चाहत

सोचा था अपनी मुकद्दर को एक नया नज्म देंगे। उन्हीं नज्म के आर में हम उनकी दास्तां लिखेंगे।।

लेखक की गरीबी

जीवनबाबु अपने मोहल्ले में प्रतिष्ठत व्यक्ति थे। वह एक साहित्यकार भी थे। हमेशा किसी न किसी पत्र व पत्रिकाओं के लिए रचनाएं तैयार करते थे।…

वाह!!

जब वो अपनी स्याह भरी गेसूओं को अपनी अंदाज से संवारने लगी। खुदा की कसम तब वादियों के नियत भी धीरे धीरे बदलने लगी।।

एग्रीमेंट

बालू के रेत में हमने आशियाना बनाया समंदर से कोरे कागज पे एग्रीमेंट करके । अचानक अमित ने कहा ए पागल आशिक़ लहरों पे यकीन…

बेख़बर

जनवरी से दिसंबर गुजर गए, उस बेख़बर को खबर ही नहीं। उसे क्या पता इश्क़ करने वाला कोई आशिक़ ज़िंदा है भी या नहीं।।

गम

वफा के बदले उनके शहर में”अमित”बेवफ़ाई ही मिला। चलो गम को भुलाने के लिए मयख़ाने में मय तो मिला।।

अभिलाषा

प्रेम नगरी में मैने प्रेमा से पूछा प्रेम के क्या है परिभाषा। शर्माती हुई कही “ए अजनबी क्या है तेरा अभिलाषा”।।

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