जवां धडकनो को धड़कने दो यारों

March 31, 2018 in ग़ज़ल

//ग़ज़ल//

जवां धडकनो को धड़कने दो यारों।
जरा आशिकी औऱ बढ़ने दो यारों।१

महकता रहे गुल चमन प्यार का ही,
फि़जा रुत सुहानी बहकने दो यारों ।२

करें प्यार इतना …समन्दर से गहरा,
मुहब्बत जरा और …बढ़ने दो यारो।३

सवरता रहे …..प्यार दोनों दिलो मे,
इशारों इशारों मे….. कहने दो यारों।४

कसम है सदा…. प्यार करते रहेंगें,
वफा कर वफाई ..दिखाने दो यारो।५

जले गर जमाना जलने दो “योगी”
चलो प्यार को.. .निखरने दो यारो ।६

योगेन्द्र कुमार निषाद “योगी”
घरघोड़ा,छ०ग०

आदमी में घमंड इस कदर हैं चढ़ा

March 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आदमी में घमंड इस कदर हैं चढ़ा।,
छोड़ इंसानियत,खुन……. बहाता रहा।

हौसला रंजिशों का ….बढ़ा हर तरफ ।
माँ बहन से न रिस्ता …..न नाता रहा।,

खाब को क्या कहूँ?, नींद भी डर गया ,
हर जगह कत्ल का ….काम बढ़ता रहा।

पैतरा साजिशों का ……….सरेआम है,
आदमी गिरके ही, खुद …..गिराता रहा।

खुद ही “योगी” सभल जा, राह में आग है,
चाँदनी रात में, चाँद है ……..डराता रहा।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०
7000571125

“मैं ढूंढता रहा”

March 25, 2018 in गीत

“मैं ढूंढता रहा”
::::::::::::::::::
मैं ढूंढता रहा,
उस शून्य को,
जो मिलकर असंख्य गणना बनते ।
मैं ढूंढता रहा ,
उस गाथा को ,
जिस की अमर प्रेम हर दिशाओं में गूंजते ।
और मैं ढूंढता रहा ,
उस मेघ चंचल मन को
जो अमृत बन वर्षा है करते ।
मैं ढूंढता रहा ,
उस पवन को
जो कलियों की महक ले उन्मुक्त बिचरते ।
मैं ढूंढता रहा ,
उस बावरी चंचल मन को ,
जो मन में बसा प्रीत है करते ।
अंततः
मैं ढूंढता रहा स्वयं को,
जो स्वयं से हर वक्त दूर है रहते।
मिला न,
अब तलक कोई,
जो मेरे सवालों को समझते ?
मैं ढूंढता रहा।
:::::::::::::::::::

स्वरचित,मौलिक
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ ग) 496111
7000571125

हे!री सखी कैसे भेजूं

March 25, 2018 in गीत

“गीत”
::::::::::::
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
दूर देश विदेश भय हैं
वो मन का मेरे प्रिय साजन।
हे! री सखी कैसे करू मै,
स – श्रृंगार मन यौवन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
सावन आ कर बहक गया,
दामनि लगे है मोहे डरावन।
हे! री सखी कैसे पाऊँ मै,
साजन का वो प्रिय आलिंगन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
जब – जब देखूं मैं दर्पण
होता मन में है स्पंदन।
हे! री सखी कैसे कहूं मैं
भौरों का है गीत मनभावन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
पतझड़ आकर जिया जलाएं
सूना हो गया है उप वन।
हे ! री सखी कैसे बतलाऊं
प्रीत मिलन बिन सूना जीवन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।

::::::::::::::::::::::

योगेंद्र कुमार निषाद ,
घरघोड़ा ,छत्तीसगढ़,४९६१११
मो.७०००५७११२५

मेरें दामन मे दर्द का सिलसिला है

March 25, 2018 in ग़ज़ल

वज़्न – 122 122 122 122
अर्कान – फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
बह्र – बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम

काफ़िया – आ (स्वर)
रदीफ- है।

मेरें दामन मे दर्द का सिलसिला है।
रहा हर सफ़र जिन्दगी की सज़ा है।

वफा जिन्दगी भर किया धड़कनों का,
न जीना सका मैं, न आया मजा हैं।

कदम जब मेरा हौंसला कर उठा तो,
ड़गर साँस, काटें चुभाता सदा है।

जिधर देखता हूँ उधर नफरतें है,
मुहब्बत पे अब और पहरा लगा है।

फ़िकर जिस्म का जो किया हमने योगी,
जहाँ का सितम और बढ़ने लगा है।

स्वरचित,मौलिक
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ ग) 496111
7000571125
२४०३२०१८

गीत

March 22, 2018 in गीत

“गीत”
::::::::::::
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
दूर देश विदेश भय हैं
वो मन का मेरे प्रिय साजन।
हे! री सखी कैसे करू मै,
स – श्रृंगार मन यौवन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
सावन आ कर बहक गया,
दामनि लगे है मोहे डरावन।
हे! री सखी कैसे पाऊँ मै,
साजन का वो प्रिय आलिंगन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
जब – जब देखूं मैं दर्पण
होता मन में है स्पंदन।
हे! री सखी कैसे कहूं मैं
भौरों का है गीत मनभावन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।
पतझड़ आकर जिया जलाएं
सूना हो गया है उप वन।
हे ! री सखी कैसे बतलाऊं
प्रीत मिलन बिन सूना जीवन।
हे!री सखी कैसे भेजूं ,
प्रिय को प्रणय निवेदन।

::::::::::::::::::::::

योगेंद्र कुमार निषाद ,
घरघोड़ा ,छत्तीसगढ़,४९६१११
मो.७०००५७११२५

नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर

March 20, 2018 in ग़ज़ल

नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।
गजल उनको ही सुनाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।

दरख्ते उम्मीद अब है कहां लगतें तेरे जमी पर
रकीबों सा अब तड़पता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।

दुआओं का रुख बदलता रहा ताउम्र,गिरगिटों सा,
मुबारक फिर भी से करता रहा हूँ मैं जिन्दगी भर।

फ़िकर अब किसको रहा है जमाने में देख दिलवर,
दरद अपनी अब भुलाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।

मुकद्दर भी कब सही था हमारा इस दौर “योगी”
मगर रों रों कर हसाता रहा हूँ मेै जिन्दगी भर।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छत्तीसगढ़
7000571125

कदम दर कदम मै बढाने चला हूँ।

March 16, 2018 in ग़ज़ल

कदम दर कदम मै बढाने चला हूँ।
सफर जिन्दगी का सजाने चला हूंँ।

खुशी-ए-जमाना तुझे सौप कर मैं,
सफल जिन्दगी को बनाने चला हूँ।

मुहब्बत से ज़्यादा ये कुछ भी नही है,
ग़ज़ल प्यार मैं गुनगुनाने चला हूँ।

दिखा दो वफाई वफा कर सनम तू,
दिलो मे तुझे अब बसाने चला हूँ।

पिछा रौशनी का रहा है जहाँ पे,
तुफानों मे दीया जलाने चला हूँ।

मुखातिब तराना बनाना तु “योगी”,
भजन जिकड़ी अब लगाने चला हूँ।

योगेन्द्र कुमार निषाद” योगी निषाद”
घरघोड़ा,छ०ग०

प्यार का इज़हार होने दीजिए

March 10, 2018 in ग़ज़ल

प्यार का इज़हार होने दीजिए।
गुल चमन गुलजार होने दीजिए।

खास हो एैसा ही, कोई पल दे दो,
वक्त को हम – राज होने दीजिए।

हो सदा वचनों में इक नव सादगी ,
प्यार काे अनुराग होने दीजिए।

कर करम एैसा भी कोई तो यहां,
मसखरा अब तुम न होने दीजिए।

दिल मिले हसरत हे योगेन्द्र मेरी
हो सके तो प्यार होने दीजिए।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०
7000571125

मुक्तक

March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

प्यार का इज़हार होने दीजिए।
गुल चमन गुलजार होने दीजिए।
खास हो एैसा ही, कोई पल दे दो,
वक्त को हम – राज होने दीजिए।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा ,छ०ग०

चलना संभल कर यहां जर्रे जर्रे में है धोखा

March 8, 2018 in ग़ज़ल

चलना संभल कर यहां जर्रे जर्रे में है धोखा।
अब सांसे भी सांसों को देता रहा है धोखा।

यूं जिंदगी को न कर इस कदर रुसवा यहां
हर गली हर चौराहे पर पसरा है धोखा।

वो सियासी नेता हो या हो कोई नन्हा बच्चा
हर इंसान के रग-रग में छिपा है धोखा ।

पानी की बुलबुले सी रह गई है जिंदगी,यहां
जिन्दा खुद जिन्दगी को देता रहा है धोखा ।

रात काली उजियारे सा महफिल है “योगेंद्र”
दिन निकला तो है,पर उजाले का है धोखा।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०

बह्र

March 7, 2018 in ग़ज़ल

बह्र – २१२२ / २१२२ / २१२

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जो हुआ वो सब भुलाना चाहिए ।
रूठे मन को अब मनाना चाहिए।१

बैठ यारों अब यहा महफिल सजें
मयकशी का दौर लाना चाहिए।२

गर शिकायत हो किसी को मगर,
दिल से दिल को जोड़ जाना चाहिए।३

आप आए तो ग़ज़ल का जाम ले,
जश्न अब हमको मनाना चाहिए।४

है खुशी का पल यहां तो चल यारा
मौसिकी का गुरूर दिखाना चाहिए।५

हर तरफ चर्चा तेरा “योगेन्द्र” यहा,
झूमकर गाना बजाना चाहिए।६

::::::::::::::::: योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०

वो जो तेरी यादों का समंदर कभी सूखता ही नहीं

March 4, 2018 in ग़ज़ल

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वो जो तेरी यादों का समंदर कभी सूखता ही नहीं ।
लाख भुलाना भी चाहा मगर दिल भूलता ही नहीं।

हैं बरसता हुआ गम की घटा जो सावन ले आया,
जुदा ए सनम तुम बिन, दिल कही लगता ही नहीं ।

लाख बोई है फसलें आरजू दिल की जमीं पर,
वीरां ए दिल में बहार ए खुशियां फलता ही नहीं ।

जिंदगी हर पहलू से गुजार देखा जो मैं अपनी,
प्यार तुमने जो दिया वो कहीं मिलता ही नहीं ।

कहाँ ढूंढूं तुमसा मै, और प्यार तेरा सा जहां मे,
तू तो लाखों में है, तुम सा कोई मिलता ही नहीं ।

पहली मुहोब्बत का दर्द दिया है योगेंद्र तुमने,
अश्क आंखों में भरी,दर्द दिली मिटता ही नही।

=============== योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०

न सवाल हुआ , न जवाब ही हमारी तन्हाई में

March 3, 2018 in ग़ज़ल

न सवाल हुआ , न जवाब ही हमारी तन्हाई में ।
आंखों ही आंखों से बात हुई हमारी तन्हाई में ।

खामोशी को इकरार समझने लगे थे,ख्वाबों मे,
पर जिंदगी है हकीकत समझ में आई तन्हाई में ।

जख्म दिल में जो लगते है दिखालाई नहीं देती ,
बस दर्द है तड़फाती सदा हमे यूं ही तन्हाई में।

तन्हा ही खुश हूं मैं ताउम्र जिंदगी भर के लिए,
तेरी यादें ही काफी है जीने को यूं ही तन्हाई में।

कोई सिला नहीं है हमको इस जहाँ में योगेन्द्र
पिला भरी बोतल चल साकी यूं ही तन्हाई में ।

…………………………. योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०
7000571125

ऐसा रंग तो डालो पिया।

March 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप सभी को होली की रंगों भरी हार्दिक शुभकामनाएँ

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
ऐसा रंग तो डालो पिया।
सारा तन-मन रंग डालो पिया ।
सात रंगों की बरखा है आई ,
गुलाल अबीर उड़ा लो पिया।

फूल पलाश लाल रंग ले आई ।
कोयल फाग गीत है सुनाई ।
रंगों के संग द्वार मेरे साजन,
श्याम बन तुम आ जाओ पिया।

सात रंगों की घटाओं संग
रंगों की बरखा तुम लाओ
भीगे चुनरिया तेरे रंग से
ऐसा रंग तो बरसाओ पिया।

बहकी हवाओं ने बहकाया
चुपके से मेरे आंचल में समाया
सुध-बुध खो गए अब तो मेरी
मुझको तो अब संभालो पिया

पोर पोर रंग लो अपने रंग से
हो प्रेम का ही रंग मेरे अंग में
बस तड़प की चाह मिट जाए
कुछ ऐसा रंग तो डालो पिया
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

स्वरचित मौलिक
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०
7000571125

“फागुन आया”

March 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

“फागुन आया”

फागुन आया चल रंग श्रृंगार कर ले।
अपने तन मन को रंग प्रेम व्यापार कर ले

रंग ले आज तु यह जग सारा,
आया रंगो का मौसम रंगीला,
उड़ा-उड़ा गुलाल नाचती गोपियां,
देख रास करती कृष्ण संग लीला,

बजा बासुरी और स-स्वर श्रृंगार कर ले।
अपने तन मन को रंग प्रेम व्यापार कर ले।

तु गोपियों का मन मोहन।
भौरा बन झुम वृन्दा वन।
रस ले सुमन| यौवन का तु
कामदेव का ले पुष्प सम्मोहन।

लय न हो फिर भी कोई गीत संचार कर ले।
अपने तन मन को रंग प्रेम व्यापार कर ले।

गा तु आज नव गीत फाग,
नाच नचा इन वृजबाला को,
रंग दे अपने रंग प्रेमरंग से,
इन अनछुई नव बाला को,

दिवास्वप्न ले उसे चल साकार कर ले।
अपने तन मन को रंग प्रेम व्यापार कर ले।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा, छ०ग०

तस्वीर

January 10, 2018 in ग़ज़ल

इक तस्वीर है इस दिल के पास।
फिर क्यु दिल है उदास – उदास।।

माना की तु दुर है सदियों से मगर,
तेरी यादे है मेरे दिल के आसपास।।

वो लरजते होठो से मेरे गीतो का गाना,
उन गीतो को आज भी है तेरी तलास।।

“योगेन्द्र” देखना मिल जायेगी मोहब्बत,
इसलिये तो दिल मे बसी है इक आस।।

योगेन्द्र कुमार निषाद
१०.०१.२०१८

बदलते हुए

January 8, 2018 in Other

चलते हुए कदमो के निशां को बदलते हुए देखा हमने।
हर रिस्ते नातों को आज बदलते हुए देखा हमने।

जो कभी टूट कर चाहा करती थी जमाने हमें,
आज उसे ही छोड़ जमाने , जाते देखा हमने।

मौसम तो वही है जो था फिजाओं मे कभी,
पर मौसम का तेवर आज बदलते देखा हमने।

कहते है ख्वाब ऊची रख्खों तो मंजिल भी ऊची होगी,
पर अक्सर नींद संग ख्वाब टुटते देखा हमने।

देख ली सारी जिन्दगी ,देख ली “योगी”
कि दिल के अरमा को सरे राह लुटते देखा हमने।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोडा़ (छ.ग.)

कविता

January 7, 2018 in Other

कविता
*****************************
ये जीवन सरिता ,तुम युं ही बहते रहना।
कल कल कर मधुर नांद सै बहते रहना।
गर.. लाख मुस्किलें हो राहो मे पर भी,
एक लक्ष्य बना ,और आगे बडते रहना ।

गर ठहरे पल भर को कहीं,
रह जाओगें बंध कर वही कें वही।
ठान लो समय अनुरुप बढ़ना है आगे,
सोच, यही मंजिल तो होगी कही न कही।

तुम सघर्ष से घबराकर,
कही पथ भ्रष्ट न हो जाना।
यह सघर्ष ही जीवन है,
इससे तुम कभी न डर जाना।

निर्भय होकर सिचों निर्मल धारा,
यह सदियो से प्यासी है यह धरा।
खिला दो इन पत्थरों मे भी फुल,
यही है .. हाँ यही है लक्ष्य तुम्हारा
*************************
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा
************************

एैसा श्रंगार कर

January 7, 2018 in Other

कुन्दन सा बदन को एैसा श्रृंगार कर ।
जो भाये पिया मन एैसा श्रृंगार कर ।

सरगम पे सुर नया कोई झंकार कर,
जो गुंज उठे हर मन के द्वार द्वार पर।

रीझाती सपनों को अपना सकार कर,
जो तु बना सके बना ले जीत या हार कर।

तारूण्य मन झुमे एैसा नयन वार कर,
तडफे हर मन एैसा वशी मंत्र संचार कर।

सावन बन प्रेम का रिमिझम फुहार कर,
दु:ख का बोझ हो तो चल यही उतार कर।

हुक की सरीता हो ह्रदय में फिर भी प्यार कर,
यही सुरम्य है जीवन, ” योगेन्द्र “इसे स्वीकार कर।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ.ग.)

एैसा श्रंगार कर

January 7, 2018 in Other

कुन्दन सा बदन को एैसा श्रृंगार कर ।
जो भाये पिया मन एैसा श्रृंगार कर ।

सरगम पे सुर नया कोई झंकार कर,
जो गुंज उठे हर मन के द्वार द्वार पर।

रीझाती सपनों को अपना सकार कर,
जो तु बना सके बना ले जीत या हार कर।

तारूण्य मन झुमे एैसा नयन वार कर,
तडफे हर मन एैसा वशी मंत्र संचार कर।

सावन बन प्रेम का रिमिझम फुहार कर,
दु:ख का बोझ हो तो चल यही उतार कर।

हुक की सरीता हो ह्रदय में फिर भी प्यार कर,
यही सुरम्य है जीवन, ” योगेन्द्र “इसे स्वीकार कर।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ.ग.)

एै रुपसी

December 29, 2017 in Other

भुज पे आई कहा से,एै रूपसी,
नेह निश्छल निर्मल लिये प्यारी।
स्वरों की हो,शायद तुम जादुगरी।
रीझाती उर-उर तुम क्यों हमारी।
तितली की सी लगती,होतुम बागो की,
वादियों मे दहकने लगी,देख तुम्हे सुर्ख सुमन बावरी।
री! तु कौन, क्यु तडफये शु-मन हमारी।

दर्द

December 27, 2017 in ग़ज़ल

तेरी यादों का समन्दर कभी सुखता नही।
आँखों में खुशी है मगर दर्द मिटता नही।

चौमासें सावन सा बरसता गम है सीने में,
जुदा-ए-सनम तुम बीन दिल अब लगता नही।

लाख बोई फस्लें आरजुओं की दिल-ए-जमां पे,
पर विरान -ए-दिल मे बहारें खुशीयॉ पलता नही।

जिन्दगी के हर पहलू से गुजर देखा मैनें,
जो प्यार तुमने दिया वो, कही अब मिलता नही।

कहां ढुढूं तुमसा और प्यार तेरा सा…….,
तू तो लाखो में थी तुमसा कही अब मिलता नही।

माना यह पहली मोहब्बत का दर्द है ” योग्न्द्र”
लाख मिटाओं पर दर्द अब मिटता नही।

एक योषिता

December 26, 2017 in Other

एक योषिता, नाम योगिता
मनमोहक – मनहरण है
उसकी रूप सुन्दरता।
सागर की सी शूतलता,
मेघों की सी चंचलता,
बागों में इठलाती खेलती तितली सी,
है उसकी सतरंगी छटा।
एक योषिता – नाम योगिता।

सपनो की है सेज सजाती,
निशावर को नीस आकर जाती,
माधवी राग मै चपके-चुपके,
वह प्रेम गीत सुनाती।

प्रकृति हो उन्मुक्त
स्वरो की जादु से
बहाती नव सरगम सरीता।
एक योषिता – नाम योगिता।

यक्ष कामनी देख शरमाएँ,
स-स्पर्श से सुमन खिल जाएँ,
मलय गंध पा पवन बावरा
उन्मुक्त हो इठलाये,
है, एैसी उसकी स-श्रृगांर सुन्दरता।
एक योषिता – नाम योगिता।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ.ग.)

मुक्तक

December 25, 2017 in Other

मुक्तक

दस्तक क्युँ करते हो बार बार,
बिहड़ मन उपवन के सुने द्वार।
न छेड़ो प्रेमागम की तार को,
चुभत है दिल पे इनकी झनकार।

कविता

December 24, 2017 in Other

ऐ चाँदनी रीतें तुम__
युँ ही एैसे ही रहना।
टिमटिमातें -जगमगीतें,
झिलमिल सपना तुम लाना।
हलकी – हलकी, शीतल – शीतल,
पुरवाईयों का तुम संग बहना।
इक चॉह जगा देती है……,
सागर मे हो पानी जीतना।
महकी-महकी अधखीली कलियों संग,
रातों मे तुम-का बातें करना।
सुमनों का खुशबु बिखरीना।
और कहना है फुलो का,
तुमसा नही कोई जग मे,
तुम अम्बर का हो गहना।
एै चाँदनी रातें……एैसे ही रहना।

हाथों की कलम

December 23, 2017 in Other

हुँ मै तेरी हाथों की कलम
गढ़ ले तु गीत नया जोगन।
हर शब्द हो तीर लक्ष्य भेदी,
मुक्त हो प्रेम का अटुट बंधन।

आँखो के कोरो मे बसा ले,
बना प्रित का स्वच्छ अंजन।
मधुर चमन खिले पाक ईश्क का
बागवां मे दहके सूर्ख सुमन।

मन मन्दिर मे बसुं बन मुरत,
खुशियों मे झुमे तेरी मुदित नयन।
हुँ मै तेरी हाथों की कलम।
गढ़ ले तु गीत नया जोगन

योगेन्द्र कुमार निषाद,घरघोड़ा (छ.ग.)

कविता

December 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

नव वर्ष आया,नील गगन मे नव सुरभि बिखराया।
शीतल शीतल ये हवाए,कह रही है खुशियॉ आया।

कविता

December 21, 2017 in Other

धधकते लावा है मेरे सीने मे,
जिसमे सेक रही हो रोटी
कई महीने से।
क्यॉ अब तक पकी नही ,तेरी तंदुरी,
क्यॉ बाकी है अब भी ……,
हवस की चाह तक पहुचने की दुरी।
छोड यह छिछोली नही बस की तेरी।
नही हर उस नजर को अधिकार,
जिसकी आँखो में है हवस की खुमार।
जानते है गर्म होता है जब बदन……
समझ लिया करो उनको है हवस की बुखार।
नाजुक दिल मे होता है, भडकते ज्वाला लिये
वही बन जाती है एक दिन घातक
देखा जाये तो यही है जीवन का नाटक।
जिसे खेला जा रहा है,
दुनिया के रंग मंचो पर
सिर्फ जिन्दगी का मजा लेने के लिए।
जहरीले ऑसु पीने के लिए।
अधेरी राह पर चल पडे है लोग
अस्पतालो के कुड़े दानों मे मरने के लिए।
मगर ……..
तुम मुझसे यह आस न करो,
कि बचा लुगां तुम्हे,
कोशिश करू भी तो
यह न कर पाऊगां मैं
क्योकि मै तो खुद एक आग हु।
कैसे तेरी आग को बुझा पाऊगां मै।

योगेन्द्र निषाद घरघोड़ा (छ.ग.)

नव वर्ष आई

December 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुजं उठी चहू दिश
नव वर्ष की नव शहनाई।
करवट बदलती आसमां पे छाई,
नव किरण लै पुरवाई आई।
उमंगों भरा उत्सव गीत आज,
चहकती चहचहाती चिडि़यों ने गाई।
नव वर्ष देख बागों की,
खिल उठी मादक पुष्पाई।
रवि लिये नया सबेरा,
स्वर्णिम किरण बिखराई।
नव वर्ष आई- नव वर्ष आई,
गुजं उठी नव शहनाई।

योगेन्द्र कुमार निषाद ,घरघोड़ा ( छ.ग.)

नया साल

December 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

ग़ज़ल
कुछ एेसा नया साल हो।
अपने आप मे बेमिशाल हो।
महगी थी यह वर्ष बीत गई,
कुछ सस्ता नया साल हो।
कुछ तो यादें रहेंगें नये नये,
कुछ सपनों का उडता गुलाल हो।
नई गीत हो ,नया ग़ज़ल हो,
नये सरगम पे नया ताल हो।
रंगीन – ए- महपिल में योगेन्द्र,
कुछ उम्मिदों का नया साल हो
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा (छ़ग़)

राज-ए-दिल

August 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खोल दो राज दिल का ,राज न रह जाने दो,

लबों पे आई बात को, बात न रह जाने दो/

——-

माना नजरो से नजरें मिली है तो क्यॉ..,

नजरों से उतीर हमें दिल मे रह जीने दो /

——-

है तमन्ना आशिकी का ,दिल-ए-जमीं पे,

इस दिल की उठी तुफ़ॉ को आज बह जाने दो/

——

कह दो खुल कर सरेआम मोहब्बत है योगी हमसे,

गर जले भी जमाना तो दल कर रीख हो जीने दो/

                योगेन्द्र निषाद

                            घरघोड़ा,रायगढ. (छ.ग.)                  

बेपरवाह

August 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी आज क्यु इस कदर वे-परवां हो गई,

थी जो सपने साथ वो भी आज खफा हो गई/

 

बहारो ने भी रुख बदल लिये अब हमसे,

गीत लिखना भी चाहुँ तो कैसे शब्द जुदा हो गई/

 

अरमॉ मचलते रहे दिल ही दिल मे योगी,

सारी उम्र की चाहत आज रफा दफा हो गई/

 

खुदा से पुछू की यै खुदा ये जिन्दगी क्यु दी,

जो साथ थी हमारी वो भी बेवफा हो गई /

 

योगेन्द्र कुमार निषाद

घरघोड़ा जिला-रायगढ़ (छ.ग.)

९४०६२२०६८३

ग़ज़ल

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मोहब्बत है गमो की हसिन दांस्ता |
इसकी न कोई मंजिल ,न कोई रास्ता ||
बस सफर-दर-सफर चलते है प्यार में,
मगर हाथ न कुछ किसी को आता ||
खाते है कसमें वफा की लोग प्यार में,
पर वफा की वफाई है न किसी को आता ||
फ़कत दे जाते है दर्द प्यार में एक दुजे को,
मोहब्बत पल भर का है,रह जाता|
योगोन्द्र न करना मोहब्बत किसी से
मोहब्बत है एक अमंजिली रास्ता |
योग्न्द्र निषाद ,घरघोडा (छ.ग.)

शोर ही शोर है

July 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

भाग दौड़ की,
इस दुनियां में,
शोर ही शोर है।
न बादल है,
न बरखा है,
केवल नाच रहा,
कलयुगी मोर है।
माना यह काल परिवर्तन का है,
नूतन नवीनतम का है,
किन्तु
इस बदलती परिवेश में,
सब कुछ बदल गया है।
सभ्यता संस्कृति और समाज,
है तो कल से बेहतर आज,
पर….
विकास कि इस होड में,
उन्मुक्त सांड बन
दौड रहे इंसान
शायद भौतिक सुखों की चाह ने
इंशा को अंधा बना दिया,
क्यो नही…….?
मशीनों की इस दुनियाँ में
अब पैसो का ही तो जोर है।
भाग दौड़ की इस दुनिया में
शोर ही शोर है।

योगेन्द्र निषाद घरघोड़ा (छ ग) 496111

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