सर्दी नहीं जाने वाली

November 15, 2018 in Poetry on Picture Contest


बन्द मुट्ठी में हैं मगर कैद में नहीं आने वाली,
हाथों की लकीरों की नर्मी नहीं जाने वाली,

आलम सर्द है मेरे ज़हन का इस कदर क्या कहूँ,
के ये बुढ़ापे की गर्मी है यूँही नहीं जाने वाली,

जमाकर बैठा हूँ आज मैं भी चौकड़ी यारों के साथ,
अब अकेले रहने से तो ये सर्दी नहीं जाने वाली।।

राही (अंजाना)

निगरानी

November 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्थरों की नगरानी में शीशे के दिल रख दिए,
इस नज़्म ऐ जवानी में ये किसने कदम रख दिए,

मशहूर अँधेरे बाज़ार में जो मोल लग चुका था मेरा,
इस ज़ख्म ऐ निशानी में ये किसने मरहम रख दिए,

आहिस्ता-आहिस्ता किसी ख़्वाब की आगोश में जाने से पहले,
इस जश्न ऐ कहानी में ये किसने भरम रख दिए,

दवा और दुआ के दर छोड़ कर तेरी राह में “राही”,
इस जिस्म ऐ रूहानी में ये फूल किसने नरम रख दिए॥
राही (अंजाना)

राही (अंजाना)

तरक़ीब

November 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तरकीब कोई और ढूंढो ऐसे तो नज़र नहीं आने वाला,
छुप कर बैठा है जो अंदर वो तो बाहर नहीं आने वाला,

गहरा समन्दर है बहुत मन के भीतर हम सबके कोई,
बिना डूबे तो देखो अब कोई तैर कर नहीं आने वाला,

फांसला है मीलों का इस ज़मी से उस आसमाँ के जानिब,
चलो अब तुम्हीं साथ मेरे बीच में कोई नहीं आने वाला,

आँखों ही आँखों में हो जाने दो दिल की बातों को सारी,
ज़ुबाँ पर अल्फ़ाज़ों का मन्ज़र अब कोई नहीं आने वाला।।
राही (अंजाना)

ताला

November 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल के मेरे ताले की अजीज़ चाबी ले गया कोई,
उम्र भर के लिए जैसे बेताबी दे गया कोई,

शरारत कुछ ऐसी मुझसे छिप कर गया कोई,
के अच्छे खासे दिल को खराबी दे गया कोई,

महफूज़ रखे थे जो मन के दरवाजे के भीतर मैंने,
उन एहसासों के दामन पर रंग गुलाबी दे गया कोई,

उम्मीदों की खिड़कियों की गरारी घिसने से पहले ही,
जबरन ही मेरी नज़रों को धार नवाबी दे गया कोई।।

राही (अंजाना)

कम देखा है

November 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जितना भी देखा है मनो उतना ही कम देख है,
मैंने इस दुनियाँ की आँखों में कितना कम देखा है,

सड़कों पर पनपती इन बच्चों की कहानी से,
किरदार जब भी देखा अपना मैंने विषम देखा है,

बेबस रिहाई की उम्मीद में ज़िन्दगी को ढूंढते अक्सर,
लोगों की आँखों को होते हुए मैंने नम देखा है।।
राही (अंजाना)

फुलझड़ियाँ

November 4, 2018 in Poetry on Picture Contest

 

आसमाँ छोड़ जब ज़मी पर उतरने लगती हैं फुलझड़ियाँ,
हाथों में सबके सितारों सी चमकने लगती हैं फुलझड़ियाँ

दामन अँधेरे का छोड़ कर एक दिन ऐसा भी आता है देखो,
जब रौशनी में आकर खुद पर अकड़ने लगती हैं फुलझड़ियाँ,

अमीरी गरीबी के इस भरम को मिटाने हर दीवाली पर,
दुनियाँ के हर कोने में बिजली सी कड़कने लगती हैं फुलझड़ियाँ।।

– राही (अंजाना)

अंदाज़

October 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथों की लकीरों की आवाज़ सुनानी होगी,
अब दिल में छुपी जो हर बात बतानी होगी,

खामोश रहने से कुछ मिलता नहीं सफ़र में,
अब खुद से ही खुद को पुकार लगानी होगी,

अंदाज़ यूँही तेरा समझ जाये वो महफ़िल ये नहीं,
मानो “राही” यहाँ कोई तो और तरकीब लगानी होगी,

बन्द मुट्ठी में तो नज़र किसी को आने नहीं वाली,
तो खोल कर ही किस्मत सबको दिखानी होगी।।

राही (अंजाना)

मोहब्बत

October 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुझे तराशकर फिर कुछ और मैं तराश न सका,
तेरे चेहरे के सिवा आँखों में मैं कुछ उतार न सका,

बड़ी मशक्कत लगी मुझको तुझको बनाने में मगर,
तेरी रगों में मोहब्बत के रंग मैं उतार न सका।।
राही (अंजाना)

मोहब्बत

October 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुझे तराशकर फिर कुछ और मैं तराश न सका,
तेरे चेहरे के सिवा आँखों में मैं कुछ उतार न सका,

बड़ी मशक्कत लगी मुझको तुझको बनाने में मगर,
तेरी रगों में मोहब्बत के रंग मैं उतार न सका।।
राही (अंजाना)

कलम

October 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहे बिक जाएँ मेरी सारी कविताएं पर,
मैं अपनी कलम नहीं बेचूंगा,

चाहे लगा लो मुझपर कितने भी प्रतिबन्ध पर,
मैं अपने बढ़ते हुए कदम नहीं रोकूँगा,

बिक ते हैं तो बिक जाएँ तन किसी के भी,
पर मैं अपनी सर ज़मी से अपना सम्बन्ध नहीं तोड़ूंगा,

भरी पड़ी है अहम और भ्र्म से ये दुनियां तो रहे ऐसे ही,
पर मैं “राही” अपनी अविरल राह नहीं छोड़ूगा,

बना कर हर रोज तोड़ देते हैं लोग अक्सर रिश्ते इस ज़माने में,
पर मैं खुद से ही बनाई अपनी पहचान से अनुबन्ध नहीं तोड़ूंगा,

कहते हैं अक्सर पागल तो कहे लिखने वालों को लोग, पर मैं अपना लेखन नहीं छोडूगा,

चाहे बिक जाएँ मेरी सारी कविताएं पर,
मैं अपनी कलम नहीं बेचूंगा,
राही (अंजाना)

फकीर

October 19, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़माने के आईने में चेहरे सभी अजीब दिखते हैं,
सच से विलग मानों जैसे सभी बेतरतीब दिखते हैं,

जब भी खुद को खुद ही में ढूंढना चाहते हैं हम,
अपने ही चेहरे पर गढे कई चेहरे करीब दिखते हैं,

ये कैसी तालीम ऐ एतबार है इस बेशर्म ज़माने की,
जहाँ मज़हब के नाम पर आपस में बटें हम गरीब दिखते हैं,

फरिश्तों से भरी इस मोहब्बत की सरज़मी पर अक्सर,
क्यों आपस में ही उलझे हुए हम पैदाइशी फ़कीर दिखते हैं।।

राही (अंजाना)

बापू

October 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनके एक आवाहन पर सबने अपने हाथ उठाये थे,
कदम-कदम पर अंग्रेजी शासन के छक्के साथ छुड़ाए थे,

जिनके कहने पर अस्त्र वस्त्र सब मिलकर साथ जलाये थे,
सत्य-अहिंसा के अचूक तब शस्त्र सशक्त उठाये थे,

सच की ताकत के आगे जब तोपो के रंग उड़ाए थे,
गांधी मशाल ले हाथ सभी ने विदेशी दूर भगाए थे,

सत्याग्रह की आग लिए जब मौन रक्त बहाये थे,
मानवता और अधिकारों का खुल कर बोध कराये थे,

डांडी यात्रा में गांधी जी जब समुद्र किनारे आये थे,
जाति धर्म के तोड़ के बन्धन जन पीछे-पीछे आये थे,

पोरबन्दर में जन्म लिया पर हर मनमन्दर पे छाए थे,
दुबले पतले थे पर बापू देखो वीर कहाये थे,

ब्रिटिश राज को ध्वस्त किये और आजादी के रंग दिलाये थे,
यूँही भारत माँ के आँचल पर बापू ने पुष्प चढ़ाये थे।।

गांधी

October 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनके एक आवाहन पर सबने अपने हाथ उठाये थे,
कदम-कदम पर अंग्रेजी शासन के छक्के साथ छुड़ाए थे,

जिनके कहने पर अस्त्र वस्त्र सब मिलकर साथ जलाये थे,
सत्य-अहिंसा के अचूक तब शस्त्र सशक्त उठाये थे,

सच की ताकत के आगे जब तोपो के रंग उड़ाए थे,
गांधी मशाल ले हाथ सभी ने विदेशी दूर भगाए थे,

सत्याग्रह की आग लिए जब मौन रक्त बहाये थे,
मानवता और अधिकारों का खुल कर बोध कराये थे,

डांडी यात्रा में गांधी जी जब समुद्र किनारे आये थे,
जाति धर्म के तोड़ के बन्धन जन पीछे-पीछे आये थे,

पोरबन्दर में जन्म लिया पर हर मनमन्दर पे छाए थे,
दुबले पतले थे पर बापू देखो वीर कहाये थे,

ब्रिटिश राज को ध्वस्त किये और आजादी के रंग दिलाये थे,
यूँही भारत माँ के आँचल पर बापू ने पुष्प चढ़ाये थे।।
राही (अंजाना)

साहिर

October 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

साहिर तेरी आँखों का जो मुझपर चल गया,
खोटा सिक्का था मैं मगर फिर भी चल गया,

ज़ुबाँ होकर भी लोग कुछ कह न सके तुझसे,
और मैं ख़ामोश होकर भी तेरे साथ चल गया।।

समन्दर गहरा था बेशक मगर डुबो न सका,
के तेरे इश्क ऐ दरिया में जो ‘राही’ चल गया,

दारु के नशे में जब सम्भला न गया मुझसे,
छोड़ कर चप्पल मैं घर पैदल ही चल गया।।
राही (अंजाना)

मोहब्बत

September 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत के ख्वाब ने ये कैसा इत्तेफ़ाक कर दिया,

दिल्लगी ने धड़कन को ही दिल के खिलाफ़ कर दिया,

अच्छी ख़ासी तो चल रही थी ज़िन्दगी ‘राही’ अपनी,

फिर क्या हुआ जो इस नशे ने तुम्हें ख़ाक कर दिया।।

राही (अंजाना)

मिसाल

September 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खिलौना समझ कर ज़िन्दगी से देखो खेलने लगे,
चुप रहने वाले भी देखो ज़रा कितना बोलने लगे,
चौपाल लगाते दिख जाते थे गाँव में जहाँ तहाँ जो,
आज साथ रहने वाले भी देखो अकेले डोलने लगे,

मिसाल बन जाते थे जब अजनबी दो मिल जाते थे,
अब सगे सम्बंधों में भी लोग देखो रिश्ते तोलने लगे,
समय लगा बहुत जद्दोजहद लगी मनाने में जिनको,
वो खुद ब खुद आकर आज दिल के राज़ खोलने लगे।।

राही (अंजाना)

निगरानी

September 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद तारे आसमाँ सब की निगरानी करना,

जब तक मैं न आऊँ इतनी मेहरबानी करना,

जिस्म ऐ मोहब्बत पर जब तक रूह का रंग न चढ़े,

गुज़ारिश ये के तुम इस कागज़ी पैहरन की क़ुरबानी करना,

जो मिलूँ न यूँही हकीकत के समन्दर में मैं कहीं,

तो सुनो ख्वाबों के मुहाने पर आकर मेरी मेज़बानी करना।।

राही (अंजाना)

माँ

September 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बनाकर खुद से खुद पर ही हैरान हो गया,

मेरी माँ की सूरत के आगे वो बेजान हो गया,

भेज दिया जिस पल मेरे घर में माँ को उसने,

उसका खुद का घर जैसे मानो वीरान हो गया,

आसमाँ पर जब तब नज़र चली जाती थी कभी,

आज कदमों में ही माँ के मेरा आसमान हो गया।।

राही (अंजाना)

माँ

September 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बनाकर खुद से खुद पर ही हैरान हो गया,

मेरी माँ की सूरत के आगे वो बेजान हो गया,

भेज दिया जिस पल मेरे घर में माँ को उसने,

उसका खुद का घर जैसे मानो वीरान हो गया,

आसमाँ पर जब तब नज़र चली जाती थी कभी,

आज कदमों में ही माँ के मेरा आसमान हो गया।।

राही (अंजाना)

चूड़ियाँ

September 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेचकर चूड़ियाँ अपना घर चलाया करती है,

चेहरे पर गम छुपाये कैसे मुस्कराया करती है,

रहती तो है रंग बिरंगे काँच के टुकड़ों के संग,

मगर बेरंग जीवन को यूँही बहलाया करती है।।
राही (अंजाना)

मेरी हिंदी

September 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

दिल से दिल तक अपना रस्ता बना लेती है,
एक हिंदी है जो सबको अपना बना लेती है।।
राही (अंजाना)
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।

चेहरा तेरा

September 12, 2018 in शेर-ओ-शायरी

हजारों पहरों के बीच भी चेहरा तेरा देख लेता हूँ,
मेरी आँखों में तुझको मैं इतना गहरा देख लेता हूँ।।
राही (अंजाना)

साज़

September 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

टूट गई साँसों की माला जैसे कोई साज,
सुनी नहीं किसी ने मेरे दिल की वो आवाज़,
बन्द हुए जब अंत समय में आँखों के मेरे काज,
उड़ गए मेरे पंख पखेरू जैसे कोई बाज़।।
राही (अंजाना)

रिश्ते

September 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्ते रूह में अब बंधा नहीं करते,
वो हमसे हम उनसे कुछ कहा नहीं करते,
मान लिया है मैंने के बस एक जिस्म हूँ मैं,
और टूटे दिल को हम कभी सिया नहीं करते।।
राही (अंजाना)

किसी साज़ की आवाज़

September 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

किसी साज़ की आवाज़ ने मेरे दिल को छुआ ही नहीं कबसे,
तुम्हारी साँसों के समन्दर की आवाज़ में मैं डूब गया जबसे।।
– राही (अंजाना)

चाँद और सितारों की चाँदनी को भूलाकर ढूंढते हैं

September 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद और सितारों की चाँदनी को भूलाकर ढूंढते हैं,
चलो आज सब जुगनू की रौशनी के सहारे ढूंढते हैं,

हुए बहुत दिन गहरे समन्दर की बाँहों में झूलते,
चलो आज मिलकर हम सब उथले किनारे ढूंढते हैं,

जिंदगी के सफ़र में ‘राही’ डूबने से बचना है अगर,
तो चलो आओ सब छोड़ कर ज्ञान के शिकारे ढूंढते हैं।।
राही (अंजाना)

राणा प्रताप का रक्त और हम कुंभा की कुर्बानी है

September 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

राणा प्रताप का रक्त और हम कुंभा की कुर्बानी है
हम है गीता की कृष्ण ध्वनि निर्मल गंगाजल पानी है
उबल रहा है बीर शिवा का शोणित निज भुजदंण्डो मे
हम हाड़ी की बलिदान कथा ,झाँसी की अमर कहानी है
हम वेद ऋचाओं का गायन , हम ही पुराण की वानी है
हम है धर्म ध्वजा धरती के , हम ही घाटी कल्यानी है
संपूर्ण विश्व कल्याण हेतु , हम ही अपार जल सिंधु है
है गर्व हमे हम हिंदू है , है गर्व हमे हम हिंदू है

उन्हीं की अदालत है, उन्हीं के वकील सारे

September 5, 2018 in शेर-ओ-शायरी

उन्हीं की अदालत है, उन्हीं के वकील सारे,
अब बेगुनाही के सबूत मेरे सब उन्हीं के हाथ हमारे।।
– राही (अनजाना)

जिस्म में शामिल रूह का आज खुलासा देखिये

September 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिस्म में शामिल रूह का आज खुलासा देखिये,
खुद ही इस भीड़ में घुस कर आप तमाशा देखिये,

बदल सकता है तस्वीर जो इस सारे ज़माने की,
उसी युवा के चेहरे पे आई आज हताशा देखिये,

हर दिन लुट रही किसी कटी पतंग सी जो स्त्री,
उसके कोमल से मन पर छाया गहरा कुहासा देखिये,

बहला रहे हैं सपने बड़े मगर झूठे दिखाकर हमको,
कुर्सी पर बैठे अश्लील नेताओं की आप भाषा देखिये।।
राही (अंजाना)

To get the altitude

September 5, 2018 in English Poetry

To get the altitude,
Its vital to leave the attitude,
To get rid off Solitude,
Its vital to be with multitude,
To get the gratitude,
Its vital to have fortitude,
To get the amplitude
Its vital to have rectitude.

छोटे-छोटे से दिखते हैं बड़े मासूम लगते हैं

September 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटे-छोटे से दिखते हैं बड़े मासूम लगते हैं,
मेरे दिल के जो टुकड़े हैं बड़े बखूब दिखते हैं,

बमुश्किल जोड़ कर रखता हूँ मैं इनको अमानत हैं,
मेरे महबूब की आहट में ये तो फानूस  दिखते हैं।।

– राही (अंजाना)

दिल को धड़कन की आवाज़ जब सुनाई नहीं देती

September 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल को धड़कन की आवाज़ जब सुनाई नहीं देती,

आँखों को रौशनी की जब कोई रात दिखाई नहीं देती,

उलझे न रहें गर रिश्ते पैसों की चरखी में लिपट कर,

तो अच्छे व्यक्तित्व को ये दुनियाँ कोई बुराई नहीं देती।।

– राही (अंजाना)

निकल कर ख़्वाबों से बाहर मेरे ख्वाब आना चाहते हैं

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

निकल कर ख़्वाबों से बाहर मेरे ख्वाब आना चाहते हैं,

हकीकत के आईने में मानो चेहरा आप लाना चाहते हैं,

रहे हों जो अँधेरे की बाहों में कैद बेसुध मुसलसल,

आज रौशनी के समन्दर में वो खुले आम आना चाहते हैं।।

– राही (अंजाना)

कलाई पर मौली और माथे पर रोली लगाया करती हैं

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कलाई पर मौली और माथे पर रोली लगाया करती हैं,

बहनें छोटी हैं मेरी मगर बातें बड़ी ही बनाया करती हैं,

चुप रहती हैं कभी मुख से कुछ भी माँगा नहीं करती हैं,

के बांधकर राखी हर बार वो मेरी आयु बढ़ाया करती हैं।।

राही (अंजाना)

मस्त हवाओं के हवाले से मैं तेरा पैगाम लेता हूँ

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मस्त हवाओं के हवाले से मैं तेरा पैगाम लेता हूँ,
जब दिल चाहे मेरा तुझसे मैं तेरा सलाम लेता हूँ,
बसा लेता हूँ तेरा चेहरा मेरी आँखों में कुछ इस तरह,
के फिर इन आँखों से मैं अपनी न कोई और काम लेता हूँ।।

– राही(अंजाना)

Tere Ghar Ki Galiyon Me

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

निशानी ऊँगली पर पहन कर मेरी छुपाते हुए

September 4, 2018 in शेर-ओ-शायरी

निशानी ऊँगली पर पहन कर मेरी छुपाते हुए,
वक्त-वक्त पर वक्त का गिनना तेरा अच्छा लगा,

कहा बहुत कुछ ख़्वाबों में हर रात तुमने मुझसे,
और मुझे तेरा मुझसे नज़रें चुराना अच्छा लगा।।

– राही (अंजाना)

क्यों गरीबी की चादर में पैरों को फैलाना पड़ता है

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों गरीबी की चादर में पैरों को फैलाना पड़ता है,

क्यों चन्द ख़्वाबों को इस दिल में दबाना पड़ता है,

खेल-खिलौने गुड़िया गुड्डे और वो रेलगाड़ी छोड़कर,

क्यों रात दिन इस बचपन को रिक्शा चलाना पड़ता है।।
राही (अंजाना)

सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है

August 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है,

तुमसे मिलकर वैसे मेरी तबीयत भारी हो जाती है,

बहुत हिम्मत जुटाकर भी तुमसे नज़रें मिला नहीं पता,

क्यों देखकर मेरी धड़कन तुमपे वारी हो जाती है।।

– राही (अंजाना)

एक नहीं सी जान पर क्यों पहरे हजार रखते हैं

August 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक नहीं सी जान पर क्यों पहरे हजार रखते हैं,

पिंजरे में क्यों हम उसका सारा सामन रखते हैं,

छिपाकर क्यों घूमते हैं चेहरे पर चेहरे लगाये,

क्यों आईने सी साफ नहीं हम अपनी पहचान रखते हैं,

बेटियों के दबाकर जो नाम गुमनाम रखते हैं,

घूमते हैं खुले आम पर न अपना कोई मुकाम रखते हैं,

लूट लेते हैं सहज ही सर से दुपट्टा किसी पतंग सा,

भला कैसे जान कर भी लोग कानून को अनजान रखते हैं,

झूठी है ज्ञान की बातें सारी जो सरेआम होती हैं अक्सर,

क्या सच ये नहीं के बेटियों पर हम आज भी कमान रखते हैं।।

– राही (अंजाना)

रवि’ रंग मोहताज नहीं किसी परिचय के अनुभवों का

August 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रवि’ रंग मोहताज नहीं किसी परिचय के अनुभवों का,

स्वतंत्र मन्त्र है ये तो सबके जीवन के अनुदानों का,

विषय नहीं कोई भौगोलिक, ये तो है ज्ञान व्यव्हारों का,

जीवन हो सुलझा हर पल जैसे, न उलझे किसी सवालों सा।।

राही (अंजाना)

फूलों से फूल कर अक्सर कुप्पा हो जाते हैं

August 22, 2018 in शेर-ओ-शायरी

फूलों से फूल कर अक्सर कुप्पा हो जाते हैं,
चन्द शब्द मेरे तुमसे जब चुप्पा हो जाते हैं।।
– राही (अंजाना)

बेमोल थे जो झूठे बाज़ार में

August 22, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बेमोल थे जो झूठे बाज़ार में, वो सारे साहूकार बिक गए,
मैं अनमोल ही था सच है,जो मेरा कोई मोल न लगा।।
– राही (अंजाना)

शिक्षक

August 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन से ही शिक्षक के हाथों में झूला-झूला करते हैं,

ज्ञान का पहला अक्षर हम बच्चे माँ से ही सीखा करते हैं,

प्रथम चरण में मात-पिता के चरणों को चूमा करते हैं,

दूजे पल हम पढ़ने- लिखने का वादा शिक्षक को करते हैं,

विद्यालय के आँगन में शिक्षक हमसे जो अनुभव साझा करते हैं,

उतर समाज सागर में हम बच्चे फिर कदमों को साधा करते हैं,

एक छोटी सी चींटी से भी शिक्षक हमको धैर्य सिखाया करते हैं,

सही मार्ग हम बच्चों को अक्सर शिक्षक ही दिखाया करते हैं,

धर्म जाति के भेद को मन से शिक्षक ही मिटाया करते हैं,

देश-प्रेम संग गुरु सम्मान भाव शिक्षक ही जगाया करते हैं,

जीवन के हर क्षण को शिक्षक शिक्षा को अर्पण करते हैं,

इसी तरह हम अज्ञानी बच्चों को शिक्षक सदज्ञान कराया करते हैं।।

राही (अंजाना)

सरहद के मौसमों में जो बेरंगा हो जाता है

August 17, 2018 in शेर-ओ-शायरी

सरहद के मौसमों में जो बेरंगा हो जाता है,
तिरंगे से लिपट कर एक दिन वो तिरंगा हो जाता है।।
राही (अंजाना)

ये धरती है वीर बहादुर भगत राज गुरु लालों की

August 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये धरती है वीर बहादुर भगत राज गुरु लालों की,

आजादी की जंग में थे शामिल दीवाने दिलवालों की,

एक माँ से दूर रहकर एक माँ का आँचल रँगने वालों की,

हर मौसम में जो डटे रहे उन चौड़ी छाती वालों की,

सरहद पर बेरंग हुए जो तिरंगे की आन बचाने वालों की,

अंग्रेजी शासन से भारत को मुक्त करने वालों की,

ये धरती है माथे से माटी का तिलक लगाने वालों की,

अपने होंसले के आगे हिम पर्वत को बोना करने वालों की,

ये धरती है………..

राही (अंजाना)

मृत मेरा शरीर है, मैं आज भी मरा नहीं

August 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मृत मेरा शरीर है, मैं आज भी मरा नहीं,

अटल जिंदगी से एक पल, मैं कभी डिगा नहीं,

मौन मेरे नैन हैं पर शब्द कोई हिला नहीं,

लौट कर आऊँगा मैं ‘अटल’आज भी डरा नहीं॥

राही (अंजाना)

आजादी

August 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये धरती है वीर बहादुर भगत राज गुरु लालों की,

आजादी की जंग में थे शामिल दीवाने दिलवालों की,

एक माँ से दूर रहकर एक माँ का आँचल रँगने वालों की,

हर मौसम में जो डटे रहे उन चौड़ी छाती वालों की,

सरहद पर बेरंग हुए जो तिरंगे की आन बचाने वालों की,

अंग्रेजी शासन से भारत को मुक्त करने वालों की,

ये धरती है माथे से माटी का तिलक लगाने वालों की,

अपने होंसले के आगे हिम पर्वत को बोना करने वालों की,

ये धरती है………..

राही (अंजाना)

बातें बड़ी बनाने लगे, हम शहर में पाँव जमाने लगे

August 12, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बातें बड़ी बनाने लगे, हम शहर में पाँव जमाने लगे,
दिन में सोया करते थे, हम रातों को साथ जगाने लगे।।
राही (अंजाना)

बड़ी सरलता से वो यूँ अपने बाल संवारा करती है

August 12, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बड़ी सरलता से वो यूँ अपने बाल संवारा करती है,
चोटी की हर गुथ में वो मेरे गम बुहारा करती है।।
राही (अंजाना)

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