वो हिन्द का सपूत है..
लहू लुहान जिस्म रक्त आँख में चड़ा हुआ.. गिरा मगर झुका नहीं..पकड़ ध्वजा खड़ा हुआ.. वो सिंह सा दहाड़ता.. वो पर्वतें उखाड़ता.. जो बढ़ रहा…
Submission for ‘Poetry on Picture’ Contest
लहू लुहान जिस्म रक्त आँख में चड़ा हुआ.. गिरा मगर झुका नहीं..पकड़ ध्वजा खड़ा हुआ.. वो सिंह सा दहाड़ता.. वो पर्वतें उखाड़ता.. जो बढ़ रहा…
जिम्मेंदारी को जब उसने महसूस किया तो, ऑटो रिक्शा भी चलाने लगती हैं वो ! पढ़ लिख के सक्षम होकर के वो अब, अंतरिक्ष में…
अँधेरे कमरे से बाहर अब मैं निकलना चाहती हूँ, माँ की नज़रों में रहकर अब मैं बढ़ना चाहती हूँ, धुंधली न रह जाए ये जिन्दगी…
ख़्वाब देखती है आँखै मेरी भी उड़ना चाहती हु मै भी पढू , लिखू बनू अफसर मै भी आकाश मै उड़ता जहाज देखू मै जब…
बचपन से ही सहती हूँ, मैं सहमी सहमी रहती हूँ, छुटपन में कन्या बन कर संग माँ के मैं रहती हूँ, पढ़ लिखकर मैं कन्धा…
माँ,मैं तेरे हर सपने को सच करके दिखाउंगी तेरे हर मुसीबत मे तेरे, मैं भी काम आउंगी रोशन कर दूंगी मैं तेरा नाम इस…
माँ की कोख में ही दबा देते हो, मुझको रोने से पहले चुपा देते हो, आँख खुलने से पहले सुला देता हो, मुझको दुनियां की…
कन्या बचाओ खुद कन्या कहती है- मुझको बचाओ तुम मुझको बचाओ, सपना नहीं अब हकीकत बनाओ, बेटा और बेटी का फर्क मिटाओ, बेटी बचाओ अब…
ये अजूबा किसने कर दिया फक्त एक मुट्ठी मैं सारा हिन्द इकट्ठा कर दिया तीन ही रंगों मैं सारा हिन्द बया कर दिया केसरी है…
रंग नहीं महज़ ये तीनो हमारे हिंदुस्तान की शान है झंडा है ये हमारे देश का तिरंगा इसका नाम है सर से भी ऊँचा रखेंगे…
राजा-शासन गया दूर कही, गणतंत्र का यह देश है | चलता यहाँ सामंतवाद नहीं, प्रजातंत्र का यह देश है | दिया गया है प्रारब्ध देश…
मुठ्ठी में तकदीर है मेरी, मेरे वतन की कर ले कोई कितनी भी कोशिश मिटा नहीं सकता| क्या करेगा वो इन्सान आखिर जो देश का…
इक कचरेवाली रोज दोपहर.. कचरे के ढेर पे आती है.. तहें टटोलती है उसकी.. जैसे गोताखोर कोई.. सागर की कोख टटोलता है.. उलटती है..पलटती है..…
जिसे कहते हो तुम कूड़े का ढेर; वह कोई कूड़ा नहीं! वह है तुम्हारी, अपनी चीजो का ‘आज’ | जिसे खरीदकर कल तुमने बसाया था…
जो बेबसी देख रहे हैं हम आज उनके चेहरो में , वो ढूंढेंगे दो वक्त की रोटी कूड़े पड़े जो शहरों में ! जात,पात,दुनियादारी उन्हें…
जो बेबसी देख रहे हैं हम आज उनके चेहरो में , वो ढूंढेंगे दो वक्त की रोटी कूड़े पड़े जो शहरों में ! जात,पात,दुनियादारी…
mere pass bhi khab hai tu pankh jud dai mere pass bhi dil hai, dhadkan jud dai mere pass bhi sai hai ruh jud dai…
कुछ लोग यूँ भी ज़िन्दगी बसर कर रहे है बीन कर कचड़ा सब्र कर रहे है ज़िन्दगी सिर्फ अमीरों की नहीं है ये तो तोहफा…
चुन कर कचरे से कुछ चन्द टुकड़ों को, जिंदगी को अपनी चलाते हुए, अक्सर देखे जाते हैं कुछ लोग थैलो में जीवन जुटाते हुए॥ थम…
तलाशती ये ज़िंदगी कचरे के ढेर में रोटी. फेक देते हैं हम जो अनुपयोगी समझ के. कैसे करते गुजर बसर ये भी इंसान तो हैं…
मैं हु एक शराबी शराब जानता हू कुछ नहीं सिवा इसके नाम जानता हू उतर जाती है ये सीनै में सुकून देने कुछ नहीं में…
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