Neetika sarsar
तुम
June 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम तो कहते थे कि
जी नहीं पाओगे मेरे बिना
अरसे बाद मिला तो
सवाल किया उसने
मैंने कहा आखरी साँस पर
तेरे साथ का वादा किया था
ना तू आया ना वो अखरी साँस आई।
जरुरत से ज्यादा
June 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
जरुरत से ज्यादा जुर्रत कर
हिम्मत से ज्यादा हिमाकत कर।
ख्वाब जितने भी हैं जिस्म में तेरे
उन सबको रूह में शामिल कर।
जरुरी नहीं सबको जिन्दा दिखे तू
किसी के लिए मरने का भी हुनर जिन्दा रख।
यूँ ही नहीं मिलते जजीरे इश्क के सबको
साहिलों पर आकर डूबने का हुनर भी सिखा कर।
मुझे यकीन है
April 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुझे यकीन है की
इक रोज़ तेरा भी सवेरा होगा,
अंधेरो का कोई साया ना होगा!
इक रोज़ तेरा भी सब कुछ होगा,
कुछ ना होने को कुछ ना होगा!
इक रोज़ चाहा है जैसा वैसा ही होगा,
अनचाहा कुछ भी ना होगा!
मुझे यकीन है की
इक रोज़ तुम्हे मेरे यकीन पर यकीन होगा!
खूबसूरत सूरज का डूबना भी होता है
क्योंकी सबको, उसके फिर से
उगने पर यकीन होता है!
shayari
April 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
ख्वाबो की ख्वाहिशो ने मार डाला, हमको तो
वारना जीना तो हमे भी आता था,
उनकी तरह झूठ का !
अभी बाकि है!
March 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
अभी और बनना बाकि है,
अभी और बिगड़ना बाकि है ,
जिन्दा है यहाँ कौन-कौन
सबको ये साबित करना बाकि है,
जीने के लिए खुद के
अभी खुद का मरना बाकि है !
दफन होने से पहले,
March 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
दफन होने से पहले, एक बार ये काम करके देखना!
जो जुस्तजू हो, जीने की
तो मुझपर भी मरकर देखना!
आदत जो ना हो शिकायत करने की
तो पास मेरे बैठकर देखना!
चाहत जो ना हो भटकने की
तो संग मेरे चलकर देखना!
मैं आज तेरा ख्वाब हूँ,
मुझे एक बार हकीकत बनाकर देखना!
आँखों से बहता पानी…
June 3, 2017 in Other
आँखों से बहता पानी
कहाँ एक सा होता है
कभी खुद के लिए रोता है,
कभी खुदा के लिए रोता है !
कभी कुछ पा के रोता है ,
कभी कुछ खो के रोता है !
कभी किसी की यादो मे रोता है ,
कभी किसी को याद करके रोता है !
कभी खतों मे रोता है ,
कभी ख़ता करके रोता है !
कभी आँखो से पानी टपकाकर रोता है ,
कभी दिल मे छुपकर रोता है !
रोता है जब भी दर्द का
अहसास कराकर रोता है !
मुक्तक
May 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
पास ना होकर भी जो
दूर नहीं
बिछड़कर भी जो
छूटा नहीं
सिर्फ दोस्ती का रिश्ता
ही है जो मेरे बदलने पर
भी बदला नहीं !
(निसार)
मुक्तक
May 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
यूँ तो हमारा नजरिया
बदल गया लेकिन
उसे देखने की नजर वही है !
(निसार)
मुक्तक
May 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम मेरी सुबह बन जाओ
मैं तुम्हारी राते बन जाऊ
जो दुआ पूरी करते है
मैं तुम्हारा वो तारा बन जाऊ !
इन्तजार….
April 26, 2017 in शेर-ओ-शायरी
तेरा इन्तजार करू, तेरा एतबार करू लेकिन
कब तक बता यू ही सुबह से शाम करू !
तेरे बिना राहे चलती नहीं मेरी लेकिन
कब तक बता यू ही मंजिल-ऐ-राह को बदनाम करू!
‘निसार’
खोया बचपन
April 26, 2017 in Other
बचपन के शहर मे जाने ,
क्यों ख़ाली से मकान पड़े है
सयानेपन के हर जगह पर
ऊँचे-ऊँचे बंगले खड़े है
कुछ आधुनिकता की आड़
मे लूट गए
कुछ को मजबूरियों न
लूटा है
महँगे खिलौनो की सौदेबाजी मे,
बचपन को जाने किसने लूटा है!
कहाँ गए जाने जो
कागज की कश्ती बनाया करते थे,
नन्हे-नन्हे हाथो से मिटटी के घर बनाया
करते थे
जो पत्थर के टुकड़ो से भी खेल बनाया
करते थे !
कोई तो उनको ढूंढ के ला दो ,
कोई तो उनको खोजकर ला दो ,
मासूम-सा बचपन,
नादानी का वो,
कोई तो इस शहर को फिर बसा दो!
‘ निसार ‘
April 11, 2017 in Other
समझाऊँगी क्या मैं तुझको
बतलाऊँगी क्या मैं तुझको !
कभी तो अपना जान तू मुझको
कभी तो अपना मान तू मुझको !
बस इतना-सा वादा कर दे
बस इतना-सा सच्चा कर दे !
मुझको तू अपने काबिल कर दे
मुझको तू इतना कामिल कर दे !
April 11, 2017 in Other
क्यों मिली नहीं रहमत तेरी
अब तक
क्या मेरी कोई भूल तेरे
दर मे गुनाह मुक़र्र हुई है !
मेरी डायरी
April 8, 2017 in Other
साथी मेरी न्यारी है
मुझको सबसे प्यारी है
राज ये मेरे रखती है
किसी को नहीं दस्ती है
हर वो बात ये सुनती है
जो दुनिया को चुभती है
दोस्ती ये ऐसी सच्ची है
जो सबसे पक्की है !
April 6, 2017 in Other
चार दिन की थी जिंदगी
एक दिन का था बचपन उसमे
थोड़ा-सा कच्चा था,
थोड़ा-सा अच्छा था लेकिन
वो ही सबसे सच्चा था , क्योंकि
जिन्दा था बैखोफ मैं उसमे चाहे
रोता था माँ की गोद मे छुपके!
दूसरे दिन की थी जवानी
जिम्मेदारी ना थी कोई उसमे
बस मस्ती की कंधो पर गठरी थी
सारा दिन घूमता था यहाँ-वहाँ
किसी मंजिल पर जाने की
कहा मुझको जल्दी थी !
तीसरे दिन, मै ना जवान था ना बूढ़ा था
बस ज़िम्मेदारियों का पुतला था
हर कदम सोच-समझकर उठाता था
इतना तो शायद मै माँ की गोद से
उतरकर भी ना घबराता था !
चौथे दिन का था बुढ़ापा
जिसमे था मै सबका काका
कोई मुझसे हंसकर बोलता था
कभी कोई ग़ुस्से से झींकता था
लेकिन मै कुछ नहीं बोलता था बस
सूर्यास्त की राह देखता था !
एक-एक कर चारो दिन ख़त्म हो गए
जिन्दा से हम मुर्दा हो गए !
तेरे इश्क मे….
March 31, 2017 in ग़ज़ल
तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे ,
तेरे इश्क मे बेबस हुए
तेरे इश्क मे बेखुद हुए
तेरे इश्क मे बेहद हुए दीवाने हम !
तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे ,
तेरे इश्क के दरिया मे हम
तेरे इश्क के सहरा मे हम
तेरे इश्क के सावन मे हम देखो डूब गए !
तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे ,
तेरे इश्क के कुंचो मे अब
तेरे इश्क की गलियो मे अब
तेरे इश्क के सायो मे अब मेरा बसेरा है !
तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे !
एक नज्म
March 29, 2017 in Other
मेरी एक नज्म, दूसरी नज्म पर हंसती है
तो कल वाली खुद पर इतराती है
आज वाली खुद पर नाज करती है
कभी वो वाली जो रात अचानक
बिस्तर से उठ कर एक कागज पर लिखकर
किताब मे रखी थी अपनी
याद दिलाती है , तो भूली हुई एक
नज्म नाराजगी जताती है
कभी-कभी एक-दूसरे से लड़ जाती है
मैं हू सबसे अच्छी , मैं हू चहीती
मुझ पर है वो निसार*
मैं चुप-चुप हंसती हू कुछ नही बोलती
जब थक जाती है तो अपने आप
करीने से लगकर गजल बन जाती है !
पतझड़
March 24, 2017 in Other
शाखों से टूटकर पते
पतझड़ की निशानी दे गए!
कल थे शान जिन दरख्तों की
आज कदमो तले रुंद गए !
साए देते थे जो मोसफिरों को धूप मे
आज अपने सहारो को भी छोड़ गए !
दरख्तों का लिबास थे कल तक
आज अपना लिहाज भी भूल गए !
पतझड़ आया है तो बहार भी आएगी
नई बहार के साथ , नई कोंपले फिर आ जाएगी !
पतझड़ मे जो दरख्ते कहलाए है ,
फिर पेड कहलाएगे!
आम बात….
March 23, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
यहाँ आमो का सस्ते मे बिकना
आम बात नहीं, लेकिन
इंसानो का बिकना आम है !
यहां महफ़िलो के काफिले होना
आम बात नहीं, लेकिन
हर किसी का तन्हा होना आम है !
यहां रोते को देख हाल जानना
आम बात नहीं, लेकिन
घंटो फ़ोन पर चैट करने पर भी
मिस यू का मैसेज आम है !
दूर-दूर का रहना…
March 17, 2017 in गीत
तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये
मोर चैना
तेरी रहा तकै है अंखिया
ताने देती घर गालिया
तेरी राह तकै हुए बरसो
अब छोड़ भी कल परसो
तेरी सोच मे बीती रैना
मोर लोटा अब तू चैना
तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये
मोर चैना !
कब तक रहु मैं ऐसे
कब तक राहु मैं वैसे
इक पल मे ये सोचू
इक पल मे वो सोचू
तू ज्यादा है छलिया या
ज्यादा है मनबसिया
तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये
मोर चैना !
कभी तुझ पे दिल हारु
कभी तुझ से हारु
छोड़ हार जीत का पहरा
अब तू दिखा भी दे चेहरा
तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये
मोर चैना !
जाने क्यों
March 14, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने क्यों नदिया सागर से मिल जाती है ,
मिलो का रास्ता तय कर सागर को
मंजिल क्यों बनाती है !
पवित्र है, पावन है, निर्मल जल की धारा है,
खारे पानी मे मिलना जाने क्यों इसे गवारा है !
हिमालय की बिटिया है ये ,
मेरी माँ मुझसे कहती थी
रखती है दृढ़ निश्चय अपना
चाहे चले जिस भी रास्ते पर
सागर से मिल जाती है!
सागर का अस्तित्व बचाने को अपना
अस्तित्व मिटाती है !
जाने क्यों नदिया सागर मे मिल जाती है !
दुआ …
March 14, 2017 in शेर-ओ-शायरी
एक सुबह दे दे ऐसी ,
जो मेरा इंसाफ क़र दे!
एक शाम बीता दे ऐसी ,
जो मेरे गुनाह माफ़ कर दे !
तमाशा बहुत हो गया बनने
और बिगड़ने का,
अब तो कोई ख्वाब अपनी अमानत
समझकर अदाकर दे !
खोज…
February 22, 2017 in Poetry on Picture Contest
खोजते है बचपन अपना ,
ढूंढते है नादानी अपनी ,
कूड़े के ढ़ेर को समझते है
कहानी अपनी !
देखकर मुझको वैसे तो दया सब
दिखाते है, पर
जब कोई गलती हो जाए, तो
पढ़े-लिखे बाबू भी गालियां दे जाते है !
कोड़े का ढ़ेर किसी को पैदा नहीं करता , साहब
हम भी किसी की ओलाद है
सिर्फ गरीबी के नहीं मारे हम,
हम आप सबकी ख़ामोशी के भी शिकार है !
इसलिए कोड़े के ढ़ेर मे बचपन खोज रहे है,
गलतफहमी है की कूड़ा बीन रहे है !
उम्र लग गई
February 17, 2017 in ग़ज़ल
ख्वाब छोटा-सा था, बस
पूरा होने मे उम्र लग गईं!
उसके घर का पता मालूम था , बस
उसे ढूंढने मे उम्र लग गईं !
ख़त तो उसने भी लिखे थे, बस
मेरा नाम लिखने मे उम्र लग गईं !
दूर तो ना थे हम एक-दूसरे से, बस
नजदीकियों का अहसास होने मे उम्र लग गईं !
ख्वाब छोटा-सा था, बस
पूरा होने मे उम्र लग गईं !
इंतजार तो उसे भी था मेरा, बस
उसे इजहार करने मे उम्र लग गईं !
रोया तो वो भी था ऱज के मुझसे बिछड़कर, बस
आँखों के पानी को अश्क बनने मे उम्र लग गईं !
यू तो मेरा वक्त बदल गया, बस
उसे बदलने मे उम्र लग गईं !
ख्वाब छोटा-सा था, बस
पूरा होने मे उम्र लग गईं!
दुआ
February 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी
काश खुदा को भी मेरा
ख्याल हो जाए,
तमाम उम्र का इंतजार
अब खत्म हो जाए !
*
*
दुआ से दिल की किताब लिखी जाएगी ,
जब भी आएगा तेरा नाम ,
मेरी मिशाल दी जाएगी !
*
*
*
मैं दिल की हसरतो पे,
नाम तेरा लिख रही हूँ
तू सिर्फ इतना कर्म कर दे मुझपर ,
अपनी दुआओ मे मेरी भी हसरतो की दुआ मांग लेना !
समर्पण…
February 16, 2017 in Other
बाती की इक रोज ,दीए से लड़ाई हो गयी
मगरूर हुई बाती खुद पर, लगी दीए पर भड़कने
मैं जलकर खाक हो जाती हूँ, और
तारीफे बटोरता है तू ,
नहीं जलूंगी तेरे साथ अब ओर
तय कर लिया मैंने ,
तू ढूंढ ले कोई ओर अब नहीं रहना संग तेरे !
चुप-चाप सुनता हुआ दिया अब बोल उठा
तू जलकर खाक हो जाती है
तेरी कालस तो मैं ही समेटता हूँ
तू जलती है जब-जब तेरी
तपिस तो मैं ही सहता हूँ !
कैसे ढूंढ लू कोई ओर
मुझे कोई और मिलेगा नहीं ,
तुझे कोई और जचेगा नहीं
बाती मुस्कुरा गईं
जिसके लिए बनी थी, उसी मे समा गईं !
महफ़िल-ए-चाय
February 15, 2017 in Poetry on Picture Contest
मैं मान लेती हूँ, की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफ़िल-ए-चाय तो याद आती होगी !
वो शाम की रवानगी ,
वो हवा की दिवानगी,
वो फूलो की मस्तांगी ,
याद न आती हो , पर
वो चाय की चुस्की की
आवाज तो याद आती होगी !
याद ना आती हो तुमको
गूफ्तगू-ए-महफिल , पर
निगाहों की शरारते तो
याद आती होगी !
मैं मान लेती हूँ , की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफिल-ए-चाय तो याद आती होगी !
हर शाम चाय के साथ
अखबार पढ़ना , आदत है तुम्हारी
चाय का प्याला गर्म है ,
ये देखना याद नहीं रहता तुम्हे, पर
चाय से आज भी जब
तुम्हारे होंठ जलते होंगे , तो
मेरी फ़िक्र तो याद आती होगी !
मैं मान लेती हूँ, की तुम्हे
मेरी याद नहीं आती , पर
वो महफिल-ए-चाय तो याद आती होगी !
(निसार )
इश्क…
February 13, 2017 in शेर-ओ-शायरी
खुदा ने भी क्या बेखुदी ,
बख्शी है ,
खुद को ही ख़ाक करने मे ,
हमने ख़ुशी समझी है !
( निसार )
तुझसे इश्क क्या किया ,
गलतियों के बूत बन गए,
लोग कहते है की ,
अब हम भी इंसान बन गए !
(निसार)
दिल खो गया इश्क के बाजार मे ,
सब लूट गया इश्क के व्यापार मे ,
जपते है नाम तेरा सांसो के साथ मे ,
लोग कहते है बदली जात इस बेईमान ने !
(निसार)
ये दिल…
February 13, 2017 in Other
ना चैन है, ना सुकून है
ये दिल को क्या फितूर है l
करता है ये मनमानियां ,
करता है ये शैतानिया
सुनता नहीं बेधड़क है ये दिल, जानिया
धड़कता है जब ये सीने मे,
मजा है फिर तभी जीने मे
ना रिवाजो मे , ना समाजो मे
उड़ता फिरे ये खयालो मे ,
कभी सजदे मे है,
कभी शिकवे मे है ,
कभी किसी के हिस्से मे है
ना चैन है , ना सुकून है
ये दिल को क्या फितूर है !
नारी हूँ मै…
February 6, 2017 in Other
नारी हूँ मै, नादान नहीं हूँ
निस्छल हूँ , निर्लज नहीं हूँ !
पथ की उलझन सुलझाना चाहु
पग के बंधन तोडना चाहु
सिर्फ यही अपराध करु मै
अपने मान की पहचान करु मै !
अभिमान को अपना मान बताए
और मेरी पहचान सिया बतलाए
जब हर घर सिया विराज रही है
तब क्यू हर घर राम नही है !
जब मेरे प्रश्नो का तुम पर उत्तर नही है
मेरे मन के बन्धनों का हल नहीं है
तो फिर क्यू स्वयं को ज्ञानी बतलाए
स्वयं को मेरा स्वामी बतलाए !
नारी हूँ मै , नादान नहीं हूँ
निस्छल हूँ , निर्लज नहीं हूँ !
एक ख्वाहिश मेरी भी
January 31, 2017 in Poetry on Picture Contest
ख़्वाब देखती है आँखै मेरी भी
उड़ना चाहती हु मै भी
पढू , लिखू बनू अफसर मै भी
आकाश मै उड़ता जहाज देखू मै जब भी
साथ वो अपने मुझे ले जाता है
पढ़ने , लिखने का जो तुम
मुझको एक मौका दे दो
है तो हक़ मेरा , पर तुम
अपनी जायदाद समझकर देदो
एक रोज अफसर बन
तुमको भी जहाज मै बिठा
आकाश की सैर कराऊँगी मै
मुझे न सही मेरी, ख्वाहिश को अपना समझ लो
बेटो को तो आजमा लिया सबने ,
अब मुझको भी अपनी अजमाइस का एक मौका दे दो !
जय हिन्द
January 27, 2017 in Poetry on Picture Contest
ये अजूबा किसने कर दिया
फक्त एक मुट्ठी मैं सारा हिन्द
इकट्ठा कर दिया
तीन ही रंगों मैं सारा
हिन्द बया कर दिया
केसरी है वीरो के , बलिदानो का प्रतीक
जिन्होंने स्वय को समर्पित कर
अपने लहू से तिलक कर हिन्द
के माथे को चन्दन-सा महका दिया !
सफेद है उस सांति का प्रतीक
जिसके लिये फिरती है दुनिया मारी -२
लेकिन हिन्द गोद को इससे शुशुभित कर दिया !
हरा रंग है उस खुशहाली का प्रतीक
जब हिन्द की मिटटी को दुश्मन ने
लहू -लुहान किया
तब सुबह सूरज से भी पहले जाग
हिन्द को खुशहाल किया !
चक्र का नीला रंग प्रतीक है
उस अशोक का
जिसकी गाथा दुनिया आज भी गाती है
हर माँ अपने बच्चे को उस वीर की कहानी सुनाती है !
शौर्य ,शांति और हरियाली का प्रतीक हिन्द हमारा
इसमे बसा है सारा हिन्द हमारा !
जय हिन्द का नारा
January 24, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
जय हिन्द का नारा फिर बुलंद करो
टूटे आत्मसम्मान को फिर एक-सार करो
चित की चेतना को फिर चिंतित करो
आँखों के पानी को फिर लहु मै परिवर्तित करो
अधरों की चुप्पी को फिर बाधित करो
जय हिन्द का नारा फिर से बुलन्द करो
भारत को इन हुक्कमो से फिर मुक्त करो
भारत को नारी के सम्मान से फिर शुशुभित करो
भारत को भारत वासीयो की एकता से एक करो
उठो-२ ऐ देश भक्तो अपने जीवन को सफल करो !
अजीब है दुनिया
January 23, 2017 in Other
अजीब है दुनिया
अजीब बाजार है दुनिया
जिंदगी का लिबास पहने
मुर्दा है दुनिया
ये रूह बेचकर रिवाज
ख़रीदा करती है
मन के अहसास जलाकर
पथर पूजा करती है
जात को अपनी पहचान बता ,
अपनी ओकात छुपाया करती है
गाय को माता बताकर
गुंडागर्दी , और
नारी को पैर की जूती बताकर
परुषार्थ सिद्ध करती है
अजीब बाजार है दुनिया
यहाँ सभी जिन्दा है, पर
अभी मुर्दा है दुनिया !
मैं वो नहीं
January 19, 2017 in Other
मैं वो नहीं जो पास रहकर तुझे हँसाउगा
मैं तो वो हूँ जो रहू या ना रहू लैकिन
तेरी मुस्कुराहट की वजह कहलाऊँगा !
मैं वो नहीं जो उजालो मैं तेरा साया कहलाऊंगा
मैं तो वो धुल हूँ जो अंधेरे से घबराकर तेरे माथे से
टपके पसीने के सहारे तेरे पैरो से लिपट जाऊँगा !
मैं वो नहीं जो याद आकर तेरी आँखों से छलक जाऊँगा
मैं तो वो हूँ जो ख्यालो की जमी पर उग कर
तेरी जिंदगी को खुशहाल कर जाऊँगा !
मैं वो नहीं जो रीती – रिवाजो की आड़ मैं तुझसे जुदा कर दिया जाऊँगा
मैं तो वो हूं जो हर रीती की शूरुआत बन जाऊँगा !
तु मुझे अपना तो एक बार
मैं तेरा ख्वाब हूं आज , कल हक़ीकत बन जाऊँगा !
jud dai
January 16, 2017 in Poetry on Picture Contest
mere pass bhi khab hai
tu pankh jud dai
mere pass bhi dil hai,
dhadkan jud dai
mere pass bhi sai hai
ruh jud dai
mere pass bhi himat hai
junun jud dai
mere pass bhi lakirai hai
kismat jud dai
mere pass boot hai
khuda jud dai
mere pass bhi khab hai
pankh jud dai
bchpn
January 14, 2017 in Other
लो फिर याद आ गया ,
वो बचपन सुहाना
वो झूठ का रोना , वो सच का आँखों सी आलू का टपकना
वो बेबाकी सी उदझ्ना सबसे.
वो अपने साये सी भी डरना
वो बारिश की मस्ती, वो कागज की कस्ती
वो रेत का घर, वो मिटी का खिलौना ,
वो यारो की यारी, वो यारो की नाराजगी
वो नादानी, वो मासूम सी शैतानी
वो स्कूल न जाने का बहाना
वो टीचर को सताना
लो फिर याद आ गया वो बचपन सुहाना
काश भूल पति वो बड़कपन का जमाना
Frk btana
January 13, 2017 in Other
jb mai ud nhi pata tha
tb kha mai jinda tha
aksar chutai-chutai nano sai
aakash ko taka krta tha
kya hai isam jo itna dur hai
aksar ma sai puch krta tha
hans kr bs itna khti
aik jruri frk btana hai iska kam
aj uda hu to jana hai
kya hai iskai pas
jinda hona or sans laiuai
ka frk btana hai iska kam