चाहत
सोचा था अपनी मुकद्दर को एक नया नज्म देंगे। उन्हीं नज्म के आर में हम उनकी दास्तां लिखेंगे।।
सोचा था अपनी मुकद्दर को एक नया नज्म देंगे। उन्हीं नज्म के आर में हम उनकी दास्तां लिखेंगे।।
दिन गुजर गए महीने गुजर गए साल गुजर गए। किसी की चाहत में, हम खुद को ही भूल गए।।
आपने पहले अंक में पढ़ा — जीवनबाबु के घर में अन्न के एक दाना तक नहीं है। रुपा एक भारतीय नारी की परंपरा पर चलने…
दांतों तले आंचल दबा लेना। उफ़… कहाँ गया वो ज़माना।।
दिल ले के दर्द देना, यह अदा सिखे कहाँ से। बताइए न यह राज़,आपने ने सिखे कहाँ से।।
जीवनबाबु अपने मोहल्ले में प्रतिष्ठत व्यक्ति थे। वह एक साहित्यकार भी थे। हमेशा किसी न किसी पत्र व पत्रिकाओं के लिए रचनाएं तैयार करते थे।…
लोग कहने लगे है, हम इश्क़ में पागल हो गए है। मैं कहता हूँ इश्क़ में पागल तो कोई कोई होते है।। शाहजहाँ भी मुमताज़…
हमने उड़ते हुए बादल से पूछा कब तुम्हें बरसना है। उसने कहा नादान यह भी कोई पूछने की बात है ।। सभी को वफा के…
हम उस राह से गुजरना नहीं चाहते, जिस राह में खड़े हो जाए दिल्लगी। कह दो पागल आशिक़ दीवानो से, मुझे पसंद नहीं है किसी…
तुम से दूर रह कर भी, हमने अब जीना सिख लिया है। कौन है अपना कौन है पराया, हमने यह देख लिया है।।
वो जवानी ही क्या जिस जवानी में कोई कहानी ही न हो। वो मुहब्बत मुहब्बत ही नहीं जिसमें कोई अश्क ही न हो।।
आज फिर फलक से सितारे जमीं पर आने लगे है। शायद उनका ईशारा होगा जो मेरा एक अंदाज़ है।।
फिर वही, कहीं से आयी घूंघरू की आवाज़। दिल को लुभा रही है, फिर वही पुरानी साज।।
सोचा रहा था मैं, इश्क़ है बेदाम की। बाद में पता चला, इश्क़ है बड़े काम की।।
कहीं हीर की टोली तो कहीं रांझे की टोली। अंजुमन में गूंज उठा शेर व ग़ज़ल की बोली।।
जब वो अपनी स्याह भरी गेसूओं को अपनी अंदाज से संवारने लगी। खुदा की कसम तब वादियों के नियत भी धीरे धीरे बदलने लगी।।
क्या करूंगा “अमित “जा के उनके शहर में। वफा के बदले मिला बेवफ़ाई उनके शहर में।।
जब तक़दीर से दोस्ती की, तब तदबीर ने मुझ से कहा। मुझे मत छोड़ ए नादान गर मैं नहीं तो तकदीर कहाँ।।
माना कि मुकद्दर पे जोर चलता नहीं किसी का। फिर क्यों न मेहनत से ही दोस्ती कर लिया जाए।।
वक्त को हमने वक्त की तरह बड़ी मेहनत से कदर किया। तभी तो आज मैं अपनी तक़दीर को अपने वश में किया।।
रास्ते कठिन है प्यार के, फिर भी मैने हिम्मत नहीं हारा। तुम तो थोड़े ही दूर चल के कहने लगे अब मैं जीवन से हारा।।
इश्क़ क्या करे हम, वो कहते है इसके पास दिल ही नहीं है। उन्हें क्या पता कभी कभी बिन बरसात के ही हम भीग जाते…
हम इतने भी नादान नहीं थे, जितना की वो मुझे समझते थे। कस्मे वादे मुझ से करते थे, इश्क़ जनाब कहीं और फरमाते थे।।
।। आवारा से क्या पूछना इश्क़ किसे कहते हैं।। ।। हवस के नजरों से देखना भी क्या इश्क़ है।।
चल हट जा !! नहीं करना है मुझे इश्क़ विश्क़ मैं बर्बाद होता गया ले ले के इश्क़ में रिश्क़।।
मय से मैने पूछा ग़म की दवा है क्या आपके मयख़ाने में। मय कहा किस ग़म की दवा चाहिए आपको मयख़ाने मे।
कौन किस पे कुर्बान होता है इस ज़माने में। कोई वास्ता ही नहीं है यहाँ किसी को किसी से ।।
लड़का – मैं वो आशिक़ नहीं जो अपनी, फ़ितरत को धूल में मिला दे। गर यकीन न हो तो एक मर्तबा, दिल दे के तू…
यहाँ धोखा वहाँ धोखा, चारो तरफ धोखा ही धोखा है। कैसे कोई इश्क़ करे इसलिए हमने फैसला बदल दिया है।।
बालू के रेत में हमने आशियाना बनाया समंदर से कोरे कागज पे एग्रीमेंट करके । अचानक अमित ने कहा ए पागल आशिक़ लहरों पे यकीन…
(आपने भाग १ में पढ़ा – वीराने में कलूआ की मुलाकात एक अदभुत गिद्ध से होता है। वह मनुष्य की भाषा में बात करता है।…
कलूआ डोम श्मशान से लाश जला कर शाम के समय घर जा रहा था। अचानक किसी की आवाज़ उसके कानो में टकरायी।वह खड़ा हो कर…
सुनो ए दोस्त तुम ए काम न किया करो। मुहब्बत को यों बदनाम न किया करो।। माना कि रास्ते बहुत कठिन है इश्क के। फिर…
मुझको संभाल कर वो खुद गिर गए। ऐसा साथी सब को कहाँ मिल पाए।।
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ नकाब ही नकाब है। यह कैसा मातम आज शायरो पे आया है।। ना नज्म है ना ग़ज़ल है ना नातशरीफ है।…
दिन रात घर घर की यही कहानी है। सास बहू के झगड़े युग युगांतर पुरानी है।। सास की कड़वी – बोली मैं तुमसे कम नहीं…
चलो जरा इश्क़ करके देखे, किसमें कितना है दम । सुनता हूँ जिसको डस ले , उसको निकल जाता है दम ।।
जनवरी से दिसंबर गुजर गए, उस बेख़बर को खबर ही नहीं। उसे क्या पता इश्क़ करने वाला कोई आशिक़ ज़िंदा है भी या नहीं।।
दिल के आगरे में मैं भी एक ताजमहल बनाउंगा। पत्थर ना सही संगदिल से ही महल को सजाउंगा।।
हम उनमें थे — वो मुझमें थे, उफ़ !!!! , वो क्या दिन थे। जब हम रुठ जाते थे, तब वो चाँद सितारे तोड़ लाते…
कई वर्षों से इस पुरानी हवेली में कोई आया ही नहीं। जो भी आया मैं गैर समझ कर उसे अपनाया ही नहीं।।
वफा के बदले उनके शहर में”अमित”बेवफ़ाई ही मिला। चलो गम को भुलाने के लिए मयख़ाने में मय तो मिला।।
ए दोस्त —- जो इश्क़ में बदनाम होते है। दरअसल वही आशिक़ कामयाब होते है।।
झील में उतरने से पहले काश मैं गहराई को नाप लेता। अब दलदल में फंसता जा रहा हूँ काश कोई बचा लेता।।
हम उनके लिए “मीर”, बद से बदनाम होते गए। वो नादान मुझे इम्तहान पे इम्तहान लेते गए।।
उनकी आँखों से ,अश्क क्या गिरी। मैं समझा मुझ पे, बिजली गिरी।।
प्रेम नगरी में मैने प्रेमा से पूछा प्रेम के क्या है परिभाषा। शर्माती हुई कही “ए अजनबी क्या है तेरा अभिलाषा”।।
मत आना मेरे मैयत में , अश्क समंदर बन जाएंगे । डर है क़यामत के ए नूरी, कब्र भी मुझे ताने ही देंगे।।
जब तुम गेसूओं में गुलाब गूंथते थे। तब मेरे अरमान के फूल खिलते थे।।
पत्थर पे लकीर, खींचने वाले। खुद को किया, तुझको हवाले।। संवार दे तू , या बर्बाद कर दे। जो भी दे, हंस हंस के दे।
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