कैसी ये ज़िन्दगी

August 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर एक कश के साथ धुंए में अपनी ज़िन्दगी उड़ाते हैं,
देखो आजकल के मनचले कैसे अपने कदम भटकाते हैं,

पाते हैं कितने ही संस्कार अपने घरों से मगर,

हर सिगरट के साथ वो रोज उनका अंतिम संस्कार कर आते हैं,

जिस दिन हो जाती हैं खत्म उनकी ज़िन्दगी की साँसे,

वही सिगरट की राख वो अपनी चिता में पाते हैं॥

राही (अंजाना)

बूढ़ा

August 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनको ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया,

जिनको देकर सहारा आगे बढ़ना सिखाया,

वो सब आज हाथ छुड़ाने लगे,

देखो बूढ़ा कह कर वो सताने लगे,

जिनको अपना बनाया वो सपना था मेरा,

कह कर आज मुझको जगाने लगे,

मैं भी ज़िद पर अड़ा हूँ, देखो कैसे खड़ा हूँ,

बदलता है वक्त देखो ठहरता नहीं है,

जो बोता है हर शय वो काटता वही है,

जो बचपन है बूढ़ा भी होता सही है॥

राही (अंजाना)

तू सागर मैं किनारा

August 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू समन्दर मैं तेरा किनारा बनूं,

तू जो बिखर जाए तेरा सहारा बनूँ,

मुझसे टकराये तू,
मुझमे मिल जाए तू,

तुझमे बस जाऊं मैं,
मुझमे बस जाए तू,

तू समन्दर मैं तेरा….

ओ समन्दर तू मुझसे यूँ रूठा ना कर,

मुझसे मिलकर तू मुझको यूँ छोड़ा ना कर,

है तेरे बिन सूना मेरा आँगन सुनो,

ऐ समन्दर तुम आकर के खेला करो,

ये जो रिश्ता है मिलकर बिछड़ने का तुमसे,

हो सके तो यूँही निभाने का वादा करो,

तू समन्दर मैं तेरा किनारा बनूं,

तू जो बिखर जाए तेरा सहारा बनूं॥

राही (अंजाना)

लहर

August 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

किनारे पर भी रहूँ तो लहर डुबाने को आ जाती है,

बीच समन्दर में जाने का हौंसला हर बार तोड़ जाती है,

दिखाने को बढ़ता हूँ जब भी तैरने का हुनर,

समन्दर की फिर एक लहर मुझे पीछे हटा जाती है,

अनजान है वो लहर एक बात से फिर भी मगर देखो,
के वो खुद ही किनारे से टकराकर फिर लौट के आना मुझे सिखा जाती है॥

राही (अंजाना)

सलीका

August 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना तन्हाई की समझ है ना काफिले में चलने का सलीका मुझे,

मगर ठहरकर कभी मन्ज़िल मिलती नहीं,
सो अक्सर राहों पर बढ़ता रहता हूँ मैं,

ना चुप्पी की समझ है ना शोरो गुल में बैठने का सलीका मुझे,

मगर जादा बोलने से शब्दों का प्रभाव नहीं रहता,

सो अक्सर खामोशी से खुद को बयाँ करता रहता हूँ मैं,

ना डूबने की समझ है ना तैरने का सलीका मुझे,

मगर डूब जाती हैं समन्दर में काठ की कश्तियाँ भी देखा है,

सो अक्सर हुनर ऐ तैराकी सीखता रहता हूँ मैं॥

राही (अंजाना)

आजादी

August 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये।

गुलामी में भी हमारे दिल में देश की शान काफी थी,

तोड़ देते थे होंसला अंग्रेजो का हममे जान काफी थी,

पहनते थे कुर्ता और पाजामा खादी की पहचान काफी थी,

गांधी जी के मजबूत इरादों की मुस्कान काफी थी,

आजाद भारत देश को स्वतंत्र भाषा विचार को,

लड़ कर मर मिट जाने की तैयार फ़ौज काफी थी,

गुलामी की जंजीरों से जकड़े रहे हर वीर में,

स्वतंत्र भारत माँ को देखने की तस्वीर काफी थी॥

राही (अंजाना)

स्वतन्त्रता की कहानी

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलामी में भी हमारे दिल में देश की शान काफी थी,

तोड़ देते थे होंसला अंग्रेजो का हममे जान काफी थी,

पहनते थे कुर्ता और पाजामा खादी की पहचान काफी थी,

गांधी जी के मजबूत इरादों की मुस्कान काफी थी,

आजाद भारत देश को स्वतंत्र भाषा विचार को,

लड़ कर मर मिट जाने की तैयार फ़ौज काफी थी,

गुलामी की जंजीरों से जकड़े रहे हर वीर में,

स्वतंत्र भारत माँ को देखने की तस्वीर काफी थी॥

राही (अंजाना)

Inside you

August 14, 2016 in English Poetry

Tap that things resting inside you,
Display that things hiding inside you,
Call that things sleeping inside you,
Pull out that things
crooning inside you,
Hold that things living inside you.
Raahi (unknown)

Inside you

August 14, 2016 in English Poetry

Tap that things resting inside you,
Display that things hiding inside you,
Call that things sleeping inside you,
Pull out that things
crooning inside you,
Hold that things living inside you.
Raahi (unknown)

आजादी

August 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजाद हैं हम या अफवाह है फैली चारों ओर आजादी की,

जंज़ीरों में बंधी है आजादी या बेगुनाही में सज़ा मिली है आजादी की,

हकीकत है भी हमारे देश की आजादी की,

या बस गुमराह ख्वाबो की बात है आजादी की,

दिन रात सरहद पर डटे हैं फौजी घाटी की,

सो खाई थी कसम ज़ंज़ीर तोड़ देंगे गुलाम आजादी की॥
राही (अंजाना)

Inside you

August 13, 2016 in English Poetry

Tap that things resting inside you,
Display that things hiding inside you,
Call that things sleeping inside you,
Pull out that things
crooning inside you,
Hold that things living inside you.
Raahi (unknown)

कितने ही ख़्वाब

August 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जितने भी ख़्वाब मेरे झूठ के बहाने निकले,
उतने ही सच हकीकत के सिरहाने निकले।
जितने दुश्मन मेरे घर के, किनारे थे मौजूद,
उतने ही लोग ज़माने में, मेरे दीवाने निकले।
ढूढ़ते रहे जिन्हें समन्दर की लहरों में हमेशा,
वो तमाम ग़म, मेरे दिल के वीराने निकले।
जितने ही ग़म मुझे रास्ते को भटकाने निकले,
उतने ही खुशियों के सफर में मयखाने निकले।
कौन है जो मेरे ज़ख़्मो को समझ पाया है कभी,
हाय किसको हम, दास्ताँ अपनी सुनाने निकले।
उसको क्या मतलब है, मेरी कौम के हालातों से,
नेता जब निकले तो बस मौके को भुनाने निकले।
मैं अभी तक मदहोश सा हूँ, जो हंसी मय पीकर,
वो तेरी आंखों के जादुई, ख़ूबसूरत पैमाने निकले।
जो ये कहते थे मैं कौन हूँ, उनके किस काम का हूँ,
हाल ये है के अब, वो मुझको अपना बनाने निकले।
आज खोली जो मुद्दतों बाद, मुहब्बत की किताब,
देखो ये सफ़हा दर सफ़हा, कितने फ़साने निकले।
Raahi(अंजाना)

फरमाइश

August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मांगे जब भी तब उस बेटी की हर हरमाइश् पूरी हो,
ऐ खुदा काबिल बना दे, हर बाप को इतना के उसकी कभी जेब ना ढीली हो,
उठा दे उन्गली बेटी जिस तरफ ज़माने में,
हो पूरी हर ख्वाइश उसकीपर कभी बाप की नज़र ना नीची हो॥
Raahi (अंजाना)

अ से अ:

August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अ से अ: और क से ज्ञ जब लिखने लगा था मैं,

माँ को मेरी पढ़ने वाला बच्चा दिखने लगा था मैं,

फिर शब्दों को मिलाकर जब पढ़ने लगा था मैं,

माँ को मेरी अफसर दिखने लगा था मैं,

जब छोड़ कर घर को नौकरी पर जाने लगा था मैं,

माँ को मेरी उसका सहारा लगने लगा था मैं॥

राही (अंजाना)

ख़्वाब

August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात के अँधेरे में जो ख़्वाबों को हकीकत बनाते हैं,

वो सुबह के उजालों में अकेले ही खड़े नज़र आते हैं,

और जो जागती हुई आँखों में अपने ख्वाब सजाते हैं,

वो दुनियाँ की भीड़ में अलग ही नज़र आते हैं॥

राही (अनजाना)

माँ और मैं

August 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अ से अ: और क से ज्ञ जब लिखने लगा था मैं,

माँ को मेरी पढ़ने वाला बच्चा दिखने लगा था मैं,

फिर शब्दों को मिलाकर जब पढ़ने लगा था मैं,

माँ को मेरी अफसर दिखने लगा था मैं,

जब छोड़ कर घर को नौकरी पर जाने लगा था मैं,

माँ को मेरी उसका सहारा लगने लगा था मैं॥

राही (अंजाना)

राही

August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

राही अंजाना है कहीं अंजाना ही रह ना जाए,

ज़िन्दगी के इस जटिल सफर में कहीं बेमाना ही रह ना जाए,

उठाते हैं कुछ अपने ही उंगलियां अपनी,
कहकर के राही क्या किया तुमने,

कहीं देख कर उठती उंगलियां खुद पर,
“राही” भीड़ में शातिरों की कही काफ़िर ही रह ना जाए॥
राही (अंजाना)

Around you

August 4, 2016 in English Poetry

Leave the satires talks coming around you,
Keep the vital things running around you.
Be with the mutation around you,
Get rid of the situations rooming around you,
Take a long respire inside you,
Drop up the dilemma melting around you.

राही (अंजाना)

किरदार

August 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोकर खुद वो दूसरों को हंसाता है,
देखो वो जोकर कैसे अपना किरदार निभाता है,

सहज नहीं होता होगा यूँ,
अपने दर्द छुपाना,
कितना मुश्किल होता होगा ये किरदार निभाना,

हरगिज़ नहीं है ऐसा के आता नहीं उसे फरियाद जताना,
उसने तो सीखा है बस खुदा का दिया हुआ किरदार निभाना॥

राही (अंजाना)

बचपन की कस्तियाँ

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहाई थीं बचपन में जो कश्तियाँ सारी,

आज समन्दर में जाकर वो जहाज हो गई है,

चलाई थीं सड़कों पर जो फिरकियाँ सारी,

आज समय के बदलाव में गुमराह हो गई हैं,

बनायी थीं रेत में खेल कर जो झोपड़ियां सारी,

दुनियाँ की भीड़ में वो ख्वाब हो गई हैं॥

राही (अंजाना)

Obstacles

August 3, 2016 in English Poetry

The obstacles can shake your personality but can not sink it.
The darkness can hide your phantom but can not wet it.
So don’t think about anyone’s words,
Coz the words can hurt your heart for sec but can not touch it…

– Raahi (Unknown)

आईना

August 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जला दो इतने दीपक ज़माने में,

के किसी कोने में अब रात की कोई स्याही ना दिखे,

दिखा दो सच के आईने ज़माने को ऐसे,

के किसी को झूठे चेहरों की कोई परछाई ना दिखे,

फैला दो एक अफवाह ये भी ज़माने में,

के गुनाह और गुनहगार का नामोनिशां ना दिखे॥

राही (अंजाना)

तिरंगा

August 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ की गोद छोड़, माँ के लिए ही वो लड़ते हैं,

वो हर पल हर लम्हां चिरागों से कहीं जलते हैं,

भेज कर पैगाम वो हवाओं के ज़रिये,

धड़कनें वो अपनी माँ की सुनते हैं,

हो हाल गम्भीर जब कभी कहीं वो,

चुप रहकर ही वो सरहद के हर पल को बयाँ करते हैं,

रहते हैं वो दिन रात सरहद पर,

और सपनों में अपनी माँ से मिलते हैं,

वो लड़कर तिरंगे की शान की खातिर,

तिरंगे में ही लिपटकर अपना जिस्म छोड़ते हैं,

जो करते हैं बलिदान सरहद पर,

चलो मिलकर आज हम उन सभी को,

नमन करते हैं नमन करते हैं नमन करते हैं॥

राही (अंजाना)

Thinking

August 1, 2016 in English Poetry

The obstacles can shake your personality but can not sink it.
The darkness can hide your phantom but can not wet it.
So don’t think about anyone’s words,
Coz the words can hurt your heart for sec but can not touch it…
Raahi (Unknown)

सच का समन्दर

July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच के समन्दर में झूठ की कश्तियाँ डूबती नज़र आती हैं,

जहाँ तलक नज़र जाती है बस सच की कश्तियाँ नज़र आती हैं,

बढ़ते झूठ के सुनामी हैं कई सच की बस्तियाँ गिराने को,

मगर बह जाती हैं झूठ की बस्तियाँ सारी बस सच की बस्तियाँ तैरती नज़र आती हैं॥

राही (अन्जाना)

आशियाना

July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीत गया सुकूँ का बादल अब शिकन का मौसम आया है,

जो लगता था आशियाना अपना सा कभी,

आज उड़ कर आये गैर परिंदों का घर लगता है,

बनाये थे शिद्दत से अपने जो घोंसले हमने,

आज तिनको सा बिखरता हमारा घर लगता है॥

राही (अंजाना)

छुपे राज़

July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज दिल में छुपे हर राज़ लिखने बैठा हूँ,

तुझको अपने ख़्वाबों किस्सों का सरताज लिखने बैठा हूँ,

एतराज़ हो कोई तो मुझसे खुल कर कह देना,

आज खामोशी को भी तेरी आवाज लिखने बैठा हूँ,

उतर रही थी तू हफ़्तों से मेरे दिल के कोरे पन्नों में,

आज तुझ पर ही मैं अपनी कलम से किताब लिखने बैठा हूँ॥

राही (अंजाना)

कदमो की आहट

July 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाखों की भीड़ में भी तेरे कदमों की आवाज़ पहचान लेता हूँ,

मैं तेरी खामोश आँखों में छुपा हर दर्द पहचान लेता हूँ,

यूँ तो भटक भी जाऊ किसी मोड़ मगर,

मैं बन्द आखो में भी तेरा घर पहचान लेता हूँ॥

राही (अंजाना)

हुनर

July 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चढ़ना सीख लो “राही” ऊँची चोटी पर,

मगर उतरने का हुनर भी याद रखना,

बनते हैं तो बन जाए दुश्मन दोस्त पुराने,

मगर दोस्ती की तुम हर मोड़ पर मिसाल बनाये रखना,

करेंगे तोड़ने की कोशिश हर बारे तुम्हें दुनिया वाले,

मगर इरादों के मजबूत तुम अपने मकान बनाये रखना,

लगाते हैं हर मोड़ पर लत नई लोग सयाने,

मगर हार कर भी जीतने का तुम एहसास बनाये रखना॥

राही (अंजाना)

तन्हाई

July 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन्हाई के आलम में जब भीड़ से हट कर देखा,

सोंच का समन्दर कितना गहरा है ये अनुभव कर देखा,

चलते ही जाओ राहों पर ये जरूरी नहीं,

दो पल रुका और ठहरकर एहसास कर देखा,

दिन के उजाले और रात के अँधेरे में जो ना देखा,

आज शाम के धुंधले नजरों में यूँ देखा॥

राही (अंजाना)

अँधेरा

July 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्सर अँधेरे में फंस कर ही रौशनी का एह्साह होता है,

एक छोटा सा दीपक ही अँधेरे को मिटाने को पर्याप्त होता है,

यूँ तो नज़र नहीं आती अँधेरे में खामियां किसी की,

मगर ज़रा से उजाले में सब कुछ साफ़ साफ होता है,

बेशक रखता है उजाला अपनी एहमियत मगर,

अँधेरा ही ना हो तो उजाले का धुंधला प्रकाश होता है॥

राही (अंजाना)

कलम से लिख दूँ

July 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कलम से लिख दूँ नाम जो सरेआम हो जाए,

ऐसा कोई नहीं है जो फिर अब्दुल कलाम हो जाए,

गीता और कुरान को जो रखते थे मन में,

ऐसा कोई नहीं जो अब मिसाइल मैन हो जाए,

शिक्षा को सफलता का गुण बताये,

बच्चों से खुल के जो प्यार लुटाए,

ऐसा कोई नहीं है जो अब कलम का कलाम हो जाय॥

– राही (अंजाना)

स्वतंत्र भारत

July 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब स्वतंत्र भारत राज तो और स्वतंत्र हैं विचार तो,
फिर घिरे हुए है क्यों सुनो तुम आतंक में भारतवासियों,
वीर तुम बढ़े चलो अब आतंकी सारे मार दो,
सरहद पर तुम डटे रहो,
गद्दार सारे मार दो,
जब स्वतंत्र भारत….
भरा हुआ है भ्रष्टो से समाज ये सुधार दो,
करो खत्म भ्रस्टाचारी और भ्रष्टाचार को उखाड़ दो,
छुपा हुआ काला धन उस धन को भारत राज दो,
जब स्वतंत्र भारत….
तुम सो रहे घरों में हो बेफिक्र मेरे साथियों,
वो जग रहे हैं रात दिन सरहद पे भारतवासियों,
तुम छुप रहे आँचल में माँ के पा रहे दुलार हो,
वो चुका रहे हैं क़र्ज़ माँ सरहद पे मेरे साथियों,
तुम खा रहे पकवान वो खा रहे हैं गोलियां,
उठा रहें हैं देखो कैसे आप ही वो डोलियाँ,
तुम जी रहे मजे में वो मर कर शहीद हो रहे,
नमन करो नमन करो शहीद ऐसे वीरों को,
लहरा रहे तिरंगा जो सरहद में मेरे साथियों॥
स्वतंत्र भारत राज…
राही (अंजाना)

माँ की याद

July 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बा मुश्किल छोड़ जाती थी वो माँ मुझे जिस मकान में,

आज सूना है घर का हर एक कोना उस मकान में,

सुनाती थी दिन रात माँ जहाँ साफ़ सफाई के पीछे,

आज लगे हैं यादों के घने जाले उस मकान में,

सुन लेती थी माँ आहट जहाँ मेरे कदमों की,

लगा हुआ है आज ताला खुशियों के उस मकान मे॥
राही (अंजाना)

माँ

July 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

धुएं से भरे चूल्हे में माँ का वो रोटी बनाना,

यूँही नहीं है माता का मेरी ममता लुटाना,

आँखों से बहाती है आंसू फिर हांथो से अपने खिलाती है,

आसान नहीं है मेरी माता का मेरी खातिर ये प्यार जताना,

पाल पोस कर करती रही वो मुझको बड़ा,
कितना मुश्किल होता होगा आज माँ का मुझसे यूँ दूरी बनाना॥

राही (अंजाना)

किताबें

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब किताबें सीने पर लेटकर सोती नहीं हैं,

उंगलियां मोबाइल से एक पल को जुदा अब होती नही हैं,

लगाते थे लोग महफिलें कभी खामोशियां मिटाने को,

आज महफ़िलें भी सूनी सूनी होने लगी हैं॥

राही (अंजाना)

बचपन का खेल

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Shakun Saxena
उछाल उछाल कर पापा मुझे दिल्ली दिखाते थे,
हंस हंस कर पापा को मैं खूब रिझाती थी,
भरोसे का अटूट रिश्ता था हमारा,
छूट कर हाथो से मैं फिर हाथो में आ जाती थी,
आज पापा मुझको हाथों में उठा नहीं पाते,
उछाल कर मुझको वो दिल्ली दिखा नहीं पाते,
उछलकर देखती हूँ मैं खुद पर मुझे कोई दिल्ली नहीं दिखता,
होटो पर हंसी का अब कोई गुव्वारा नहीं फूटता,
सोंचती हूँ पापा मुझे कैसे उड़ाते थे,
कैसे मेरी आँखों को वो दिल्ली दिखाते थे,
मैं फूले ना समाती थी हंस हंस कर रो जाती थी,
काश हो जाऊ मैं फिर एक बार छोटी,
बन जाउ फिर पापा की वो प्यारी सी बेटी,
छू लू फिर आसमाँ पापा के हाथो से उछलकर,
देख लू एक बार फिर मैं अपने बचपन की दिल्ली॥
राही (अंजाना)

सोच का समन्दर

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी सोंच के समन्दर से ज़रा, बाहर निकल कर तो देख,
उसको पाना है तो ज़रा प्रह्लाद बन कर तू देख।
अपनी किस्मत के भरोसे न बैठ, कदम बढ़ा कर तो देख।
मन्ज़िल है पानी तो ज़रा कर्ण के विश्वास को तू देख।
ना झुकअपनी हार के आगे, ज़रा सर उठा कर तो देख।
गिरती है सौ बार फिर भी चढ़ जाती है दिवार पर।
उस छोटी सी चींटी की हिमाकत तू देख।
मत सोंच परिंदों के पंख हैं उड़ने को।
इरादों का दम तो भर, छू लेगा तू भी आसमानों को ज़रा अपने हौंसलों के पंख फैला कर तू देख।(अंजाना)
राही….

khwaishe

July 25, 2016 in Other

ख्वाइशें भी हैं और कुब्बत भी है छू लेने की बुलंदियां ,

मगर, रौंदने का दूसरों को हुनर मैं कहाँ से लाऊँ,

जो हर कदम देखकर भी सोये हैं मेरी मेहनत,

उन फरिश्तों को जगाने का हुनर मैं कहाँ से लाऊँ,

यूँ तो छिपा रखे हैं अभी हुनर कई बाकी,

जहाँ कद्र हो “राही” तुम्हारी वो शहर कहाँ से लाऊँ॥

राही (अंजाना)

स्वतंत्रता दिवस

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कदम कदम बढ़ा रहे हैं,
अपनी छाती अड़ा रहे हैं,
कश्मीर की धरती पर वो सैनिक अपनी,
माँ का गौरव बढ़ा रहे हैं,
तोड़ रहे है दुश्मन पल पल,
सरहद की दीवारे हैं,
वीर हमारे इनको घुसा के धूल चटा रहे है,
जो साथ में रहकर साले पीठ में छुरा घुसा रहे हैं,
देश के जवान सामने से इनको इनकी औकात दिखा रहे हैं॥

राही (अंजाना)

स्वतंत्रता दिवस

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो मिलकर एक नया मुल्क बनाते हैं,
जहाँ सरहद की हर दिवार मिटाते हैं,
छोड़ कर मन्दिर मस्ज़िद के झगड़े,
हरा और भगवा रंग मिलाते हैं,
चलो मिलकर एक…..
जिस तरह मिल जाते हैं परिंदे परिंदों से उस पार बेफिकर,
चलो मिलकर हम भारत और पाकिस्तान को एक आइना दिखाते हैं,
जब खुदा एक और रंग एक है खून का तो,
चलो मिलकर हम सारी सर ज़मी मिलाते हैं॥
चलो मिलकर एक नया मुल्क बनाते हैं॥
राही (अंजाना)

स्वतंत्रता दिवस

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

धरती माँ फिर त्रस्त हुई हैं
आतंकी गद्दारों से,
खेल लाल रंग की होली अब,
धरती माँ को मुक्त करो,
बढ़ो वीर तुम खूब लड़ो अब,
इन दुश्मन मक्कारों से,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
घाटी में घट घट में फैले
आतंकी शैतानों को,
मार गिराओ इस माटी के,
घुसपैठी गद्दारों को,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
बढ़ो वीर तुम आगे बढ़कर,
आतंकी टेंक को नष्ट करो,
फेहराकर घाटी में विजय तिरंगा,
आतंकी मनसूबा ध्वस्त करो,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
राही (अंजाना)

तिनके का सहारा

July 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

डूबते है लोग तो तिनके का सहारा मांगते हैं,

कितनी अजीब है ये दुनिया जहाँ लोग,

टूटते हुए तारों से भी दुआ मांगते हैं,

जहां चुप रहना हो वहां खूब बोलना,

जहाँ बोलना हो वहॉ क्यों ना जाने लोग खामोश रहना जानते हैं,

बनाते तो जीवन में कई रिश्ते हैं लोग,

बस कुछ दो चार ही होते हैं जो निभाना जानते हैं,

देखने को तो सभी देख लेते हैं ख्वाब ऊँचे मकानों के,

पर विडम्बना ये है की यहाँ कुछ एक ही ख्वाबों को हकीकत में बदलने की कला जानते हैं॥
– राही (अंजाना)

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