रक्षाबंधन

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

1: रक्षाबंधन
रक्षासूत्र सिर्फ एक धागा नहीं,
अटूट स्नेह प्यार विश्वास समर्पण का व्यवहार ।
रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट स्नेह का त्यौहार ।।
भरोसा उस विश्वास का
भाई हरहाल में रहेगा बनकर ढाल
विश्वास उस मजबूती का
भाई रहेगा सुरक्षित,बाल बाँका कर न सकेगा
दुश्मन की कोई भी चाल
आशा उस उपहार की,उम्मीदें जुङी हैं जिससे हजार
कोई भी जंग,जयघोष हो मेरे भैया की ही बारम्बार
हाँ,रक्षाबंधन ही वह पर्व है,दर्शाता भाई बहन का अटूट प्यार ।।
भाई भी कहाँ करता,कभी अनदेखी
पूरा करता वह स्वप्न,जो बहन ने है देखी
अपने खर्चे को काट-काट,जाता जब वो कोई हाट
ले आता झिल्ली व जलेवी ,खाता मिलकर बाट
देखते बनती उस भाई बहन की कैसी ठाट
कभी बांस की डलिया ले आता
संग में बैठ, कभी उछलकर,बाँसुरी बजाता
बहन अब भी,उस भाई की,जोहा करती बाट
बचपन के उस प्रेम की कीमत कोई भला क्या जाने
मन अब भी वो बचपन के,कच्चे माटी के खिलौने मांगें
बहन की पलकों पर, स्नेह संग दुआएं हैं हजार
हाँ,बहन की आखों में आज भी उस भाई का है इन्तज़ार
।।
सुमन आर्या

आपदाओं का शिलशिला

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपदाओं का शिलशिला
—————————-
त्रासदी का जालीम कहर कब तक डराएगा
वक्त का यह खौफजदा दौङ थम ही जाएगा ।
अबतक के अनुभवों से हमने सीखा है
आपदाओ का शिलशिला जब चलने लगता है
धैर्य डगमगाता , पर क्या , वक्त का पहिया कब थम के रहता है
गम का दरिया बहते-बहते बह ही जाएगा
पर खुशियों का सैलाब बन के आएगा
वक्त का यह खौफजदा दौङ , थम ही जाएगा ।
सिर्फ अपने हित की कबतक फिक्र करना है
स्वमद में चूर हो क्यू दंभ भरना है
समय सबको उसकी सीमा दिखला के जाएगा
बौखलाहट जितनी भी हो, मौत एक दिन सबको आएगा in
वक्त का यह खौफजदा दौङ,थम ही जाएगा ।
आपाधापी कब हमें ज़ीने देती है
आगे बढने की चुनौती सर पर रहती है
हमारी क्षमताओ का आकलन कौन कर पाएगा
खुद से खुद की तृष्णा पर पार पाएगा
वक्त का यह खौफजदा दौङ ,थम ही जाएगा ।
सुमन आर्या

माँ

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ: जीवन की पहली शिक्षिका
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जीवन की पहली गुरु, मार्गदर्शिका कहाती है
हर एक सीख,सहज लब्जों में सिखाती है ।।

धरा पे आँखे खुली,माँ से हुआ सामना
जन्मों जन्म से अधूरी,पूर्ण हुई कामना
घर परिवार से,हरेक रिश्तेदार से पहचान कराती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।

हमारी गलतियाँ बता,आइना दिखाती वो
बिगड़े को संभालने की,कला समझाती वो
सबकी अहमियत बातों-बातो में सिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।

छोटा हो या बड़ा ,कम नहीं आकना
हर एक जीत के लिए करो तन मन से साधना
हर कदम पे सही रास्ता दिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।

समय कितना भी हो बुरा,हिम्मत न हारना
चाहे मुसीबत आए,डट के करो सामना
हर एक चुनौती का ,सामना करना सिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।

माँ तेरी ममता का, अहसास है हमें
भूल ना पाते तुझे,खलता प्रवास हमें
स्नेह त्याग की मूरत,देती आशीष हमें
भला हो या बुरा,साथ निभाती है ।
हर एक सीख,सहज लब्जों में सिखाती है ।।
सुमन आर्या
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बिहार की गौरव गाथा

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गर्व हमें है इस भूमि पर,जिस पर हमने जन्म लिया
कर्म है मेरा उसे संवारना,जिसने हमपर उपकार किया । मातृभूमि वह मेरी, जहाँ महावीर ने अवतरण लिया कर्मभूमि वह मेरी,बुद्ध ने जहाँ अहिंसा का वरण किया
कौटिल्य का जो सपना,मौर्य ने जिसे अपना था लिया
गर्व—
कभी सूर्य सा दमकता, जिसकी गौरव गाथा थी
राज्य नहीं देश नहीं,विश्व की बनी परिभाषा थी
अशिक्षा गरीबी भूखमरी भ्रष्टाचार नहीं
ज्ञान विज्ञान विकास जिसकी अभिलाषा थी
आज फिर उसी कृति को पाने का संकल्प लिया
गर्व—
आर्यभट्ट सा हल बालक गणितज्ञ बने
वीर कुंवर सिंह की सबमें झलक मिले
हिंसा छोङ अहिंसा अपनाने की ,अशोक सी शक्ति मिले
सीता गार्गी यशोधरा सी हर बाला में भक्ति मिले
भूलों को पहचान,अग्रसर होने का संकल्प लिया
गर्व—
हर विद्यालय को नालन्दा सी पहचान मिले
मेरे बिहार ,हर बिहारी को,सबसे ज्यादा सम्मान मिले
विश्व के हर कोणे में,नि:संकोच विचरण करें
सत्य विश्वास त्याग और उन्नति का दर्पण बनें
नि:स्वार्थ- प्रेम विश्व -भातृत्व का हमने वरण किया
गर्व—
सुमन आर्या

मन्जिल

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन-सी मंजिल है अपनी
किसे किधर जाना कहाँ है
क्या है पहचान अपनी
किस डगर से जाना यहाँ है ।
लौटकर भी आएँगे यहाँ पर
या वही रम जाएँगे
सोच लो रूक कर जरा
क्या इस जहाँ को ले जाएँगे।
बेजान सा पङे जमी पर
मैंने देखा एक पथिक को
सुध ना थी उस देह की
जा चुका था किसी लोक को ।
गुमान था जिस देह पे
वो भी साथ न जाएगा
अंत पानी मिट्टी में मिल कर
एक यूँ हो जाएगा ।
निज कर्म का ,बस हे प्रभु
हो मुझे हमेशा आसरा
स्वाबलम्बी बनकर रहूँ
बस यही हो चाहना।
सुमन आर्या

कारगिल विजय दिवस

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शतशत नमन उन वीरों को,कारगिल विजय दिलवाई थी
स्वदेश की रक्षा की खातिर प्राणों की भेंट चढाई थी।।
साठ दिनों तक जो चली पाकभारत की लङाई थी
कितनों ने जान की बाजी हंस के यूँ लगाई थी
527 जवानो ने वीरता से जान अपनी गवायी थीं
यह वही कारगिल युद्ध है भाई
परवेज मुशर्रफ ने की जिसकी अगुआई थी।शत—-
हाँ वही परवेज जिसकी खूरफाती का नतीजा
औपरेशन भद्र से लाल था हिमालय का टीला
लालच फितरत है जिनकी,फिक्र क्यू करे वो किसीकी
हिम्मत कहाँथी बुजदिलो को सामनेकी लङाई करते जो
कश्मीर लद्दाख की कङी को कैसे सामने से तोङते वो
सियाचिन से सैनिकों को हटाने की खातिर
घुसपैठियो ने सेंध ऑपरेशन भद्र से लगायी थी।शत—
नवाज शरीफ अटल की दोस्ती की आङ में
भारत फंसता गया परवेज नीति के जाल मे
होश जब आया हमें ऑपरेशन विजय की शुरुआत की
तीस हजार सैनिकों के बल पर पाक को मात दी
जहाँ वेदप्रकाश मलिक के जैसे हो रणबांकुरे
मुशरफ जैसे घुसपैठिये खायेंगे,दर-दर की ठोकरे
अपनी करनी की सज़ा अपनी ही जमी पे पाई है
राजद्रोही बन गये हैं,सजा -ए-मौत की सुनवाई है।शत –
जान की परवाह न कर,चल पङे सेनानी जो
हाथ में लेकर तिरंगा,टाइगर हिल पे लहराने वो
नतमस्तक है भारत का जन-गण-मन
थी जिनमें अदम्य साहस, धैर्य व समर्पण
ऋणि हैं हम उन माँ,बहन,पत्नी बेटियों के
चिराग से अपने देश की लौ जलाई है ।शत—

जीवन दायनी नदियां

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन दायनी ये नदियां
पहुँचती हैं जब विकरालता के चरम पर
लील लेतीं हैं उनकी ज़िन्दगियाँ
जिन्दा रहते हैं जो इनके करम पर।।
भूमि तो उर्वर कर जाती हैं
पर कयी दंश भी दे जाती हैं
कितने ही धन घर पशु सम्पदा
अपने आगोश में बहाके जाती हैं ।।
बढ़ते जलस्तर का लाल निशान देख
घर छोड़ सङक पर जन लेते हैं टेक
पैरों में बहती है अविरल जलधारा
इस विषम समय में भी भूखा है पेट बेचारा ।।
एक के हाथोंमें है ब्रेड का एक टुकड़ा
दूजा आशा से उसको देखा करता है
हर साल एक नयी आशा की दिशा में
बाढ़ पीड़ित बिहारी का जीवन कटता है ।।
पिछङेपन में हमारी गिनती का
यह भी एक ,बङा कारण रही है
खाने-पीने की ही सूध जब नहीं है
शिक्षा की, किस पीङित को,क्या पङी है ।।
शिक्षा जब नहीं तो रोजगार हो कहाँ से
रोजगार की कमी से, यहाँ बढ़ी , गरीबी है
जनप्रतिनिधियों को कौन क्या कहे अब
जब ईश्वर ही बना फरेबी है ।।

बाढ़

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाढ़
——
करनी है कुछ जनों की,सजा कितनों ने पाई है
नदियों का यह रौद्र रूप हमारे कर्मों की भरपाई है ।
प्रकृति के दोहन में रहे यूँ मदमस्त हम
कितना भी पा ले लगता बहुत ही कम
और पाने की चाहत से गिरिराज की रूलाई है
हिमालय के क्रंदन से नदियों में बाढ़ आई है ।—
जहाँ भी गये हम कचङा फैला के आये
पुण्य कमाने की खातिर गंदगी पसार आये
शान्त थीं जो नदियां, उनको भी छेड़ आए
हमारी लापरवाही का ये भुगतान करते आई है
रूप तो क्या इनके रंग -ढंग भी बदल आई हैं।—-
नदियों की सफाई कराने वालो की है गाढ़ी कमाई
उनके ही कामों की आके दे रही हैं ये दुहाई
यमुना का रंग बदला गंगा का रूप बदला
अनचाहे बदलाव काये हिसाब लेने आई हैं ।—–
सुमन आर्या

एहसास कराने आई तू

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझको मेरे होने का एहसास कराने आई तू।
फिर से जीवन जीने का आस जगाने आई तू ।
तुझे देख खुद को देखती,तुझसे ही खुद को परखती
देख तुझे मै और निरखती,तुझ संग मैं भी संवरती
पढने और पढाने का एहसास जगाने आई तू —-
आज मेरी भी एक पहचान बनी है
वो तुझसे तेरे ख़ातिर अरमान बनीं हैं
चाहे जितनी तकलीफ उठाऊँ
तेरे सारे ख्वाइश पूरी कर जाऊँ
मुझको मेरी दृढ़ता का आभास कराने आई तू—
तू ना होती तो क्या मैं यह न होतीं
पास मेरे ,मेरी अपनी पहचान न होती
यह कविता न, यह कवयित्री न होती
मुझसे जुङे असंख्य अरमान न होती
हाँ तू मुझको मेरा आधार दिलाने आई तू–

सुमन आर्या

मेरी लाङो

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी सफलता के चमक के आगे
सितारों की चमक फीकी हो !
तेरे कठिन मेहनत का फल
नीले गगन से भी ऊँची हो!
ऐसी हो तेरी जय गाथा
तू आगे सफलता तेरे पीछे हो!
मुकम्मल तेरी हर कोशिशे
नाकामी पैरों के नीचे हो!
मेरी लाडो मैं क्या ,
ये वतन नाज करे तुझपर
सारी कायनात की करम तुझपे हो!
बेटी को जन्म देना धर्म बन जाए सबका
सबकी चाहत रहे-मेरी बिटिया भी ऐसी हो!
जन्मदिन की बधाई हम देते हैं तुमको
सब जङचेतन देने को बधाई आतुर हो
आने वाले आगे के जन्म दिन ऐसे हो!
Happy Birthday Bittu

सुमन आर्या

बेटियां

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसमां में हैं जितने सितारे पङे
उतने ही हैं तुझसे मेरे सपने जुड़े
अपने जीवन को देना एक पहचान तू
पूरे करना चुन चुन के अरमान तू।
बेटियों से है माता की शक्ति बढ़ी
अकेलेपन में साथ हमेशा रहतीं खङी
देखके जब बेटियों को, गुमान होने लगें
समझो उस जमाने को पर लगने लगे।
बेटियां पङाई है अब डर ये भगा
अपनी इस सोच को कर खुदसे जुदा
दूर रहकर भी फर्ज करतीं हैं पूरा
माँ बाप से तार रहता है हरदम जुङा।

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं!
सुमन आर्या

कारगिल विजय दिवस

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शतशत नमन उन वीरों को,कारगिल विजय दिलवाई थी
स्वदेश की रक्षा की खातिर प्राणों की भेंट चढाई थी।।
साफ दिनों तक जो चली थी लङाई
कितनों ने जान की बाजी लगाई थी
527 जवानो ने हंसके प्राण गवायी थीं
यह वही कारगिल युद्ध है भाई
परवेज मुशर्रफ ने की जिसकी अगुआई थी।शत—-
हाँ वही परवेज जिसकी खूरफाती का नतीजा
औपरेशन भद्र से लाल था हिमालय का टीला
लालच फितरत है जिनकी,फिक्र क्यू करे वो किसीकी
हिम्मत कहाँथी बुजदिलो को सामनेकी लङाई करते जो
कश्मीर लद्दाख की कङी को कैसे सामने से तोङते वो
सियाचिन से सैनिकों को हटाने की खातिर
घुसपैठियो ने सेंध ऑपरेशन भद्र से लगायी थी।शत—
नवाज शरीफ अटल की दोस्ती की आङ में
भारत फंसता गया परवेज नीति के जाल मे
होश जब आया हमें ऑपरेशन विजय की शुरुआत की
तीस हजार सैनिकों के बल पर पाक को मात दी
जहाँ वेदप्रकाश मलिक के जैसे हो रणबांकुरे
मुशरफ जैसे घुसपैठिये खायेंगे,दर-दर की ठोकरे
अपनी करनी की सज़ा अपनी ही जमी पे पाई है
राजद्रोही बन गये हैं,सजा -ए-मौत की सुनवाई है।शत –
जान की परवाह न कर,चल पङे सेनानी जो
हाथ में लेकर तिरंगा,टाइगर हिल पे लहराने
नतमस्तक है भारत का जन-गण-मन
थी जिनमें अदम्य साहस, धैर्य व समर्पण
ऋणि हैं हम उन माँ,बहन,पत्नी बेटियों के
चिराग से अपने देश की लौ जलाई है ।शत—
चेतावनी है उन गिद्धदृष्टि रखने वालों की
लद्दाख अरूणाचल की तरफ लालसा के मतवालो की
बेगुनाहो का जो भी खून यूँ बहायेगा
यूँ हीं मुशर्रफ के जैसे अपनो से दुरदुराया जाएगा
अपनी अनन्त उठती इच्छाओं को थोङा विराम दो
थोड़ी अपनी लोलुप नीतियों को खुद ही लगाम दो
याद कर उनको जिसने जहाँ बनायी है
मनुज को उसके कर्मो की सज़ा खुद ही मिलते आई है
सुमन आर्या

गिद्ध दृष्टि

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दु:शासन दुर्योधन की जोङी
कबतक गुल खिलाएगी
एक दिन चौसर की गोटी
खुद उनको नाच नचाएगी —
दिन बदलते ही जिनकी फितरत बदले
थोड़ी सी भी लाज नहीं,पलपल जिनकी हसरत बदले
लाभहानि के सौदे पे टिकी दोस्ती
कबतक खैर मनाएगी—–
सिंह के खाल में छिपा भेङिया
पंजा उंगली की नीति जिसने बनायी है
कभी अरूणाचल कभी लद्दाख तक
कैसी गिद्ध दृष्टि दौङाई है
नेपाल तिब्बत को कुतरने वाले,
भारत क्या भूटान तुझे सिखाएगा —
सुमन आर्या

प्रश्न

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम क्या हमारा व्यक्तित्व क्या।
अनन्त ब्रह्माण्ड के प्रान्गन में ,
हम क्या हमारा अस्तित्व क्या ।
कब किसके गर्भ में,
कैसे कौन पनप रहा
कैसे कब कौन-सा किसका सुमन
कहाँ किस उपवन में महक रहा
अनेक प्रश्न हैं उदित
यह मन क्यू भटक रहा
अनन्त ब्रह्माण्ड के—–
सुमन आर्या

चलो पतझड मेंफूल खिलाएं

July 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रगति पथ पर दौङ लगाए
चलो नव कृतिमान बनाए।
पग- पग पर आने वाली बाधाओं से
हंसकर अपनी पहचान बनाए।।
चाहे जितनी डगर कठिन हो
पर अपना विश्वास अडिग हो
परिश्रम की मिठास की खबर उसे क्या
जिसका जीवन शूल विहीन हो
चलो,पतझड में एक फूल खिलाएं ।।
करूँ जगत में काम कुछ ऐसा
जीवन हो वृक्षों के जैसा
नदी की धार कभी बन जाऊँ
दुख दरिद्र दूर बहा ले जाऊँ
खुद की आन की ना हो चिन्ता
चलो, औरों का सम्मान बनाए।।
बहुत जी लिया खुद की खातिर
महत्वाकांक्षा में बना मैं शातिर
इस लालसा का अंत, कहाँ है आख़िर
अपने बागों से सुन्दर पुष्प चून
चलो,बसन्त सा,गैरो का जीवन महकाए।।

सुमन आर्या

प्रेम-बन्धुत्व का नौमिनेष

July 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम-बन्धुत्व का नौमिनेष
———*——*——–
हर बालक को एक-सा,
पालन पोषण,शिक्षा परिवेश मिले।
समता,मानवता,बन्धुत्व,करूणा
भरने वाला देश मिले।
क्या बिगाड़ेगा उनका कोई
जहाँ रहीम जौर्ज गणेश मिले।
एक ऐसी धरा का नवनिर्माण करें
जहाँ देश से गले विदेश मिले।
ना चीन हमारी जमी हरपे,
ना पाक से विष रूपी द्वेष मिले।
साम्राज्यवादियो के नापाक इरादे धूल दूषित हो
प्रेम-बन्धुत्व का नौमिनेष खिले।
हाँ, एक ऐसी धरा का नवनिर्माण करें
जहाँ देश से गले विदेश मिले।।
सुमन आर्या

विश्वास का आगाज़

July 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ लोग हमारी संस्कृति को पिछड़ेपन का नाम देते हैं।
हंस के पश्चिमी संस्कृति की उतरन थाम लेते हैं ।।
घर हो या सङक शालीनता हो अपनी झलक
नकल किसी और की क्यूँ करे,
स्वसंस्कृति को आत्मसात करने की हो ललक
हमारे लिवास हमारी सौम्यता की पहचान देते हैं
हंस के पश्चिमी—-
खुलापन कहाँ कबतक साथ निभाएगा
सादगी ही हमें आगे का पथ दिखाएगा
क्रियाकलाप हमारी तहजीब का पैगाम देते हैं
हंस के पश्चिमी——-
पीपल का पूजन हो,तुलसी साँझ की बाती
घण्टी आरती से भी,आती विज्ञान की पाती
रीति हमारी संयमित जीवन का अंदाज देते हैं
हंस के पश्चिमी——-
उगते सूर्य को जलार्पण,ढलते सूर्य से संध्याबंदन
हर दिन से जुङा कोई व्रत, नियम, संयम, तर्पण
अंधविश्वासी नहीं,
बुझते मन में विश्वास का आगाज़ करते हैं
हंस के पश्चिमी——-
हमारा बचपन भले माटी के संग,भूतल पर बीता है
मगर मन में है रामायण , तन में कर्म की गीता है
हिंसा की नीति नहीं,अहिंसा का हम प्रचार करते हैं
हंस के पश्चिमी——
सुमन आर्या

सैनिक बनने का दम भरता है

July 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सूनी- सूनी सङको पर सैनिक बनने का दम भरता है ।
सेना में भर्ती होने का हर जन में स्वप्न सलौना पलता है ।।
तात हमारे कैसे माँ, अपने पैरों पर चलकर ना आए
क्या सचमुच धन्य वही है जो सीमा पर प्राण गवा जाए
जान हथेली पे लेके क्यू, देश का प्रहरी चलता है
सेना में भर्ती होने—-
माँ मेरे हाथ अभी छोटे हैं पर तू इनमें पिस्तौल थमा
मुझको वो हरियाली वाली खाकी फौजी ड्रेस दिला
माँ के उजङे मांग देख,ढाढ़स की लाली भरता है
सेना में भर्ती होने—–
मजबूत जिगर जिस माँता का वो एक सैनिक जनती है
कोई किस्मत वाली ही फौजी की पत्नी बनती है
हम जैसों के तप से ही यह भारत चैन से सोता है
सेना में भर्ती होने—-
मेरे आखों का तारा ,पुत्र तू है बङा हिम्मतवाला
देश की रखवाली का जिम्मा,पिता ने तुझपे है डाला
सरहद पर मिटने वाला ही सच्चा वारिस कहलाता है
सेना में भर्ती होने—–
क्या रखा है कोरी बातों में,बंदुक थमा इन हाथों में
बहुत हुआ अब और नहीं,दिवा स्वप्न की बेर नहीं
साम्राज्यवादियो की नीति हरदम मुझको सलता है
सेना में भर्ती होने——

सुमन आर्या

खुद पे एतवार

July 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो आज खुद के लिए वक्त की तलाश करते हैं ।
हर जख्म को अलफाजो से ढक
दुख दर्द को किसी दरिया में रख
खुद को तराशने की खातिर खुद पर
एक सरसरी नजर डालते हैं ।
दुनिया की उम्मीदों से परे
भीनी भावनाओं के संग
अनायास ही एक उङान भरते हैं ।
क्यूँ दूसरों के भरोसे खुशियों को छोङे
खुद ही खुद के लिए
खुद की अहमियत का अहसास करते हैं ।
सबकी बातोंको नजरान्दाज कर
किनारा कर सबकी नाराजगी का डर
खुद के लिए खुद पर, चलो एतवार करते हैं ।
सुमन आर्या

रूक तो ज़रा

July 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनिश्चितता के सवालों में है मानव पङा
कैसी होगी जिन्दगी,
सुलसा भांति मुँह बाए खङा ।
कल की जिन्दगी का नहीं जन को पता
खता क्या हुई हम से,मेरे रब जरा तुम तो बता
जीवन को लीलने से पहले रूक तो ज़रा ।
कल की लालसाओ की तृष्णा की खातिर
अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति में बन बैठा शातिर
संवेदनाओं के मिटने से पहले,रूक तो ज़रा ।
अपने बेगानो की पहचान की बेला है आई
अपनों से अपनों के बीच की कैसी है खाई
संक्रमण से भागने से पहले,रूक तो ज़रा ।
दुख की घङी में किसी की मदद को हाथ जो बढे
हमदर्द है दर्द के दरिया में डूबने वाले का संबल जो बने
कर्म अपना भूलने से पहले,रूक तो ज़रा ।
सुमन आर्या

माँ मेरी

July 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ मेरी
******
मुझे मेरा खोया बचपन लौटा दे
विकल हुआ मेरा क्यूँ मन ,फिर आंचल लहरा दे
मुझे मेरा खोया बचपन लौटा दे ।
छूट गये क्यू खेल- खिलौने,
जिम्मेदारी से घिर गए सपने- सलौने ,
सबकी मुझसे उम्मीदें बङी हैं
इन हाथों में कहाँ जादू की छड़ी है
थक गयी मैं,थकान मिटा दे ।
मुझे मेरा खोया बचपन लौटा दे ।।
ईश्वर की धरती पर अवतार है तू
बच्चों की मनचाहा वरदान है तू
डूबते मन की खेवनहार है तू
तेरी ममता अविरल-निश्चल
स्नेह की प्यास बुझा दे ।
मुझे मेरा खोया बचपन लौटा दे ।।
सुमन आर्या

एक दीप तेरे नाम का

July 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज जब मानव के बजूद पर बन आई है
फिर भी जाति-धर्म की ये कैसी लङाई है
गरीब देखे न अमीर ये वैश्विक महामारी है
मानव बनकर रहने में हम सब की भलाई है
मानव बनें!दीप इस आश से जलाया है ।।
आज अपनों से भी अछूत बन गए है हम
एक मीटर का फासला क्या लगता है कम
अब भी ना संभले तो कब संभलेगे हम
सद्बुद्धि दे!दीप इस आश जलाया है ।।
जब काम था तो वक्त की कमी थी
काम के चलते अपनों में दूरियां बनी थीं
आज समय है , पर काम की कमी है
दूरियां मिटें!दीप इस आश से जलाया है ।।
देखो ना अब ये कैसी तबाही है
एक दूजे से मिलने की मनाही है
कुछ भी छूने से पहले,कांपे है मन
मन का डर भागे!दीप इस आश से जलाया है ।।
एक युद्ध छिड़ चुका है मानवता के दुश्मन से
अदृश्य हैं दिखता नहीं इन सहमी निगाहों से
जीतेगे हम, अपनी धैर्य, संयम,चतुराई से
इनका हौसला बढे!दीप इस आश से जलाया है ।।
हम हैं घरों में बैठे पूर्ण बंदी का पालन करके
चलें हैं कई महान त्यागी,धरके जान हथेली पे
खाने-पीने की भूख नहीं,जीवन की सूध नहीं
उनकी दीर्घ आयू को!दीप इस आश से जलाया है ।।
सुमन आर्या
————-

एक दीप तेरे नाम की

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज जब मानव के बजूद पर बन आई है
फिर भी जाति-धर्म की ये कैसी लङाई है
गरीब देखे न अमीर ये वैश्विक महामारी है
मानव बनकर रहने में हम सब की भलाई है
मानव बनें!दीप इस आश से जलाई है ।।
आज अपनों से भी अछूत बन गए है हम
एक मीटर का फासला क्या लगता है कम
अब भी ना संभले तो कब संभलेगे हम
सद्बुद्धि दे !दीप इस आश जलायी है ।।
जब काम था तो वक्त की कमी थी
काम के चलते अपनों में दूरियां बनी थीं
आज समय है , पर काम की कमी है
दूरियां मिटें!दीप इस आश से जलाई है ।।
देखो ना अब ये कैसी तबाही है
एक दूजे से मिलने की मनाही है
कुछ भी छूने से पहले,कांपे है मन
मन का डर भागे!दीप इस आश से जलाई है ।।
एक युद्ध छिड़ चुका है मानवता के दुश्मन से
अदृश्य हैं दिखता नहीं इन सहमी निगाहों से
जीतेगे हम, अपनी धैर्य, संयम,चतुराई से
इनका हौसला बढे!दीप इस आश से जलाई है ।।
हम हैं घरों में बैठे पूर्ण बंदी का पालन करके
चलें हैं कई महान त्यागी,धरके जान हथेली पे
खाने-पीने की भूख नहीं,जीवन की सूध नहीं
उनकी दीर्घ आयु हो !दीप इस आश से जलाई है ।।
सुमन आर्या
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सफ़र

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सफ़र
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बंदिशो के आँगन में बुलन्दियो के आसमान तक
यह सफ़र है, तेरी बेचैनी से,तेरी पहचान तक
कहाँ थमी है,तेरी चुनौतियों की कंटीली डगर
मंजिल तो पाना है ही,चाहे जितना लम्बा हो सफ़र
सौन्दर्य,मातृत्व व बुद्धि के बल,खुद को साबित करना है
तप,त्याग,महानता की ही नहीं,
सफलता की गौरवगाथा बनना है
खुद को साबित कर,जाना है आसमान तक—–

सुमन आर्या

तीसरी नज़र

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की है कठोर डगर,बढने से पहले तू संवर
लक्ष्य हासिल करना है अगर,खोल ले तीसरी नजर।
मासूम तुम्हारा चित जितना
ये दुनिया उतनी मासूम नहीं
प्रश्न खङा होगा तुझ पे सरे शाम सुबह चारों पहर।
कुछ जन के चितवन ऐसे हैं
जिनके चेहरे पे कई चेहरे हैं
मंसा क्या है उनका ,कुछ सोच, थोङा सा ठहर।
पग- पग की बाधाओं से डट के करना सामना
देर सही अंधेर नहीं पूरी होगी तेरी साधना
विचलित मत हो नीलकंठ बन पी ले ज़हर
लक्ष्य को हासिल करना है अगर
खोल ले तू अपनी तीसरी नज़र ।

इतना चाहती हूँ

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना चाहती हूँ
इतना ना इतराया करो,बेरूखी में, ना दिन जाया करो
यूँ दूर ना मुझसे रहो,बुलाने से पहले आ जाया करो
क्यू खामोश हो या खुद में ही मदहोश हो
चुप हो ऐसे तुम जैसे मुझमें ही कोई दोष
यूँ ना रहो, खुलकर जो भी हो, बताया करो
इतना ना इतराया——
दिन हो या रात खुद में मशगूल हो
समय पे काम देने को सबमें मशहूर हो
मेरी भी पीङा ,यूँ ना मेरी बढाया करो
इतना ना इतराया——–
कभी-कभी मेरे किए गए कामों की
मेरे कपङो,मेरी कहीं गयी बातों की
मेरी,मेरी रचनाओ की अच्छाई बताया करो
इतना ना इतराया——-
नुक्श मुझमें निकाला करते हो रोजाना
दाल गाढ़ी नमक कम,कह कर देते हो बेगाना
कभी फीकी चाय को भी मीठा बताया करो
इतना ना इतराया———
सबमें अच्छाइया ढूंढा करते हो अकसर
तरफदारी करते हो उनकी चाहे आए हो थककर
कभी मेरी खामियां मुझसे भी मुझसे छिपाया करो
इतना ना इतराया———–
ख्याल रखते हो, घर में क्या है क्या नहीं
पूछते हो सबकी कौन आया, कौन आया नहीं
कभी मेरी इच्छाओं को भी समझ जाया करो
इतना ना इतराया————
हर बात को कहाँ कब कैसे बताया करूँ
अपने दर्द को,बता दो, कैसे छिपाया करूँ
कभी बताने से पहले खुद ही समझ जाया करो
इतना ना इतराया———

कोख का सौदा

July 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आने से पहले ही गैर जीवन का पुरौधा बन गया
जन्म से पहले ही जननी की कोख का सौदा हो गया

अंश किसी का,गर्भ किसी का ,किसी और गर्भ में प्रत्यारोपित
लोग कौन ,देश कौन सा,किनके बीच में, हाय!कैसा ये जीवन शापित
एक अनजाने को कैसे कोई अपनी ममता सौंप गया
जन्म से पहले ही ———-

कोख बना जब साधन माँ के पेट की क्षुधा मिटाने का
भूख प्यास ने किया कलंकित कैसे जीवन मानव का
देखते ही देखते बदतर कितनों का जीवन हो गया
जन्म से पहले ही———-

क्या मेहनतकश इन्सान नहीं हम,ऐसी क्या लाचारी है
अपने अंश का सौदा करके ग़ैरत को गाली दे डाली है
सशक्तिकरण के दौर मे, तेरी चेतना का क्या हो गया
जन्म से पहले ही————
सुमन आर्या

जागो हे भरतवंशी

July 4, 2020 in Poetry on Picture Contest

जागो हे भरतवंशी अलसाने की बेर नहीं ।
सहा सबकी साज़िशों को,करना है अब देर नहीं ।।
शालीनता की जिनको कदर नहीं,विष के दाँत छिपाये है
मौकापरस्त फितरत है जिनके,क्यू उनसे हम घबराये है
फ़ौलाद बन उत्तर दो इनको,पंचशील की बेर नहीं
जागो हे भरत——
सामने शत्रु है वो,वृतासुर सी प्रवृत्ति जिनकी रही है
हिन्द के सह से वीटो की छङी,जिनके हाथों में पङी है
दधीची बन, भेद उनको,बुद्ध की अभी दरकार नहीं
जागो हे भरत——-
चुपचाप तुम्हारी मनमानी को करते रहे स्वीकार जो
हिंद -चीन भाई-भाई कह,कर ना सके प्रतिकार जो
तेरी कायराना हरकतें सहने को, अब हम तैयार नहीं
जागो हे भरत ——
जो है उसीसे क्यू न अपना आशियाना सजाए हम
अमेरिका कभी रूस से,क्यू हथियार मंगवाए हम
सँवारे एकलव्य,रामानुज,आर्यभट्ट,नागार्जुन कलाम को,
इन जैसो की हिन्द में हङताल नहीं
जागो हे भरत——
चाणक्य को देंगे सम्मान नहीं चन्द्रगुप्त कहाँ से पाएंगे
चीन कभी रूस के आगे हथियार की आश लगाएँगे
द्रोण वशिष्ठ की परम्परा,रखी हमने बरकरार नहीं
जागो हे भरत ——-
पिछङते रहेगे, उपेक्षित रहेगी जबतक,पहली शिक्षिका
कैसे बढ़े,गर्भ में ही भक्षण कर,बन बैठे, हैं जो रक्षिका
ललक शिखर छूने की,
आधी आबादी की करते हैं सम्मान नहीं
जागो हे भरत ——-
सुमन आर्या
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