by Pragya

आँचल

April 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँचल में अपने छुपाकर वो,
दुनियाँ की बुराइयों से बचाती है
सारे जहान की खुशियाँ
अपने दामन में लिपटाकर
हमपर लुटाती है
वही आँचल लाज़ बचाता है,
और उसी से पसीना सुखाती है
स्त्री की आबरू का सुन्दर
श्रिगार बनता है आँचल,
जब स्त्री माथे की बेंदी छुपाती है

by Pragya

ये कैसा वक्त है

April 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये कैसा वक्त है
शताब्दियों सा लगता है हर पल मुझको
घड़ी की सुइयां स्थिर ही रहती हैं
ना जाने क्यूँ

by Pragya

नारी

April 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्त्री ऐसी वाणी है हर भाग में पायी जाती है
ये तो ऐसा गीत है जो हर राग में गाई जाती है

पिता और भाई के संरक्षण में रहती है
संरक्षण में वह रहती है,शासन में सब सहती है

विवाहोपरान्त नारी ससुराल में आ जाती है
अपने कर्मों से दोनो कुल की लाज बचाती है

नारी का यौवन अंग-अंग बदले हैं पल-पल रंग-ढंग
कभी ज्वाला सी कभी भाला सी कभी नीर पाई जाती है

यह तो ऐसा गीत है जो हक से अपनाई जाती है

by Pragya

तमाम जिंदगी

April 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तमाम जिंदगी बिता दी मैंने
तुम्हें मनाने में
और कितना वक्त लगेगा तुमको लौट आने में

by Pragya

तुमको फुर्सत

April 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुमको इतनी भी फुर्सत नहीं
जो मेरा हाल भी नहीं पूंछ सकते
दर्द दे सकते हो लेकिन
मरहम नहीं लगा सकते

by Pragya

शिक्षा

April 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

संकल्प ले समाज में शिक्षा का संदेश फैलाएंगे
बेटा हो या बेटी सब को एक साथ पढ़ाएंगे

by Pragya

आईना जितनी दफ़ा देखूँ

April 6, 2020 in मुक्तक

करुँ कितना भी श्रिंगार पर जानती हूँ
तेरे आगे कुछ भी नहीं हूँ मैं
दीद जिस दिन नहीं होती तेरी
चांद छत पर नहीं आता
आईना जितनी दफ़ा देखूँ
तेरा ही चेहरा नज़र आता

by Pragya

गीत यूँ ही नहीं बना करते

April 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलशन फिज़ाओ में यूं ही नहीं महकते हैं
इश्क की बूंदाबांदी से खिल उठते हैं
एहसास की रोशनी से महक उठते हैं
गीत यूंही नहीं बना करते
दिल के जख्मों को हरा करते हैं

by Pragya

रोक ना पाए

April 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

खुदा का वास्ता भी दिया
उसे लेकिन रोक ना पाए

by Pragya

आज फिर

April 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आज फिर मुस्कुराने की कोशिश कर
रात ये कहकर छोड़ देती है

by Pragya

रात भर

April 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रात भर सोंचते रहे तुमको
जाने कब सुबह हो गई

by Pragya

आईना

April 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आसमान धुंधला नज़र आता है
आईना तो वही है लेकिन
चेहरा गमगीन नज़र आता है आसमान
मिटती बनती रहती हैं रेखायें फिर भी
नसीब बदलता ना नज़र आता है

by Pragya

शब्द

April 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बस मीठे शब्दों के बाण मारता था
मुझे पता था वो जालिम बेदर्दी है

by Pragya

हमारे आशियाने में

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बस तो जाता गम हमारे आशियाने में
बड़ा अफसोस है लेकिन फिर निकलता नहीं

by Pragya

कोई कब तक जागे

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम तो रस्ता ही भूल गए
तुम्हारे इन्तज़ार में कोई कब तक जागे

by Pragya

उम्मीदों का दिया

April 5, 2020 in मुक्तक

उम्मीदों का दीया जलाकर
इस आशा में बैठे हैं
कल सूरज खुशियाँ लाएगा
चाँद सजाकर बैठे हैं

by Pragya

इस दुनिया में

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इस दुनिया में किसी को वफ़ा नहीं मिलती
सजा तो मिलती है लेकिन दुआ नहीं मिलती

by Pragya

हर सदी इश्क की

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हर सदी इश्क की होती है
एहसास का कोई मौसम नहीं होता

by Pragya

धीरे-धीरे

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पहले तन्हाई बहुत रुलाती है
धीरे-धीरे आदत सी हो जाती है

by Pragya

नौ मिनट के लिए

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नौ मिनट के लिए भूल जा तू हिंदू-मुसलमाँ
आज इंसानियत के लिये दीप जला दे

by Pragya

अगर मैं भूल भी जाऊँ

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अगर मैं भूल भी जाऊँ तो वो याद दिला देती है
ज़िन्दगी मौत से बद्तर है हर रोज़ सज़ा देती है

by Pragya

दिलचस्प है

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिलचस्प है ये ज़िन्दगी का सफ़र
एक भी थक जाये तो मंज़िल नहीं मिलती

by Pragya

वो एक लम्हा

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो एक लम्हा चुरा लाया है मेरा दिल
जिस पल में तू मेरे साथ रहा करता था

by Pragya

शनासा

April 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नहीं रहा अब इस जहान में मेरा शनासा
कर्ब किसको रो- रोकर सुनाऊँ अपना
शनासा- परिचित, कर्ब-दुख

by Pragya

हे कान्हा! मैं तेरी जोगन

April 4, 2020 in गीत

हे कान्हा ! मैं तेरी जोगन
जोग ना छूटत मेरो
………………..
रोम-रोम में बसत है तेरो
प्रेम अनमोल रतन
………………….
हे कान्हा ! मैं तेरी जोगन
जोग ना छूटत मेरो
………………….
माखनचोर चोर तू है चीतचोर
बंसी मधुर बजायो
………………….
प्रीत में तेरी राधा नाचत
ये कैसो रोग लगायो
…………………..
मोहे रिझा कर गोपिन के संग
काहे रास रचायो
……………………….
कित मेरी गई चूनर धानी
कित नथुनी हेरायो
………………………
सुध-बुध खोकर नाचत
ब्रजवासी कैसो जोग लगायो?????

by Pragya

जीवन का मुन्तज़िर

April 4, 2020 in मुक्तक

मेरी ज़िन्दगी की अधूरी कहानी है तू
मेरी आँखों में मौजूद पानी है तू
मेरे जीवन का मुन्तजिर है
मेरी ख्वाइशों की पैमाइश है तू

by Pragya

मुझमें अभी तक तू ज़िंदा है

April 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझमें अभी तक तू ज़िंदा है
मेरी तन्हाई में,मेरे एहसास में

मेरी हर सांस में अभी तक ज़िंदा है तू
——————-‐—
दिल की ज़मी में आज भी
उगते हैं तेरी तमन्ना के दरख्ते
———————–
रोशन हैं उम्मीदें और
ख्व़ाब सजाए हैं पलकों पर
————————
बेशक तुझसे प्यार बहुत है
तू है नहीं नसीबों में
———‐————–
फिर भी तुझको देख के
मेरे रुखसार की रौनक बढ़ जाती है
————————-
मुझमें अभी तक तू ज़िंदा है
ये मेरी बेकरारी और आईना बताता है।

by Pragya

उनकी तलाश में

April 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जो मिला जीवन के सफ़र में
उसे मेरी जरूरत ना थी
जिन्हें जरुरत है मेरी
उनकी तलाश में है दिल

by Pragya

बिना धागे की सुई

April 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बिना धागे की सुई है ज़िन्दगी
कोई कहता है अच्छी है ज़िन्दगी
किसी को सिखाती है
किसी को बस चुभती जाती है ।

by Pragya

आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा

April 3, 2020 in ग़ज़ल

पेश है आपकी खिदमत में:-
गज़ल
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा
तुझे भूलूँ या कैद दिल में करूँ
————————
दिल लगा लूँ या जान छुड़ा लूँ तुमसे
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा
————————–
गज़ल सुना के सुलाये हैं मैनें जो एहसास
उन्हें जगा लूँ या सुला दूँ है बड़ी उलझन
—————————-
भूल जाना भी तूझे है ना आसान इतना
दिल में बसता है तू अर्से से तुझे नहीं है खबर
——————————
तुझे भी इल्म है इस बात का नहीं मालूम
कितनी बेबस हूँ तेरे बिन तुझे नहीं है फ़िकर
———————————
तुझे छुपा लूँ आँखों में,लिपट जाऊँ मैं
आज कल सोंचता बहुत है दिल ये मेरा।

by Pragya

चलो सब मिलकर जीत दिलाएं

April 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो सब मिलकर जीत दिलाएं
कोरोना को हरायें
पाँच अप्रैल को सब देशवासी घर में दीप जलाएं
दीप की ज्योति से अपना घर सँसार सजाएं
चलो सब मिलकर जीत दिलाएँ
थू है उनपर जो जमाती
अश्लीलता के खंजर भोकें
थूँकते हैं जो मानवता पर
प्रभु उनपर कोप की अग्नि परोसें
देश बड़ा है सब धर्मों से प्रज्ञा शुक्ला है कहती
जो कोरोना से पीड़ित लोगों की
सेवा में तत्पर हैं उनको देशभक्त है कहती
ना मरता हिंदू ना मुस्लिम
मरता है सिर्फ़ इन्सान
जो नहीं समझते इस बात को
वो हैं मानवता के शत्रु
है आप से विनती घर में रहकर
करो आप देश की भक्ति
जय हिंद जय भारत कहिये
अपनी मानवता को मत शर्मशार करिये।

by Pragya

पुत्र मोह

April 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पुत्र मोह में लिपटे प्राण-पखेरू भी उड़ चले आज
बलि वेदी पर राजा दशरथ भी चढ़ गए आज

कैसी विपदा आन पड़ी अवध नगरी पर
जो फली- फूली थी उपवन सी अकस्मात ही उजड़ गई
प्रेम की फूली डाल अचानक ही लद कर टूट गई

हाय कैकेई! तेरी कैसी मति गई थी मारी
कोमल हृदय वाले राम की जो तूने
ऐसी स्थिति कर डाली

क्यूँ ना फटा ह्रदय तेरा जब तूने ऐसे वरदान लिये
राम चले वनवास और राजा दशरथ के प्राण गए

आँख खुली जब भरत ने कैकेई को त्याग दिया
राम की चरण पादुका लेकर खुद भी वनवास किया

जय हो भरत लाल की ऐसा भाई सबको मिले सदा
राज्य से परम भ्रात भक्ति संसार में जीवित रहे सदा

by Pragya

दिल के छाले

April 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अल्फ़ाज यूँ ही गज़ल नहीं बना करते,
दिल के छाले भी लफ्जों में बयां करने पड़ते हैं।

by Pragya

थोड़ा ठहर

April 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

थोड़ा ठहर जा ज़िन्दगी थक गई हूँ बहुत
ज़्यादा रफ़्तार अच्छी नहीं होती

by Pragya

सुबह मेरी

April 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेहया रात से गले मिल कर
आई है सुबह मेरी
कि धूप छांव का आलम
लाई है सुबह मेरी
मेरी गज़ल भी थी जो लिखी थी एक दिन मैने
उसकी इबादत में
उस गज़ल के कुछ पन्ने समेट लाई है सुबह मेरी
किसे पुकार रहा है ये मेरा जिगर
बस एक फ़िक्र और भी लाई है सुबह मेरी
अदावतें निभा कर था जो खो ही गया
उसे ढूँढ कर लाई है सुबह मेरी
राहे सुखन में मिट गया तगाफुल उसका
हमनवाई का बहाना लाई है सुबह मेरी

by Pragya

कुछ तो खेल है

April 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें

न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे

जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने

किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से

मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें

ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके

दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे

लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे

by Pragya

केवट

April 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

समुंदर पार कर दो ए केवट प्रिय मेरे
पार कर दो गंगा
प्रिय लक्ष्मण भ्रात है साथ
और है जनक दुलारी साथ
जाना है चित्रकूट मुझको
करा दो गंगा पार
हे केवट करा दो गंगा पार
ना पार कराऊँ मैं गंगा
हे प्रभु! जी मुझको छमा करो
आपके चरणों की कथा सुनी है
मैनें कई-कई बार
इन चरणों की रज से
पाषण बनी सुन्दर नारी
यदि मेरी यह नैय्या भी
बन गई सुन्दर नारी
तो मैं कित जाऊंगा क्या खाऊँगा
हे रघुनाथ!
इस कारण से हे रघुनंदन
आपके चरण पखार
उस चरणामृत को पीकर मैं
कराऊँगा गंगा पार
सुन रघुनंदन केवट के वचन
मन्द मन्द मुस्काये
केवट कितना बड़ भागी
सबको तारन वाले को नदिया पार कराये
अपनी मुद्रिका उतार के सीता केवट को देंतीं हैं
केवट कहता है श्री राम से:-
क्या कोई नाई किसी नाई से कुछ है लेता
तुम भी केवट मैं भी केवट
भला कैसे लूँ खेवाई
जब आऊँ मैं तेरे घाट तो भव सागर पार करा देना मुझको
जैसे मैनें गंगा पार करायी मैं ना लूँगा खेवाई।

by Pragya

उर्मिला

March 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब था मर्यादित रामचरित मानस में
पर उपेक्षित उर्मिला की वेदना पर
ध्यान किसी ने नहीं दिया
जिस सम्मान की वो भागीदार थी
वह सम्मान किसी ने नहीं दिया

by Pragya

हर फ़ैसला

March 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हर फ़ैसला खुद करने की आदत थी उन्हें,
बिछड़ने का फैसला भी अकेले कर लिया।

by Pragya

इश्क की गोद

March 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क की गोद में जा बैठी
जो कातिल था उसी को मीत बना बैठी।

बुझ गई थी बहुत पहले ही क्यूँ आज
दिल की आग जला बैठी।

वो ख्व़ाब था किसी की नींदों का
क्यूँ उसे अपनी रात बना बैठी।

जो झूठ के दायरे में रहता था
क्यूँ उसी के आगे सदाकत की नुमाईश लगा बैठी।

जख्मों पे नमक चिढ़कना पेशा था जिसका
दिल के छाले उसी को दिखा बैठी।

प्यार सुन्दरियों का व्यापार था जिसके लिए
उसी को मोहब्बत का खुदा बना बैठी।

ख्व़ाब देखे थे जो हमनें नींदों में
उन्हीं को छत पर मैं सुला बैठी।

कितनी पागल है तू ‘प्रज्ञा’
जो प्रेम का खिलाड़ी था
उसे ही जज्बातों से खिला बैठी।

by Pragya

कुछ दिनों से

March 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कुछ दिनों से बदल सी गई हूँ
पहले जीवन में कविता ढूंढ़ती थी
अब कविता में जीवन ढूंढ़ती हूँ।

by Pragya

हर कदम

March 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इस तरह सतर्क पहले कभी ना थे
लगी जब से ठोकर
हर कदम सम्भाल कर रखती हूँ

by Pragya

उठ बेटा

March 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक पन्ना और जुड़ गया
जीवन के अध्याय में
चिरंजीव चिरस्थायी का जो
आशीर्वाद दिया था माँ ने
आज धुंधला प्रतीत हो रहा है
अकस्मात एक प्रारब्ध बेला पर

by Pragya

वो बूढ़ी माँ

March 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक पन्ना और जुड़ गया
जीवन के अध्याय में
चिरंजीव चिरस्थायी का जो
आशीर्वाद दिया था माँ ने
आज धुंधला प्रतीत हो रहा है
अकस्मात एक प्रारब्ध बेला पर
विचलित कर देने वाली घटना
स्मरण हुई
जो अन्तर्मन को दुखा रही थी
मेरी वेदना के शूल चुभ रहे थे
नयनों से अश्रुधारा बह चली
एक माँ के बुढापे का सहारा
जो मृत्यु की गोद में सो गया था
अकारण ही दुर्घटना का
शिकार हो गया था …..
वो बूढ़ी माँ अपने मृत पुत्र को
गोद में लेकर कह रही थी:-
उठ बेटा उठ तुझे भूख लगी होगी कुछ खाले××××
कुछ बोलता क्यूँ नहीं…
मैं ऐसा करुण दृश्य देखकर अवाक सी रह गयी××××

by Pragya

एक दौर वो भी गुजरा है

March 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक दौर वो भी गुजरा है!
जब हम कागज और कलम
लेकर सोते थे।

यादों में पल-पल भीगा
करती थीं पलकें ,
अभिव्यक्ति के शब्द
सुनहरे होते थे।

ना दूर कभी जाने की
कसमें खाई थीं
मिलने के अक्सर वादे
होते रहते थे।

कोई यूं ही कवि
नहीं बनता है यह सच है
हम भी तो पहले
कितना हंसते रहते थे।

by Pragya

मैं रहूँगा कहाँ ???

March 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत कोशिशें कर ली उसे मनाने की,
राहें भी ढूंढी दिल में उतर जाने की ।

पर नाकाम ही रहे हर कोशिश में हम,
दिल उदास हो गया गम में डूबे हम…

फैसला कर लिया उसे
भूल जाऊँगी,

चाहे कितना भी बुलाए ना
पास जाऊँगी…

सारे कसमें वादे भी हमनें तोड़ दिए,
यादों के गुप्तचर भी मैनें कब के
छोड़ दिए …

पूरा इन्तजाम कर लिया उसे भुलाने का,
ख्व़ाब भी छोड़ दिया मैनें उसको पाने का…

निकालने जब उसको मैं चली दिल से,
बेबस सी लगी खुद को मैं फिर से…

फिर सोचा उसे दिल से ना मैं निकाल पाऊँगी,
जो निकाल भी दिया तो ना जी पाऊँगी…

मेरे अंतर्मन से एक आवाज आई:-
दिल से निकालना उसे मुनासिब है नहीं,
मगर दिल निकालने में तो कोई हर्ज़ नहीं…

दिल चीरने चली जब मैं तो किसी कहा…
दिल निकाल तो दोगी पर मैं रहूँगा कहाँ….

by Pragya

रास्ता कहीं से तो जाता होगा

March 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो आते तो हैं
मेरे आशियाने में..
मुझी से मिलने मगर जताते नहीं हैं
बस हम समझ जाते हैं..
नज़रे झुकाए रहते हैं और
दिल लगाने की बात करते हैं..
कितने नादान हैं
चुपके से देख लेते हैं
रुख पर मुस्कान लिये…
मैं जानती हूँ वो तगाफुल
करने में माहिर हैं
पर हम भी दिल में
बस जायेंगे आहिस्ता- आहिस्ता…
रास्ता कहीं से तो जाता होगा
उनके दिल तक!
पहुँच ही जाऊँगी उन तक
फिर देखूँगी कहाँ जाते हैं
हमसे बचकर…

by Pragya

नींद

March 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हैरत में हूँ कुछ भी समझ आता नहीं,
नींद तो मेरी है पर ख्व़ाब आपके।

by Pragya

🙈🙈नींद 🙉🙈

March 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

🤔🤔हैरत में हूँ कुछ समझ आता नहीं
नींद तो मेरी है पर ख्व़ाब आपके 🙈🙈

by Pragya

चिट्टियां

March 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आरज़ू थी कि मेरे हाथ में तेरा हाथ होगा….
क्या खबर थी कि
हाथ सिर्फ़ चिट्ठियां ही आएंगी ।

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