by Pragya

रेशम के धागे…

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ धागों की नहीं है अहमियत यहाँ
रिश्तो में प्यार की मिठास
भी घुलती रहनी चाहिए।
सिर्फ तू प्यार जताए तो कैसे चलेगा
अक्सर नोक-झोंक भी होनी चाहिए।
रेशम के धागे तेरी कलाई सजाते हैं
तेरी आँखों में चमक भी होनी चाहिए।
हाँथों से तुझको खिलाती हूँ मिठाई
तेरे-मेरे रिश्ते में भी मिठास होनी चाहिए।
मैं हूँ इतनी जिद्दी सताती हूँ तुझको
मेरे जाने पर तेरी आँख दुखनी भी चाहिए।
जब मैं बन जाऊँ परदेसी तो भाई
तुझे मेरी कमी खलनी भी चाहिए।
तू प्यारा है मुझको साँसों से ज्यादा
तेरी धड़कन मेरे दम से धड़कनी भी चाहिए।

by Pragya

मेरा मित्र मैं स्वयं ही हूँ

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा मित्र, सखा तो मैं ही स्वयं हूँ,
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।
मैं ही सुख- दुख का संयोग हूँ,
मैं हूँ मिलन तो मैं ही वियोग हूँ।
मैं माँ की ममता- सा शान्त हूँ,
मैं ही द्रोपदी का अटूट विश्वास हूँ।
मैं प्रलय का अन्तिम अहंकार हूँ,
मैं ही भूत, भविष्य और वर्तमान हूँ।
मैं नित्य ही प्रभु का वन्दन करता हूँ,
परिश्रम से स्वेद को चंदन करता हूँ।
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत रखता हूँ,
जुनून से अपने उनका सामना करता हूँ।
जब कभी कुण्ठा अत्यधिक व्याप्त होती है,
अन्तर्मन में सुदामा से मुलाकात होती है।
स्वयं ही स्वयं से स्वयं का आकलन करता हूँ ,
स्वयं सुदामा बन कृष्ण का अभिनंदन करता हूँ।
अपनी परिस्थितियों का मैं ही कर्णधार हूँ,
मैं हूँ पुष्प तो मैं ही तीक्ष्ण तलवार हूँ।
मेरा मित्र, सखा तो मैं ही स्वयं हूँ।
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।।

by Pragya

याराना

August 3, 2020 in ग़ज़ल

🌹🌹 Friendship Day special🌹🌹
गजल:- याराना

प्रेम से भी बड़ा बन्धन,
सुकून आये दोस्ती में।
कभी कृष्णा कभी अर्जुन
याद आये दोस्ती में।

अपनी जिंदगी से
हार थक करके हर इन्सान,
सभी परेशानियां और
गम भूल जाये दोस्ती में।

बना दे जिंदगी सुंदर
निभाओ साथ जब दिल से
यकीन करना बड़ा मुश्किल
दग़ा गर कोई दे फिर से।

दोस्ती है बड़े विश्वास
और एहसास का बन्धन,
निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ
हो विश्वास जब दिल से।

मेरे मन के मंदिर में
दोस्ती राज करती है,
मेरे यार की मूरत
ही मन में वास करती है।

मेरे दोस्त और मुझसे
है कुछ ज्यादा ही मीठापन
साथ बस कुछ ही पल का है
ये दुनिया बात करती है।

कर्ण ने दुर्योधन से
निभाया खूब याराना।
रक्त के रिश्तों को तोड़ा
निभाया खूब याराना।

कन्हैया ने तो अर्जुन को
गीता उपदेश दे डाला,
उठा हथियार वचन तोड़ा
निभाया खूब याराना।।

by Pragya

🌹🌹याराना🌹🌹

August 2, 2020 in ग़ज़ल

🌹🌹 Friendship Day special🌹🌹
गजल:- 🌹🌹याराना🌹🌹

प्रेम से भी बड़ा बन्धन,
सुकून आये दोस्ती में।
कभी कृष्णा कभी अर्जुन
याद आये दोस्ती में।

अपनी जिंदगी से
हार थक करके हर इन्सान,
सभी परेशानियां और
गम भूल जाये दोस्ती में।

बना दे जिंदगी सुंदर
निभाओ साथ जब दिल से
यकीन करना बड़ा मुश्किल
दग़ा गर कोई दे फिर से।

दोस्ती है बड़े विश्वास
और एहसास का बन्धन,
निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ
हो विश्वास जब दिल से।

मेरे मन के मंदिर में
दोस्ती राज करती है,
मेरे यार की मूरत
ही मन में वास करती है।

मेरे दोस्त और मुझसे
है कुछ ज्यादा ही मीठापन
साथ बस कुछ ही पल का है
ये दुनिया बात करती है।

कर्ण ने दुर्योधन से
निभाया खूब याराना।
रक्त के रिश्तों को तोड़ा
निभाया खूब याराना।

कन्हैया ने तो अर्जुन को
गीता उपदेश दे डाला,
उठा हथियार वचन तोड़ा
निभाया खूब याराना।।

by Pragya

नींद से मेरी

August 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#Shayri 2liner

नींद से मेरी तो अनबन ही रहती है,
कभी-कभी आ जाती है मुंह दिखाई के लिए।

by Pragya

मेरे दीवाने कहाँ गए…?

August 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गज़ल:- ❤❤ “मेरे दीवाने कहाँ गए” ❤❤
—————————
मेरे ख्वाब सजाने वाले कहाँ गए?
मुझे जान-जान कहके बुलाने वाले कहाँ गए?
—‐———————————-
जो कहते थे तुझ बिन जी ना पाऊंगा एक पल
मुझ पर मर मिटने वाले वो परवाने कहाँ गए?
———————–‐-‐————–
ढूंढते थे जो अपना नाम मेरे हाथ की लकीरों में
मुझे अपना महबूब बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
जिनकी मोहब्बत से ही थे दिन के उजाले,
मुझे अपनी रात बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————–
खड़े रहते थे तपती धूप में दीदार को मेरे
मेरी इक झलक पर ईद मनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
बूढ़े बरगद के नीचे करते थे जो शरारत
मेरे दिल पर बिजली गिराने वाले कहाँ गए?
—————————————-
मेरी राह के काँटे बीन लेते थे जो
मेरी राह में फूल बिछाने वाले कहाँ गए?
—————————————
सावन में भीगने से हो जाती थी जिनको सर्दी
मेरी जुल्फों की बारिशों में नहाने वाले कहाँ गए?
————————————–
मार खाये थे जो मेरे भाई से एक दिन
ऐसे थे जो मेरे दीवाने कहाँ गए?
—————————————
मर मिटे थे जो मेरी एक हँसी पर
मेरे दामन में खुशियाँ सजाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
सजाती थी जिसके नाम की बेंदी माथे पर
मुझे अपनी दुल्हन बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
मेरी गलियों में जिनका था ना जाना
मेरी खिड़कियों पर टकटकी लगाने वाले कहाँ गए?

by Pragya

तेरी रजधूल ओ प्रियतम!

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी राह देखकर ही तो मैं टूट गई
हर रिश्ते से ऊपर था तू
तेरे इश्क में मैं मगरूर हुई
तेरे इश्क का चंदन घिसकर
अंग प्रफुल्लित हुए सदा
तेरी रजधूल ओ प्रियतम! मेरे
मेरी माँग का सिन्दूर हुई।
बूंद-बूंद कर मैनें तेरे प्रेम का
रसपान किया
तेरे नाम से ही मैनें
नवजीवन का निर्माण किया।
तेरी स्मृतियों के आगे मैं तो
खुद को भी भूल गई।
फिर क्यों छोड़ा दामन तुमने
आखिर मुझसे क्या खता हुई?
तेरे वियोग में ओ प्रियतम!
यह प्रज्ञा!
कल पुष्प-सी थी अब शूल हुई।।

by Pragya

जीवन की चादर

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी में मुकाम और भी हैं
मंज़िल एक है पर
रास्ते और भी हैं।
कितनी छोटी है जीवन की चादर
पैर पसारने के आसमान
और भी हैं।
यूंँ नहीं बढ़ते हैं यहाँ फासले
दुश्मनी के मैदान
और भी हैं।
ये हिन्दुस्तान है यहाँ रिश्ते
निभाये जाते हैं।
रकीबों के जहान
और भी हैं।
तंज कसना ही नहीं है
हुनर अपना
पण्डितों(ज्ञानी) के रुआब
और भी हैं।

by Pragya

इतनी दीवानी

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#shayri 2liner

इतनी दीवानी नहीं हूँ तेरी
जो तेरे प्यार में अपनी नब्ज काट लूंगी,
ज्यादा तड़पाया जो तुमने
इस रक्षाबंधन तुझको राखी बाँध दूंगी।

by Pragya

आँखों में पानी लेकर…

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#shayri 2liner

🤣 आँखों में पानी लेकर
मुझे मत भरमाया करो।
मैं तुम्हारी सारी हकीकत जानती हूँ
यूं बातें ना बनाया करो।

by Pragya

❤❤ मेरा रक्षाबंधन ❤❤

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

❤❤ मेरा रक्षाबंधन ❤❤
——————-
दो भाईयों के बीच का झगड़ा
जब तक ना सुलझाती बहन
बोलो आता कैसे चैन?
———————–
सावन है मनभावन है
अम्बर से बरसे नैन
बोलो आता कैसे चैन?
-‐——————–
एक भाई सीमा पर है
दो सावन पर बेचैन
बोलो आता कैसे चैन?
———————–
उमर हो गई बाबा जैसी😃
झगड़ें बच्चों जैसे दिन-रैन
बोलो आता कैसे चैन?
———————-

by Pragya

नारी का अस्तित्व नहीं…

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहते हैं नारी पानी-सी होती है
जिस रिश्ते में बंधती है
उसी की हो जाती है।
पर प्रज्ञा की यही वेदना है
क्या नारी का कोई अस्तित्व नहीं?
वह पानी-सी है।
उसका कोई स्वरूप नहीं?
वह सदियों से पुरुषों की है
उसकी कोई पहचान नहीं?
नारी तो जगजननी है
हर रूप में वन्दनीय है।
वह हर स्वरूप में सुन्दर है
उस सम कोई परिपूर्ण नहीं।
नारी दुर्गा है, जगजननी है,
जीवन की सुंदर प्रतिमा है।
पुरुषों के जीवन की आधारशिला
नारी के कन्धों पर ही अवस्थिति है।

by Pragya

पुलिस दरोगा भऊजी

July 11, 2020 in अवधी

सीतापुरिया अवधी
रचना = “हमरी तऊ पुलिस दरोगा भऊजी”

अउरेन की भऊजी जेलि करउती,
हमरी तऊ पुलिस, दरोगा भऊजी।

दिनु भरि स्वावईं अईसी-वईसी,
पहरा राति लगावई भऊजी।

भईया बाहेर तानाशाह बनति हँई,
उँगरिन नाचु नचावई भऊजी।

सीधी-साधी जेलि करउती,
हमरी तऊ पुलिस, दरोगा भऊजी।

कबहूँ हंसावई कबहूँ रोवावँई,
कठपुतली तना नचावँई भऊजी।

सास क त्वारँईं, नंद कच्वाटँई,
सब पर धाक जमावँई भऊजी।

by Pragya

समर्पण भाव…

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तुम यूँ समर्पण भाव से
मुझे देखते हो..
अनगिनत आकांक्षाएं उमड़ उठती हैं
ह्रदय में…
मेरी थर्राई देह तप्त लौह -सी दहक उठती है
जब तेरी सांसों का घूंट पीती हूं मैं…
जाग उठते हैं सोए हुए ख्व़ाब
तुम्हारा स्पर्श पाकर रोम-रोम
धान के पौधे-सा लहलहा उठता है..
धड़कनों की आवाज
कानों तक आने लगती है जब
कभी तुम अलिंगन करते हो मुझे…
तुम्हारी सांसों में वही महक होती है
जो पहले मिलन के
पहले बोसे में थी..
वही महक तुम्हारी पहचान बनकर
मेरी हर नब्ज में धड़कती है
और मेरे वजूद को जिंदा रखती है…

by Pragya

शहीदों को नमन

July 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“आजादी के मतवाले हँसकर फंदे पर झूल गये,
बोलो उन वीर सपूतो को हम सब कैसे भूल गये।
मंगल पांडेय ने देखो आजादी का बिगुल बजाया था,
टोली संग अपनी अंग्रेजो को खूब मजा चखाया था।
रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिये,
अपनी तलवार से जाने कितने दुश्मन मिटा दिये।
आजादी की परिभाषा चंद्रशेखर आजाद सिखा गये,
अल्फ्रेड पार्क मे न जाने वह कितनी लाशे बिछा गये।
ऊधमसिंह सबको स्वाभिमान से रहना सिखा गये,
जलियावाले का ले बदला डायर को मजा चखा गये।
सुभाष चन्द्र बोस शान से ‘जय हिंद’का नारा लगा गये,
सम्पूर्ण विश्व को सेना का अनुशासन व महत्व सिखा गये।
भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु के भी अंदाज निराले थे,
ये सब वीर सपूत भारत की आजादी के सच्चे दीवाने थे।
अशफाक खाँ ,राजनरायन मिश्र आजादी की राह दिखा गये,
कर आहुत अपने प्राण वो भी शान से तिरंगा फहरा गये ।
मोहम्मद इकबाल इस देश की शान से शौर्य गाथा गा गये,
‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ ये सबको बता गये।
ये देश प्रणाम उन वीर सपूतो को आज भी प्रतिपल करता है,
जो आजादी दिला गये उनको नमन देश यह करता है।”

by Pragya

लज्जा

July 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“लज्जा नही आती जब देश के खिलाफ़ बोलते हो,
जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो।
इसी देश मे जन्मे यही पले और बड़े हुये,
बोले दुश्मन के जैसे क्यों शब्द तुम्हारे तेज हुये।
इसी धरा पर न जाने कितने देश भक्तों ने जन्म लिया,
जन्मभूमि की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया।
देशद्रोहियों!रोटी खाते हो यहाँ की
और गुण दुश्मन के गाते हो,
आती न तुमको तनिक लाज अपने कुकर्मो पर इठलाते हो।
अपनी भाषा शैली पर देशद्रोहियों कुछ तो तुम शर्म करो।
रह गयी हो थोड़ी भी लाज तो चुल्ली भर पानी मे डूब मरो।।”

by Pragya

कवि का समर्पण

June 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप लिखते खूब हो पर कभी गाते नही हो,
मंच पर समर्पण भाव मे नजर आते नही हो।
आपकी रचनाओं मे जीवन की सारी सच्चाई दिखती है,
हर पाठक को उसमे अपनी ही परछायी दिखती है।
आप कभी-कभी कड़वी बात भी लिख देते हो,
लोगों को दर्पण मे उनका अक्स दिखा देते हो।
कुछ लोग आपसे अन्दर ही अन्दर जलते है,
पीठ पीछे आपकी खूब अलोचना करते है।
पाठक से इतने सवाल सुनकर मुझे अच्छा लगा,
फिर हर एक बात का मै भी जवाब देने लगा।
मै जीवन की कड़वी सच्चाई शान से लिखता हूँ,
इसीलिये कुछ लोगों की आँखों को खलता हूँ।
जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है,
है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है।
शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,
अगले पल क्या होगा ये बात हमे न पता होती है।
बोलो ऐसी अनिश्चितता को किस तरह लयबद्ध कर दूँ ,
और अपनी अधूरी छवि को कैसे मंच को समर्पित कर दूँ ।

by Pragya

‘एक सवाल’

June 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘एक सवाल’:-

अजीब विडंबना है देश की
एक ही समय पर एक ही बात के लिए
स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
यह बात मेरी समझ से परे है।
और आए दिन यह सवाल मेरे मस्तक पटल पर घूमता रहता है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
यदि कोई पुरुष विवाह के उपरांत पर स्त्री से संबंध रखता है। तो बस यही कह कर टाल दिया जाता है कि वो तो आदमी है।
परंतु यदि यही कार्य स्त्री करे तो उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
स्त्री-पुरुष दोनों एक ही ईश्वर की रचना है तो नियमों में इतना फेर क्यों?
क्या पुरुष का समाज की सभी स्त्रियों पर अधिकार है
परंतु पत्नी का अपने पति पर भी नहीं।
यही एक सवाल अक्सर मेरे मस्तक पटल पर घूमता रहता है। और मुझे निराशा की ओर ले जाता है।

by Pragya

हिन्दुस्तानी फौजी

June 28, 2020 in Poetry on Picture Contest

बदन पर लिपट कर उस घड़ी तिरंगा भी रोया होगा
जब उसने अपने हिन्दुस्तानी फौजी को खोया होगा।
माँ की छाती में भी दूध उतर आया होगा
जब उसने अपने शहीद बेटे को गोद में उठाया होगा।

by Pragya

दोहा

June 27, 2020 in अवधी

सुनि हनुमत के बचन सिय देखहिं चारिउ ओर।
अति लघु रूप धरि प्रगटे हनुमत सिय के कर जोर।।

by Pragya

सुनहु जानकी मातु मैं

June 27, 2020 in अवधी

सुनहु जानकी मातु मैं
हूँ रघुवर का दास।
करता हूँ सेवा सदा
रहता चरनन के पास।।

by Pragya

इनके तीर(पास)

June 27, 2020 in अवधी

चीन होइ या पाकिस्तान होइ
इनके तीर(पास) खाली दहशतगर्दइ हँइ
कोई अउर कामु तऊ आवति नाइ
खाली दिमाग शैतान केर घर होति हई।
तबहें तऊ चारिउ ओर खाली
आतंकवाद फैलावति हँइ

by Pragya

‘जंग का ऐलान’

June 27, 2020 in Poetry on Picture Contest

जंग का ऐलान हम नहीं करते,
पर जंग छिड़ जाने पर पीछे नहीं हटते।
यही तो है हम हिन्दुस्तानियों का हुनर,
सिर कटा सकते हैं पर झुका नहीं सकते।
आखरी साँस तक लड़ते हैं हम फौजी देश के लिए,
शहीद हो जाते हैं पर हिम्मत हार नहीं सकते।
हारना तो हमको आता ही नहीं है और,
कभी दहशतगर्द हम पर विजय पा नहीं सकते।
मिट जाते हैं हँसते हुए हम अपने देश के लिए,
पर कभी दुश्मन को पीठ दिखा नहीं सकते।
हम दुश्मन को खदेड़ आते हैं उसकी जमीं तक,
चीन हो या चाहे पाकिस्तान हमसे पार पा नहीं सकते।
हम फौजी शेर का जिगरा रखते हैं,
तिरंगे में लिपट सकते हैं मगर तिरंगा झुका नहीं सकते।
कुर्बान हो जाये भले जिस्म का कतरा-कतरा,
अपने देश की मिट्टी का एक टुकड़ा तक गवाँ नहीं सकते।
आ तो सकते हैं बेशक जिन्दा हमारी सीमा पर दुश्मन,
पर हमारी गोलियों से बचकर जिन्दा जा नहीं सकते।
हमें हिन्दुस्तान ही प्यारा है, तिरंगा ही तो जान हमारा है।
‘भारत माता की जय’ के सिवा कुछ भी हम गा नहीं सकते।

🇮🇳 ‘जय हिंद जय भारत’🇮🇳

मेरा शत शत नमन सभी फौजी भाईयों को🙏🙏🙏

रचनाकार:-
प्रज्ञा शुक्ला ‘सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

by Pragya

आँखों से दरिया

June 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

प्रेम से सराबोर होने दो हमको,
आँखों से दरिया छलक जाने दो ना।

by Pragya

हम परिंदे हैं…

June 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम बसाएंगे
अपना घरौंदा कहीं…
हम परिंदे हैं
एक जगह रुकते नहीं…
जहाँ मिलती हैं
खुशियाँ जाते हैं वहाँ
हम गमों में
घरौंदा बनाते नहीं…
चुनते हैं तिनके
घोसले के लिए..
जिंदगी भर कहीं
हम बसते नहीं…
पंख हैं, हौसला है
रुकेंगे नहीं..
भरेंगे जाकर उड़ानें कहीं…
हम परिंदे हैं
एक जगह रुकते नहीं…

by Pragya

कहां रह गए वो??

June 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंतजार किया जी भर कर उनसे मिलने की कोशिश भी की,
कहाँ रह गये वो जिन्होने हर वादा निभाने की कसम भी ली।
आसान भी तो नही है सूर्य की किरणों की तरह बिखर जाना,
खुद की खुशियों को न्यौछावर कर दूसरो को खुशी दे जाना।
माना बहुत व्यस्त है जिन्दगी की उलझनों मे वह आजकल,
पर कहाँ रह गये जो मुझे याद करते थे हर दिन हर पल।
शायद खुशी मिलती होगी तुम्हे मुझे यूं तड़पता हुआ देखकर,
मेरा क्या?तुम खुश रह लो मुझे दुनिया मे तन्हा छोड़कर।
बोलो मिट गयी है यादे या भुलाने की कोशिश मे लगे हो तुम,
क्या?अब भी न मनोगे कि कितना ज्यादा बदल गये हो तुम।

by Pragya

रोटी के तमाशे

June 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये उम्र, ये मजबूरियाँ और रोटी के तमाशे,
फिर लेकर निकला हूँ पानी के बताशे।
बाज़ार के एक कोने मे दुकान सजा ली,
बिकेंगे खूब बताशे ये मैने आस लगा ली।
सबको अच्छे लगते है ये खट्टे और चटपटे बताशे,
इन्ही पर टिका है मेरा जीवन और उसकी आशायें।
बेचकर इन्हे दो जून की रोटी का जुगाड हो जाता है,
इसी कदर जिन्दगी का एक-एक दिन पार हो जाता है।
अपने लड़खड़ाते कदमों पर चलकर स्वाद बेचता हूँ,
इस तरह भूख और जिन्दगी का रोज खेल देखता हूँ।

by Pragya

हमसे दीवाने कहाँ..

June 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब कहां हमसे दीवाने रह गये

प्रेम की परिभाषा और मायने बदल गये, 

तब न होती थी एक- दूजे से मुलाकाते, 

सिर्फ इशारों मे होती थी दिल की बातें, 

बड़े सलीके से भेजते थे संदेश अपने प्यार का। 

पर अब कहाँ वो ड़ाकिये कबूतर रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 जब वो सज- धजकर आती थी मुड़ेर पर, 

हम भी पहुँचते थे सामने की रोड़ पर, 

देखकर मुझे उनका हल्का- सा शर्माना, 

बना देता था हमे और भी उनका दीवाना। 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 दोस्तो संग जाकर कभी जो देखते थे फ़िल्मे, 

पहनते थे वेल बॉटम और बड़े नये चश्में, 

आकर सुनाते थे उन्हे हम गीत सब प्यारे, 

तुम ही तुम रहते हो बस दिल मे हमारे, 

पर अब कहाँ वो दिन प्यारे रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

 जो मिलता था मौका तो खुलकर जी लेते थे, 

कभी अपनी ‘राजदूत’ से टहल भी लेते थे, 

खूब उड़ाते थे धूल हम भी अपनी जवानी में, 

कभी हम भी ‘धर्मेन्द्र- हेमा’ बन जी लेते थे। 

पर अब कहाँ वो सुनहरे मौके रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

by Pragya

मुठ्ठी भर यादें…

June 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कुछ पुरानी सौगात मिली
मैंने अपने कमरे की तलाशी ली।
तो कुछ किताबें धूल में लिपटी हुई,
कुछ खत, कुछ गुलाब के फूल सूखे हुए
कुछ तस्वीरें, कुछ तोहफे
और कुछ बन्द लिफाफे मिले।
जिन्हें छुपाकर रखा था मैंने
भूल गई थी दुनियादारी में पड़कर
आज वो मुठ्ठी भर यादें
मुझे मिल गई।
जिन्हें मैने सबसे छुपाकर अपनी
अलमारी में रख दिया था।
आज वो यादें धूल में लिपटी हुई
मुझे आ मिलीं।
और उनकी स्मृतियों ने
मुझे फिर विचलित कर दिया।
वो मुठ्ठी भर यादें
मुझे मिल गईं।
जिन्हें भूले जमाने हो गए।

by Pragya

“माँ मुझे विवाह नहीं करना”

June 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

समाज में स्त्रियों की दशा देखकर
मेरे मन में उठे विचार:-

माँ मुझे विवाह नहीं करना।
पति की परछाई बनकर,
पति के पीछे-पीछे नहीं चलना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

अपने कलेजे के टुकड़े(संतान) पर,
पति का आधिपत्य स्थापित नहीं करना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

परिजनों की दी पहचान मिटा,
ससुराल की प्रथा नहीं बनना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

अपनी लीक से हटकर,
पति की डगर नहीं चुनना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

अपने सपनों की रोशनी मिटा,
अंधेरों में मुझे नहीं मिलना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

खुद अपना अस्तित्व मिटा,
सम्बंधों की बलि नहीं चढ़ना।
माँ मुझे विवाह नहीं करना।

by Pragya

ख्वाहिशों के समंदर…

June 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे-मेरे बीच में वो पहले जैसी बात नहीं रही।
ना रही वो बातें, वो मुलाकात नहीं रही।
ख्वाहिशों के समंदर पड़ गए सूखे-सूखे
रीत में प्रीत में वो पहले जैसी बात नहीं रही।
मुश्किलें अब सजा नहीं लगतीं
ख्वाहिशों में भी वो पहले जैसी बात नहीं रही।
गजब का फ़ितूर था हम दोनों के दर्मियां
आफतों में अब पहले जैसी बात नहीं रही।
आशियाना भी रास नहीं आता
लोगों में वो पहले जैसी बात नहीं रही।

by Pragya

पिता वो दरख्ता है…

June 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज योग दिवस ही नहीं
पिता दिवस भी है तथा संगीत दिवस भी है।
पिता के लिये कुछ शब्द:-
🌷🌷🌷🌷🌷

पिता वो दरख्ता है जो
बचपन को छांव देता है।

आये कोई भी मुश्किल
हाँथ थाम लेता है।

उसका साया उठना
किसी हश्र से कम नहीं।

बाप का स्नेह
ममता से कम नहीं।

by Pragya

नाकामयाब

June 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोशिशें बहुत की उसने मुझे बदल डालने की,
मगर नाकामयाब ही रहा वो मेरे हौसले के आगे।

by Pragya

“गुलाम हूँ अपने संस्कारों की”….

June 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

🌹🌹🌹🌹
गूँगी नहीं हूँ मैं
मुझे भी बोलना आता है।
——————————–
गुलाम हूँ अपने संस्कारों की
वर्ना मुझे भी सबक सिखाना आता है।

by Pragya

“योग दिवस”:- 21जून

June 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

योग दिवस:-
योग करके अपने मानसिक,
शारीरिक और संवेगात्मक
तीनों अवस्थाओं का विकास कीजिए।
योग से अन्तर्मन को निर्मल कीजिए।
योग जीवन का वह अलौकिक दर्शन है
जो हमें मोक्ष की ओर ले जाता है।
मनुष्य को उसकी आत्मा से
जोड़ता हुआ प्रकाशित करता है।
मनुष्य के कल्याण का यह सर्वथा
उत्तम मार्ग है।
योग दर्शन है, विज्ञान है।
योग में ही कल्याण है।
योग आत्मा को परमात्मा से
जोड़ने का सर्वोत्तम मार्ग है।
यह यौवन को चिरस्थायी बनाने का
एकमात्र विकल्प है।
अपने स्वास्थ्य को उत्तम रखने के लिए
और अपने अन्दर ऊर्जा को
दीप्तिमान करने का
योग ही सफल मार्ग है।
तो योग कीजिए और
अपने अन्दर ऊर्जा को
स्फुटित कीजिए।
🙏🙏स्वस्थ्य रहें, मस्त रहें और व्यस्त रहें।
इसी कामना के साथ अपनी लेखनी को विराम देती हूँ।

by Pragya

नीरोग हूँ मैं

June 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नीरोग हूँ मैं क्योंकि मैंने
बहुत जतन से प्रेम योग किया है।
नैनासन का अभ्यास करके
खुद को स्वस्थ्य किया है।

by Pragya

“मेरी कलम की धार”✍

June 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उठाई थी कलम कुछ अनसुलझे
सवाल लिखने के लिए।
अपने दिल के ज़ज्बात
ना जाने कब लिखने लगी।
लोग कहते हैं कि
मैं बहुत अच्छा लिखने लगी।
बस जितनी तकलीफें
मिलती रहीं तुझसे,
“मेरी कलम की धार”
उतनी तेज चलने लगी।
रूबरू होते गए हम
तेरे दर्द से जितना
मेरी आँखों से मोतियों की
लड़ी झड़ने लगी।
किस्से तो रोज सुनती थी
इश्क, मोहब्बत के।
पर ना जाने कब!
मैं भी तुझसे प्यार करने लगी।
रोका बहुत था मैंने अपने दिल को,
पर तुझे देखते ही मैं तुझ पर मरने लगी।
लोग कहते हैं कि
मैं बहुत अच्छा लिखने लगी।
पर मैं तो बस तेरा दिया हर दर्द लिखने लगी।

by Pragya

हिंदुस्तान के हाथों मारा जाएगा

June 20, 2020 in मुक्तक

ताश के पत्तों-सा ढह जाएगा
तू एक दिन विलुप्त ही हो जाएगा।
यही हरकतें रही ना तेरी चीन
तो तू बिन मौत ही हिंदुस्तान के हाथों मारा जाएगा।

by Pragya

पाकिस्तान के दो टुकड़े

June 20, 2020 in Other

1971 में जब इन्दिरा गाँधी जी ने
पाकिस्तान के दो टुकड़े किये थे।
तब चीन मुँह ताकता रह गया था।
उफ़ तक ना निकली थी मुँह से
और अमेरिका, रूस जैसे देश
चूँ तक ना बोले बस
दाँतों तले उंगली दबा कर रह गए।
ऐसा था आयरन लेडी का फैसला
और भारत का औधा।
जिसे मोदी जी ने भी
बरकरार रखा है।
आज भी हर देश भारत की
सराहना करता है।
और सम्मान से देखता है।
मैं इन्दिरा गाँधी जी के
इस फैसले की सराहना
करते हुए उन्हें नमन करती हूँ।
चीन का भी हाल यही होना चाहिए।

by Pragya

वह पहले जैसी बात नहीं

June 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यूँ आज सूरज हो गया निस्तेज
वह पहले जैसी बात नहीं।
हवा भी चल रही है मद्धम-मद्धम
उसमें भी पहले जैसी बात नहीं।
न जाने क्यों बेरुखी कर रहे हैं
सब मौसम के साथ
कोई भी तो नहीं दिखाई देता।
हर गली कह रही है
वह पहले जैसी बात नहीं।
पहले तो यूं भीड़ उमड़ी रहती थी।
हर गली नुक्कड़ पर लोगों की
जमात लगी रहती थी।
ऊपर वाले के एक फैसला से
इतना आ गया फासला!
रिश्तों में भी अब
पहले जैसी बात नहीं।
कितनी मायूसी छाई है चारों तरफ
मेरा दिल कहता है यह कैसा मंजर आया है?
जिसमें पहले जैसी बात नहीं।
तुम भी तो कितना
बदल गए हो वक्त के साथ
तुम्हारे व्यवहार से भी तो जाहिर होता है।
तुम में भी वह पहले जैसी बात नहीं।

by Pragya

लिख लूँ

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

गिले आज भी बहुत हैं तुमसे
बस कुछ इम्तिहानों से निपट लूँ ।
तब तक तुम ढूंढ लो बहाने
और मैं शिकायतें लिख लूँ ।

by Pragya

तेरी आँखों ने….

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इक शराब ने ही तो सम्भाल रखा है मुझे….
वर्ना
तेरी आँखों ने तो कब का मार डाला था….

by Pragya

बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी घर छोड़ते हैं।

June 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये भाग- दौड़ के किस्से अजीब होते हैं,
सबके अपने उद्देश्य और औचित्य होते हैं।
कभी शिक्षा कभी जीवन की नव आशा में,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी घर छोड़ते हैं।

जीवन में सबके अजीब उधड़बुन होती है,
समस्याओं की फ़ौज सामने खड़ी होती है।
गुजरना पड़ता है जब विपरीत परिस्थितियों से,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी प्रताड़ित होते हैं।

जब सफलता और रोजगार की बात होती है,
असफलता पर जब कुण्ठा व्याप्त होती है।
सारे प्रयास होते हैं जब निरर्थक,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी खूब रोते हैं।

घर से दूर रहकर सब तकलीफें सहते हैं,
कभी खाते हैं कभी भूखे रह जाते हैं।
जी भरकर देखते हैं तस्वीर माँ- बाप की,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी कम सोते हैं।

by Pragya

नींद से जागी आँखें

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना जाने कब नींद से जागी आँखें?
रात भर रोकर सूजी हैं कितनी आँखें।
बिता तो लेंगे हम ज़िन्दगी तेरे बगैर भी
पर तुझे देखकर ज़िंदा हैं ये मेरी आँखें।

by Pragya

सीमा पर कितने धूर्त?

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सीमा पर कितने धूर्त और मक्कार हैं
अपनी सेना का मनोबल ना गिरने पाए
इस बात का भारतीय रखते खूब ख्याल हैं।

by Pragya

सितारा

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ढूंढती रह गई बस तुझे हर दर पर
तू मिला नहीं तो देख मैं चांद में खो गई
तुझे ढूंढने की चाहत में मैं खुद सितारा हो गई।

by Pragya

तेरे बिन

June 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरे बिन जिंदगी कैसे बताऊंगी
तू तो दूर चला गया पर मैं दूर कैसे जाऊंगी।
मेरी हर सांस की अमानत हो तुम
समझ नहीं आता तुझ बिन कैसे जी पाऊंगी।

by Pragya

ये दुनिया

June 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी की कद्र करनी है तो जीते जी कीजिए जाने के बाद तो हर कोई दुःख जता देता है.

जब इंसान जीवित रहता है और किसी दूसरे से कोई उम्मीद करता है तो उसे कोई नहीं समझता.

और जैसे ही व्यक्ति दुनिया से चला जाता है लोग कहना शुरू कर देते है कि कोई तकलीफ थी तो मुझे बता देता मैं तेरी मदद कर देता.

लेकिन कड़वा सच यही है जीते जी ये दुनिया कद्र नहीं
करती।

by Pragya

चीन को

June 19, 2020 in Other

जीत जायेंगे हम क्योंकि हमारे बाजुओं में है दम
चीन को उसके घर तक खदेड़ आएगें हम

by Pragya

मेरा लाल

June 19, 2020 in Other

रो-रोकर परिजन का हो गया बुरा हाल
मां पूछती है सबसे कहां गया मेरा लाल

New Report

Close