कण कण

November 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

पृथ्वी के कण कण में हमको जिसकी रचना दिखती है,
उसको पाने में क्यों हमको फिर हरदम अड़चन दिखती है।।

राही अंजाना

पहिया

November 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रहने को बहुत बड़ा है लेकिन
रहने में क्यों डर लगता है
एक अपने ही घर में क्यों बोलो,
तुमको सब कुछ खलता है।

कहने को तो सब चलता है
सूरज रोज निकलता है
एक तेरी ही आँखों में क्यों बोलो,
आँसू का पानी पलता है।।

बढ़ने की चाहत में जो पल
हाथों से रोज फिसलता है
एक तेरी ही मर्ज़ी से क्यों बोलो,
समय का पहिया चलता है॥

राही अंजाना

बेटी

November 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रहने को बहुत बड़ा है लेकिन
रहने में क्यों डर लगता है
अपने ही घर में क्यों बेटी
भला तेरा ये मन खलता है।

कहने को तो सब चलता है
सूरज रोज निकलता है
एक तेरी आँखों में क्यों बेटी,
उगता सूरज ये ढलता है।

बढ़ने की चाहत में जो पल
हाथों से रोज फिसलता है
तेरी मर्ज़ी के आगे क्यों बेटी,
लगड़ों का पैर मचलता है।।

राही अंजाना

रात

November 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीती रात कमल दल फूले,
हम उनके सपनों में फूले,

उनकी रंग भरी बातों में,
हम भूली बिसरी यादें भूले,

आँख खुली तब हमने देखा,
हम भ्रम की बाहों में झूला झूले,

वो बन्द कली भी खिल जाती,
गर उसको राही अंजाना छूले।।

राही अंजाना

तलाश

November 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

खोया हूँ मगर ज़रूरी नहीं के तलाशा जाऊँ मैं,
हुनर के पैमाने पर बारीकी से तराशा जाऊँ मैं।।

राही अंजाना

जख्म

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जंग लड़ी थी गहरे जख्म पुराने थे,
रंग लगे थे चेहरे पे गरम छुड़ाने थे,

घाव लगे थे दिल पर सब बेमाने थे,
महबूबा के प्रेम में चरम दीवाने थे,

धुंधले थे पर चेहरे सब पहचाने थे,
आईने से कुछ राज़ मरम छुपाने थे,

चीखे बहुत पर बहरे हुए जनाने थे,
मानो के सबके पास नरम बहाने थे,

यादों के यूँ तो मौसम बड़े सुहाने थे,
झूठ बोल सबको ही भरम भुनाने थे।।

राही अंजाना

तीली

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

धरती बिछा कर आस्मां ओढ़ कर सो जाते हैं,
ये गरीब हैं अपना रस्ता छोड़ कर सो जाते हैं,

मिलती नहीं जो रौशनी की किरण उनसे आके,
जलाके माचिस की तीली मोड़ कर सो जाते हैं।।

राही अंजाना

बेअसर

November 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

है कौन जो तुम्हारी यहां फिकर कर रहा है,
हर लम्हा जो एक तुम्हारा जिकर कर रहा है,

हर एक कश के साथ जो जला रही है जिगर,
वो सिगरट तुम्हारे सफर को बेअसर कर रहा है।।
राही अंजाना

रास्ता

November 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मिल जाए जो गर कहीं तो सही रास्ता ढूंढिए,
इस दुनियां में किसी से तो कोई वास्ता ढूंढिए।।

राही अंजाना

परिंदा

November 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

वो मुझसे छीन कर मेरा परिंदा ले गई,
मैं मर गया जब वो मुझे ज़िंदा ले गई,
Rahi Anjana

मुलाक़ात

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

निकल कर घोंसले से आ मुलाकात कर ले,
मिलने की कहीं से तो आ शुरूवात कर ले,

ढूंढते – ढूंढते थक हार कर बैठ गए हैं परिंदे,
मुझे लगा गले और सुबह से आ रात कर ले,

अब लगाऊँ मैं तेरे हौंसले का अंदाज़ा कैसे,
हो सके तो थोड़ी सी मुझसे आ बात कर ले।।

राही अंजाना

इंसान

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मेरे दिल ओ ज़िगर का अरहान लगता है,
पास होता है जब वो तो बस आराम लगता है,

कितना मुश्किल है एक और एक ग्यारह हों,
ये तो मैं हूँ जिसे सब कुछ आसान लगता है,

फैलाके सीना अपना चौड़ा होके दिखाता जो,
वो अँधेरा भी पल दो पल में नाकाम लगता है,

खुशियों की एक मुददत यूँ गुजर जाने के बाद,
तो एक अद्ना सा मर्म भी अहज़ान लगता है,

इतना ज़हर घुल चुका है फ़िज़ा ऐ मेहमान में,
के दरवाज़े पर खड़ा हर शख्स बेईमान लगता है,

आवाज़ों से भरी हुई इस बड़ी सी दुनियां में,
जो खामोशी की जुबां सुन ले इंसान लगता है,

कुछ मिले तो अच्छा नहीं तो नुक्सान लगता है,
नाम होकर भी ये राही तो बस अंजान लगता है।।

राही अंजाना

अहज़ान – दुःख

मेहमा

November 4, 2019 in शेर-ओ-शायरी

कमरा तो कोई दिखता नहीं इस दिल में मगर,
हम फिर भी मेहमाँ कई इसमें बिठाये फिरते हैं,

क्यों देखने पर भी कुछ नज़र नहीं आता हमको,
आढ़ धर्म की लेकर हम खुदको छिपाये फिरते हैं।।

राही

आस पास

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसको रहना हो वो मेरे आस – पास रहे,
जिंदगी में कोई तो हो जो सबसे ख़ास रहे,

ऐसा न हो के सब हँसते रह जाएँ तुमपर,
और एक कोने में बैठा वो दिल उदास रहे,

दिन रहे रात रहे सुबह से शाम प्यास रहे,
रिश्ता अनकहा सही उसमें भरी मिठास रहे॥

राही अंजाना

फायदा

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

राज़ ए दिल को दिल में छुपाने से क्या फायदा,
बात दिल की दिल में ही दबाने से क्या फायदा,

मोहब्बत की राहों में यूँ भटकने से क्या फायदा,
लिखा पत्र भेजा नहीं उसे गुमाने से क्या फायदा,

कान रखने वाले भी बहरे बन बैठे हैं ज़माने में,
ऐसे जहाँ को राही बात सुनाने से क्या फायदा।।

राही अंजाना

घर

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रौशन आज मिलकर सब अपने घर कर लेंगे,
और मासूम परिंदे अपने भीतर पर कर लेंगे,

पूरा आसमां जगमगाऐगा बिना तारों के ऐसे,
के सितारे ज़मी को मानो अपने सर कर लेंगे,

कोना – कोना शहर का बोल उठेगा दिल से,
कुछ खामोशी से सब देखके ही मन भर लेंगे।।

राही अंजाना

पहेली

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी एक पहेली है तो सुलझाओ न तुम,
मैं पहले ही उलझा हूँ और न उलझाओ तुम,

हर कदम पर जानता हूँ अनसुलझे सवाल हैं,
कोई तो हल होगा न हमें बतलाओ न तुम,

अरे ये कहानी किस्सों की बातें समझे नहीं,
किसी सरल भाषा में हमें समझाओ न तुम,

छोड़ो ये धोखा हर मौके पे खोका क्या है,
चलो प्यार के झूले में हमें झुलाओ न तुम॥

राही (अंजाना)

मायने

November 4, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दिन और रात के मायने बदल देता है,
इश्क में इंसा सारे आईने बदल देता है।।

राही अंजाना

पहरेदार

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब लोगों में वो पहले जैसी बात कहाँ है,
दिल है पर वो पहले जैसे जज़्बात कहाँ है,

आखिर है कौन यहाँ जो गुनेहगार नहीं है,
सच में सच वो पहले जैसे पहरेदार कहाँ है,

सर के साथ जो दिल झुकाके मिलता था,
महफ़िल में वो पहले जैसी शुरुवात कहाँ है।।

राही अंजाना

चाँद

October 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आखिर कौन किसको देखने छत पर आया करता है,
चाँद इस ज़मीं पे या उस आसमान पे छाया करता है,

इंतज़ार कौन और किसका बड़ी बेसबरी से करता है,
पहले अंधेरा या रौशनी कौन किसको पाया करता है,

उम्र किसकी और कितनी बढ़ाने की चाहत में पागल,
है कौन जो रात दिन यूँहीं पलकें झपकाया करता है।।

राही अंजाना

झांसा

October 13, 2019 in शेर-ओ-शायरी

उसका मेरे दिल में आना आसां लगता है,
उसका मेरे दिल से जाना झांसा लगता है,
…………

राही अंजाना

अर्ज़ियाँ

October 13, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मेंहमाँ हैं तेरे दर पे इस कदर सारी अर्ज़ियाँ मेरी
इक तेरी इज़ाज़त पे कबूल होती हैं मर्ज़ियाँ मेरी।।
राही अंजाना

उपस्थिति

October 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

के तेरे दर पे मैं खुल कर के सब कुछ अर्ज़ करता हूँ,
तुझको पाने की खातिर मैं खुद को यूँ खर्च करता हूँ,

गर तू समझे मेरी खामोशी तो मुझे अच्छा लगता है,
जो न समझे तू मुझको मैं तुझसे फिर तर्क करता हूँ,

तेरी ख्वाइशों की फहरिस्त पूरी करने की चाहत में,
मैं अपने – अपनों से क्या गैरों से भी क़र्ज़ करता हूँ,

मुलाक़ात हो नहीं पाती जब कभी तुझसे राहों पर,
ये सच है मैं तेरे ख़्वाबों में उपस्थिति दर्ज़ करता हूँ।।

राही अंजाना

सन्तुलन

October 13, 2019 in मुक्तक

दिल और दिमाग के बीच सन्तुलन बैठाना मुश्किल था,
पहली बार देखा था उसे अमलन छुपाना मुश्किल था,

अकेले ही काटी थी यूँही राहों पर उम्र भर जो जिंदगी,
मिला जो उनसे तो ठहरी अंजुमन लगाना मुश्किल था।।

राही अंजाना

अंजुमन – सभा
अमलन – सच में

शौक

October 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसुओं के पानी से जितना धुलता जाता हूँ मैं,
लोग जितना रुलाते हैं उतना खुलता जाता हूँ मैं,

देखने में सबको बेशक बड़ा नज़र आता हूँ मैं,
सच ये के हर पल बचपन में मुड़ता जाता हूँ मैं,

शौक तो खामोशी का ही पाल के रखता हूँ मैं,
पर जब भी बोलता हूँ बोलता चला जाता हूँ मैं।।

राही अंजाना

मतभेद

October 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मतभेदों की महफ़िल में मनभेदों का खुलासा हो गया,
अच्छाखासा मुस्कुराता हुआ मेरा दिल रुहासा हो गया।।

राही अंजाना

मिठास

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसको रहना हो वो मेरे आस – पास रहे,
जिंदगी में कोई तो हो जो सबसे ख़ास रहे,

ऐसा न हो के सब हँसते रह जाएँ तुमपर,
और एक कोने में बैठा वो दिल उदास रहे,

दिन रहे रात रहे सुबह से शाम प्यास रहे,
रिश्ता हो जैसा भी उसमें भरी मिठास रहे॥

राही अंजाना

कौन कह रहा है

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन कह रहा है समन्दर में राज़ नहीं होते,
ज़मी पर रहने वालों के सर ताज नहीं होते,

पहन लेते हैं आज वो जो जैसा मिल जाये,
ये सच है उनकी कमीज़ में काज़ नहीं होते,

गर छू पाते हम अपने हाथों हवायें दिवानी,
आसमां पे हौंसलों के उड़ते बाज़ नहीं होते,

कोई कुछ कहता नहीं सब समझते सबको,
एहसासों के यूँ सरेआम आगाज़ नहीं होते,

ज़ुबां सुना देती जो गर धड़कनों को दिल की,
कानों में ख़ामोशी से सजे ये साज़ नहीं होते,

राही अंजाना

ढाँचे

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैंने सोंचा न था के वो इस कदर बदल जायेगा,
पानी पर लिखा हुआ उसका नाम जल जायेगा,

मैं बनाता ही रह जाऊंगा तरह – तरह के ढाँचे,
और वो मासूम यूँ वक्त के सांचे में ढल जायेगा,

बेवकूफ था मैं सोंचा ज़िन्दगी भर चलेगा साथ,
क्या मालूम था के वो यूँ बर्फ सा पिघल जायेगा।

राही अंजाना

सिसकियाँ

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ ऐसा न करो के कोई तुम्हारी गवाही न दे,
आँखों की सलाखों में रखे पर तुम्हें रिहाई न दे,

जो भी कहना है उसे आईने सा साफ़ रखो तुम,
ऐसा न हो के चेहरा तुम्हें तुम्हारा ही दिखाई न दे,

क्या फायदा ऐसे हजारों दुनियां के कानों का,
जब किसीको किसीकी सिसकिया सुनाई न दे।।

राही अंजाना

खाली

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमको सुलाने की खातर कितनी रात मेरी काली रही,
मुझे ठीक से याद नहीं के देखकर तुम्हें बेखयाली रही,

बातें करती रहीं तुम मुझसे यूँही सपनों की दुनियां में,
सुबह जब तुमने मुझे देखा आँखें तुम्हारी सवाली रही,

किसी रस्सी सा खींचते रहे सब अपने हिसाब से तुम्हें,
मुट्ठी में बाँधके रखा तुम्हें पर हथेलियाँ मेरी खाली रही।।

राही अंजाना

समन्दर

October 1, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मुझको यूँ कुचलने पर तुम्हें वो समन्दर नहीं मिलेगा,
तुम्हारी आँखों को जो चाहोगे वो मंज़र नहीं मिलेगा,

बड़ी बेरहमी से मुझे रास्तों पर छोड़कर जाने वालों,
तुम्हें ढूंढने से भी इस जहां में कोई घर नहीं मिलेगा,

मैं तो कबूल भी ली जाऊगी किसी न किसी दर पर,
के याद रहे तुम्हें तुम्हारा कोई भूलकर नहीं मिलेगा।।

राही अंजाना

गुनाह

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुनाह तो कोई ज़रूर बहुत ही बड़ा कर रहा हूँ मैं,
सबकी नज़रों से होकर पल- पल गुज़र रहा हूँ मैं,

रास्ते ठहरे हैं मगर जाने क्यों चलते नज़र आते हैं,
जिस पल से ज़िन्दगी रेल में सफ़र कर रहा हूँ मैं,

खामोश बैठा है कोई कोई चुप होने को तैयार नहीं,
के मालूम है दर्द में हैं दोनों की फिकर कर रहा हूँ मैं,

दुआ और दवा की एक इबारत खत्म कर चुके हैं जो,
खुश हूँ के उनके मरहम पर अभी असर कर रहा हूँ मैं,

लाख कोशिशों में भी जो चराग जल के जल न सका,
हवाओं के बीच उसे बुझाने की मुन्तज़र कर रहा हूँ मैं,

जो टूटी हुई किसी कुर्सी सा कोने में फैंक दिये जाते हैं,
हाँ-हाँ मित्र बेशक उन्हीं बुज़ुर्गों का ज़िकर कर रहा हूँ मैं।।

राही अंजाना
मुन्तज़र – उम्मीद

पता

October 1, 2019 in मुक्तक

जलाकर रख दिए ख़त मगर यादों को अग्नि दगा दे गई,
मुट्ठी में दबाकर रखी थी मगर खुशबू को हवा उड़ा ले गई,

बेबाक यूँही नशे में गुज़र रही थी लडखड़ाती हुई ज़िन्दगी,
आई एक रात फिरजो ख्वाबों में मुझे तुम्हारा पता दे गई।।

राही अंजाना

दुआयें

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनको देनी हैं वो हमको दुआयें देंगे,
बेवफाई के बदले भी हमको वफायें देंगे,

हम गुनाह कुबूल कर बैठेंगे उनके आगे,
पर वो जब भी देंगे हमको सजायें देंगे,

घुप्प अँधेरे में दूर तक नहीं दिखेंगा कोई,
तो चुपके से जुगनुओं को हम सदायें देंगे,

बड़ी शिद्दत से निभाई मोहब्बत हमनें मगर,
क्या मालूम था वो फिरभी बद-दुआयें देंगे॥

राही अंजाना

कश्मकश

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

न चाह कर भी बहुत कुछ कह जाना पड़ता है,
हो रूठना तो पहले किसी को मनाना पड़ता है,

मुस्कुराते सबको नज़र आते हैं क्या कहें वो,
जिन फूलों को काँटों संग रह जाना पड़ता है,

कश्मकश चलती ही रहती है दिलो दिमागों में,
पर इस काया को माटी में मिल जाना पड़ता है।।

राही अंजाना

गांधी मशाल

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनके एक आवाहन पर सबने अपने हाथ उठाये थे,
कदम-कदम पर अंग्रेजी शासन के छक्के साथ छुड़ाए थे,

जिनके कहने पर अस्त्र वस्त्र सब मिलकर साथ जलाये थे,
सत्य-अहिंसा के अचूक तब शस्त्र सशक्त उठाये थे,

सच की ताकत के आगे जब तोपो के रंग उड़ाए थे,
गांधी मशाल ले हाथ सभी ने विदेशी दूर भगाए थे,

सत्याग्रह की आग लिए जब मौन रक्त बहाये थे,
मानवता और अधिकारों का खुल कर बोध कराये थे,

डांडी यात्रा में गांधी जी जब समुद्र किनारे आये थे,
जाति धर्म के तोड़ के बन्धन जन पीछे-पीछे आये थे,

पोरबन्दर में जन्म लिया पर हर मनमन्दर पे छाए थे,
दुबले पतले थे पर बापू देखो वीर कहाये थे,

ब्रिटिश राज को ध्वस्त किये और आजादी के रंग दिलाये थे,
यूँही भारत माँ के आँचल पर बापू ने पुष्प चढ़ाये थे।।
राही (अंजाना)

हथेलियाँ

September 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गलतियाँ बहुत कर लीं चलो एक दो सुधारी जाएँ,
रस्मों रिवाजों की चादर सर से पूरी उतारी जाएँ,

जाये कहाँ, अब है कौन हमारा इस नए ज़माने में,
चलो यादें पुरानी उकेर कर रखी थीं संवारी जाएँ,

कुछ तो ऐसा किया जाए कोई हुनर कमाया जाए,
हथेलियाँ किसी के आगे भी कभी न पसारी जाएँ।।

राही अंजाना

जरूरी था

September 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने दिल को दिमाग से लड़ाना ज़रूरी था,
उसने बुलाया था उसके पास जाना जरूरी था,

रौशनदान बहुत थे चाहरदिवारी में पर फिरभी,
मुझको अंधरे से भी तो काम कराना ज़रूरी था,

थक हार कर बैठे थे सब लोग समझाकर उसे,
जो मालूम था उसे इशारों में बताना ज़रूरी था,

जश्न ऐ जीत के जराग जला कहीं उड़ न जाऊँ,
खुद को रुई की बाती सा भी गिराना ज़रूरी था,

इश्क के दस्तरखान पर इल्म का पर्दा चढ़ा था,
बड़े इत्मिनान से नज़रों को मिलाना ज़रूरी था,

आना-जाना तो हर रोज़ घर पे लगा रहता था,
पर वो मेरा मेहमान था उसे बैठाना ज़रूरी था,

बोल- बोल कर मनाते दिन-रात बीत गई राही,
शायद पेहरा ख़ामोशी का भी लगाना ज़रूरी था।

राही अंजाना

एतराज़

September 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

भीड़ बहुत है भागदौड़ भी बहुत इस ज़माने में,
बस यही वो डर है मैं उसे आप सबसे छुपाता हूँ,

हर तरफ शोर मचा है सबको रौशनी से परहेज है,
इसी एतराज़ के चलते मैं उसे अंधरों में जगाता हूँ,

लोगों के कहने में लोग बड़ी आसानी से आते हैं,
एक मैं जितना उसे भुलाऊँ उतना करीब पाता हूँ,

करना हो किसी को करता रहे इंतज़ार उम्र भर,
मैं बेसबर आपको इशारों में सारा सच बताता हूँ,

वो एक चादर ए चराग है जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ,
बाज़ू तो एक ही काफी है जिससे मैं उसे उठाता हूँ,

मैं जिसे अपने दिल की हर एक तहरीर सुनाता हूँ,
चलो मूड में हूँ आज आपको वो तस्वीर दिखाता हूँ।।

राही अंजाना

गुनहगार

September 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुनाह साबित भी न हुआ,
गुनहगार कहलाया गया मैं।

सीने से लगाया भी गया,
फिर बार बार ठुकराया गया मैं।

कई बार तोड़ा फिर जोड़ा गया,
फिर जोड़ कर बनाया गया मैं।

कभी जुगुनू आँखों का बताया गया,
कभी रातों को यूँ जलाया गया मैं।

कभी सपना तो कभी हकीकत से,
वाकिफ कराया गया मैं।
हर बार अपनी ही नज़रो में गिराया गया मैं।।

पहचानते सब थे पर पहचान की नहीं किसीने,
नाम जब पूछा तो राही अंजाना बताया गया मैं।।

राही अंजाना

सपना

September 21, 2019 in शेर-ओ-शायरी

जिस पल से उस को अपना सपना बना लिया मैंने,
शौक़ लिखने का उसी पल से अपना बना लिया मैंने।।

राही अंजाना

पुस्तक

September 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत बुलाया मगर वो मेरी कही सुनी सब टाल गया,
प्रेमपत्र जो पढ़े लिखे थे वो आँगन में सब डाल गया,

कौन घड़ी में जाने कब आके घर में दीपक बाल गया,
सूनी मन पुस्तक के भीतर कोरे पन्ने सब खंगाल गया,

रात अँधेरी सहर अकेली साँझ सहेली पूछो न सबसे,
क्यों सहसा “राही” राहों से होकर सब बदहाल गया।।

राही अंजाना

चराग

September 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये जिस्म है, ये जिस्म ही न पिघल जाये कहीं,
किसी चराग की शरारत से न जल जाये कहीं,

मैं चमकता रहा हूँ उसीकी गर्म रौशनी से यारों,
मुझको मेरा ही ये भरम न निगल जाये कहीं,

जलाकर रख रहा हूँ मैं जिन दीयों को हर दिन,
उन्हीं की करवट से कोई शाम न ढल जाये कहीं,

आदत है मेरी अँधेरे में भी यूँ चलना मुमकिन है,
डर है के वो घर से मेरे पीछे न निकल जाये कहीं,

रास्ता मुश्किल है बर्फ की एक चादर फैली यहां,
अब देखना ये है के ये राही न फिसल जाये कहीं।।

राही अंजाना

मेरी हिंदी

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल से दिल तक अपना रस्ता बना लेती है,
ये हिंदी ही हम सबको अपना बना लेती है।।

हो जाए गर नाराज़गी तो मस्का लगा देती है,
बातों हो बातों में साथी से रब्ता बना लेती है,

ज़मी से आसमां तलक परचम लहरा लेती है,
मंहगा जितना हो दर्द उसे ये सस्ता बना लेती है,

भारत माँ के आँचल को गुलदस्ता बना लेती है
चाहे जो हो धर्म सब पे ही कब्ज़ा बना लेती है।।

राही अंजाना

आलाप

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो बढ़ रहा है हाथ नापाक उसे तोड़ना होगा,
हाथ मिलाया था जो बेशक उसे छोड़ना होगा,

रच लिए बखूबी प्रपंच और चढ़ लिए ढेरों मंच,
अब उतर कर जंग में इनका सर फोड़ना होगा,

वार्तामाप नहीं अब और कोई भी आलाप नहीं,
ये मानलो इन हवाओं का भी रुख मोड़ना होगा।।

राही अंजाना

हालत

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन कहता है के मेरे होने से एक शहर बस्ता है,
जहाँ निकल जाऊं मुझे मिलता एक बन्द रस्ता है,

सांस मुझे आती नहीं या हवाओं ने रुख बदला है,
महसूस करो तो ज़रा सच में मेरी हालत खस्ता है,

दूर मीलों न जाओ आस-पास ही दौड़ाओ नज़रें,
देखकर क्यों मुझे अकेले खड़ा हर इन्सां हंस्ता है,

निकल पाती ही नहीं कहीं मैं घर से चाहूँ जितना,
डर का मेरे खुले बाज़ार में लगाता मोल सस्ता है,

मांगने पर उठ बढ़ता नहीं कोई हाथ भी मेरी तरह,
जब नोचना हो बेशर्म बेख़ौफ़ आके मुझमें फंस्ता है।।

राही अंजाना

हालत

September 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन कहता है के मेरे होने से एक शहर बस्ता है,
जहाँ निकल जाऊं मुझे मिलता एक बन्द रस्ता है,

सांस मुझे आती नहीं या हवाओं ने रुख बदला है,
महसूस करो तो ज़रा सच में मेरी हालत खस्ता है,

दूर मीलों न जाओ आस-पास ही दौड़ाओ नज़रें,
देखकर क्यों मुझे अकेले खड़ा हर इन्सां हंस्ता है,

निकल पाती ही नहीं कहीं मैं घर से चाहूँ जितना,
डर का मेरे खुले बाज़ार में लगाता मोल सस्ता है,

मांगने पर उठ बढ़ता नहीं कोई हाथ भी मेरी तरह,
जब नोचना हो बेशर्म बेख़ौफ़ आके मुझमें फंस्ता है।।

राही अंजाना

मेरी हिंदी

September 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल से दिल तक अपना रस्ता बना लेती है,
ये हिंदी ही हम सबको अपना बना लेती है।।

हो जाए गर नाराज़गी तो मस्का लगा देती है,
साथी हो या मांझी सबको रस्ता बता देती है,

पढ़े लिखे और अनपढ़ का फर्क दिखा देती है,
भारत माँ का परचम ऊँचा चस्पा करा देती है।।

राही अंजाना

चाबी

September 13, 2019 in शेर-ओ-शायरी

अपनी ही जेब में खुशियों की छोटी चाबी छिपाये,
यहाँ वहाँ ढूंढता रहता है इंसा उसे बड़े बाज़ारों में।।

राही अंजाना

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