Rita Arora
तुम्हारे सब चाहने वाले मिलकर
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारे??सब चाहने वाले मिलकर
भी उतना ??नही चाह सकते?तुंम्हे
जितनी मुहोब्बत ❤मै अकेली☝?करती हूँ ??तुमसे????❤
अब कल क्या लिखूंगी मै यही सोच के
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब कल क्या लिखूंगी मै यही सोच के
डर जाती हूं ,,,,,,,
फिर नये गमो से वास्ता होगा इसी उम्मीद में हर रात मै पुराने दर्द का
कफ़न ओढ़ क्र सो जाती हूँ?®®
मेरे प्यार को मुझे से चुरा लिया किसी
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरे प्यार को मुझे से चुरा लिया किसी
और ने ?
ख्वाब मैने देखा था मगर उसको हकीकत बना लिया किसी और ने,,,,®
क्रोध की अग्नि में तपकर गरम हुआ दिमाग
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्रोध की अग्नि में तपकर गरम हुआ दिमाग
ठंडी को भूल बरफ से शीतल किया दिमाग
क्रोध ठिकाने लग गया ठंडे पड़ गये आज ।
रीता जयहिंद ???????????????
आँखों से गमों की बारिश में छाता
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
आँखों से गमों की बारिश में छाता
लेकर ज्यों ही घर से निकले हम
राह में कुछ लोगों को कहते सुना
अच्छे दिन आयेंगे बारिश थम गयी
??रीता जयहिंद ????☔❤की?से?
नारी के प्रति पुरुष की सोच
January 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
विषय – नारी के प्रति पुरुष की सोच
लेख – रीता जयहिंद ✍?
पुरातन समय में पुरुष की सोच नारी के प्रति सिर्फ घर के कामकाज और सिलाई, कढ़ाई, बुनाई वगैरह तक सीमित थी । छोटी उम्र में विवाह कर दिया जाता था ।नारी को पुरुष की द्रष्टि में मात्र संभोग की वस्तु समझा जाता था । और पढ़ाई – लिखाई नाम मात्र ही कराई जाती थी ।जिसके फलस्वरूप नारी यानी स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी होने में सक्षम नहीं हो पाती थी और उन्हें पुरुष की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था ।औरतों को पुरुष की हर ज्यादती सहनी पड़ती थी । पुरुषों पर निर्भर होने की वजह से दहेज प्रथा भी बहुत फैलती जा रही थी ।प्रत्येक सौ औरतों में से दस औरतें दहेज की पीड़ा से ग्रस्त रहती थी या तो उन्हें मार दिया जाता था या नारियां आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाती थी । कुछ नारियों को पुरुष इतना कष्ट देते थे जिसकी कल्पना मात्र से ही मन सिहर जाता है कुछ नारियां पुरुष के शोषण का शिकार हो जाती थी और उन्हें नरक की जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ता था ।पहले के जमाने में चार – छः बच्चे होना आम बात होती थी ।नारियों की तमाम जिंदगी बच्चों को पालने मे ही गुजर जाती थी ।और नारी अपने घर में सबको खाना खिलाकर सबसे बाद में भोजन करती थी ।इस वजह से दहेज प्रथा भी खूब फैलती जा रही थी ।आज के बदलते परिवेश मे ऐसा नहीं है कुछ लोगों ने इसके विरोध में बीड़ा उठाया सामाजिक कार्य के जरिए जागरूकता पैदा की ।और कुछ सरकार ने भी नारियों के उत्थान में अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया है ।आज की महिलाओं को भी शिक्षित करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केंद्र, नारी निकेतन, महिला पुलिस डौरी सेल , सेना मे भर्ती, ट्रेन चालक और शायद ही कोई क्षेत्र होगा जहाँ स्त्रियों को नहीं लेते होंगे ।जिसकी वजह से देश में समाज में काफी बदलाव आया है। पुरुष का द्रष्टिकोण भी नारियों के प्रति काफी बदल गया है और दहेज प्रथा भी अब धीरे – धीरे कम होती जा रही है । अभी हमें दहेज प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए बहुत लोगों में जागरूकता लानी है और पुरुष वर्ग अब नारी का सम्मान करने लगा है अब पुरुष का नारी के प्रति नजरिया बदल गया है ।
?????☘?☘
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
चांदनी की चादर ओढ
खुले आकाश के तले
चांद तारों से बातें कर
मस्त पवन के झोंको से
सारी दुनिया से बेखबर
जाने कब सो जाती हूँ
?? रीता जयहिंद ??
??✨ शुभ रात्रि ✨?⭐
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
नर्म घास का
बिछोना बिछा
ख्वाहिशे कम
कर नीलगगन1
की छत तले
सुकून पूर्वक
सो जाता हूँ
शुभ – रात्रि रीता जयहिंद ??
???⭐✨☔???
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ख्वाबों को अँखियन में संजोकर
पलकों की चिलमन को गिराकर
उजाले को कुछ कम तुम करके
गुरु जनों का सिमरन तुम करके
नींद के आलिंगन में जकड़ कर
बजरंग बली का जाप कर सो जाना
???????
?? शुभ रात्रि ?? रीता जयहिंद
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
चलो उस पार चलते हैं
जहाँ गमों की धूप नहीं
सुख के ताने बाने है
रजाई में दुबक कर
नींद के आगोश में खोकर
सपने नये सजाने हैं
?? शुभ रात्रि ??
जयहिंद
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
विषय – शीत ( सर्दी )
विधा – वर्ण पिरामिड
प्रस्तुति – रीता जयहिंद ??
मैं
शीत
का मजा
लेने धूप
सेक रही थी
आनंदित होकर
तभी घटा छा गई
ऐ
खुदा
सूरज
की किरणों
को बतलाना
अंगना हमारे
तुम रोजाना आना
जा
अब
अगले
साल तुम
दोबारा आना
गरीबों , पशु पक्षी
पर तू रहम कर
माँ
आज
जैकेट
पहन मैं
खेलने जाऊँ
तब तक तुम
गरम पकौड़ी बना
????????????????????❤❤✍?❤❤??
? ? ?
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोई लौटा दे रे मेरे बचपन के दिन
जब ना थी कोई चिंता व फिकर
वो जोर – जोर के गीतों का गाना
बारिश में जी भरकर नहाना और भीग जाना
जान बूझकर सोते रहने का बहाना
पढाई के नाम पर पेट दर्द बतलाना
स्कूल जाने पर बुखार का बहाना
रेडियो जोर – जोर के बजाना
मेहमान के जाने के बाद प्लेटें साफ करना
बार – बार गिरकर भी साईकिल चलाना
बारिश के पानी में नाव चलाना
छत पर चढ़कर पतंग उड़ाना
होली मे आने जाने वालों पर गुब्बारे मारना
दीपावली पर जी भरकर पटाखे छुड़ाना
हर दुख से बेखबर अपनी मस्ती में रहना
काश कोई लौटा दे मेरा वो बचपन
?????????
प्रस्तुति ?? रीता जयहिंद ??
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
रीता जयहिंद ?? 9717281210
प्रार्थना – ?????
हे भगवन् भाव ह्रदय में छुपाकर
श्रद्धा के कुछ सुमन चढ़ा कर
आँख से अश्रुओं को रोककर
द्वार पर तुम्हारे मैं अलख जगाकर
प्रसाद में कुछ फल में लाकर
तुम्हें रिझाने की खातिर
मुस्कराहट की चादर ओढकर
शीश चरणों में नवाकर
विनय भाव से विनती करने आई हूँ
रूठ जाये चाहे मुझसे जग सारा
तुम हरदम देना मुझको सहारा
कभी ना छोड़ना साथ हमारा
बस इतनी रहमत हम पर बरसा देना
और नहीं मैं तुम से कुछ माँगू
जब भी हम तुम्हें पुकारें
एक झलक हमें दिखला जाना
राधे – राधे जय श्री राम
❤❤❤❤✍?❤❤❤❤
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात मैंने एक सपना देखा
आसमान से कुछ परियां आई
उनके सुंदर पंख लगे थे
सिर पर उनके सुंदर मुकुट था
होंठ उनके सुर्ख लाल थे
चेहरे पर उनके नूर था
आँखों में कुछ सुरूर था
हाथ में उनके जादूई छड़ी थी
पास आकर मेरे मुझे जगाया
मैंने पूछा कौन हो तुम
बोली वो मुझसे धीमे से
हम हैं कुछ नन्ही सी परियां
परीलोक से उतरी हैं
पृथ्वी लोक का भ्रमण करने
क्या धरती की सैर कराओगे
बागों में हमें ले जाओगे
पेड़ों पर झूला झुलाओगे
थिएटर में फिल्म दिखाओगे
मंत्रमुग्ध सी हो कर मैंने
उनसे कुछ सवाल किये
बदले में क्या दोगी मुझको
बोली कुछ हँसकर वो मुझसे
साथ नहीं हम लायीं कुछ भी
ये जादू की छड़ी है हमपर
इसे तुम्हें हम दे देंगी
जो कुछ भी तुम मांगोगे इससे
वही तुम्हें यह ला देगी
जैसे ही मैंने छड़ी को थामा
आँख मेरी खुल गयी
सुंदर सपना टूट गया
?? रीता जयहिंद ??
??♀?????????
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाड़े की ऋतु आई
गरमी की हुई विदाई
रेवड़ी मूँगफली घर में आई
शरबत कोल्ड्र ड्रिंक जूस
सबकी हो गयी छुट्टी
चाय काॅफी घर में आई
खों खों करके सब खाँस रहे
डाॅक्टरों की कमाई हो रही
किसी को सीरप किसी को
दवाई की पुड़िया थमाई
सर्दी का तो बहाना हो गया
दारू से ठंड को भगाने का
नरम – गरम पकौड़ी खानी
जी भरकर मस्ती है करनी
गाजर का हलवा गोंद के लड्डू
माँ के हाथ के खाने हैं
सर्दी में तो मजे हो गये
लोहड़ी का त्योहार आ गया
रज के भंगड़ा पाना है
बोन फायर करके लोहड़ी में
रेवड़ी मूँगफली से भोग लगाना है
मुन्ना की पहली लोहड़ी है
भैया की शादी का जश्न भी मनाना है
सर्दियों में रजाई जैकेटां सुहावे
ठंडी तो भाई मुझको बहुत है भावे
?? रीता जयहिंद ?????? विषय शीत ऋतु (सर्दी )??@ ☘??????
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
हे जीवन के दातार
मैं ठाड़ी तोहरे द्वार
लेके उम्मीदों के हार
मोरी नैया लगा दे पार
बिगड़ी बना दे इक बार
मोरा जीवन दे संवार
मैं ठाड़ी दामन पसार
मैं दुखी तुम सृजन हार
दे दो मुझको अपना प्यार
रूठा है मोसे सारा संसार
अब जीवन से तो मैं हारा
हाथ पकड़ मोहे देना सहारा
मिल जाय मुझको भी सहारा
भूल गया था मैं बेचारा
मिथ्या है ये सब संसारा
हाथ थाम लो नाथ हमारा
छोड़ कर दुनिया का नजारा
हो जाना अब प्रभु हमारा
कबहउ ना जाऊँ अब दोबारा
मैंने अपना सब कुछ वारा
कृपा करो अब बख्शनहारा
??? ?? रीता जयहिंद?? ??????????????
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोई लौटा दे रे मेरे बचपन के दिन
जब ना थी कोई चिंता व फिकर
वो जोर – जोर के गीतों का गाना
बारिश में जी भरकर नहाना और भीग जाना
जान बूझकर सोते रहने का बहाना
पढाई के नाम पर पेट दर्द बतलाना
स्कूल जाने पर बुखार का बहाना
रेडियो जोर – जोर के बजाना
मेहमान के जाने के बाद प्लेटें साफ करना
बार – बार गिरकर भी साईकिल चलाना
बारिश के पानी में नाव चलाना
छत पर चढ़कर पतंग उड़ाना
होली मे आने जाने वालों पर गुब्बारे मारना
दीपावली पर जी भरकर पटाखे छुड़ाना
हर दुख से बेखबर अपनी मस्ती में रहना
काश कोई लौटा दे मेरा वो बचपन
?????????
प्रस्तुति ?? रीता जयहिंद ??
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक प्रयास
मापनी 211 211 211 22
रे मन बावरा हुआ जाय है
बादलों में घटा घिर आयी रे।
श्याम बंसी की तान सुना दे
नयनन की प्यास बुझाय दे।।
?? रीता जयहिंद ✍?
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मापनी
211 211 211 22
मैं बालक तुम पालनहार
शरण पड़ी प्रभु राखो लाज ।
दाता दीनबंधु हे दीनानाथ
कब से खड़ी हूँ मैं तेरे द्वार ।।
?? रीता जयहिंद ??
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वसंत ऋतु पर मेरी ये कविता
?? रीता जयहिंद ??
आया वसंत देखो आया वसंत ।
खुशियों की सौगात लाया वसंत ।।
पेड़ पौधे पशु पक्षी सब लगे झूमने।
नदियाँ झरने सब गुनगुनाने लगे।।
मोर पपीहा कोयल गीत गाने लगे।
तितली भँवरे फूलों पर मंडराने लगे।।
पीली सरसों खेतों में खिलने लगी।
धरती भी अंबर को छूने लगी।।
सारा जग में खुशियाँ छाने लगी।
पेड़ों पर कमलपट खिलने लगे।।
गुलाब भी खुशबू महकाने लगे।।
राधे भी श्याम से मिलने जाने लगी ।
आया वसंत देखो आया वसंत ।। ??????❤❣???❣?????❤?
। राधे – राधे ।
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
विषय – चित्र छवि पर
कान्हा को रिझावत राधे
जलाय के दिया और बाती
प्रेम मगन भये कुंज बिहारी
निहारत दोउ नैनन के संग
राधे ज्यों ही देख्या जब
श्याम के नैनन की और
अपनी छवि देख नैनन मा
राधा श्याम दीवानी होई
प्रेम का ऐसा रोग अनोखा
कबहउ ना पहिरे देखा
?? रीता जयहिंद ??
9717281210
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
यूँ सुबह का होना ।
यूँ बादलों का गरजना ।।
यूँ बिजली का कड़कना ।
यूँ तूफानों का आ जाना ।।
यूँ दरिया का बहते जाना ।
यूँ पतझड़ का आ जाना ।।
यूँ चांद का उदित होना ।
यूँ साँझ का धीरे – धीरे ढलना ।।
सब प्रक्रति का नियम है ।
मनुष्य इसे नहीं बदल सकता ।।
राधे – राधे
?? रीता जयहिंद ??
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऐ
बंदा
करम
कर लेना
फल की चिंता
मत कर प्यारे
ईश सब जानता
रीता जयहिंद
मैं
जल
चढ़ाने
भोले बाबा
के मंदिर में
सोमवार के दिन
हमेशा ही जाती हूँ
ये
खुश
होकर
मुझ पर
अपनी कृपा
बनाये रहते हैं
ये परम सच है
तू
भोले
बाबा को
रिझाकर
देखेगा जब
वह तो सबकी
बिगड़ी बनाते हैं
रीता जयहिंद
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब
ठंडक
मौसम में
कुछ तो बदला
परिवेश सा है
मनुवा नाच उठा
रीता जयहिंद
ऐ
बंदा
करम
कर लेना
फल की चिंता
मत कर प्यारे
ईश्वर सब जानता
रीता जयहिंद
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
सुबह सवेरे जागकर , करो सूर्य प्रणाम
अंधकार दूर हो जाये ,जग चानन हो जाये ।।
रात्रि के पहर में , चांद को अरक दीजिए ।
चाँदनी हो प्रसन्न ,जीवन सफल बन जाए ।।
रीता जयहिंद
9717281210
Rita arora jai hind
December 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
- मेरा परिचय
नाम है मेरा रीता अरोरा
परिचय का मोहताज नहीं
जन्म हुआ हाथरस में
कविता मेरा शौक है
दिल्ली की वासी हूँ मैं
आई हूँ आपके बीच मैं
कुछ ज्ञान अर्जन के लिए
देना मुझको भी कुछ मोती
निकाल कर अपने खजाने से
मेरा भी कल्याण हो जाये
संग आपके चलने से
रीता जयहिंद
9717281210
जब आई थी सजधज कर तुमसे मिलने
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब आई थी सजधज कर तुमसे मिलने
लिये हाथों में गुलाब का फूल
कोई हसरत थी मन में प्यार की
जब कोई कमेंट ना किया तुमने
जाने लगी थी भारीमन से गिला लेकर
पलटकर देखा तुम्हारा मुझे ताकना
मेरे गिले – शिकवे मोहब्बत मे तब्दील हो गये
किसी की ऑख़ों में ऑसू थे मेरे लिए
December 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
किसी की ऑख़ों में ऑसू थे मेरे लिए
वह शख्स मुझे दुनिया में सबसे प्यारा लगा
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
कितना भी मैं करना चाहूँ
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितना भी मैं करना चाहूँ
मैं अपने प्यार का इजहार
आई लव यू कहकर पर
कमबख्त जुबान फिसल जाती है
और मुँह से निकल जाता है
जयहिंद
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
चंदा से सीखो तुम
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
चंदा से सीखो तुम
घना कोहरा छाया
चांद ना घबड़ाया
बारिश ने धूम मचाई
काली घटा घिर आई
बादलों के आगोश में
छिपकर रात बिताई
जागकर सारी रैना
किया सूर्य का इंतजार
तनिक ना भरमाया
जब उदित हुए सूर्य
बादलों ने उन्हें भी सताया
अपनी राह में अडिग
आखिर बादल ही शरमाया
छोड़ रास्ता चांद – सूरज का
अपनी राह को चला गया
देखो दूर हुआ अंधियारा
फिर से उजाला छाया
रीता जयहिंद
9717281210
केजू भैया सोच रहे ये
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
केजू भैया सोच रहे ये
मोदी ने तो खाई मलाई
अपने हाथ तो फोक भी ना आई
केजू भैया इसमें तेरी नहीं कोई बुराई
दूसरे की थाली में सबको दिखता खाना ज्यादा
अपनी थाली खाली दिखती
रीति सदा से चल आई
इधर – उधर की बातें छोड़ो केजू भैया
जनता की सेवा में जुट जाना मेरे भैया
शायद पार लग जाये तुम्हारी नैया बस इतना समझ लो केजू भैया
मोदी की तुम्हें क्यों फिक्र सताती
किसे थमाना झाड़ू है किसे थमाना फूल है
जनता सब कुछ है जानती
?? रीता जयहिंद ??
9717281210
जब से ये नोटबंदी हुई है
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब से ये नोटबंदी हुई है।
सभी पत्नियों की घेराबंदी हुई है
छुपे हुये नोटों की पतियों से
पत्नियों की चर्चा सरेआम हुई है
पत्नियों के राज पर्दाफाश हुये हैं
पतियों से सरकार हिसाब मांग रही
खून षसीने की कमाई कालाधन कहला रही
उधर सरकार हिसाब मांग रही
इधर घर में पत्नियों से हिसाब मांग रहे
बाहर का गुस्सा पत्नियां झेल रही
आखिर बैंक की लाइन मे पतियों
को ही तो लगाना है
पत्नियों को नहीं बिलकुल है घबराना
पैसा तो है आना जाना
लगी रहो एकता कपूर के सीरियल मे
आखिर फिर से पैसा जोड़ने का
हुनर भी तो वहीं से लाना
तरसते थे जो पत्नियों के भोजन को
आजकल हाथ में आठ बजे है टिफिन थमाती
बेशक जितनी देरी से आना
पर बैंक से पैसे जरूर लाना
?? रीता जयहिंद। ??
अपना बचपन की सत्य गाथा
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपना बचपन की सत्य गाथा
सुंदर सा परिवार हमारा
छोटा शहर हाथरस था प्यारा
पांच भाई और हम दो थी बहना
मात – पिता के हम थे गहना
छोटी थी पर बहुत चंचल थी
लाड़ – प्यार का नहीं था घाटा
जो कुछ भी था घर में आता
मिल – बांटकर सब संग में खाता
सत्संग भी था सबको प्यारा
नहीं थी कोई भी चिंता फिक्र
जितना जी में था उतना ही पढ़ना
नहीं किसी से पीछे रहना
हरदम बढ़िया नम्बर पाना
बिन ट्यूशन ही पास हो जाना
समस्या हो तो भाई से पढ़ना
जब कर ली पूरी पढ़ाई
एक बार दिल्ली घूमने को आई
बस दिल्ली तो हम सबको भाई
छोड़कर शहर वो छोटा सा
कर ली हमने बस यही कमाई
बचपन के संस्कार यहाँ पर
काम हमारे आये जो हम दिल्ली
वालों के भी थे मन को भाये
पर गम है तो बस इतना सा
गाँव में हम नाम से जाने जाते थे
और यहाँ मकान नंबर से हम
पहचाने जाते हैं
गांव में इक पहचान थी अपनी
वहाँ नाम से पुकारा जाता थे
यहाँ अगले वाले बगल वाले
ऊपर वाले नीचे वाले
कहकर हम जाने जाते हैं
बेशक साधन संपन्न हैं यहां
पर सब साथ रहते थे हम
कांटा भी चुभ जाता था कहीं
अपनों के रहते चुभन का
एहसास तक ना होता था
काश वो छोटा सा ही घर था
उसमें भी सुकून होता था
रीता जयहिंद
9717281210
मोहब्बत और दुशमनी
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मोहब्बत और दुशमनी जो दिल से निभाते है
बस वही शख्स दुनिया में जी पाते है
दीन – दुखियों की जो सेवा करते हैं
बस वही लोग ईश्वर को रिझाते हैं
गिरते हुये को जो धरा से उठाते है
वह न कभी संसार सागर में ठोकरे खाते हैं
अपने गुरु की राह पर जो चलते हैं
शायद वही एक दिन अवश्य कवि बन जाते हैं
रीता जयहिंद
9717281210
शादी हो या मौत
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
शादी हो या मौत
जन्म हो या जन्म दिन
खुशी हो या गम
पंडित के होते सब अच्छे दिन
परंतु क्या जब हुई नोटबंदी
तब कहाँ थी इनकी भविष्यवाणी
एक भी ऐसा पंडित बतलाना
वरना सिर्फ पुरखों की रस्म निभाना
पाखंडियों के चक्कर मे व्यर्थ न धन गवाना
बात सही है या गलत है
वाटसैप पर ये रीता को अवश्य बतलाना
रीता जयहिंद
9717281210
जब आई थी सजधज कर तुमसे मिलने
December 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब आई थी सजधज कर तुमसे मिलने
लिये हाथों में गुलाब का फूल
कोई हसरत थी मन में प्यार की
जब कोई कमेंट ना किया तुमने
जाने लगी थी भारीमन से गिला लेकर
पलटकर देखा तुम्हारा मुझे ताकना
मेरे गिले – शिकवे मोहब्बत मे तब्दील हो गये
जीवन का आधार
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
लिपट कर एक बेल
एक पेड़ को,आधार पा गई थी
बहुत खुश थी सुंदर फूल उगाती थी
और गिराती थी जैसे पुष्प वर्षा हो
वो समझती थी की अब
आसान सफर है जिंदगी का
पेड़ की जड़ें भी गहरी है
और विशाल भी है ये
और मुझे इसने अपने चारों और
लिपटने की मौन अनुमति दे दी है
पर नियति और नीयत …
किसका बस चलता है
पेड़ का पालक मर गया
बेटे आये घर का बंटवारा हुआ
पेड़ बिच में आ रहा था
बोले काट दो
आरी चली कुल्हाड़ी चली
बेल बहुत परेशां थी
आज उसका आधार कट रहा था
उसका प्यार कट रहा था
बहुत सहने के बाद पेड़
लहराकर गिरा
पर बेल ने अपनी असीम ताकत लगा दी
पेड़ को गिरने से रोकने को
पर कुछ देर हवा में झूलने के बाद
पेड़ गिर पड़ा
और गिर पड़ी उसके उपर
वो बेल भी दोनों निष्प्राण थे
दोनों सूख गए पर सूखी बेल आज भी
लिपटी पड़ी है उस
बेजान पेड़ से….
?? जयहिंद ??
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
बचपन की यादें
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
कमीज के बटन
ऊपर नीचे लगाना,
वो अपने बाल
खुद न काढ़ पाना,
पी टी शूज को
चाक से चमकाना,
वो काले जूतों को
पैंट से पोंछते जाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो बड़े नाखुनों को
दांतों से चबाना,
और लेट आने पर
मैदान का चक्कर लगाना,
वो प्रेयर के समय
क्लास में ही रुक जाना,
पकड़े जाने पर
पेट दर्द का बहाना बनाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो टिन के डिब्बे को
फ़ुटबाल बनाना,
ठोकर मार मार कर
उसे घर तक ले जाना,
साथी के बैठने से पहले
बेंच सरकाना,
और उसके गिरने पे
जोर से खिलखिलाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
गुस्से में एक-दूसरे की
कमीज पे स्याही छिड़काना,
वो लीक करते पेन को
बालों से पोंछते जाना,
बाथरूम में सुतली बम पे
अगरबत्ती लगाकर छुपाना,
और उसके फटने पे
कितना मासूम बन जाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो Games Period
के लिए Sir को पटाना,
Unit Test को टालने के लिए
उनसे गिड़गिड़ाना,
जाड़ो में बाहर धूप में
Class लगवाना,
और उनसे घर-परिवार के
किस्से सुनते जाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो बेर वाली के बेर
चुपके से चुराना,
लाल–पीला चूरन खाकर
एक दूसरे को जीभ दिखाना,
खट्टी मीठी इमली देख
जमकर लार टपकाना,
साथी से आइसक्रीम खिलाने
की मिन्नतें करते जाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो लंच से पहले ही
टिफ़िन चट कर जाना,
अचार की खुशबू
पूरे Class में फैलाना,
वो पानी पीने में
जमकर देर लगाना,
बाथरूम में लिखे शब्दों को
बार-बार पढ़के सुनाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो Exam से पहले
गुरूजी के चक्कर लगाना,
लगातार बस Important
ही पूछते जाना,
वो उनका पूरी किताब में
निशान लगवाना,
और हमारा ढेर सारे Course
को देखकर सर चकराना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
? ? ? ? ?
वो farewell पार्टी में
पेस्ट्री समोसे खाना,
और जूनियर लड़के का
ब्रेक डांस दिखाना,
वो टाइटल मिलने पे
हमारा तिलमिलाना,
वो साइंस वाली मैडम
पे लट्टू हो जाना…
? ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना…
??????
वो मेरे स्कूल का मुझे,
यहाँ तक पहुँचाना,
और मेरा खुद में खो
उसको भूल जाना,
बाजार में किसी
परिचित से टकराना,
वो जवान गुरूजी का??
बूढ़ा चेहरा सामने आना…
तुम सब अपने स्कूल
एक बार जरुर जाना…
?? जयहिंद ??
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
नारी वर्णन
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मयखाने में साक़ी जैसी
दीपक में बाती जैसी
नयनो में फैले काजल सी
बगिया में अमराई जैसी
बरगद की शीतल छाया-सी
बसन्त शोभित सुरभी जैसी
गीता कुरान की वाणी-सी
गंगा यमुना लहराती जैसी
बगीचे की हरि दूब जैसी
आँगन में हो तुलसी जैसी
आकाश में छाय बदल सी
शीतल बहती पुरवाई जैसी
फूलों की खिलती क्यारी सी
समुदर की गहराई जैसी
रंगों में इन्द्रधनुष जैसी
सावन में धार झरती जैसी
मौत में जीने की चाह सी
मृग में छिपी कस्तूरी जैसी
मन में रहती हिम शिला सी
हिमालय की उच्चाई जैसी
चुभती मन में काँटों जैसी
पूनम रात चांदनी जैसी
सजन मन छाय बात याद की
याद रहे परछाई जैसी
?? रीता जयहिंद ??
माता – पिता पर आधारित
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिल के एक कोने मे मन्दिर बना लो।
मात-पिता की मूरत उस मे बिठा लो।
दिया ना जलाओ पर गले से लगा लो।
आरती के बदले ,
कुछ उनकी सुनो ,
कुछ अपनी सुनाओ।
पहला भोग मात-पिता को लगा कर तो देखो।
इनके चरणों मे माथा झुका क़र तो देखो।
धर्म स्थलो पर जो मागने जाओगे।
अरे !!!
बिन मागे घर मे पाओगे ।।
जिस के घर मे माँ-बाप हसते है
प्रभु तो स्वयं ही उस घर मे बसते है..
?? जयहिंद ??
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
मां की महिमा
October 1, 2016 in Other
कौन बिन माँ के जगत में जन्म पाया ,
देव से बढ़कर तुम्हारी मातृ माया ,
है नही ऋण मुक्त कोई मातृ से ,
जन्म चाहे सौ मिले जिस जाति से ,
दूसरा है रूप पत्नी का तुम्हारा ,
जो पुरुष का रात दिन बनती सहारा ,
सुख दुःख में है सदा संधर्ष करती ,
धर्म अपना मानकर अनुसरण करती ,
तू बहन है तीसरे परिवेश में ,
भ्रातृ की रक्षा करे परदेश मे ,
ले बहन का रूप जब आती धरा पर ,
भावनाये याद है राखी बराबर ।
एक तेरा रूप पुत्री में समाया ,
पितृ सुख है पिता मन में समाया ,
कौन तेरी रात दिन रक्षा करेगा ,
हो वरण कैसे पिता चिंता करेगा ।
वंश की उन्नति तुम्हारे योग से ,
नित्य समरसता तुम्हारे भोग से ,
तू सुधा सी धार बन जीवन निभाती ,
प्राण की बलि भी चढ़ा कर मुस्कुराती ।
?? जयहिंद ??
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
नाज हमें है उन वीरों पर
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
नाज हमें है उन वीरों पर, जो मान बड़ा कर आये हैं।
दुश्मन को घुसकर के मारा, शान बड़ा कर आये हैं।I
मोदी जी अब मान गये हम, छप्पन इंची सीना है।
कुचल, मसल दो उन सब को अब, चैन जिन्होंने छीना है।I
और आस अब बड़ी वतन की, अरमान बड़ा कर आये हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर, जो शान बड़ा कर आये हैं।I
एक मरा तो सौ मारेंगे, अब रीत यही बन जाने दो।
लहू का बदला सिर्फ लहू है, अब गीत यही बन जाने दो।I
गिन ले लाशें दुश्मन जाकर, शमसान बड़ा कर आये हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर, जो मान बड़ा कर आये हैं।I
अब बारी उन गद्दारों की, जो घर के होकर डसते हैं।
भारत की मिट्टी का खाते, मगर उसी पर हँसते हैं।I
उनको भी चुन चुन मारेंगे, ऐलान बड़ा कर आये हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर, जो मान बड़ा कर आये हैं
– भारतीय सेना के वीर जवानों को नमन !!
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
?? जयहिंद ??
राम अब बनवास पर है।
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कई मंथराओं का मिलन– परिहास पर है
कैकयी फिर भृमित कोप में उपवास पर है
तड़फ रहे जनता के दशरथ हाथ मल रहै
देख रहै सव कि -राम अव वनवास पर है
सीता भी अव बन जाने के लिऐ भ्रमित है
आज के रावणों के चरित्र से बह चकित है
लक्ष्मण -हनुमान के चरित्र अव खो गऐ है
हॉ- बिभीषणों की भरमार स्वार्थ सहित है
अयोध्या को आतुर कई भरत बन गऐ है
कई तो आपस में लड़कर ही बिखर गऐ है
राम से मिलने- चरण पादुका चर्चा नही है
राम राज कहते सव खजाना कुतर गऐ है
प्रस्तुति – रीता
जयहिंद
तुम आओ सिंह की सवार बन कर
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम आओ सिंह की सवार बन कर !
माँ तुम आओ रंगो की फुहार बनकर !
माँ तुम आओ पुष्पों की बहार बनकर !
माँ तुम आओ सुहागन का श्रृंगार बनकर !
माँ तुम आओ खुशीयाँ अपार बनकर !
माँ तुम आओ रसोई में प्रसाद बनकर !
माँ तुम आओ रिश्तो में प्यार बनकर !
माँ तुम आओ बच्चो का दुलार बनकर !
माँ तुम आओ व्यापार में लाभ बनकर !
माँ तुम आओ समाज में संस्कार बनकर !
माँ तुम आओ सिर्फ तुम आओ,
क्योंकि तुम्हारे आने से ये सारे सुख
खुद ही चले आयेगें तुम्हारे दास बनकर !
~ रीता
जयहिंद
जो इन दिलों में नफरतों के बीज बोयेगा
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम भारतवासी हैं
हम सभी धर्मों का आदर करते हैं
जो भारत मां की तरफ आंखों उठायेगा
उसका सीना चीर दिया जाएगा
जो इन दिलों में नफरतों के बीज बोयेगा
वह जिंदगी भर रोयेगा
भारत मां के रखवाले हमारे वीर सैनिक हमें जान से ज्यादा प्यारे है
मां कसम एक वीर के बदले सौ – सौ
दुशमनों को मार गिराने की हम ठाने हैं
जितने भी गद्दारों तुमने पाले हैं
वह सब लगे हमारे निशाने हैं
एक वीर की जगह सौ गद्दारों को गिरायेंगे
और तिरंगे का मान बढ़ायेंगे
पाकिस्तान के गद्दारों के लहू से शोभित होगी हमारी धरती
उस लहू से तिलक करेंगे अपनी भारत मां का
तभी शहीदों की शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि होगी
भारत माता की जय
रीता जयहिंद
पाक के गद्दारों के लहू से कर दो धरती लाल
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
पाक के गद्दारों के लहू से कर दो धरती लाल
उसी खून से करना है माँ भारती का श्रंगार
तत्पश्चात चिड़ियाघर में भूखे शेरो और
चीतों के आगे फेंक दो मेरी सरकार
तो दीपक जलाऊॅ मैं जाकर सरहद पार
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
कितना भी मैं करना चाहूँ
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितना भी मैं करना चाहूँ
मैं अपने प्यार का इजहार
आई लव यू कहकर पर
कमबख्त जुबान फिसल जाती है
और मुँह से निकल जाता है
जयहिंद
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
किसी की ऑख़ों में ऑसू थे मेरे लिए
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
किसी की ऑख़ों में ऑसू थे मेरे लिए
वह शख्स मुझे दुनिया में सबसे प्यारा लगा
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
जब घर से निकली तो
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब घर से निकली तो
बिलकुल अकेली थी मैं
जब मुसीबतों ने घेरा मुझे
तो मदद करने वालों की
कोई कमी नहीं थी जहान् में
पाकिस्तान की धरती पर तिरंगा लहराकर आऊंगी
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब पाक साफ कर लोटकर आयेगे हमारे वीर जवान
मैं साल में मनाऊॅगी दीवाली बारह बार
कनातों पर दीपक रोज जलाऊॅगी और
पाकिस्तान की धरती पर तिरंगा लहराकर आऊंगी
प्रस्तुति – रीता जयहिंद
जयहिंद