परदेश चला गया हमारा लाल

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

चला गया है परदेश हमारा लाल

पूँछ लेता है फोन पर कभी कभी हमारा हाल चाल

  बेटा— बहुत बिजी हूँ माँ टाइम नहीं मिलता

कब आऊँगा वहाँ मुझे भी नहीं पता

कैसी हो माँ पापा का हाल है कैसा।

तुम्हारे गुजारे केलिए भेज रहा हूँ कुछ पैसा

कुछ और कहो वह भी भिजवा दूँगा

रहो मौज से मैं भी मौज से रह रहा।

पर याद तुम्हारी बहुत आती है

कोई माँ देख लेता हूँ तो आँख भर आती है।

पर हूँ मजबूर आ नहीं सकता

यहाँ जिम्मेदारियाँ बहुत हैं

मैं बहुत कामों में घिरा

और कहो माँ सब ठीक है।

बिजली,पानी,राशन,दवादारू की कोई दिक्कत तो नहीं है

घर की  मरम्मत होनी थी क्या करवा ली है

अगले महीने ही तो दिवाली है।

माँ  बोली —-क्या बोलू बस जी रहे हैं

रोटी खा लेतै हैं दिन कट रहे है

क्या होली क्या दिवाली क्या रविवार क्या सोमवार सब दिन एक से है।

हम दो जन में त्योहार कैसे है।

बस देखते रहते है फोन और दरवाजे को कि ये शायद चीर दे

हमारे चारों ओर फैले संनाटे को

और क्या कहूँ पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ जबाव दे चुकी हैं

शरीर अकड़ गया है जोड़ों में बहुत टीस उठती है

अलमारियों में बिलों के  अंबार डले है।

कौन करे भुगतान कैसे हो भुगतना जाने कब के पड़े हैं।

भुगतान देर से होने पर पेनल्टी लग जाती है

पानी,दूरसंचार,गैस,बिजली जब तब कट जाती है ।

और घर–

घर का क्या कहै बह भी  बूड़ा हो चला है

हमारी तरह तन्हां हो गया है।

दीवार छत सब उधड़ सी गयी हैं।

दरवाजे खिड़कियाँ कराह रही है।

बस हम एक दूसरे के हाल पर रो रहे हैं

वह(घर) हमें घूरता है हम उसे घूरते हैं

हमने भीे दिखाई थी  कभी धौंस पैसे की

देकर एक्सट्रा पैसा काम करवा लेंगे किसी और से ही।

पर सबका आलम सरकार सा है।

लेकर पैसा मुकर जाते हैं

जल्द काम खत्म करने का आश्वासन देकर महीनों लगाते हैं

शिकायत करने पर आँखें दिखाते हैं

झुझलाते है नसों में बल देकर ताकत दिखाते हैं

हम हो गये हैं बूढ़े ये जताते हैं ।

बस पूँछ लेते हो हाल ये काफी नहीं है

और भेज देते हो पैसा ये जिम्मेदारी नहीं है

यहाँ भी रोटी कपड़ा और मकान है

सुविधाओं के अन्य सामान हैं ।

फिर क्या है ऐसा क्या है परदेश में

कि तुम भूल गये अपना घर देश

इधर माँ मौन थी

उधर बेटा मौन था

दोनों बुत बन गये कुछ देर सन्नाटा रहा

अपना अपना जबान दोनों के पास था

मगर कोई कुछ न कह सका

इतने में बेटा बोला

माँ फोन रखता हूँ कुछ काम आ पड़ा

समय मिलते ही जल्द ही पूँछ लूँगा हालचाल आपका

इस यरह से संवाद बंद हो गये

बड़ाने को आगे फिर से यही सिलसिले।

          पारुल शर्मा

मैं और तुम

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम को तलाशते तलाशते, खुद को भूल गये

तुम को चाहते चाहते जिन्दगी से रूठ गये।

पारुल शर्मा

सियासत

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो अपनी असलह रूपी कलम को

बारूद से लबरेज कर लें,और दाग दें

दुश्मनों और गद्दारें के तन पर

कि शब्दों के बम रूपी गोले

लहूलुान कर दें,ध्वस्त कर दें

उनके नापाक इरादों को।

सुना है…………

शब्द हथियारों से तेज होते हैं

बारूद से ज्यादा बिस्फोटक होते हैं।

असलह बारूद सरीकी चोट पहुँचते हैं।

हम कलम धारक इतना तो कर सकते हैं।

         पारुल शर्मा

सियासत

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर तरफ आँधियाँ चल रही है नफरतों की

हवाओं की साजिशें हैं या सियासी बुखार है।

पारुल शर्मा

कश्मीर

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनुच्छेद 370 का ही परिणाम हैं जो

कश्मीर में अब भी तिरंगे जलते हैं।

पथराव होता है देश भक्तों पर

और जवानों के तन पे जख्म पलते है।

दुश्मन की कायरता का मनोबल बढ़ता है

जब कानूनी शिकंजे ढीले पड़ते हैं।

मुस्तैद सैन्यबल भी टूट जायेगा

जब देश में दोहरे नियम चलते है।

माँ-बाप*समान परवरिश करते हैं सभी लालों की

तो कश्मीर में पृथक नियम क्यों रहते है।*(भारत और भारत के नियम कानून)

शाहदत पे और कितने सैन्यबल बली चढ़ाओगे

देखो कितने लाल अनुच्छेद 370 की वेदी चढते हैं ।

अनुच्छेद 370 हटाओ या इसे संशोधित  करो

जख्म यूँ ही नहीं नासूर बनते हैं।

असल में  शहादत और वीरता से जुड़ेगे हम तभी

जब अपने नियम को हम स्वस्थ व पक्का कर  लेते हैं।

 

जय हिन्द। जय भारत। वंदे मातरम्

 

 

 

 

गम बनाम खुशी

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

।। गम बनाम खुशी ।।

गम बोला खुशी से —-बता बता दो जा रही हो जिसकी जिंदगी से।

खुशी—वहाँ तो मेरा आना जाना लगा रहता है मैं देख नहीं सकती उनके दुखी चेहरे, तुम जाते हो तो लौटने का नाम नहीं लेते।

गम फिर बोला खुशी से ——-इतनी ही चिंता है तो क्यों जा रही हो उनकी जिंदगी से।

खुशी ——-ईश्वर ने कहा है “मेरे आमंत्रण की सूची(लिस्ट)बहुत लंबी है। सब के घर एक साथ पूरे समय के लिए जाना संभव नहीं है।ऐसा करना बारबार जाना थोड़े थोड़े समय के लिए”।

गम—-अरे उनका ही बता दो जा रही हो जिसकी जिन्दगी से।

खुशी ——-देखो बिन बुलाए जाते नहीं हैं किसी के घर में।वैसे भी तुम्हारा आमंत्रण नहीं है किसी की लिस्ट में।

 

( मुस्कान कायम थी अभी भी गम के चेहरे पर,खुशी सोच रही थी क्योंकि अब उसके सवाल की  बारी थी।)

खुशी ——ये बताओ कोई तुम्हें बुलाता नहीं फिर भी तुम कैसे घुस जाते हो किसी के घर में।

गम—— क्रोध,मोह,ईर्ष्या,छल,कपट,द्वेष,स्वार्थ,कुटिलता और झूठ मेरे मित्र हैं।जो हर घर में अपने कामों में लिप्त हैं।वही पता बता देते हैं और साथ ही द्वार खोल देते हैं हर घर का।

खुशी——-जो सच्चे हैं अच्छे हैं वो भी तो दुखी हैं।और उन में छल कपट द्वेष ईर्ष्या जैसे दोस्ती भी नहीं है।कैसे जगह बना पाते हो तुम उनके घर में ।

गम——–इसकी भी कई वजह हैं वो अधर्म,अन्याय, झूठ के खिलाफ खामोश हैं डरे हैं,तमाशाबीन हैं,निष्क्रिय हैं।ऐसे सन्नाटे भरे वातावरण में दवे पाव जाता हूँ गिद्द सी नजरें गढ़ाये बैठ जाता हूँ।मौका पाते ही मोह से मित्रता कर घुसपैठ कर घर में घुस जाता हूँ।

खुशी ——–जो आवाज उठाते है उनका क्या?

गम——थोड़ी तो दिक्कत होती है उन्हें पर अन्त में पाते है वो मुझ पर विजय।और प्रेरणा,विचार,धर्म,महानायक,महानआत्मा बन जाते हैं।उनके जीवन के हर एक घटनाक्रम से सीख लेके,अनुसरण करके वह भी विजय पाते हैं मुझ पर।

 

(अब खुशी थी दोनों के चेहरों पर सुख-दुख का फेर जान के,अब दोनों चल दिए अपने अपने घर की तलाश में।)

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वधू चाहिए

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

—————– वधू चाहिए ————

आये लड़के वाले छपवाने इस्तहार मेरी संजीवनी में

एक वधू चाहिए आ गयी है कड़की घर में

है परिवार छोटा सा घर गिरवी पड़ा है।

५ लड़कों ४ लड़कियों  से जूझ रहा है ।

पर एक भी बच्चा काम पर नहीं लगा है

घर खर्च व बेटियों की शादी केलिए पैसों का रट्टा पड़ा है ।

आये दिन होते झगड़े घर के कामों केलिए,

क्योंकि सब कतराते हैं अपने ही कामों से

इसलिए धन जुटाना चाहते है,

घर के कामों केलिए कोई इंतजाम चाहते है

अतः संजीवनी द्वारा घर घर हमारा पैगाम भेज दो

और हमारे मुताबिक कोई वधू खोज दो

तो भाई साहब अगर आप को अपनी लड़की से अपार स्नेह है,

तो सुनिए,लड़के वालों का व्यौरा ये है……

स्मार्ट,सावला,कद 4″4 इंच, आकर्षक व्यक्तित्व, ग्रेजुएट

नौकरी केलिए प्रयासरत,पिता सेवानिवृत्त, भाई बहन

सुयोग्य “वर हेतु”—-

सजातिय,स्लिम,गोरी,कद५”१२इंच अतिसुन्दर,

मृदुभाषी,गृहकार्य दक्ष,कामकाजी,उच्च शिक्षित,

पिता कार्यरत,संपन्न परिवार की इसलौती संतान

मैडिको/नॉनमैडिको ( मैडिको को वरीयता )

दहेज रहित “वधू चाहिए” ।

डिटेल इस प्रकार है———–

नाच लेती है, गा लेती है,किचिन में क्या-क्या  पका लेती है

कपड़े-बर्तन धो लेती है,झाड़ू पौंछा लगा लेती है ।

और PG.,PHD,MBA,MCAआदी की डिग्री है

अगर आप की लड़की इतनी ब्रिलियंट है,

तो हमें आपकी लड़की कुछ पसंद है।

शादी के बाद वह काम करेगी,

घर-बाहर रिमोट से चलेगी

देगी अपनी पगार सास के हाथों में

और अपनी मर्जी से रुपया न एक  खर्च करेगी ।

पति क्या करे,कहाँ जाये,कब आये

कितना कमाये,किसे दे, कहाँ गँवाये

इस बारे में सोचे तक नहीं ।

अगर आप की लड़की इतनी सुसंस्कृत है

तो हमें यह रिश्ता मंजूर है।

अगर अभी वह कामा रही है

तो बताओ कितना बचारही है

और कहाँ-कहाँ उड़ा रही है

और जो घर जमीन है पास आपके क्या नाम है उनके।

और बताइए इसके अलावा और कितना धन है,आपके बैंक बैलेंस में ।

उनका यह वायोडाटा दो हमको

जिससे पता लग सके

कि वह हमारी लाइफ के लिए है कितनी सिक्योर।

अगर उसकी यह कुंडली हम सबकी कुंडलीयों से मिल जायेगी।

तो भाई साहब—-

आपको शादी की डेट बता दी जाएगी ।

हम मारे तो मुँह खोले नहीं

हम जलायें तो आह निकले नहीं

हमारे अलावा किसी से बात करे नहीं

घर से निकले चाहे निकले नहीं ।

और जबतक हम में से पास न हो कोई

मायके वालों से तक बात करे नहीं ।

अगर आपकी लड़की इतनी सुशील है।

यो वह हमारे घर की सदस्य है।

बस चार घंटे सोए,एक टाइम खाए

सास ननद जब कहें उनके पाव दबाये

घर में घुसते ही काम पर जुट जाये

चाय,ब्रेकफास्ट,लन्च,डिनर

सबके बैड पर पहुँचाये।

अगर आपकी लड़की इतनी एक्टिव है

तो हमारे  घर में उनके लिए जगह है ।

अब कुछ लेन-लेन की बात हो जाये

शगुन में राई से कार हमारे घर की शोभा बढ़ाये।

नगद २० लाख से कम न हो ।

और शादी की सजावट तो……….

बिल्कुल फिल्मों की शादी सी हो ।

और बरातियों का स्वागत तो…….

चाँदी की सोने से भरी थाल से हो ।

अगर आपके बजट में यह लिस्ट है

तो समधी जी रिश्ता तय हैं ।

क्योंकि कि हमें दहेज रहित विवाह पसंद है ।

पर अगर……………..

आपसे अच्छी पार्टी मिल जायेगी

तो  आपकी लड़की

शादी  केबाद हमेशा केलिए घर वापस आजाएगी

पर अपना सारा सामान हमारे घर ही छोड़ आएगी

और हमारे घर की एक  भी बात किसी को न बताएगी।

अगर आपकी लड़की इतनी सीधी-साधी है ।

तो श्रीमान विवाह में विलंब क्यों है।

मिलते ही २ घंटे बाद  शुभ मुहूर्त है।

शीघ्र संपर्क करें……….

गली-दो नंबरी, मकान न.-420

मुहल्ला -रफूचक्कर

प्रदेश-लूटपाट

मोबाइल न. 2-2=5,420,9211

**” पारुल शर्मा “**

 

गम बनाम खुशी

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

।। गम बनाम खुशी ।।

गम बोला खुशी से —-बता बता दो जा रही हो जिसकी जिंदगी से।

खुशी—वहाँ तो मेरा आना जाना लगा रहता है मैं देख नहीं सकती उनके दुखी चेहरे, तुम जाते हो तो लौटने का नाम नहीं लेते।

गम फिर बोला खुशी से ——-इतनी ही चिंता है तो क्यों जा रही हो उनकी जिंदगी से।

खुशी ——-ईश्वर ने कहा है “मेरे आमंत्रण की सूची(लिस्ट)बहुत लंबी है। सब के घर एक साथ पूरे समय के लिए जाना संभव नहीं है।ऐसा करना बारबार जाना थोड़े थोड़े समय के लिए”।

गम—-अरे उनका ही बता दो जा रही हो जिसकी जिन्दगी से।

खुशी ——-देखो बिन बुलाए जाते नहीं हैं किसी के घर में।वैसे भी तुम्हारा आमंत्रण नहीं है किसी की लिस्ट में।

 

( मुस्कान कायम थी अभी भी गम के चेहरे पर,खुशी सोच रही थी क्योंकि अब उसके सवाल की  बारी थी।)

खुशी ——ये बताओ कोई तुम्हें बुलाता नहीं फिर भी तुम कैसे घुस जाते हो किसी के घर में।

गम—— क्रोध,मोह,ईर्ष्या,छल,कपट,द्वेष,स्वार्थ,कुटिलता और झूठ मेरे मित्र हैं।जो हर घर में अपने कामों में लिप्त हैं।वही पता बता देते हैं और साथ ही द्वार खोल देते हैं हर घर का।

खुशी——-जो सच्चे हैं अच्छे हैं वो भी तो दुखी हैं।और उन में छल कपट द्वेष ईर्ष्या जैसे दोस्ती भी नहीं है।कैसे जगह बना पाते हो तुम उनके घर में ।

गम——–इसकी भी कई वजह हैं वो अधर्म,अन्याय, झूठ के खिलाफ खामोश हैं डरे हैं,तमाशाबीन हैं,निष्क्रिय हैं।ऐसे सन्नाटे भरे वातावरण में दवे पाव जाता हूँ गिद्द सी नजरें गढ़ाये बैठ जाता हूँ।मौका पाते ही मोह से मित्रता कर घुसपैठ कर घर में घुस जाता हूँ।

खुशी ——–जो आवाज उठाते है उनका क्या?

गम——थोड़ी तो दिक्कत होती है उन्हें पर अन्त में पाते है वो मुझ पर विजय।और प्रेरणा,विचार,धर्म,महानायक,महानआत्मा बन जाते हैं।उनके जीवन के हर एक घटनाक्रम से सीख लेके,अनुसरण करके वह भी विजय पाते हैं मुझ पर।

 

(अब खुशी थी दोनों के चेहरों पर सुख-दुख का फेर जान के,अब दोनों चल दिए अपने अपने घर की तलाश में।)

खामोशी

May 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे शब्दों का आज फिर मुँह उतर गया

तुमने फिर  इन पर अपनी खामोशी जो रख दी।

पारुल शर्मा

जिन्दगी

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

“ऐ दिल” तुझसे फुर्सत मिले

जिन्दगी को तभी तो समझूँगा मैं।

पारुल शर्मा

खामोशी

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे शब्दों का आज फिर मुँह उतर गया

तुमने फिर  इन पर अपनी खामोशी जो रख दी।

पारुल शर्मा

खामोशी

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी खामोशी ने ही बिखेर दिया मुझे सफ़हों पर।

और मेरी तमन्ना थी कि तेरी बाँहों का सहारा मिले।

दौलत

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो हर चीज को दौलत से आँकते हैं

उनके दिल कीमती नहीं होते ।

औरत

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

औरतों के घर कहाँ होते हैं जहाँ पैदा हुई वो मायका जहाँ शादी हुई वो ससुराल।
औरतों के अपने कहाँ होते हैं।
एक के लिए पराया धन
दूजे के लिये पराये घर से आयी परायी लड़की। औरतों के सपने कहाँ होते हैं शादी से पहले माँ बाप की कहना सुनना शादी के बाद ससुराल की किसी बात का विरोध न करना
औरतों की जिंदगी कहाँ होती हैं
बचपन में माँ बाप के लिये जीयी
यौवन में पति व ससुराल के लिये मरी औरतों में चेतना कहाँ होती है बचपन माँ बाप जो कहें वही महसूस करती हैं यौवन में पति जो कहे वो ही अहसास करती हैं।
औरतों के नाम कहाँ होते हैं 
बचपन में किसी की बिटिया
यौवन में किसी की बहू
बुढ़ापे में किसी की मईया। और लोग फिर भी कहते हैं 
नारी देवी होती हैं।
पर देवी इतनी गुण विहीन नहीं होती
पारुल शर्मा

सफेद दरख्त

May 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सफेद दरख्त अब उदास हैं
जिन परिंदों के घर बनाये थे
वो अपना आशियाना ले उड़ चले।
सफेद दरख्त अब तन्हा हैं
करारे करारे हरे गुलाबी पत्ते जो झड़ गये
परिंदो के पर उनके हाथों से छूट गये।
सफेद दरख्त अब लाचार हैं
छाव नहीं है उनके तले
अब परिंदों को वो बोझ लगने लगे।
सफेद दरख्त अब असहाय हैं
बदन काँपता है जोड़ों में टीस हैं
अब वो परिंदों के लिए काम के नहीं रहे।
सफेद दरख्त पहले ऐसे न थे
जब युवा थे, सपनों से भरपूर थे
रंग बिरंगी ख्वाहिशों से हरे-भरे,फूले-फले,थे।
आये जब परिंदे गर्भ और जीवन में
तो वो अपनी सुधबुध भूल गये
लगा उन्हें ये कि अमृत मिल गया उन्हें।
अपनी संतान पे कुर्बान कर दी दरख्तों ने
सम्पत्ति,खुशी,लम्हें, सपने और ख्वाहिशें
धीरे-धीरे वो खाली और खोखले हो गये।
जरा भी हौले हौले जकड़ रही थी उनको
अंत: जर्जर हो
वो सफेद दरख्त अब हो गये
उदास,तन्हा लाचार,असहाय,बेबस
क्योंकि वो अब बूढ़े हो गये
क्या इस लिए बेटों ने छोड़ दिया इन्हें।
निकाल फेंक दिया अपने घर से जीवन से
सफेद दरखस्तों को जाने कैसे
जो कभी उनके माँ-बाप हुआ करते थे।
उनके आदर्श,उनके परमात्मा,उनके जिन्ह,
ख्वाबों के मसीहा,सपने पूरे करने वाले
अब परिंदों के लिये सफेद दरख्त पराये हो गये ।
हाँ सफेद दरख्त अब उदास,लाचार,बेबस,तन्हा हो गये हैं।
पारुल शर्मा

वो अक्स अपना देखकर

August 5, 2016 in शेर-ओ-शायरी

वो अक्स अपना देखकर….
भीगी आँखों से मुस्कराई तो होगी
मैंने कहा था उससे कभी….
उसकी आँखें मेरे दिल का आईना हैं.
** ” पारुल शर्मा ” **

इश्क के बाजार में

August 5, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इश्क के बाजार में दिल की तिजारत यूँ हुई
सपनों के बदले नींद गयी
बङी हिफाजत से रखा था प्यार दिल में
रूह,दिल,नजर दिमाक आ गये हिरासत में
खामोशी की लब्जों से बागाबत यूँ हुई ||
** ” पारुल शर्मा ” **

जिन्दगी का फलसफा

August 5, 2016 in शेर-ओ-शायरी

जिन्दगी का फलसफा कौन समझ पाता है
हालात बदलते है नहीं वक्त गुजर जाता है
कल ये हुआ,कल क्या होगा इस कशमकश में, पल पल पिस जाता है
कल बदलता है नहीं आज बिगड़ जाता हैा
** ” पारुल शर्मा ” **

मेरे जख्मों पर तुम मुस्कराना

August 5, 2016 in शेर-ओ-शायरी

मेरे जख्मों पर तुम मुस्कराना आँशू न बहाना
मुस्कराहट मरहम,आँशू नमकीन होते हैं।
** ” पारुल शर्मा ” **

सृष्टी का सम्मान करो, धरती का मान रखो

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बूँद बनी तेजाब कण बना अंगार
ध्वनी शूल बनी वायू बनी आग
इलेक्ट्रोंनिक्स के महीन कटीले झाड़
वाहनों,फेक्ट्रीयों के धुँये का जंजाल
भूमी में रिसते दूषित पदार्थ
तरकारी,फल,फसल,दूध में डले जहरीले पदार्थ
ओजोन परत में हुए सुराग
वनस्पति,पशु,पक्षी व अन्य छोटे जीव से विहीन हुई धरती
कैसा रूप दे रहे हैं हम धरती को !
क्या प्राकृतिक सम्पदा मिल पायेगी अगली पीढ़ी को ?
ये विचारणीय है!
ये चिंतनीय है !
यह विनाश की ओर अग्रणीय है !
अब भी जाग जाओ ,ये चार दीवारी ही नहीं
ये सृष्टी भी तुम्हारी है
तुम धरती के हो,धरती तुम्हारी है
इसका मतलब ये नहीं कि …….
अधिपत्य तुम्हारा ही है इस पर
रहने का हक है और जीवों का भी इस धरती पर
सृष्टी बनी है सभी के सहयोग से
अत: सभी की रक्षा करो पूरे योग से
प्रदूषण जो बड़ रहा है
सन्तुलन बिगड़ रहा है
ये एक दूसरे पर दोषारोपण बंद करो
ये तुम्हारी जिम्मेदारी है
इसमें सबकी भागीदारी है
इसलिये धरती के अच्छे लाल बनो
सृष्टी का सम्मान करो,धरती का मान रखो
प्रदूषण को कम करने में
हर सम्भव योगदान करो।।
** ” पारुल शर्मा ” **

बेटी को घर में आने दो

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस कलि को मुस्कुराने दो
कोख से धरती की गोद में आने दो
बिखेर देगी चारोंतरफ खुशियाँ
खुल के तो इसे मुस्कुराने दो।
बेटी को घरस में आने दो।>2
रोपित करो इसे अपने आँगन में
इसकी नज़र-२ तेरा नजरिया बनेगी
इसकी धड़कन-२ तेरी दुआ बनेगी
इसकी साँस-२ तेरी महक बनेगी
इसकी बात-२ तेरी चहक बनेगी
इसकी कदम-२ तेरे चिन्ह बनेंगे
इसके हाथ-२ तेरी पहचान बनेंगे
इसे अपने आकार में ढल जाने दो। बेटी को………… आने दो॥
किलकारियाँ इसकी जब तेरे आँगन में गूँजेगी
सन्नाटे के पहरों को तोड़ेगी।
हर पहर इसकी मुस्कुराहटें
तेरे दिल को सुकूँ देंगी।
आँखों में कई ख्वाब भर देंगी इसकी बातें
जब तेरे दिल को पढ़ लेंगी।
एक कविता,गज़ल, गीत है हर बेटी।
इस गीत को गुनगुनाने दो। बेटी को……………. आने दो॥
दहेज,उत्पीड़न,शोषण कल और कल की बातें
क्यों मन में खटास रखते हो।
बेटे जैसा मजबूत करे, क्यों कमजोर समझते हो।
दिल,विवेक, संवेदनाऐं दो बेटे को पत्थर नहीं।
बेटी की सी परवरिश में पालो बेटे को भी।
नसीहत,निगरानी बेटे के हिस्से में भी डालो
संस्कृति,नजाकत,सृष्टि, नारी का मान सिखाओ बेटे को भी।
कल ये हुआ !,कल कल..कल क्या होगा ?… इस डर को फिर जाने दो॥
बेटी को घर में आने दो।>2
इस कलि को………………………………….मुस्कुराने दो॥
** ” पारुल शर्मा ” **

बाल श्रमिक

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
पोतता था घर भूख से बिलखता।
कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
कितने ही बच्चे बार-बार।
न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
वक्त, समाज, सरकार!!!
होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
इनका बचपन भी खेलता,
साथियों व खिलौनों के साथ में।
पर जकड़ा !!
गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
दी सरकार ने…
जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
फिर क्या मिला ?
इन्हें इस समाज से
बना दिया सरकार ने..
बस एक ” बाल श्रमिक दिवस”इनके नाम से।
** ” पारुल शर्मा ” **

माँ

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

।। माँ ।।

वो दूर गया है परसों से माँ सोई नहीं है बरसों से
माँ की आँखों से ही तो घर-घर में उजाला है।
ए वक्त,ए हवा,ए फिज़ा जरा संभल मुझे कम न समझ
हर वक्त मेरे साथ मेरी माँ का साया है।
मुझे खौफ नहींअब किसी बदी का
मेरे माथे पर माँ ने काला टीका जो लगाया है।
मैं रोई नहीं, माँ को मेरे गमों की भनक लगे
जब भी मैंने देखा, माँ ने छुप कर भीगा आँचल सुखाया है।
गर्दीशों में भी खुश हूँ,माँ की दुआओं का असर है
वरना जमाने ने तो मेरा कदम कदम पे जनाजा निकाला है।
भूख क्या है आज तक मुझे पता नहीं चला
अभी भी माँ के हाथों में जो निवाला है।
आँख करूणा,हाथ दुलार,होठ दुआ,आँचल ममता,दिल प्यार
यही तो है माँ,माँ में दुनियां व जनन्त का प्यार समाया है।
माँ की फटकार में भी प्यार छुपा है दोस्तों
इस गीली मिट्टी को माँ ने ही तो ढाला है।
जब हर इंसाँ ने माँगा दे दो हमें एक एक ईश्वर
तब जाकर ईश्वर ने माँ को बनाया है।
जब जब भी जन जन ने ईश्वर को पुकारा
माँ ने उन्हें जन्म दे धरती पे उतारा है।
** ” पारुल शर्मा ” **

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