उजास

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब संभव हो यदि
हम पूरे मन से चाह ले
क्या नहीं बस में है अपना
जो खुद की क्षमता जान ले
राह निकल ही आए,
घनघोर अंधेरे में भी,
जो उम्मीद का दामन थाम ले ।
जीजिविषा जगाये मन में
कुछ ऐसा करतें जायें
थके नहीं अब कभी भी
यूँ उम्मीद की उजास जगाये
भटक ना पायें अब हम
चलो ईश्वर का दामन थाम ले ।

जीवन दायिनी

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे माँ! तू जीवनदायिनी ।
तू है माँ इस जग की माता,
तेरी ममता हर कोई पाता
तुमसे है हमसब का नाता
पुत्र कुपुत्र सुने हैं भव में
पर तू तो है वरदायिनी,
हे माँ! तू जीवनदायिनी ।
तू तो है सौम्यता की मूरत
निष्ठुरता कहाँ तेरी फ़ितरत
करूणा वरसाती तेरी सूरत
तेरी महिमा अंकित थल-नभ में
तू तो है करूणामयी कल्याणी,
हे माँ! तू जीवनदायिनी ।
मानवता की तू निर्मात्री
पर यह कैसा संकट है मात्री
तेरे रहते बिलखे क्यू धात्री
डर एक बैठा हर मानव मन में
पीङ मिटा, हे विघ्नविनाशिनी,
हे माँ! तू जीवनदायिनी ।

याद का दीपक

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ ऐसे भी लम्हे जीवन के
जिनके याद का दीपक जलता है
घोर तिमिर की खायी में
जो प्रकाश बन राह दिखाता है ।
मन बोझिल हो जब जाता है
नहीं पास नजर कुछ आता है
ऐसे निराशाओं की बेला में
जिनके याद का दीपक जलता है ।

करूणा बरसा जाओ

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर हर महादेव
अब संघार बहुत हुआ
थोङी सी करूणा बरसा जाओ।
कहलाते हो औघरदानी
तुम सन भला कौन विज्ञानी
इस व्याधी से, हर परेशानी से
मानवता को निजात दिला जाओ ।
देख तेरे सुत बिलट रहे हैं
कण-कण को वे तरस रहे हैं
जीजिविषा है जीने की पर
मौत के मुँह में सरक रहे हैं
निराधार हैं, आधार दिला जाओ
थोङी सी करूणा बरसा जाओ।

निर्णय तुम्हारा

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दूर रहकर जीवन यापन करने का
फैसला तुम्हारा था
मैंने तो बस साथ निभाया,
सम्मान किया, जो एकतरफा
निर्णय तुम्हारा था।
ये खामोशी
जो घर बना ली है
हम दोनों के दरमियां
इसकी बहाली भी तुम्हारी है
मुझे ये भी अजीज है
तोफा दिया तुम्हारा था।
तेरी छोटी सी भी ख्वाहिश को
सहेज के रखना,
ये खुबियाँ हमारी है
कही गयी कङवी बातों को
विस्मृत कर देना,
ये तेरी नज़ाकत है
रिश्तों के हुए हैं जो तार-तार
ये उत्तमता तुम्हारा है ।

बताओ तब तुम कहाँ थे

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब मुझे कयी
सवालों के घेरे में
रखा जा रहा था,
जिनका क़ोई वजूद नहीं
आते जाते अंगुली उठा रहे थें
बताओ तब तुम कहाँ थे।।
जब मुझे सबसे ज्यादा
जरूरत थी तेरी
छाँव में भी थी
सिर पर धूप घनेरी
पग-पग पर,
पङे थे जब चुनौती
समाज के पैमाने पर
थी उतरने की कसौटी
बताओ तब तुम कहाँ थे।।

पहचान बताते रहना

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो दिखता नहीं
पर हर घङी
अपने होने का आभास
हमें कराता है ।
जैसे ही गर्वित हो
बहकने को होते हैं
एक हल्की सी चोट दे
रास्ता बताता है ।
इसी तरह करूणा की
ज्योत जगाए रखना
हे प्रभु! भटकने से पहले
सही की पहचान बताते रहना!

अजन्मे भ्रुण की व्यथा

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी अभिलाषा को थोड़ा-सा उङान दे दो
हे तात! मुझे मेरी पहचान दे दो
कबतक भटकती रहेगी मेरी आत्मा
यूँ करते रहोगे, कहाँ तक मेरा खात्मा
मुझको मेरा, खोया मुकाम दे दो
मेरे हौसलों को थोड़ा-सा उङान दे दो ।
तुझको जना, वो भी किसी की कली थी
जिसने राखी बांधा, तेरे लिए वो भी भली थी
तेरी भार्या भी किसी तात की परी थी
बता फिर मेरी क्या खता, एक एहसान दे दो
मेरे हौसलों को थोड़ा उङान दे दो ।
जब मैं चलुगी चहकेगा अंगना तेरा
गुलज़ार होगा जब खनकेगा कंगना मेरा
चुका दूंगी मोल इस जीवन का मैं
मेरी जिंदगी मुझे ही उधार दे दो
मेरे हौसलों को थोड़ा उङान दे दो ।
जाने से पहले दधी साग लाने कहूँगी
आते ही पानी, चाय लेकर दौङुगी
तेरे कहने से पहले सारा कुछ करूँगी
बस एक बार इस जहाँ का दीदार दे दो
मेरे हौसलों को थोड़ा उङान दे दो ।
मेरे जन्म से क्या परेशानी होगी
मेरी किलकारी से क्या हैरानी होगी
कुछ ऐसा जिऊँगी, नाम रौशन करूँगी
बस थोड़ी सी जमी, थोड़ा आसमान दे दो
मेरे हौसलों को थोड़ा उङान दे दो ।।

अहम् का फासला

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अलफाजो का अहम् किरदार रहा
हमारी नजदीकियाँ मिटाने में
कभी हम कभी अतःम
नासमझ बन बैठे
दूरियाँ बढाने में ।
ना मेरी कोशिश रही
तुझे मनाने की
ना तुम मुझे
विश्वास दिला पाये
एक मद् का फासला रहा
एक- दूसरे को समझाने में ।

कुछ रातें ऐसी होती हैं

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ रातें ऐसी होती हैं
जो कयी नये स्वप्न दिखाती हैं
जिन्हें पाने की मन में
जीजिविषा जगाती हैं ।
कुछ रातें ऐसी भी होती हैं
एक अपूरणीय क्षति कर जाती हैं
जिसकी वेदना से उठती टीस
हर रात जगाती हैं ।

लोकनायक

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शत-शत नमन उस जन-नायक को
लोकनायक से जाने जाते थे
भारत-रत्न से सम्मानित,
इंदिरा विरोधी कहलाते थे ।
आज जन्म दिवस है उनका
हम नतमस्तक हो जाते हैं
विमल प्रसाद जिन्हें
“मानव पिता” कह जाते हैं ।
सितावदियरा की वह पावन भूमि
जहाँ जे.पी . का चेतनत्व हुआ
प्रभादेवी के संग, दाम्पत्य का श्रीगणेश हुआ
पर घर तक कहाँ वे सीमित रह पाते हैं
भारत-रत्न से सम्मानित, इन्दिरा विरोधी कहलाते हैं ।
आजादी के संघर्षों में सक्रिय होकर
कांग्रेस समाजवादी पार्टी का निर्माण किया
जन-आनंदोलन से समाजवाद का विचार दिया
“समाजवाद क्यूँ” की रचना कर,
पुनर्निर्माण सिद्धांत के रचयिता बन जाते हैं
भारत-रत्न से सम्मानित, इन्दिरा विरोधी कहलाते हैं ।
धर्म के नाम पर फूट डालो की नीति जब चलती थी
हमारे मतभेदों के बल पर अंग्रेज़ों की रोटी बनती थी
राष्ट्रवाद की अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता का आधार दे
जाते हैं
भारत-रत्न से सम्मानित, इन्दिरा विरोधी कहलाते हैं ।
मानव पशु बन पाए, जो उसकी की हर भौतिक आवश्यकता पूरी हो,
नैतिकता को साथ बस उतना ही, जो जीवन की खातिर जरूरी हो
नैतिक मूल्यों को अपनाकर, आदर्शों का प्रतिष्ठान कर जाते हैं
भारत-रत्न से सम्मानित, इन्दिरा विरोधी कहलाते हैं ।
सदियों से सुसुप्त भारत में, पुनः जन संघर्ष प्रारम्भ किया
देश की तन्द्रा जाग्रति करने को नवक्रान्ति का संचार किया
नव भारत की रचना हेतु ” संपूर्ण क्रांति ” मंत्र दे जाते हैं
भारत-रत्न से सम्मानित, इन्दिरा विरोधी कहलाते हैं ।

अगर मालूम होता

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हें खोने का डर
एक अनजाने,अनचाहे
मुकाम तक पहुंचाएगा
खुद को वही रोक लेती
अगर मालूम होता
हस्र न होता यह अपना ।
नीचे गिर कर संभलना
सीखा था हमने
खुद की नजरों से गिरकर
न आया संवरना
अगर मालूम होता
हस्र न होता यह अपना ।
तमाम अकुलाहटे झकझोरती
खुद से तर्क-वितर्क कर निचोड़ती
आपसी द्वेष को करें दरकिनार
द्वैत का भाव फिर से है तैयार
अगर मालूम होता
हस्र न होता यह अपना ।

मैं हूँ बेटियाँ

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं हूँ बेटियाँ, मुझे सभी अपनों का, थोङा नहीं पूरा दुलार चाहिए,
अपनी चाहतो को रंग देन, उमंगो के संग, उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
किसी की बुरी नियत का फल, मुझे न मिले, पूरी गरिमा से जीवन का अधिकार चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
मेरी सुन्दरता नहीं, मेरे सद्गुणों का आकलन हो, देखती
आँखो में कामुकता नहीं, स्नेह की बौछार चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
बाज़ार की कोई उपस्कर नहीं, देखकर छोङे नहीं, थोड़ा-सा हक, इन्कार का चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
मुझे देख भाई सोंचे नहीं, दहेज़ उसके लिये जुटाऊ कहीं, बोझ समझे नहीं, मन में सम्मान चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
मुझे बढते हुए देख, तात के चेहरे पर सिकन नहीं, वर
ढूँढते जूते न घिसे, मुझे मेरा मुकाम चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।
जलील होना न पङे, कभी तात-मात को, निन्दिया न उङे उनकी रात को, खामोशी नहीं, मुस्कान चाहिए,
मुझे भी उङने को पूरा आसमान चाहिए ।

पुरसुकून की तलाश में

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नित नए विवादों से तंग आकर
क्या निकल पङू परसकून की तलाश में ।
काश कोई करी मिल जाए करार की
दस्तखत कर सकें, हर उस मसौदे पर
जिसपर सुकून का,आखिरी इकरारनामा अंकित हो
अदला-बदली करें अंतर्मन के द्वंद से,
क्या मैं निकल पङू, अक्षुण्ण शान्ति की तलाश में भी।
संजीदगी लिए कोशिशें, क्या मुकाम को पाएगी
धीर हुए मन में,फिर वे स्वप्न क्या सजीव हो पाएंगे
बेखौफ़,पूरी गरीमा के साथ,
अपनी क्षमता को आकार देने
क्या मैं निकल पङू, एक पुरसुकून की तलाश में ।

भूल गयी खुद को

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बनी बनायी राहों पर चलते-चलते
भूल गयी खुद को, औरों की सुनते-सुनते ।
ज़मीर जिसकी गवाही न दे, क्यूँ बढे अबूझ चिन्हों पर
अच्छी बनकर, खुद से लङकर, सह गयी डरते-डरते ।
अपमान का विष, कब तक पान करूँ
कब तक मूक-चीख से प्रतिकार करूँ
थक गयी, संघर्ष की घङियो से, रार करते-करते ।
खुद को कैसे मशगूल रखू, कबतक आखिर धीर धरूँ
रोजमर्रा की बात है ये,आखिर कैसे वहन यह पीङ करूँ
बिखरी आशाओं की लङियाँ, टूट गये सब सहते-सहते ।।

सब अच्छा होगा

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब तो यह विश्वास भी
साथ छोङ रहा
“सब अच्छा होगा ”
नाउम्मीदी के तिमिर में
अब हर उम्मीद भभक रहा
क्या पता आगे कौन- सा
भरम पलेगा ।

रोता हुआ देख

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे रोता हुआ देख
शायद तुझे सकूँन मिले
मेरे इन आँसूओ की
बहती धारा में
तेरी रूसवायी का खू मिले ।

कुछ नया तो नहीं

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तिल-तिल के जलना,
मिलना -बिछङना
कुछ नया तो नहीं
रोज की बात है ।
जैसे दिनकर का जाना,
संध्या का मुस्काना,
गगन धरा के मिलन का भरम
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।
हर सुबह नयी
उम्मीदें जगाना
रात को, सुनहले पलों के
ख्वाब सजाना
फिर दैनिक क्रियाकलापों में
बिखर कर रह जाना
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।
थोङी- सी और लगन
मन्जिल तक पहुँचाती,
कुछ ख़ास ख़्वाहिशों की,
हर दिन की अनदेखी
असफलता दिलाती
बगैर ईमानदार कोशिश की ही
सफलता पाने की चाहत
कुछ नया तो नहीं
रोज़ की बात है ।

शुरूआत कैसे करें

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हीं बताओ कैसे
एक नयी शुरुआत करें,
तुझे जानकर भी
फिर से तुझपर
कैसे इन्तिखाब करें ।
जिनकी फितरत
रही हैंअकसर
ताश के पत्तों की तरह,
जिनकी बातें
जल में उठते
बुलबुले की तरह ,
फिर बताओ तुम्हीं
कैसे पहले-सी बात करें ।
टूटे हुए धागों को
पहले-सी आकृति
देने की कोशिश,
पूरी तरह साकार
क्या, कभी हो पाई है
गहरे घावों के
दर्द की भरपाई
कहाँ हो पाई है
जाते-जाते भी
छोङे निशानों से
बताओ मुलाकात कैसे करें
एक नयी शुरुआत कैसे करें ।

आत्मसाक्षात्कार

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इक दृढ़ संकल्प के साथ
करते हैं इक नयी शुरुआत ।
संकल्प लेना और उसपर
अमल करने को तत्पर रहना
फिर देखो होती है कैसे
खुशियों की बरसात ।
सफल होना ही है
इस दृढ़ निश्चय को
करना है आत्मसात ।
पहले खुद को तौलते हैं
देखादेखी में क्यूँ भागते हैं
चलो पहले करले
खुद का आत्मसाक्षात्कार ।

रात भर

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमेशा
रात-सी खामोशी लिए
एक अजीब सी वेचैनी से
घिरी- घिरी रहती हूँ ।
निशा हो या दिवस
खुद में ही सिमटी,
सूर्य की किरणों से
कहाँ मिला करती हूँ ।

वो एहसास हो

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम वो एहसास हो
जिसे सोंचकर
मन-मस्तिष्क में
आतंक सा जाता है ।
तुझे सोंच कर
इन नयनों में
आँसूओ का सैलाब
उमङ आता है ।

करने वाला धुआँ हैं

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वतन पे मर- मिटने वालों का
हस्र क्यूँ ये हुआ है
रौशनी तो पा लिए हम
पर करने वाले धुआँ हैं
हर जवान हिन्द का
यह सवाल कर रहा है ?

तसलीम

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यूँ हम कृतघ्न ऐसे, मूढ़ बने पङे हैं
एक वीरान्गना के कृत्यों को भूल बैठे हैं
कोई तो होता, थोङा सा भी तस्कीन देता
उनके साथ खङा हो उन्हे तसलीम देता ।

तस्कीन- ढाढस
तसलीम- अभिवादन

अपना किसे कहे

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंग्रेजी हुकूमत को चकमा दी
सेनानियों को बचाने खातिर
पति शहीदों में शामिल
बम बनाने खातिर
घर-वार कर निछावर
जेल में पङी थी
बाहर आकर, अपना कहे किसे वो
अकेले ही जद्दोजहद में पङी थी

गुमनाम मौत, इन्तिसाब करने वालों की

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने जीवन के अमूल्य पल, दुर्गा वोहरा
सूवा की सुश्रुषा में, इन्तिसाब कर
मुमानियत को तोङ, मुल्क के हिफाज़त मे
रही जो तत्पर, मिली क्यूँ उन्हें गुमनाम मौत?

शत शत नमन

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पिता बाँके बिहारी इलाहाबाद में नाजीर थे
महारानी विक्टोरिया की आस्था में लीन थे
ससुर “राय साहब” उपाधि से दे मण्डित
आसपास के सभी ब्रिटिशों में आसक्त थे
ऐसी ही आव-ओ-हवा में, दुर्गा के हौसले बुलंद थे

दुर्गा भाभी – 02

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनगिनत वर्ज़नाओ की बंदिशो में, नारी जकङी हुई थी
क्रांति की अलख जगाने,धधकती विद्रोह में कुद पङीथी
मुखबिर, कभी भार्या बन, वतन का कर्ज चुका रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
जीवट-भरी थी वो महिला, दुर्गा भाभी थी कहाती
जिनके बिना अधूरी, आजादी की दासताँ रह ज़ाती
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के पनाह दे रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
वीरों की फाँसी के बदले, दम्पति सर्जेट पे गोली चला दी
इन दिलेर कारनामों ने फिरंगियों की निन्द उङा रखी थी
अंग्रेजों के आँखो में किरकिरी बन खटक रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
अपना सर्वस्व लुटा के, कालकोठरी भी गयी वो
पर हम कृतघ्न ऐसे, उनके अहसान भूल बैठे
स्वतंत्रता दिला के, अंतिम क्षणों में, गुमनाम मर रही थी
उम्मीद की लौ, जल-जल के, बुझ रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
” श्रद्धा सुमन है ज्ञापित, उन देव तुल्य आत्मा को
नि:स्वार्थ त्याग भावना से, जो मर मिटे थे ”

दुर्गा भाभी-01

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उम्मीद की लौ जल-जल के बुझ रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी
परालम्बन भरे जीवन से मुक्ति हमें दिलाने
वीर- वीरान्गनाओ की टोली कफ़न बाँध चल रही थी ।।
दिन के उजाले में भी, तमस से हम घिरे थे
खुद के ही घरों में, हम बंधक बन रह गये थे
तब दुर्गा रूपी पुष्प, कौशांबी में, खिल रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी —-
“हिंद की अग्नि” से थी जो विभूषित
वीरता से अपनी, ब्रिटिशों को थर्राने वाली
पराधीनता के प्रारब्ध से मुक्ति दिलाने चल रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
सहधर्मिणी वोहरा की, क्रांति का व्रत लिया था
पग-पग पर, दुर्गा ने, साथ-साथ चल लिया था
“इरविन” को बम से उङाने की नीति बना रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
गहनों की लालसा, हम महिलाओं की है पुरानी
सौभाग्यचिन्ह आभूषणों को भेंट चढाने वाली
पति को भी गंवा के, पराभव न मान ,वो रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी–
पिस्तौलबाजी में , महारत उन्हें हासिल थी
बम बनाने की कला में भी निपुणता लिए थी
गृहिणी होकर भी क्रांति की अलख जगा रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-
अनगिनत वर्ज़नाओ की बंदिशो में, नारी जकङी हुई थी
क्रांति की अलख जगाने,धधकती विद्रोह में कुद पङीथी
मुखबिर, कभी भार्या बन, वतन का कर्ज चुका रही थी
नाउम्मीदी के तिमिर में, हर साँस जल रही थी—-

अभ्यर्थना है प्रभु

October 5, 2020 in Other

किसी का आसरा नहीं करूँ
मन में दंभ न भरूँ
अभ्यर्थना है प्रभु
बस तेरे पनाह में मैं रहूँ

असर

October 5, 2020 in Other

फ़िजाए भी कुछ बदलने लगी
शायद असर उसपर भी तेरा छाने लगा

नसीब

October 5, 2020 in Other

हम तो तेरे मुरीद हैं
तुमसे मिले तमस ही मेरे नसीब है

तफ्तीश

October 5, 2020 in Other

आँखे रोके कहाँ रूकती
तफ्तीश में लग जाती हैं
छिपे हुए अश्क को
पहचान लेती हैं

“सावन” मंच हमरा

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विविध काव्यों से सजा है न्यारा
कविवर ने है जिसे संवारा
समालोचना की मुखरता से
मिलकर सबने जिसे निखारा
छन्द- अलंकार की बहती धारा
हाँ, वह है “सावन” मंच हमारा।
बनी एक पहचान हमारी
खुद से हुई मुलाकात हमारी
जहाँ अपने ही अनछुए पहलू को
जाना, समझा और संवारा
हाँ, वह है “सावन” मंच हमारा ।
भावों की बहती है अविरल सरिता
विविध उदगारों से बनती है कविता
हर मुद्दे पे उठते बोल यहाँ पर
हर क्षेत्र में जिसने किया इशारा
हाँ, वह है “सावन” मंच हमारा ।

तस्लीम होगी

October 4, 2020 in Other

कब अपनी इबादत “उन्हे ” तस्लीम होगी
सभी सुताओ की ख्वाहिशे महफ़ूज होंगी ।

तुम्हारा ख़याल आया हो

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई ख्वाहिश कहाँ
कोई पछतावा भी नहीं
पतझङ-सी है वीरानी
बसंत आया ही नहीं
दूर तक फैला है सूनापन
जैसे शून्य निकल आया हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा ख़याल आया हो ।
काली निशा की छाया में
अर्णव में खामोशी छायी है
पर उसके तलचर में
सुनामी की तरंगों ने
जैसे पनाह पायी हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा खयाल आया हो ।

कुछ इस तरह

October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बादलों से चाँद
जैसे निकल आया हो
आके अपनी छटा से
सारी गम की परछाई को
मुझसे छिपा आया हो
हाँ, कुछ इस तरह
तेरा ख़याल आया हो।

विकृति

October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटियों के साथ क्यूँ होता यह बार बार
मानसिक विचलन है ये कहते जिसे बलात्कार
यह सामान्य नहीं क्रूरतापूर्ण व्यवहार है
मानसिक विकृति की ओर बढतो की पहचान है

मिली आजादी तेरे सहारे

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बापू हमारे, जन- जन के प्यारे
मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।।
वर्षों से भारत माता सिसक रही थी
पाँवो में गुलामी की बेङी पङी थी
दिल में हमारे न कोई ललक बची थी
स्वाधीन होने की ज्वाला ठन्ढी पङी थी
छाया था हमपे, पराधीनता के अंधियारे
मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।।
व्यापारी बनके जो आए दुष्ट बङे थे
लोलुप दृष्टि से भारत माँ को देख रहे थे
कुनीतियों के कुटक्र में फंसते गये हम
गुलामी की जंजीरों से बंधते गए हम
खो गयी आजादी की बहारे
मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।।
फूट की नीति का जाल फैलाया
लालच के दानों से उसको सजाया
हम थे भोले-भाले, समझ न आया
थोङे की चाहत में, सबकुछ गवाया
बंद काली कोठरी में, कहाँ थे नजारे
मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।।
चाय के बेगानो में बंधुआ बने हम
नील की खेती से बंज़र हुयी धरातल
तीनकठिया ने, लोगों पे बर्बरता दिखाई
अंग्रेजी नीतियों ने कैसी कहर बरपायी
दिखती कोई ज्योत् नहीं, खो गये उजियारे
मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।
दो अक्टूबर को वो शुभ घङी आई
पोरबंदर में, पुतली ने ज्योत जलाई
मोहन था नाम उनका, जिसने आश जगायी
सत्यनिष्ठ था जो, सत्याग्रह में निष्ठा दिखायी,चरखे के बल पे, अंग्रेजी मनसूबे बिगाड़े, मिली आजादी बापू तेरे सहारे ।

ऐसा कौन है जिसने, अहिंसा से लङाई जीती हो

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिनके तेज के आगे, चाँद की चमक फीकी हो
ऐसा कौन है जिसने, अहिंसा से लङाई जीती हो ।
बिन गोली- बारूद के चला था फ़िरंगी से उलझनें
सोचा भी नहीं था कभी, चला है वो महात्मा बनने
हिंसा में वो बल है कहाँ, जीते जो मन को
जिसकी एक पुकार पर लगे जन सैलाब उमङने
कहाँ ऐसा योगी, ऐसी उपमा दिखती हो
ऐसा कौन है जिसने, अहिंसा से लङाई जीती हो ।
राम राज्य की कल्पना की थी जिसने
वर्धा शिक्षा योजना की शुरुआत की उसने
करके सीखो तो कुछ अर्जन भी कर पाओगे
पढते हुए धनोर्पाजन से, गरीबी से पार पाओगे
कहाँ ऐसा कर्मयोगी, ऐसी उपमा दिखती हो
ऐसा कौन है जिसने, अहिंसा से लङाई जीती हो ।
सत्य के पुजारी कहें या कहें अहिंसा के पोषक
धूल चटाई उनको थे जो दुनिया में हिंसा के पोषक
हरिजन के हिमायती, सत्यप्रयोग, हिन्दस्वराज रचना थी
मोहन से महात्मा बनने की जिनमें अद्भुत क्षमता थी
कहाँ ऐसा व्रतधारी, ऐसी उपमा दिखती हो
ऐसा कौन है जिसने, अहिंसा से लङाई जीती हो ।।

अहिंसा के पुजारी हम

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसा के पुजारी, सत्य, प्रेम , करूणा
जैसे मानवीय गुणों की हमें दरकार है ।
किसानों के हिमायती की दृढ़ता को
अपनाने हेतु क्या हम पुनः तैयार हैं ।
अपनी मानवीय संवेदना को
रखना हमें बरकरार है ।
उत्पीङको के प्रति दया
रखने वालों से टकरार है ।

अर्द्धनग्न फकीर

October 2, 2020 in Other

अपनी दुर्वलताओ से भी अवगत करवाकर
दुनिया को बताया, अहिंसा अपनाकर
अर्द्ध नग्न फकीर कहा था कभी किसीने।
बिना अस्त्र-शस्त्र के ही, चले लाठी ठेकाकर
महिला, किसान सबको मोहा उन्मुक्त मुस्कराकर
अविश्वसनीय है, आजादी दिलाया, कृषकाय वृद्ध ने ।

स्मृतियों से

October 2, 2020 in Other

स्मृतियों के झरोखो से
ऐसे शूल निकल आए
हम फिर से, मिले घावों को
अनजाने ही कुरेद आये।

इंसाफ

October 2, 2020 in Other

हमारे संविधान की विशेषता असंतुष्टो को भी
संतुष्ट होने के अवसर उपलब्ध कराती है
यही वजह है कि इंसाफ की प्रक्रिया
तारीख़ दर तारीख़ चलती जाती है

कैसे कहें सुरक्षित हैं तू

October 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे कहें ” सुरक्षित हैं तू”
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हम भारत की आधी आबादी, कबतक सहे दुराचार
बढता ही जा रहा, थमता नहीं, हिंसक व्यवहार
आख़िर क्यूँ नहीं, कोई कर पा रहा इसका निराकार
सारी कोशिशें, सारे कानून, सावित हो रहे निराधार ।
दिन-प्रतिदिन बढती घटनाएं, छोङ रही सवाल
मानव क्या तू सच में है मानव कहलाने का हकदार
तेरी प्रवृतियाँ, पाश्विक नहीं, राक्षसों से बढ़कर है
कुछ तुम जैसों के कारण, हम सब ही हैं शर्मसार ।।
कबतक चलेगा यह घृणित मंशाओ का दुर्व्यवहार
कबतक आखिर बेटियां सहेगी अमानवीय अत्याचार
आख़िर क्यूँ होता यह मन दहलाने वाला बलात्कार
हे प्रभु! इन कुकर्मियो को तू ही सकता सुधार ।।
बेटियां देश के भविष्य की धरोहर, आधी आबादी है
पर विक्षिप्त सोंच, इनके मार्ग की सबसे बङी व्याधि है
आसमान में उङने की ललक लिए,मेहनत को अवादा हैं
पर कौन कहे, “निश्चिंत रह, सुरक्षित रहेगी तू”, वादा है
घिनौनी हरकतें कर रही, मानवता का तिरस्कार ।
बेटियाँ डरी-सहमी ना रहें, नि:संकोच कैसे विचरण करे
इनकी सुरक्षा करने को, हम सब मिलकर चिंतन करे
किसकी वज़ह से, बढ रहा, इनके प्रति यह अपराध
चिन्हित करना होगा, कारकों को, जिनसे बढा विषाद
हर घर को मिलकर, करना होगा इसका प्रतिकार ।।

नन्ही लगी निशाने पर

October 1, 2020 in Other

हम अभिभावकों के लिए यह कहाँ तक संभव है
हर जगह बेटियों के साथ, परछाई बन चल पाना
क्या यह उचित होगा, फिर से
घर की चाहरदीवारी में, रोक पाना
हथरस जैसी घटनाएँ, नितप्रतिदिन डरा रही है
हमारी नन्ही सी जान, लगी है निशाने पर ।।

क्या दे जबाब

October 1, 2020 in Other

बताइए क्या जबाब दें, उस मासूम को
कैसे कहें, बाहर का कोई ठिकाना नहीं है
कहाँ, क्या, कौन भेङिया का रूप लिए है
तेरी जिन्दगी महफ़ूज नहीं, लग सकती है दाव पर।

क्यूँ है इंकार

October 1, 2020 in Other

पूछ रही नन्ही परी क्या होता यह दुराचार
क्यूँ होता महिलाओं के साथ गलत व्यवहार
क्यूँ माँ किसी से बात करने पर टोकती तू
क्यूँ लगाती पाबंदी, बाहर निकलने क्यूँ है इंकार

कहने को शर्मिंदा हैं

September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ भारती, अब भी चुप क्यों, फिर बिटिया हुई शिकार
दुष्कर्म, असह्य पीङ, कत्ल, कर दिया अंतिम संस्कार ।
अपमान हर महिला का, हर पिता हुआ शर्मसार
अनवरत् चलता है, थमता नहीं, होता बारम्बार ।।
भूल बैठे इंसानियत, जीभ काट, रीढ़ दी तोङ
करते रहें हैवानियत, दे गये अनगिनत चोट
अब और नहीं, जिन्दगी जीने लायक रही नहीं,
मौत के रथ पर सवार, वो गयी मानवता से हार।।
बिटिया कहने को शर्मिन्दा है, छिपा इन्हीं में दरिन्दा है
हर वह परिवार, हमारा यह मानव समाज- अपराधी है
पनाह पाता इन्हीं से , वह विक्षिप्त मानसिक रोगी है
इनकी दुष्मानसिकता का, मासुम बेटियां भुक्तभोगी हैं
अपने बीच इन्हें चिन्हित , करना होगा हमें ही बारम्बार ।।

अंतहीन समस्याएँ

September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस महामारी में
आमजन के कष्टों की दासताँ
जानना हो तो
बस एक दिन गुजारिए
उनके बीच, उनसे मिल,
जिनके दिन बितते
आजीविका तलाशते
रातें बीतती आने वाली
परेशानियोंको गिन।
हमें तो बस उन्ही नीतियों की
आश और दरकार है
जिनसे पेट उनका भर सके
जो हो गये बेरोजगार हैं ।
सरकारी राहतों से,
ज़रूरतें पूरी होती नहीं
मिले अनाजों से,
भूख मिटती नहीं
हर जगह फैला भ्रष्टाचार है।
सिर्फ चावल, गेहूं के सहारे
कैसे घर- परिवार चल पाएगा
गैस की किल्लते, बढती महंगाई
मुँह चिढ़ाते सामने आ जाएगा
अंतहीन समस्याओं से जीना दुष्वार है ।

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