रंगों का खेल

July 31, 2020 in Other

रंगों से ही समा बांधे जाते हैं,
रंगों से ही ये ज़मीं आसमां जाने जाते हैं।
जनाब पर अब तो रंग भी धर्म के नाम पर बाँट दिये जाते हैं,
और ये रंग गुरूर की मिसाल बन जाते हैं।
रंगों के कारण भेद भाव होता देखा है,
पर अब तो रंगों के साथ भेदभाव होता है।
डर लगता है प्रकृति हरी देख कर मुसलमान को न दे दें,
खून लाल देख कर हिंदू का हक न जम जाए।
गुज़रिश् है की रंगों को मन की खुशियाँ ही बढ़ाने दो,
वरना जहाँ में भी सरहद बनकर दंगे शुरू हो जाते हैं।
बाँटने का शौक है तो खुशियाँ बांटो, दुख दर्द बांटो,
ये रंग क्या चीज है???

कैसे कहूँ?

June 20, 2020 in Other

कैसे कहूँ, किससे कहूं कि हाल ए दिल क्या है,
रोना अकेले ही है अंजाम ए बयान क्या है।
जब तक खुश रहती हूँ, लोगों की हंसी सुनाई देती है।
जब दुखी होती हूँ बस अपनी चीख सुनाई देती है।
बाते बहुत है पर डर लगता है कुछ कहने से,
बहुत से किस्से हैं दिल के कोने में सहमे से।
डर लगता है लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे मेरी बाते सुनकर।
इसीलिए मैंने भी खुद को छुपा लिया कुछ किरदार चुनकर।
खुदको खोने का डर भी सताता है,
आइना भी अब किरदार ही दिखाता है।
दुःख है भी तो बयान नही हो पाता है,
किरदार मेरा दर्द छुपाना ही सिखाता है।
पास हूं मैं बहुत से लोगों के, कुछ लोग मेरे लिए जरूरी हैं।
पर किसी से कुछ न कह पाना पता नहीं कैसी मजबूरी है।

Fear

April 30, 2019 in English Poetry

Not afraid of being judged,
Nor my image being smudged.
No fear of the talks that give me tear,
Nor from the one that makes my heart wear.
But petrified of being misunderstood,
Once it happens my heart is not less than wood.
That is being cut from the stoned words,
This is the only fear in my eyes that lurks.

शोक

February 23, 2019 in शेर-ओ-शायरी

तुम ज़िंदगी से जीते नहीं,मगर लड़े तो थे.
यह बात कम नहीं कि तुम जिद पर अड़े तो थे.
गम तो हमेशा रहेगा कि बचा ना सके तुम्हे,
वरना हमे बचाने तुम तो वहाँ खड़े ही थे……

दरिंदगी

July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितने दरिंदगी के हाँथ है इस दुनिया में,
कि अब इंसानियत का चेहरा शर्म से लाल है।
और उस बच्ची का जिस्म खून से बदहाल है।
दिल में ख्वाब थे,कन्धों पर किताबों का बोझ ,
चली जा रही थी स्कूल अपनी तकदीर लिखने ,
बड़ी मासूम थी उस बच्ची की सोच।
पीछे आहट थी कुछ काले क़दमों की,
और वो ही शुरुआत थी इन गहरे जख्मों की।
वो दिल्ली की मोमबत्ती पिघल कर ,
बेह गयी है इस दरिंदगी के दरिये में।
वो शख्स नहीं मर्द है,जो देता ऐसे दर्द है,
जिसका इस दुनिया में न कोई मर्ज़ है।
इस बार वो नादान आबरू नहीं,
मर्दानगी शर्मसार होगी।
अब वो नादान इज़्ज़त नहीं,
मर्दानगी की परिभाषा लूटेगी।
हिन्दू हो या हो मुसलमान ,
हर एक होता है इस देश की जान,
उनके जिस्म को नोच कर ,
हज़ारों की रूह को रुलाया है तुमने।
अपने ही आप को अपनी मां बहन की नज़रों में,
गिराया है तुमने।
ना जाने कितनी आँखों के काजल को फैलाया है तुमने।
आँखों की बारिश को जगाया है तुमने ।
और इसी बारिश की बाढ़ से अब तुम्हारा अंत होगा,
पर याद रखना इस पवित्र मिटटी से न तुम्हारा कभी मिलन होगा।
तुम दरिंदों की मौत तो इन आँखों की आग से ही हो जायेगी ।
मगर तुम्हारी औकात नहीं की हमारी आँखों में सर उठा कर देख लो।

डर

June 30, 2018 in शेर-ओ-शायरी

डर अब अँधेरी रातों से नहीं लगता,
क्योंकि रातें अपने आगोश में सुला लेती है।
डर तो रौशनी की किरणों से लगता है,
क्योंकि रौशनी सब कुछ साफ़ साफ़ दिखा देती है।

बचपन

June 29, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बारिश के मौसम में कागज़ की कश्ती
डूबने का इंतज़ार ही करती रह गयी।
और ये बच्चे उड़ने के सपने लिए
उस कागज़ को पढ़ते ही रह गए।

मैदान ए जंग

June 29, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ज़िन्दगी की जंग के मैदान में,
तुम भी खड़े हो मैं भी खड़ी हूँ।
फ़र्क है तो इतना की मैं किसी को मारना नहीं चाहती,
और तुम किसी और से मरना नहीं चाहते।

गुस्ताखियाँ

May 13, 2018 in ग़ज़ल

यूं तो अरमानों के इरादे भी परेशान हैं,
पानी की बूँदें भी आँखों की बारिश से हैरान हैं|
पर जनाब हमारी गुस्ताखियों की भी हद नहीं होती,
ऐसी केफ़ियत में अपनी ही परछाई में सुकून ढूँढ लिया करते हैं|

दुनिया जीतकर मैं ममता हार गयी

May 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल पड़ी उस राह पर,जहां काटें बहुत थे|
माँ, तेरी फूल जैसी गोदी से उतरकर ये काटें बहुत चुभ रहे थे|
चलते हुए एक ऐसा काटा चुभा था,
कि ज़ख्म से खून आज भी निकल रहा है|
माँ, मंजिल पर तो पहुँच गयी हूँ,
पर इसकी ख़ुशी मनाने के लिए है तू ही नहीं है|
यूं तो मैं तेरी मल्लिका थी,
पर मैं तुझे रानी बनाना चाहती थी|
लेकिन पता नहीं था मुझे कि तेरे दिल में,
मुझे पाने का फ़कीर जिंदा था|
माँ, वो तेरे शब्द जो मैंने सफलता के फितूर में अनसुने किये थे,
आज सिर्फ वो ही दिन रात मेरे कानों को सुकून देते हैं|
तूने कहा था कि ज़िन्दगी ख्वाहिशों से नहीं ज़रूरतों से जीते हैं,
पर मैं तो ख्वाहिशों के पीछे ही पागल थी|
भूल गयी थी कि मेरी ख्वाहिश तेरी ज़रुरत थी,
पर अब…….दोनों ही नहीं हैं|
नाम पाने की अंधी चाहत में मुझे,
तेरे मुझको पाने के आँसू ही दिखाई नहीं दिए|
तू ही मेरी कहानी की कातिब थी,
पर अब……..दोनों ही नहीं है|
माँ, तेरी वो तकिया आज भी गीली है,
बस फ़र्क इतना है की पहले
वो मेरी याद में गिरे तेरे आँसुओं की नमी थी
और आज तेरी याद में गिरे मेरे आँसुओं की नमी है|
जीत गयी हूँ पूरी दुनिया पर मैं तेरी ममता ही हार गयी|
इस कामयाबी पाने की तेज रफ़्तार वाली दौड़ में,
भूल गयी थी की तेरे घुटनों में दर्द होगा|
अब तो बस तेरी यादें ही हैं,टूटे हुए इरादे ही हैं|
सोचती हूँ की तू फिर अपने हांथों से रोटी खिलायगी,
अपने हांथों से मेरी गुथी छोटी बनायेगी,
फिर से मुझे अपनी गोद में सुलायेगी|
सोचूं कि तू रसोईघर में है,
और तेरे हांथों में मेरे लिए खाना है|
पर पीछे मुड़कर देखूं तो वहां,
कामवाली दीदी का सिर्फ बहाना ही है|
माँ तेरी पायल आजकल मैं ही पहनने लगी हूँ,
ताकि खुदको तेरे होने का एहसास करा सकूं|
पर ये पायल भी मेरे पैरों में बजती नहीं,
और ये मुझमे जचती भी नहीं|
माँ, दिन रात काम करके तेरा सुकून चाहती रही,
पर भूल गयी कि मेरी नींद में तेरा सुकून था|
माँ की ममता एक ऐसा ही फ़र्ज़ है,
कभी न अदा होने वाला क़र्ज़ है|
माँ, तेरी यादों में लिपटकर रो चुकी हूँ,
तेरे साथ रहने के सारे लम्हे अब खो चुकी हूँ|

नींद

May 8, 2018 in ग़ज़ल

आजकल नींद सोती है मेरे बिस्तर पर,
और मैं तो ख्यालों की दुनिया मैं टहलने निकल जाती हूँ|

जीतना

May 8, 2018 in ग़ज़ल

मुझको मुझसे जीत कर,
खुशियाँ मना रहे थे वो|
शायद हारकर जीतने और जीत कर हारने के ,
उस एहसास से वाकिफ़ न थे वो|

The Dark Night

May 8, 2018 in English Poetry

She was walking alone on the street,
having shoes in foot with cleat.
It was the darkest day of her life,
like someone stabbed her with knife.
Moon was shining,
darkness was thriving.
In the midst of glimmering whiteness,
she was there with forthrightness.
Her steps shortened suddenly,
frightened by the some steps coming cunningly.
Those were the steps of some dolt,
they pushed her with a jolt.
She was there lying on the street,
and was asking for help with shriek.
Nobody came,nobody listened her voice.
Of course that’s the peoples’ own choice.
Then the degraded moment happened-
She was raped by those beast,
after that glimmering of moon ceased.
There with worn out clothes she was lying,
and the humanity was crying.
Please tell me what was the girl’s mistake,
that she had to suffer from such ache.
Today, also she is crying for justice.
She is treated by idiots just like dust is.
God,really those dolts need a brain,
or otherwise,they should be slain.

भारत के रक्षक

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतिहास है आज भी जिस पर मौन,
वह है आखिर कौन, वह है आखिर कौन?
जो लड़ता रहा हर समय किसी के लिए,
और मरता रहा किसी के लिए|
रहता है वो सबसे दूर,
देश के प्यार में है वो मजबूर|
दो देशों की ‘नेतागिरी’,
जिसमे है अब सेना ‘गिरी’|
जिसकी माँ करती उसके लिए हमेशा इंतज़ार|
बेटी कहती है बार बार,लगता है हो गये साल हज़ार आपका करे दीदार|
न जाने क्यों बटा है ये जहां,
जिसमे ली है लोगों ने पनाह|
हर देश की है अपनी सरहद,
पर एक माँ की ममता की कैसी हद?
कहते हैं अगर करोगे कोई रहमत,
तो मिलेगी दुनिया की हर खुशामत,
तो क्या रहमत किसी की जान बचाना नहीं होता?
या देश का सम्मान बचाना नहीं होता?
अगर होता है तो ऐ खुदा,
क्यूँ हो जाते हैं वो जुदा?
जो करते है अपनी जान कुर्बान,
बचाने इस देश का सम्मान|
माना खुदा रहमत से मिलता है स्वर्ग,
पर कौन ख़त्म करेगा एक माँ की आँखों का दर्द|
मिल जाता है उन्हें हर बड़ा सम्मान,
पर खो जाता है एक बेटी की ज़िन्दगी से बाप का नाम|
फिर भी जाते है सिपाही,भले ही दे दें अपनी जान|
इसीलिए तो कहते है अपना भारत महान|

भारत के रक्षक

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतिहास है आज भी जिस पर मौन,
वह है आखिर कौन, वह है आखिर कौन?
जो लड़ता रहा हर समय किसी के लिए,
और मरता रहा किसी के लिए|
रहता है वो सबसे दूर,
देश के प्यार में है वो मजबूर|
दो देशों की ‘नेतागिरी’,
जिसमे है अब सेना ‘गिरी’|
जिसकी माँ करती उसके लिए हमेशा इंतज़ार|
बेटी कहती है बार बार,लगता है हो गये साल हज़ार आपका करे दीदार|
न जाने क्यों बटा है ये जहां,
जिसमे ली है लोगों ने पनाह|
हर देश की है अपनी सरहद,
पर एक माँ की ममता की कैसी हद?
कहते हैं अगर करोगे कोई रहमत,
तो मिलेगी दुनिया की हर खुशामत,
तो क्या रहमत किसी की जान बचाना नहीं होता?
या देश का सम्मान बचाना नहीं होता?
अगर होता है तो ऐ खुदा,
क्यूँ हो जाते हैं वो जुदा?
जो करते है अपनी जान कुर्बान,
बचाने इस देश का सम्मान|
माना खुदा रहमत से मिलता है स्वर्ग,
पर कौन ख़त्म करेगा एक माँ की आँखों का दर्द|
मिल जाता है उन्हें हर बड़ा सम्मान,
पर खो जाता है एक बेटी की ज़िन्दगी से बाप का नाम|
फिर भी जाते है सिपाही,भले ही दे दें अपनी जान|
इसीलिए तो कहते है अपना भारत महान|

नादान

May 6, 2018 in ग़ज़ल

हर एक तनहा लम्हे में एक अर्थ ढूँढा करती थी|
हर अँधेरी रुसवाई में गहरा अक्श ढूँढा करती थी |
मैं मेरी परछाई में एक शख्स ढूँढा करती थी|
मेरी मुझसे हुई जुदाई में कुछ वक़्त ढूँढा करती थी |
लोग कहते थे की नादानी का असर है,
मैं उस नादानी में भी कदर ढूँढा करती थी|

दिल और दिमाग

May 6, 2018 in ग़ज़ल

यूँ तो दिल उबल रहा है,
शब्दों के उबाल से |
और ये कम्बखत दिमाग कहता है,
अपने ज़ज्बातों को संभाल ले |

तन्हाई

May 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

न जाने क्यों एक तन्हाई सी छा रही है,
ज़िन्दगी एक कहानी सी बनती जा रही है।
न जाने क्यों ये दिल खुद को अकेला पा रहा है ,
हकीकत से परे ही जा रहा है।
आँखों से दर्द बह रहा है,
पानी तो सिर्फ एक जरिया है।
न जाने तन्हाई का कितना बड़ा दरिया है।
इन राहों में बहुत सी ‘जानें’ हैं,
पर दुःख तो यह है कि सभी अनजाने हैं।
बस!चल पड़ी अब सच की राह पर,
सच्ची दुनिया पाने की चाह पर।
पर ये सच अकेलापन क्यों है लाया?
हाँ! क्योंकि मैंने झूठ को था अपना बनाया।
अब सच की राह पर झूठ पिघलता जा रहा है,
और पिघलते-पिघलते सच उगलता जा रहा है।
फिर सच की राह से,सच्चाई की चाह में,
पहुंची हूँ एक ऐसी जगह जहाँ दुनिया की सच्चाई है
इस बार तो मात झूठ की परछाई ने खाई है।
नहीं पहुँची हूँ मंदिर,मस्जिद या गिरिजाघर,
पहुँची हूँ एक अनाथ के दिल के घर।
उनकी तन्हाई देखकर मुझसे है मेरी तन्हाई रूठी,
आखिर वो थी ही झूठी।
अनाथ होते हैं तन्हा फिर भी जीते हैं हर एक लम्हा।
सना होता है उनका दिल प्यार के खून से,
उत्साह, इच्छा और जूनून से।
और मैं कर रही थी मेरे तनहे होने की बात,
वो भी तब जब मेरे अपने हैं मेरे साथ।

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