योग

March 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जोड़ कर हाथों को यहाँ योग बनाया जाता है,
मन को कर एकाग्र यहाँ मनोयोग बनाया जाता है,

सम्बन्धो में बंधने को यहाँ योग मिलाया जाता है,
जीवन मृत्यु का गहरा यहाँ संयोग बनाया जाता है।।

राही अंजाना

हिजाब

February 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखते ही देखते सारे जवाब खो गये,
ज़मीन पे लेटते ही सारे ख्वाब सो गये,

उठाये थे ज़माने ने सावल जितने भी,
हकीकत से मिले सारे हिजाब हो गये।।

राही अंजाना

कोशिश

February 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आईना आईने के पार देखने की कोशिश में टूट गया,
ख्वाब ख्वाबों के पार देखने की कोशिश में छूट गया,

छिपाया मगर छिपा न सका सनम से मोहब्बत अपनी,
के चेहरा चेहरे के पार देखने की कोशिश में लूट गया।।

राही अंजाना

आदत

February 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्ता जोड़कर कोई तोड़ने की आदत नहीं मुझको,
दिल के सीधे रस्ते को मोड़ने की आदत नहीं मुझको,

काँच के आईने में चेहरा देखकर खुश हो लेता हूँ मैं,
उसकी नज़रों में नज़ारे छोड़ने की आदत नहीं मुझको,

गहरा कितना है बन्धन अब भला कैसे बताऊँ उसको,
के आँसुओ के सहारे से जोड़ने की आदत नहीं मुझको।।

राही अंजाना

दूरियां

February 26, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

लगाकर गले से तुझको दूरियाँ मिटानी थीं,
कितनी गहरी हैं ये नज़दीकियाँ दिखानी थीं,

तूने नज़रें मिलाई नहीं जिस अंजाने राही से,
उसे तुझे हवाओं की सरगोशियाँ सुनानी थी।।

राही अंजाना

तकदीर

February 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

छिपाकर किताबों में कोई मेरी तस्वीर भूल गया,
दबाकर पन्नों में जैसे कोई मेरी तकदीर भूल गया,

बैठा रहा मैं यूँही किसी पैदल सा गुलाम बनकर,
के बिसात पर चलने की मेरी तदबीर भूल गया।।

राही अंजाना

आराइश

February 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस आसमानी को मैं ज़मीनी बुला बैठा,
उसकी शिद्दत में मैं खुद को भुला बैठा,

आराईश में जिसकी मैं साँझ सवेरे बैठा,
उसकी मोहब्बत में मैं खुद को घुला बैठा,

मेरे जिस्म से मेरी रूह ने अलविदा कहा,
जो उसके बुलावे पे मैं खुद को सुला बैठा।।

राही अंजाना

मुखौटा

February 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुखौटे के पीछे चेहरा छुपाया करते हैं,
झूठ बोलने वाले सच गुमाया करते हैं,

गुमराह करने की चाहत में आईने को,
ऑंखें आँखों से अक्सर चुराया करते हैं,

दिन के उजाले में सच हुआ नहीं करते,
रातों में वो ख्वाबों को बुलाया करते हैं।।

राही अंजाना

पंछी

February 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

भटकते फिर रहे हैं जंगलों में शांति के पंछी,
इन्हें दो आसरा मत व्यर्थ में बातें बनाओ तुम,

सरकते जा रहे इन पेड़ों के घरोंदों से ये पंछी,
इन्हें दो सहारा मत अर्थ की रातेँ बनाओ तुम,

हो चुकी कैद ऐ बा-मुशक्क्त की सज़ा पूरी पंछी,
इन्हें दो किनारा मत स्वार्थ ही गाके सुनाओ तुम।।

राही अंजाना

पतंगा

February 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पतंगे को दीपक की आहोशी में जाकर अच्छा लगा,
ज़िन्दगी को मौत की मदहोशी में आकर अच्छा लगा,

बन्द रही थी सर्द रातों में कहीं वीराने में जो मोहब्बत,
आज खुलेआम उसे गर्मजोशी में आकर अच्छा लगा,

टोकते रहे सभी मेरी खुली आवाज़ को लेकर अक्सर,
और मुझ अंधे को रौशन खामोशी में आकर अच्छा लगा।।

राही अंजाना

हमसफ़र

February 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बस यूँही हम मिले और मिलते रहे,
थे कली फिर भी फूलों से खिलते रहे,

रिश्ते जितने ही हमसे उलझते रहे,
उतना ही प्रेम में हम सुलझते रहे,

रोका हमको बहुत हम रुके ही नहीं,
हम तुम्हे हमसफ़र अपना बुनते रहे,

वक्त की चाल से हम डरे ही नहीं,
सच यही साथ में सीढ़ी चढ़ते रहे।।

राही अंजाना

तिरंगा

February 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी हथेली पर शहीदों के नाम की मेंहदी रचाता रहा हूँ मैं,
खुद ही के रंग में शहादत का रंग मिलाता रहा हूँ मैं,

हार कर सिमट जाते हैं जहाँ हौंसले सभी के,
वहीं हर मौसम में सरहद पर लहराता रहा हूँ मैं,

सो जाती है जहाँ रात भी किसी सैनिक को सुलाने में,
अक्सर उस सैनिक को हर पल जगाता रहा हूँ मैं,

दूर रहकर जो अपनों से चन्द स्वप्नों में मिलते हैं,
उन्हें दिन रात माँ के आँचल का एहसास कराता रहा हूँ मैं,

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई किसी एक जाति का नहीं मैं,
इस पूरे भारत का एक मात्र तिरंगा कहलाता रहा हूँ मैं।।

राही (अंजाना)

माँ के लाल

February 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक माँ की गोद में एक माँ के लाल आ गए,
दोनों ही माँ की आँखों में आसूँ हाल आ गए,

रंग माथे दुरंगा लगा कर ख़ुशी से भेजा जिन्हें,
वो लिपटकर तिरंगे में आज बदली चाल आ गए,

सरहद पे रहे हथेली पर सांसों का दिया जलाये,
सो लगाकर देखभक्ति की अमिट मशाल आ गए।।

राही अंजाना

सच की दीवार

February 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच की दीवारों पर झूठ की तस्वीरें दिखाई गईं,
जब भी सर उठाया तो बस शमशीरें दिखाई गई,

बैठा ही रहा मैं भी शहंशाहों सा चौकड़ी लगाकर,
एक के बाद एक मुझे सबकी तकदीरें दिखाई गईं।।

राही अंजाना

साया

February 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम अपना न सही तो पराया ही कह दो,
के मुझे झूठे मुँह अपना साया ही कह दो,

इससे पहले के बन्द हो न जाएँ ये आँखे,
था मुझे तुमने दिल में बसाया ही कह दो,

न किसी ख्वाब न किसी रात में हम मिले,
पर ढाई अक्षर तुम्हींने सिखाया ही कह दो,

कहो कुछ भी जो तुमको कहना हो तो,
मगर मुझसे तुम सच छिपाया ही कह दो।।

राही अंजाना

सांसों की आवाज़

February 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सांसों की आवाज़ एक दूजे को सुनाई जाती है,
होटों पर अक्सर ही ख़ामोशी दिखाई जाती है,

एक चेहरे पर एक चेहरा कुछ इस कदर चढ़ता है,
के जिस्म पर जैसे किसी कोई रूह चढ़ाई जाती है,

किसमे कौन कहाँ कैसे समाया पता नहीं चलता है,
जख्मों पर जब मोहब्बत की दवाई लगाई जाती है।।

राही अंजाना

तिरंगा

January 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी हथेली पर शहीदों के नाम की मेंहदी रचाता रहा हूँ मैं,
खुद ही के रंग में शहादत का रंग मिलाता रहा हूँ मैं,

हार कर सिमट जाते हैं जहाँ हौंसले सभी के,
वहीं हर मौसम में सरहद पर लहराता रहा हूँ मैं,

सो जाती है जहाँ रात भी किसी सैनिक को सुलाने में,
अक्सर उस सैनिक को हर पल जगाता रहा हूँ मैं,

दूर रहकर जो अपनों से चन्द स्वप्नों में मिलते हैं,
उन्हें दिन रात माँ के आँचल का एहसास कराता रहा हूँ मैं,

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई किसी एक जाति का नहीं मैं,
इस पूरे भारत का एक मात्र तिरंगा कहलाता रहा हूँ मैं।।

राही (अंजाना)

आवाज़

January 26, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

के शायद मुझको ही मेरी बात कहनी नहीं आती,
के इस दिल से कोई आवाज़ ज़हनी नहीं आती,

गुजरता है ये दिन मेरा यूँहीं ख्वाबों ख्यालों में,
मगर सच है के मुझसे रात ही सहनी नहीं आती,

जो मेरे साथ रहते हैं वो चन्द अल्फ़ाज़ कहते हैं,
के शरारत कोई भी मुझमें कभी रहनी नहीं आती।।

राही अंजाना

मुलाकात

January 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिन और रात के बीच हुई मुलाकात समझनी होगी,
कितनी गहरी है ये बात ज़रा एक बार समझनी होगी,

शांत रहे तो जिसने भी चाहा चोट जमाकर के मारी,
पर एक दिन तो औजारों की आवाज़ समझनी होगी,

खेल खेलने से पहले शतरंजी बिसात समझनी होगी,
हाथी घोड़े पैदल की सारी खुराफ़ात समझनी होगी।।

राही अंजाना

ये ज़िन्दगी कैसी

January 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

परत दर परत यूँही खुलती सी नज़र आती है ज़िन्दगी,
उधेड़ती तो किसी को सिलती नज़र आती है ज़िन्दगी,

हालात बदलते ही नहीं ऐसा दौर भी आ जाता है कभी,
के जिस्म को काट भूख मिटाती नज़र आती है ज़िन्दगी,

दर्द जितना भी हो सहना खुद ही को तो पड़ता है जब,
चन्द सिक्कों की ख़ातिर बिकती नज़र आती है ज़िन्दगी।।

बदलती है करवटें दिन से लेकर रात के अँधेरे में इतनी,
सच में कितने किरदार निभाती नज़र आती है ज़िन्दगी।।

राही अंजाना

मकर संक्रांति

January 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मकर संक्रांति में जैसे ही ढल निकले,
सूरज चाचू उत्तरायण में चल निकले,

सोचा नहीं एक पल भी फिर देखो,
टिकाई नज़र आसमाँ पर हम नकले,

चढ़ा ली खुशबू रेवड़ी मूंगफली की ऐसे,
के सुबह के भूले सारे मानो कल निकले,

भर दिया जहन की ज़मी को ज़िद में अपनी,
के ख्वाबों में टकराये जो हमसे वो जल निकले।।

राही अंजाना

रूह

January 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ कर एक जिस्म को एक जिस्म में जाना होता है,
बस यही एक इस रूह का हर एक बार बहाना होता है,

रूकती नहीं बड़ी मशरूफ रहती है ज़िन्दगी सफ़र में,
कहते हैं के इसका तो न कोई और ठौर ठिकाना होता है,

बदलकर खुश रहती है ऐसे ही वो चेहरे ज़माने भर के,
मगर सच ही तो है इसका न कोई एक घराना होता है,

चार काँधों पर निकलती है फिर बदलती है रूप पुराना,
इंसा को तो बस उसे दो चार ही कदम टहलाना होता है।।

राही अंजाना

उम्मीदों की गाड़ी

January 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने काँधों पर अपनी ज़िन्दगी को उठाना पड़ा,
वक्त के पहिये से कदमों को अपने मिलाना पड़ा,

उलझने बहुत मिलीं दिल से दिमाग के रास्ते यूँ के,
खुद से ही खुद ही को कई बार में सुलझाना पड़ा,

सोंच का समन्दर कुछ गहरा इतना निकला राही,
के उम्मीदों की गाड़ी को लहरों पर चलाना पड़ा।।

राही अंजाना

असमन्जस

January 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

असमंजस इसमें बिल्कुल नहीं के बच्चा हूँ मैं,
बात ये है के ज़हन से अभी भी कच्चा हूँ मैं,

आ जाऊँ बाहर या माँ की कोख में रह जाऊँ,
सोच लूँ ज़रा एक बार के कितना सच्चा हूँ मैं,

बड़ा मुश्किल है यहाँ पैर जमाना जानता हूँ मैं.
मगर चाहता हूँ जान लूँ के कहाँ पर अच्छा हूँ मैं।।

राही अंजाना

आसमा

January 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़मी पर जब भी गिरूँ आसमां से उठाने आता है,
सोये हुए ख्वाबों को वो मेरे रोज़ जगाने आता है,

दिखता किसी को नहीं ढूंढते सब हैं ठिकाने उसके,
एक वो है जो राही को हर रस्ता दिखाने आता है,

वहीं खड़ा हो जाता हूँ जहाँ से कुछ नज़र आता नहीं मुझे,
हाथ उसका अँधेरे से मुझे रौशनी में दिखाने आता है।।

राही अंजाना

अंतर्मन

January 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामोश दिखने वाले अक्सर बहुत बोला करते हैं,
अपने ही अंतर्मन को वो हर दम टटोला करते हैं,

जिज्ञासा छिपती है पर चेहरे पर दिख जाती है,
कभी कभी जब मुख से वो चुप्पी तोला करते हैं,

सुनता नहीं कोई एक हद बांधी है सबने आगे,
पर कहते हैं कुछ राही से बेहतर बोला करते हैं॥

राही अंजाना

गरीबी

January 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गरीबी की हर शय को मात देने को बैठा हूँ,
मैं उम्र के इस पड़ाव को लात देने को बैठा हूँ,

मजबूत हैं मेरे काँधे कुछ इस कदर मेरे दोस्तों,
के मैं अपने सपनों को एक लम्बी रात देने को बैठा हूँ,

वजन बेशक उठाया है सर पर अपनी मजबूरी का मैंने,
मगर होंसले को अपनी सांसों की सौगात देने को बैठा हूँ।।

राही अंजाना

फुलवारी

December 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्तों की उधेड़ बुन में खुद को ही सिलना भूल गया,
सबसे मिलने की चाहत में खुद से मिलना भूल गया,

बचा नहीं कोई फूल खिले सब मेरी ही फुलवारी के,
एक मैं जाने कैसे देखो खुद ही खिलना भूल गया।।

राही अंजाना

दिलों के तार

December 27, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल जोड़ने वालों ने ही दिलों के तार काट दिए,
खिलौनों से खेलने वाले बच्चों के यार काट दिए,

ब मुश्किल ही बचे थे चन्द किस्से इस बचपन के,
सुना है उसके भी किसीने पन्ने दो चार काट दिए।।
राही अंजाना

ममता

December 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ की ममता का हिसाब कराना मुश्किल है,
दो और दो से ज्यूँ आठ बनाना मुश्किल है,

बिछी हुई है यूँ बिसात यहाँ मानो सम्बंधों की,
जिसमें अपनों पर ही चाल लगाना मुश्किल है,

इंसानों का इंसानों पर राज चलना मुश्किल है,
जानवरों मेंभी प्यारे एहसास छिपाना मुश्किल है।।

राही अंजाना

अंग

December 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझसे मेरा ही एक अभिन्न अंग छीन लिया गया,
मानो दिल से धड़कन का ही संग छीन लिया गया,

हाथ मलता ही रहा देखकर कुछ कर न सका मैं,
बेगुनाह मेरी आँखों से उनका हर रंग छीन लिया गया।।

अंजाना राही

खंजर

December 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

यहां हर कोई एक दूजे की कश्ती डुबाने को बैठा है,
जान बूझकर ही मासूम सी हस्ती मिटाने को बैठा है,

लत लगी है बस निकल जाऊँ किसी तरह सबसे आगे,
सोंच लेकर यही पीठ पीछे खंजर घुसाने को बैठा है,

मुँह लगाने की मनादि है नफरत इस कदर जान लें,
कमाल देखिये फिर भी सामने से हाथ मिलाने को बैठा है।।

राही अंजाना

अजब गजब

December 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत होती तो मिलने की चाहत भी अजब होती,

आँखों से ही आँखों को पिलाने की भी तलब होती,

मिलता नहीं किसी शहर में जब ठिकाना कोई कहीं,

ज़मी छोड़ के आसमाँ पर बिठाने की हिम्मत ग़जब होती।।

राही अंजाना

नव वर्ष आने को है

December 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

नव वर्ष आने को है,
कुछ भुलाने को है कुछ याद दिलाने को है,
सच कहूँ तो बहुत कुछ सिखाने को है,
छुप गई थीं जो बादल के पीछे कहीँ,
उन उम्मीदों से पर्दा हटाने को है,
नव वर्ष आने को है,
सपनों की हकीकत बताने को है,
नए रिश्तों के चेहरा दिखाने को है,
टूट गई थी कभी जो राहें कहीँ,
उन राहों पर पगडण्डी बनाने को है,
नव वर्ष आने को है,
उड़ने को काफी नहीं पंख देखो,
हौंसलो के घने पंख फैलाने को है,
बीती बातों का आँगन भुलाने को है,
फिर नई आशा मन में जगाने को है,
नव वर्ष आने को है।।
राही (अंजाना)
नव वर्ष की सभी को अग्रिम शुभकामनाएं।

खामोश किसान

December 18, 2018 in Poetry on Picture Contest

जवाब देने में हाज़िरजवाब बताये गए हम,
के अपने ही घर में खामोश कराये गए हम,

ज़िन्दगी बनाने को कितनी ही जगाये गए हम,
के अपनी ही चन्द सांसों से दूर कराये गये हम,

हर मौसम से क्यों सामने से भिड़ाये गये हम,
के सूखी धरती पे ही सूली पर चढ़ाये गए हम।।
राही (अंजाना)

छोड़ खिड़की दरवाजे अब मुँह पर ताले लगते हैं

December 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ खिड़की दरवाजे अब मुँह पर ताले लगते हैं,
जहाँ तहाँ भी देखो अब तुम चुप्पी के गाले लगते हैं,

कदम कदम साथ निभाने के अक्सर वादे करते थे,
आज सभी के ही मानो जैसे पाँव में छाले लगते हैं,

कैद हुए हैं शब्द हजारों सब अपनी ही बस्ती में,
होठों पर ही देखो अब तो मकड़ी के जाले लगते हैं।।

राही अंजाना

मैं जितना सुलझता गया

December 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं जितना सुलझता गया वो उतनी उलझती गई,
मेरे दिल में उतरती गई आँखों से छलकती गई,

डोर इतनी मजबूत बंधी उसकी जुल्फों से जानो,
के “राही” की राहें जैसे खुद ब खुद सँवरती गई।।

राही अंजाना

बेटियाँ

December 12, 2018 in Poetry on Picture Contest

पैदा होने से पहले मिटा दी जाएँगी बेटियाँ,
बिन कुछ पूछे ही सुला दी जाएँगी बेटियाँ,

गर समय रहते नहीं बचाई जाएँगी बेटियाँ,
तो भूख लगने पर रोटी कैसे बनाएंगी बेटियाँ,

जहाँ कहते हैं कन्धे से कन्धा मिलायेंगी बेटियाँ,
सोंच रखते हैं एक दिन बोझ बन जाएँगी बेटियाँ,

चुपचाप गर यूँही कोख में छिपा दी जाएँगी बेटियाँ,
तो भला इस दुनियां को कैसे खूबसूरत बनायेंगी बेटियाँ॥

राही अंजाना

एहसास

December 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी तस्वीर बनाने में जब भी जुट जाया करता हूँ,
खुद ब खुद ही जाना तुझसे जुड़ जाया करता हूँ,

रंगों की समझ रखता नहीं हूँ शायद यही सोचकर,
एहसासों का ही अंग तुझपे जड़ जाया करता हूँ,

पहचान नहीं कर पाती जब तुम अपनी खुद से,
चलाकर अपनी ही तुझसे अड़ जाया करता हूँ।।

राही अंजाना

माटी

December 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिस्म ऐ माटी में इस रूह को डालता कौन है,
बनाकर इन पुतलों को ज़मी पर पालता कौन है,

मिलाकर हवा पानी आसमाँ आग पृथ्वी को,
वक्त वक्त पर ख़ुशी और गम में ढालता कौन हैं,

तमाम नस्ल के रंगों में रहगुजर उस “राही” को,
जानने की चाहत में अब यूँही खंगालता कौन है।।

राही अंजाना

जागरूक मतदाता

December 2, 2018 in Poetry on Picture Contest

सोंच समझकर वोट दें तो बन जायेगी तकदीर,
चलो निकाले सोच समझ कर ऐसी कोई तदबीर,

विश्व पटल पर छप जाये अपने देश की तस्वीर,
जागरूक करे जो हर जन को हो ऐसी कोई तरकीब,

लोकतन्त्र समझे नहीं और बहाते जो झूठे नीर,
जनता के मतदान से ही जो बन जाते बलवीर,

हर मतदाता का मान करे जो सरकार चलाये वीर,
चलो लगादे हिम्मत कर अब कोई ऐसी तरतीब।।

राही अंजाना

निगाहे

December 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

निगाहें तुझ ही पर टिकाये रहता हूँ,
मैं यूँही खुदको तुझमें गुमाये रहता हूँ,

तुझको समझने की जिद ठानी हैं ऐसी,
के हर दम मैं गर्दन अपनी झुकाये रहता हूँ।।

राही अंजाना

ख्याल

November 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने दिमाग के कुछ खयालों को उड़ जाने दिया,
मैंने अपने दिल को इस दिमाग से लड़ जाने दिया,

कश्मकश बहुत देर चली फिर हार कर बैठ गया,
मैंने अपने एहसासों को फिर यूँही मुड़ जाने दिया,

कहते ही रहे हर एक बात पर सब अपनी-अपनी,
मैंने सुना मगर खुद को ही खुद से जुड़ जाने दिया,

फर्क नज़र से नज़रिये के बीच मिटाने की खातिर,
मैंने ख्वाबों को ही खयालातों से भिड़ जाने दिया।।

राही अंजाना

जाम

November 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब कुछ सहना है मगर तुम्हें अपना नाम नहीं लेना है,
आदमी तभी हो तुम जब तुम्हें कोई ईनाम नहीं लेना है,

रखना है रोककर तुम्हें अपने आँखों के आसुओं को बेशक,
अपनी मेहनत का मगर कभी तुम्हें कोई दाम नहीं लेना है,

जोड़कर हाथों को हर मुराद पूरी ही करनी होगी,
सुन लो मगर तुम्हें अपनी ज़ुबाँ से कोई काम नहीं लेना है,

रहना है रिश्तों के हर बन्धन में बंधकर ही ‘राही’ तुमको,
सब छोड़ो मगर होटों पर अब तुम्हें कोई जाम नहीं लेना है।।

राही अंजाना

समझ

November 27, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी सांचे में भी ढल नहीं पाया हूँ मैं,
शायद ठीक से ही बन नहीं पाया हूँ मैं,

वक्त बेशक ही लगा है मुझको बनाने में,
पर सच है खुद को बदल नहीं पाया हूँ मैं,

तोड़ा-जोड़ा भी गया हूँ कई बार ऊपर से,
कभी भीतर से मगर संभल नहीं पाया हूँ मैं,

मैं रिश्तों से हूँ या रिश्ते मुझसे हैं कायम,
उलझन ये है के कुछ समझ नहीं पाया हूँ मैं॥
राही (अंजाना)

माँ

November 27, 2018 in Poetry on Picture Contest, हिन्दी-उर्दू कविता

देखा किसी ने नहीं है मगर बहुत बड़ा बताते हैं लोग,
कुछ लोग उसे ईश्वर तो कुछ उसे खुदा बताते हैं लोग,

पता किसी के पास नहीं है मगर रस्ता सभी बताते हैं लोग,
कुछ लोग उसे मन्दिर तो कुछ उसे मस्ज़िद बताते हैं लोग,

ढूढ़ते फिरते हैं जिसे हम यहां वहां भटकते दर बदर,
तो कुछ ऐसे भी हैं जो उसे तेरी मेरी माँ बताते हैं लोग।।

राही (अंजाना)

(Winner of ‘Poetry on Picture’ contest)

ऊँगली

November 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब एन्टिना कोई घुमाता नहीं,
छत पर यूँहीं कोई जाता नहीं,
बैठे रहता हर एक यहां फैल कर,
अब रिमोट से ऊँगली हटाता नहीं।।
राही (अंजाना)

धुँआ

November 21, 2018 in Poetry on Picture Contest

पूरे शहर को इस काले धुंए की आग़ोश में जाना पड़ा,
क्यों इस ज़मी की छाती पर फैक्ट्रियों को लगाना पड़ा,

चन्द सपनों को अपने सजाने की इस चाहत में भला,
क्यों उस आसमाँ की आँखों को भी यूँ रुलाना पड़ा,

अमीरों की अमीरी के इन बड़े कारखानों में घुसकर,
क्यों हम छोटे गरीबों के जिस्मों को ही यूँ हर्जाना पड़ा॥

राही (अंजाना)

इज्जत

November 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत कुछ कहते कहते रुक जाया करते हैं,
बात ये है के हम इज्जत कर जाया करते हैं,

रखते हैं अल्फ़ाज़ों का समन्दर अंदर अपने,
और ख़ामोशी से दिल में उतर जाया करते हैं,

प्रश्न ये बिल्कुल नहीं के उत्तर मिलता नहीं हमें,
जंग ये है के हम जवाबों में उलझ जाया करते हैं,

हाथों की लकीरों पर “राही” हम चला नहीं करते,
तो क्या हुआ मन्ज़िल के मुहाने पर तो जाया करते हैं।।
राही (अंजाना)

गुंजाईश

November 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी आँखों में ही खुद को निहारा करता है,
हर रोज़ ही वो चेहरा अपना संवारा करता है,

आईने के सही मायने उसे समझ ही नहीं आते,
कहता कुछ नहीं बस ज़हन में उतारा करता है,

गुंजाइय दूर तलक कहीं सच है नज़र नहीं आती,
के वो किसी और के भी मुख को निखारा करता है।।

राही (अंजाना)

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