by Pragya

आजकल

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आजकल वह बड़ा बेचैन रहते हैं..
हम जो जरा हँसकर किसी से बोल देते हैं..

by Pragya

मेहनत करने वाले

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेहनत करने वाले मंजिल को पा जाते हैं
और बेचारे कामचोर गाल पीटते रह जाते हैं..

by Pragya

पतन की बात

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जो नाउम्मीदी की डगर से गुजरते हैं
वो ही शक्स पतन की बात करते हैं..

by Pragya

खैरात

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मंजिल पाने के लिए मैंने किसी से खैरात
नहीं मांगी..
अपनी मेहनत से बुलंदियां हासिल की
हैं..

by Pragya

एक अर्से के बाद

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बड़ी बदनामियां उठाने के बाद
आज मैं फिर मुस्कुराई…
एक अर्से के बाद जब मेरी
जान लौट आई…

by Pragya

भागीरथी..

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पापनाशक भागीरथी
को इन्सान ने मैला कर दिया।
राम तेरी गंगा मैली’ को
हमने कड़ी मेहनत से
चरितार्थ कर दिया।
धो रही थी अब तक जो
हमारे पाप को
अपने पुनीत कर्मों से
हमनें उसकी पवित्रता को धो दिया।
बहाकर मैल नालियों, नदियों का
हमनें देख तो
ओ राम !
हमनें अब तेरी गंगा को मैली
कर दिया।

by Pragya

गंगाजल…

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गंगाजल की भी
अपनी ही महिमा है।
तभी बिकने लगा है
आजकल
जाने किस मिट्टी का है
इन्सान यहाँ !
मिट्टी तो छोड़ी नहीं
अब गंगाजल भी नहीं छोड़ेगा।
बात अच्छी भी है कि
अब खतों के साथ डाकविभाग में
गंगाजल भी उपलब्ध रहेगा।
🙂🙂🙂🙂

by Pragya

भारतीय परिधान…

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारतीय परिधान सजीला
पहने जो भी लगे रंगीला।

देखी मैने एक सुन्दर बाला
हाँथों में चूड़ी, कानों में बाला।

जुल्फें जिसकी काली-काली
होंठों से टपक रही थी लाली।

माथे पर थी नीली बिंदी
होंठों पर थी अनुपम हिंदी।

सुन्दर साड़ी लाल किनारी
कमर में बिछुए भारी-भारी।

कहीं संभाले पल्लू सरपट
चाल थी उसकी डगमग-डगमग।

पीठ छुपाती कहीं बेचारी
असुविधाजनक थी साड़ी भारी।

खूबसूरती परिधान में होती
नज़र है जिनकी गंदी होती।

यही अलापें वह दिन-रात
जो रखते हैं दिल में पाप।

by Pragya

कविता किया करो

August 29, 2020 in मुक्तक

छोंड़कर बातें पुरानी
कविता किया करो।
सपनों में नहीं
हकीकत में जिया करो।
तोड़ दे दिल कोई तो
खैर तुम उसकी मनाओ
दिल के लिए अच्छा
यही है कि
पुरानी बातों पर
मिट्टी डाल दिया करो।

by Pragya

चलो एक बार..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

चलो एक बार हम
फिर से दिखावा आज करते हैं
तुम पूँछो की कैसे हो ?
हम कह दें की अच्छे हैं।
अब तो रातों में रोना भी
हमको खूब आता है
बस एक बार तेरी बेवफाई
याद करते हैं।

by Pragya

तेरी बेवफाई..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नज़रंदाजी को तेरी मैं मजबूरी समझती थी..
तेरी बेवफाई को ये प्रज्ञा प्यार कहती थी..

by Pragya

तुलसीदास

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरे दर्द के बाद सोंचती हूँ मैं
क्यों जन्म दिया ऊपर वाले ने मुझे !!
ठोकर खाने के लिए
या तुलसीदास बनने के लिए !!

by Pragya

मेरे दामन को..!!

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरे दामन को सरेआम
दागदार कहता है,
गंदी नाली का कीड़ा है तू
गंगाजल को अपवित्र
कहता है..!!

by Pragya

बिना धागे के

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुझे जख्म लगते ही
वो सिलने बैठ जाता था…
बात इतनी-सी थी कि
वो बिना धागे के सिलता था…

by Pragya

❤ दिल के छाले…!!

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

❤❤ अभिव्यक्ति दिल से ❤❤
_______________
बेइन्तहां
मोहब्बत थी
उनसे हमें
एक छींक पर भी
जान निकलती थी
हमारी….
ना जाने क्यूँ उन्हें
हमसे मोहब्बत
ना हुई!
इसमें भी शायद
खता थी हमारी..
जब वो बीमार होते थे
हम हमेशा उनके
पास होते थे…
फिर भी नहीं की
कदर उसने हमारी..
शायद इसमें भी
खता थी हमारी…
किसे दिखाएं
अपने दिल के छाले!
कोई नहीं समझेगा
मोहब्बत हमारी…
उल्टा मुझी पर
हँसेगा जमाना
जो भी सुनेगा
कहानी हमारी…

by Pragya

नारी होना अभिशाप नहीं…।

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी हूँ मैं
मुझे इस बात का गर्व है…
नारी का जीवन
बसंत का पर्व है…
अपने सुगंधित पुष्पों से
नारी महकाती है घर-गगन
हरियाली खुशियों की
फैलाकर….
नित्य पल्लवित करती है सुमन…
नहीं है पतझड़- सी अभागन
भर देती है खुशियों से आंगन…
सब को खुश रखने में ही
लगी रहती है…
अपने सपनें भूल कर
दूसरों के सपनों को
पूरा करने की कोशिश करती है..
इसीलिए नारी होने पर
मुझे फक्र है
नारी के आगे तो
नतमस्तक कालचक्र है…
नारी होना अभिशाप नहीं
ईश्वर का आशीर्वाद है…।।

by Pragya

उर्मिला की विरहाग्नि

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब मैं कली बन मुस्कुराई अली
तब ही प्रियतम बन आए अली…

घेरा मुझको बाहुपाश में
डूब गई मैं प्रेमपाश में…

प्रिय चले गए वनवास अली
जब बिछोह की हवा चली…

नित क्रंदन, रुदन करूं मैं अली
कामेच्छा से विरहाग्नि भली…

ना मैं जलूँ सती सम अग्नि की ज्वाला
ना डूबूँ लक्ष्मी सम पयोनिधि धारा…

हे प्रभु! जब दी विरहाग्नि मुझे
करो सहने की भी शक्ति प्रदान मुझे…

बीते शीघ्र निशा हो सुप्रभात
उर्मिला की कर दो आकर प्रतीक्षा समाप्त…

by Pragya

आ गया तेरा भाई…!

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बहुत व्यथित थी
बार-बार निगाहें दरवाज़े
तक जाकर लौट आ रही थीं….
ना जाने कहाँ रह गए वो!
मेरा बेचैन मन
मुझे अधीर कर रहा था….
कहा तो था जल्दी ही
आ जाऊंगा
ना जाने कहाँ रह गए वो!
जितनी बार गली से
कोई आहट आती
मन की गति से भी जोर
मैं भागती
दरवाज़े पर निहारती
और हताश होकर
लौट आती…
ना जाने कहाँ रह गए वो!
तभी बाहर से आवाज आई
कहाँ हो बहना!
मन प्रसन्नता से
झूम उठा
आँखों में चमक आई
मेरी बेचैनी ने
मुझे छोंड़कर जाते हुए कहा
लो आ गया तेरा भाई…

by Pragya

सूर्य का स्वागत

August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नई भोर है सूर्य का स्वागत
करेंगे हम…
खिड़कियों से पर्दे हटा
किरणों से नहाएगे हम..
तितलियों के पंख से चुरा लेंगे
तमाम रंग
फीके आसमां पे जा नित नवीन
चित्रकारी करेंगे हम..
सागर की लहरों से सीख लेंगे…
जीवन के उतार-चढ़ाव
पंख खोल आसमां में जा
उड़ेंगे हम…
पपीहे की पुकार सुन झूम
उठेंगे मन-गगन
और रेत से कभी फिसला
करेंगे हम…
चुरा लाएगे एक रोज़ हम
समय की चाबियां
वक्त-बेवक्त फिर जगा
करेंगे हम…

by Pragya

माँ मुझे चाँद की कटोरी में

August 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना नादान था वह बचपन जब…
माँ मुझे चाँद की कटोरी में
खिलाती थी…
मैं खाना खाने में नखरे
हजार दिखाती थी…
पर माँ चाँदनी रात में कटोरी
में जल भर लाती थी..
मेरी बाँहें पकड़कर
माँ मुझे गोद में बिठाती थी..
याद करती हूँ मैं कि कितना
भोला था बचपन जब माँ
मुझे
चाँद की कटोरी में खिलाती थी…
ना-ना करने पर मुझे प्यार से
मनाती थी..
उस जल भरी कटोरी में
माँ मुझे चन्द्रछाया दिखाती थी…
मैं पगली उसे चाँद समझकर
कितना खिलखिलाती थी..
कितना भोला था वो बचपन!
जब माँ मुझे चाँद की
कटोरी में खिलाती थी…
उस चन्द्रछाया को स्पर्श करते ही,
जल में हलचल मच जाती थी..
चाँद के विलुप्त होते ही मैं
कितना अधीर हो जाती थी..
माँ कहती थी मत छुओ इसे
वरना विलुप्त हो जाएगा!
फिर बोलो तुम्हारे लिए
चाँद की कटोरी कौन लाएगा?
झट से मैं माँ की बातों में
आ जाती थी…
फिर माँ हर निवाले पर सबका
नाम लेकर मुझे खिलाती
थी..
एक माँ की ही ममता है जो
चाँद को फलक से कटोरी
में ले आती थी…
और मैं पगली यूँ बचपन में
चाँद की कटोरी में खाती थी…

by Pragya

दुर्योधन और दु:शासन

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मनु की संतान पर तंज कसने की कोशिश की है मैनें..
नया विषय और भारत की समस्याओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है मैनें…

द्वापर छोंड़ दुर्योधन और
दुःशासन
कलयुग में आए..
मानव को सताने के
नए-नए हथकंडे अपनाए…
किसी ने सीखी शस्त्र विद्या
किसी ने अस्त्र विद्या…
और दुराचार के पैतरे भी
सीख कर आए…
जब पहुँचे भारत की
भूमि पर
रह गये आश्चर्यचकित
ब्रज भूमि पर..
कृष्ण मंदिर का
नामोनिशान नहीं
कुरुक्षेत्र महज
शमशान नहीं..
हँस पड़े हिन्दू-मुसलमां
पर
मस्जिद में पढ़ते कलमां
पर…
नेता की मालखोरी पर,
पुलिस की रिश्वतखोरी पर…
किसान की आत्महत्या पर,
युवाओं की बेरोजगारी पर…
रो पड़े जवान की मृत्यु पर..
कोरोना जैसी महामारी पर…
नारी की लाचारी पर…
कहने लगे दोनों भाई
यह भारत पर कैसी विपदा
आई…
हम लड़ते थे सिर्फ स्वाभिमान की खातिर…
यह सब मर रहे अभिमान की खातिर…
जिस धरती पर हमनें जन्म लिया…
कुछ पाप किये कुछ पुण्य
किया…
यह हमारी तो जन्मभूमि
नहीं…
जो छोंड़ी थी वह भारत
भूमि नहीं…
अब चलो यहाँ से चलते हैं..
ब्रह्मा जी से जाकर मिलते हैं..
पूँछते हैं यह किसकी औलादें हैं,
यह तो मनु की संतान नहीं…

by Pragya

संवेदनाओं की माला

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

संवेदनाएं कहाँ रहती हैं आज-कल,
मैं यह जानती नहीं..

लोग क्यों जलाते हैं नफरत
के चिराग
मैं यह जानती नहीं..

ऊब चुकी हूँ जिन्दगी
से अपनी,
साँसों की डोर कब
टूटेगी
मैं यह जानती नहीं…

संवेदनशील मुद्दों पर
लोग मौन धारण कर लेते हैं
करते हैं क्यों ऐसा
मैं यह भी जानती नहीं..

मरती है मानवता जब
निहत्थे होकर सड़कों पर
चुप हो जाते हैं क्यों सब
यह भी जानती नहीं…

टूट जाती हैं जब संवेदनाओं की माला
क्यों बिखर जाती है मानवता
मैं यह जानती नहीं…

by Pragya

बेटियाँ

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितनी प्यारी होती हैं
बेटियाँ,
प्रेम की मूरत होती हैं बेटियाँ..
आती है जब परिवार पर
आँच कोई,
सबसे आगे खड़ी होती
हैं बेटियाँ…
प्यार के पालने में झूलती हैं,
माँ के आँचल में पल्लवित
होती हैं बेटियाँ…
बाबुल के घर रोशनी
उन्हीं से होती है,
चिड़ियों-सी चहकती रहती
हैं बेटियाँ..
हो जाती हैं एक दिन ये कलियाँ पराई,
अपनी यादों की महक
छोंड़ जाती हैं बेटियाँ…
कहता है जब कोई इन्हें
पराया,
बहुत बिलख-बिलखकर
रोती हैं बेटियाँ…
मायके में पराई अमानत,
ससुराल में पराये घर की कही जाती हैं…
आखिर किस घर की
होती हैं बेटियाँ..?

by Pragya

Ganesh ji

August 22, 2020 in English Poetry

O my ganesh ji
Your glory is infinite …
Today we all need your blessings very much…
Hey Ganesh! All your troubles …
All the troubles from the world
Erase and
Bless us ..
I beg you
Goodwill to all
Provide God…
And in all of our lives
Bring happiness…

by Pragya

पिता बरगद का वृक्ष

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शीर्षक:- पिता:-बरगद का वृक्ष

पिता वह बरगद का वृक्ष है
जिसकी छांव में हमें
प्रेम, स्नेह तथा सुरक्षा मिलती है..
पिता नारियल का वह
फल है
जो ऊपर से सख्त
परन्तु अन्दर से
सुकोमल होता है…
माँ तो आँसू बहाकर
दुःख प्रकट कर लेती है,
परन्तु पिता
निर्मोही होने का ढोंग करता रहता है
जबकि अन्दर-अन्दर
रोता रहता है…
जब वह डाटता है तो
उसकी डाट में
फिक्र छुपी होती है
अपने बच्चे की…
वट है वह सब खुद
ही सह लेता है…
अपनी उदार लताओं
से हर कदम
सहारा देता है…
कंधे पर बिठाकर
दुनिया दिखाता है..
उँगली पकड़ कर चलना
सिखाता है..
तुम पर आए कोई आँच
तो सुरक्षा करता है
डाटता इसलिए है
क्योंकि प्रेम करता है…
पुरुष है इसलिए कह
नहीं पाता…
माँ की तरह मुख चूम
नहीं पाता…
माँ की तरह तुलसी का
पौधा नहीं है वह
बरगद है वह इसलिए
झुक नहीं पाता..

by Pragya

निर्भया और द्रौपदी

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शरीफों की सभा लगी फिर
लुटती रही क्यों द्रौपदी?
दु:शासन के दुराचार पर
संवेदना क्यों मर गई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

देवताओं का दाग अहिल्या
के दामन जा लगा..
वह नारी से पाथर क्यों हुई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

सीता थीं चरित्र की कितनी धनी
और राम पर विपदा घनी..
फिर सीता वन-वन क्यों फिरी?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

पिंगला थी कितनी सती
फिर भी चरित्र पर उँगली उठी….
वह विरहाग्नि में क्यों जल गई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

कामायनी की श्रद्धा संग भी
क्या भला अच्छा हुआ?
मनु श्रद्धा का संग छोंड़
इड़ा का प्रियतम हुआ…
क्यों श्रद्धा संग ऐसा हुआ?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

निर्भया संग क्या हुआ यह
कहने की आवश्यकता नहीं…
जहाँ दिखानी चाहिए मर्दानगी
वहाँ तो दिखती नहीं…
यही कहती द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…

by Pragya

तुझमें है सिंहो -सा-दम

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोशिश कर आगे बढ़ने की बंदे,
तुझमें है सिंहों-सा दम…
ना मान हार तू लहरा दे,
अपनी ताकत से जग में परचम…
नित अग्रसर हो जीवन पथ पर,
मत गवां समय तू रुक-रुककर…
तू जवाँ लहू, जिसमें आता,
उत्साह उबलकर नस-नस पर…
नित कुआँ खोद पानी पी जा,
खुद बना राह आगे बढ़ जा…
तू मौत की तरफ बढ़ा ना कदम,
कटु वचन भूल जीवन जी जा….
यूँ ना सुबक-सुबक जीने से,
जीत मिलती है खून-पसीने से…
तुमसे ना कुछ हो पाएगा,
यह बात निकालो सीने से….
तू बन कर्मठ, बस हिम्मत रख,
फिर अम्बर भी झुक जाएगा,
जग भूल जाएगा यह कहना,
कि तुमसे ना हो पाएगा…

by Pragya

ईश्वर की कठपुतली

August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ खार जमाने में हर चमन में होते हैं,
चुभते हैं जिस्म को लहूलुहान कर देते हैं,
तो कुछ खार लफ्जों से घायल कर देते हैं,
उन खारों से कोई जाकर पूंछे, क्या उन्हीं का स्वाभिमान है सर्वो परि?
बाकी सबका क्या कोई वजूद नहीं,उनका कोई स्वाभिमान नहीं,
कुछ भी कह देने से कोई अपमान नहीं!
सब क्या माटी के ढेले हैं उन सम कोई महान नहीं,
अरे प्रज्ञा! जाकर उनसे कह दो हम सब ईश्वर की कठपुतली हैं,
इस दुनिया में सब आते हैं,सबको निश्चित दिन जाना है,
इस कालचक्र के फेरे से तो बचता कोई भगवान नहीं..फिर खार तो खार हैं, नश्वर हैं,
दामन छेदकर नष्ट हो जाएगे,बस उनके दिए जख्म़ ही यादगार रह जाएगे…

by Pragya

Courage…

August 18, 2020 in English Poetry

There is no bread
without hard work,
there is no happiness
in the poor’s house…

No matter how much
you fly with a feather of courage,
the stomach does not lose its appetite…

Due to intrusive intentions,
we have kept holding
the breath of breath,
otherwise death is not easy here…

It is heard that the whole world is celebrating Rangotsav,
but where different colors
are being used here…

There is a struggle in life that someday it will be relaxed, on the same day this colorful face will also be adorned.

In forced labor, we deal with helplessness, we paint the poor Holi also with sweat. ‘

by Pragya

Tell the lamps..

August 18, 2020 in English Poetry

Tell the lamps,
be in a little leisure, now some darkness is also good…

People have faces here and there is a lot of mystery in them…

by Pragya

Why do you feel bad so soon..!

August 18, 2020 in English Poetry

Why do you feel bad so soon!
So angry
Not a good thing
I explained to you earlier
Don’t be so impatient about small things
Don’t put it to heart
Everyone has their maneuver
Have a different personality
Everyone’s thinking
Are not the same
All by god
Have a specific ability
If everyone starts thinking the same way
So these are the battle riots
It doesn’t exist
But you don’t see it all
You just get very quick
Is this correct ..

by Pragya

Seeing this season..

August 18, 2020 in English Poetry

Seeing this season
of weather today,
something like a stir in the heart started happening now…
Seeing you,
Noor sa tera mukhda darling,
she is desperate in mind…
This wind has done some mischief,
you have tried to get involved with Zulfo…
The drop water has
also done some wrongdoing,
it has tried to come on your lips…
There is a loss of mascara in your eyes, there is a shadow
of a shadow in your face…
I can write the song
of your makeup,
if I see you,
I will keep watching…
I go like this in your breath,
leave it all and be yours…
Love you,
I write the essence of life,
write songs, write, I love you…

by Pragya

Your wish..

August 18, 2020 in English Poetry

Would know if persuading
How are you
Few days of life
More in your wish
Sacrificed
And cry a few nights
Yearning for your memories
Would you know anything else
And would be infamous
In love
And we build
Creations of heart
Get nothing
Except tears from me
Solve the tricky nights
Except dreams
Put in books
Except dried roses
Except Infidelity and Russian
Life of oblivion
And helplessness
You didn’t give anything
I did not even expect…

by Pragya

You were the only one…

August 17, 2020 in English Poetry

❤ you were the only one❤
——————————————–
Whom to tell your story
No one is your friend
You were the only one..
Who used to listen
Every bit of my heart
My sweet and sweet things..
You never know where I got lost
And it is lost that you cannot be found again
You did not even remember me,
you played friendship in this way
When you were in life
Out was out
Suddenly you disappeared one day
Without saying anything without saying
anything and till date i am looking for you
But you did not find a mark
I wait every moment for you
That you might come today
You will come or not
I don’t know this
But my eyes eagerly await you
Staring…

by Pragya

Oh deer!..now come

August 17, 2020 in English Poetry

🌹🌹
Rimjhim-rimjhim clouds
rained all day..
I love your lover
Neither day nor night
Comfort me
Cloudy rain
All day my tears
Oh dear!
Now come
Rainy clouds also rained
Now you come
End my wait and take me in
Your arms…

by Pragya

A black cloud!

August 17, 2020 in English Poetry

A black cloud! just listen
After visiting the streets,
they should also know that the spring has arrived …
Restless heart
With your drops
So that they have something of my love
Realize ..
A black cloud just listen
Go and shower in their street
And make me feel my love…

by Pragya

The condition of my heart..

August 16, 2020 in English Poetry

Now identify yourself with the eyes
The condition of my heart …
Because the lips have been stitched for years due to fear of public shame …

by Pragya

Rose petals…

August 16, 2020 in English Poetry

There used to be a time!
When we used to be scattered in your arms like rose petals ..
Now just the scent of that moment
I am left in my breath
You remember
When you mine
He used to put his head to sleep ..
That old banyan
Under which we can spend hours in the evening
Used to spend ..
Now just remember those moments
When you meet me
Used to come to my house ..
We see you
How shy
And you see me
Used to smile
Now there are just memories of those moments ..

by Pragya

Does god ever change..!

August 16, 2020 in English Poetry

Relax ‘wanders from one place to another in search of this one word..
Finds its fathom
But it stops in your name ..
Of course in your love this heart
Ashk drinks only ..
But every moment
Your only wait ..
I ask this every day
Why do you do this
Then says
May or may not be fulfilled
But does God ever change ..
And i’m silent
It happens every night ..

by Pragya

let’s goanyway…

August 16, 2020 in English Poetry

I do not understand anything
except you..
Neither sleep nor
peace and agreement..
Mahafil also no longer likes
These are everyday stories,
let’s go anyway…

by Pragya

इंसान से परमात्मा

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई वजूद नहीं था तुम्हारा
मेरे बिना..
यूंँ ही गुमसुम बैठे रहते थे..
मैंने ही आकर तुम्हारी
जिंदगी में रंग भरे
होठों को मुस्कुराना सिखाया,
हँसना सिखाया, रोना सिखाया।
मेरी ही मोहब्बत ने तुम्हें
इंसान से परमात्मा बनाया।

by Pragya

कल ही लिपटे थे दामन से

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

कल ही लिपटे थे दामन से
क्यूँ आज तिरंगा ओढ़ चले?
दो कदम चले थे साथ अभी
क्यों आज मुझे तुम छोड़ चले?

अब प्रेम गगरिया को अपनी मैं
आँखों से छलकाऊँगी,
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी।
मैं सूली पर चढ़वाऊँगी…

सूनी गलियां सूना आंगन
सूनी मेरी दुनिया साजन
‘परिणय’ के वो सुमधुर कंगन
कैसे मैं खनकाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मीठे-मीठे सपने कल के
तुमने देखे हमने देखे
तेरे बिन ओ बोल रे साजन!
कैसे मैं जी पाऊंगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मेरी बिंदिया मेरी पायल
तेरी राहें देख-देखकर
आंसू भी अब सूख गए हैं
तेरे नाम का लगा के काजल
कैसे मैं जी पाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

कवयित्री:- प्रज्ञा शुक्ला ‘सीतापुर

by Pragya

इन आँखों में..

August 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना जाने क्या है इन आँखों में
कुछ ठहर-सा गया है..
रोती हैं तेरी यादों में
पर वक्त गुजर-सा गया है..

by Pragya

तुम्हारे सिले होंठ…

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल बड़े पैतरे आजमाने लगे हो तुम!
मुझसे दूर जाने के…
इतनी समझ आई कहाँ से तुम में?
पहले तो तुम बहुत नादान हुआ करते थे…
अच्छा तो अब ये भी मेरी
संगत का असर है!
ऐसा ही बोल रहे हैं
तुम्हारे सिले होंठ…
काश! कुछ और भी सीख जाते तुम मुझसे
रिश्ते संजोना, दिल रखना, वफ़ाई
तो कितना अच्छा होता!
यूंँ टूटते नहीं हम
बिखरते नहीं हम…
और समेटना नहीं पड़ता मुझे
जज्बातों को इस तरह
गज़लों में, कविताओं में
जिंदगी नहीं ढूंढते हम…

by Pragya

दिल की गलियाँ…

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बहुत दिनों बाद आई हूँ
तुम्हारे दिल की गलियों में..
सफर करने को
जरा संभाल कर रखना
अपनी धड़कनों को
मुझे देखकर कहीं मचल ना पड़ें…
यूं नजरों से देखने की कोशिश ना करो मुझे
आंखों को बंद करके बस महसूस करो मुझे..
तुम्हारी बंद पलकों में नजर आऊंगी
आंखें खोल कर देखना चाहोगे अगर
तो गुम हो जाऊंगी…
तभी तो आज बहुत दिनों बाद आई हूँ
तुम्हारे दिल की गलियों में सफर करने को…

by Pragya

ओ मैया! मोरी

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

ओ मैया! मोरी पीर बड़ी दुखदायी
सब कहें मोहे नटवर-नागर
माखनचोर कन्हाई।
तेरो लाला बरबस नटखट
कब लघि बात छपाई।
ओ मैया! तेरो कान्हा
माखन बिखराई।
सो खावत सो माखन-मिसरी
ग्वालन खूब खिलायी।
फोड़ दई मोरी मटकी- हांड़ी
गऊवन देत ढिलाई।
पनघट पे नित बंशी बजावत
मोरी सुधि-बुधि सब बिसराई।
राह चलत नित छेड़त नटखट
छोड़े ना मोरि कलाई।
सुनि गोपिन के वचन कन्हैया
मन्द-मन्द मुसकायी।
ना मोसे फूटी मटकी-हांड़ी
नाहि गउवन दियो ढिलाई।
कान पकड़ि खींचे यशोमति माई
रोवत कृष्ण कन्हाई।
ब्रजगोपी सब बैरन लागें
झूठी चुगली करें तोसे माई।
चूमि-चूमि मुख गीलो नित करि
ग्वालिन मोहे रोजु नचाई ।
नाचि-नाचि पग पड़ि गये छाले
कमर लचकि गई माई।
ग्वालिन माखन खारा- खट्टा
बड़ो मीठो लगे तेरो माई।
ग्वाल- बाल सब चोरी कीन्ही
दोष लगावे मोहे माई।
मैं तेरो भोलो-भालो कान्हा
चोरी ना आवे मोहे माई।
कान्हा के सुनि वचन यशोदा
हँसि-हँसि लेति बलाई।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रीझत
नंदलाला की देखि चतुराई।
मोर-मुकुट प्रभु औरु चन्द्रमुख
‘प्रज्ञा’ बलि-बलि जाई।
‘प्रज्ञा’ के प्रभु कृष्ण-कन्हैया
धन्य यशोदा माई।

काव्यगत सौन्दर्य-
कृष्ण के बाल-चरित्र की शरारतों का सजीव तथा भावात्मक चित्रण।

भाषा:-ब्रज,अवधी
छन्द:-गेय पद
रस:- वात्सल्य
गुण:-माधुर्य
अलंकार:-पुनरुक्ति, अनुप्रास, रूपक, उपमा।

by Pragya

कवियों की नगरी में

August 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवियों की नगरी में
भी दिल दुखाने लगें हैं लोग
ना चाहते हुए भी पास आने लगे हैं लोग।
आम जिंदगी से परेशान होकर
जी लेते हैं हम कल्पना में,
वहाँ भी हलचल मचाने लगे हैं लोग।
शोर-गुल जरा भी पसन्द नहीं है मुझको
फिर क्यों मेरे सिर पर
ढोल बजाने लगे हैं लोग।
सिलसिले बहुत कम होते हैं
मेरे मुस्कुराने के वैसे भी
तो बात-बात पर क्यों मुझको
रुलाने लगे हैं लोग।

by Pragya

नज़र

August 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोगों की नज़रों का क्या कहना
झटपट रंग जमाते हैं
झूँठे-मूँठे रिश्ते खूब बनाते हैं।
माँ को कुछ समझते ही नहीं
हर गलियारों में शोर मचाते हैं।
बहन को माँ कहने लगे हैं लोग
लोगों की नज़रों का क्या कहना।
☹😴👏👏👏

by Pragya

प्रियतम को कैसे राखी बांधूँ…!

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तुम्हारी फोटो देखी
जब मैनें स्टेटस पे।
मेरे चेहरे पर ग्लो आया
जैसे आता है फोकस से।
मुझसे राखी बंधवाने की खातिर
लेकिन जब तुम मेरे घर आये।
पैरों तले जमीन गई
आँखों में आँसू भर आए।
ना जाने क्या हो गया तुम्हें
शायद सपना है यह मेरा।
जो तुमनें प्रेम विसर्जन की खातिर
दरवाजा खटकाया मेरा।
होश मुझे तो तब आया जब
भाभी ने चुटकी काटी।
जल्दी से इनको राखी बाँधो
हाँथों में पकड़ा दी थाथी।
मैं चलती कैसे? हिलती कैसे?
मेरे दिल को कहीं सुकून नहीं।
उस पल यदि काटे कोई मुझे
मेरे ज़िस्म में रत्तीभर खूँन नहीं।
मैं बैठ गई जाने कैसे?
मुझको कोई भी खबर नहीं।
ऐसी क्या मुझसे खता हुई
जो तुमको मेरी कदर नहीं।
हाँथों में राखी लेकर
देखा मैंने जब कान्हा को
क्या तुम लोकलाज की खातिर
भगिनी बना लेते अपनी राधा को?
वो कुछ ना बोले जैसे कहते हों
मुझसे कुछ ना हो पायेगा।
इस लोकलाज के चक्कर में
तेरा प्रेम बलि चढ़ जाएगा।
जिसका हाँथ थामकर
पूरा जीवन जीने का सपना देखा।
वो आज कलाई आगे कर
राखी बंधवाने को तत्पर बैठा।
मैं कोस रही थी उस क्षण को
और राखी की कीमत जानी।
उनका चेहरा देखा जब मैनें
होंठों पर मुस्कान थी मनमानी।
वो भी कितना बेबस थे
उनकी भी मजबूरी थी।
मैं विकल हुई जाती थी पर
उनमें बहुत सबूरी थी।
विपदा थी मुझ पर आन पड़ी
अपने प्रियतम को कैसे राखी बांधूँ।
जिसके कारण हो गई सती
उस हमदम को कैसे त्यागूँ ?
इसी ऊहापोह में थी तब तक
आवाज़ लगाई मम्मी ने।
जल्दी जागो! क्या आज भी सोओगी
स्नान कर ली है तुम्हारे भैया ने।
ओ शिट! यह मेरा सपना था
यह जान कर जान में जान आई।
राधा-कृष्ण को देख के मैं पगली
मन्द-मन्द सी मुस्काई।।

by Pragya

मेरे कमरे में…

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज अचानक माँ मुस्काई
फोन उठाने के बाद
बोलीं आकर खुशखबरी है
बैठी मेरे पास
सबने पूँछा क्या खुशखबरी
ये तो हमें बताओ
उत्सुकता में दिल धड़क रहा है
और ना अब तड़पाओ
उसकी शादी तय हो गई है
निमन्त्रण आया है
उन लोगों ने हम सबको
सपरिवार बुलाया है
मैं हँस दी सबके समक्ष
रोई जाकर कमरे में
दिल टूट गया, हाँथों से सपने
बिखर गए एक पल में
आज लगा मेरे दो चेहरे हैं
एक घर में, एक कमरे में।।

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