by Pragya

क्यूँ देखूँ

March 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने कह तो दिया मगर
दिल को तसल्ली ना हुई
शब तो हो गई पर
मैं ना सोई
गुजार दी ज़िन्दगी तेरी
आरज़ू करने के बाद
किसी और को क्यूँ देखूँ तुम्हें देखने के बाद
रूबरू तुम आये भी नहीं मगर
महसूस तो किया मैनें हर लम्हा तुमको
दिल लगा लिया तुमसे मिलने के बाद
किसी और को क्यूँ देखू तुम्हें देखने के बाद

by Pragya

तेरी मोहब्बत में

March 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरी मोहब्बत में आधी उम्र काट दी
पर क्या करूँ आज भी बेबस हूँ मैं

by Pragya

वह लौट कर आया है

March 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वह लौट कर आया है
अरसे के बाद के
मैं हैरान हूं क्योंकि
उसने कहा था
मैं जा तो रहा हूं पर
कभी लौट कर नहीं आऊंगा

by Pragya

शायद

March 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मैनें लाज़ की चादर ओढ़ रखी है
शायद मेरी ज़मी पे
तेरे इश्क की बूंदाबांदी हो कभी

by Pragya

कुछ सर्द हवा ओं ने

March 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कुछ सर्द हवाओं ने
मन महका दिया
उन हवाओं में जैसे नर्मी सी हो
छू कर मेरे बदन को रूह तक
ठण्डा कर रही हैं
और अपनी खुशबुओं से फ़िजा महका रही हैं

by Pragya

बिछड़े थे

March 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आज कुछ पुरानी यादों के पन्ने पलटकर
हम वहीं पहुँच गए जहां से बिछड़े थे तुमसे

by Pragya

पुरानी यादें

March 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कुछ खुशबुएँ महकती हैं
कायनात में
लिपटे हैं हम
पुरानी यादों के दामन में ।

by Pragya

मेरी स्मृति

March 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरी स्मृति में अब भी कुछ अवशेष शेष हैं
तुम्हारी यादों के कुछ पल
मेरे मस्तिष्क में उपस्थित हैं

by Pragya

तेरा दर

March 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

लेकर दर्द घूमती हूँ
हर दर पर
पर तेरा दर नहीं मिलता
जाऊँ मैं किधर!!!!!

by Pragya

लोग कहते हैं

March 18, 2020 in मुक्तक

लोग कहते हैं कि मैं
बड़ा कमाल लिखती हूँ
मैं उसका ही दिया
हर दर्द उसके नाम लिखती हूँ

by Pragya

कोरोना वायरस खाए जाति है

March 17, 2020 in गीत

🇮🇳सीतापुरिया अवधी भाषा:-🇮🇳

घर ते निकरई मा जियरा डेराति हई
कोरोना वायरस खाए जाति है।😩😩

हरि घंटा हम हाँथ धोइति हन
खाना- पीना हम संतुलितई खाईति हन
खाँसी आवई मा जियरा डेराति है
कोरोना वायरस खाए जाति है।

संतरा-निम्बू हम खातई रहिति हन
गिलोय घिसि कई हम कात्ता पीति हन
तुलसी कि पाती सब दिनु भरि चबाति हई
कोरोना वायरस खाए जाति है।

दूरई ते सब ते नमस्ते करिति हन
हाथ हम कोई ते नाई मिलाइति हन
मुँह का अपने हम ढाकि के रहति हैं
कोरोना वायरस खाए जाति है।

स्वस्थ रहें मस्त रहें और व्यस्त रहें

by Pragya

क्या है कोरोना वायरस

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

FacebookWhatsAppTwitterEmailCopy LinkShare
सर्दी खाँसी हो जाती है
बहुत तेज ज्वर आता
हांथो पैरों का दर्द
बढ़ता ही जाता है
पहले सूखी खाँसी आती है
फिर ज्वर ज्वलंत हो जाता है

बचाव:-
बचाव ही निदान है
कोई सफल दवा अब
तक सम्भव ना हो पाई है
हांथो पैरों और मुँह को
साबुन से हरदम स्वच्छ रखो
लोगों के सम्पर्क से दूर रहो
और आसपास को स्वच्छ रखो
भीड़-भाड़ में मत जाओ
मुँह पर मास्क लगा के रखो
खांसने छींकने से पहले
मुँह पर कपड़ा या हाँथ रखो

उपचार:-
सफल इलाज़ अभी तक
सम्भव ना हो पाया है
इसी लिये कोरोना से
सारा विश्व घबराया है
गिलोय पीयो और
खुद को सर्दी खाँसी
होने से बचाओ
तुलसी का काड़ा पीते रहो
बुखार होने पर जाँच करवाओ
और विटामिन-सी वाली चीजें खाकर
इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत बनाओ।
god bless you

by Pragya

निर्दोष मानोगे???

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं जानती हूँ कि तुम भी
मुझे ही गलत ठहराओगे
कुछ कहने से कोई फायदा नहीं—-

मैं कह भी दूँ मैं सही थी
पर तुम कहाँ मानोगे—

तुमने जो जिम्मेदारी दी थी
उसी को पूरा कर रही हूँ —-

तुम्हीं ने कहा था:-
‘ना किसी की तुम सहना’—
वही कर रही हूँ
पर तुम कहाँ मानोगे

क्यूँ बुरा लग रहा है जब
बात अपनों पर आई—
मै जानती हूँ
तुम मुझे निर्दोष मानोगे नहीं

तुम्हारी संगत में थोड़ी
निर्भीक हो गयी हूँ

मै जो कर चुकी हूँ
वो सही था पर तुम कहाँ
मानोगे

तुम्हारी ही तरह सनकी सी
हो चुकी हूँ जब बात अपनों पर
आयी तुम मानोगे नहीं

by Pragya

जरूरी तो नहीं

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मै जानती हूँ मुझमें
गुस्सा थोड़ा ज्यादा है
पर मै दिल की बुरी हूँ
जरूरी तो नहीं…..

बड़ो के आगे झुकना चाहिए
पर हमेशा मैं ही झुकूं
ये जरूरी तो नहीं….

आग दिल में लिये कोई आये
मै शीतल मस्तक ही रखूँ
जरूरी तो नहीं….

बड़े सही होते हैं मानती हूँ
पर हमेशा मैं ही गलत हूँ
ये जरूरी तो नहीं…

रिश्तों में सहजता जरूरी है
पर मैं ही हमेशा अपना
स्वाभिमान गिराऊँ
ये जरूरी तो नहीं….

by Pragya

अपनो के दिए ज़ख्म

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर दर्द का इलाज है जहान में
पर अपनो के दिए ज़ख्म कहाँ भरते हैं
टूट जाते हैं जो रिश्ते तो फिर कहाँ
जुड़ते हैं
कैसी कश्मकश है जिंदगी में
जो प्रिय होते
वही बिछड़ते हैं
कितनी भी कोशिश करो
खुश रहने की
जब आंख में आँसू हो तो
लब कहाँ हँसते हैं
खुद को बदलने की हर कोशिश
करती हूँ पर दिल के
अंगार कहाँ बुझते हैं
हमेशा मै ही झुकूं
ये तो मुनासिब नहीं
स्वाभिमान के अल्फ़ाज
कहाँ चुप रहते हैं
हर दर्द का इलाज है मगर
अपनों के दिए ज़ख्म नहीं
भरते हैं ।

by Pragya

दिलों में गर्मी

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिलों में गर्मी बहुत है
थोड़ी हवा चल जाये तो अच्छा है

by Pragya

अब बहुत हो गया

March 16, 2020 in Other

अब बहुत हो गया लेती हूँ मैं विदा
कल फिर लेकर आऊंगी
कुछ अल्फ़ाजों की लड़ी
प्रीत से भीग जायेगा तन-मन तुम्हारा
लग जायेगी आँसूओं की झड़ी।

by Pragya

गूलर का फूल

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो तो गूलर का फूल लगता है
मेरे दिल का फ़ितूर लगता है ।

ना शाम लगता है ना सुबह लगता है
सर्दी की दोपहर वो लगता है ।

वो तो भीगा गुलाब लगता था
वो तो भीगा गुलाब लगता है

मेरा दर्पण तो वही है लेकिन
चेहरा कितना उदास लगता है ।

वो तो छूते ही चीख उठता है
कितना कोमल है फूल टेसू का

दर्द मेरा बढ़ गया है अब इतना
फूल से प्यारा शूल लगता है ।

वो रजनीगंधा है महकता है
जाने दिन-रात किसके दामन में

मेरी किस्मत में नहीं है फिर भी
मुझको मेरा नसीब लगता है ।

by Pragya

तुम्हारी चादर में

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी चादर में लिपटे
कुछ शक के दाग थे।

तुम मेरी मंज़िल और
तुम्ही हमराज थे।

क्या थे दिन और
क्या लम्हात थे।

कुछ अंजाम और
कुछ आगाज़ थे।

इल्जाम लगा किस्मत और
हालात पर हम तो,
बचपन से ही बर्बाद थे।

सुबह हुई तो देखा
तकिये पर पड़े सूखे,
अश्कों के दाग थे।

वो खिड़कियाँ अब
बन्द ही रहती हैं ,

जिनके दीदार के कभी
हम मोहताज़ थे।

अर्सा हुआ ना मिले उनसे
जिनके हुआ करते कभी हम
तलबगार थे।

by Pragya

ज़रा देखूँ तो सही

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा देखूं तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
दिल है अभी या दिल है ही नहीं
दिल है तो उसमें पत्थर हैं
या मांस के कुछ लोथड़े भी हैं
एहसास है या है ही नहीं
मैं हूं या हूं ही नहीं
या हृदय विहीन हो तुम
जो मुझसे प्यार नहीं
मेरा एहसास नहीं
कोई जज्बात नहीं
जरा देखूँ तो सही
तुम्हारे दिल में उतर कर
मैं हूं या मैं हूं ही नहीं।
यदि मैं हूँ तो अपने
एहसास छुपाते क्यूँ हो
भली महफिल में रूसवा
कर जाते क्यूँ हो।
जरा देखूँ तो सही
मै तुझे स्वीकार हूँ या
हूँ ही नहीं
तू गुनहगार है या
निर्दोष—–
ज़रा देखूं तो सही

by Pragya

दरवाजा खोलना

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उनके आने की खबर से
मैं यूँ बेचैन हो गई
खिड़की से देखती रही
दरवाज़ा खोलना भूल गई

by Pragya

पर्त दर पर्त

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पर्त दर पर्त तू खुलता जा रहा है
ये दिल तुझसे दूर होता जा रहा है

by Pragya

किताब जब

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

किताब जब खोलोगे
तुम यादों की
मेरा नाम सबसे नीचे होगा
पन्ने जब पलटोगे वफ़ा के
मेरा ही चेहरा दिखेगा

by Pragya

पहले खफ़ा

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पहले खफ़ा थे हम उनसे
अब वो निभा रहे हैं
जितना मैं पास जाऊँ
उतना ही दूर जा रहे हैं

by Pragya

वो मुझे यूँ

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो मुझे यूँ रुला रहा है
जैसे याद कर रहा है ।
यूँ देखता है जैसे
मुझे प्यार कर रहा है ।

by Pragya

तेरी अच्छाई

March 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरी एक अच्छाई बताऊँ:-
अगर तू बेवफा ना होता तो
मैं शायर ना होती
कदर खुशियों की कैसे जानती
जो रात भर ना रोती ।

by Pragya

वो मुझे कुछ यूँ

March 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मुझे कुछ यूँ चाहता था
कि मेरी साँसो से मुझे पहचान लेता था
एक दिन उसके दोस्तों ने पूंछा
क्या है तुम्हारी ख्वाहिशे——
उसने छोटी सी लिस्ट सुनाई
जिसमें पहला नाम भी मेरा था
और आखरी भी——
वो मुझे कुछ यूँ चाहता था—-
मेरे मुँह से निकले अल्फ़ाज
मेरे चेहरे से जान लेता था—‘

by Pragya

रोक लिया

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रोंक लिया है हमनें
अपने आप को
जैसा चाहते थे तुम
मैनें खुद को बना लिया

by Pragya

कली जो

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहारें आने वाली थीं लेकिन ना आई
कली जो खिलने वाली थी
शाख पर ही ना आई

by Pragya

मद में

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कौन जाने यहाँ किसको
सब व्यस्त हैं खुद में
किसी से क्या शिकायत जब
तू खुद ही तेरे मद में

by Pragya

मद में

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कौन जाने यहाँ किसको
सब व्यस्त हैं खुद में
किसी से क्या शिकायत जब
तू ही खुद ही तेरे मद में

by Pragya

ज़ख्म

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

छिपा कर ज़ख्म घूमती हूँ
तेरे दिए हुए
तड़प उठती है तन्हाई
किसी का हाथ पड़ने से

by Pragya

यादें

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

धुँधली यादों की परछायी
छुपाने की जो कोशिश की
मिट गई सांसों की रेखा
लिपट कर आ गयी यादें

by Pragya

नामुमकिन है

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

भूल जाऊँ मैं सब कुछ
नामुमकिन है ये
खुद को भुला सकना मेरे बस में फिर भी है
तेरा नाम मिटा सकना नहीं बस में नहीं हद में

by Pragya

मै से मैखाने

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरे इश्क में किया है हमनें
मै से मैखाने का सफ़र

by Pragya

मेरी साँस बाकी

March 15, 2020 in मुक्तक

रात भी खत्म हो गई
बस तेरा जिक्र बाकी है
तूने तो मुझे मार डाला
पर मेरी साँस बाकी है

by Pragya

कोशिश नाकाम

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोशिश नाकाम ही रही
गज़ब फ़ितूर छाया है
लगता है क्यूँ ऐसा
तेरा अक्श आया है

by Pragya

लौट आओ

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

लौट आओ मुसाफिर
देर हो चुकी है
जिंदगी हमेशा मौका ना देगी

by Pragya

अम्बर रहा टपक

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बादल गरज़ यूं रहे थे
के बरस ही जायेंगे
बिज़ली कड़क के
हमको तेरी याद दिला रही
कुछ
बर्फ के टुकड़े पड़े है
सड़क पर—–
बूँद तो बरस रही हैं स्नेहिल
झीसियाँ थी पड़ रही
मसल रही थी चैन—
सब कहीं थी शान्ती
और था रात का पहर
जुगनू भीग जाने कहाँ
छुप गए सभी–
सब थे स्वप्न में खोये
अम्बर रहा टपक।
उफ़ कितनी बर्फ की
चादर बिछी श्वेत वस्त्र सी
श्याम- श्याम रात थी
बर्फ़ में छुपी।

by Pragya

इत्मीनान

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इत्मिनान से पढ़िए
— मेरे दिल के हैं अल्फ़ाज़—
हर बात का मतलब नहीं होता
कभी तो दिल से काम लीजिये
तू ही तू बस नज़र आयेगा
हर नफ़स ।

by Pragya

तेरे शहर में

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरे शहर में मेरा कितना नाम हो गया
तेरे नाम से जुड़कर मेरा चर्चा आम हो गया

by Pragya

थक के चूर

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

थक के चूर
—-हो गई है रात—
बादल गरज़ रहे हैं
है इतना शोर फिर भी
जाने कैसे लोग सो रहे हैं

by Pragya

जीवन का अवकाश

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब जीवन का अवकाश रहेगा
कल से मेरे पास रहेगा
__________क्षुब्ध होकर
अपंग से तेरे बोल के टेसू
अब ना सूखेगे मेरे आँगन में
______कुसुम का बंदन
ना महकेगा प्राणवायु के दामन में
गलियारों की उड़ती_ _ _धूल
ना पड़ेगी निर्विघ्न मुख पर
____व्यथित मन की
वेदना को अब ना बूंदे
महकायेँगी—-‘
निस्तेज यौवन पर अब
प्रीतम की छटा ना छायेगी
सुखद जीवन की कल्पना
में अब ना दंश आएगा
निस्पंंदन करती नब्ज़ में
मेरा अतरंगी अब ना
गुनगुनायेगा_ __ _ __
अब ना होगी कोई
अभिलाषा और ना
कोई स्पंदन…..
क्यूँ कि अब से जीवन का अवकाश
रहेगा……..।

by Pragya

ए ज़िन्दगी

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ए ज़िन्दगी अब तेरी
आरज़ू ना रही
मेरी सासें इक डोरी सी हैं
पर मन की वो तिजोरी ना रही
अब तक तो गनीमत थी पर अब तो
माँ भी सुनाती है
तू मेरी थी पर अब मेरी ना रही
ए ज़िन्दगी अब मुझे
तेरी ज़रूरत ना रही।

by Pragya

हम मुर्दा हैं

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम मुर्दा हैं या जीवित तुम्हें कोई
फर्क नहीं
तुम्हें इस बात का कोई इल्म नहीं
के हम किस हाल में रहते हैं
सब दिल का खेल है
तुम्हें मेरे जीवन की भी खबर नहीं
मगर तू मेरी हर
नब्ज़ में धडकता है
और हर साँस में महसूस
होता है
रूबरू होने का मौका नहीं
देती दुनिया
पर तू तो हर एहसास में
रहता है मौजूद
बस दिल का फर्क है
तेरा किसी और की खातिर धडकता है
मेरा तेरे लिये धडकता है

by Pragya

ना झूठे थे

March 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना झूठे थे मेरे वादे ना झूठी थी
मेरी कसमें
तुमने इल्जाम दे देकर
मेरे दिल को दुखा डाला

by Pragya

हरित है वसन

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अम्बर झुका हुआ है
और वसुंधरा है बसंती
कोपल की तरह प्रस्फुटित हो रहा है मन
हर शाख पर खिल रहा है
सुमन ।
हर पत्ता बूटा भीगा है लतपत है
उपवन
वृन्त से पृथक हो
झूमता है मन-गगन
प्राणवायु भर रही है
लहरों की छुअन
गीत क्षुभ्ध हैं और
हरित है वसन

by Pragya

खुशी से मेरा पता

March 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़ुशी से मेरा पता दे रही है
यह कैसी उदासी है
जो दिल छू रही है
सब छोड़ गए मेरा साथ
पर यह नहीं छोड़ती जानती हूं
यही है मेरी हमराज़
कोई जिंदगी में नहीं टिका
पर यह उदासी है मेरे पास
रात की तन्हाई हो
चाहे दिन का उजाला हो
यह उदासी ही है
मेरी सौगात कैसी उदासी है
जो रहती है हर वक्त मेरे पास
यह जानते हुए भी एक दिन मुझे
छोड़ कर चली जाएगी
लेकिन फिर कुछ वक्त बाद मेरे वापस आ जाएगी

by Pragya

तोहरे प्यार में

March 14, 2020 in गीत

तोहरे प्यार में होखे दीवानी
बड़ा नीमन लागेले
कवने जतन से तोहका मनावे
कुछ ना समझ में आवेले

by Pragya

बढ़ी कीमत

March 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बढ़ी कीमत चुकाई मैने प्यार की
तुझे रास ना आयी तो मैं क्या करूं

New Report

Close