Panna
मेरी आवाज दबा दी गयी
February 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी आवाज दबा दी गयी
मेरे अल्फ़ाज मिटा दिये गये
जला दिया मेरा जिस्म भी दुनिया ने
मगर ख्वाहिशे कहां मिटती है
ढ़ूढ़ लेती है कोई न कोई राह
निकल पडती है परत दर परत
मिट्टी में मिलने के बाद
इक नन्हे पौधे की तरह!
जब बन जाता है हमारा याराना
February 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
इक वक्त, इक रब्त जुड़ा था, [रब्त = Relation]
वक्त गुजर गया, रब्त रह गया
कुछ लम्हो की दास्ता बनकर ये याराना
पक्के अल्फ़ाजों में ज़हन में छप गया
कुछ पल अजीज है बहुत,
कुछ लोग अजीज है
दूर हो कितने भी
अरसा गुजर जाने के बाद भी
करीब लगते है, अपने लगते है
जिंदगी इनके होने से ही
अपनी लगती है,
मुकम्मल लगती है, जिंदगी की दास्ता [मुकम्मल = Complete]
जब रब्त जुड़ता है
जब बन जाता है हमारा याराना
Happy B’day Bhaiji 🙂
भूखी दास्तां (Poetry on Picture Contest)
February 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो आंखे आज तक चुभती है मुझको
एक दम खाली,
खाली कटोरे सी
जो पूछ रही हों,
कह रही हो अपनी भूखी दास्तां
लफ़्ज ही बेबस है,
नहीं समेट सकते दर्द को उनके
खाली है वो भी
उनके खाली पेट की तरह!
नहीं हो जब कोई अंजाम
February 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं हो जब कोई अंजाम,
अगर आगाज़ का
बस इक राह हो,
न कोई मंजिल हो
दिल में बस मोहब्बत हो,
दिल मिलने को मुन्तजिर हो
वो खुशनुमा चेहरा
February 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी
वो खुशनुमा चेहरा कितना नूरदार है आज की रात
जैसे फैल गया हो चांद पिघलकर उनके रूखसारों पर
Ise Benaam hee Rahne Do
February 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
इसे बेनाम ही रहने दो, कोई नाम न दो
वर्ना बेवजह दिल में कई सवाल उठेंगें
उन सवालों का जबाव हमारे पास नहीं
सिर्फ़ अहसास है हमारे पास,
जो लफ़्जों में ढलते ही नहीं
लफ्जों के सहारे दिल कुछ हल्का कर लेते है
गमों के घूंट, एक-दो पी लेते है
वर्ना इस दुनिया मे रखा ही क्या है
कुछ रखने को आखिर, बचा ही क्या है
इन अश्कों को ही आंखो में बचा के रखा है
कभी तुम मिल जाओगे इन्हे भी खर्च देंगें हम
मिल जाओ तुम अगर, लुट जाऐगें हम
मगर शायद लुट जाना हमारी किस्मत में नहीं
चंद कदमों का फ़ासला है, मगर पांव चलते ही नहीं
कई कारवां इसी फासले से गुजर जाऐगें
हम तो है यहीं, यहीं रह जाऐगें
बस अहसास हमारे, शायद तुम तक पहुंच जाऐगें
इन अहसासों के फासलों को अब मिट जाने दो
इसे बेनाम ही रहने दो, कोई नाम न दो
इज़हार ए तसव्वुर
February 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इस वीराने में अचानक बहार कहां से आ गयी
गौर से देखा तो ये महज़ इज़हार ए तसव्वुर था
लफ़्ज ढूढ रहे है बसेरा तबाही में कहीं
February 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
है हर तरफ़ शोर तबाही का
गुमराह है रूह, दबी हुई सी कहीं
डूब गया है सूरज उम्मीद का
लफ़्ज ढूढ रहे है बसेरा तबाही में कहीं
पछताओगे तुम, रुसवाईयां करोगे
January 28, 2016 in ग़ज़ल
पछताओगे तुम, रुसवाईयां करोगे
गर छोड दिया हमने तेरी गलियों मे आना कभी
तुझसे मुश्ते-मोहब्बत मांगी थी, कोई कोहिनूर नहीं
बस तेरे दीदार की दरकार थी चश्मेतर को कभी
भर गये पांव आबलो से पुखरारों पर चलकर
सारे घाव भर जाते ग़र मलहम लगा देते कभी
यूं इकरार ए इश्क मे तू ताखीर न कर
चले गये जो इकबार, फिर ना आयेंगे कभी
घुल जाये तेरी रोशनी में रंगे-रूह मेरी
ग़र जल जाये मेरी महफिल में शम्मा ए इश्क कभी
इक नज़्म है जिसे हरपल गुनगुनाता हूँ
January 18, 2016 in ग़ज़ल
इक नज़्म है जिसे हरपल गुनगुनाता हूँ
कोरे कागज पै स्याही सा बिखर जाता हूँ
हर्फ़ हालातों में ढलकत कुछ कह देते है
कोई सुनता है तो मैं संवर जाता हूँ
कोई साखी है तेरे मैखाने में
जो पिलाती है तो बहक जाता हूँ
मकरूज है जिंदगी तेरी मोहब्बत की
चंद सिक्कों में ही मैं लुट जाता हूँ
छिड़ी है जंग जज्बातों में आंखो से निकलने को
बनकर अक्स रूखसारों पै जम जाता हूँ
रंग ओ रोशनी की चाहत है किसको
अंधेरों में आहिस्ते अक्सर गुजर जाता हूँ
क्या छुपा है जो मैं अब कहूँ तुझसे
नज़्म ए जिंदगी हर रोज लिखे जाता हूँ
हो गये थे हैरान नैरंगे-नज़र देखकर
January 17, 2016 in शेर-ओ-शायरी
हो गये थे हैरान नैरंगे-नज़र देखकर
मिल जाता सुकुन ग़र जो इनसे पी लेते कभी
वह भिखारी
January 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वह भिखारी
मलिन मटमैला फटा पट
पहने था वह पथवासी
नमित निगाहे नित पथ पर
नयनों से नीर निकलता
विदीर्ण करता ह्रदय
अपने भाग्य पर
कांपते हाथों में कटोरा
स्कंध पर उसके परिवार का बोझ
दो दिवस से भूखे
बाल का सहारा भिखारी
जिसके सम्मुख अब
पथ की ठोकरे भी हारी
बेबस कंठ ने साथ छोड दिया
पग भी पथ पर रुकते है
बच्चों की सूरत याद आने पर
दयनीय द्रग द्रवित हो उठते है
तरणी है बीच मझधार में
कब कूल तक पहुंचेगी
इस इंतजार में
नत हुआ , म्रत हुआ
वह भिखारी
चाहे कितनी नफ़रत कर लो हमसे
January 7, 2016 in ग़ज़ल
चाहे कितनी नफ़रत कर लो हमसे
तेरे दिल को अपना बनाकर रहेगें
बहुत रो चुकी है आंखे हमारी
तेरी आंखों से आंसू हम गिराकर रहेंगे
चाहे कितनी भी अंधेरी हो जिंदगी की रातें
शम्मां महोब्बत की हम जला कर रहेगें
फासले बना लो चाहे कितना भी हमसे
ये फ़ासले, हम मिटा कर रहेगें
वो याद आये..
January 5, 2016 in ग़ज़ल
कुछ अश्कों की महफिल जमी और वो याद आये
रुखसार कुछ नम से हुए और वो याद आये
एक जमाने की मोहब्बत वो चंद लम्हो में भुला बैठे
हम भूलकर भी उन्हे भूला ना पाये और वो याद आये
चांद और उनका क्या रिश्ता है, हमें नहीं मालूम
फ़लक पे चांद उतरा और वो याद आये
तरन्नुम ए इश्क गाते रहे तमाम उम्र हम
कोई नगमा कहीं गुंजा और वो याद आये
समझने को दुनिया ने क्या क्या हमें समझा
December 23, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
समझने को दुनिया ने क्या क्या हमें समझा
जो न समझना था, लोगो ने वही समझा
देख के दुनिया की समझदारी, हम यही समझे
जो न कुछ समझा यहां, वही सब कुछ समझा|
बस दर्द के शार्गिद में अब नज्में-ए-गम लिखा करते है
December 22, 2015 in ग़ज़ल
वो पूछते है हमसे कि आजकल हम क्या करते है
क्या बताएं कि उनके इंतजार में किस कदर मरते है
अपने अहसास, अपनी आरजू दिल में दबाए रखे है
वो कहते है कि आजकल हम कुछ चुप से रहा करते है
कहते है वो आज से हम बाते नहीं करेंगे आपसे
उनके लफ्जों के सहारे ही लम्हे गुजरा करते है
जाते जाते वो आज जो हमसे खफ़ा हो गये
बस दर्द के शार्गिद में अब नज्में-ए-गम लिखा करते है
बहुत खारे है जज़्बात हमारे..
December 9, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
बहुत खारे है जज़्बात हमारे
इस मीठी मोहब्बत के
तुम्हारी नज़रों में क्या मोल है
हमारे अश्कों के समंदर का
समझ नहीं आया..
December 7, 2015 in शेर-ओ-शायरी
अनकही बातों तो समझते आये थे अबतक
उन्होने आज जो कहा समझ नहीं आया
उसके चेहरे से नजर हे कि हटती नहीं..
December 2, 2015 in ग़ज़ल
उसके चेहरे से नजर हे कि हटती नहीं
वो जो मिल जाये अगर चहकती कहीं
जिन्दगी मायूस थी आज वो महका गयी
जेसे गुलशन में कोई कली खिलती कहीं
वो जो हंसी जब नजरे मेरी बहकने लगी
मन की मोम आज क्यों पिगलती गयी
महकने लगा समां चांदनी खिलने लगी
छुपने लगा चाँद क्यों आज अम्बर में कहीं
भूल निगाओं की जो आज उनसे टकरा गयी
वो बारिस बनकर मुझ पे बरसती गयी
कुछ बोलना ना चाहते थे मगर ये दिल बोल उठा
धीरे- धीरे मधुमयी महफिल जमती गयी
आँखों का नूर करता मजबूर मेरी निगाहों को
दिल के दर्पण पर उसकी तस्वीर बनती गयी
सदियों से बंद किये बेठे थे इस दिल को
मगर चुपके से वो इस दिल में उतरती गयी
तिल तिल जलता हे दिल मगर दुंहा हे कि उठती नहीं
परवाना बनकर बेठे हे शमां हे की जलती नहीं
हो गयी क़यामत वो जो सामने आ गयी
दर्द ऐ दिल से गजल आज क्यों निकलती गयी
थोडा सा शरमाकर, हल्के से मुस्कुराकर झुकी जो नजर
नज़रे-नूर-ओ-रोशनी में मेरी रंगे-रूह हल्के से घुलती गयी
घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे..
November 27, 2015 in ग़ज़ल
घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे
आईने पर भी अब मुझे न एतबार रहा
हमारी मोहब्बत का असर हुआ उन पर इस कदर
निखर गयी ताबिश1-ए-हिना, न वो रंग ए रुख़्सार रहा
हमारी मोहब्बत पर दिखाए मौसम ने ऐसे तेवर
न वो बहार-ए-बारिश रही, न वो गुल-ए-गुलजार रहा
भरी बज्म2 में हमने अपना दिल नीलाम कर दिया
किस्मत थी हमारी कि वहां न कोई खरीददार रहा
तनहाईयों में अब जीने को जी नहीं करता
दिल को खामोश धडकनों के रूकने का इंतजार रहा
- ताबिश : चमक
- बज़्म= सभा
मौत हुयी हमारी हजार बार
November 24, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कौन कहता है
आदमी मरता है बस एक बार
वस्लो हिज़्र के खेल में
मौत हुयी हमारी हजार बार
बिछडने के ख्याल से हम आपसे मिलने से डरते है
November 21, 2015 in ग़ज़ल
बिछडने के ख्याल से हम आपसे मिलने से डरते है
मगर कैसे बताएं हम किस कदर तनहा मरते है
देख न ले वो हमें, कहीं पुकार न ले
उनकी गलियों से यूं गुज़रने से डरते है
ताउम्र उन्हे चाहने के सिवा क्या किया है हमने
अब मगर यूं बेहिसाब चाहने से डरते है
कभी बारिश का इंतजार रहता था हमें सालभर
मगर अब भीग जाने के ख्याल से ही डरते है
दर्द को लिखना चाहते है मगर लफ़्ज साथ ही नही देते
दिल ए दरिया से बाहर आने से आजकल वो मुखरते है
अश्क बेपरवाह बहे जाते है
November 20, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
अश्क बेपरवाह बहे जाते है
एक कहानी है
ये जो कहे जाते है
कोई सुनता ही नहीं
कोई ठहरता ही नहीं
आते है लोग, चले जाते है
अश्क बेपरवाह बहे जाते है
आंखो से बहकर आसूं
आ जाते है रूखसारो पर
छोड कर खारी लकीरे,
अपने अनकहे अहसासों की
न जाने कहां गुम जो जाते है
अश्क बेपरवाह बहे जाते है
बढे जो मेरे हाथ, खुदा की तरफ़
November 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
बढे जो मेरे हाथ, खुदा की तरफ़
दुनिया ने मुझे काफ़िर करार दे दिया
नहीं समझी दुनिया, न वो खुदा
मेरे सजदे को|
इक अधूरापन है जो झांकता रहता है
November 16, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
इक अधूरापन है जो झांकता रहता है
दिल की दरारों से|
मचलता रहता है,
मुकम्मल होने की ख्वाहिश में|
कुछ यादें थी, अधूरी सी
भीगना बारिश में कभी कभी|
करवा ली है मरम्मत छत की
ठीक कर ली है रोशनदान भी
फिर भी कभी कभी वो
आंखों से बहता रहता है,
इक अधूरापन है जो झांकता रहता है|
कुछ बातें थी, जो कभी हुई नहीं
कुछ सोचा था मैंनें, जो उसने सुना नहीं,
चंद लफ़्जों का आसरा चाहता था
साथ में किसी का हाथ चाहता था
जो कभी मिला नहीं|
अब दरारों के दरम्या दिल तनहा रहता है
इक अधूरापन है जो झांकता रहता है|
वाह! क्या नज़्म है|
November 15, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
थोडी सी उदासी जमा कर ली है
मुठ्टी भर दर्द को कैद कर रखा है
दिल के इक कौने में
कभी कभी इसी दर्द को घोलकर स्याही में
बिखेर देता हूं उदास कागज़ पर
कुछ अल्फ़ाज़ से खिंच जाते है
लोग कहते है
वाह! क्या नज़्म है|
कभी कभी सोचता हूं
November 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी कभी सोचता हूं
कि हमने पत्थर को भगवान बनाया है
या भगवान को भी पत्थर बना दिया
सोचा नहीं था
November 12, 2015 in ग़ज़ल
चले जाओगे तुम ये सोच नहीं था
हो जाएगें तनहा हम ये सोचा नहीं था
हंसते हंसते बितायी थी जिंदगी हमने
गम में ढ़ल जाएगी जिंदगी ये सोचा नहीं था
तेरी आंखो के नशे मे डूबे रहे हम जिंदगी भर
मय बन जाएगा मुकद्दर ये सोचा नहीं था
जिंदगी क्या थी हमारी बस तुम्हारा अहसास था
अहसास भी साथ न रहेगा ये सोचा नहीं था
दिल ए आईने में उतार ली थी तस्वीर तुम्हारी
वो आईना टूट जाएगा ये सोचा नहीं था
हर शाम साथ साथ हुई थी बसर हमारी
तमाम शब जगेंगे तनहा ये सोचा नहीं था
मिले थे जब उनसे मिट गयी थी दूरियां
दूरियां हो जाएगीं दरम्यां ये सोचा नहीं था
जिने जानते थे हम अपनी जिंदगी से ज्यादा
वो हो जाएंगे अजनबी ये सोचा नहीं था
इक नज़्म कभी कभी जाग उठती है
November 7, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
पुरानी जिंदगी कभी कभी जाग उठती है
यादें आ जाती है याद बेवजह
खारी लकीरें छोडकर रुखसारों पर
न जाने कहां खो जाते है जज्बात मेरे
लफ़्ज जो कभी जुबां पर आ ना पाये
जो छुपते रहे ज़हन के किसी कोने में
उमड उठते है कभी कभी
कागज के किसी कोने में
इक नज़्म कभी कभी जाग उठती है|
एक मुलाकात की तमन्ना मे…
October 23, 2015 in ग़ज़ल
आपकी यादो को अश्कों में मिला कर पीते रहे
एक मुलाकात की तमन्ना मे हम जीते रहे
आप हमारी हकीकत तो बन न सके
ख्वाबों में ही सही हम मगर मिलते रहे
आप से ही चैन ओ सुकून वाबस्ता दिल का
बिन आपके जिंदगी क्या, बस जीते रहे
सावन, सावन सा नहीं इस तनहाई के मौसम में
हम आपको याद करते रहे और बादल बरसते रहे
जब देखा पीछे मुडकर हमने आपकी आस में
एक सूना रास्ता पाया, जिस पर तनहा हम चलते रहे
Few words from Mushaira
October 19, 2015 in शेर-ओ-शायरी
Saavan
ये कारवां चले तो, हम भी चलें
ये शम्मा जले तो, हम भी जलें
खाक करके हर पुरानी ख्वाहिश को
इक नया कदम, हम भी चलें……
कभी ठहरी सी लगती है,
कभी बहती चली जाती है
जिंदगी है या पानी है
न जाने क्यों जम जाती है
कोई वक्त था, जब एक रब्त चला करता था हमारे दरम्या
गुजर गया वो रब्त, अब साथ बस वक्त चले
मुश्किल है राहें, सूनी है अकेली सी
इस अकेलेपन में साथ तन्हाई चले
ठिठुरता बचपन (October 17: Anti Poverty Day)
October 17, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
October 17: Anti Poverty Day
सर्दी में नंगे पांव
कूड़ा बटोरते बच्चे
ठिठुरता बचपन उनका
सिकुडी हुई नन्ही काया
टाट के थैले की तरह
उनके रूदन का
क्या जिक्र करू मैं
लफ़्जों के कुछ दायरे होते है
नहीं फैल सकते वह
उनके रूदन की तरह
क्या करें नादान है
October 14, 2015 in शेर-ओ-शायरी
ऐसा नहीं कि कोई नहीं जहान में हमारा यहां
दोस्त है कई मगर, क्या करें नादान है
आज की शाम
October 9, 2015 in ग़ज़ल
आज की शाम शमा से बाते कर लूं
उससे चेहरे को अपनी आखों में भर लूं
फासले है क्यों उसके मेरे दरम्या
चलकर कुछ कदम कम ये फासले कर लूं
प्यार करना उनसे मेरी भूल थी अगर
तो ये भूल एक बार फिर से कर लूं
उसके संग चला था जिंदगी की राहों में
बिना उसके जिंदगी कैसे बसर कर लूं
परवाने को जलते देखा तो ख्याल आया
आज की शाम शमा से बाते कर लूं
तेरी आवाज में हम डूब जाते है
October 6, 2015 in ग़ज़ल
तेरी आवाज में हम डूब जाते है
तुझसे हम कुछ कह नहीं पाते है
हाल ए दिल कैसे करें बयां अपना
दिल की हर धडकन में तुझे सजाते है
गालिब बना दिया हमें तेरी मोहब्बत ने
तनहाइयों में भी बस तुझे गाते है
यकीन है एक दिन मिलेगीं नजरें तुझसे
हर लम्हा यही सोचकर बिताते है
शम्मा से बस एक मुलाकात की खातिर
परवाने पागल शम्मा मे जल जाते है
समंदर में इक कश्ती है छोटी सी
October 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी
समंदर में इक कश्ती है छोटी सी
कभी रोती थी रेत के दरिया में
अब दरिया ए अश्क में तैरती है..
कुछ कमाल की बात है
September 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ कमाल की बात है
उनकी आवाज में
कभी कोयल सी मधुर लगती है
कभी बिजली की कडक सी कर्कश
तो कभी बूंद बनकर बरसती है
मेरे सूखे पडे ह्रदय में
कभी बहा कर ले जाती है
डुबा देती है
समंदर के आगाज़ में
कुछ कमाल की बात है
उनकी आवाज में
झुकी जो नजर
September 23, 2015 in शेर-ओ-शायरी
थोडा सा शरमाकर, हल्के से मुस्कुराकर झुकी जो नजर
नज़रे-नूर-ओ-रोशनी में मेरी रंगे-रूह हल्के से घुलती गयी
हाल -ए- दिल
September 16, 2015 in ग़ज़ल
हम अपना हाल -ए- दिल आपसे कहते रहे
कभी बच्चा तो कभी मासूम आप हमें कहते रहे
आज तक कोई सबक पढा न जिंदगी में हमने
ताउम्र हम आपकी आखों जाने क्या पढते रहे
इक अरसा बीत गया हम मिले नहीं आपसे
तुझसे मुलाकात के इंतजार में हम तनहा मरते रहे
न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में
कितने ही सूरज उगे कितने ही ढलते रहे
अनजान राहों में चलते रहे मंजिल की तलाश में
चलना ही मुसाफिर का नसीब है सो हम चलते रहे
कुछ कहने की कोशिश में है अहसास मिरे
September 15, 2015 in शेर-ओ-शायरी
कुछ कहने की कोशिश में है अहसास मिरे
उमडने को आतुर है ज़ज्बात मिरे
वो तो अल्फ़ाज़ हैं कि कहीं खोये हुए है
नहीं तो इक नज़्म लिख देते अश्क मिरे
डर
September 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
सिमट रहा हूं धीरे धीरे
इन सर्द रातों में
छिपा रहा हूं खुद को खुद में
इस बेनूर अंधेरे में
कभी कोई चीख सुनाई देती है
खामोश सी,
कभी सर्द हवाओं को चीरती पत्तों की सरसराहट,
तो कभी कहीं दूर भागती गाडी की आवाज
कभी कभी गिर पडते हैं
ठण्डे – ठण्डे रूखसारों पर गर्म आंसू,
कभी चल उठती है
यादों की लपटें सर्द हवाओं के बीच,
कभी डर उठता हूं पास आती अनजान आहटों से
देखता हूं बार बार बाहर बंद खिडकी से झांककर
कहीं कोई बाहर तो नहीं?
नहीं, कोई नहीं बस डर है
शायद अजीब सा
समझ नहीं आता कैसा
किसी के साथ न होने का डर या,
किसी साथ आ जाने का ?
काश तुम चले आते!
September 4, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
चली आतीं है अक्सर यादें तुम्हारी
मगर तुम नहीं आते
की कोशिश कई दफ़ा भूल जाने की तुम्हे
मगर भूल नहीं पाते
आयीं राते पूनम की कई बार
मगर न हुआ चांद का दीदार
कर दिया है हमने अंधेरा अपने आशियाने में
हम उजाला अब सह नहीं पाते
काश तुम चले आते |
एक अरसे से
August 27, 2015 in शेर-ओ-शायरी
एक अरसे से उनसे नजर नहीं मिली
जमाना गुजर गया किसी को देखे हुए
रश्मि
August 27, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
धुंधले–धुंधले कोहरे में छिपती
रवि से दूर भागती
एक‘रश्मि’
अचानक टकरा गयी मुझसे
आलोक फैल गया भव में ऐसे
उग गये हो सैकडो रवि नभ मे जैसे
सतरंगी रश्मियों से
नभ सतरंगा सा हो गया
सैकडो इन्द्रधनुष फैल गये नभ में
पलभर में कोहरा कहीं विलीन हो गया
विलीन हो गयी वो ‘रश्मि’ भी
रवि के फैले आलोक में
ढूंढ रहा हूं तब से में
उस‘रश्मि’को
जो खो गयी दिन के उजाले में
न जाने कहां गुम हो गयी
मेरी वो‘रश्मि’
घुल गया उनका अक्स
August 11, 2015 in ग़ज़ल
घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे
आईने पर भी अब मुझे न एतबार रहा
हमारी मोहब्बत का असर हुआ उन पर इस कदर
निखर गयी ताबिश1-ए-हिना, न वो रंग ए रुख़्सार रहा
हमारी मोहब्बत पर दिखाए मौसम ने ऐसे तेवर
न वो बहार-ए-बारिश रही, न वो गुल-ए-गुलजार रहा
भरी बज्म2 में हमने अपना दिल नीलाम कर दिया
किस्मत थी हमारी कि वहां न कोई खरीददार रहा
तनहाईयों में अब जीने को जी नहीं करता
दिल को खामोश धडकनों के रूकने का इंतजार रहा
1. ताबिश : चमक
2. बज़्म= सभा
जो आँख देख ले उसे
August 9, 2015 in ग़ज़ल
जो आँख देख ले उसे वो वहीं ठहर जाती है
देखते देखते उसे शाम ओ सहर बीत जाती है
फ़लक से चाँद भी उसे देखता रहता है रातभर
उसकी रूह चाँदनी ए नूर में खिलखिलाती है
महकते फूल भी उससे आजकल जलते है
तसव्वुर से उसके फिजा सारी महक जाती है
मदहोश हो जाता है मोसम लहराए जो आचॅल उसका
जुल्फें जो खोल दे वो तो घटाऍ बरस जाती है
तनहाइयों में जब सोचता हूं उनको
शब्द ओ शायरी खुद ब खुद सज जाती है
शागिर्द ए शाम
August 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी
जब शागिर्द ए शाम तुम हो तो खल्क का ख्याल क्या करें
जुस्तजु ही नहीं किसी जबाब की तो सवाल क्या करें
You know that I stare at you often
July 28, 2015 in English Poetry
You know that I stare at you often
Look at your lively smile with frozen eyes
I sit behind you just few aisles away
Dream about our friendship in fairy skies
When I see you my sensations become silent
Heart hosts an incessant whine in silence
Crazy feelings move over my mind
Takes me in dreamy domain, your slight glance
Your innocent beauty, your happy face
Arouse flowers in my deserted home
Amidst the glum feelings your smile stays
Like seeds encased within a pome
I do not know how long this will go
No idea whether you will reply to me someday
But waiting for that silken evening
I will kiss your starry smile one day
उसके चेहरे से …
July 22, 2015 in ग़ज़ल
उसके चेहरे से नजर हे कि हटती नहीं
वो जो मिल जाये अगर चहकती कहीं
जिन्दगी मायूस थी आज वो महका गयी
जेसे गुलशन में कोई कली खिलती कहीं
वो जो हंसी जब नजरे मेरी बहकने लगी
मन की मोम आज क्यों पिगलती गयी
महकने लगा समां चांदनी खिलने लगी
छुपने लगा चाँद क्यों आज अम्बर में कहीं
भूल निगाओं की जो आज उनसे टकरा गयी
वो बारिस बनकर मुझ पे बरसती गयी
कुछ बोलना ना चाहते थे मगर ये दिल बोल उठा
धीरे- धीरे मधुमयी महफिल जमती गयी
आँखों का नूर करता मजबूर मेरी निगाहों को
दिल के दर्पण पर उसकी तस्वीर बनती गयी
सदियों से बंद किये बेठे थे इस दिल को
मगर चुपके से वो इस दिल में उतरती गयी
तिल तिल जलता हे दिल मगर धुआं हे कि उठती नहीं
परवाना बनकर बेठे हे शमां हे की जलती नहीं
हो गयी क़यामत वो जो सामने आ गयी
दर्द ऐ दिल से गजल आज क्यों निकलती गयी
थोडा सा शरमाकर, हल्के से मुस्कुराकर झुकी जो नजर
नज़रे-नूर-ओ-रोशनी में मेरी रंगे-रूह हल्के से घुलती गयी
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