जान गयी

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखो ना, जिन्दगी
आज फिर मैं हार गयी
किसी और के लिए
फिर से गलत ठहरा दी गयी ।।
आज फिर मैं यह जान गयी
सच का साथ कोई नहीं देता,
मुक दर्शक बन, बस हर कोयी
अपनी फिराक में लगा होता
फितरत अच्छे से पहचान गयी ।।
जब तक उनकी चाहतो को पूरी करोगे
बस तभी तक, उनकी हँसी को तकोगे
एक इन्कार, सारी असलियत को बतला देती
उनकी छिपे स्वार्थों की झलक हमें दिखला देती
भ्रमर से निकले कैसे, अबूझ सबब डाल गयी ।।
अकेले भी खुद को कह नहीं सकती
कयी ज़िन्दगियाँ हैं, छोङ नहीं सकती
थक गयी हूँ इस मुकाम पर आते-आते
अब और इस तरह बढ भी नहीं सकती
कहाँ, किस कशमकश में कैसे फंस गयी ।।
काश! हालातों से समझौता हमने न किया होता
उलझनों को सुलझाने में आनाकानी न हुआ होता
नासूर सा यह जख्म,इतना गहरा भी न हुआ होता
खुश रहते तुम, मुझे भी इतना गिला न हुआ होता
टालते-टालते, सारा दर्द खुद पर डाल गयी ।।

वीर क्रांतिकारी की जयन्ती

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ॠणी आपके हैं हम सभी,
त्याग, तप, पौरूष की गाथा
भूलेगे ना कभी ।
28 सितम्बर, 1907 का
था वो पावन दिवस
बसंती चोला धारी, वीर क्रांतिकारी,
सेनानी भगतसिंह का पंजाब की ,
पावन धरा पर हुआ अवतरण,
इनके जन्म को हम
भूलेगे ना कभी।
इनकी जयन्ती पर
है इन्हें कोटि-कोटि नमन
जिनकी वीरता की गाथा से
परचित है नीला गगन
अभूतपूर्व साहस थी उनकी
भूलेंगे ना कभी ।
देशभक्ति के भावों के धनी,
अंग्रेजी हुकूमत से ना जिनकी बनी
“नौजवान भारत सभा”
की स्थापना कर, विद्रोह की बिगुल से
अंगेजो की मनसा भेद दी
सोये हुओ में अपनी गतिविधियों से
नवचेतना की बीज सीच दी
उनकी संजीदा कोशिशों को
भूलेगे ना कभी ।
साण्डर्स की हत्या कर
सशस्त्र क्रांति की आगाज़ की
असेम्बली में बम विस्फोट कर
भारतीयों में मर मिटने की
नव भावना की शुरुआत की
उनके अथक प्रयासों को
भूलेगे ना कभी ।
23 मार्च 1931 का
वह काला दिवस,
फाँसी पर चढ़, जिन्दगी
अपने वतन को दान दी
सीख दे गये हमें
मरकर भी करना हिफाज़त
अपने देश की आन की
उनके शौर्य की गाथा
भूलेंगे ना कभी ।

श्रद्धा सुमन अर्पित है वीर भगत सिंह को!

निश्चय

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज सवेरे ही मैने निश्चय किया
मन में शत्रुता संभाल अब न रखूगी
मेरे नज़र से जो भी मेरे दोषी हैं
उनके दोष मन से निकाल देखुगी ।
खुद को कलुषित करने वाले
अंध विचारों से मुँह मोङूगी
अपने ध्यान से हटा,
नासूर जख्मो को छोङूगी ।
पर अपने निश्चय पथ पर
क्या, कितनी दूर, कैसे बढ़ पाऊँगी
उन भरे जख्मो के निशां से
कैसे, कबतक, मुँह मोङूगी ।

समय रहते

September 28, 2020 in Other

हाँ कुछ लोगों को समय रहते ही ज्ञान आ जाए
अपनी क्षुधा की तृप्ति में, किसी और का चैन न उङाए

जुदा-जुदा

September 28, 2020 in Other

खुशी हो या गमी संग नहीं रहती सदा
एक-दूसरे से मिलकर भी रहती जुदा-ज़ुदा

अपनेमन में

September 28, 2020 in Other

खुद को संभाल पाते, इस लायक ही कहाँ छोङा है
कई अपनों ने ही, अपनेपन में, अपना बन, दिल तोङा है

पूछतीं सवाल

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लगता पूछती हो, बता माँ
कबतक बंदिशो में रहना होगा
कब खुलकर हंसना, बोलना
बेखौफ़ घर से निकलना होगा ।
कब मैं भी बेखौफ़, सुबह की सैर पर जाया करूँगी
दिन ढले भी निश्चिंतता से, मैं अकेले आया करूँगी।
मेरे स्वप्न कब उङान लेगें,
मेरे लिए भी द्वार, ऊँची शिक्षा के खुलेगे
कोटा, पटना, दिल्ली, जैसे शहर भी
कोई भी ना हमसे अछूता रहेंगे ।

बिटिया दिवस की ढेर सारी शुभकामनायें

बिटिया

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ की सबसे अच्छी सहेली
पिता की हर ज़रूरतों का ख़्याल
बिटिया के बिना सब अधूरा
इसके जैसा कहाँ कोई मिशाल ।
भाई की हर घङी हिमायत करने वाली
बात -बात में, ठुनक कर लङाई करने वाली
रूठकर फिर खुद-से खुद ही मान जाने वाली
कौन रखे हर छोटे-बड़े का ख्याल ।
ज़िद करती पर समझ कर मान भी जाती
कभी पापा की तो कभी माँ का पक्ष लेती
इसके रहने से ही आधा हो जाता भार
इसका स्थान कहाँ, है बङा सवाल ।
जन्म लेते ही किलकारियों से मोह लेती
पायल की झुनकियो से झकझोर देती
कंगनी की रूनझुन सन्नाटो को तोङ देती
काले टीके से सुशोभित, इसका भाल।

जज़्बातो के तूफान

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे इन आँखों में प्यार की एक बूंद नहीं
कभी इन में प्रेम का समन्दर उमङा था
खुद पर पछतावा करें
या खामोशी से भूल स्वीकार करें
इसी जद्दोजहद में,
मन में उमङते जज़्बातो के तूफा में
चीखती खामोशी पसरा था

पहले सा जहाँ लौटा दो

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मास्क-सेनेटाइजर से मुक्ति दिला दो
प्रभु फिर से वही हमारा जहाँ लौटा दो।

जहाँ खुलकर रह सकें,
खुली हवा में गमन कर सकें
गमगीन है इस धरा के वासी,
फिर से वही हंसी लौटा दो।

जहाँ छूने से पहले सोचें नहीं
एक-दूजे को मिलने से रोके नहीं
रास आए कैसे नजदीकिया,
जरा इसका पता बता दो।

संयम रखें

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेहतर भविष्य की चाह में,
खुद की असीम भावनाओं पर,
थोङा-सा संयम रखें ।
ख्वाहिश गगन को छूने की,
पाँव जमी पे टिकी रहे ।।

जीना भूल गये

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम क्या गये
हम तो जीना भूल गए ।
तेरा छाया था कैसा सरूर
तेरा होके था खुद पे गुरूर
सच झूठ की कालीमा से बाहर आया
हम प्यार पे विश्वास करना भूल गए
हाँ, हम तो जीना भूल गए ।

तुम नहीं थे

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोचो कैसे गुज़रे वे पल
जब घिरे थे कयी सवालों के घेरे
हर तरफ़ बस सुनाने वाले
जब साथ देने वाले तुम नहीं थे

प्रभु तुझ बिन

September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज किन रंगों से सजा होगा यह दिन
क़ोई पल न गुजरे प्रभु तुझ बिन
आज किन रंगों से सजा होगा यह दिन
क़ोई पल न गुजरे प्रभु तुझ बिन

त्राहि त्राहि कर रही तेरी धरा
खतरे में पङा ये सारा जहाँ
मनुज काल का ग्रास बन जा रहा
तू क्यू छिपा, बता बैठा कहाँ
कितने घर बिखर गए
कितने नन्हें बिलट गये
मानव घर तक सिमट गये
फिरभी संक्रमण से हैं जकड़े हुए

अब और हम जैसों से सहा जाता नहीं
भूखे पेट घर पे, चुपचाप रहा जाता नहीं
बाहर संक्रमण का कहर, बढ़ रहा घटता नहीं
क्या करें कैसे रहें समझ में आता नहीं

भूल जो हम सबसे हुई, उसे अब तो माफ कर
थक गए हैं मनुज, अब इनका तू संताप हर
संक्रमण, बेरोजगारी, कमी, भूख से पीड़ित है नर
इन सभी दु:ख-दर्द से, बसुन्धरा को मुक्त कर!!
!शुभ प्रभात!

उम्मीदों के बीज

September 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो आज अपनी तन्हा जिन्दगी को नया रूप देते हैं
सशंकित ह्रदय में फिर से नव उम्मीदों के बीज बोते हैं ।
रोज की भागदौड़, दोहरे कामों से मन है बेहाल
घर-बाहर की जिम्मेदारियां, फिर भी उठते सवाल
अब भी ठहरो, खुद को समझो, खुद को वक्त देते हैं
सशंकित ह्रदय में, फिर से उम्मीदों के बीज बोते हैं ।
वो बचपन के दिन, माटी के कच्चे सात घङकुल्ले
सात मिठाइयाँ, सतन्जा, सात रंगीले मिट्टी के खिलौने
उल्लास के पलों की तरह,जीवन को सातरंग देते हैं
सशंकित ह्रदय में फिर से उम्मीदों के बीज बोते हैं ।
घरेलू कपङो से बने अद्वितीय गुड्डे-गुड़िया का खेल
खेल-खेल में भी था कैसा वास्तविकता का अद्भुत मेल
खिलखिलाहटो के साथ फिर से नव संसार रचते हैं
सशंकित ह्रदय में फिर से उम्मीदों के बीज बोते हैं ।।

दूरियाँ

September 25, 2020 in Other

अधरों पर कभी आया तेरा नाम नहीं
नयनों में तेरा प्यार छलक आया
हमें चाह नहीं तुझे पाने की
दूरियाँ ही मुझे रास आया

अन्नदाता

September 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

समझ में बिलकुल नहीं आता
ये कैसी फितरत है इनकी
जहाँ देखा नफ़ा अपना
हाथ थाम ली उनकी ।
हल्ला मचा करके बस बात रखनी है
फिक्र कहाँ इनको, अपनी भेट भरनी है
हमारे धरतीपुत्र भटकते फिर रहे दर-दर
इन्हे तो बस अपने मन की करनी है ।
हमारे देश की धूरी “कृषि” जो कहलाती है
किसानों के बल पर ही, धरा खिलखिलाती है
उन किसानों की ये मजबूरियाँ कैसी
खुदकुशी करने को जो उकसाती है ।
कोई खुशी से कैसे खुदको लील जाएगा
कृषक क्यूँ भला खुद को आजमाएगा
विकास भला क्या उस मुल्क का हो पाएगा
जहाँ अन्नदाता ही जिन्दगी से हार जाएगा ।
कुछ नयी कोशिश इन्हें एकबार करने दो
नीति बना ऐसी, वाजिब हक तो मिलने दो
कृषि करके भी उन्हें खुद पे फक्र करने दो
सही मायने में,अन्नदाता को अधिकार मिलने दो।

आँखे बंद करके भी

September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत कोशिश की मैने
तुम से दूर जाने की
हर कोशिश जाया ही
जाती रही हरदम
तुम ही दिखाई देते हो,
आँखे बंद कर के भी ।
गजब का अहसास है तेरा
रह पाता नहीं दूर मन मेरा
दूर होओगे कैसे
समझ में बात यह अब आई
भूल पाएंगे कैसे
बसर है मन में तूने बसायी
खबर है तुम दूर हो मुझसे
फिर भी, तुम ही दिखाई देते हो
आँखे बंद कर के भी ।

बेजान कर गया वो

September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाना ही था उसको,चला ही गया वो,
जाते-जाते बेजान कर गया वो।।
जाने वाले को रोक पाया है कहाँ कोई
होता है वही जो, नसीब में सबके होई
जिन्दा हैं पर जान ले गया वो
जाते- जाते बेजान कर गया वो ।।
सबके जीवन में जोखिम भरा पङा है
कहाँ कब कोई, यहाँ सब दिन रहा है
फिर भी देखो हैरान कर गया वो
जाते-जाते बेजान कर गया वो ।।
वो कौन है धरा पे इतना नसीब वाला,
गमों से जिसका, कभी पङा नहीं हो पाला
बोध है पर, नादान कर गया वो
जाते-जाते बेजान कर गया वो ।।
थोड़ा सा मन मेरे, धीर अब तो धर ले
बङे धीर-वीर भी, यहाँ से गये अकेले
समझाये खुद को कैसे, अधीर कर गया वो
जाते-जाते बेजान कर गया वो ।।

मिलती-जुलती गाथा है

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है
बेटी का कुछ वर्षों का मैके से नाता है ।
हीना रचने से पहले थी अलहङ
अब चौका-चुल्हा बना भाग्य विधाता है
थोड़ी सी भूल, भूलवश हुई हमसे
माँ-बाप को कोशा जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दहेज़ की बोझ से दबे माँ-बाप
कहते चुप रहकर सह यह संताप
पगङी की लाज तुझे है रखना
गम खाकर तुम बस चुप रहना
समाज के डर से वे, कुछ कहा नहीं जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
दर्द सहा अब जाता नहीं, आता कोई संदेशा नहीं
मैके गये हुए अर्सा, उसपर व्यंगो की वर्षा,
दहेज़ की कमी हर-पल दिखलाया जाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।
अब और नहीं, उत्पीड़न यह, मै झेलूगी
इनकी फरमाइशो को ना, मैके में बोलूंगी
हर दर्द को ले साथ-साथ, मौत के संग खेलूँगी
ऐसे ही नहीं कोई मौत को गले लगाता है
हर घर की यह बस मिलती-जुलती गाथा है ।।

मजबूर खङी

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कयी प्रश्न है मानस पर उभरे
यहाँ दस्तूर भी हैं कैसे-कैसे
अपने भी हैं क्यूँ पराए जैसे
माँ-पापा ने भरपूर स्नेह दिया
फिर क्यों कर खुद से दूर किया
जन्म दिया, पालन पोषण करके
क्यू किसी और के हाथों सौंप दिया
यहाँ सभी हैं अनजाने,इनके मन में कैसे झांके
सबकी है उम्मीद बङी,नन्ही गुङिया मजबूर खङी

तुझसे

September 22, 2020 in Other

मेरी रैना की शुरुआत है तुझसे
इन नैनन की बरसात है तुझसे
तुम जो दो मीठे बोल भी दो
हर दर्द कबूल मुझे, जो मिले हैं तुझसे

हम शिक्षक हैं -01

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम शिक्षक हैं शिक्षा की लौ दिखलाते हैं
देश के नौनिहालो में उम्मीद की किरण जगाते हैं ।
समाज की प्रतिष्ठा हमसे है
हम भारत भाग्य विधाता हैं
मुल्क का मान बढ़ाने को,
हम ज्ञान का सुमन खिलाते हैं
देश के नौनिहालो में उम्मीद की किरण जगाते हैं ।।
सभ्य नागरिक गढ़ने को
नैतिकता का पाठ पढ़ाते आये हैं
किसी क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं
विश्व बंधुत्व का मार्ग दिखाते हैं
देश के नौनिहालो में उम्मीद की किरण जगाते हैं ।।

कुलदीपक

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे कुल का दीपक तुझसे छाया प्रकाश है
आया है तू जबसे आलोकित आकाश है ।
बहनों की तू आशा माता का लाल है
सबो की तू आशीष से चमका तेरा भाल है
सलामत रहें तू हम सबकी जान है
तुझसे दूर हम सबका जीना मुहाल है
करेगा कुल का नाम रौशन, हमें विश्वास है ।।
छल-प्रपंच से तू हमेशा बच के रहना
सत्य की जीत होगी, यह गाँठ बाँध लेना
खुद के बलबूते, तू हर कीर्तिमान रचना
मन्जिल दूर है, पर मुमकिन तलाश है ।।

सब पहले जैसा है

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ तेरी निश्छल ममता की, छाया नशा कुछ ऐसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें, हाँ सब पहले जैसा है
आज भी माँ की आँचल में उम्मीदों की मोती पाती हूँ
सुख की घङियो में उसकी दुआओं को देखा करती हूँ
लाचारी- बीमारी की बेला में उसको ही ढूँढा करती हूँ
आज भी मेरे चंचल मन में चाहत लङकपन जैसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें हाँ सब पहले जैसा है ।
आज भी तेरी हाथों की खुशबू अपने बालों में पाती हूँ
करके दो चोटी बेटी की, मै भी तुझ -सी बन जाती हूँ
पसीने से लथ-पथ जब गृहिणी का फर्ज निभाती हूँ
तुझे खुद में देख के माँ, थककर भी, खुद पे इतराती हूँ
माथे पे हल्दी, गालों पे आटे की निशानी तेरे जैसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें हाँ सब पहले जैसा है ।

प्रेम एक इबादत है

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी पर आख बंद कर एतवार मत करना
किसी से टूट- टूट कर प्यार मत करना।।
प्यार तो वो है जहाँ खोने का डर नहीं
यह वो इवादत है जहाँ पाने की चाहत नहीं
प्यार के नाम पर, इसका तिज़ारत मत करना
किसी पर आख बंद कर एतवार मत करना ।।
प्यार अहसास है जिसे सिर्फ महसूस करो
किसी नाम में बंधने को न मजबूर करो
इस प्यार को नाम भी मिल जाए तो
फिर चाहतो में टकरार हो जाए तो
यह नेमत्त है, इसे शर्मसार मत करना
किसी पे आख बंद कर एतवार मत करना ।।
प्यार है जो यकीन का समुन्दर बन जाए
तूफा में दूर होके भी संबल बन जाए
लहरों सी मचलने दो, खामोश मत करना
किसी पे आख बंद कर एतवार मत करना ।।

हिमाकत है

September 20, 2020 in Other

प्रेम हमारे लिए इबादत है
ईश्वर की दी हुई सबसे खूबसूरत इनायत है
प्रेम विश्वास का दूजा नाम है
विश्वास नहीं तो बस यह हिमाकत है

नैतिकता का संचार

September 20, 2020 in Other

सुबह सवेरे , आखोंदेखी घटना का है यह मंजर
अरूणोदय से पहले पहुँची,बच्चों की टोली चलकर
दौङ लगाते लगते थे, जैसे हो मंजिल पाने को तत्पर
स्वाबलम्बी बनने को आतुर, पर मर्यादा का नाम नहीं
अगल-बगल में कौन चल रहे, थोड़ा-सा भी ध्यान नहीं
अपशब्दो की झङी लगाते, कहाँ तनिक भी वे शर्माते
खो गये संस्कार कहाँ ,बची माचनवता आज कहाँ
क्या अपनी कथनी’ कुकरनी का उन्हें अंदाज कहाँ
एक यही आवाहन है, थोड़ा नौनिहालो पर ध्यान धरें
नैतिकता की शिक्षा का उनमें पहले संचार करें

कर प्रतिकार तू

September 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी तू जो चाह ले रच दे नव संसार तू
होने वाले अपमान का करती क्यूँ न प्रतिकार तू ।।
कभी दाव पे लगा दिया खुद तेरे ही परमेश्वर ने
मौन हुए सब देख रहे, बिलखते छोङ दिया हर अपने ने
तेरे चीरहरण के साक्षी बनने थे सब तैयार खङे
कान बंद थे जैसे उनके, कैसे सुन पाते चित्कार तेरे
सोंच हृदय कंपित है मेरा, कैसे वे भारतवंशी थे
निर्वस्त्र होती कुलवधू, कैसे देख रहे, अत्याचार तेरे
सत्य शपथ तेरा था, क्यूँ करती क्षमा अपराध तू
होने वाले अपराधों का करती क्यूँ न प्रतिकार तू ।।
आज भी दुर्योधन-दुशासन जैसे लोगों की कमी नहीं
कर्ण सरीखे रणकुवरे की विषैली वाणी थमी नहीं
देख रहे हैं ऐसे कितने, जैसे हम इन्सान हैं ही नहीं
पशु भी शरमा जाये, घिनौनी हरकतें थमी नहीं
बाहर कदम पङे कैसे, सराफत नहीं बची हो जैसे
इन सरफिरो से डरो नहीं, दुर्गा-चण्डी की अवतार तू
होने वाले अपराधों का करती क्यूँ नहीं प्रतिकार तू ।।

नियामत

September 19, 2020 in Other

खत्म होगा इन्तजार, स्वागत को कब होंगे तैयार
वह सुहाना पल जब कोरोना मुक्त होगा यह संसार
इस टूटन-घुटन पङी जिन्दगी से है सभी बेजार
बस फिर से हो रब की नियामत सुखमय हो संसार

इबादत

September 19, 2020 in Other

तस्लीम नहीं उनकी हिमाकत
हरहाल में करेंगे अपनी हिफाज़त
मुमानियत लगाए अपनी आकांक्षाओं पर
नहीं तो भूल बैठेगे हम भी अपनी सराफत
मकबूल नहीं तेरी अनैतिक मनाहट
मान दोगे तो करेंगे हम तेरी इबादत

क्यूँ करें

September 19, 2020 in Other

क्यूँ करें उनकी हिमायत
उद्धत रवैया जो अपनाए हुए हैं
खुद पे लगा पाते नहीं मुमानियत
बदस्तूर आतंक बन छाए हुए हैं

मक़बूल नहीं

September 19, 2020 in Other

रफ्ता-रफ्ता चलते-चलते
पहुँच गए हम किस मंजिल पे
बोध नहीं है, सुध-बुध खोके
मक़बूल नहीं,सब अर्पित करके

(मकबूल-सर्वप्रिय)

हँसना भूल गए

September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज अवसादो से जुङा है रिश्ता अपना
मुस्कुराना भूल गए, कहाँ होता है हंसना अपना
वो बात- बात पर रूठकर चुप होके बैठे रहना
थोड़ी- सी गुदगुदी पे खिलखिला के हंसना
गम की परछाई नहीं,इतरा के तितली-सा उङना
अब तो बस जिम्मेदारियों के बोझ तले दबना
मुस्कुराना भूल गए, कहाँ होता हंसना अपना ।

रवायत

September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर मुश्किल को चुनौती देने की हमारी रवायत है
हम नारी हैं, हर रिश्ता हमारे लिए एक इबादत है ।
हर नामुमकिन को मुमकिन बनाना अपनी आदत है
हर खुशी, स्वप्न की अनदेखी कमजोरी , शहादत है।

बधाई हो प्रधानमंत्रीजी

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप हमेशा सलामत रहें
अपना जन्मदिन मनाते रहे ।
आज वैश्विक मंच पे हमारे भारत को
गौरवपूर्ण स्थान दिलाया है आपने
एक उभरती शक्ति का अहसास,
अपनी एक अलग पहचान बनाने का
विश्वास हम सबो में जगाया है आपने
“एक भारत – श्रेष्ठ भारत” के स्वप्न को
सही मायने में चरितार्थ करते रहें,
आप हमेशा जन्मदिन मनाते रहें ।।
आज कयी समस्याओं से है घिरे
कोरोना का कहर से है सहमे हुए
रोजगार का कोई ठिकाना नहीं
खाने-पीने का कोई ठिकाना नहीं
गरीबी , बेरोजगारी, को भगाते हुए
“सबका साथ सबका विकास “की मुहिम
सही मायने में धरातल पर चलाते रहे
आप हमेशा जन्मदिन मनाते रहें ।।
जमी पर उतारें अपने अभियानों, सद्प्रयासो को
मुहतोड़ जबाब दे, कुमारग, कुदृष्टि रखने वालों को
हर जायज कोशिश शुरू की मुकम्मल हो आपकी
बुझा पाए आग जो लगी है पड़ोसियों के नाम की
सजग हो, डर को प्रश्रय न दे, कर्म पथ पर चलते रहें
जोखिमों का सामना कर, भारत की प्रतिष्ठा बढाते रहे
आप हमेशा जन्म दिन मनाते रहे ।।
नि:संदेह, युवाओं का भारत हमारा है ये
बेरोजगार, असंतोष की लहरों से भरा है ये
सभी चाहते हैं हर हाथ को, योग्य काम मिले
उनकी क्षमता को सही अर्थों में पहचान मिले
नव भारत के निर्माण में सभी जन सहभागी बनें

संग चलना है

September 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं कुछ और कहना है
आपके साथ चलना है ।।
स्थितियां अनुकूल हो न हो
सुख से मुलाकात हो ना हो
पर हर घङी, हर कदम
मेरे हमदम, न रुकना है
आपके साथ चलना है ।।
कोई भी लम्हा अब ऐसा न हो
ना दूर रहूँ, हालात कैसा भी हो
आप मेरे लिए जियो ना जियो
मुझे मेरे हमदम संग- संग रहना है
आपके साथ चलना है ।।
रहूँ जबतक, तीज का व्रत करती रहूँ
लाल रंग के दमक से सजती-संवरती रहूँ
चौथ के चाँद की पूजा , करती, निरखती रहूँ
मेहन्दी का रंग आलता के संग यूँ ही पहनना है
रूठते, अपना हक जताते,आपके संग चलना है ।।

तन्हा-तन्हा

September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल खाली-खाली क्यू है
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।
बिन कारन, क्यू बेचैनी का साया है
यह कैसा उलझन वाला पल आया है
उम्मीदों की किरण कहाँ अब,
घोर निराशाओं की काली छाया है
अपने भी अब बेगाना-सा भागे है,
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।
निन्द नहीं इन नयनों में, ख्वाब गये हैं दूर कहीं
मुस्कान कहाँ इन अधरों पे, आशाओं की गीत नहीं
जज़्बा कहाँ हासिल करने की अब,
शील बना यह तन मेरा, इस मन में है जज़्बात नहीं
ओझल पथ है मेरा, घोर अँधेरा आगे है ,
शाम भी क्यू तन्हा-तन्हा लागे है ।

रुकना है नहीं

September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम भी हैं मुश्किलों से, हारने वालों में से है नहीं
कोई भी चुनौती क्यू न आए, घबरायेगे हम तो नहीं
कैसा भी हो अनल, स्वर्ण जैसे जलता है नहीं
पर जबतक ना तपे वो, कुन्दन सा निखरता भी नहीं
किसी अवलम्बन की आश इस मन में है नहीं
हौसलों के पंख की उङान ये, हम हारने वालो में नहीं
जहाँ मैं न होऊ, हरगिज़ वो लम्हा आने वाला है नहीं
बोलियों में हो समाहित भाषा का रूप यूँ पाया है नहीं
मातृभाषा से राजभाषा का सफ़र, बस मंजिल है नहीं
दशकों से अनवरत चलके भी,रूप ‘राष्ट्रभाषा’पाया नहीं
संघर्ष लम्बा है यह मेरा, पर हताश होना, सीखा है नहीं
विश्व-संपर्क भाषा का दर्जा हासिल किए बिन रूकना है
नहीं ।

समझ न पाए

September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत ही कोशिश की,जरा हम भी बदले से जाएँ
पर कैसे अब तक यह मन, बात समझ न पाए ।
अपनों से दर्द मिले थे अकसर
शिकवा-शिकायत चलता ज्यादा- कमतर
अनजान भी कैसे चोट पहुँचाए, मन समझ न पाए ।
ना कोई रिश्ता, शत्रुता की ठौर कहाँ
बिन समझे ही, कैसा शोर यहाँ
सब एक हैं, काहे को पछताए, मन समझ न पाए ।
चन्द दिवस का साथ है अपना
यहाँ कहाँ हमको, इतिहास है रचना
बिन समझे ही क्यू बैर बढाय, मन समझ न पाए ।
दोष कयी मुझमें भी है, पर अनजाने में भूल गयी मैं
मिथ्या आरोप से आरोपित, गरिमा पद की विसर गयी मैं
खुद से खुद को कैसे वेधित कर, मन समझ न पाए ।

हिन्दी हमारी मातृभाषा

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एकता के सूत्र में विविधता को पिङोती, जनमानस की भाषा है जो
देवनागरी लिपि में गुथी हुई,अपनी राजभाषा रूप धर आई है जो।
हर जन के दिलों में उमंग सी बहती हुई
अभिलाषा सी हमारे मन में है बसती हुई
हर हिन्दुस्तानी के स्वाभिमान की है आधार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
अगर सम्मान इस जग में पाना है हमें
हिन्दी भाषी होने का अभिमान लाना होगा हमें
तरक्की के सफ़र में साथ निभाती है वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
हिन्दी हमारी मातृभाषा , गुमान है इसपे हमें
इसके ही बदौलत, पूरे करने हैं अरमान हमें
हर मन में जगे स्वप्न को करती है साकार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो। माँ की ममता सी आत्मियता की धार बहती है जिसमें
ममत्व का धर रूप , पर ढाल बन जो बसती है हममें
विविई रूपों में सुशोभित,सादगी की जीवंत प्रतिमान वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।

हौसला

September 14, 2020 in Other

इंसाफ की लङाई लङनी हो तो फिर कोरोना का क्या डर
मुस्कुरा के करेंगे हर मुश्किल का सामना, चाहे जिसका हो कहर

पतन

September 13, 2020 in Other

फांसी, एनकाउन्टर जैसी किसी भी सजा का
नौनिहालो को न रहा है अब डर
जब हो गया हो पतन नैतिक मूल्यों का
फिर कैसे हो आदर्शों का असर।

मृगमरीचिका

September 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चीखते चेहरों पर चीखने से क्या फायदा
सजा मिल जाने पर,
बेगुनाह साबित होने से भी क्या फायदा ।
इज्जत की नाम अपने ही मासूमो की हत्या
साथ देने के बदले आरोप लगाते हैं मिथ्या
मानवता के मूल्यों को खोने से क्या फायदा ।
जो दिखता है वैसा, अकसर होता नहीं
दूजो के लिए अपनों को ऐसे खोता नहीं
मृगतृष्णा के पीछे भागने से क्या फायदा ।

निश्छल

September 13, 2020 in Other

नदी नाम है अविरल बहती जलधारा की
त्याग, गतिमय, अवगुण-गुण का भेद मिटाने की
कश! हममें भी यह सब आ जाए
अपना चित भी तरनी से निश्छल हो जाएँ

घबराता कहाँ

September 13, 2020 in Other

तरू को आलस सताता कहाँ
सरिता को रुकना भाता कहाँ
पाने की जद हो जिन्हें
मुश्किलों से वो घबराता कहाँ ।

खुद पर एतवार करते हैं

September 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलिए एकबार फिर से,
खुद पर एतवार करते हैं ।
बहुत कर लिया गैरो से,
इसबार खुद से ही प्यार करते हैं ।।
बहुत किया भरोसा,
जो भरोसे के हरगिज़ काबिल नहीं थे,
खुद पर भरोसा
चलो अबकी बार करते हैं ।
वक्त के साथ चलने की
हर बार कोशिश की
वक्त को अपने साथ करने की
कोशिश इस बार करते हैं ।
वक़्त कैसा भी हो बीत ही जाता है
बीत गया जो कब लौट के आता है
बीते हुए कल की क्यू अफसोस मनाते हैं
खुद पे भरोसा करके, खुद को आजमाते हैं ।
ये जो आँसू हैं ,आखों में अकसर, कैसे तैर आते हैं
गम के साथी हैं, खुशियों में भी हमेशा साथ निभाते है
इनके ही जैसा बन के चलते हैं ।

अवनी हूँ मैं

September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अवनी हूँ मैं अंबर है तू ,
डूबू जो मैं संबल है तू ।
ये मन मेरा मन्दिर है जो
प्यारे प्रभु की मूरत है वो।
भटकू मैं क्यों इधर से उधर
मन में ही तो रहता है वो।
अकेली कहाँ क्यूँ डर मुझे
हरपल संग में रहता है वो।
अधूरी रहे क्यू ख्वाहिश मेरी
कहने से पहले पूर्ण करता है वो ।

मातृभाषा

September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विविधता में एकता के सूत्र को सहजता से पिङोती जो
संस्कृत की बेटी, विविध भाषाओं की सहचरी है वो।
माँ सी ममता जिसके हर वर्ण में समाहित है
फिरन्गी भी जिसे सीखने को ललायित हैं ।
जो भारती के माथे पे बिन्दी बन सुशोभित है
जन- जन की भाषा देवनागरी लिपि से विभूषित है ।
रस, अलंकार, जैसे आभूषण हैं जिसके,
विभिन्न रूपों में दिखते अंदाज जिसके ।
जिसकी पहली शिक्षा माँ के आँचल से मिलती
लोङियो में जिसकी अभिव्यक्ति, गोद में होती
प्रेम, वात्सल्य, ममत्व, आत्मीयता की परिभाषा है
कोई और नहीं, हर जन की प्रिय अपनी हिन्दी भाषा है

लाशों की सेज पर

September 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोची समझी चाल से, शायद जानबूझकर
पार्टियां वे कर रहे, विश्व को मौत में ढकेल कर।
जिस वुहान से इसकी शुरुआत हुई
इससे निजात की, तैयारी थी क्या कर रखी।
मास्क को दे तिलांजली, दुनिया का नुकसान कर
हजारों मासूम लोग जा रहे, काल का ग्रास बन ।
लाशों की सेज बिछा चैन वे अलाप रहे
लद्दाख पे आके, असलियत दिखा रहे ।
जब सब कोई सहमा सा, दुआ है कर रहा
तब वे अंधान्ध हो सीमा पर, चील सा मंडरा रहा।
जमीर जिनमें थी नहीं, जिनकी नियत भी खोटी है
औकात उनकी बताने को तैयार अपनी बोटी-बोटी है ।

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