by Pragya

रिश्तें

February 25, 2020 in Other

जीना है तो गम भूलने ही पडेंगे

दूर रहकर भी सारे रिश्ते निभाने ही पड़ेंगे।

by Pragya

आँसू

February 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीना है अगर तो खुद को खुश रखना सीखो

हजारो है यहाँ आपको आँसू देने वाले

by Pragya

उड़ना

February 25, 2020 in Other

फूलो को क्या अब महकना सीखना

पानी को क्या कब प्यासा रहना

पंछी हूँ मै खुले आसमान का

मुझे क्या अब उड़ना सीखना।।

by Pragya

Suna hai

February 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सुना है कोई आया है मेरा हाल पूछने

उनसे कह दो मै ठीक हो गया हूँ

जब किसी ने इतना वक़्त निकाला है मेरे लिये

देखकर उन्हे अब चैन आ जायेगा

दीदार से उनको मुझे सब्र मिल जायेगा।।

by Pragya

Sapne

February 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जमाने की बाते क्या करुँ सब अपने मे व्यस्त रहते है।

सपनो को पूरा करने को हर पल जगते रहते है।।

by Pragya

Shanti

February 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सुबह सवेरे अब तो कोलाहल होता है।

आधुनिकता मे शान्ति कहा मिलती है।

by Pragya

गजब है

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

गजब एहसास है
तुम्हारे पास होने का
दूर जाने का गम भी कम नहीं
तुम्हारी महक आज भी
महसूस होती है
जैसे सूखे फूलों में बास आती है

by Pragya

सिलसिला

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सिलसिला यूँ ही चलता रहे
मुलाकातों का
बीते ना पल यूं ही चलता रहे
तेरा मेरा मिलना बिछड़ना
फिर मिलना और हमेशा के लिए बिछड़ जाना

by Pragya

तुम्हारे पास

February 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे पास दास्तां सुनने
को वक्त नहीं….
तो हमारे पास भी
कहने को कोई लफ्ज़ नहीं….

अगर बसा लिया है
तूने गैरों को घर में
तो मेरे दिल में भी
तू कमबख्त नहीं ….

वो और होते होंगे
इश्क में मर मिटने वाले
मैं तेरे प्यार में कटूंगी
अपनी नब्ज़ नहीं….

तू चाहता होगा
तेरे लिए खुद को
मै बदल दूंगी तो
इतनी नासमझ मैं कमबख्त नहीं …

तू सुई मैं धागा बन
सिल रही थी ज़ख्म
तेरी चुभन से होता था
मुझको कष्ट नहीं…..

थे गलीचे सुखाने कुछ
गलतफहमियों के वर्ना
तेरे आंगन में रखते हम
कदम सख्त नहीं….

by Pragya

फूलों में महक

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

फूलों में महक है
कागज़ में अल्फ़ाज़
आसमान में तारे टिमटिमा रहे हैं
दिल में उतर आया है चांद।
और बरस रहा है सावन
कितनी ही यादें ताज़ा हो गई हैं

by Pragya

बहुत हो गया अब

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

लफ्जों को कविता में
पिरोते जा रहे हैं
जज्बातों को सहेज कर
रखते जा रहे हैं ।
बहुत हो गया अब
मरने का सामान
चलो छोड़ दिया तुम्हें
अब जीने जा रहे हैं

by Pragya

तू ही तो था

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तू ही तो था वो कन्धा
जिस पर सिर रख
रो लेती थी।
तू ही तो था यार
मेरा जिसको
कान्हा मैं कहती थी

by Pragya

उसका चेहरा

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उसका चेहरा ही नज़र
आता है देखूँ मैं जिधर
वो रूबरू आता है
मुझे अक्सर नज़र

by Pragya

मेरी बदकिस्मती

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरी बदकिस्मती थी
जो तुम ना मिले
मैंने तुम्हें ढूंढा है मूंगफली के दाने की तरह।

by Pragya

कितनी ताकत

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

है कितनी ताकत तुझमें
मुझे तोड़ने की बता तू मुझे
मै हद देखना चाह्ती हूँ
तेरे गिरने की।

by Pragya

हम रोए हैं

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उनसे बिछड़ कर हम रोए हैं
देखना चाहिए क्या वह भी रोए

by Pragya

बेखयाली

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिल की अठखेलियां और अंगड़ाइयाँ
धीमे-धीमे बढ़ती जा रही हैं
उम्र चांदनी की तरह घटती जा रही है
तुम्हें होश है कि नहीं
अब सितम करना बंद कर
बेखयाली में भी खयाल आता है तेरा
तू दिल से खेलना बंद कर।

by Pragya

आंखों के सामने

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आँखों के सामने बैठे हुए हैं
सिर झुकाए हुए
शायद उन्हें एहसास है
मेरे साथ किये
जुल्म सितम का।

by Pragya

मोहलत

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मोहलत की जरुरत थी
थोड़ा सा इंतजार कर लेते
बहुत कुछ सोंचा था
तुम्हारे लिये हमनें।

by Pragya

ह्रदय विहीन

February 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा देखूं तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
दिल है अभी या दिल है ही नहीं
दिल है तो उसमें पत्थर हैं
या मांस के कुछ लोथड़े भी हैं
एहसास है या है ही नहीं
मैं हूं या हूं ही नहीं
या हृदय विहीन हो तुम
जो मुझसे प्यार नहीं
मेरा एहसास नहीं
कोई जज्बात नहीं
जरा देखूँ तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
मैं हूं या मैं हूं ही नहीं।

by Pragya

ह्रदय विहीन

February 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा देखूं तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
दिल है अभी या दिल है ही नहीं
दिल है तो उसने पत्थर है
या मांस के कुछ लोथड़े भी हैं
एहसास है या है ही नहीं
मैं हूं या हूं ही नहीं
या हृदय विहीन हो तुम
जो मुझसे प्यार नहीं
मेरा एहसास नहीं
कोई जज्बात नहीं
जरा देखूँ तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
मैं हूं या मैं हूं ही नहीं।

by Pragya

नीली छतरी

February 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नीली छतरी कुर्ता
ढीला ढीला पहनकर पजामा
निकला वह छैल छबीला……
हाथ में गुब्बारे और बच्चे
प्यारे-प्यारे पीछे पीछे
उसके दौड़े जा रहे थे……
थोड़ा सा बूढ़ा
पर होठों पर मुस्कान
हाथों में खिलौने और गुब्बारे…..
की रंगीन दुकान
उसने जोर से आवाज लगाई
रंग बिरंगे गुब्बारे ले लो
लेकर आया हूं तुम सारे ले लो…..

by Pragya

गुलाबी आसमान

February 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलाबी आसमान
ख़्वाब धुंधले से
धुआं धुआं है चारों तरफ
कोई उम्मीद भी दिखाई नहीं देती
तुझे सुधारने की हर कोशिश
नाकाम ही रही
तूने कभी भी कोशिश ही नहीं की
मुझे समझने की
या शायद तुझ में
वो काबिलियत ही नहीं
जो तुम मुझे समझ पाते

by Pragya

आंसुओं से नहा कर

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आंसुओं से नहा कर
धूप का चंदन घिस कर
तेरे प्रेम का उबटन लगाकर
उजली तो थी ही और निखर भी गई

by Pragya

कयामत से पहले

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कयामत से पहले
तेरा चांद देखना चाहते हैं
सितारों के जुगनू खुद में
समेटना चाहते हैं
आसमान जैसा मेरा दिल
ज़मी है तू मेरी हम तुझमें उतरना चाहते हैं।

by Pragya

छुप कर

February 23, 2020 in मुक्तक

छुप कर आंसू बहाते हैं
रो-रोकर जातेहैं
सपने मेरे तड़पकर टूटते
जा रहे हैं या खुदा हम तेरे पास आ रहे हैं

by Pragya

सफ़र

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सफ़र की शाम हो गई
ज़िन्दगी की आरज़ू में
मौत बदनाम हो गई ।

by Pragya

जुस्तजू

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जुस्तजू की और खो बैठे
चैन और करार
आते हैं सपनें उसके बार-बार

by Pragya

आरजू

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

करी थी आरजू एक जो पूरी ना हुई
पर एक सबक दे गई किसी को
इतना नजदीक मत लाओ
कि वह आपकी शुभ -ओ-शाम जाए

by Pragya

क्या हुआ

February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

क्या हुआ अगर आप हमसे
खफ़ा हो गये ।
सांसे थम गई सपनें जुदा हो गए

by Pragya

तुम्हें क्या पता

February 22, 2020 in मुक्तक

तुम्हें क्या पता के हमें
छोड़ कर तुमने क्या खोया है
कोहिनूर को शीशा समझ कर
तुमने हीरा खोया है।
सिर्फ़ उसे पाने की खातिर
जो चन्द दिनों के लिए
तेरा है।

by Pragya

कोहिनूर

February 22, 2020 in मुक्तक

तुम्हें क्या पता के हमें
छोड़ कर तुमने क्या खोया है
कोहिनूर को पीतल समझ कर
तुमने हीरा खोया है।
सिर्फ़ उसे पाने की खातिर
जो चन्द दिनों के लिए
तेरा है।

by Pragya

मात खा गए हम

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मात खा गए हम आज
ज़िन्दगी की आरज़ू में ।

मौत भी ना नसीब हुई
इश्क की आरज़ू में ।

समझते थे प्यार को
खूबसूरत ग़ज़ल हम

दर्द ही पाये हर कदम पर
जीते थे बस तेरे ही नाम पर ।

हम भी ना रोते अगर
उनकी तरह रिश्तों में दिमाग़ लगाते।

हर सितम को दिल जीते रहे
दर्द को आंसुओं में पीते रहे ।

धोखे को भी वफ़ा माना
प्यार किया इतना के तुझे खुदा माना।

ना आते झांसे में अगर तो
क्यूँ बहाते आखों से झरने हम यूँ ।

by Pragya

रुबाई

February 22, 2020 in ग़ज़ल

कभी सोचा ना हो वह काम हो जाता है,
जो करीब है वह दूर चला जाता है।

मासूम सा चेहरा इन नाज़ुक-ए- हथेलियों से,
हिना का रंग-चंद अश्कों से उतर जाता है।

फरेब करने वाले खुश रहते हैं नसीहत से,
ईमान ताउम्र का गम खरीद लाता है।

ना कुछ पास था बस सच्ची मोहब्बत थी,
अब तो प्यार करने वाला भी बेईमान नजर आता है।

ना सोंच पास है जो कल भी नजर आएगा,
साया है करीब आके बड़ी दूर चला जाता है।

जो लब-ए- रुखसार बोलने में थर-थराते हैं,
उन्हीं के हाथों से तेरा जनाजा सजाया जाता है।

by Pragya

एक उम्रभर

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसे अपना समझकर
चाहतें रहे एक उम्र भर

जिसे अपना कहकर
इतराते रहे एक उम्र भर

जिससे आईने में देखकर
शर्माते रहे एक उम्र भर

जिसे अपनी हर दुआ में
खुदा से मांगते रहे उम्र भर

जिसे अपनी हर कामयाबी में
साथ पाकर दिल को भरमते
रहे एक उम्र भर।

जिसे दिल के हर कोने में बिठाकर
रिश्ता निभाते रहे एक उम्र भर

जिसे मोहब्बत का खुदा समझकर
यादों के अंजुमन चढ़ाते रहे एक उम्र भर

जिसे पाना नामुमकिन था उसी से
मुलाकातों के गुल खिलाते रहे एक उम्र भर

जिसे सुनकर अपने लब-ए-रुखसार पर
तबस्सुम लाते रहे एक उम्र भर

जिसके हाथों से मेरी तबाही लिखी थी
उसी को अपना बनाते रहे एक उम्र भर

उसी ने यारों गमे जिंदगी जुदाई दी
जिसकी मोहब्बत की दास्तां सुनाते रहे एक उम्र भर।

by Pragya

रूठ जाना भी

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रूठ जाना भी
भला है तुम्हारा
मुझे मनाने का
मौका तो मिलता है
कर देते हो नज़रंदाज़
मुझे सताने का मौका तो मिलता है….

कर जाते हो जो
बेवफाई की बातें
उन्हें पहचानने का
मौका तो मिलता है……

by Pragya

आलोक हो

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आलोक हो महाकाल तुम
मेरे जीवन का आधार तुम

कल्पना की दहलीज़ पर
आये हो बन मेहमान तुम…..

मीत हो तुम प्यार का संगीत हो
और धीरज का दमकता गीत हो

रूबरू होने का मौका नहीं मिला
फिर भी पहचान की लकीर हो….

कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
उन सभी की तदबीर हो तुम

कभी भी कोई बात नहीं हुई
ज़िंदादिली की तस्वीर हो तुम ….

वफा की कीमत और भी बढ़ गई
जब से बन कर आये मेरी तकदीर हो तुम।

by Pragya

सलीका

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जान लेते अगर मनाने
का सलीका तुम तो
चंद दिन ज़िन्दगी के
तेरी चाहत में और
कुर्बान कर देते
और रो लेते कुछ रातें
तुम्हारी यादों में तड़पकर
कुछ और तुम्हें जान लेते
और बदनाम होते
इश्क में आपके
और गढ़ लेते हम
दिल की रचनाएं
कुछ भी ना मिला
मुझे तुमसे बस आंसुओं के सिवा
उलझी रातों के सुलझे
ख्वाबों के सिवा
किताबों में रखे
सूखे गुलाबों के सिवा
बेवफाई और रुसवाई के सिवा
गुमनामी की जिंदगी
और बेबसी के सिवा
तुमने कुछ नहीं दिया
मैंने उम्मीद भी नहीं की

by Pragya

है गुजारिश इतनी

February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

है गुजारिश इतनी ही
के अब और ना रुलाओ तुम
किये जिन्दगी भर सितम
अब और ना सताओ तुम
नहीं हूँ पत्थर मैं
इन्सान की ही मूरत हूँ
जान कर बेजान
अब और ना ज़ुल्म ढाओ तुम
पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं
पत्थर से भी बद्तर मुझे
अब ना बनाओ तुम
इन्सान हूँ इन्सान की
तरह पेश आओ
अबला से दुर्गा मुझे ना
बनाओ तुम
है इतनी ही गुज़ारिश
मुझसे प्यार से पेश
आओ तुम।

by Pragya

अच्छा हुआ जो

February 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अच्छा हुआ जो तुमसे
मुलाकात नहीं हुई
मुझे कितनी शिकायतें हैं
तुम मेरी आँखों में पढ़ लेते।

by Pragya

दर्द

February 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दर्द की आह में तड़पते हैं
तुमसे मिलने को तरसते हैं
है इतनी गमगीन ज़िन्दगी फिर भी
तुम हाल पूछते हो तो कह देते हैं के अच्छे हैं ।

by Pragya

हिन्दुस्तान

February 11, 2020 in गीत

करते हैं बहुत प्यार
हम हिन्दुस्तान से अपने
रहता है बहुत फक्र हिन्दुस्तान पर अपने
इसकी एकता अखंडता पर
हमको नाज़ है
लहराता है तिरंगा हिन्दुस्तान पर अपने ।

by Pragya

वचन दिवस

February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुजारिश करते हैं हम आज
तुमसे एक मानोगे?
लुटाओगे मुझ पर जान
मेरी ही बात मानोगे।
नही जाओगे तुम दूर अब
गैरों की बाहों में
सजाओगे नहीं सपनें
तुम अब दूजी फिज़ाओं में ।
इस वचन दिवस पर
इतनी ही इल्तिजा है तुमसे
रहोगे बस मेरे हमदम
रहोगे बस मेरे हमदम।

by Pragya

कभी-कभी

February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी -कभी तो आते हैं
तुमसे मिलने!
यूँ मुँह ना फेरो हमसे
रूठे हो तो रूठे रहो
नज़रें तो मिलाओ हमसे।
इतना गुस्सा भी ठीक नहीं साहिब!
यूँ मलाल लिये बैठे हो
सज़ा देनी है तो दे देदो मगर
खता क्या हो गयी है ये तो बताओ हमसे।

by Pragya

कभी – कभी

February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी -कभी तो आते हैं
तुमसे मिलने!
यूँ मुँह ना फेरो हमसे
रूठे हो तो रूठे रहो
नज़रें तो मिलाओ हमसे।
इतना गुस्सा भी ठीक नहीं साहिब!
यूँ मलाल लिये बैठे हो
सज़ा देनी है तो दे देदो मगर
खता हो गयी है ये तो बताओ हमसे।

by Pragya

दिल रोंक लेता है

January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते

याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें

फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है

मेरी आँखों से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर

दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है

by Pragya

दिल रोक लेता है

January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते

याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें

फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है

मेरी याद से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर

दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है

by Pragya

हाथ की लकीरें

January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें

न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे

जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने

किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से

मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें

ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके

दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे

लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे

by Pragya

हाँथ की लकीरें

January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें

न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे

जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने

किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से

मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें

ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके

दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे

लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे

by Pragya

गुलामी की जंजीरे

January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलामी की जन्जीरों में
जकड़े है ज़िस्म मेरा
इस दिल का सौदा
करें भी तो कैसे।

जिस्म तो जिस्म
रूह भी है बेबस
तुझे मोहब्बत का सजदा
करें भी तो कैसे।

तुम सोचोगे सब बहाने हैं मेरे
जब दोस्त ही कर बैठे बग़ावत
तो अपनी सदाकत की नुमाइश
करें भी तो कैसे।

तुम्हें तो अर्सा हुआ है
हम पर इल्जाम लगाए हुए
जब तुम्ही बन बैठे अदावती
तो हम वफा की गुजारिश
करें भी तो कैसे।

सजा दे देता है जहां
बिना अर्जी सुने
तुम तो साथ नहीं
हम यह मुकदमा लड़ जाएं
भी तो कैसे।

हम गुलामी की जंजीरे
भी तोड़ सकते हैं मगर
खयालातों को आजाद
करें भी तो कैसे।

तेरे दिल में पहले से
कोई रहता है,हम उसमें
बसर कर जायें भी तो कैसे।

इतने पहरे जो तुमने लगा रखे हैं
तू ही बता! तेरे दिल में
आशियां बनाए भी तो कैसे।

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