by Pragya

मेरी कलम

September 24, 2021 in मुक्तक

नहीं सम्भल पाये हम
ना जुल्फों को ही सम्भाला,
मेरी कलम ने इस बीच
कितनों को बेआबरू कर डाला।

by Pragya

ऐ दिल!

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ दिल! तू गम की बात न कर
आराम फरमा काम की बात न कर।
कितना सजने लगा है अब वो
किसी और के लिए,
हम बिखर गए अब संभलने की बात न कर।

by Pragya

कलम’

September 22, 2021 in मुक्तक

अन्दर की बातें बाहर करने वाले
नजरों से गिर जाते हैं,
बस एक कलम है जिससे मोहब्बत
बढ़ती जाती है।

by Pragya

“तुम्हारा कल”

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की उलझनों से
फुर्सत लेकर
आओ बैठो मेरे पास कुछ पल
निहारो देर तक मुझे
आगोश में ले लो मुझे
मैं बैठा हूं तुम्हारे इंतजार में
तड़पता रहता हूं तुम्हारे प्यार में
मैं तुम्हारा कल हूं आज बनना चाहता हूं
तुम्हारी परछाई हूं तुम्हारे पास आना चाहता हूं।

by Pragya

प्रेम

September 20, 2021 in मुक्तक

प्रेम से अधिक प्रिय कोई
एहसास नहीं
जो इसे नहीं समझते उनसे
प्रेम की आस नहीं।
बसाया कभी था जिसको ह्रदय में,
अब उसी को मेरे प्रेम का एहसास नहीं।😥😥

by Pragya

जीवन की सुन्दरता

September 20, 2021 in मुक्तक

जीवन की सुंदरता को
कहाँ वो जानते हैं ??
जो स्वयं से अधिक किसी
और को पहचानते हैं।

by Pragya

माँ मैं तेरी लाडली

September 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की अभिलाषा है
तू ही हार तू ही आशा है
मैं बढ़ जाती हूँ जानबूझ कर
तेरी गोद में सर को रख कर
मिलता कितना सन्तोष मुझे
व्यक्त नहीं कर सकती हूँ
माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।
जीवन जब भी हारूँगी
तुझको ही मैं पुकारूंगी ।
आ जाना तू राह दिखाने
मेरे जीवन में प्रकाश फैलाने।
माँ मैं तेरी लाडली हूँ ।

by Pragya

हे अर्द्धांगिनी!

September 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमारी हार हमारी जीत हो तुम
हे अर्द्धांगिनी ! मेरी प्रीत हो तुम
मेरे जीवन सफर की राजदार हो
मेरे प्रणय का परिहार हो
गीत की पहली पँक्ति सावन की बहार हो।
हे अर्द्धांगिनी! सर्वस्व हो तुम।
तुम संग जीवन के कितने
बसंत देखे हैं
सुख देखे हैं तो दुख अनेक देखे हैं
हर समय खड़ी रही तुम चट्टान सी
तुम्हारे संग मैनें अपने पराये देखे हैं ।
हे अर्द्धांगिनी! जीवन की बहार हो तुम।।

by Pragya

“गुलदाऊदी के पुष्प”

September 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

घनघोर बादल गरज रहे हैं
सर्द हवाओं के झोंके
मन को भिगो रहे हैं
बीत गई अब तपन भरी रातें
सर्द दिनकर’ सुबह को नमन कर रहे हैं
गुलदाऊदी के पुष्प अब खिलने को हैं
कनेर के पुष्प अलविदा कहने को हैं
अब आएंगे गुलाब में काँटों से ज्यादा पुष्प
क्योकिं अब गुलाबी सर्दियाँ आने को हैं।

by Pragya

“गुनाहों की देवी”

September 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने गुनाहों को मैं
हमेशा छुपा लेती हूँ
शर्म आती है तो नजरों को
झुका लेती हूँ
दीवार पर दिखते हैं
कारनामे जब अपने
आवेश में आकर मैं दीपक को बुझा देती हूँ ।

by Pragya

उर्दू मेरी जबान नहीं।।

September 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उर्दू मेरी जबान नहीं
उसकी मुझे पहचान नहीं
पर फिर भी प्यारी लगती है
हिंदी जैसी लगती है
इसमें सुंदर शब्दों को
खिलते खेलते लफ्जों को
एक नई पहचान मिली
जैसे भावों को जान मिली
तहजीब सिखाती यह भाषा
जीवन ज्योति की नव आशा
इस बात से कोई अनजान नहीं
उर्दू मेरी जबान नहीं।।

by Pragya

ओ मां मुझे माफ कर दे

September 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन पर्यंत दुख दिया मैंने
एक भी सुख ना दिया मैंने
ओ मां ! मुझे माफ कर दे
तेरा होकर भी,
तेरे लिए कुछ ना किया मैंने
तूने हर समय मेरा खयाल रखा
मैंने तुझे घर में भी नहीं
पर तूने मुझे दिल में रखा
ओ माँ! मुझे माफ कर दे
तेरा होकर भी तेरे लिए कुछ ना किया मैंने।।

by Pragya

मैं हिंदी मां की बेटी हूं (हिंदी दिवस स्पेशल )

September 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिंदी दिवस स्पेशल:-
——————
हिंदी हमारी मां है
हिंदी हमारी पहचान
करो इसका सम्मान सभी
हिंदी है बहुत महान
हिंदी है बहुत महान
देश की शान हमारी
हिंदी है हमको
अपनी जान से प्यारी
दिल में एक अरमान लिए
घूमा करती हूं
हिंदी है मेरी और मैं हिंदी मां की बेटी हूं।
राजभाषा है यह अपनी
है बड़ी धरोहर,
कितने अच्छे छंद हैं इसमें
हैं श्रेष्ठ कविवर।
मैं भी हूं कवयित्री प्रज्ञा’ नाम है मेरा, हिंदी है मेरी प्रिय भाषा भारत भूमि बसेरा।।

आप सभी को हिंदी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।।

by Pragya

मन

September 13, 2021 in शेर-ओ-शायरी

मन को सम्भाल कर रखा है
तेरी यादों को सहेज कर रखा है
आँख में आँसू रोज आने लगे हैं,
क्योंकि जो कल मेरा था वो आज
किसी और का हो चुका है।

by Pragya

धरा पर किसका ये बसेरा है ??

September 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धरा पर किसका ये बसेरा है
नीर गिरता है ये नया सवेरा है
अश्क से धुल ​गए हैं जख्म अब तो
चहुँ ओर छाया कैसा अंधेरा है ?
लब को लब नहीं कहा जाता
दर्द अब और नहीं सहा जाता।
बिखरा सा पड़ा है ये सामान सारा
थक गई हूँ अब समेटा नहीं जाता।
कोई तो रोक कर मेरे आँसू
ये कह दे
हे प्रिये ! अब तुझ बिन रहा नहीं जाता…!!

by Pragya

कठिनाईयाँ

September 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन में कठिनाईयाँ तो
आती रहेंगी।
आकांक्षाओं की थाली यूँ ही सजती रहेगी।
हम करेंगे संघर्ष से वार,
कठिनाईयाँ भी हमसे पराजित होती रहेंगी ।

by Pragya

तू है मित्र तू ही घनश्याम

September 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख कर मुग्ध हूँ मैं
तेरा सलोना रूप
हे केशव ! तू है मेरे मन का
वो प्रकाशित भाग !
जिसके होने से होता है मुझे
अर्जुन होने का आभास।
मुखचंद्र की इतनी अप्रतिम और
उज्जवल कान्ति,
मेरे हिय को पहुंचाती है शांति।
तुझको है मेरा कर जोड़ प्रणाम
तू है मित्र तू ही घनश्याम।

by Pragya

खुले हैं द्वार चले आओ तुम।।

September 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुले हैं द्वार चले आओ तुम
अब हमको न यूं सताओ तुम। जिंदगी तो पहले ही बेवफा थी
अब किस्मत को बेवफा ना बनाओ तुम।
दीप टिम टिम से जगमगाते हैं
भंवरे भी प्रेम गीत गाते हैं।
यौवन में उच्छवास होता है
जब कोई मीत पास होता है।
इच्छा की छोटी-सी कुमुदिनी में
सच होने का स्वप्न होता है।
डूबी नाव को खेवाओ तुम,
खुले हैं द्वार चले आओ तुम
अब हमको न यूँ सताओ तुम।।

by Pragya

बेवफा तो नहीं…

September 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक कवि हो कर
एक कवि का दर्द कहां समझते हो, प्यार करते हो मुझसे पर
मुझको कहां समझते हो ?
नींद में लेते हो तुम किसी और का नाम….!
बेवफा तो नहीं पर
वफादार भी नहीं लगते हो।

by Pragya

फिर कहो कैसे करूं तुमसे प्यार !!

September 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम कैसे करें ऐतबार!
कर भी लें कैसे तुमसे प्यार!
क्या भरोसा है कि तुम हमें
दगा ना दोगे
मेरे हाँथों को उम्र भर के लिए
थाम लोगे।
जब अपनों ने ही अपना ना समझा,
ये दिल एक दरख्ते से जा उलझा।
आस लगाई हमनें एक हरजाई से,
स्वप्न में भी वो दिखाई दे।
देखो मेरे गीतों का वही है आधार
फिर कहो कैसे कर लूँ तुमसे प्यार।

by Pragya

बहुत पछता रहे हैं…

September 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना रोए, कितना तड़पे,
मचाए कितना शोर !
तू किसी और का हो चुका है
यह समझाएं कैसे दिल को ?
तड़प है, नशा है,
जुनून है तेरे इश्क का
बिखरे जा रहे हैं हम
तुझसे मोहब्बत करने के बाद
मिला कुछ भी नहीं इक दर्द के सिवा
बहुत पछता रहे हैं तुझसे,
इश्क करने के बाद।।

by Pragya

गलियारों में अंधियारे…

September 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गलियारों में अंधियारे हैं
निश्चित ही सब दुखियारे हैं
नहीं हैं खाने को कुछ दाने
दूर दूर से सब प्यारे हैं
कर्तव्यों की बलिवेदी पर
बैठा है कोई शस्त्र पकड़कर
पर दुनिया की रीत यही है
जो हैं निर्लज्ज वही प्यारे हैं।
गलियारों में अंधियारे हैं
निश्चित ही सब दुखियारे हैं।

by Pragya

“सप्तवर्णी छाँह”

September 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आकांक्षाओं के तिमिर में स्मृतियों का बसेरा है
जीवन है अंधकार युक्त और खुशियों का सवेरा है
बीत जाती हैं कई शामें बिस्तर की सिलवटों में
लिहाफ ओढ़ कर यह वक्त गुजर जाता है
उंगलियों के पोर से आसमान को रंग कर
उत्कृष्ट महत्वाकांक्षाओं के भवसागर में हमने अंगुल को धोया है
समझ सके कोई ऐसे भाव प्रकट करने में
स्वयं को सप्तवर्णी छाँह में हमने खोया है।

कवयित्री: प्रज्ञा शुक्ला

by Pragya

“फिर आ रही है उनकी याद”

September 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पिछले कुछ दिनों से
फिर आ रही है उनकी याद
उसकी याद में दर्द है और
थोड़ी सी प्यास
भूल तो गए थे हम
दो-चार लोगों से मिलकर उसे,
पर अब वो लोग ही ना रहे तो
फिर आ रही है उनकी याद।
जीने के लिए तो बस एक बहाना चाहिए,
होठों पर हंसी हो और आंखों में आस।
जीते जी हम तुम्हें पा लेंगे यह अरमा उठा है दिल में,
क्योंकि ऐ दिल! फिर आ रही है उनकी याद।।

by Pragya

मेरे लफ्जों में वो गहराइयां हों…!!

September 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं चाहती हूं मेरे लफ्जों में
गहराइयां हों
छूता चले मेरा हर अल्फाज आसमान को
मेरे भावों में वो ऊंचाइयां हो
तितली से रंग भरे हों पन्ने
और जवानी की अंगड़ाइयां हों
भवन में पसारा हुआ सन्नाटा गूंज उठे,
मेरे काव्य में वो रुबाईयां हों
कुछ ना हो तो बस
इतना हो भगवन !
मैं मरूँ और उसकी आँख में
कुछ झीसियाँ हों।।

by Pragya

#dard ki baat

September 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे कहें कि क्या खोया है हमने
और क्या पाया है हमने
दर्द के सिवा कुछ मिला नहीं
जो तू ना मिला तो गिला भी नहीं
————————-
आकाश की ऊंचाइयों से तू ना घबराना
गर गिरने का डर लगे तो लौट आना
मगर फिर इस तरह से आना
कि कभी फिर छोड़ के ना जाना।

by Pragya

#RIR Siddharth shukla

September 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज आ गया समझ में
जिंदगी कितनी छोटी होती है
एक पल में होती है हमारी
तो दूजे पल में हमसे कोसों दूर होती है।
यूँ रोज टूटते हैं सितारे आसमान से
लेकिन किसी एक के ही टूटने पर
ये आंख गमगीन होती है।
लगता है जैसे स्वप्न हो कोई लेकिन, यकीन करने को आँखें मजबूर होती हैं।
# RIP Siddharth Shukla

by Pragya

छिन गया

August 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे छिन जाने से
मानो सब छिन गया
दिल गया, चैन भी छिन गया
स्मृति ही शेष रह गई अब तो
हाँथों से सर्वस्व छिन गया
बैठे हैं हम सागर के किनारे
आयेगी एक लहर और कहेगी
जो छिन गया था आज वो
सब तुझे मिल गया !!

by Pragya

“लड़कियां जैसे पहला प्यार”

August 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह थी बिजली की कौंध सी
वह थी निश्चल प्रेम सी
वह थी सावन की फुहार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार।
गीत गाता हो जैसे सावन
मन हो जाता पुलकित पावन
आये आंगन में बहार
लड़कियां जैसे पहला प्यार लड़कियां जैसे पहला प्यार।

by Pragya

अर्थ होते हैं त्वरित

August 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अर्थ होते हैं त्वरित परिमाण होते हैं
गीत होते हैं
स्वयं के साज होते हैं
है धरा मुर्छित हुई जब
जब म्यान में तलवार है
दूर कितना है सवेरा
चहुँ ओर अन्धकार है
है विदुर बैठा हुआ
धृतराष्ट्र भी गूँगा हुआ
आज अर्जुन के कर्तस में
ना बचा कोई बाण है।

by Pragya

कलम को रोना पड़ा (मानवीकरण अलंकार)

August 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विचारों की विचार गाथा
पर हम तो शंकित रह गए
पुष्प जो हर्षित खिले थे
औंधे मुंह मुरझा गए
थी प्रणय की आस किन्तु
आस मेरी मृत हुई
दूर बैठी अप्सरा यह देख कर हर्षित हुई,
क्या करूँ क्या ना करूं
यह मन मेरा विचलित हुआ
देख शब्दों की दुर्दशा
कलम को रोना पड़ा।।

by Pragya

बूंद की किंचित उदासी

August 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बूंद की किंचित उदासी
बूंद ही सुन ले अगर
क्यों मिले सागर में जाकर
गुत्थी ये सुलझे अगर
तो स्वयं ही हो समाधानों की
अविरल बारिशें
क्यों हृदय में हो मिटाने की
अमिट फरमाईशें।।

by Pragya

“तालिबान और अफगानिस्तान”

August 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तालिबान ने यह
कैसी हालत कर दी
अफगानिस्तान की
बैठे बैठे मृत्यु आ गई
कीमत कम हो गई अब तो जान की।
फिल्मों जैसा हाल हो गया
अफगानी नागरिकों का,
प्लेन से मानव ऐसे गिरते हैं
जैसे पत्ता हो सूखा सा
हाय रे! दुनिया तेरी चुप्पी
लानत लानत लानत है
याद रख की तेरे देश की भी
हो रही कुछ ऐसी ही हालत है।।

by Pragya

हिन्दी के प्रथम तिलस्मी लेखक:-“देवकीनन्दन खत्री”

August 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देवकीनन्दन खत्री जी की पुण्यतिथि:-
जन्म:- (18 जून 1861)
मृत्यु:- (1 अगस्त 1913)
*************
हिन्दी के प्रथम
तिलस्मी लेखक वा कहानीकार
देवकीनन्दन खत्री
जिनकी है आज पुण्यतिथि
नमन है उनको इस प्रज्ञा’ का
जिसने लिखी थी चंद्रकांता’
चंद्रकांता’ था एक ऐसा उपन्यास
जिसको पढ़ने की खातिर
पाठकों ने सीखी थी हिंदी
हिन्दी का यह तिलस्मी लेखक
1 अगस्त 1913 में इस दुनिया से चला गया,
बुझा हुआ वह स्वर्णिम दीपक हिंदी जगत को दीप्तिमान कर गया।।

by Pragya

“उधम सिंह बलिदान दिवस”

August 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज ऐसे वीर बहादुर की
जयंती है,
जो जलियांवाला बाग नरसंहार
का दोषी था,
उसको घर में घुस कर मारा और
अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।
ऐसे महान क्रांतिकारी का नाम है उधम सिंह,
जो अनाथालय में रहा परंतु
देश के लिए प्रेम पलता रहा।
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का
प्रत्यक्षदर्शी था।
पिस्टल के आकार की काटी पुस्तक में रख ली बंदूक,
पहुंच गया वह लंदन में
जहां डायर था पहले से मौजूद।
सीना छलनी कर दिया उसका
जब डायर भाषण देने आया था,
उधम सिंह था नाम उसका वह भारत मां का जाया था।।

by Pragya

“मोहम्मद रफी पुण्यतिथि”

August 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहम्मद रफी पुण्यतिथि स्पेशल:-
(31 जुलाई 1980)

मोहब्बत को जो गजलों में हमेशा बांध देता था
मुनासिब था नहीं वो दिल को
ऐसा साज देता था
सबकी रूह तक जाती थी
उसकी आवाज़ थी ऐसी
गरीबों के भी घर में उसका
नगमा खूब बजता था।।

✍️✍️✍️
By pragya shukla

by Pragya

उपन्यासों के सम्राट : मुंशी प्रेमचंद

August 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेमचंद्र का जन्मदिवस:-
(31 जुलाई 1880)
******************
हिन्दी कहानी के पितामह
उपन्यासों के सम्राट
नाम है जिनका धनपत राय
वह थे विश्व विख्यात
जिसने दिया सजल नैनों का सागर
अपने लेखों से भर दी गागर में सागर
जीवन पर्यंत दिया हिंदी को
नाम और सम्मान
कालजई रचना थी उनकी स्वर्णाक्षर ‘गोदान
जय हो, जय हो, प्रेमचंद्र की
यूं ही उनका सम्मान रहे
प्रज्ञा’ भी कुछ सीखे उनसे
जिससे हिंदी में योगदान रहे।।

by Pragya

“नमन तुम्हें है वीर सपूतों”

July 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“कारगिल विजय दिवस”
*****************
नमन तुम्हें है वीर सपूतों
जीता तुमने सबका प्रेम है
तेरे ही गौरव की गाथा
गाता पूरा देश है
कारगिल के विजय दिवस को
हम कैसे भूल सकते हैं
जिन वीरों ने विजय दिलाई
उनकी स्मृति को कैसे
विस्मृत कर सकते हैं !
लुटा दी जाती जान जहां है
प्राण से बढ़ कर देश है
ऐसा सुन्दर, सबल, सलोना
प्यारा भारत देश है।

by Pragya

“कटार”

July 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इल्ज़ामो की तलवार
चली है हम पर
बेबुनियाद मुकदमे
चले हैं हम पर
कोशिश बहुत की पर
ना बचा पाये खुद को
यार ने ही जब कटार
चलाई है हम पर।।

by Pragya

सावन आया है।। (श्रिंगार रस से परिपूर्ण)

July 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“सावन में सावन पर प्रथम कविता”
***********************
सावन आया है।।
——————–
प्रीत की रीत निभाना तू कि
सावन आया है
मिले थे जिस दिन हम तुम वो
मौसम आया है।

बाहों में भर के तुझे प्यार जताना है,
नैनों की बारिश से भीग जाना है
कितनी बार ये खयाल !
हमको यार आया है।

आते-जाते तेरे नैन मुझसे
कुछ कहते हैं
नींदों मेरे लब तेरे लब को
छूते हैं।
आजा साजन ! मिलते हैं और
कर लें पूरे ख्वाब हम
यूँ ही ना हम रह जायें दूर-दूर
आ जा सजन !
कैसे बताऊँ इन जुदाई के लम्हों को मैंने किस तरह रो बिताया है,
कल किसी और का होगा तू
सावन आया है
आ मिल कर साथ गुजारे पल
सावन आया है।
बाहों में भर के तुझे प्यार जताना है,
नैनों की बारिश से भीग जाना है
कितनी बार ये खयाल !
हमको यार आया है।।

by Pragya

देखो गुरुवर हमें बुलाएं…

July 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“गुरू पूर्णिमा स्पेशल”
——————
माँ होती है प्रथम गुरू
जो प्रेम का पाठ पढ़ाती है
अंतहीन विनम्रता के साथ
जीवन जीना सिखलाती है
धरती, अम्बर, प्रकृति सिखाये
हर दिन नवल प्रभात सिखाये
ज्ञान पुंज के पट को खोले
देखो गुरुवर हमें बुलाये
गुरू पूर्णिमा पर यह प्रज्ञा’
हर गुरुवर को शीश नवाए।

by Pragya

…तो कुछ बात बने !!

July 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ गज़लों की बात हो
तो कुछ बात बने,
कुछ सपनों की बारात हो
तो कुछ बात बने।
दिन में खिले चांद और
रात में उगे सूरज,
दोपहर गुदगुदाए तो
कुछ बात बने।
हवा के हवाले हों मेरी फिक्रें,
हो मोहब्बत की बरसात
तो कुछ बात बने।

by Pragya

कहना तो बहुत कुछ है तुझसे ! !

July 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहना तो बहुत कुछ है तुझसे
लेकिन कह कहाँ पाती हूँ।

दिल की बेबसी यह है कि
बिन कहे रह भी कहाँ पाती हूँ।

यूँ तो हमें अकेले रहने की
बुरी आदत है साहब!
पर तेरे बिन अधूरी रह कहाँ पाती हूँ।

तू अगर आस- पास होता तो
समझ जाता हाल-ऐ-दिल मेरा

यूँ तो बहुत बोलती हूँ मैं पर
इजहारे इश्क कहाँ कर पाती हूँ।

कहना तो बहुत कुछ है तुझसे,
लेकिन कह कहाँ पाती हूँ ! !

by Pragya

“सहनशक्ति”

July 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जलील तो तूने बार बार किया
पर मैं हर बार माफ करता रहा
शायद ये तेरी नासमझी होगी !
बस यही सोंचता रहा !!
पर तूने तो बेशर्मी की सारी हद
पार कर दी,
मेरी इज्जत सरे आम निलाम कर दी
अब तक चुप था क्योंकि
तू अकेले में वार करता था
मेरा बेटा है तू इस लिये सबकुछ सहता था
पर आज सहनशक्ति ने भी जवाब दे दिया
आज तूने अपने बाप को जिन्दा ही मार दिया।।

by Pragya

“रिश्वतखोर”

July 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्वत
—————
रिश्वत लेकर ही काम
करते हैं कुछ लोग
और धर्मात्मा बनते हैं
कुछ लोग
यूँ उछल उछल कर
अपने परोपकारों का गाना गाते हैं
करते धरातल पर कुछ नहीं
परंतु डींगे बड़ी बड़ी हांकते हैं
ऐसे ही लोग अपने माँ-बाप के मरणोपरांत
उनके कफ़न को भी बेंच कर
खा जाते हैं।।

by Pragya

सीख लो मुस्कुराना।।

July 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यादों का तो काम है
चले आना
हमारा काम है उन
जलते दीपकों को बुझाना
बुझा दो उन तमाम यादों के
टिमटिमाते चिरागों को
जला लो दिल में नए खयालों को
भूल जाओ और छुपा लो
उन जख्मों को,
जो दर्द दें, रुला दें, मिटा दें तुम्हें
सीख लो तुम किसी की
खातिर मुस्कुराना
दिल के जख्मों को हर एक से छुपाना।।

by Pragya

बुरा वक्त था…

July 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब कब तक तुम उसे
यूँ ही याद करोगी
अपने बेचैन दिल को और
बर्बाद करोगी
जिंदगी जीने का नाम है
उसे यूँ ना गंवाओ
जो चला गया है उसे
अब तुम भूल जाओ
बुरा वक्त था, रब रूठा था,
तुम्हारा और उसका बस
साथ इतना ही था।।

by Pragya

बूंदें…

July 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

टिप-टिप करती हुई बूंदे
मन को बहुत भा रही हैं
बूंदों की बौछार के साथ
तेरा पैगाम ला रही हैं
बिजलियों की गड़गड़ाहट
सता रही है हमको,
पर तेज हवा के झोंके
तेरे आने के पैगाम ला रही हैं।

by Pragya

“माँग में सिंदूर”

July 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उदास रातों को जगा कर और
थोड़ा चांद निचोड़ कर
दिन में उजाला भर दिया
पंछियों की आवाज सुनाई दी है
किसी ने सुबह का
आगाज़ कर दिया,
यूंँ तो रोज सुनाई देती है शहनाई
उसने मोहब्बत का इजहार करके
मेरी माँग में सिंदूर भर दिया।

by Pragya

“रोटी”

July 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“रोटी”
—————–
तप्त अंगारों से नहा कर
आई हूँ मैं
ठंडक की आस मिटा कर
आई हूँ मैं
बुझा लो अपनी जठराग्नि को
तुम्हारी ही छुधा को शांत करने
आई हूँ मैं
मेरे ही कारण बेटे परदेश
में रहते हैं
मेरे लिये ही तो दो चूल्हे होते हैं
मेरे कारण ही रिश्तों में
दूरियां आती हैं
मेरे पीछे ही पति पत्नी के रिश्ते में
खटास आती है
मेरे ही आगमन पर शरीर में जान आती है
मैं ही तो हूँ जिसके कारण
थाली में जान आती है ।।

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