by Prayag

बहकावों में छले गए..

February 20, 2021 in Poetry on Picture Contest

कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए,
भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए..

खेतों में पगडण्डी की जो राह बनाया करते थे,
आज भटक कर वो खुद ही ऐसे राहों में चले गए..

वो ऐसे छोड़ के आ बैठे अपने खेतों की मिट्टी को,
सागर को छोड़ सफीने भी बंदरगाहों में चले गए..

थककर किसान ने जीवनभर जिस रोटी को था उपजाया,
वो रोटी छोड़के कैसे अब झूठे शाहों में चले गए..

अब तो किसान भी नज़रो में दोतरफा होकर रहते हैं
कितने दुआओं में शामिल थे कितने आहों में चले गए..

भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए…

– प्रयाग धर्मानी

मायने :
सफीने – नाव
झूठे शाहों – झूठे बादशाह

by Prayag

मेरे हवाले कर दो…

January 2, 2021 in Poetry on Picture Contest

‘रेत पर लिख दो और लहरों के हवाले कर दो,
आज इस साल की सब बन्द रिसालें कर दो..

इस नए साल में बाहर न कोई ढूंढे तुम्हे,
मेरे रब तुम अगर दिलों को शिवाले कर दो..

किसी भूखे के लिए ये बड़ी वसीयत है,
कि उसके नाम कभी चंद निवाले कर दो..

किसी की ऊँची हैसियत से जला क्यूँ कीजे,
जलो ऐसे कि हर तरफ ही उजाले कर दो..

किसी को हश्र दिखाना हो किसी आशिक का,
मुझी को ताक पर रखकर के मिसालें कर दो..

तुम अपनी यादों से कह दो कि रिहा कर दें मुझे,
मैं थक गया हूँ मुझको मेरे हवाले कर दो..

रेत पर लिख दो और लहरों के हवाले कर दो,
आज इस साल की सब बन्द रिसालें कर दो..’

– ‘प्रयाग धर्मानी’

मायने :
रिसालें – पतली किताबें
शिवाले – मंदिर
मिसालें – उदाहरण
रिहा – आज़ाद

by Prayag

किससे शिकवा करें..

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘किससे शिकवा करें दामन ये चाक होना था,
मगर करते भी क्या, ये इत्तेफाक होना था..

गमों की भीड़ हमारी कश्मकश में उलझी रही,
तय हुआ यूँ हमें गम-ए-फिराक होना था..

जिसे हवाओं से हमने कभी न घिरने दिया,
उसके तूफान की हमें खुराक होना था..

हवा मिलती रही रह-रह के बुझती आतिश को,
मेरे ही सामने घर मेरा खाक होना था..

शहर से दूर किया दफ्न ज़माने ने हमें,
हमारे साथ ही ये भी मज़ाक होना था..

किससे शिकवा करें दामन ये चाक होना था,
मगर करते भी क्या, ये इत्तेफाक होना था..’

– प्रयाग धर्मानी

मायने :
शिकवा – शिकायत
चाक – फटा हुआ
कश्मकश – असमंजस
गम-ए-फिराक – जुदाई का गम
आतिश – आग

by Prayag

जब से तुझसे मिला..

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब से तुझसे मिला दुगनी हयात होती गई,
मेरे लिए तू मेरी कायनात होती गई..

यूँ रहा रंग भी अब तक की मुलाकातों का,
के लब खामोश थे आँखों से बात होती गई..

न कोई थकन, न ख्वाब और नींद का ही पता,
सहर भी यूँ हुई और यूँ ही रात होती गई..

मेरे जैसे न जाने कितने शराफत में बिके,
हँसी खुशी यूँ ही नीलाम-ए-ज़ात होती गई..

जब से तुझसे मिला दुगनी हयात होती गई,
मेरे लिए तू मेरी कायनात होती गई..

– प्रयाग

मायने :
हयात – ज़िन्दगी
कायनात – दुनियाँ
थकन – थकान
सहर – सुबह

by Prayag

कुछ तो है..

September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘कुछ तो है कि तुझसे किये वादे की खातिर,
खुद से ही उलझ पड़ता हूँ कभी-कभी..’

– प्रयाग

by Prayag

प्यार कैसा है..

September 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘वो जिसे तूने था पल भर में तार-तार किया,
कभी तो पूछ अब वो ऐतबार कैसा है..
छोड़, जाने दे, आज तेरी बात करते हैं,
वो तेरे दिल में जो रहता था प्यार कैसा है..’

– प्रयाग

by Prayag

वजह हुआ करती है..

September 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘वजह हुआ करती है नज़रों के झुक जाने में,
बेबाक आँखों में शर्मिन्दगी का सलीका नही होता..
वो तोड़ सकते हैं मेरे यकीं को किसी भी वक्त मगर,
बेरुखी जताने का ये आखिरी तरीका नही होता..’

– प्रयाग

by Prayag

हाँ मैंने उसको रोका था..

September 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘हाँ मैंने उसको रोका था,
फिर भी वो चौखट लाँघ गई..
जैसे बस जागने वाले तक,
हो इस मुर्गे की बाँग गई..

बाकी सब निष्फल सिद्ध हुआ,
हम क्या थे वो कल सिद्ध हुआ..
उस मिथ्या प्रेम की निद्रा में,
बस झूठ ही निश्छल सिद्ध हुआ..
इक बेबस बाप ने बेटी को,
पहली ही बार तो टोका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..

क्यूँ आज मेरी समझाइश भी,
उसकी निजता का प्रश्न बनी,
ये जो स्वच्छंद उड़ाने थी,
अब की पीढ़ी का जश्न बनी
उतनी ही बार सचेत किया,
जब-जब भी मिलता मौका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..

यह सहजबोध था मुझमे कि,
वो लड़का ठीक नही लेकिन..
सब उसको माना बेटी ने,
ली मेरी सीख नही लेकिन..
जो उस जल्लाद ने लौटाया,
वो बस इक खाली खोका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..
हाँ मैंने उसको रोका था..’

#धोखा/लवजिहाद

– प्रयाग धर्मानी

by Prayag

आगज़नी किसकी है..

September 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘उलझ पड़ें न कहीं हम, के इस ज़िन्दगी से,
अपनी क्या बनेगी, आज तक बनी किसकी है..
इसलिए रखता हूँ हर आतिश को खुद में दफन,
कहीं वो पूछ न बैठे कि आगज़नी किसकी है..’

– प्रयाग

मायनें :
आतिश – चिंगारी

by Prayag

फ़िज़ाओं के बदलने का इंतज़ार..

September 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘फ़िज़ाओं के बदलने का इंतज़ार किसको है,
रुसवा शख्सियत हूँ मैं ऐतबार किसको है..
आज दर-बदर हूँ तो ये भी सोचता हूँ,
चलो देखता हूँ मुझसे प्यार किसको है..’

– प्रयाग

मायने :
रुसवा – बदनाम

by Prayag

इस कदर गुज़रेंं हैं..

September 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘इस कदर गुज़रेंं हैं हम इश्क के दौर से,
दिल धड़कता है यहाँ, सदा आती है कहीं और से..’

– प्रयाग

मायने :
सदा – आवाज़

by Prayag

ये खुद नही मरी है ..

September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये दृश्य मैंने ही इन आँखों में उतारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..

दो चार दिन से ही तबियत खराब थी इसकी,
पर हिम्मत क्या कहूँ बेहिसाब थी इसकी..
दवा तो दे न सका, मैंने इसे गाली दी,
ज़िदगी उम्र भर खुली किताब थी इसकी..
आज थक हार इसने कर लिया किनारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..

मिला जो दुनियाँ से, ना वो खिताब छोड़ सका,
न उसे प्यार दिया, ना शराब छोड़ सका..
हर एक दिन नई शुरुआत से वो बुनती रही,
मैं तोड़ता ही गया जितने ख्वाब तोड़ सका..
हर एक दिन ही इसने मौत सा गुज़ारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..

हर इक कसौटी पर उतरी ये खरी है साहब,
मरी पहले भी, आज पूरी मरी है साहब..
आज बेजान सी बुत बनके पड़ी है वरना,
खुद इसने कितनों में ही जान भरी है साहब..
मौत के घाट इसे कई दफा उतारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..

#घरेलूहिंसा

– प्रयाग धर्मानी

by Prayag

आज रह-रह के वही..

August 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘आज रह-रह के वही शख्स याद आता है,
मैं उसे जब भी मनाता था, मान जाता था..
मेरे ज़ाहिर से ग़म भी आज ना दिखे उसको,
जो बारिशों में मेरे आँसू जान जाता था..’

– प्रयाग

by Prayag

ठहरे पानी के ही मानिंद..

August 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘ठहरे पानी के ही मानिंद अपनी फितरत थी,
न जगह छोड़ी और न ही किनारे तोड़े..’

– प्रयाग

मायने :
मानिंद – तरह/समान

by Prayag

देनी होगी ताकत अब..

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘देनी होगी ताकत अब दरख्तों को ज़िंदा रहने की,
वो आज हमारी राख को मिट्टी समझ बैठे हैं..’

– प्रयाग

मायने :
दरख्तों को – पेड़ों को

by Prayag

तू क्या है..

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘समझ में ये नही आता कि आरज़ू क्या है,
है दिल भी पास अगर फिर ये जुस्तजू क्या है..?

मैंने देखा है आज खून-ए-जिगर भी अपना,
मैं सबसे पूछता फिरता था के लहू क्या है..?

तू इतना वक्त पर पहुँचा कि बात खत्म हुई,
अब मुझसे पूछ रहा है के गुफ्तगू क्या है..?

मेरे वजूद पर सवाल उठाने वाले,
चल आज ये भी बता दे मुझे के तू क्या है..’

– प्रयाग

मायने :
जुस्तजू – तलाश
जिगर – कलेजा
गुफ्तगू – बातचीत

by Prayag

मुश्किलें बस ये दिखाने को..

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘हैं जबकि और भी कितने ही दर ज़माने में,
क्यूँ फकत मेरे ठिकाने को चली आती हैं..
कितने मौजूद मददगार हैं यहाँ तेरे,
मुश्किलें बस ये दिखाने को चली आती हैं..’

– प्रयाग

मायने :
फकत – सिर्फ

by Prayag

मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर..

August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘सबसे पहले मैं दुनियाँ में
इस रिश्ते को पहचानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..

वो कहते हैं कि जान मेरी,
मेरी गुड़िया में बसती है..
मैं कहती हूँ कि बस पापा
इक आप से मेरी हस्ती है..
बस वही जगह है उनकी भी,
जितना मैं रब को मानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..

‘तू लाई क्या है मायके से’,
यह तीर हृदय को भेद गया..
न खुशियों से प्रफुल्ल हुआ,
न कभी ये मन से खेद गया..
ससुराल के ऐसे तानों को,
अच्छी बातों से छानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..

वो खुद जो पैदल चलते थे,
उन्होंने आपको गाड़ी दी,
जीवन में जो भी सहेजा था,
वो मेहनत अपनी गाढ़ी दी,
अब उनके पास नही है कुछ,
यह बात हृदय से जानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..’

#दहेजप्रथा

– प्रयाग

by Prayag

दिल पर जो गुज़री थी..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘ दिल पर जो गुज़री थी उसे कुछ और ही रंग दे दिया मैंने,
आजकल बहुत खुश हूँ किसी ने पूछा तो कह दिया मैंने..’

– प्रयाग

by Prayag

हैसियत बना डाली

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘अब इतनी ऊँची अपनी हैसियत बना डाली,
कभी न खत्म हो वो कैफियत बना डाली..
तेरी यादें, तेरी हसरत का वो एहसास जुदा,
पुरानी चीज़ें थी बस मिलकियत बना डाली..’

– प्रयाग

मायने :
कैफियत – उल्लेख
मिलकियत – प्रॉपर्टी

by Prayag

बेदिल किसे कहें..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘बेदिल किसे कहें, ज़माने को या खुदा को ?
‘वो’ जो कुछ देता है नही, या ‘वो’ जो छीन लेता है..’

by Prayag

मैं खुद को ना पहचान सकी..

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘मैं खुद को ना पहचान सकी,
ऐसी दुनियाँ में धकेल दिया..
उसमें नफरत भी बेहद थी,
तेज़ाब जो तुमने उड़ेल दिया..

तुमने जो छीनी है मुझसे,
मेरी पहचान वो थी लेकिन,
मेरे भीतर जो सरलता थी,
तुमसे अंजान वो थी लेकिन..
अब क्या हासिल हो जाएगा,
नफरत का खेल था खेल दिया..
मैं खुद को ना पहचान सकी,
ऐसी दुनियाँ में धकेल दिया..

इक छाला भी हो जाए तो,
कितना दुखता है सोचा है?
वो आँसू भी तकलीफों का,
कैसे रुकता है सोचा है ?
वो क्या मुझको खुश रख पाता,
जिसने तकलीफ से मेल दिया..
मैं खुद को ना पहचान सकी,
ऐसी दुनियाँ में धकेल दिया..

तुम क्या जानो कि जिस्मों की,
जब परतें जलती जाती हैं..
किस दर्द,जलन की तकलीफ़ें
सब रौंदके चलती जाती हैं..
वो कैसा जलता लावा था,
जो तुमने मुझपे उड़ेल दिया..
मैं खुद को ना पहचान सकी,
ऐसी दुनियाँ में धकेल दिया..’

#एसिडअटैक

– प्रयाग

by Prayag

फिकर होंदी है..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जित्थे वेखां ते मेनू तू ही नज़र औंदी है,
के जेया तू ही रूह तू ही जिगर होंदी है..
तेनू सौ रब दी मेनू छड न कदे वी जाणां,
मेनू हर वक्त हूण तां तेरी फिकर होंदी है..

– प्रयाग

मायने :
वेखां – देखूँ
औंदी है – आती है
जेया – जैसे
हूण तां – अब तो

by Prayag

आँसू हुए शुमार जब..

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘समंदर समझ रहा था कि मौजें यूँ ही बनी,
आँसू हुए शुमार कुछ, तब जाके कहीं बनी..’

– प्रयाग
मौजें – लहरें
शुमार – गिनती में शामिल होना

by Prayag

अब समझ आया कि..

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘कुछ घुला था दर्द मुझमे, कुछ थे आँसू आ मिले,
अब समझ आया कि क्यूँ मेरा लहू गाढ़ा हुआ..

वो पनप सकता था क्या अपनी ज़मीं को छोड़कर,
जो दरख्तों की तरह था, जड़ से उखाड़ा हुआ..

बरसों तक मेरे ही अंदर, इक तज़ुर्बा दफ्न था,
मुद्दत्तों इस कब्र में इक शख्स था गाड़ा हुआ..

कुछ घुला था दर्द मुझमे, कुछ थे आँसू आ मिले,
अब समझ आया कि क्यूँ मेरा लहू गाढ़ा हुआ..’

– प्रयाग

मायने :
ज़मीं – ज़मीन
दरख़्तों की तरह – पेड़ों की तरह

by Prayag

बरसात का वो दिन..

August 28, 2020 in लघुकथा

तेज़ बारिश से पूरी तरह तर होने के बावजूद मैं अपनी बाईक लेकर अपने ऑफिस से घर जा रहा था । सड़क पर गहरे हो चुके गड्ढों से जैसे ही मुलाकात हुई तो ऐसा लगा कि शायद सरकार हमें यह बताना चाहती हो कि इस धरती से नीचे भी एक दुनियां है जिसे पाताल लोक कहते हैं, खैर मैंने इतना सोचा ही था कि मेरी गाड़ी किसी गड्ढे में जाकर अनियंत्रित होकर गिर गई । पहले तो सहज मानव स्वभाव वश मैंने भी यहाँ-वहाँ देखकर यह तसल्ली करनी चाही कि किसी ने मुझे गिरते हुए देख न लिया हो । जब मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि मुझे किसी ने गिरते हुए नही देखा तो उसके ठीक अगले ही पल इस बात का अफसोस मुझे सताने लगा कि चलो गिरते हुए किसी ने नही देखा, तो न सही, लेकिन गिरने के बाद तो देखना चाहिए था, अब तक कोई मुझे उठाने तक नही आया, यह आस मुझे इसलिये भी थी क्योंकि मेरा पैर चोटिल हो गया था और मुझसे खुद उठते नही बन रहा था । तभी सामने से कुछ लोग मुझे आते हुए दिखे, उनकी यह मानवता देखकर मन में यह भाव उमड़ आया कि लोग चाहें जो कहें लेकिन इस दुनियां में इंसानियत अभी मरी नही है । अरे.. मगर ये क्या, तेज़ रफ्तार से मेरी तरफ आते हुए वो लोग सहसा मेरे पास से होते हुए सड़क के दूसरी तरफ निकल गए, भला ये कैसी मानवता ? यहाँ आदमी गिरा पड़ा है और कोई उठाने वाला भी नही ।
सड़क के दूसरी तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई थी मैंने भी कौतूहल वश यह जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है और यह जानने के लिए अपनी गर्दन को प्रत्येक कोण में घुमाकर यह देखने की कोशिश की कि कहीं वहाँ कोई बुजुर्ग आदमी तो नही गिर गया, तभी ये सब लोग मुझे छोड़ उन्हें उठाने और सहारा देने में लगे हों । तभी लोगों के जमावड़े के बीच बने झरोखे से मुझे जो दिखाई दिया वो अविस्मरणीय था, सड़क के दूसरी तरफ लोगों की जो भीड़ जमा थी वो इसलिए थी कि एक खूबसूरत लड़की की स्कूटी स्टार्ट नही हो रही थी और वहाँ जितने भी लोग थे सब बारी-बारी अपना हुनर आज़मा रहे थे । तभी मुझे यह समझ आया कि हमारे देश में हुनर की कमी नही है किसी लड़की की स्कूटी खराब हो जाए तो हर दूसरा शख्स थोड़ी देर के लिए मैकेनिकल इंजीनियर बन जाता है । लोगों की भारी मशक्कत के बाद उस लड़की की स्कूटी स्टार्ट हो जाती है और वो अपने गंतव्य को चली जाती है लेकिन कुछ लोग अब तक उसके जाने के बाद भी न जाने कौन से सुकून के एहसास से सराबोर थे जो अब तक वहीं खड़े थे तभी अचानक मेरे अंदर का कवि जाग उठता है और मेरे मन से शब्दों के बाण निकलने को आतुर हो उठते हैं..

‘के अब ज़मीन पर उतर जाओ कमबख्तों..
चली गई वो अब तो घर जाओ कमबख्तों..’

वो लोग जो मेरी तरफ से, मेरे पास से होकर सड़क के दूसरी तरफ गए थे वो वापस इसी तरफ आ रहे थे अब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी ।
अरे भाई साहब कैसे गिर गए ? मुझे उठाते हुए उन्होंने पूछा..
बस अभी अभी गिरा हूँ गाड़ी अनियंत्रित हो गई । मैंने जवाब दिया ।
‘सड़क ही ऐसी है भगवान बचाए ऐसी सड़कों पर तो..’ उन्होंने खेद जताते हुए कहा..
‘सही कहा आपने, भगवान न करे कि आपके साथ कभी ऐसा हो लेकिन अगर हो, तो मेरी ये दुआ है कि ठीक उसी वक्त सड़क के दूसरी तरफ किसी खूबसूरत लड़की की स्कूटी स्टार्ट न हो’
वो लोग मेरी बातों का मतलब समझ गए थे लेकिन अब उनके पास मेरी इस बात का कोई जवाब नही था..

– प्रयाग

by Prayag

अब फकत एक ही चारा है..

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘अब फकत एक ही चारा है बस दवा के सिवा,
कोई सुनता, न सुनेगा यहाँ खुदा के सिवा..

खुदा के मुल्क में इक बस इसी की कीमत है,
कोई सिक्का नही चलता वहाँ दुआ के सिवा..

ऐसे गुलशन की हिफाज़त को कौन रोकेगा,
जहाँ कांटें भी फिक्र में हों बागबां के सिवा..

तू ये न सोच फकत आसमाँ ने देखा है,
गवाही और भी कई देंगे कहकशाँ के सिवा..

एक बस मेरी ही आवाज़ न पहुँची उस तक,
वरना हर दिल को सुना, उसने इस सदा के सिवा..

अब फकत एक ही चारा है बस दवा के सिवा,
कोई सुनता, न सुनेगा यहाँ खुदा के सिवा..’

– प्रयाग धर्मानी

मायने :
फकत – सिर्फ
चारा – रास्ता
बागबां – माली
कहकशाँ – आकाशगंगा
सदा – आवाज़

by Prayag

मैं अपनी याद ..

August 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘मैं अपनी याद तेरे दामन से समेट लूँ तो मगर,
तेरे हिस्से की कोई खुशी न साथ आ जाए..’

– प्रयाग

by Prayag

आरज़ू

August 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘ज़िंंदगी को इतनी हसरत से नही देखा कभी,
जितनी तेरा साथ पाने की है मुझमे आरज़ू..’

– प्रयाग

by Prayag

आखिर संतोंं को मारा क्यो?

August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम कुछ बोलो ना बोलो, पर मुद्दे सारे सुलझ गए,
सुनो देश के ग़द्दारों तुम गलत जगह पर उलझ गए ।

है तकलीफ तुम्हे ये के ‘अर्णब’ ने चिट्ठा खोल दिया,
जो दूजा ना कह पाया उसने ये कैसे बोल दिया ।

देश का बेड़ा गर्क किया अब जा विपक्ष में बैठे हो,
कोई कसर ना छोड़ी है जब भी समक्ष में बैठे हो ।

ये कहता इतिहास सहिष्णु होकर हिन्दू ठगा गया,
पहली दफा हुआ कोई इस तरह हिन्दू जगा गया ।

आज देश का हिन्दू जब संतों की खातिर खड़ा हुआ,
न्याय की ज़िद में काशी और मठ, है ‘प्रयाग’ भी अड़ा हुआ ।

बेगुनाह संतों पर यूँ अपनी रंजिश को उतारा क्यों ?
है हिंदुत्व का प्रश्न यही आखिर संतों को मारा क्यों ?

#पालघर

– प्रयाग धर्मानी

by Prayag

मैं आग था पहले..

August 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘बुझा गया है कोई, मैं चिराग था पहले,
जो जगह आज बंज़र है, बाग था पहले..
बदल ली करवट कुछ इस कदर तकदीर ने,
डरता हूँ आज धुएँ से, मैं आग था पहले..’

– प्रयाग

by Prayag

उन्वान

August 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘उन्वान-ए-किताब-ए-ज़िन्दगी था रखा कुछ और,
लिखा कुछ और, छपा कुछ और, दिखा कुछ और, पढ़ा कुछ और..’

– प्रयाग

मायने :
उन्वान ए किताब ए ज़िन्दगी – ज़िन्दगी की किताब का शीर्षक

by Prayag

मैं छोड़ आया हूँ..

August 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘बेवजह ही है मुझसे जुड़ी हर उम्मीद तेरी,
क्या तेरे दिलो-ज़ेहन में खयाल नही उठता..
मैं छोड़ आया हूँ अभी-अभी समंदर को,
तेरी झील का रुख करने का सवाल नही उठता..’

by Prayag

मैं गुनहगार ही सही..

August 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘मैं गुनहगार ही सही उनका फकत लेकिन,
मैं शाद हूँ कि किसी तरह उनका तो हूँ..’

– प्रयाग

मायने :
फकत – सिर्फ
शाद – खुश

by Prayag

उफान-ए-समंदर

August 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘कैसे रोकेगा मेरे इरादों को ये उफान-ए-समंदर,
आतिश को दबाए रखा है आगज़नी के लिए..’

– प्रयाग

मायने :
उफान-ए-समंदर – समुद्र का उफान
आतिश – चिंगारी

by Prayag

तमीज़दार

August 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘उँगली उठा तो दी हमने, पर साबित क्या करेंगे,
वो तमीज़दार भी इतने हैं कि पत्थर खुद नही फेंकते..’

– प्रयाग

by Prayag

सुर्खियों में..

August 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘वो मेरी बेबसी का इश्तिहार देने निकले हैं,
बतौर वजह सुर्खियों में कहीं खुद भी न आ जाऐं वो..’

– प्रयाग

मायने :
बतौर वजह – वजह के तौर पर

by Prayag

फिर गया हूँ मैं..

August 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘न देखा उसने इक दफा भी कभी,
के किन तूफानों से घिर गया हूँ मैं..
उसकी शिकायत है आज भी वही मुझसे,
कि अपने वादों से फिर गया हूँ मैं..’

– प्रयाग

by Prayag

आओ कुछ बेहतर करते हैं..

August 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘आओ कुछ बेहतर करते हैं..
कुछ बाहर जग की परिधि में,
कुछ अपने भीतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..

ये विकट समय की बेला है,
दरकार नही साधारण की..
है वक्त यही, है यही घड़ी,
हर विपदा के संधारण की..
कुछ तेज़ हवाओं से अब हम,
उत्तर-प्रत्युत्तर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..

मन इक उपजाऊ भूमि है,
सब इसमे बढ़ता जाता है..
जितना भी इसमे उठता है,
उतना ही गढ़ता जाता है..
अपने अंतर की सीमा से,
नफरत को कमतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..

कितना पैसा कितना जीवन,
कितनी इस स्वार्थ की सरहद है..
जिस हद की दुहाई अब तक दी,
लो टूट चुकी वो हर हद है..
क्या सही-गलत का पैमाना,
अब उसमें अंतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..
आओ कुछ बेहतर करते हैं..

– प्रयाग

मायने :
दरकार – आवश्यकता
संधारण – सहन करना
कमतर – कम करना

by Prayag

मैं आग में पला हूँ..

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘हर आग से वाकिफ हूँ मैं, हर वक्त मैं जला हूँ,
वो क्या जलाएगी मुझे, मैं आग में पला हूँ..’

– प्रयाग

by Prayag

तस्वीर हुआ जाता हूँ..

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘दे दे कोई तदबीर मुझे हरकत में रहने की,
मैं उसके तसव्वुर में तस्वीर हुआ जाता हूँ..’

– प्रयाग

मायने :
तदबीर – तरकीब/उपाय
तसव्वुर – सोच/विचार

by Prayag

भुला दिया उसने..

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘मेरी वफाओं का खुलकर सिला दिया उसने,
न रखा एक भी, हर खत जला दिया उसने..

दूर होने का फैसला क्या खुद तुम्हारा है ?
मैंने पूछा तो कैसे सर हिला दिया उसने..

हमें भी खूब मिली आँसू पोंछने की सज़ा
हँसाया जिसको था अब तक, रुला दिया उसने..

गैर हाजिर है मेरे दिल से अब उम्मीद मेरी,
मुझे यकीं है के मुझको भुला दिया उसने..

– प्रयाग

मायने :
गैर हाजिर – उपलब्ध न होना

by Prayag

भुला दिया उसने..

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘मेरी वफाओं का खुलकर सिला दिया उसने,
न रखा एक भी, हर खत जला दिया उसने..

दूर होने का फैसला क्या खुद तुम्हारा है ?
मैंने पूछा तो कैसे सर हिला दिया उसने..

हमें भी खूब मिली आँसू पोंछने

by Prayag

मैकेनिकल इंजीनियर

August 24, 2020 in लघुकथा

‘कैसी सड़क हो गई है इतने गढ्ढे हैं कि समझ नही आ रहा कि गाड़ी सड़क पर चला रहा हूँ या सर्कस में, मेरा इतना सोचना ही हुआ था कि मैं गाड़ी समेत लड़खड़ा कर सड़क पर गिर पड़ा, आस पास देखा कि किसी ने गिरते हुए देख न लिया हो । तसल्ली हुई कि गिरते हुए तो नही देखा लेकिन शायद गिरने के बाद देख लिया था क्योंकि कुछ लोग मुझे मेरी तरफ आते हुए दिखे, लेकिन ये क्या.. ये तो सड़क के दूसरी तरफ निकल गए जहाँ एक खूबसूरत सी लड़की अपनी गाड़ी को स्टार्ट करने की जद्दोजहद में परेशान दिखाई दे रही थी मैंने भी सोचा वाह क्या टाईमिंग है उसकी गाड़ी

by Prayag

आगाह किये देता हूँ…

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘आगाह किये देता हूँ मैं ज़माने की ठोकर को,
मैं ज़मीं पे पड़ा पत्थर नही, ज़मीं में गढ़ा पत्थर हूँ..’

– प्रयाग

by Prayag

उम्मीद-ए-जहाँ

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘यही हकीकत है मेरी, मैं उम्मीद-ए-जहाँ का पुलिंदा था,
मैं तब तक मरता रहा, जब तक कि मैं ज़िंदा था..’

– प्रयाग

मायने :
उम्मीद ए जहाँ – दुनियाँ की उम्मीद
पुलिंदा – ढेर

by Prayag

मुकम्मल

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘जा चुका होता मैं कब का इस जहाँ से,
किसी से किये वादे, गर अधूरे नही होते..
वो किया करते हैं औरों के ख्वाब मुकम्मल,
जिनके खुद के ख्वाब कभी पूरे नही होते..’

– प्रयाग

मायने :
गर – अगर
मुकम्मल – पूर्ण

by Prayag

जिसका ज़िक्र नही..

August 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘वो हादसा के सलीके से जिसका ज़िक्र नही,
और कुछ लोग थे जो सुर्खियों में आते रहे..
मदद के वास्ते लाज़िम थे कई हाथ मगर,
वो सारे हाथ फकत वीडियो बनाते रहे..’

– प्रयाग

मायने :
सलीके से – स्वाभाविक ढंग से
लाज़िम – अनिवार्य
फकत – सिर्फ

by Prayag

उनसे की न गई..

August 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘फितरत-ओ-आदत की बात है के मोहब्बत,
उनसे की न गई, हमसे भुलाई न गई..’

– प्रयाग

मायने :
फितरत ओ आदत – फितरत और आदत

by Prayag

कुव्वत-ए-दुआ

August 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

‘निकलती है नेक मकसद को, मुकम्मल वो दुआ होती है,
नही होती दुआ अकेली कभी, साथ क़ुव्वते-दुआ होती है..’

– प्रयाग

मायने :
मुकम्मल – पूरी
क़ुव्वते दुआ – दुआ की ताकत

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