लम्हा मेरे साथ
नहीं जानती गुजर गया बचपन
इक अरसा पहले
खेल के शोकीन इस दिल को
घेर रखा है अब
उधेड़ बुनों ने कसकर
अब इनसे निकलूं तो खेलूं
कोई नया खेल जिंदगी के साथ|
अगर तुम न मिलते
May 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
जिंदगी का कारवां यूं ही गुजर जाता अगर तुम न मिलते
हमारे लफ़्जों में कहां कविता उतरती अगर तुम न मिलते
मुकम्मल जिंदगी
April 27, 2016 in शेर-ओ-शायरी
मुकम्मल जिंदगी की खातिर
क्या क्या न किया जिंदगीभर हमने
मगर इक अधूरापन ही मिला
जिसे साथ लिए घूमता रहता हूं मैं|
अक्स
April 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी
अपने ही अल्फ़ाजों में नहीं मिल रहा अक्स अपना
न जाने किसको मुद्दतों से मैं लिखता रहा|
गम की हवेली
April 16, 2016 in शेर-ओ-शायरी
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था पहले दिल मेरा इक गम की हवेली
अब हजारों गमों के झुग्गीयों की बस्ती हो गया!!
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दास्ता ए इशक
April 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी
लिखते लिखते स्याही खत्म हो गयी
दास्ता ए इशक हमसे लिखी न गयी|
सावन के आने से पहले
April 11, 2016 in शेर-ओ-शायरी
कभी वो भी आयें, उनकी यादों के आने से पहले
फ़िजा महक भी जाये, सावन के आने से पहले
डर
April 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इक अजीब सा डर रहता है आजकल
पता नहीं क्यों, किस वजह से,
किसी के पास न होने का डर
या किसी के करीब आ जाने का|
जिंदगी को जैसे पर लग गये
March 29, 2016 in शेर-ओ-शायरी
कभी गुजरती थी जिंदगी
धीरे धीरे, कभी साइकिल पे, कभी पैदल
इक बचपन क्या गुजरा
जिंदगी को जैसे पर लग गये
दर्द ए अश्क
March 24, 2016 in शेर-ओ-शायरी
तेरा ज़िक्र तो हर जगह होता है
दर्द ए अश्क आंखों में जो भरा होता है
न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में
March 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में
कितने ही सूरज उगे कितने ही ढलते रहे
हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा
February 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कर रहे थे बसर जिंदगी गुमनाम गलियों में
आपकी मोहब्बत ने हमें मशहूर कर दिया
पुकारने लगे लोग हमें कई नामों से
हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा
आपका तस्व्वुर हमारे ज़हन में गुंजता रहता है
ज़हन से उसे जुबां पर लाने का हौसला नहीं
आपकी यादो ने जो हमें गाने को जो किया मजबूर
हमें यूं बेसूरा गाना भी अच्छा लगा
आपका अहसास ही तो हमारी जिंदगी है
बिना आपके जिंदगी का क्या मायना है
दो पल शम्मा से गुफ़्तगु करने की खातिर
परवाने को यूं जलना भी अच्छा लगा
दिल ए आईने में एक तस्वीर थी आपकी
तोड दिया वो आईना आपने बडी बेर्ददी से
मगर अब बसी हो आप हर बिखरे हूए टुकडे में
हमें यूं टूट कर बिखर जाना भी अच्छा लगा
दीया
February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
लङता अंधेरे से बराबर
नहीं बेठता थक हारकर
रिक्त नहीं आज उसका तूणीर
कर रहा तम को छिन्न भिन्न
हर बार तानकर शर
लङता अंधेरे से बराबर
किया घातक वार बयार का तम ने
पर आज तानकर उर
खङा है मिट्टी का तन
झपझपाती उसकी लो एक पल
पर हर बार वह जिया
जिसने तम को हरा
रात को दिन कर दिया
मिल गया मिट्टी मे मिट्टी का तन
अस्त हो गया उसका जीवन
लेकिन उस कालभुज के हाथों न खायी शिकस्त
बना पर्याय दिनकर का वह दीया
जिसने तम को हरा
रात को दिनकर दिया
बिना कलम मैं कौन ?
February 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
बिना कलम मैं कौन
क्या परिचय मेरा
कहां का रहवासी मैं
शायद कविता लिखने वाला
कवि था मैं
पर अब मै कौन
बिना कलम मैं कौन
कलम के सहारे
नन्ही नन्ही लकीरों से
रचता मैं इन्द्रजाल
सजते शब्द शर स्वतः
और कर देते हताहत
क्ष्रोता तन को
लेकिन अब रूठ गयी कलम मुझसे
नष्ट हो गए सारे शर
रिक्त हो गया मेरा तूणीर
विलीन हो गया रचित इन्द्रजाल
और मैं हो गया मायूस मौन
बिना कलम मैं कौन