यादें

August 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

चंद लम्हे यादों के, जीना सिखा गए
वरना, ज़िन्दगी जीना आसान नहीं होता।

वादा

August 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आंखों में नमी है,मगर रोती नहीं हूं मैं,
किसी से किया हुआ,एक वादा पुराना याद आया।

बरखा ऋतु

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज फ़िर मेघा बरसे, रिमझिम – रिमझिम,
मन – मयूर नृत्य कर उठा, छ्मछम – छमछम।
ठंडी – ठंडी पवन चली है,
खिल उठे सारे वन – उपवन।
वृक्ष भी नाचें ,झूम – झूमकर,
लिपटी लताएं चूम – चूमकर,
गीत सुरीला गाती हैं।
बरखा ऋतु आने से आई ,नई कोंपल हर शाख
मेरे मन भी उठी उमांगें, छू लूं मैं आकाश।

योग करें

August 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कल के इस माहौल में, जहां जिम (व्यायाम – शालाएं) बंद हो चुकी है। तो हमें घर पर ही योगाभ्यास करना चाहिए।इसी संदर्भ में मेरी एक प्रस्तुति……

योग करें, सब योग करें
रहने को निरोग करें।
नकारात्मक विचारों से दूर रहें सदा,
नकारात्मकता, का विरोध करें।
योग करें सब योग करें……
हो सके तो रोज़ करें।
हर बीमारी भी मिट जाएगी,
तेरी हस्ती भी खिल जाएगी।
ईश्वर ने मानव जन्म दिया,
इतना सुंदर जीवन दिया।
मुक्त इसको रखो रोग से,
संभव होगा , ये योग से।
अवसाद, घृणा सब दूर भगे,
अंतर्मन भी शुद्ध लगे।
मन- मस्तिष्क सब खुल जाते हैं,
दूषित विचार भी धुल जाते हैं।
मेरे अनुभव का उपयोग करें,
योग करें सब योग करें।

माता – पिता

August 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पिता बरगद का साया है,
मां ममता की छाया है।
जीवन में दोनो ही का,
स्नेह मैंने पाया है।
एक भी ना हो जीवन में,
वो जीवन किसको भाया है।
जहां मां का दिल कोमल सा,
बोली मीठी है , कोयल सी।
नारियल सा पिता दिखता,
हमेशा सख्त ही कहता है।
पर भीतर से नर्म है वो,
सारे दुख खुद ही सहता है।
किसी के भी जीवन में,
ज़रूरी है दोनों का साथ,
बना रहे मां का आंचल भी,
बना रहे पिता का सिर पर हाथ।

सज़ा

August 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हमने कभी बयां नहीं किया,
आदत नहीं थी गम बताने की।
वो भी नहीं समझे दर्द मेरा,
यही सज़ा मिली गम छिपाने की।

नसीब अपना अपना…

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नसीब सबका है अपना – अपना ,
कहीं ख्वाब परवान चढ़े, कहीं हुआ झूठा कोई सपना।
ज़िन्दगी में जो मिला, वो भी कुछ काम ना था।
ऐसा भी नहीं है, कि कोई ग़म ना था।
कुछ दर्द ऐसे भी है, जो बिन कहे ही सह गए,
कुछ ख्वाब ऐसे भी हैं, जो आंसुओं संग बह गए।

एक फ़रिश्ता

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

साक्षात्कार था मेरा उस दिन,
चिंता से था हृदय धड़कता।
एक दस का नोट पड़ा जेब में,
ऑफिस तक की भी बस कैसे पकड़ता।
दो सौ रुपयों की दरकार थी,
ज़िन्दगी से मेरी तकरार थी।
एक मंदिर की सीढ़ी पर बैठ गया,
बोला भगवान दया कर दे।
मेरे इन हाथों में भी,खुशियों की रेखा भर दे।
आकाश फूट अम्बर से आई गहरी आवाज़ एक,
रे मूर्ख व्यर्थ क्यों रोता है,तू आंख उठा कर उधर देख।
एक फ़कीर देख रहा था मुझको,
बोला, “बेटा क्या चाहिए तुझको ”
मैं बोला, बाबा सुन कर क्या करोगे
तुम खुद दुखी हो, मेरा दुख क्या हरोगे।
वो बोले, बच्चा तकलीफ़ बता,
मैं ही मदद कर दूं क्या पता।
मेरा अंतर्मन सकुचाए,ना जा पाने का दर्द भी सताए।
बाबा ने कुछ समझा शायद,कुछ रुपए मेरे हाथ में थमाए।
तुम चंद मिनट हो लेट, द्वार पर चपरासी ने बतलाया,
मैं मेल – ट्रेन की तरह दौड़ता, कमरे के भीतर आया।
इंटरव्यू अच्छा गया था, नौकरी भी मिल गई,
नौकरी मिलते ही ,मेरी तबीयत भी खिल गई।
आभार जताने पहुंचा बाबा का,जब में मंदिर के जीने पर,
बाबा नहीं मिले, बस देह मिली
रो पड़ा लिपट के सीने पर।
कुछ लोग बात कर रहे थे—–
“बीमार थे बाबा,दवाई पर जी रहे थे”।
कल दवाई नहीं मिल पाई, बाबा ने यूं जान गंवाईं।
अपनी दवाई के रुपए, वो मुझे दे गया।
वो फ़कीर नहीं, एक फ़रिश्ता था,
सब उस पर करते थे दया,वो मुझ पर कर गया
कैसा वो इंसान था, मेरे लिए भगवान था।
बहुत रोया मैं, उन्हें बहुत याद किया,
उनकी आत्मा को शांति देना भगवन् ,
दिल से ये फ़रियाद किया।

कोरोना

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंसान इंसान से डरने लगा
अदृश्य जीवों से मरने लगा,
ज़िन्दगी महकती थी जिन लोगों से कभी,
उनसे मिलने से मुकरने लगा।
वो दौर ना रहा, ये दौर भी जाएगा,
गया वक्त फिर लौट के आएगा।
मिलकर,”अकेले – अकेले”, ये दुआ करने लगा।रोना

उलझन

August 22, 2020 in मुक्तक

शंका ना थी कोई भी,वो समाधान करने बैठ गए।
हम तो बात करना चाहते थे,वो व्याख्यान करने बैठ गए।

गणपति

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणेश – चतुर्थी के शुभ अवसर पर —-
गणपति आज हमारे घर आए,
खुशियां बहुत साथ वो लाए।
साथ रहेंगे कुछ दिन हमारे,
हम भी खाएंगे लड्डू ,मोदक उनके सहारे।
उनके आने से घर महका – महका जाता है,
घर का आंगन, हर कोना चहका – चहका जाता है।
आरती करूं मैं, भोग लगाऊं,
पकवान बना कर उन्हें खिलाऊं।
पांव पड़ते नहीं ,आज मेरे जमीं पर,
गणपति आए आज मेरे घर।
उनकी भक्ति में कितने गीत गाए,
गणपति आज हमारे घर आए।
नहीं रहेंगे अब दुख के साए,
गणपति आज हमारे घर आए।
गणपति बप्पा मोरिया
मंगल मूर्ति मोरिया
सेवा में ✍️✍️—–गीता कुमारी

प्रेम – उपहार

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक था जिम और एक थी डैला,
दोनों लंदन में रहते थे।
कहानी ये बिल्कुल सच्ची है,
मेरे दादा कहते थे।
डैला थी बहुत ही सुन्दर,
बाल सुनहरी थे उसके
जिम भी बांका युवक था,
डैला भी मरती थी उसपे।
पति – पत्नी थे वो दोनो,
पैसों की थोड़ी तंगी थी।
डैला के सुनहरे बालों खातिर,
पास ना कोई कंघी थी।
डैला के उलझे बालों को,
देख के जिम सोचा करता था।
एक दिन सुंदर कंघी लाऊंगा,
वो अक्सर एक पैनी ,गुल्लक में डाला करता था।
जिम के पास एक सुनहरी घड़ी थी,
टूटी चेन थी उसकी, वो भी यूं ही पड़ी थी।
घड़ी देखता था छुप- छुप के,कब पहनूंगा सोचा करता था।
लेकिन डैला के बालों की, तारीफें करता रहता था।
डैला को मालूम थी, उसके मन की बात।
लेकिन पैसों की तंगी थी,
ना घड़ी की चेन थी, ना बालों की कंघी थी
क्रिसमस आने वाला था,
दोनों ने तोहफा देने की ठानी थी।
साजन – सजनी में प्यार बहुत था,
एक दूजे के मन की जानी थी।
बाल बेच चेन ले आई डैला,
घड़ी बेच जिम लाया कंघी।
प्यार बहुत था दोनों में बस,पैसे की ही थी तंगी
एक – दूजे का उपहार देख,
दोनों के भर आए नैन।
ना काम आएगी कंघी, ना काम आएगी चेन।
फिर, ख़ुशी – ख़ुशी मनाया क्रिसमस का त्यौहार,
सच्चा प्रेम ही था, उन दोनों का उपहार।।

तुझे दिल में मैं उतार लूं

August 16, 2020 in ग़ज़ल

अभी ना मेरा दीदार कर,
थोड़ा ख़ुद को मैं संवार लूं।
तेरा हर लफ्ज़ हो शहद सा,
तुझे दिल में मैं उतार लूं।
जब मिले तेरी नज़र से, नज़र मेरी,
तेरी छवि जिगर में उतार लूं।

ज़रा ठहर कर

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं हंसी तो हंस दिया,
संग मेरे ये जहां।
वरना ,किसी को, किसी के,
अश्क देखने की फुर्सत कहां।
इसलिए .गम अपने छिपाकर,
मैं भी, हंस लेती हूं यहां।
कलम चलाकर कर लेती हूं,
दिल के जज्बातों को बयां ।
ज़रा ठहर कर, कौन किसकी सुनता है यहां।

15 अगस्त का पर्व है

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

हर देश – वासी की ज़ुबान पर,
आज जय – हिन्द का नारा है।
ना .डाले कोई बुरी नज़र,
ये वीरों ने ललकारा है ।
कारगिल का युद्ध हो,
या हो घाटी गलवान
खड़े मिलेंगे हर कदम पर,
वीर सैनिक बलवान
चीन हो या पाकिस्तान,
नहीं झुकेगा हिंदुस्तान।
सैनिक दल ,उरी का बदला ले के आया,
अभिनन्दन भी वापिस पाया।
भारत की जमीं पर,
तिरंगा सदा फहराएंगे।
जीत का परचम, यूं ही लहराएंगे।
इंडो – तिब्बतन बॉर्डर पर भी,
गूंजा जय – हिन्द का नारा है।
वीर – जवानों का जोश देखो,
6000फुट के शिखर पर,
फहराया तिरंगा प्यारा है।
ये पंद्रह अगस्त का पर्व है,
हमको भारत पर गर्व है।
आओ मनाएं इसे शान से,
शुरू करें राष्ट्रीय – गान से।
तिरंगे में लिपट कर जो आए,
उन शहीदों को सलाम।
उनकी शहादत एक कर्ज है,
उनको नमन, उनको प्रणाम।
वीर शहीदों की कुर्बानी,ना जाए बेकार
आओ हम सब मिलकर बोलें,
भारत मां की जय – जयकार।

-गीता कुमारी

15 अगस्त का पर्व है (स्वतंत्रता दिवस प्रतियोगिता)

August 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर देश – वासी की ज़ुबान पर,
आज जय – हिन्द का नारा है।
ना .डाले कोई बुरी नज़र,
ये वीरों ने ललकारा है ।
कारगिल का युद्ध हो,
या हो घाटी गलवान
खड़े मिलेंगे हर कदम पर,
वीर सैनिक बलवान
चीन हो या पाकिस्तान,
नहीं झुकेगा हिंदुस्तान।
सैनिक दल ,उरी का बदला ले के आया,
अभिनन्दन भी वापिस पाया।
भारत की जमीं पर,
तिरंगा सदा फहराएंगे।
जीत का परचम, यूं ही लहराएंगे।
इंडो – तिब्बतन बॉर्डर पर भी,
गूंजा जय – हिन्द का नारा है।
वीर – जवानों का जोश देखो,
6000फुट के शिखर पर,
फहराया तिरंगा प्यारा है।
ये पंद्रह अगस्त का पर्व है,
हमको भारत पर गर्व है।
आओ मनाएं इसे शान से,
शुरू करें राष्ट्रीय – गान से।
तिरंगे में लिपट कर जो आए,
उन शहीदों को सलाम।
उनकी शहादत एक कर्ज है,
उनको नमन, उनको प्रणाम।
वीर शहीदों की कुर्बानी,ना जाए बेकार
आओ हम सब मिलकर बोलें,
भारत मां की जय – जयकार।

खारा पानी

August 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

समन्दर भी ना जाने,
उसमें कितनी नदियां समाती हैं।
ये तो नदिया ही जाने,
उसको कितनी सौतन मिल जाती हैं।
मीठे – मीठे पानी की नदियां,
समन्दर की ओर बह जाती हैं।
फिर , मीठा पानी मिल – मिल कर,
खारा क्यूं हो जाता है।
इतनी नदियों को देख समन्दर में,
हर नदी आंसू बहाती है।
मिलती है , पर खिलती नहीं,
खारा पानी कहलाती है।।

हर हाल में…

August 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हर हाल में मुस्कुराना हमें आता है,
अपने .गम भी छिपाना हमें आता है।
छोटी सी कश्ती में घूम कर भी ख़ुश हो जाती है”गीता,”
और, बड़े- बड़े सागर भी पार करना हमें आता है।

ज़िन्दगी का सार

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हुआ .गर विरोध तो क्या बिखर जाऊंगी?
रफ़्तार करूं मैं दुगनी, और निखर जाऊंगी।
जीवन में जीत हैं तो हार भी हैं,
यही तो जीवन है, ज़िन्दगी का सार भी है।
सागर है विशाल, लहरें भी ऊंची, तो क्या हार जाऊंगी?
खेती रहूंगी नैया, उस पार जाऊंगी ।।

मीठी बातें

August 13, 2020 in मुक्तक

मीठी- मीठी बातें करते,
मन में रखें बैर।
ऐसे अपनों से दूर भले,
उनसे अच्छे .गैर।

याद आता है गांव

August 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

याद आता है मुझको अपना गांव,
वो बड़ा सा आंगन, वो नीम की छांव।
बारिश के पानी में, चलती थी कागज़ की नाव,
ख़ूब खेलते थे, धूप हो या छांव।
जब से आई है ये बैरन जवानी,
ख़तम हो गई बचपन की कहानी।
एक – एक करके सखियां ससुराल चली,
मुझे भी जाना होगा अब पी की गली।
शहर से आया एक दिन एक कुमार,
मुझसे शादी करने को हुआ तैयार।
मां – पापा को था बस यही इंतजार,
बाबुल की गलियां छूटी, आ गई पिया के द्वार।
फ़िर भी अक्सर आता है याद गांव,
वो बड़ा सा आंगन, वो नीम की छांव।

कृष्णा- जन्म

August 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात थी गहरी, काली, अंधियारी
जब जन्मे थे, गोपाल – गिरधारी।
भाद्रपद का मास था, कृष्णा पक्ष की अष्टमी,
दिन, उस दिन बुधवार था, नक्षत्र था रोहिणी।
वसुदेव, देवकी के खुल गए ताले,
सो गए सारे पहरे वाले।
आई काली घनघोर घटाएं, बेशुमार जल बरसाती जाएं
उधर कंस का डर सताए, नन्हा बालक कहां छिपाएं ।
वसुदेव को फ़िर आया ध्यान, एक परम मित्र का नाम ।
चल दिए कान्हा को लेकर, वसुदेव नंद के ग्राम ।
सिर पर लेकर एक टोकरी, उसमे कान्हा को लिटाया,
देखो जमना जी का भी, जल – स्तर था बढ़ आया
बारिश हो रही थी छम – छम, मेघ बरस रहे थे झम – झम
शेषनाग ने करा था साया, जमना जी ने चूमे प्रभ – पांव ।
वर्षा भी अब थम चुकी थी,
देवकी – नंदन आ गए नंद के गांव ।
इस तरह पहुंचे वसुदेव नंद के धाम,
जय हो कृष्णा ,हाथ जोड़कर तुम्हे प्रणाम।🙏

हल तो खोजना होगा

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारह बरस की कोमल कली थी,
अपने ही घर पर, पर, अकेली थी।
जाने कहां से आए थे दानव,
दानव ही थे वो, बस दिखते थे मानव।
कोयल सी बोली थी, दिखने में भोली थी,
अपने ही घर पर, पर, अकेली थी।
अपने घर में भी सुरक्षित ना हो तो,
किसका ये दोष है तनिक सोचो तो
क्या दोष है न्याय – प्रणाली का,
मिलती नहीं सज़ा जल्दी से,
हल तो इसका ,खोजना ही होगा
देर ना करनी, बस जल्दी से।

बारिश मूसलाधार

August 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारिश मूसलाधार है,
मुम्बई की थमी रफ्तार है।
हर जगह है जलभराव,
रेल की पटरी पर चले है नाव।
हवाएं भी बहुत तेज़ चली,
आती रही बारिश ,मुसीबत ना टली।
जल भर गया है, हर कूचे हर गली,
मानो कुपित हुए हैं इंद्र देव,
माया – नगरी का भयावह है नज़ारा,
प्रसन्न करो अब इंद्र देव को
माया नगरी को देवेंद्र का ही सहारा।

माखन खाते पकड़े गए कन्हाई

August 6, 2020 in Poetry on Picture Contest

यशोदा पूछ रही कान्हा से,
“लल्ला, मटकी से रोज़ – रोज़ माखन कौन चुराता है”।
लाड लड़ा के बोले कान्हा, डाल के गलबैयां मां के,
” मैं क्या जानूं , मैं हूं नन्हा बालक ,तू मेरी प्यारी माता है”।
मां बोली,” रहने दे कान्हा, हर दिन तेरा ही उलाहना आता है”
बलराम से पूछूंगी मैं, वो जो तेरा भ्राता है।
“ना मैया ना, बलराम तो झूठा है, वो कितना मुझे सताता है”
ये सब सुन के मैया मुस्काई,
माखन की मटकी एक कोने में रखवाई।
यशोदा की ज़रा देर आंख लग आई,
खटर – पटर सुन के मैया दौड़ के आई
माखन खाते पकड़े गए कन्हाई।
कान खींच के बोली मैया,”पकड़ी गई तेरी चतुराई” ।
कान्हा बोले________
” मारो ना मैया, मैं चाराऊंगा गैया,
सखाओं के लिए ले जाता हूं माखन,
मिलते हैं मुझे वो जमना के तीरे, कदम्ब की छैयां।
सखा मेरे भूखे हैं तो क्या पेट ना भरूंगा
तू भी ना रोक मैया, ऐसा तो में करूंगा”
यशोदा अपने लाल पे वारी- वारी जाए,
कान्हा तेरे गुण सदा ही ये जग गाए।

मंदिर बना राम लला का

August 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भव्य मंदिर बना, राम लला का
ना ही कोई उपमा है, ना कोई तोड़ इसकी कला का
सोचा था, चाहा था, उम्मीद थी लगाई,
आशा हुई है पूरी, देखो शुभ घड़ी है आई।
सदियों से प्रतीक्षा थी इस पल की,
टूटी हैं कड़ियां किसी के छ्ल की।
पुष्प बरसाएंगे देव नभ से,
प्रतीक्षा हो पूरी, चाहत थी कब से।
मंदिर पर चमकेगा सूरज भी चम – चम,
मेघों का जल भी बरसेगा छम – छम ।
जय – जय कार गूंज रही अयोध्या में,
नाच रही हैं ,अयोध्या में सखियां छम – छम।
हाथ जोड़कर करें वन्दना रामजी की
रामजी के बिन अयोध्या थी.फीकी ।।
🙏जय श्री राम🙏

कोई जब जीवन से जाता है

August 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई जब जीवन से चला जाता है,
टूटता नहीं फ़िर भी नाता है।
बेबस से हो जाते हैं सब,
ग़म उसका हरदम सताता है।
उजड़ ही जाती है, दुनियां किसी की,
जब कोई अपना इस जग से जाता है।
पल – पल याद आती है ,उस प्रियजन की,।
ह्रदय में विरक्ति भाव भी आता है।
कौन सी है वो दुनियां ऐसी,
जहां से लौट के ना कोई आता है।

मेरे घर पर आए चोर

August 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक रात की बात बताऊं मित्रों ,
मेरे घर पर आए चोर ।
थी मैं अकेली उस दिन घर पर,
मुझ पर आज़माने लग गए ज़ोर ।
“पैसे देदो, ज़ेवर देदो”, उनकी मांगों का ना था छोर
एक ने मुंह बंद किया मेरा,
दूजे ने पिस्तौल लगाई
मैने भी फिर तुरंत अपनी थोड़ी अक्ल दौड़ाई,
ले गई दूजे कमरे में, जहां रौशनी थी नहीं।
झटका उसका हाथ मैंने ,मुंह पर फ़िर एक चपत लगाई
दौड़ के खिड़की खोली मैंने, मचा दिया जी भर के शोर,
मदद करो, सब मदद करो,
मेरे घर पर आए चोर।
सारे पड़ोसी भागे लेकर लाठी, डंडे, रस्सी की डोर।
सिर पर पैर रख कर भागे,
भागे सरपट देखो चोर ।।

नोट:– ये कविता मेरे जीवन की सत्य घटना पर आधारित है।

पटरी पर फिर लौटा जीवन

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पटरी पर फिर लौटा जीवन,
पर पहले जैसी बात नहीं है।
मुंह ढ़ककर घूमे हैं दिनभर,
पहले जैसी रात नहीं है।
हॉल, मॉल सब बंद पड़े हैं,
विद्यालयों पर लगे हैं ताले।
रौनक गुम है बाज़ारों से,
सूने पड़े हैं गलिहारे।
त्राहि – त्राहि हो रही धरा पर,
कोई ” संकटमोचन”, संजीवनी लाके बचाले।।

कोरोना -काल

August 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंसान इंसान से डरने लगा,
अदृश्य जीवों से मरने लगा।
जिन लोगों से महकती थी ज़िंदगी,
उनसे मिलने से मुकरने लगा।
वो दौर ना रहा, ये दौर भी जाएगा,
मिलकर “अकेले – अकेले” ये दुआ करने लगा।

वो बुरा मान गए..

August 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमने सच बोला, वो बुरा मान गए
ज़रा मुंह खोला, वो बुरा मान गए।
सदियों से सुनती ही तो आई है नारी,
आज ज़रा सुनाया, तो बुरा मान गए।
औरों की चाहत को हमेशा चाहा,
आज अपनी चाहत ज़ाहिर की,वो बुरा मान गए।
ऐसा नहीं है कि हम समझते नहीं थे,
उन्हें लगा, हम समझने लगे, तो बुरा मान गए।

मेरी मैया

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यशोदा ,देवकी को लगे है,
कान्हा सबसे प्यारा।
मेरी मैया सबसे प्यारी,
कान्हा का ये नारा।
मैया मैया कहता कान्हा,
लगे बहुत है प्यारा।
मेरी मैया सबसे सुंदर,
माने ये जग सारा।

तरकश

August 1, 2020 in Other

अभी और भी तीर हैं,तरकश में तेरे बाक़ी,
हार से पहले रोता क्यूं है।
इस युद्ध में तेरे विरूद्ध हैं कुछ लोग,
कुछ लोग तेरे साथ भी हैं,।
पलकें भिगोता क्यूं है।

जीवन की पहेली

August 1, 2020 in मुक्तक

अपनों की भीड़ में अकेली सी,
खुद ही अपनी हूं मैं सहेली सी।
किसी को अपना .गम बता के भी क्या हासिल,
सुलझानी है खुद ही इस जीवन की पहेली।

रौशनी की आस

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िंदगी की तपिश बहुत हमने सही,
ये तपन अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब खलने लगी।
बहुत चोटें लगीं, बहुत घाव सहे
सहते ही रहे कभी कुछ ना कहे,
वो घाव अब रिसने लगे,
मरहम की कमी सब खलने लगी।
औरों को दिए बहुत कहकहे,
अपने हिस्से तो .गम ही रहे।
ये .गम अब मेरे हिस्से बन चले,
.खुशियों की कमी अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब .खलने लगी।

जीवन का सफर

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन का सफ़र सुहाना है साथी,
गर साथ तुम्हारा है।
जीवन की इस बगिया में,
मैं तेरा सहारा हूं, तू मेरा सहारा है।
बच्चों की ज़िम्मेदारी करनी है पूरी,
अब ये काम हमारा है।
जीवन के अम्बर में तू मेरा उजला सितारा है।
जीवन का सफ़र सुहाना है साथी गर साथ तुम्हारा है

झूठ की दुकान

July 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

झूठ की दुकान खूब चली,
“सच”, सच बोलता रहा
उसकी ना चलनी थी, ना चली,
पर ये ज्यादा लंबा चलने वाला ना था
काठ की हांडी में एक बार तो पका लिया,
फिर दोबारा चढ़ी, जलनी ही थी सो जली।
सच्चाई तो फिर सच्चाई है,
एक ना एक दिन लगेगी भली
झूठ को देखो, घूमे है गली गली।
✍️.. गीता

राखी का त्यौहार

July 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सूना जाए राखी का त्यौहार,
राखी भेजी है, डाक से इस बार
ना भैया मिलें, ना भाभी मिलें,
ना मिले मां पापा का प्यार।
ना भतीजी, भतीजे के मुख पे खुशियां मै देखूं,
ना कर पाऊंगी उनको मैं दुलार।
अनमनी सी हो रही हूं मैं तो,
सूने सूने से होंगे सारे त्यौहार।

नूतन अनुभव

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रेलगाड़ी की खिड़की में बैठा,
एक युवक बोला पापा से
कितने सुंदर पेड़ पौधे हैं,
कितनी सुंदर है हरियाली
ये सब कहते कहते उसके मुख पर,
आ गई खुशियों की लाली
वाह, कितने सुंदर तारे है,
कितनी सुंदर है ये रात
एक पड़ोसी महिला यात्री,
हैरान हुई सुनकर ये बात
बोली उसके पापा से,
भैया इसे कहीं दिखाओ
कैसी बातें कर रहा है लड़का,
किसी डॉक्टर के ले जाओ
वह मुस्कुरा कर बोला,
बहिन, डॉक्टर के यहां से ही आया
जन्म से अंधा था ये बालक,
आज ही ऑपरेशन करा के लाया ।
✍️.. गीता कुमारी

मुद्दतें हो गईं

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दोस्तों से मिले मुद्दतें हो गईं,
देखे हुए चेहरे खिले, मुद्दतें हो गईं
कोरोना ने जाल बिछाया ऐसा,
बाहर ना निकल सके हम
बाहर की बहार देखे मुद्दते हो गई
कोई जल्दी से लाए इसका “टीका”,
जीवन लगने लगा है, फ़ीका फ़ीका
होली भी गई फ़ीकी ,राखी भी सूनी जाए
दीवाली तक ही काश, टीका वो आ जाए
नव वर्ष फ़िर मनाएंगे धूमधाम से,
कोई जश्न मनाए मुद्दतें हो गईं।

सारा जहान बाक़ी है

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

थक कर बैठ गया क्यूं राही,
क्या अभी थकान बाक़ी है?
नहीं मिलती मंज़िल आसानी से,
अभी इम्तिहान बाक़ी है।
जीवन के संग्राम में , मिलेगी शह और मात भी,
घबराना नहीं है तुझको, अभी सारा जहान बाक़ी है
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अच्छे मित्र

July 28, 2020 in मुक्तक

किताबों से अच्छे मित्र कहां हैं,
कविता से अच्छे चित्र कहां हैं।
दुखी हो के ना बैठ “गीता”,
“सावन” पे जाओ, सखी, दोस्त, बंधु यहां हैं।

शत शत नमन है भूमिपुत्र को

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय हो कृषक, जय हो किसान,
भारत मां का तू सम्मान
“लॉकडाउन” की मजबूरी में,
महंगे दामों बेच रहे थे,जब साहूकार अपना सामान
तब भी भूमिपुत्र ने अन्न दिया,
अधिक दाम भी नहीं लिया
शत शत नमन है उस हलधर को,
जो कर रहा देश को अन्न दान
तू इस मिट्टी की पहचान,
भारत मां की तू है शान
भूखा ना रहे कोई भी घर,
प्रयत्न कर रहा है हलधर

देख सखी आए हैं जवांई

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मंजुल रूप लेकर, देख सखी आए हैं जवांई।
रौनक लग गई मेरे घर पर,
बजने लगे ढ़ोल शहनाई
आया घोड़ी पे सवार ,वो बांका कुमार,
लाने मेरी बिटिया के जीवन में बहार
देख के उसको बिटिया, धीरे से मुस्काई,
थोड़ी सी शरमाई, थोड़ी सी सकुचाई
खुशियों की लाली उसके मुखड़े पे छाई,
वो विनीत है, वो विनम्र है, लोग कहें मेहमान है
पर मेरे लिए वो पुत्र के समान है।
मांग उसके नाम की सजाती है जो,
करता उसका सम्मान है।
खुश रखता है निज पत्नी को,
मुझे उस पर अभिमान है।
अपनी लाडो को दे के उसके साए में,
मेरे दिल को सुकून है, दिमाग को आराम है।

वीरों को नमन है मेरा

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नमन है मेरा उन वीरों को,
जो दुश्मन से भिड़ जाते हैं
भारत मां की रक्षा खातिर,
सीने पर गोली खाते हैं
जय हिन्द का लगता नारा है
जोश की कमी नहीं है,जोश बहुत सारा है
हाथ जोड़कर 🙏नमन है उनको
जिन्हे देश जान से प्यारा है 🇮🇳

बाद मरने के….

July 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाद मरने के अपने, हम बहुत रोए
उन्हें पता ही ना चला, उन्हें लगा हम थे सोए
कुछ देर बाद, उन्हें हुआ अहसास,
रो के बोले,”क्यूं चले गए मेरे ख़ास”
किसी को खोज रही थी नज़र
वो आ गए सुन के हमारी ख़बर
उन्हें देख कर मुस्कुराई अंखियां,
लो आ गईं मेरी चंद सखियां
उनके होठों पे तारीफें थीं, आंखों में थे .गम
बस यही चंद यादें संग ले चले हम।

कुदरत ने सिखलाया है

July 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर जीव को जीने का हक़ है,
जीवों ने डाली है अर्जी
कुदरत ने अपील सुनी है,
अब ना चले बस, मानव की मर्ज़ी
क्षुधा मिटाने की खातिर,
निर्दोषों को है मारा,
कैसा है शैतान वो मानव,
जीवों ने लगाया है नारा
क्षुधा मिटाने की खातिर
कुदरत ने फल, फूल बनाए हैं
फिर जीवों को क्यूं मारा जाए
वो भी तो कुदरत से आए हैं
कुदरत ने मानव को दिखलाया है,
“जियो और जीने दो “, सिखलाया है
ये शुद्ध हवा ये गंगाजल,
मिलते ही रहेंगे हमें प्रतिपल
ये संदेशा आया है,
सबको ही जीने का हक़ है
ये कुदरत ने सिखलाया है ।
✍️ गीता कुमारी।

याद आती हैं बेटियां

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ बाबुल का घर,
जब चली जाती हैं बेटियां
सभी त्यौहार लगते हैं सूने,
बहुत याद आती हैं बेटियां
दिवाली के हर दीप में,
मुस्कुराती हैं बेटियां
होली के हर रंग में,
खिलखिलाती हैं बेटियां
खुशी दमकती है चेहरों पर,
जब मिलने आती हैं बेटियां
ये दर्द और खुशी वो क्या जानें,
जिनके घरों में नहीं होती हैं बेटियां

दीपक की भी एक सीमा है

July 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात भर दीपक जला,
भोर होने लगी तो बोला,”अब मैं चला”
मैंने कहा और जलो, अभी अंधियारा बाकी है,
“मेरी भी एक सीमा है”, कह कर वो मुस्कुराया
उसकी अर्थपूर्ण मुस्कुराहट में,
एक संदेशा मैंने पाया…
जिसकी जब जितनी ज़रूरत हो,
वह उतना ही मिल पाता है।
उसे पता है, सूरज के आगे उसका क्या काम,
वो चतुर है, उसे समझ है,
उसकी भी एक सीमा है,।
ये उसको भी है भान।

बदले दोस्त

July 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दोस्तों में दुश्मनी ने घर कर लिया,
ना जाने कैसे और कब कर लिया
मौसम बदले वो भी बदले,
उन्होंने दोस्ती का दूसरा दर कर लिया

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