मौसम सुहाना सावन का

July 22, 2020 in गीत

मौसम सुहाना सावन का आया,
संग अपने उत्सवों का पिटारा लाया
ठंडी ठंडी ये बहती पवन,
बागों में खिले हैं कितने सुमन
आए जब बरखा की फुहार,
पिया भी करे हैं मनुहार
अंगना में भीगे मेरी धानी चुनर,
पिया को भाएं मेरे सारे हुनर
गीत लिखूं या खिलाऊं मैं खाना,
वो हंस के बोलें एक और तो लाना
सखियां सारी दिखाएं मेहंदी वाले हाथ,
मां गौरी से मांगू मैं सदा “उनका”साथ

ये कलियुग है

July 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कलियुग है, इस में सतयुग सी बात कहां,
जो प्यार करे ,कहलाए दीवाना
परवाह करे ,उसे पागल माना
तिनका चुगता है हंस यहां,
मोती खाए कौवा काना
जो चाल चले टेढी मेढ़ी,
चढ़ जाता जल्दी सीढ़ी पर,
जो सीधे रस्ते चलता है,
रह जाता है पीछे यहां
ये कलियुग है इस में सतयुग सी बात कहां…

ए वक्त बात बता क्या थी

July 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ए वक्त तू गवाह है मेरा,
तू बात, बता क्या थी
हम बिछड़ गए, मेरी खता क्या थी
हजारों बंदिशें भी थीं,हजारों मिन्नतें भी की
समझा ना ये ज़माना ,ये बात पता क्या थी
वो माने नहीं, मेरी दलीलों को कभी,
इससे बड़ी सज़ा क्या थी
ना सोचा था, ना समझा था कभी ,
कि ऊपर वाले की रजा क्या थी

प्रकृति का बदलाव

July 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कलरव करता पंछी उड़ा आकाश तो अच्छा लगा,
शुद्ध हवा में आई सांस तो अच्छा लगा
ये कोरोना आया तो गलत है लेकिन,
प्रकृति का ये बदलाव अच्छा लगा
तारे चमक रहे हैं निर्बाध चमचम,
वो चमकता चांद भी अच्छा लगा
दूर नगर में उदास था कोई अपना,
वो आ गया है पास तो अच्छा लगा
ये शहर है अनजानों का मगर,
मिल गया कोई ख़ास तो अच्छा लगा

राखी बंधन

July 19, 2020 in गीत

अब के बरस भैया पीहर ना आऊं,
बांधन को राखी तोय रे
रस्ते में बैरी कोरोना खड़ा है,
नजर वो रखे है मोए पे
डाक से भेजी है भैया को राखी,
भतीजी से लियो बंधवाए रे
अगले बरस बैरी कोरोना का अंत होगा,
फिर बांधूंगी राखी ,तोए आए के

अनदेखे, अनजाने दोस्त

July 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“सावन” पर मुझे मिले,
कुछ अनदेखे, अनजाने दोस्त
जिनकी समीक्षा पाने की,
प्रतीक्षा रहती है हर रोज़
लेखन की इस नगरी में,
स्वागत करते हैं सबका
शत शत नमन है उन मित्रों को,🙏
मेरा भी स्वागत किया
धन्यवाद है, धन्यवाद है
अनदेखे, अनजाने अब,
लगते हैं पहचाने से….

मेरा मन

July 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोना तपा कुंदन बना,
कुंदन तप के राख
मैं तपी तपती रही,
कुंदन बनी ना राख
बरखा ऋतु आई,
आई नई कोंपल हर शाख
मेरे मन भी उठी उमंगें,
छू लूं मैं आकाश

वो मेरी बचपन की सखी

July 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मेरी बचपन की सखी,
मिली मुझे कितने दिन बाद
जानती थी मैं ये कबसे,
आएगी उसे एक दिन मेरी याद
घर गृहस्थी में व्यस्त रही थी,
चेतन मन में थे कितने काम
पर अवचेतन मन में थी मैं कहीं ना कहीं,
ये उसको भी ना था भान
जब फुर्सत के क्षण आए तो,
याद आई होंगी बचपन की बातें
यूं ही तो नहीं छूटते बचपन के प्यारे नाते
रोक ना पाई वो खुद को, संदेशा भिजवाया मुझे
मैं भी भागी भागी आई, कितने दिन बाद वो पाई
वो मेरी बचपन की सखी….

मां के साथ ये कौन है

July 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हास्य कविता
बिट्टू घूम रहा था गुमसुम,
हाथ में लेकर एक फोटो
मां ना जाए छोड़कर कहीं,
इस उलझन में था वो
नाना जी को फोन लगाया,
अपने मन का हाल बताया
नाना -नानी अचरज में आए,
बेटी को फिर फोन लगाए
“बिट्टू ये क्या बोल रहा है”
किस फ़ोटो को ले डोल रहा है
फ़ोटो देख के मां मुसकाई,
सारी बात समझ में आई
मां-पापा की शादी की फ़ोटो लेकर,
बिट्टू गुमसुम घूम रहा है
पापा को पहचान ना पाया,
क्योंकि बाल उड़े और पेट बढ़ आया
फ़ोटो देख के उसका सिर चकराया,
बिट्टू कितना था घबराया
बिट्टू का भोलापन सबको भाया,
हंस हंस कर सबका पेट दुख-आया

महफ़िल

July 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिस महफ़िल में कोई जानता ना हो,
उस महफ़िल में जाना क्यूं है
जिस महफ़िल में,अनसुना कर दें तुझे
उस महफ़िल में, कुछ सुनाना क्यूं है
मुखौटे लगा कर बैठे हैं लोग जहां,
वहां तुझे भी मुखौटा लगाना क्यूं है
झूठ से ही .गर ख़ुश हैं कुछ लोग,
“गीता” तुझे सच बताना क्यूं है

ये रणबांकुरे भारत के

July 4, 2020 in Poetry on Picture Contest

ये रणबांकुरे भारत के,सीमा पर देखो खड़े हैं
हम चैन से सोएं रातों को, दुश्मन से वो लड़े हैं
गर्मी का मौसम हो,या पड़े कड़कती सर्दी
भारत मां की रक्षा करते ,पहन के फौजी वर्दी
याद आती है घर की मगर,फिर भी इन्हें सुहाती ये डगर
अड़ियल है दुश्मन, बर्फीली वादी
खाने को मिलती है, अक्सर रोटी सादी
देशभक्ति मन में लिए,सरहद पर सैनिक खड़े हैं
दिल से नमन है उन वीरों को,
भारत मां की रक्षा खातिर, जो बैरी से लड़े हैं

जो बीत गई…

June 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो बीत गई वो याद बनी,
यादों में एक चेहरा मुस्काया है
आंखें हैं नम, दिल में है .गम,
होठों ने गीत नया एक गाया है
जो बीत गई वो याद बनी,
यादों में चेहरा एक समाया है
कहीं पर भी हों वो, दिल से दूर नहीं हैं
कुछ यादों ने, कुछ ख्वाबों ने अक्सर हमको मिलवाया है
जो बीत गई वो याद बनी…
यादों ने गीत नया लिखवाया है

हृदय की वेदना

June 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हृदय की वेदना जब सीमा के पार हुई
कोशिशें बहुत कीं कम करने की,
पर वो शमशीर की धार हुई
तब लेखनी चल पड़ी मेरी, दर्द कम करने के लिए
दिल के जज्बातों को जब -जब किया बयां,
एक कविता हर बार हुई

बहती नदिया सी बह गई मैं

June 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोभी दुनियां में जी गई मैं,
विष का प्याला पी गई मैं
ना मीरा हूं ना नीलकंठ,
फिर भी सब झेल गई
मानों प्राणों पर खेल गई,
हुई भावहीन,हुई उदासीन
कंचन सी निखर गई,
टूटे मोती सी बिखर गई
अंतर्मुखी सब कहने लगे,
सबका कहना सह गई मैं,
बहती नदिया सी बह गई मैं

,साधना

June 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी पत्थर की मूरत में,
लगी सूरत खुदा की सी
उसे पूजा उसे माना,
उसे अपना खुदा जाना
बड़ी भूल हुई अरे हमसे,
आंखों से आंसू निकल पड़े,
व्यर्थ गई सब साधना
निरा पत्थर का बुत निकला,
जिसे हमने खुदा जाना

जब तू याद आया

June 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब मैं हुई उदास, तो तेरा मुस्कुराना याद आया
जब हुई तुझसे दूर, तो तेरा पास आना याद आया
तू नहीं आया, पर तेरी याद चली आई
तेरी याद से मिलकर, मुझे मुस्कुराना याद आया
किताब में रख़ा मिला एक सूख़ा फ़ूल गुलाब का
आज फ़िर से वो किस्सा सुहाना याद आया
आंखों में नमी है, मग़र रोती नहीं हूं मैं
किसी को दिया हुआ, एक वादा पुराना याद आया
फुर्सत से बीत जाते हैं, जब कुछ पल मेरे
मुझे फ़िर वो गुज़रा ज़माना याद आया

तन्हाई हमें रास आने लगी

June 9, 2020 in ग़ज़ल

महफ़िलों से डर लगने लगा,
तन्हाई हमें रास आने लगी
दोस्तों में हमें ऐ ख़ुदा,
दुश्मनी की बांस आने लगी
समझा था जिसे अपना हमसफ़र,
उसी ने बदल दी है अपनी डग़र
दो राहे पे हमें छोड़कर,
चल दिये वो मुंह मोड़कर
आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी
दोस्तों में हमें ऐ ख़ुदा दुश्मनी की बांस आने लगी

सपने मिट गए, अरमां लुट गए,
भरे बाज़ार में हम तो लुट-पिट गए
जब लुट गए तब लगी थी ख़बर,
हमीं को हमारी लगी थी नज़र
जुबां चुप थी, आंखें मग़र सब राज़ कहने लगी
दोस्तों में हमें ऐ ख़ुदा ……

अन्देखा, अन्जाना बैरी ( कोरोना)

June 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शहर में छिपा है अन्देखा ,अन्जाना बैरी दोस्तों
इससे जीतने की कर लो तैयारी दोस्तों
आता नहीं नज़र,पर रख़ता है वो नज़र,
ना रहना इससे तुम बेख़बर दोस्तों
वो करता है वार, जाते ही बाहर
बचना है इसके प्रहार से दोस्तों
निकलो नकाब पहन के, दो गज़ की दूरी बनाके
नमस्ते का तौर-तरीक़ा है असरदार दोस्तों
मिलने को जी चाहे ग़र प्रियजनों से,
तो करते रहना फ़ोन बार -बार दोस्तों
श्रंखला तोड़ दो, सामाजिक दूरी से
कर सकते हो तुम ये चमत्कार दोस्तों

चल पडे बैठकर रेल में

June 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

ये मेहनतकश हैं भारत के,
चल पडे बैठकर रेल में
इनकी दुविधा समझें हम सब,
ना लें इसको खेल में
देश बन्द हुआ, काम बन्द हुआ
पेट बन्द तो नहीं होता
काम नहीं, कमाई नहीं है,
भूखे पेट कैसे सोता.,
ना खाना है ना दूध मिला
घर में भुखा बालक रोता
भुखमरी की दुर्दशा रहे थे ये झेल
गांव इनके इनको ले चली ये रेल

New Report

Close