बात बन ही जायेगी

December 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात बन ही जायेगी
इस सोंच के साथ
कदम बढ़ाते जा रहें हैं
नभ हमारा होगा कभी
इस उल्लास के संग
क्षितिज की ओर
कदम-दर-कदम
बढ़ते जा रहे हैं

महामना

December 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे महामानव महामना,
श्रद्धान्जली ज्ञापित है तुझको!
काशी हिन्दू विश्विद्यालय के प्रणेता
बहुआयामी प्रतीभा के धनी,
शत-शत नमन् है तुझको
तुझ जैसों से ही पुष्पित
हो मेरी प्यारी ज़मीं!
विराट व्यक्तित्व से सुशोभित
ओजस्वी वाणी से थे धनी
उनके द्वारा स्थापित मर्यादाओं को
पूरा करना है हमें यहीं!
स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं
महान् पंडित शिक्षाविद्
स्नेहिल आत्मीय मार्गदर्शन
पथप्रदर्शन कर रहीं!

निराशाओं का भंवर

December 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हौसला रखकर चलना होगा
परिस्थिति हमेशा इसतरह
कहाँ रह पाएगी ।
कबतक दर्द से नाता रहेगा
कहाँ तक निराशाओं का
यह भंवर सहमाएगी।
कठिनाई के ये दिन
जाते-जाते भी
सकारात्मकता की
सीख हमें दे जाएँगी ।
ये तकलीफ़े
जो वक्त से मिले हैं हमें
एक नयी सोंच से
परिचय मेरा करवायेगी ।
धीरज के ये तिनके
समेट कर रखें हैं हमने
आने वाले अच्छे दिनों की
जो नन्ही- सी आश जगायेगी ।

दु:खों से नाता

December 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दु:खो से उबरना क्या
इनसे तो जन्मों का नाता है
मीठा तो कभी-कभी
नमकीन साथ निभा जाता है ।
ज्यादा मीठा हो तो
मन जल्दी ही उब जाता है
नमकीन के बल पर ही
मीठा भी रास हमें आता है ।
सुख की घङियो में
इन्सान खुद को भूल जाता है
दु:ख की दारूण वेला ही
इंसान को औकात बता जाता है ।
मन में यह बेचैनी क्यूँ
क्यूँ मन जार-जार हो जाता है
दर्द का सैलाब क्यूँ
आँखो में अकसर उतर आता है ।
सुख की चाह नहीं
दु:ख से आह क्यूँ निकल आता है
अनहोनी के डर से
अंतर्मन भी कांप के रह जाता है ।

वो प्रीत कहाँ से लाऊं

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी की सरगम पर
गीत क्या मैं गाऊँ
तुम्ही अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
पतझङ सी वीरानी
छायी है जीवन में
ना कोई है ठिकाना
खुशी अटकी है अधर में
दो राहे पर खङी मैं
किस पथ पर मैं जाऊँ
तुम्हीं अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।
नज़र में जो छवि थी
कभी राधा मैं बनीं थीं
कान्हा की लगन मन में लगी थी
उसकी हंसी भी वैरन सी खङी थीं
विश्वास की डोर टूटी
दुनिया ही जैसे लूटी
झूठ के भँवर से कैसे निकल पाऊँ
तुम्हीं अब बता दो
वो प्रीत कहाँ से लाऊँ।

अटलजी

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी दूर दृष्टि से
भारत निखर कर
शिखर की ओर बढ़ चला है
आपका दिखाया सपना
साकार होने का समय है आने वाला।
महानता की प्रतिमूर्ति
भारत को महान बनाने का
उन्होंने प्रण लिया था
सबको चुनौती देकर
पोखरण परीक्षण कर, परमाणु दे डाला ।
बसुन्धैव कुटुंबकम् की
पुरानी नीति भारत की रही है
उसी नीति पर अटल की
सरकार चल रही थी
दिल्ली से लाहौर तक
मित्रता का पाठ सिखा डाला ।

श्रद्धान्जली

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपके चरण कमल में
करती हूँ श्रद्धांजली अर्पण
भारत माँ के प्रति
आपके प्रेम का
कर पाएगा
कौन वर्णन ।
जन्म दिवस है
वर मांगती हूँ मैं
मुझमें भी भाव हो
आपके जैसा
मन में हो मेरे
आपसा समर्पण ।
भारतीय जनसंघ को
नवरंग से भरकर
बिखरते दलों को
भाजपा का रूप देकर
दिखलाया निज दर्शन ।
रचयिता बने उस दल का
वतन को शिखर पर पहुँचाया
कभी कवि हृदय ने
मौत को भी चुनौती देके आया
वरणीय है आपका तर्पण ।

क्रिसमस आया

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नभ में उमंगो का गुलाल छाया
देखो ना, क्रिसमस आया ।
कोई अपना किसी से रूठे ना
कहीं किसी अपने का साथ छूटे ना
हर तरफ़ खुशियाँ हो, आश टूटे ना
अपना, अपनों का विश्वास लूटे ना
अपनी कमियों का अहसास आया
देखो ना, क्रिसमस आया ।
किसी की उदासी का, न सवब बन जाऊँ
न किसी का बुरा हो, भाव मन में मैं लाऊँ
आलस न करूँ काम हमेशा सबके आऊँ
जहाँ भी जाऊँ, बस खुशी की गीत मैं गाऊँ
फिर से उम्मीदों को पंख निकल के आया
देखो ना, क्रिसमस आया ।
फिर किसी महामारी का कहर कहीं बरसे ना
ना भय हो मन में,ना कोई मन दर्द से तङपे ना
माँ के आँचल को कोई लोभी भेद पाए ना
सीमा पे किसी बहन की राखी बिखर जाए ना
नवरंग लिए मन में आशाओं का प्रकास आया
देखो ना, क्रिसमस आया ।

अच्छे से जान लो

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सराफत है हमारी
मज़बूरी का मत नाम दो
जहाँ सिर्फ तुमसे चलता नहीं
यह अच्छे-से जान लो।।
हैं बहुत से लोग जिनका
तुमसे होगा पुराना वास्ता
उनकी चाहतें तुमसे जुङी हो
तुम तक जाता हो उनका रास्ता
पर मेरी मंजिल तुम नहीं
यह अच्छे-से जान लो।।
बहुत सारे लोग ऐसे
हमसे जुङी है दासताँ
उनके खातिर हूँ समर्पित
बस उन्हीं से अपना राब्ता
शेष अपनी ख्वाहिश नहीं
यह अच्छे-से जान लो।।

हक़दार क्यूँ नहीं

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार न सही
प्यार के बोल क्यूँ नहीं
चाँद अपना न सही
चाँदनी के हकदार क्यूँ नहीं ।।
दूर बहुत हो तुम
जिन्दगी में संग नहीं
साथ हो यह
कम अनमोल तो नहीं ।।

उन्हीं से मात खातें हैं

December 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्हें हम दिल में रखते हैं
उसे क्यूँ बता नहीं पाते
हमें स्नेह है कितना
कभी उनसे जता नहीं पाते ।
उम्मीदों के बीज मन में
पाल कर क्यूँ रखते
वजूद नहीं जिनका
उन्हीं से मात हैं खाते।
ख़बर खुद को भी नहीं रहती
मन किधर किस रास्ते पर हैं
भटकने की ख़बर जो हमें होती
ठोकर लगने से पहले ही संभल जाते ।
यह जहाँ हसीन लगती थी कभी हमको
कभी गजलों से अपनी भी पटती थी
पर शब्दों के मोती कहाँ खो से गये हैं
अकेले हम हैं अबतो, रच राग हैं पाते ।

बन निडर

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोङ न अपनी
लगन में कोई कसर
दुनिया देखती रह जाएं
मेहनत का असर,
साहसी बन तू
तू हो निडर
हाँ यू हीं हो तू
प्रगति पथ पर अग्रसर ।

कैसी वेबसी

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कैसी बेबसी है
नाराज़गी को ढो रहे हैं
अक्षमता को आकने के बदले
दूसरे की कमियों को गिन रहे हैं ।
ये दिन है कैसा
ना उम्मीदों का आसिया है
ख़्वाहिशों के जलने की
चुपचाप मातम मना रहे हैं ।
हर दुआ अपनी
जो कभी कबूल हो गयी थी
उन मन्नतो से ही
अपने अपनों से ज़ुदा हो रहें हैं ।
हर साँस में जिनकी
ख़ैरियत की ही दुआ आ रही थी
वही गैर से बनकर
इल्जामो की झङी लगा रहे हैं ।
किसको कहे अपना
अपना कहाँ अब है कोई
अपने ही इतर की
अभिनय, मन से निभा रहे हैं ।

बिटिया भयी परायी

December 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिटिया हुयी परायी
*************
ना तुम भूलोगे ना हम
हाँ, यह बंधन छूटे ना, मरते दम।
यह पावन वेला, अश्रुओं की इसमें जगह नहीं
नवरंग भरेंगे इसमें, निराशाओं की ठौर नहीं
हंसकर कर पदार्पण, दूर हुए हैं हम।
नवजीवन की नववेला, यही है जीवन का खेला
बचपन की गलियां छूटी, परदेश की है हर बेटी
कर सर्वस्व समर्पण, तेरे दर पर छूटे दम।
यह रीत किसने है बनायी, बिटिया क्यूँ है परायी
पाल-पोसकर इसको, अनजानों के संग धर आई
कर दिल का टुकड़ा अर्पण, हुई यह आँखे नम।

आया भी नहीं

December 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसे पाया भी नहीं
जो खोया भी नहीं
उसके होने ना होने का
संताप आया भी नहीं ।
न मन का कोई कोना
हुआ बगैर उनके सूना
पीङ न हुआ उनबिन दूना
पश्चाताप आया भी नहीं ।

आदत से मजबूर

December 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसा नहीं कि हम
तेरे करतूतों से अनजान हैं
पर शिकायत किससे करें
अपनी आदत से हम लाचार हैं ।
चाहते हैं बदल दे खुद को
जवाब दे हर बेअदली का
परेशा हैं समझा के खुद को
अपना ही अरि बनने को तैयार है ।
जनमो-जन्म तक संग चलने को
संग रह, हर तंज, हंस के सहने को
जीवन ही नहीं, जिन्दगी के बाद भी
साथ देने का वादा बेअंजाम है ।

सतरंगी यादों के संग

December 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सतरंगी यादों के संग
देखे रंग बिरंगे स्वप्न कयी
पावस के छाये में दिखा जो दिनकर
फिर से पली उम्मीद नयी

बदल पाते

December 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिन अगर बदल सकते
पुनः अपने बचपन में लौट पाते ।
फिर से पापा की नन्हीं परी बन
चार पैसे की नेमचुस खरीद लाते।
घर की चौखट पे बैठे,
बाट देखती चाचू की,
पटाखो के संग घरकुल्ला खरीद लाते।
धान के नेवारी तले, पिल्ले को रख
गभी उसकी भूख की चिंता
कभी ठंढ से बचाने का डर
भैया के संग मन से निकाल आते।
ना अपनों के
दूर जाने की फिक्र
मिले फिर वो लम्हा
जो हो दुनिया से इतर
पुनः विश्वास की ज्योत जगा पाते ।
अपनों का बदलना है भाता कहाँ
कुछ भी हो, वो हमसे दूर जाता कहाँ
कङवाहटे जिसने यह है घोली
दोष उसका नहीं जो बनती है भोली
यह टीस मिटा पाते कहाँ ।

तिमिर बढ़ती जा रही

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अवसाद के बादल घिरे
पर तुम न आये प्रिये
यह तिमिर बढ़ती जा रही
बुझे हर उजास के दिये ।
आक्रोश है या ग्लानि इसे नाम दू
कैसे खुद ही मौत का दामन थाम लूँ
मकबूल नहीं यह शर्त हमको
कयी मुमानियत जो हैं दिये ।

मझधार

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमें बस जीवंत बोध की दरकार है
नहीं मुझे खुद पर, हाँ तुझपर एतवार है
हम सजग प्राणी भले हैं
पर स्वार्थ से सना अपना प्यार है ।
स्वार्थ से रचा-बसा राब्ता
यह बस नाम है अनुराग का
राफ्ता-राफ्ता उधङती गयी धज्जियां
अवशेष खुद का अहंकार है ।
तादम्यता का दामन थाम के
समझौते के बल पर जो बसा
स्नेह का नामो-निशान नहीं
डर-डर के रहे फिर भी टकरार है ।
हर क़दम को फूक -फूक कर रखा
बढने से पहले खुद से कहा
कबतक यूँ सहते रहोगे
ले डूबा वही समझा जिसे
मझधार है ।

भ्रम का दामन

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सफलता और असफलता के
कयी पङाव देखे हैं हमने
हार और जीत के
कयी अनुभवों को जीये हैं हमने ।
फैसले लेने के मुकाम पर
साहस दिखाने का हौसला
सही निर्णय लेने की जद्दोजहद में
भ्रम का दामन थामा है हमने ।
मिली हार एक ग़लत फैसले से
उससे रूबरू होते आ रहे हैं
अपनी ही हार का
खुद ही जश्न मनाये हैं हमने ।
हतोत्साहित हुए
पर जिम्मेदारियों से भागे कहाँ
खुद से हार कर
तन्हायी का दामन थामा है हमने ।।

क्यूँ

December 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह जख्म कोई नया तो नहीं
फिर दर्द का अहसास
इतना गहरा क्यूँ ?
कयी सितम अपनों ने किये
पर उफ ना आज तक हमने किये
अबतलक जो बेधते लब्ज़
असर कर न सके
तेरे लव से सुनते ही
हम सह न सके
तुझसे मिले अलफाज
दे गया सदमा क्यूँ ?
पल-पल चोट मिलते रहे
शिकायतें करने की फितरत नहीं
कहने को बहुत कुछ हमको मिला
कुछ और पाऊँ ये हसरत नहीं
बढ़ते जा रहे कदम-दर-कदम
खत्म होता नहीं रास्ता क्यूँ ?

नन्ही

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी नन्ही परी
तू हमसब की खुशी ।
खुश रहना हमेशा
कहाँ कोई तेरे जैसा ।
हम सब हैं तुझसे मगन
है तेरी खुशियों की लगन।
तू निरन्तर आगे बढ़े हैं
सफलता तेरे आगे रहे ।
सही गलत की पहचान तू कर सके
तेरे कीर्तिमान से ये नभ झुक सके ।
तेरे जन्मदिन की बधाई
देने हम सब हैं आये
हम ही नहीं
ये सितारे भी हैं मुश्काये।
तू जुग-जुग जिये
हर बुलन्दी को छुएअ!

कृषक

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कृषि हमारे वतन की रीढ़
कृषकों के श्रम से कौम का पेट भरता है ।
पर इनकी उपेक्षाओ से
क्यूँ ना हमारे प्रतिनिधियो का दिल दहलता है ।
सङको पर इनका विरोध प्रदर्शन
अन्नदाताओ की समस्याओं का संकेत देता है ।
इनकी दयनीय स्थिति
हमारी लापरवाह नीतियों का आभास देता है ।
विश्वास जगाने की जगह
बलप्रयोग कर, नजरअंदाज तानाशाही का संकेत देता है ।

महापर्व

November 19, 2020 in Other

विविध आबम्बरो से दूर, श्रद्धा-आस्था से सरावोर
महापर्व है छट्ठ, जन-गण है उपासक, आराध्य है दिनकर!

सूर्य उपासना

November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम आधुनिक होते जा रहे
हमारी आस्था आज भी वही
हम उपासको के लिए
सूर्य परिक्रमण कर रहा
पृथ्वी है स्थिर।
दर्शाता रह पर्व
लोक-आस्था विज्ञान पर है भारी
सदियो से प्रारम्भिक रूप मे
सूर्य उपासना है जारी।
लोकगीतो मे चलते-चलते सविता
थककर अस्त हो गयी
पुनः उठकर अपनी स्वर्ण आभा से
प्रकाशित जग को कर रही।
सदिया गुजर गयी
कयी बदलाव आ गये है
पर आझ भी दिनकर को
लङुआ-पकवान भा रहे है।
देशी हस्त निर्मित वस्तुओ का
उपयोग कर रहे है
बास की है डलिया
पान-सुपारी,
फलो का भोग चढा रहे है।
दिखावो से दूर आडम्बरो की
इसमे कोयी जगह नही
सिर्फ श्रद्धा- सुमन से
दिनकर लुभा रहे।

खोते अपने

November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसे अपना मानते आये
हर बात पर,
नुक्श निकालने को आमदा ,
देखते ही देखते
ये कैसे बेगाना हुआ ।
दर्द जब हद से बढ़ा
दिल पर बोझ बढने लगा
बोझिल सा यह मन
अश्क पलकों को भिगोने लगा
देखते ही देखते
ये कैसे बेगाना हुआ ।

करूँ बस अपने मन का

November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर रीति रिवाज से परे
करूँ बस अपने मन का।
मन कहता मेरा
जो अपमानित करते
मेरे जननी जनक का ।
उनकी पहुँच से दूर
कहीं ले जाऊँ
करूँ बस अपने मन का।
कैसी खटास यहाँ घिर आई है
हर रिश्ते में दूरियाँ उभर आई है
उसमें मिठास घोल दू अपनेपन का
करूँ बस अपने मन का।
सहनशीलता तुम्हारा आभूषण
धीरता से सीचते आई घर- आँगन
खोते जा रही आपा अपना
दोष है उम्र के अंतिम पङाव का
करूँ बस अपने मन का।

आहट

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आकाश-सी फैली
ख़ामोशियों में भी
ये कैसी अनुगुंज फैली है
इन स्याह-सी वीरान रातों में
तेरे आने की आहट सुनाई देती है ।
तू नहीं फ़िर भी
यह इन्तज़ार क्यूँ है
तुझसे ही सारी शिकायतें
फ़िर तुझीसे इक़रार क्यूँ है
मन की यह डोर
खींची तेरे पास आती है
तेरे आने की आहट सुनाई देती है ।

ज़रा सोंच के

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़रा आंखो को नम रखना
सोंच के आगे बढ़ना ।
रंग बदलते चेहरे, ढंग से पढना
सोंच के आगे बढ़ना ।

धून्ध है चारों तरफ़

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

धून्ध है चारों तरफ़
रास्ते की खबर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।
फिक्र अब कहाँ
ये जहाँ मिलें
निन्द है कहाँ
जो स्वप्न नया खिले
बढ सकूँ जहाँ
कोई ऐसी डगर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।
कैसे धीर मैं धरूँ
ख़्वाहिश चूङ ऐसे हुयी
शीशे के गिरने से
बिखर के रह गयी
अपना किसी कहें
किसी पे दर्द का असर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।

सच कहूँ

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम उस मुकाम पर है
जहाँ जिम्मेदारियां
सर चढ़ बोलती हैं
काम के बोझ तले दबी जिन्दगी,
नयी चीजों को
सीखने की प्रवृत्ति उदासीन होती है
पर मेरी उत्कंठा
नित नयी चीजों को सीखने की
जानने की- तृष्णा जगाती है
कुछ अधूरे ख्वाब को
पुनः उङान देने को तत्पर रहतीं हैं
बचत से ज्यादा
ध्यान इस पर केन्द्रित रहता है
हर एक क्षण का
सदुपयोग कैसे करूँ
कैसे कुछ नया ज्ञान अर्जित करूँ
कुछ नया नये रूप में सृजित करूँ
फिक्र में दिन-रात
बेचैनी का आलम रहता है
किसी भी पल का व्यर्थ जाना
सच कहूँ-
बङा खटकता है ।

तोहमत

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

औरों की सुनते रहे,
मुझे अपना क्यू न मान सके
तोहमत लगाते, लगवाते रहे
मेरे दिल में क्यूँ न झांक सके

अपनापन

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक खुशी की तलाश में
जी रहे हैं कहीं
तेरे अपने पन की आश में
भटक रहे हैं कहीं

लोकतंत्र की जन्मस्थली

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोकतंत्र की जन्मस्थली,
लक्ष्वीगणतंत्र जहाँ थी बसी,
प्रलोभन नहीं जहाँ बस
काम, विकास, आत्मसम्मान की,
विजयगाथा पुनः सुनने को मिली।।
जहाँ फिर से कर्मयोगी की बयार
हर ग्राम, कस्बे, टोले से उठी
सारे अनुमान व्यर्थ, दावे सारे खोखले
मूक रहने वाली, आधी आबादी
निर्णायक भूमिका निर्वहन करतीं दिखीं
लोकतंत्र की जन्मस्थली
लक्ष्वीगणतंत्र जहाँ थी बसी।।
पाँच वर्षों के लिए फिर से
तुझे चुनकर, सत्ता पर बिठाये हैं
मत भूलना, प्रतिनिधि हो सिर्फ तुम हमारे
बिहार की शान बढ़ाने की, उम्मीद लगाए हैं
सच्चरित्रता हमारी, प्रलोभनो में न बिकी
लोकतंत्र की जन्मस्थली, लक्ष्वीगणतंत्र जहाँ थी बसी।।
सिर्फ पानी, बिजली, सङक से बात बनने वाली है नहीं
अनल पेट में लगी, खाली वादों से बुझने वाली नहीं
स्वाबलम्बी बनने की लगन, हममें है जगी
लोकतंत्र की जन्मस्थली, लक्ष्वीगणतंत्र जहाँ थीं बसी।।
एक-एक मत हमारा जब आपस में मिला
ध्वस्त होता आशियाना, देखो कैसा है खिला
देख लो दुनिया वालों, नारी शक्ति को पहचान लो
उजङो को बसाने की कला हममें, अच्छे से जान लो
पूरी करते जद हमेशा, हमने जो ठान ली
लोकतंत्र की जन्मस्थली, लक्ष्वीगणतंत्र जहाँ थीं बसी।।

इक़रार

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इक इन्तज़ार में रहे
कोई अपना हमें प्यार करें
हमें जाने समझें
हमसे हमारी अच्छाइयों का
इज़हार करें!
दुख से भागते रहे
सुख का दामन थामने चले
एक नयी खुशी की तलाश में
भागते दौङते फिरे
क्यूँ न खुद से खुद का
साक्षात्कार करें!
अहमियत को समझें
खुद पर भरोसा रखें
साहस के साथ जियें
सुरक्षित दायरे में रहे
श्रेष्ठता का खुद से
इक़रार करें!

अख्तियार

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गैरो पर राज की चाहत नहीं
बस खुद पर हो अख्तियार अपना
ख़ुद को हमेशा कमतर आके
औरोंको दिखावे की शौक न हो अपना

सोंच में बदलाव करें

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो एक नये कोने की तलाश करें
उदासियो को हटा, सोंच में बदलाव करें ।
खुद को नये सिरे से गढ़े
अबतक खुद के लिए जीते रहे
अपने लिए त्योहार मनाते चले
अब एक नयी परिभाषा बने
चलें औरों के स्वप्न लिए,
उदासियो को हटा, सोंच में बदलाव करें ।।
नकारात्मता जो पसरी हुई
वीरानगी कैसी है बनीं हुयी
मायूसी की करें रवानगी
मानवता के लिए हो दीवानगी
नयी सोंच नयी तरह से लिए
उदासियो को हटा, सोंच में बदलाव करें ।।
हर घर में खुशी खुशियाँ बसे
हर दिल उमगो से सजे
मौजों के संग चलें,
गम को ना डगर मिलें
नयी इच्छाओं को संग लिए
उदासियो को हटा, सोंच में बदलाव करें ।।

ख़्वाहिश

November 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू जो मेरी जिंदगी में आयी
मेरी जिंदगी जन्नत हुई ।
ख़्वाहिशे गगन को छू पायीं
पूरी मेरी अधूरी मन्नत हुई।
देखी जो तेरा मुखरा, छूने को जी चाहे
नाजुक तू है इतनी, छूने से क्यूँ घबराये
बर्फ की फुहारो मानिन्द, दाग न लग जाए
तूझपे है हक मेरा, पूरा हुआ जैसे सपना कोई
पूरी मेरी अधूरी मन्नत हुईं ।
कबसे इन्तज़ार था मुझको तेरी
बनेगी तू सबसे अच्छी सहेली मेरी
बोले न तू अभी पर सुन ले बातें मेरी
मिली हो जैसे, छूटी मेरी सहेली कोई
पूरी मेरी अधूरी मन्नत हुईं ।

अविलंब चले आओ

November 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब और नहीं कर देर
देखो फैला कैसा अंधेर
और नहीं भटकाओ
अविलंब चले आओ ।
उम्मीद की कोई पून्ज नहीं
डगर कहाँ, जहाँ तेरी गुन्ज नहीं
विश्वास की डोर बढ़ा जाओ
अविलंब चले आओ ।
तेरा-मेरा कोई ताल्लुकात नहीं
भा जाऊँ, वो मुझमें बात नहीं
चाह मेरे इस हारे मन की
उम्मीद की किरण बन जाओ
अविलंब चले आओ ।

ज़रा सी देर क्या हुयी

October 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़रा सी देर क्या हुयी
तुम यूँ ख़फा हुए ।
ज़रा सी बात पर
बस यूँ ही चल दिए।
जरा सी देर क्या हुयी
नज़र यूँ फिरा लिए
जैसे हम नहीं कोई
जहाँ अलग बसा लिए ।
रूठना ही तो था,
एक बहाने की तलाश थी
ख़बर थी कहाँ तुझे
मैं कितनी हताश थी
पूछा भी नहीं
नयी महफ़िल सजा लिए।

बहुत बहुत मुबारक

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू रहे सलामत
तुझे जन्म दिन
बहुत- बहुत मुबारक !
हर छोटी-बङी
अनन्य उम्मीदों से भरी
सतरंगी स्वप्नों से सजी
पूरी हो चाहत
तुझे जन्म दिन
बहुत-बहुत मुबारक!
तेरी ख्वाहिश,
परवान चढ़े
तुझे मुकम्मल,
जहाँन मिले
तेरे अधरों पर
हो मीठी-सी मुस्कुराहट
तुझे जन्म दिन
बहुत-बहुत मुबारक !

कुछ मिले इस तरह

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जैसे धरा कभी गगन से
मिलके भी मिल पायी नहीं
हम तुम भी, मिले कुछ इस तरह ।
जैसे वन में तृष्णा से व्याकुल
ढूँढती, भटकती, फिरती मृग
मेरी भी मृगमरीचिका कुछ इस तरह
हम तुम भी, मिले कुछ इस तरह ।
खुश होते हैं अकसर,
क्षितिज की ओर देख कर
नभ देखो इठला रहा
मदमस्त है भू को चूमकर
यह भ्रम पलता जिस तरह
हम तुम भी, मिले कुछ इस तरह ।
दुख का इम्तिहां देते रह गये
हर दर्द को सहके रह गये
स्वाति के बूँद की
पपीहे को चाहत जिस तरह
हम तुम भी, मिलें कुछ इस तरह ।

बिटिया हो मेरी

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक हसरत
कुछ करूँ ऐसा
गर्व हो सभी अपने ही नहीं, ग़ैरों को भी
अर्ज करें, हे मालिक!
हर घर में जन्म ले, ऐसी ही, बिटिया हो मेरी !
हर जन में पनपे, बेटी की ख्वाहिश
लालसा सिर्फ हो बेटे की नहीं,
कुल के नाम रौशन की
जिम्मेदारी सिर्फ किसी एक पर नहीं
घर-परिवार सब कहें, ऐसी ही बिटिया हो मेरी !
हमने बेटी जने, पर वेबस लाचार हैं नहीं
दहेज़ के नाम पर, दालान मंडी बने नहीं
शादी-विवाह में कहीं, कभी तिज़ारत हो नहीं
किसी पिता की पगङी, किसी के पैरों तले हो नहीं
शान से चलें, गर्व से कहें, ऐसी ही बिटिया हो मेरी !
हर सुता रूप-गुण-ज्ञान से परिपूर्ण हो
स्वाभिमानी ही नहीं, स्वाबलम्बन से पूर्ण हो
वह बाज़ार में सजायी गयीं, सामग्री नहीं
उसे देख परख कर, कोई छोङ जाए नहीं
इन्कार की क़ाबलियत रखे, ऐसी ही बिटिया हो मेरी !

नुमाइंदे

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिहार की विडंबना
गरीबी की वज़ह से
जहाँ की जनता
सङको पर निकल पङी
वहाँ के 153 करोङ,
नुमाइंदे धनाढ्य अथाह धन
53 करोङ की मिल्कियत
के मालिक हैं ।
ये धनाढ्य क्या समझेंगे
दर्द उन गरीब भूखों के
उत्पीडित, बाढ़ से पीङित
नक्सली हिंसा की जद में जीते
भूखे-नंगे, प्यासा, बिलबिलाते
जन- गण की।

इन्तज़ार

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहाँ कभी ऐसा किसी ने सोंचा था
एक पीङित, शव से विस्तर साझा करेगा।
यह प्रकृति का कहर, या बढती आवादी की लहर
जिन्दगी और मौत, जैसे संग-संग, गयी हो ठहर।
एक तरफ शान्त, बिना हलचल किए
बंद, निश्चिंत पङी, रूकी किसी अपने के इन्तज़ार में ,
आ कर, कर दे शायद, मेरा अंतिम संस्कार
दूसरी तरफ़, डर-दर्द से पीङित, सहमी बंद पलक
शान्त, पर मन में छटपटाहट लिए
आए कोई अपना, मुझे राहत दिलाए
इस जा चुके, मेहमान के आगोश से, बाहर निकाल
संक्रमण मुक्त होने के इन्तज़ार में ,
दोनों दो लोक के निवासी,
संग-संग पङे, पहर-दर-पहर।

शुमार

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आदतों में कहाँ ये शुमार है
अपनों के लिए जगह नहीं
बस औरों के लिए प्यार है ।
आपकी अदा है
आपका अपना यह सारा जहाँ
बस गैरो की खातिर
अपने से ही टकरार है ।

रस्साकशी

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे और मेरे रस्साकशी में
पीस कर रह गये अरमान हमारे
तुम भी अपनी मर्जी के मालिक
समझे न जज़्बात हमारे ।
पर अब और नहीं
खुद पर गैर को हावी होने देंगे
अपने हक पर किसी और को
न शामिल होने देंगे ।

टीस

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सवाल और गम के थपेडों के बीच
पिसकर रह गये मेरे रूह और जिस्म
समझने की कोशिश में, समझते- समझते
सारी ख्वाहिश स्वाहा, बस मन में अवशेष है टीस

हिकारत

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी हिकारत
गहरे पङे जख्म को
हरा-हरा कर जाते हैं
उपेक्षित किसी और के ख़ातिर
मेरे रूह तक को वेध जाते हैं ।

New Report

Close