by Panna

मत कर होड़ा होड़ी

May 6, 2021 in मुक्तक

मत कर होड़ा होड़ी बीच सड़क तू चलने में।

by Panna

यह दुःख ही सच्चा अपना

June 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सुख के झूठे मुखोटो का क्या मौल
यह दुःख ही सच्चा अपना, जो हमने झैला है

by Panna

दुनिया भयी बाबरी

June 15, 2020 in मुक्तक

कोरोना बीमारी के लगातार बढने के बावजूद किसी भी तरह की कोई सावधानी लेने से लोग परहेज कर रहे हैंं
यह ऐसा समय है जब सबको अपने और अपने परिवार का ख्याल रखना चाहिये और हर संभव सावधानी रखनी चाहिये
लेकिन लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुये, बेपरवाह, बिना किसी काज के घूमते आपको हर जगह मिल जायेंगे, इसी स्थिति पर दो लाइन प्रस्तुत हैं –

दुनिया भयी बाबरी, छोड़ समझ को संग
बैठ के देखत रहो, अब तरह तरह के रंग

by Panna

मूल्याकंन

June 13, 2020 in Other

हर कविता को ‘नाइस’, ‘गुड’ कहकर झूठी तारीफ़ कहने की वजाए हम सही मूल्यांकन करे तो बेहतर होगा. तभी हम सब अपनी कविता में कुछ बेहतर कर सकेंगे.
आप लोगों के क्या कहना है?

by Panna

पराया शहर

June 6, 2020 in मुक्तक

कोई दवा देता है, कोई देता ज़हर
किसपे करे एतमाद, नहीं खबर
कौन अपना यहां, कौन पराया
सारा जहां है अपना, पराया शहर

by Panna

क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को

June 1, 2020 in मुक्तक

क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को?
जो मांग रहा है हजार का हर्जाना
मेरी दो सो की दिहाड़ी से

by Panna

हर बार टूट जाते है अहसास

May 18, 2020 in मुक्तक

बेहिसाब अहसासों को हम सिमटे कैसे
कहां हो पाता है मुकम्मल मकां-ए-नज्म मिरा
हर बार टूट जाते है अहसास,
ख्वाबों के जैसे

by Panna

बन रंगरेज इस तरह रंग डाले

March 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बन रंगरेज इस तरह रंग डाले,
रंग ए रूह और भी निखर जाए।
मिले गले इस तरह दोस्त बनकर,
दुश्मनी हो अगर, टूटकर बिखर जाए।।

by Panna

रंग ए रूह

March 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब सब चेहरे के रंग को ही देखते है
रंग ए रूह का पता कैसे चले

by Panna

जिंदगी के किनारे

December 30, 2019 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी के किनारे रहकर जिंदगी गुजार दी
मझधार में आये तो जिंदगी ने दबोच लिया

by Panna

दर्द

November 7, 2019 in मुक्तक

#kavita #poetry #Shayari #poetrywithpanna

by Panna

रंगरेज

March 21, 2019 in मुक्तक

बन रंगरेज इस तरह रंग डाले,
रंग ए रूह और भी निखर जाए।
मिले गले इस तरह दोस्त बनकर,
दुश्मनी हो अगर, टूटकर बिखर जाए।।

by Panna

मिलना ना हुआ

February 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी

कितनी मन्नतें माँगी, तब तुझसे मिलना हुआ,
मगर मिलकर भी, हमारा मिलना ना हुआ।

by Panna

Guftagu Band Na Ho

August 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

by Panna

जानता हूं तुम नहीं हो पास

July 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जानता हूं तुम नहीं हो पास,
समझता भी हूं|
मगर जो मैं महसूस करता हूं हर पल
उसे झुठलाऊं कैसे?

by Panna

दास्तान

April 25, 2018 in शेर-ओ-शायरी

इक दास्तान है दबी दिल में कहीं
कोई सुने तो हम सुनाये कभी|

by Panna

जिंदगी

April 13, 2018 in शेर-ओ-शायरी

गुजरती जाती है जिंदगी चुपके से लम्हो में छुपकर
बहुत ढूढता हूं इसे, मगर कभी मिलती ही नहीं

by Panna

नज्म

March 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी

इक नज्म है जो दबी हूई है दिल की दरारों में
आज फिर बहुत कोशिश की मगर निकल ना पाई

by Panna

जिंदगी

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जितना जिंदगी को पास बुलाओ
जिंदगी उतना दूर हो जाती है
मंजिलो पर नजर रखते रखते
पैरों से राह गुम हो जाती है

by Panna

मुक्तक

March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

देखा है दुनिया को अपनी दिशा बदलते
अपने लोगो को अपनो से आंखे फ़ेरते
कतरा कतरा जिंदगी का रेत फिसलता जाता है
देखा है जिंदगी को मौत में बदलते

by Panna

वक्त

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं मालूम कहां गुम है वक्त
सब ढूढ़ना चाहते है
मगर ढ़ूढ़ने को आखिर
वक्त कहां है

सब कहते फिरते है,
वक्त निकालूंगा
वक्त निकालने को आखिर वक्त कहां है

by Panna

मुखौटा

January 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इक मुखौटा है जिसे लगा कर रखता हूं
जमाने से खुद को छुपा कर रखता हूं

दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं
सच्चाई को दिल में दबा कर रखता हूै

बस रोना आता है जमाने की सूरत देखकर
मगर झूठी हंसी चेहरे से सटा कर रखता हूं

आयेगी कभी तो जिंदगी लौट के मेरे पास
इंतजार में पलके बिछा कर रखता हूं

आज इक नया मुखौटा लगा कर आया हूं
मैं कई सारे मुखौटा बना कर रखता हूं

by Panna

नजरे

January 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी

इक अरसे बाद नजरे मिली उनसे हमारी
नजरों ने पहचाना और अन्जान कर दिया

by Panna

दिन, महीने और साल

January 1, 2018 in शेर-ओ-शायरी

दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|

by Panna

मिलना न हुआ

March 3, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कितनी मिन्नतों के बाद में मिला तुझसे
मगर मिलकर भी मेरा मिलना न हुआ

क़ी कई बातें, कई मर्तबा हमने
मगर इक बात पे कभी फैसला ना हुआ

by Panna

अब नहीं होगा जिक्र

February 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी

अब नहीं होगा जिक्र आपका हमारे आशियाने में
न होगी नज्म कोई आपके नाम से

by Panna

दिन, महीने और साल

December 28, 2016 in शेर-ओ-शायरी

दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|

by Panna

बात से बात चले

December 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

गुफ़्तगु बंद न हो, बात से बात चले
मैं तेरे साथ चलूं, तू मेरे साथ चले|

by Panna

आज कुछ लिखने को जी करता है

November 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी

आज कुछ लिखने को जी करता है
आज फिर से जीने को जी करता है
दबे है जो अहसास ज़हन में जमाने से
उनसे कुछ अल्फ़ाज उखेरने को जी करता है

by Panna

दास्ता ए जिंदगी

October 18, 2016 in शेर-ओ-शायरी

चंद पन्नों में सिमट गयी दास्ता ए जिंदगी
अब लिखने को बस लहू है, और कुछ नहीं|

by Panna

इक रब्त

September 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इक रब्त था जो कभी रहता था दरम्या हमारे
किस वक्त रूखसत हुआ, खबर नहीं|

by Panna

कफ़स

August 20, 2016 in ग़ज़ल

इन परों में वो आसमान, मैं कहॉ से लाऊं
इस कफ़स में वो उडान, मैं कहॉ से लाऊं   (कफ़स  = cage)

हो गये पेड सूने इस पतझड के शागिर्द में
अब इन पर नये पत्ते, मैं कहॉ से लाऊं

जले हुए गांव में अब बन गये है नये घर
अब इन घरों में रखने को नये लोग, मैं कहॉ से लाऊं

बुझी-बुझी है जिंदगी, बुझे-बुझे से है जज्बात यहॉ
इस बुझी हुई राख में चिन्गारियॉ, मैं कहॉ से लाऊं

पथरा गयी है मेरे ख्यालों की दुनिया
अब इस दुनिया में मुस्कान, मैं कहॉ से लाऊ

sign

by Panna

चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े

July 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी

चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े, भूरी भूरी सी आंखे
यही है वो मुज़रिम जिसने कत्ल ए दिल किया है

– Panna

by Panna

लिखते लिखते आज

May 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी

लिखते लिखते आज कलम रूक गयी
इक ख्याल अटक सा गया था
दिल की दरारों में कहीं|

by Panna

खेल

May 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी खेलती है खेल
हर लम्हा मेरे साथ
नहीं जानती गुजर गया बचपन
इक अरसा पहले
खेल के शोकीन इस दिल को
घेर रखा है अब
उधेड़ बुनों ने कसकर
अब इनसे निकलूं तो खेलूं
कोई नया खेल जिंदगी के साथ|

by Panna

अगर तुम न मिलते

May 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी का कारवां यूं ही गुजर जाता अगर तुम न मिलते
हमारे लफ़्जों में कहां कविता उतरती अगर तुम न मिलते

by Panna

मुकम्मल जिंदगी

April 27, 2016 in शेर-ओ-शायरी

मुकम्मल जिंदगी की खातिर
क्या क्या न किया जिंदगीभर हमने
मगर इक अधूरापन ही मिला
जिसे साथ लिए घूमता रहता हूं मैं|

by Panna

अक्स

April 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अपने ही अल्फ़ाजों में नहीं मिल रहा अक्स अपना
न जाने किसको मुद्दतों से मैं लिखता रहा|

by Panna

गम की हवेली

April 16, 2016 in शेर-ओ-शायरी

****

था पहले दिल मेरा इक गम की हवेली
अब हजारों गमों के झुग्गीयों की बस्ती हो गया!!

****

 

by Panna

दास्ता ए इशक

April 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

लिखते लिखते स्याही खत्म हो गयी
दास्ता ए इशक हमसे लिखी न गयी|

by Panna

सावन के आने से पहले

April 11, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कभी वो भी आयें, उनकी यादों के आने से पहले
फ़िजा महक भी जाये, सावन के आने से पहले

by Panna

डर

April 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इक अजीब सा डर रहता है आजकल
पता नहीं क्यों, किस वजह से,
किसी के पास न होने का डर
या किसी के करीब आ जाने का|

by Panna

जिंदगी को जैसे पर लग गये

March 29, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कभी गुजरती थी जिंदगी
धीरे धीरे, कभी साइकिल पे, कभी पैदल
इक बचपन क्या गुजरा
जिंदगी को जैसे पर लग गये

by Panna

दर्द ए अश्क

March 24, 2016 in शेर-ओ-शायरी

तेरा  ज़िक्र  तो  हर  जगह  होता  है
दर्द ए अश्क आंखों में जो भरा होता है

by Panna

लफ़्जों का खेल

March 15, 2016 in शेर-ओ-शायरी

लफ़्जों का खेल तो देखो
कभी हंसाते है, कभी रूलाते है

by Panna

Yun Ikraar e ishq me tu taakhir na kar

March 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इकरार ए इश्क मे तू ताखीर न कर

by Panna

न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में

March 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी

 

न  हुई  सुबह  न  कभी  रात इस दिल ए शहर में

कितने   ही   सूरज   उगे   कितने   ही  ढलते  रहे

by Panna

हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा

February 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर रहे थे बसर जिंदगी गुमनाम गलियों में

आपकी मोहब्बत ने हमें मशहूर कर दिया

पुकारने लगे लोग हमें कई नामों से

हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा

आपका तस्व्वुर हमारे ज़हन में गुंजता रहता है

ज़हन से उसे जुबां पर लाने का हौसला नहीं

आपकी यादो ने जो हमें गाने को जो किया मजबूर

हमें यूं बेसूरा गाना भी अच्छा लगा

आपका अहसास ही तो हमारी जिंदगी है

बिना आपके जिंदगी का क्या मायना है

दो पल शम्मा से गुफ़्तगु करने की खातिर

परवाने को यूं जलना भी अच्छा लगा

दिल ए आईने में एक तस्वीर थी आपकी

तोड दिया वो आईना आपने बडी बेर्ददी से

मगर अब बसी हो आप हर बिखरे हूए टुकडे में

हमें यूं टूट कर बिखर जाना भी अच्छा लगा

by Panna

दीया

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लङता अंधेरे से बराबर

नहीं बेठता थक हारकर

रिक्त नहीं आज उसका तूणीर

कर रहा तम को छिन्न भिन्न

हर बार तानकर शर

लङता अंधेरे से बराबर

 

किया घातक वार बयार का तम ने

पर आज तानकर उर

खङा है मिट्टी का तन

झपझपाती उसकी लो एक पल

पर हर बार वह जिया

 

 

जिसने तम को हरा

रात को दिन कर दिया

 

मिल गया मिट्टी मे मिट्टी का तन

अस्त हो गया उसका जीवन

लेकिन उस कालभुज के हाथों न खायी शिकस्त

बना पर्याय दिनकर का वह दीया

जिसने तम को हरा

रात को दिनकर दिया

by Panna

बिना कलम मैं कौन ?

February 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिना कलम मैं कौन

क्या परिचय मेरा

कहां का रहवासी मैं

शायद कविता लिखने वाला

कवि था मैं

पर अब मै कौन

बिना कलम मैं कौन

 

कलम के सहारे

नन्ही नन्ही लकीरों से

रचता मैं इन्द्रजाल

सजते शब्द शर स्वतः

और कर देते हताहत

क्ष्रोता तन को

लेकिन अब रूठ गयी कलम मुझसे

नष्ट हो गए सारे शर

रिक्त हो गया मेरा तूणीर

विलीन हो गया रचित इन्द्रजाल

और मैं हो गया मायूस मौन

बिना कलम मैं कौन

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