Pragya
कुछ तो खेल है
January 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें
न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे
जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने
किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से
मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें
ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके
दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे
लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे
दिल रोक लेता है
January 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते
याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें
फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है
मेरी याद से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर
दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है
इबादत
January 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
पता नहीं इबादत
के किस मोड़ पर हूं
तेरी जरूरत भी नहीं
तेरी कमी भी है
होठों पर हंसी और
आंखों में नमी भी है
तेरे जाने का मलाल भी नहीं
तेरे आने का इंतजार भी है
तलब
December 28, 2019 in शेर-ओ-शायरी
तबल ऐसी कि साँसो में
बसा लें उन्हें किस्मत ऐसी
की दीदार को मोहताज हैं हम।
तुम्हें चाहा था
December 28, 2019 in शेर-ओ-शायरी
तुम्हें चाहा था आवाज सुनकर
मुस्कुराती थी तेरे ख्वाब बुनकर
अब जान गयी दर्द क्या होता है
अक्सर हँस देती थी इश्क की बात सुनकर।
यूँ ना मिला कर
December 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी
यूँ ना मिला कर
रकीबों की तरह
साथ चल फलसफ़े
की तरह……
हिचिकियाँ रात भर आईं….
और सोने ना दिया
तूने याद किया हो
जैसे दिलबरोँ की तरह….
मेरी प्रेरणा तुम हो
December 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी
मेरे लफ्जों में तभी तक दम है
जब तक तुम हो, तब तक हम हैं।
मेरी प्रेरणा तुम हो,मेरी कविता तुम हो
जब तक दिल है तब तक तुम हो।
एहसास
December 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
एहसास की दहलीजों पर
कुछ शब्दों के घेरे हैं
इस प्यार की राह में अक्सर
कुछ दर्द तेरे-मेरे हैं
तुम दूर कहीं ना जाओ
पल-पल ये दिल कहता है
वीरान है तुझ बिन दुनिया
एहसास ये हम करते हैं
तुम आओगे बाहों में
इस आस में हम बैठे हैं
गुजरोगे जिन गलियों से
हम फूल बिछा बैठे हैं
है आज ये तुमसे कहना
तुम बस मेरे ही रहना
चाहें कुछ भी हो जाये
फरियाद ये हम करते है
तुम दूर हो मुझसे फिर
भी एहसास यही होता है
वीरान है तुझ बिन दुनिया
महसूस ये हम करते हैं
प्रज्ञा के दिल की धड़कन
बस गीत है एक ही गाती
तुम बस मेरे हो जाओ
आमीन ये हम करते हैं
शब्द-सुनहरे
December 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक दौर वो भी गुजरा है!
जब हम कागज और कलम
लेकर सोते थे।
यादों में पल-पल भीगा
करती थीं पलकें ,
अभिव्यक्ति के शब्द
सुनहरे होते थे।
ना दूर कभी जाने की
कसमें खाई थीं
मिलने के अक्सर वादे
होते रहते थे।
कोई यूं ही कवि
नहीं बनता है यह सच है
हम भी तो पहले
कितना हंसते रहते थे।
मिल ही जायेगी मंज़िल!!
December 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ए दिल! गम ना कर
मिल ही जायेगी मज़िल।
यूं मायूस हो जाना अच्छी
बात नहीं ।
कितने कदम रोज़ चलती हूँ
तेरी और,
तुम उतना ही दूर
नज़र आती हो
ये तो अच्छी बात नहीं
हौंसला बुलंद है अपना
पाही लूंगी तुम्हें
तुम रोज़ रुलाती हो
अच्छी बात नहीं ।
तुम्हे पाना ही मेरा
फ़ितूर है मेरा
जब तक तुम नहीं
मिल जाती हो
जीने को जीते हैं
हंसने को हँसते हैं ।
जीवन की बगिया
December 21, 2019 in मुक्तक
फूलों से भी ज्यादा
कोमल है ह्रदय
शब्दों के बाण से मत छेदो
प्रेम की रसधार से जीवन की
बगिया सींचो
लम्हों को जी लो
December 20, 2019 in शेर-ओ-शायरी
लम्हों को जी लो
दिल कहता है
जो आज में जीता है
वो ही कल खुश रहता है ।
तो मुस्कराईये और
अपना कल बनाइए ।
सरकारी नौकरी
December 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम सरकारी नौकरी
के पीछे पागल हैं,दीवाने हैं
हम भविष्य की चिंता में
देखो दीवाने हैं,मस्ताने हैं ।
लोग समझते यही रहे
हमें आखिर कौन-सा रोग लगा?
हम बेरोजगारी रोग से पीड़ित है
हमें गवर्नमेंट जॉब का नशा चढ़ा।
सब नाहक ही हमसे रूठ गए
सब कहते हैं हम भूल गए
पर सच्चाई कोई क्या जाने!
हम पर क्या बीती रब जाने।
हम रोज ही फार्म भरते हैं
बस पेपर देते रहते हैं
कोई रिजल्ट ना आए हाथ
बस कोर्ट के चक्कर करते हैं।
हम तीन साल के थे तब से
बस ‘अ,आ,इ,ई ‘करते हैं
जब रात में सब सोते हैं
हम टीईटी-सीटेट पढ़ते हैं।
हम सोच-सोच कर सूख गए
सुपर टेट का रिजल्ट कब आएगा?
अब तो भैंस जलेबी खाएगी
और बंदर पान चबाएगा ।
अब प्रज्ञा शुक्ला कहती है
दिवा-स्वप्न देखना बंद करो
सरकारी के पीछे मत भागो
कुछ रोजी-रोटी का प्रबंध करो।
मेरा हृदय
December 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
बीती रात जब मैं यादों
के आगोश में जाने लगी
कल्पना के स्वर्ग में
तुमको जरा पाने लगी
तभी मेरा ह्रदय
वेदना की आग में तपने लगा
और यों कहने लगा
‘तुम भी क्या अनोखी चीज़ हो’
ना समझ पा रहा हूं मैं
खुद उलझाने अपनी बना
फँसती हो तुम, रोती हो तुम
और फिर बेचैन हो
रात भर जगती हो तुम
तुमसे मेरा रिश्ता कितना
पुराना है जानती हो?
मैंने तुमको कितनी दफा
यूं ही पल-पल मरते देखा है
और लाखों बार फिर
खुद में ही हंसते देखा है
ना जाने कितनी बार
देखा रतजगे करते हुए
कौमुदी में बैठ सपनों
को यूंही सँजोते हुए
पूस की रात
December 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी ना भूलेगी वो
पूस की रात…….
ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है…
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
वो पूस की रात ………
इशारा
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।
इशारा
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।
🌹🌹🌹इशारा🌹🌹🌹
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।⚘⚘⚘⚘
🌹🌹 वो पूस की रात 🌹🌹
December 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
🌹🌹कभी ना भूलेगी वो 🌹🌹
पूस की रात…….
ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
⚘⚘⚘
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
⚘⚘⚘
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
⚘⚘⚘
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
⚘⚘⚘
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
⚘⚘⚘
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
⚘⚘⚘⚘⚘
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
⚘⚘⚘
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
⚘⚘⚘
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……🦜🦜🦜
⚘⚘⚘
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है……
⚘⚘⚘
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
‘पूस की रात’…………….. 🧤
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कभी तो
December 14, 2019 in शेर-ओ-शायरी
कभी तो इन गलियों में
आकर तो देखो,
माना बहुत अन्धेरा है ।
शायद तुम्हारे आने से
मेरा जहान रौशन हो जाये।
परछाई
December 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
मिल जाती परछाई भी
अगर तुम पीछे मुड़ कर
देख लेते।
दूर हो जाती गलतफहमी की
ठंडक ।
अगर तुम यादों की धूप में
दो पल खुद को
सेंक लेते।
गीत लिखूं
December 13, 2019 in गीत
देख कर आज मौसम की ये मस्तिया, दिल में हलचल सी कुछ अब होने लगी। देख कर नूर सा तेरा मुखडा प्रिये, मन में बेताबिया सी है उठने लगी। इस पवन ने शरारत कुछ ऐसी की है, तेरी जुल्फो से उलझने की कोसिस की है। बूंद पानी ने भी कुछ गलतिया की है, तेरी होठों पे आने की कोसिस की है। तेरी आँखो में काज़ल की है घटा, तेरे मुखड़े पे है छायी सावन की घटा। तेरे श्रृंगार के गीत को मैं लिखूं, तुझे देखूँ तो देखता ही रहूँ। तेरी साँसों में ऐसे सम जाउ मैं, छोड़ कर सब तेरा हो जा मैं। तुझको मैं सार जीवन का लिखु प्रिये, गीत लिखु तो लिखु मैं तुझको प्रिय।।
वो खिड़कियाँ
December 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारी चादर में लिपटे
कुछ शक के दाग थे।
तुम मेरी मंज़िल और
तुम्ही हमराज थे।
क्या थे दिन और
क्या लम्हात थे।
कुछ अंजाम और
कुछ आगाज़ थे।
इल्जाम लगा किस्मत और हालात पर हम तो, बचपन से ही बर्बाद थे।
सुबह हुई तो देखा
तकिये पर पड़े सूखे,
अश्कों के दाग थे।
वो खिड़कियाँ अब
बन्द ही रहती हैं ,
जिनके दीदार के कभी
हम मोहताज़ थे।
अभिनन्दन
December 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
सुबह के सूर्य को अभिनन्दन
देवों के देव को अभिनन्दन ।
है अपनी जीत को अभिनन्दन
है अपनी हर को अभिनन्दन ।
ये मौसम सुहाना
December 9, 2019 in शेर-ओ-शायरी
ये मौसम सुहाना
फिजा भीगी
तेरी यादें हैं छायी
काले बादल
हों जैसे।
आदत
December 9, 2019 in शेर-ओ-शायरी
हमारी आदत नही है
यूं ही किसी की
तारीफें करना
तुम हो ही इतने
अच्छे की हम
शायर हो गये।
सर्दियों की धूप-सी
December 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
सर्दियों की धूप सी
लग रही है यह घड़ी
यह जो नया एहसास है
अजनबी है अजनबी
सुना है मन वीरान है
मेरा जहां आज क्यूं
यादों में है डूबा दिल
ना आ रहा है बाज क्यूं
नजरें कर रही है इज़हार
दिल में दबा है राज क्यूं
कहने थे जो लफ्ज़
बदला है हर अल्फाज क्यूं
सर्दियों की धूप में भी
इतनी धुंध छाई आज क्यूँ
सर्दियों ने ओढ़ ली है
धूप की चादर अभी
धूप है आँगन में उतरी
बन के दुल्हन आज क्यूँ
धीमी-धीमी उजली-उजली
महकती है आज क्यूँ
ये गुलाबी सर्दियाँ भी
मन को हैं कितना लुभाती
कोहरे में कांपते हैं
आज मेरे हाँथ क्यूँ
मन पर है छाई उदासी
इतने अर्से बाद क्यूँ ।