
Pragya
लड़की जिद्दी तो थी पर वफादार थी
March 17, 2025 in मुक्तक
नींद अवसाद को…
कुछ सहेजे हुए गीत गाती हूं मैं
शांत कमरे में ही गुनगुनाती हूं मैं।
व्यर्थ व्यापक समय नष्ट तुम पर किया
नींद, अवसाद को घर बुलाती हूं मैं।
साथ अंतिम समय तक निभाऊंगी मैं
झूठ कह कर दिलासा दिलाऊंगी मैं।
तुम समझदार हो इसलिए कह दिया
छोड़ कर तुमको जाना है, जाऊंगी मैं।
सोंच लेना मैं झूठी थी मक्कार थी
आँख का धोखा स्वप्नों का व्यापार थी।
दिल ही दिल में ये तुमको भी मालूम है
लड़की जिद्दी तो थी पर वफादार थी।
अश्रु पूरित विरह गीत हमने लिखे
करके अनुनय- विनय गीत हमने लिखे।
आज चौखट पे दिल की नहीं तुम मगर
शेष- स्मृति, प्रणय गीत हमने लिखे।
शमशान तक क्या चल सकोगे?
March 17, 2025 in गीत
गर सजा दूं मौन होकर प्राण तरुवर को धरा पर
गर धुला आंगन हो आँसू के बिछौने बिछ रहे हों
गर तुम्हारे प्रेम को अभिव्यक्त करना आ गया हो
गर हमारे बीच में उन्मुक्त हो अंबर खड़ा हो
तो हमारी देह को तुम श्वेत आंचल दे सकोगे ?
आखिरी बारात में श्यामशान तक क्या चल सकोगे ?
याकि मूर्खों की निशानी आँख में लाकर के पानी
मृत हुए अवशेष को प्रज्ञा’ नहीं मृत वेश को
आंसुओं से सींच दोगे गोद में धर शीश लोगे
और बोलोगे नहीं बस देख कर हंसते रहोगे।
क्या हमारे बाद भी तुम मुस्कुरा कर जी सकोगे ?
मेरे गीतों को गले अपने लगा कर देख लेना
मेरी तस्वीरों को अपने हाथ लेकर देख लेना
मेरी आवाजें तुम्हारे कानों तक आती रहेंगी
फोन में एक बार मुझको सर्च कर के देख लेना
क्या मुझे जीवित समझ महसूस खुद में कर सकोगे ?
मैं हूं पापा की दुलारी आँसू उनके पोंछ देना
भाइयों के धीर को तुम गीता का संदेश देना
मां मेरी स्तब्ध आंचल सूना उनका जब हुआ हो
मां के आंचल में मेरी कुछ वस्तुओं को सौंप देना
क्या मेरे परिवार को तुम सांत्वना भी दे सकोगे ?
Kavyarpan
लग रही हैं अभी चंद घड़ियां हमे
February 10, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
लग रही हैं अभी चंद घड़ियां हमें
खा के ठोकर मगर हम संभल जायेगे।
तुम हमें आज तक शूल कहते रहे,
हम सुमन बन के मधुवन को महकाएंगे।
मार्ग में तो कदाचित स्वत आ गए
किंतु निश्चित नहीं हमको जाना कहां।
आज तक तो सुगमता से चलते रहे
अब विफलता ने बांधा है सारा समां।
करवटें ले रही है अभी जिंदगी,
नींद निद्रा की तोड़ेंगे चल पाएंगे।
हम सफर में तो हैं हम सफर ही नहीं
जिंदगी है मगर जिंदगी ही नहीं।
आधुनिकता के हाथों में आ कर गया
प्रेम में अब समर्पण रहा ही नहीं।
प्रीति राधा सी रह कर निभाई सदा
श्याम हमको भी तज कर चले जायेंगे।
कुछ कुरेदे हुए लेख हैं पीठ पर
उंगलियों से जिन्हें था उकेरा गया।
मुठ्ठियों से तुम्हारी वो रातें गईं
नर्म हाथों से मेरे सवेरा गया।
अब विरह की बनावट के सांचे तले
हम मिलन के सुगम गीत गढ़ पाएंगे।
बेजुबान प्रेम मेरा जुबां आ गई
ये चपलता मेरी प्रेम को खा गई
हाथ फैला के मांगा जो अधिकार को
चांदियों से बनी हथकड़ी आ गई।
साज श्रृंगार अब तक तुम्हारे लिए
चूड़ियां अब कहीं और खनकायेंगे।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
हम खुदा भी नहीं बन सके
February 10, 2025 in ग़ज़ल
इश्क से राबता भी नहीं
फासला भी नहीं कर सके।
कुछ संवारा भी ना जा सका,
दुर्दशा भी नहीं कर सके।
तुम हंसी थे बहुत इसलिए
हमनें पलकें झुकाई नहीं
दिल्लगी भी नहीं कर सके,
अलविदा भी नहीं कर सके।
इश्क तुमसे था कुछ इस कदर
और दुनिया का डर वो अलग
हम बयां भी नहीं कर सके,
और मना भी नहीं कर सके।
जिम्मेदारी थी हम पे बहुत
पांव दहलीज तक ही रहे
हम खुदा भी नहीं बन सके
गलतियां भी नहीं कर सके।
इश्क, इज्जत, दुआ, बद्दुआ
लोक निंदा या केवल पिता
मसअला बस बिगड़ता रहा
फैसला भी नहीं कर सके।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
Kavyarpan
तुम हो मेरा प्यार ओ साजन!
January 24, 2025 in गीत
एक वर्ष होने को आया, फिर साजन का स्वप्न सताया
बुझता जलता बुझता दीपक, फिर हमने इक बार जलाया।
आज मिलन की अग्नि अलौकिक, धधक उठी एक बार।
तुम हो मेरा प्यार, ओ साजन, तुम ही मेरा प्यार।
मन में उठी तरंगें इतनी तहस नहस हो जाती हैं
पीड़ा सहकर भी ये प्रज्ञा निसदिन ही मुसकाती है
विवश कदाचित प्रीति मेरी रजधूल बनी तेरे पग की
मेरे भाग के कुमकुम से वो अपनी मांग सजाती है।
वो तेरी बांहों में होकर लाज से अपना बदन भिगोकर
मोह पाश में जकड़ लिया क्या, तीव्र वेग से बाण चला कर।
नहीं कभी भी आता क्या अब तुमको मेरा विचार।
मन अर्पण तन पावन कर हम गंगाजल हो जाते थे
जब आते थे तुम समक्ष हम कितना खुश हो जाते थे।
भाव भंगिमा से निश्चित ही प्रेम प्रकट हो जाता था
नैन दीप से मिलने में ये नैन मेरे कतराते थे।
हर क्षण का अभिवादन करके, चरणामृत का स्वादन करके।
मूल रूप से मान कन्हैया, भक्ति भाव प्रतिपादन करके।
भूल गए क्या साजन तुम मेरा आदर सत्कार।
प्रश्न चिह्न अंकित मस्तक पर क्या है काल गर्भ गृह में
विस्मय बोधक बना हुआ प्रारब्ध मेरा भी संशय में।
अब अतीत की विडंबना भी मुझको आंख दिखाती है
धूमिल होती जाती प्रतिमा आपकी क्यों अंतर्मन में।
कौन हमारा उत्तर देगा, कौन हृदय की व्यथा सुनेगा।
टूटे मनके मालाओं से सज्जित हो इतिहास लिखेगा।
कौन बनेगा मेरे जीवन का अंतिम आधार।।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
Kavyarpan
इश्क का अब फसाना नहीं चाहिए
December 3, 2024 in ग़ज़ल
इश्क का अब फसाना नहीं चाहिए
तेरे दिल में ठिकाना नहीं चाहिए
तुम मेरी याद में गर तड़प ना सको
तुमको दिल भी लगाना नहीं चाहिए।
यूं दिखावे की यारी है किस काम की
हाथ भी अब मिलाना नहीं चाहिए।
इश्क है गर तुम्हें तो बता दो अभी
वक्त इतना लगाना नहीं चाहिए।
तुम मेरा हाथ हाथों में ले ना सको
तुमको तोहफे भी लाना नहीं चाहिए।
बस करो ये दिखावा बहुत कर लिया
हो मोहब्बत छुपाना नहीं चाहिए।
जो भी कह दूं उसी को हुकुम मान लो
बात आगे बढ़ाना नहीं चाहिए।
छोड़ दो काम सारे जरूरी मगर
प्रेमिका को सताना नहीं चाहिए।
सच हो कड़वा मगर मुझको स्वीकार है
कोई झूठा बहाना नहीं चाहिए।
तेरा सजना सवरना तो फिर ठीक है
बेवजह मुस्कुराना नहीं चाहिए।
दूर हो गर मोहब्बत तो चेहरा खुदा
खूबसूरत बनाना नहीं चाहिए।
हो मोहब्बत भले जां की बाजी मगर
पांव पीछे बढ़ाना नहीं चाहिये।
गीत सारे विरह के मुबारक हमें
इश्क का अब तराना नहीं चाहिए।
Pragya Shukla sitapur
मेरी दुश्मन है बे अक्ली हमारी
December 3, 2024 in ग़ज़ल
मेरी दुश्मन है बे- अकली हमारी
दिखी औकात अब असली हमारी
मेरे आँसू छुपा लेता है बिस्तर
हँसी है यार अब नकली हमारी।
हमें ही मान बैठे हो खुदा तुम
मगर करते हो फिर चुगली हमारी।
जजीरें तोड़ दी मैंने जहां की
सभी ने टागे फिर काटी हमारी।
पुरुष ही शेष है नारी के भीतर
कहीं अब खो गई नारी हमारी।
अकड़ ही रह गई इंसान में अब
सिकुड़ती जा रही रस्सी हमारी।
नहीं चलती हूं मैं उस राह पे अब
जहां से उठ गई अर्थी हमारी।
पड़ी रहती हूं मैं कमरे के भीतर
हमें ही भा गई सुस्ती हमारी।
दरो दीवार पर चेहरा है उसका
नजर ही हो गई अंधी हमारी।
सभा में मौन बैठे ही रहे सब
रही थी द्रौपदी लुटती हमारी।
कभी भी याद उसकी आ गई जो
कि हालत ही नहीं सभली हमारी।
मेरी बाहों से हिजरत करने वाले
क्या तुमको याद है चुप्पी हमारी।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
अंधेरी रात है और चांद निकल आया है
December 2, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
अंधेरी रात है और चांद निकल आया है
ये मेरी जुल्फ है या फिर किसी का साया है।
तू मेरे दिल से गया है निकल के जिस दिन से
मैने तेरे जैसा एक आईना बनाया है।
छोड़ कर जाते भी हैं फिर वहीं आ जाते हैं
आपने भूलभुलैया सा दिल बनाया है।
वो कौन था जो मेरे सामने खड़ा था अभी
ये कौन है कि जिसने सीने से लगाया है।
ताज़्जुब है कि ये मुझ पर असर नहीं करता
ये तुमने दर्द भरा शेर जो सुनाया है।
हवस बिलखती थी दिन रात मेरे कदमों में
मैंने इक आदमी को देवता बनाया है।
ये दिल है उसका और वो किसी की बांहों में
वो अपना है या फिर कहूं कि वो पराया है ।
अलग रुआब से वो आज मिला था हमसे
पता चला वो किसी जिस्म से नहाया है।
अभी अभी खबर मिली थी मेरे मरने की
वो इतना खुश है कि अखबार बेंच आया है।
नमाज उसने पढ़ी थी अभी मेरे हक में
ना जाने कौन बुत में जान फूंक आया है।
बोझ क्या जानेंगे मेरा ये जमाने वाले
लाश को अपनी मैंने कंधों पर उठाया है।
रख के मुस्कान अपने होंठों पे मैंने ‘प्रज्ञा
अपने दूल्हे को किसी के लिए सजाया है।
Kavyarpan
है आलीशान घर आंगन नही है
September 29, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
है आलीशान घर आँगन नहीं है
दुपट्टा है मगर दामन नहीं है ।
पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक
पहुँचने का कोई साधन नहीं है।
हमें बाहों में लेने से क्या होगा
जिसम तो है हमारा मन नहीं है।
महज सिंदूर ही तो भर रखा है
सुहागन कर दे जो साजन नहीं है।
हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम
सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है।
सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने
किसी से अब कोई अनबन नहीं है।
बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब
है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है।
उसे शर्माना अब आता कहां है
तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है।
मेरी तकदीर में ही वो लिखा है
जिसे पाना ही अब मुमकिन नहीं है।
रकीबों की कहानी तुम कहो बस
वो बहना है मेरी सौतन नहीं है।
हमारे पास हैं जज्बात केवल
हमारे पास काला धन नहीं है।
वो कैसा है बता पाना है मुश्किल
जुबां तो है मगर वरनन नहीं है।
हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन
अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है ।
दुआओं की तलब होती है अक्सर
दुआओं में मगर अब दम नहीं है।
Kavyarpan
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
द्वारिका के धीष हो तुम
August 29, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
द्वारिका के धीश हो तुम सब युगों के ईश हो तुम
कंस का अभिशाप तुम ही देवकी आशीष हो तुम ।
पार्थ के प्रिय सारथी हो मीरा की तुम आरती हो
गीता का संवाद हो तुम धर्म के युग भारती हो।
राधा राधा कहने वाले प्रेम नर्तन करने वाले
युग प्रणेता हो प्रभु तुम ज्ञान अर्पण करने वाले।
शिक्षा संदीपनि से पाई मां यशोदा जैसी माई
द्रौपदी सी परम सखि और प्रीति राधा जैसी पाई।
हर हृदय में प्रेम पाया शिष्य अभिमन्यु सा पाया
भक्त था रसखान सा और पुत्र प्रद्युम्न सा जाया।
सब दुखों को हरने वाले नाग नर्तन करने वाले
तुम हमारे ही रहोगे प्रेम अर्पण करने वाले।
देवकी के छ: शिशु लौटा दिए थे एक क्षण में
भीष्म प्रण रखने को मोहन ने उठाया अस्त्र रण में
नरकासुर की स्त्रियों को मान भी जग में दिलाया
जब प्रभु क्रोधित हुए ब्रह्माण्ड भी पग में हिलाया।
प्रज्ञा शुक्ला को विरह में काव्य अर्पण करने वाले।
युग प्रणेता हो प्रभु तुम ज्ञान अर्पण करने वाले।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
नहीं मालूम है कैसे गुजारा कर रही हूं
August 13, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं मालूम है कैसे गुजारा कर रही हूं
मैं रातें जाग कर आंखें सितारा कर रही हूं।
इरादा कर तो लूं एक बार फिर दिल को लगाने का
मुझे मालूम है गलती दुबारा कर रही हूं।
वो कहता है सिगरेट नहीं तुम हो जरूरी
किसी की जिंदगी में फिर उजाला कर रही हूं।
किसी तस्वीर को पूरा किया था खूँ से अपने
जला कर अब उसे इस दिल को काला कर रही हूं।
वो आया था मेरे नज़दीक मुझसे पूछने ये
मैं जिंदा हूं नहीं फिर क्यों दिखावा कर रही हूं
मैं उसके हिज्र में कुचले फूलों को उठा कर
मैं अपनी अर्थी की सुंदर सजावट कर रही हूं।
वो जैसा है जहां भी है हमेशा खुश रहे बस
मैं उसके आंसुओं को अपने हिस्से लिख रही हूं।
जुबां पर आज उसके जिक्र आया है हमारा
मैं किसकी जिंदगी में अब उजाला कर रही हूं।
मोहब्बत है अगर एक बार तो मुझको बता दे
तेरे इनकार पर भी कब से हामी भर रही हूं।
वो मेरी मांग का सिंदूर माथे पर सजाती
मैं उस पग धूल को माथे की बिंदी कर रही हूं।
पिता का सर झुका हो ये नहीं हरगिज गवारा
इसी कारण तुम्हारे इश्क का खूं कर रही हूं।
मेरी आत्मा का ब्याह तो कब से हुआ है
महज अब मांग में सिंदूर भर कर सज रही हूं।
मेरी रूह के हर पोर में है वो समाया
फकत अब मैं किसी से जिस्म साझा कर रही हूं।
मेरी रूह मुझको हर दफा झकझोर देती
मैं घरवालों की खातिर क्या दिखावा कर रही हूं।
अपने बेटे का नाम ‘प्रशांत रखा है मैने
एक उसकी हंसी में मुस्कुरा कर जी रही हूं।
हमार पिया
August 11, 2024 in अवधी
जियरा हमरा जुड़ईहई हमार पिया
अंखियां तोसे जो मिलिहई हमार पिया।
तुम तऊ लाएउ हमरी सौतनिया
दुलहा हमरऊ तऊअई हई हमार पिया।
बात मा सौ की ना तुम आयेउ
तुमका वा भरमई हई हमार पिया।
लरिका तुमरा तुम सई नाकिस
बुआ हमका कहति हई हमार पिया।
दिलवा हमरा जब दुखि जईहई
तुमका ही गोहरई हई हमार पिया।
हमरी खातिर रतिया जगती हउ
निदिया हमकऊ ना अईहई हमार पिया।
एक दिन हमरी अईहई बरतिया
परदेसी हुई जईहई हमार पिया।
जब हमरे लरिका हुई जई हईं
मामा हम कहिके बोलई हईं हमार पिया।
जी दिन हमरी अर्थी उठि हई
को तुमरा रहि जईहई हमार पिया।
सर्दी जुकाम जैसा इश्क
July 22, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
लड़की हो या बस की सीट कब्जा है तुम्हारा
तुम ही हो शहजादे फकत रुतबा है तुम्हारा।
लड़कियां इतनी बुरी होती हैं तो इश्क क्यों करते हो
तब दिमाग काम क्यों नहीं करता है तुम्हारा।
तुम्हारे पहलू में रहें तुम्हें बाबू शोना कहें
ठुकरा दे तो इगो हर्ट होता है तुम्हारा।
जिन्हें इश्क होता है वो यूं बदनाम नहीं करते
ये प्यार नहीं सिर्फ attraction है तुम्हारा।
ये कॉलेज फ्रेंड है वो मामा की लड़की
जानू अब तुम्हे भरोसा नहीं हमारा
जितना प्यार तुमसे करता हूं
उतना तो x को भी नही करता था
X, y सबका स्वाद चख चुके हो फिर भी
कहते हो हम इश्क हैं तुम्हारा।
मेरा प्यार कैंसर है मरने के बाद ही जाएगा
सर्दी जुकाम जैसा इश्क लगता है तुम्हारा।
ना तुमसे पहले कोई था ना तुम्हारे बाद कोई होगा
ये क्यों नहीं कहते कि गोरख धंधा है तुम्हारा।
इश्क जब नया नया होता है तब कदमों में झुक जाते हो
फिर कहते हो पुष्पा राज झुकेगा नई साला।
बेटा हो या बेटी मां को बराबर दर्द होता है
फिर हमें ही क्यों घर छोड़ना पड़ता है हमारा।
कभी एसिड डालते हो तो सौ टुकड़ों में बांटते हो
कलेजा क्यों नहीं कांप उठता है तुम्हारा।
कभी कोपचे में मिलों बताते हैं तुमको
अजी प्रज्ञा शुक्ला यूं ही नहीं नाम है हमारा।
ऐसे साजन हों हमारे
July 22, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
ना कभी पीते हों सिगरेट
न उन्हें होता हो रिगरेट
ना रहे इगो में अपने
ना कभी चिल्लाए मुझ पर
खाना वाना वो बना लें
पांव भी मेरे दबा लें
मैं सोऊं टांगे पसारे
बच्चा भी वो ही संभाले।
सर झुका रहता हो जिनका
ऐसे हों साजन हमारे।
जो कहूं वो मान लें वो
दिन हैं अच्छे जान लें वो
ले चले शॉपिंग पे मुझको
झोला वोला थाम लें वो
जुल्फों में सेट वेट लगा के
कूची का चश्मा लगा के
हर जगह टिपटॉप बनकर
ही चले ना बास मारे।
जब मैं चिल्लाऊ अकड़कर
माफ़ी मांगे पांव पड़ कर
बाबू मेरी गलती थी बस
ये कहें जब जाऊं लड़कर
रूह थर थर कांप जाए
जब भी मेरा जिक्र आए
ना कभी कहना पड़े कुछ
समझे आंखों के इशारे।
इंस्टा fb, x सबका
कोड मुझको भी पता हो
हो लोकेशन ट्रेस हरदम
ड्रोन पीछे घूमता हो
चिड़िया या फिर हो चिरौटा
भैया ना हमको है मौका
बीवी मेरी सूत देगी
ये ही कह कर बात टारें।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
हो अवध सी रामनगरी और रघुबर से हों साजन
July 19, 2024 in Poetry on Picture Contest
कह रहा है मन हमारा
क्यों दुखी संसार सारा
एक निज स्थल हो ऐसा
स्वर्ग से लगता हो प्यारा
ना हृदय में वेदना हो
ना व्यथित मन साधना हो
ना हो कोई रुष्ट हर्षित
ना कोई पीड़ित अकारण।
हो अवध सी रामनगरी
और रघुबर से हों साजन।
माता कौशल्या सी मईया
और लक्ष्मण सा हो भईया
उर्मिला सी देवरानी
पार हो जायेगी नईया
हो पिता दशरथ के जैसे
हो फलित ये पुण्य कैसे ?
मैं बनूं गृह लक्ष्मी उनकी
और कहलाऊं सुहागन।
हो अवध सी रामनगरी
और रघुबर से हों साजन।
रूप कंचन कांति ऐसे
कौमुदी छिटकी हो जैसे
नैन हों जैसे पयोनिधि
रदनच्छद शतपत्र जैसे
मान मर्यादा भी समझे
नारी का अस्तित्व समझे
एक ही छवि हिय विराजे
रज कमल की मैं पुजारन।
हो अवध सी रामनगरी
और रघुबर से हों साजन।
रूप छवि ऐसी सवारूं
साधु भी विपदा में डारूं
ओढ़ कर मर्यादा कुल की
राम पद पंकज पखारूं
मन की वृत्ति जान लूं मैं
प्रिय कथन भी मान लूं मैं
हो फलित पुष्पित वो नगरी
गूंजे किलकारी भी आंगन।
हो अवध सी रामनगरी
और रघुबर से हों साजन।
प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर
Kavyarpan
मिली थी कुंडली तब जा के तेरा साथ पाया है
July 1, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
वचन सिंदूर मंगलसूत्र मंडप भी सजाया है
तुम्हारे नाम का कुमकुम माथे पर लगाया है
कन्यादान सातों फेरे सारे विधि विधानों से
मिली थी कुंडली तब जा के तेरा साथ पाया है
अधर हैं बेसुरे इतने तुम इनका राग बन जाओ
मैं काया बन गई तेरी तुम मेरी लाज बन जाओ
मेरे माथे की बिंदी स्वेद गंगा में नहाई है
उतारो चूड़ियां मेरी खनक धड़कन की बन जाओ।
पिघलकर मोम अग्नि में समाहित जैसे होता है
कड़कती धूप में जैसे की चंदा हाथ धोता है
बरस कर मिल रहा है यूं धरा में आज ये अंबर
रति के मन में जैसे काम अपने बीज बोता है।
धुला उजाला बदन उस पर मसक ये लाल कैसी है ?
ठिठोली कर रही सखियां अधर मुस्कान कैसी है ?
वो सोलह साल की लड़की शिकायत रोज करती थी
शरारत हो गई इतनी मगर अनजान कैसी है।
प्रेम की दीवानी
June 17, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
मन हर्षित तन पुलकित रोम रोम
नैनन से नीर की फुहार जैसे हो रही
भोलीभाली मतवाली राधारानी गली गली
मोहन के नेह में निहाल जैसे हो रही।
बरसी बदरिया तो भीग गयो अंग अंग
नाचे यूं मगन हो मयूर जैसे हो रही
पैजनी के घुंघरू भी नाच रहे संग संग
प्रेम की दीवानी आज सुध बुध खो रही।
मेघ घिरे कारे कारे दमके बिजुरिया तो
लिपटी यूं मीत की बांहों का हार हो रही
लाज से लजाए नैनों से जो मिली अनुमति
अधरों से अधरों की मनुहार हो रही।
वसन के भीतर जो उर्मि समाई थी वो
दहक – दहक अंगार जैसे हो रही।
लिपटी हुई थी ऐसे चंदन से अहि जैसे
रति प्राणवायु में हो बीज जैसे बो रही।
बेसरि से फिसली जो नाभि पे ठहर गई
सावन की बूंद देखो बेईमान हो रही।
बिंदिया माथे की लाज ढोते ढोते थक गई
चांदबाली केशों का घूंघट लेके सो रही।
कंगन कलाई में मगन भए चूड़ियां तो
बिन सहयोग कैसे निसहाय हो रही।
झांझर की अनबन घुंघरू से हो गई तो
सीतापुर में भी अब बरसात हो रही।
Pragya Shukla,sitapur
श्रृंगारी
June 14, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
लिखा था नाम जो दिल की जमीं पर पढ़ रही हूं मैं
कि उनका रूप ही हर आईने में गढ़ रही हूं मैं
मेरी हर शायरी में अब अलग ही मोजिजा सा है
सुनाती हूं गज़ल यूं जैसे कलमा पढ़ रही हूं मै।
हैं उनके नैन जैसे सीप में मोती चमकता हो
रूप ऐसा कि काली रात में चंदा चमकता हो ।
श्यामल केश जब मस्तक को उनके चूम लेते हैं
जैसे दूधिया पुष्पों पे भंवरे झूम लेते हैं ।
अधर जैसे गुलाबी पुष्प ने पाई हो तरुणाई
तिमिर शय्या पे जा लेटा उगी पूरब से अरुणाई।
वो मेरे साथ ना होकर भी यूं महसूस होते हैं
जैसे चांद सूरज आसमां में साथ होते हैं ।
बुझी सुलगी मगर इस राख में अब भी है चिंगारी
इसी कारण विरह के गीत भी लगते हैं श्रृंगारी।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना
June 5, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम भला अब क्या करोगे
प्रीत को लज्जित करोगे
करके शुभचिंतक निमंत्रित
मंडली चर्चा करोगे
आचरण में खोंट कहना
नियति में दोष कहना
थी त्रुटि केवल हमारी
बोल कर आंसू बहाना
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
माथे पर सिलवट पड़ी है
चूल्हे पर विरह जली है
शब्द पकते आंच पर हैं
भाव टूटे कांच पर हैं
बेल घावों की हरी है
आंसुओं से सिंच रही है
प्रेयसी को पत्र देना हो तो
मुझसे ही लिखाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
वासना को नष्ट करके
मंदिरों में पांव पड़के
मांथे पर टीका लगाकर
काशी या नैमिष में जाकर
विप्र को गौ दान करके
गंगा में स्नान करके
भागवत, मानस श्रवण कर
अपने पापों को मिटाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
अब बिछड़ने की घड़ी है
मौत सिरहाने खड़ी है
तिमिर ने देखा वो सबकुछ
कौमुदी जो कर रही है
झीसियां परिजन की होंगी
काल अभिवादन की होंगी
तुम भी दो आंसू बहाकर
गंगा मईया में बहाना।
जब कभी पूंछे कोई तो बेवफा मुझको बताना।
हमारे ही हो तुम
June 2, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
हमारे ही हो तुम हमारे रहोगे
मेरी प्रीत को तुम संभाले रहोगे।
तुम्हारी हथेली में अपनी लकीरें
न पाकर विधाता से मैं लड़ रही हूं।
मेरी मांग में सज न पाया जो कुमकुम
वो सिंदूरदानी में मैं भर रही हूं।
इसी कामना में जिए जा रही हूं
कि अगले जनम तुम हमारे रहोगे।
जतन कर लिए सारे जपतप भजन व्रत
मिलन की विफल युक्तियां सब रही हैं
मेरे भाग्य को मेरे अंतस की कुंठा
या रूठी कोई यामिनी लिख रही है ।
परिस्थिति कठिन या अमंगल हो बेला
करो प्रण वरण तुम हमारा करोगे।
हम प्रेम को तुम्हारे एक दिन भुला ही देगे
May 25, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम प्रेम को तुम्हारे एक दिन भुला ही देगे
आखिर सिसक सिसक कर कब तक भला जियेगे
मैं प्रेम की पुजारन या फिर कोई अभागन
तस्वीर तेरी छू कर बनती हूं मैं सुहागन
मंदिर में मस्जिदों में बस एक तुझको मांगा
तेरी सलामती को गुरुद्वारे धागा बांधा
याचनाएं विफल सब यूं भाग्य मेरे फूटे
ना राम काम आए घनश्याम मेरे छूटे
रहकर के भूखी प्यासी चंदा को अर्घ देकर
तेरी उमर हो लंबी व्रत को किया करेंगे।
हम प्रेम को तुम्हारे एक दिन भुला ही देगे
आखिर सिसक सिसक कर कब तक भला जियेगे।
तुम बांहों में किसी के रहते थे सोए सोए
हमसे भी पूंछ लेते हम कितनी देर रोए
आते थे मुस्कुराते मुझको सुकून बताने
कैसे थी गम छुपाती ये मेरा दिल ही जाने
तेरी नजर को अपनी नजरों से मैं उतारूं
तुम हो फकत हमारे कह कर के मन संभालूं
तेरे फरेब को भी लाचारी कहते हैं हम
तुम हो तो बेवफा ही पर कृष्ण हम कहेंगे।
हम प्रेम को तुम्हारे एक दिन भुला ही देगे
आखिर सिसक सिसक कर कब तक भला जियेगे।
मैं आहुति तुम्हारी तुम संविधा हवन की
तुम पाठ भागवत का मैं बेला आचमन की
ये राज- काज, संपति, ये जोग, भोग सारे
तेरे नयन की चितवन के आगे व्यर्थ सारे
हर्षित हुईं छुअन से कलियां जो थी कुम्हलाई
अंबर बरस पड़ा तो धरती को लाज आई।
इस बार चूक थोड़ी हमसे जो हो गई है
है प्रण यही हमारा अगले जनम मिलेंगे।
अगले जनम तुम्हारा हम ही वरण करेंगे।
वो लड़का मेरा खयाल रखता है
May 24, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो लड़का मेरा खयाल रखता है
तेरे नाम वाले सिर पर बाल रखता है
कभी डरता है तो कभी रोब झाड़ता है
गुस्से में मुंह अपना लाल रखता है।
बच्चों जैसी हरकतें और बुजुर्गों जैसी समझदारी
पागलपन भी खुद में बेशुमार रखता है ।
मेरी खुशियों के आगे माथा टेक देता है
अपना प्यार देकर मुझे मालामाल रखता है।
मेरे नखरे हंस हंस कर उठाता है
बड़े नाजों से वो मुझे यार रखता है।
आंखों में उसकी रहती है उदासी
दिल में भी कोई मलाल रखता है।
खोने के डर से सिहर उठता है अक्सर
पाने का वहम भी पाल रखता है।
छोड़ कर गया है उसे कोई शायद
जेब में तभी वो गीला रूमाल रखता है।
सिगरेट की लत ऐसी लागी है उसको
मुझसे ज्यादा वो सिगरेट को संभाल रखता है।
होंठों पर उसके रहती है खामोशी
पर दिल में अनगिनत सवाल रखता है।
ये जो रिश्तों भरा झमेला है
May 1, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये जो रिश्तों भरा झमेला है
ये खेल हमने बहुत खेला है।
मेरे हिस्से में आंसू आते रहे
दर्द ही दर्द हमने झेला है।
सुख की चादर सदा सिकुड़ती रही
चांदनी धूप में ठिठुरती रही
रात आंखों में बुझ गई लेकिन
जिंदगी बस यूं ही गुजरती रही।
सदाकत नाव को डुबोती रही
लाज अपना बदन भिगोती रही
मेरी वफा ही बन गई नश्तर
बेवफाई सुई चुभोती रही।
लोग अपना समय बिताते रहे
हम थे पागल जो दिल लगाते रहे
रेलगाड़ी सफर कराती रही
लोग सुविधा से आते जाते रहे।
उसकी आंखों की मैं बिनाई हूं
अपने घर को मैं लौट आई हूं
सीतापुर का वो प्लेन सा कुर्ता
लखनऊ की चिकन कढ़ाई हूं ।
ये सच है या फिर
April 30, 2024 in शेर-ओ-शायरी
ये सच है या फिर मुझे भ्रम हुआ है
कोई शख्स मेरी याद में नम हुआ है
मैं उसकी आरजू हूं ये तो पता था मुझे
चलो! एक नाम और दोस्ती में कम हुआ है ।
कोई चांद बुझाना
April 30, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम जमाने से हैं तंग तंग हमसे जमाना
अंधेरा ओढ़ती हूं कोई चांद बुझाना।
पैरों के नीचे की जमीं भी छीन ली सबने
लटकी हूं फंदे से भी तो बनता है फसाना।
अठखेलियां, चतुराई , प्रेम मैं जो करूं तो
त्रिया चरित्र उसको भी कहता है जमाना ।
पीपल के तले नैन दीप साझा थे किए
दिल में सुलग रही है कोई आग बुझाना।
इस इश्क की बीमारी में हम जलते तो रहे
बुझ कर भी राख ना हुए कोई राज बताना।
ये मीर दाग जौन ने भी इश्क था किया
शेरों में इनके दर्द ढूंढता है जमाना
हम हंसते हंसते एक दिन खामोश हो गए
अब खामोशी पर सवाल उठाता है जमाना।
हम मौज में रहते हैं अपनी फिर भी ठीक है
अश्कों को भी बवाल बताता है जमाना।
खातून ने जब शौक में शौहर बदल लिया
मासूका को तब नेक बताता है जमाना।
मोमिन ने कुछ सवाल खुदा से जो कर लिए
मुल्हिद उसी को बाद में कहता है जमाना।
कभी इश्क निभाने को वफादार हम हुए
फिर बदचलन हूं मुझको बताता है जमाना।
अगर बाप की पगड़ी के लिए प्रेम त्याग दूं
लड़की थी बेवफा यही लिखता है जमाना।
महफिल में शेर सुन के सब आंसू बहाते हैं
फिर इश्क करने वालों पे हंसता है जमाना।
हैं हीर रांझा, लैला मजनू रोज मर रहे
क्यों इश्क को महफूज नहीं करता जमाना।
जब इंसानियत तड़प तड़प के दम है तोड़ती
सहारे को फिर क्यों नहीं आता है जमाना।
मेरा कमरा तुम्हारी यादें बस ऐसे ही
April 28, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरा कमरा, तुम्हारी यादें बस ऐसे ही
हुई आंखों से बरसातें बस ऐसे ही,
ये कमरे में बिखरे पन्ने बस ऐसे ही
अजी लिखना-विखना छोड़ो बस ऐसे ही।
ये उलझी – उलझी जुल्फें बस ऐसे ही
ये बिन काजल की आंखें बस ऐसे ही।
आंखों से नींदें रुखसत बस ऐसे ही
हर जिम्मेदारी से फुर्सत बस ऐसे ही।
ये फीके फीके होंठ बस ऐसे ही
ये पैरों में कैसी चोट बस ऐसे ही।
क्यों रखती नहीं खयाल बस ऐसे ही
क्यों हालत है बेहाल बस ऐसे ही ।
तुम खुश तो हो उसके साथ या बस ऐसे ही
या फिर होंठों पर मुस्काने बस ऐसे ही।
क्यों झुकती शर्म से आंखें बस ऐसे ही
क्या दिल में अब भी चोर बस ऐसे ही।
किसकी खातिर यार जियूंगी
April 28, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं ना अब ये प्यार करूंगी
ना दिल का व्यापार करूंगी
वो ना गर मिलने आए तो
किसकी खातिर यार जिऊंगी
ना आंखों में काजल दमके
ना हाथों में चूड़ी खनके
ना जुल्फों को रोज संवारूं
ना पांवों में झांझर झनके।
ना अब मैं छत पर जाती हूं
ना चंदा से शर्माती हूं
ना होंठों पर लाल रंग है
ना मैं अब खुद को भाती हूं ।
बुझा बुझा सा जीवन मेरा
अब ना ये श्रृंगार करूंगी।
मैं ना अब ये प्यार करूंगी।।
ना रोटी की चिंता खाए
ना मम्मी की याद सताए
ना जीवन में और समस्या
जिस पर हम रोए मुस्काएं
ना दुनिया से बैर मुझे है
ना कहती हूं प्रेम मुझे है
भीड़ में मैने खोया जब से
ना अब खुद का होश मुझे है।
बस मेरा एक श्याम – सलोना
जिस पर कर संताप मरूंगी।
हमने जब देखा था उनको
मान लिया था साजन जिनको
नहीं पता था टकराएंगे
किस्मत मिलवाएगी हमको
रहें सलामत वो इस खातिर
करवा चौथ का व्रत रखूंगी।
कल जब मैं दुल्हन बन जाऊं
हो सकता है ना मिल पाऊं
तेरी दीद को तरसे आंखें
या फिर मैं उसकी हो जाऊं
हर धड़कन में होगे तुम ही
बस कहने को मांग भरूंगी।
मैं ना अब ये प्यार करूंगी
ना दिल का व्यापार करूंगी
वो ना गर मिलने आए तो
किसकी खातिर यार जिऊंगी।
प्रज्ञा शुक्ला सीतापुर
मां के हाथ का पहला निवाला हो चुकी हूं मैं
April 28, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
हृदय में प्रेम जितना था न्यौछावर कर चुकी हूं मैं
या फिर स्पेस जितना था वहां तक भर चुकी हूं मैं।
मेमोरी कार्ड भी मुझ में इंस्टाल हो नहीं सकता
कि बस पतिदेव की खातिर रीसेट हो चुकी हूं मैं।
मैं ओपन हो नहीं सकती भले कितना भी डाटा हो
फोन की फाइल की तरह करप्ट हो चुकी हूं मैं।
मैं मिंत्रा कार्ड की विशलिस्ट में ब्रांडेड ही चुनती हूं,
कि पापा के मोबाइल का ओ टी पी हो चुकी हूं मैं।
मुझे कोई भले कितनी दफा रीसेंड भी कर दे
बिना सिम कार्ड का खाली मोबाइल हो चुकी हूं मैं ।
कि अब जीबी, और केबी की भला औकात है कितनी
एक ही लार्ज फाइल से लबालब भर चुकी हूं मैं।
खुदी की आजकल मुझको लगी है लत इधर ऐसी
मैं खुद को सर्च करती हूं कि गूगल हो चुकी हूं मैं ।
ब्राइटनेस ही बढ़ी है हर दफा व्यक्तित्व की मेरे
फोटो की तरह ही खुद भी फिल्टर हो चुकी हूं मैं।
ये रेडमी, रियलमी, चाइनीज अपनी मर्जी के मालिक
मै देती साथ अंतिम तक कि सैमसंग हो चुकी हूं मैं।
लक्मी की लिपस्टिक हो तो जल्दी छूट जाती है
ना छूटूं मैं आसानी से मैबलिन हो चुकी हूं मैं।
करूं मैं कॉल कितना भी बीजी जाता है हरदम वो
यानी की मैं समझूं ब्लॉक फिर से हो चुकी हूं मैं ।
भले पीपल के पत्ते कितनी ठंडी छांव देते हों
उनके नेह में वोल्टास एसी हो चुकी हूं मैं।
जोमैटो से मंगाए फूड में है स्वच्छता कितनी
मां के हाथ का पहला निवाला हो चुकी हूं मैं।
देखा तुम आ गए
April 28, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
थी खत्म जिंदगी देखा तुम आ गए
मरना था लाजमी देखा तुम आ गए
विरह की अग्नि में जल रहा था बदन
बन के ठंडी पवन देखा तुम आ गए।
रात में उठ के हम गुनगनाने लगे
गीत जो थे लिखे हम सुनाने लगे
तुम हमारे लिए कुछ भी कर जाओगे
ऐसे सपने भी हम अब सजाने लगे।
नींद से अब जगाने लगे हो प्रिये
मेरे सपनो में आने लगे हो प्रिये
पहले भी थे तुम मेरे हृदय में कहीं
अब तो धड़कन बढ़ाने लगे हो प्रिये।
देखा चेहरा तो मुझको हया आ गई
तेरी बातें भी कुछ इस तरह भा गई
वक्त का कुछ पता अब तो चलता नहीं
तुझसे बातें हुईं और सुबह हो गई ।
हमारा शव जलाया जा रहा है
April 27, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
हमें कितना सताया जा रहा है
हमारा खूं बहाया जा रहा है
लिए फिरता है वो तरकश जुबां में
जिसे गूंगा बताया जा रहा है
मेरी खामोशियां सिसकी में बदली
हमारा मुंह दबाया जा रहा है
बदन की आरजू का भूखा है वो
जिसे सीधा बताया जा रहा है
है गर जिंदा खुदा हमसे मिले फिर
बुतों को क्यों नचाया जा रहा है
नपुंसक हैं हवस के जब पुजारी
भागवत क्यों सुनाया जा रहा है
हमें मर्यादा में रहकर है चलना
हमें ही बेंच खाया जा रहा है
गई थी मायके उम्मीद लेकर
हमें वापस लौटाया जा रहा है
हैं गर मां बाप ही मेरे खुदा तो
उन्हें बहरा बताया जा रहा है
कचहरी तक चली थी पांव नंगे
दलीलों को दबाया जा रहा है
गुनाह उसने किया उसको है माफ़ी
हमें दोषी बताया जा रहा है
जिसे शैतान कहना चाहिए था
उसे स्वामी बताया जा रहा है
हमारे घाव पर मिर्ची लगा कर
हमें ही नोच खाया जा रहा है
चलो अब चैन की सांसें भरूंगी
हमारा शव जलाया जा रहा है ।
दिल बहलता नहीं था
April 27, 2024 in शेर-ओ-शायरी
दिल बहलता नहीं था बहलाए रखा रात भर
तेरी यादों में दीपक जलाए रखा रात भर।
अंधेरा छटते ही तुझसे मुलाकात करेंगे
इसी उम्मीद में दिल को लगाए रखा रात भर।
सीतापुर का वो लड़का
April 27, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं दिल से गया है यार सीतापुर का वो लड़का
आज भी याद आता है सीतापुर का वो लड़का।
देखता था मुझे ऐसे कोई एहसान करता हो
बड़ा मासूम लगता था सीतापुर का वो लड़का ।
पीर अंतस में ही रखकर रो लेता था अकेले में
हमेशा मुस्कुराता था सीतापुर का वो लड़का।
मोहब्बत तो बहुत करता था पर मुझसे छुपाता था
बड़ा नादान था यारों सीतापुर का वो लड़का।
मैं दिल की बात ना कहती मगर वो जान जाता था
समझदार था यारों सीतापुर का वो लड़का।
बड़ी खामोशी से मेरी वो हर एक बात सुनता था
ठहाके फिर लगाता था सीतापुर का वो लड़का।
सुकून को ढूंढता फिरता था जिस्मों के लिफाफों में
मगर फिर लौट आता था सीतापुर का वो लड़का।
मैं तिल तिल मर रही हूं पर वही अनजान है इससे
मेरी हर सांस गिनता था सीतापुर का वो लड़का।
नहीं है गम मगर मुझको फकत इतनी शिकायत है
क्यों मेरी नींद ले बैठा है सीतापुर का वो लड़का।
मेरी रूह से दामन छुड़ा कर के जो जाना था
क्यों मेरे पास आया था सीतापुर का वो लड़का।
है उसकी मांग में सिंदूर और दुल्हन बनी हूं मैं
सुहागन कर गया मुझको सीतापुर का वो लड़का।
यकीं तो है नहीं फिर भी दिले उम्मीद है लेकिन
मुझे भी याद करता है सीतापुर का वो लड़का।
ये नोजोतो के लड़के महज जुगनू बराबर हैं
सूरज चांद जैसा है सीतापुर का वो लड़का।
तुझको छोड़ा है मैने तेरी खैरियत के लिए
April 27, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुझको छोड़ा है मैने तेरी खैरियत के लिए
खुद को जीने के लिए बाप की पगड़ी के लिए
प्यार करता ही नहीं कोई प्यार की खातिर
कोई चमड़ी के लिए तो कोई दमड़ी के लिए
मेरा तकिया मेरे गम की कहानी कहता है
ये जो हंसती हूं ना मैं सब है दिखावे के लिए।
नहीं करता है कोई इश्क जहां में प्रज्ञा
ये जो बनते हैं रिश्ते बस हैं छलावे के लिए।
लिखे हैं खत उसे इतने की बिक गए हैं खुदी
नहीं हैं पैसे पास में जहर खाने के लिए।
अब तो हर कोई मेरा साथ आजमाता है
लोग आते ही हैं मुझे छोड़ कर जाने के लिए।
वो शर्मिंदा नहीं है तो खफा खफा क्यों है
April 27, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो शर्मिंदा नहीं है तो खफा खफा क्यों है
जाना चाहता है वो मगर रुका क्यों है ?
जिसके आगे पत्थर सा बना रहता जमाना है
उसकी छत पे ये अंबर झुका झुका क्यों है ?
हिज्र की आरजू मुझसे फकत करता है मेरा रब
एक उसके ही दरवाज़े अभी रुका क्यों है ?
है दीवानों में गिनती उसके हरगिज जानते हैं हम
मेरे बाद मुझ पर ही मगर रुका क्यों है ?
ये जिस्म पहले तो उदासी ओढ़ लेता था
ये हुस्न तौबा अब छका छका क्यों है ?
लगता है उसको चूम कर आई हवाएं हैं
सवालात करती हैं खुदा खुदा क्यों है ?
आमद हो गई है उसकी मेरे शहर में क्या
कलेजे से ये दम मेरा निकल रहा क्यों है ?
तेरे सिर पर सज के सेहरा
July 9, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
तेरे सिर पर सजके सहरा
प्रश्न तुमसे जब करेगा
यूँ मुझे मस्तक पर रखकर
जा रहे किस ओर तुम हो
तुम कहोगे जा रहा हूँ
लेने अपनी संगिनी को,
तो कहेगा रास्ता उधर है
जा रहे विपरीत तुम हो।
तेरे सिर पर सजके सहरा…।।
वस्ल’ में सज कर तुम्हारी
यामिनी तुमसे मिलेगी
मेरे उपवन की कली वो
प्यार से चुनने लगेगी
तब कोई अल्हड़-सा भंवरा
आ के तुमसे यह कहेगा,
था किया वादा कभी जो
तोड़ते क्यों आज तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सेहरा….।।
जब कोई रुख पर तुम्हारे
जुल्फ अपनी खोल देगा
और तेरे वक्ष से सट करके
लव यू’ बोल देगा
तब करोगे क्या बताओ ?
प्रज्वलित तन हो उठेगा
मैं कहूंगी बेवफा हो
या तो फिर लाचार तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सहरा…।।
मुझसे ज्यादा प्रेम तुमसे
करती है कोई तो बताओ !
गर बसा कोई और दिल में
तो बता दो ना छुपाओ ?
क्या मुझी से प्यार है ???-
जब भी मैं तुमसे पूछ बैठी
कल भी तुम नि:शब्द थे और
आज भी नि:शब्द तुम हो।
तेरे सिर पर सज के सेहरा…।।
नैनों में होगी उदासी
खालीपन होगा ह्रदय में
बाहों में तो सोई होगी,
होगी ना पर वो हृदय में
तब कोई संदेश मेरा
आ के तुमसे ये कहेगा-
मेरी कविताओं का अब भी
हे प्रिये! आधार तुम हो।
Happy music day
June 21, 2023 in शेर-ओ-शायरी
अगर आपके दिल में गिटारवादन
होता है तो समझ जाएँ
आपकी वाट लगने वाली है।😂😂
माना की।।
March 13, 2023 in शेर-ओ-शायरी
माना की हम तुझसे प्यार करते हैं
तुझे देखने का गुनाह रोज़ करते हैं
तेरी तरफ से कुछ नहीं हम ही पीछे पड़े हैं तेरे,
पर तुझे पसंद है तभी तो यार करते हैं।
नये साल की शुरुआत, बर्तन धोने के साथ।।
January 1, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या बदला कुछ नहीं
लहजा बदला???
जी नहीं ।
वक्त ने ली बस करवट
और कह दिया नया साल आ गया
यहाँ तो जैसे फटे हाल थे
वैसे ही हैं
जो सवाल कल गुंजन करते थे
वही आज सर” उठाये ड़े हैं।
ना खाना बनाने के लिए ही
एक दिन की छुट्टी मिली,
ना बर्तन धोने की प्रथा से ही
मुक्ती मिली।
कल दादी बर्तन धुलाती थीं
फिर खाना परोसती थी।
उसके बाद भाभी खाना परोस कर ही बर्तन निकाल देती थीं।
आज मम्मी भी वही करती हैं।
खाना तो खिला देती हैं फिर
बर्तन खाली कर देती हैं।
यही चलता रहेगा शायद!!
अभी मायके में फिर ससुराल में भी…
मैं महरिन थी, हूँ और रहूँगी।
यहाँ धोती हूँ सबके जूठे बर्तन
ससुराल में भी धोऊँगी….।।
नये साल का स्वागत मुझ कामवाली के साथ
नये साल का स्वागत बर्तन धोने के साथ।।।
अस्मिता तो है
December 23, 2022 in शेर-ओ-शायरी
तुम्हारे साथ आते तो अपनी
पहचान खो बैठते
अकेले हैं तो क्या गम है !!
हमारी अस्मिता तो है….

और आखिरी मुलाकात ।।
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह कंगन तेरी खातिर पहने थे जब हम तुम पहली बार मिले थे,❣❤💔
तुम्हें कहां याद होगी वो पहली मुलाकात ‘और आखिरी मुलाकात में तुम अपने ही गुरुर में थे।
ऐसा हमराज चाहिये ।।
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिल की बातें समझ ले
ऐसा हमराज चाहिए
हर कदम साथ दे वो
राजदार चाहिये
ना मैं छोटी ना वो बड़ा
खुद के बराबर ही हो ऐसा
यार चाहिये
ना करे प्यार मुझसे कोई बात नहीं !
पर इज्जत से पेश आये
वो ऐसा समझदार चाहिए
अपनी कहे और
मेरी भी चलने दे मनमर्जियाँ
ऐसा हमसफर मुझको यार चाहिये।।
एक कप काफ़ी
December 6, 2022 in शेर-ओ-शायरी
ले आए हम वह सब कुछ वापस
जो तुमको दिया था कभी
बस अपना दिल वापस ना ला सके…
एक अजनबी संग प्रीत हमने भी करी थी❤
वो दिल में आया और दिल से उतरा भी..!!!
तुम्हारे पास रहने से एक सुकून सा आता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो तो खुद पे गुरूर आ जाता है।
दोस्तों के साथ आखरी बार
कब चाय पी थी याद नहीं
पर तेरे साथ पी वो एक कप कॉफी
आज भी याद है ।
अब इसे नया जख्म ना देना
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ वक्त के लिए खामोश हो गया था
ये दिल !
पर आप फिर से बातें करने लगा है
मायूस हो चुका था दिल!
पर अब फिर से मुस्कुराने लगा है
अब इसे कोई नया जख्म ना देना
क्योंकि तेरे दिये जख़्म से
पहले ही घायल हो चुका है।💔💔
मेरी 8 शब्दों की कहानी
December 6, 2022 in Other
मेरी 8 शब्दों की कहानी
मैं वफा, कल्पना, बुद्धि
और प्रेम की पराकाष्ठा..
ईश्वर का साथ हो तो
December 6, 2022 in Other
ईश्वर का साथ हो तो
खुद पर विश्वास हो तो
हर काम आसान हो जाता है
मंजिल भी मिलती है और
सफर भी कट जाता है
Good thing’s occur…
December 6, 2022 in English Poetry
Good things occur when we think well and create good environment
Every place i visit
December 6, 2022 in English Poetry
every place i visit..
I feel familiar as if there is a relation of births with them.
उससे रिश्ता नहीं रहा लेकिन….
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
उससे रिश्ता नहीं रहा लेकिन
उसका खयाल हर वक्त रहता है
वो मेरे दिल उतर गया है जरूर
उसका रुआब आज भी रहता है
मेरी लेखनी उस बिन नहीं चलती एक कदम,
अल्फ़ाज मेरे होते हैं मगर जिक्र उसका होता है
वो मेरी मोहब्बत क्या नफरत के भी काबिल ना था
फिर भी मेरे दिल में सिर्फ वो ही रहता है
वो मेरे कदमों के भी कहाँ लायक रहा है
फिर भी वो जुनूँ कि तरह मेरे सर पे सवार रहता है
उससे रिश्ता नहीं रहा लेकिन !
उसमें आज भी मुझको रब दिखता है।
मन हमको छल जाता है….
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं याद करेंगे तुझे
हर बार ये प्रण लेते हैं
पर मन हम को छल जाता है।
तेरा मासूम सा चेहरा जब भी
सामने आता है
मन अपने घाव भूल जाता है
तू है तो बड़ा जालिम ‘कान्हा’
पर ये राधा का दिल धड़क जाता है ।
कहाँ है प्रीत का सावन…
December 6, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज एहसास ये हुआ की मैं कितनी अकेली हूँ,
सजल जल नैन भर बरसे
दुख की मैं सहेली हूँ।
कहाँ है प्रीत का सावन??
कहाँ है गीत मनभावन??
कहाँ है प्रेम की गगरी
आज बिल्कुल अकेली हूँ।
नही मैं मोम की गुड़िया
नहीं मैं प्रेम की पुड़िया!
मैं हूँ आकाश की सामर्थ्य,
मैं कितने दर्द झेली हूँ ।।।