पुष्प पलाश के

February 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाल ओढ़नी ओढ़ कर,
देखो पलाश इठलाते हैं।
वन में फैली है अग्नि ज्वाला,
ऐसा स्वरूप दिखलाते हैं।
होली आने से पहले ही,
पलाश ने कर ली तैयारी।
लाल रंग के पुष्प खिला कर,
महकाई है वसुधा सारी।
लाल रंग की, प्रकृति ने
सिन्दूरी आभा बिखराई है।
सृष्टि स्वयं ही बता रही है,
ऋतु बसन्त की आई है।
बागों में कोयल आई है,
तुम भी अब आ जाओ ना।
सुर्ख़ पलाश के पुष्पों जैसी,
ख़ुशबू बिखरा जाओ ना।।
_____✍️गीता

बसंत पंचमी

February 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

माघ मास का दिन पंचम,
खेतों में सरसों फूल चमके सोने सम।
गेहूं की खिली हैं बालियां,
फूलों पर छाई बहार है,
मंडराने लगी है तितलियां।
बहार बसंत की आई है,
सुखद संदेशे लाई है।
चिड़िया भी चहक रही हैं,
हर कली अब महक रही है
गुलाबी सी धूप है आई,
कोहरे ने ले ली विदाई।
पीली-पीली सरसों आने लगी,
पीली चुनरी मुझको भाने लगी।
नई-नई फसलें आती है,
बागों में कोयल गाती है।
भंवरे ने संगीत सुनाया है,
फूल कहे मैं हूं यहां,
तेरा स्वर कहां से आया है।
शीत ऋतु का अंत हो रहा,
देखो आरंभ बसंत हो रहा।
मन में छाई है उमंग,
खिलने लगे प्रकृति के रंग।
वीणा वादिनी विद्या की देवी,
मां सरस्वती का करें वंदन।
लगा कर ललाट पर चंदन,
बसंत पंचमी पर हाथ जोड़ कर,
मां सरस्वती को शत्-शत् नमन।।
_____✍️गीता

*आशा का एक दीप जलाए*

February 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बैठे हैं आशा का दीप जलाए,
उम्मीद की लौ मन में लगाए।
व्यथा का तिमिर अड रहा,
नैराश्य का आंचल बढ़ रहा
नेत्र नीर नैनों में आए,
प्रेम की दिल में ज्योत जलाए
मन के द्वार पर,
सजा कर स्वप्नों के तोरण,
ढूंढती है आंखें अब आपको
आशा का एक दीप जलाए।।
_____✍️गीता

गीत लिखा करती हूं

February 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने मन का हर भाव लिखा करती हूं,
कभी-कभी दुख तो कभी,
अनुराग लिखा करती हूं।
छोटी-छोटी मेरी खुशियां
लिखने से बड़ी हो जाती हैं।
बड़े-बड़े दुख के सागर,
फ़िर मैं पार किया करती हूं।
कभी हंसाती हूं आपको,
अपनी कविता से मैं,
कभी दुखित हो कर एकान्त में
नेत्र नीर बहा लिया करती हूं।
कभी जुदाई में आंखें सूनी,
कभी नेह लिखा करती हूं।
कभी बुनती हूं ख्वाब सुहाने रातों में,
कभी भोर के गीत लिखा करती हूं।
हां मैं भी प्रीत लिखा करती हूं।
कुछ अधूरी तृष्णाएं हावी होती हैं मन पर,
उन्हीं तृष्णाओं की खातिर,
मन-मीत लिखा करती हूं,
गीता हूं मैं गीत लिखा करती हूं।।
_____✍️गीता

राष्ट्रीय शोक दिवस

February 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत दुख भरा दिवस है,
आज राष्ट्रीय शोक का।
टूटी थी किसी की राखी,
और किसी मां की उजड़ी कोख का।
इस दुख भरे दिवस को ,
आज,प्रेम दिवस ना कहना।
आज ही के दिन…..
पुलवामा में ग़म के बादल आए थे
याद करो उन वीरों को जो,
घर ओढ़ तिरंगा आए थे।
जला लहू पुलवामा में,
जिन वीर जवानों का
हाथ जोड़कर नमन है उनको,
कोई और-छोर नहीं उनके बलिदानों का।
कैसे स्वीकार करें आज गुलाब,
वतन के शहीदों की आई है याद।
हाथ जोड़कर नम आंखों से,
आज श्रद्धांजलि अर्पित उन्हें,
जो लौट के घर ना आ पाए,
आज याद कर लो उन्हें।
42 फौजी उस हमले में शहीद हुए,
भारत के हर राज्य के लाल से धरा हुई थी लाल।
आज अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करें
प्रेम दिवस नहीं आज श्रद्धांजलि दिवस मनाएं।
जब-जब मिली है उनकी शहादतो की ख़बर,
लहू जलकर आंखों से निकला है।
सुनते रहेंगे उनके शौर्य की कथाएं,
देखो तिरंगे में फौजी निकला है।
______✍️गीता

जग में जब छा गया प्रकाश

February 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई सो रहा हो,
शयन कक्ष में अंधकार भी हो रहा हो,
सूर्य की किरणें आएंगी,
आ कर उसे जगाएंगी
ऐसा वह सोच रहा हो
किंतु यदि उसी ने,
किरणों के प्रवेश का,
बंद कर दिया हो द्वार
तो किरणें कैसे जाएंगी उस पार
कौन उसे जगा पाएगा
कौन उसे बता पाएगा,
कि दिनकर तो कब के आ चुके
अपनी रौशनी फैला चुके,
जग में छा गया प्रकाश भी,
उसे उठाने का किया प्रयास भी,
किंतु जो जगना ही न चाहे,
उसे यह जग कैसे जगाए।
_____✍️गीता

तुम्हारा बहुत-बहुत आभार ज़िन्दगी

February 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने जो किया सब भला ही किया,
तुमने जो दिया सब भला ही दिया।
आरम्भ भी तुम्हीं से और अन्त भी तुम्हीं तक,
तुम्हारा बहुत-बहुत आभार ज़िन्दगी ।
बिखरते ही जा रहे थे, एक माला के मनके
ठहराव सा पा गए हैं,जज़्बात मेरे मन के।
तुमने मुझे मुस्कुराना सिखाया ज़िन्दगी,
कभी कठिन समय भी दिखाया ज़िन्दगी।
मेरा हाथ थामें चलती रही सदा तुम,
कभी जीत मिली,
कभी मिली हार ज़िन्दगी।
हर पल है तुम्हारा आभार ज़िन्दगी
जो पल मिले नाकामियों से,
वो पल बने,अनुभव ज़िन्दगी।
जो पल मिले तुमसे हसीं,
वह पल दिल में छुपा लिए हैं कहीं।
तुमने मुझे थामा है जिस प्रकार ज़िन्दगी,
उसके लिए तुम्हारा आभार ज़िन्दगी।
तुमसे जो मिला न उससे कुछ गिला,
कभी मन बुझा तो कभी मन खिला।
यह तो है ज़िन्दगी भर का सिलसिला
करते रहना यूं ही हमें प्यार ज़िन्दगी,
तुम्हारा बहुत-बहुत आभार जिंदगी।
_____✍️गीता

यह कैसी विपदा आई है

February 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उत्तराखंड की ऋषि गंगा में,
ढह गया एक हिम-खंड।
कुछ ही पलों में गिरी हिम-शिला,
और नदिया उफन गई,
ढह गए और बह गए,
उस नदिया में घर कई।
एक सुरंग में काम कर रहे,
श्रमिकों पर टूटा कहर।
करुण क्रंदन और त्राहि-त्राहि की,
आ गई थी एक लहर।
किसी ने अपना बेटा खोया,
किसी का बिछुड़ा भाई है।
एक बुजुर्ग सी दादी गिरकर,
लहरों में समाई है।
रो पड़े परिजन जिन्होंने,
यह आंखों देखी सुनाई है।
हे प्रभु बचाले उन लोगों को,
यह कैसी विपदा आई है ।।
____✍️गीता

मीठी वाणी बोलिए

February 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वाणी से ही विष बहे,
और वाणी से ही,बहे सुधा-रस धार।
मीठी वाणी बोलिए,
यही जीवन का सार।
कण-कण में ईश्वर बसते,
यही प्रकृति का आधार।
निज वाणी से मनुज,
न करना किसी पर प्रहार।
घाव हो तलवार का,
एक दिन जाए सूख।
घाव हरा ही रह जाता है,
जो वाणी दे जाए।
सोच समझ कर बोल रे बंदे
वरना अपने जाएंगे रुठ।।
_____✍️गीता

*हमें आजकल फुर्सत नहीं है*

February 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल चाय कॉफी का है सहारा,
इसके बिना दिन कटे ना हमारा।
हमें सिर उठाने की भी फुर्सत नहीं है,
कभी कॉपी जांचो कभी प्रश्नपत्र बनाओ,
कोई छात्र विद्यालय न आए तो उसको मनाओ।
करके दूरभाष पर बात मात-पिता से,
विद्यालय आने के लिए समझाओ।
उंगलियों में कलम है हाथों में है कागज़ भी,
हाय! कविता लिखने की हम को फुर्सत नहीं है।
छात्रों की आजकल बस कॉपियां जांचते हैं,
थोड़े-थोड़े उनको नंबर भी बांटते हैं।
कितनी मिस कॉल हैं मोबाइल में देखो,
आजकल बात करने की हम को फुर्सत नहीं है।
ऑनलाइन कक्षाओं में पढ़ाते थे जब हम,
सुकून के कुछ पल तो पाते थे तब हम।
बच्चों ने सिर इस कदर है दुखाया,
कि हमें सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है।
_____✍️गीता

धीरे-धीरे चल

February 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर पर दुपट्टा मेरा,
पैरों में झांझर।
कमर में पानी की गगर बोले,
धीरे-धीरे चल गोरी गांव में आकर,
झांझर के घुंघरू छम-छम बोलें।
सिर पर दुपट्टा मेरा,
माथे पर बिंदिया है।
कानों में मैंने कुंडल हैं डाले,
धीरे-धीरे चल गोरी गांव में आकर।
कानों के कुंडल हौले से बोलें।।
____✍️गीता

एक युद्ध..

February 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब आंख से एक आंसू छलका,
हो गया मन कुछ हल्का-हल्का।
निकल गया था कुछ रुका-रुका सा,
एक गुबार बीते कल का।
वजन था आंसुओं में भी,
कभी सोचा नहीं था ये
संयम रखते रखते,
ना जाने कब आंख में आंसू आए।
अंतर्मन में आरंभ हो गया
एक युद्ध…..
अपने ही विरुद्ध ।।
_____✍️गीता

अभी कुछ दिन और

February 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विद्यालयों में रौनक लग गई,
देखो फ़िर से कक्षाएं लग गई।
फ़िर से बच्चों का है शोर,
प्री बोर्ड का अब है जोर।
बच्चों मास्क लगाकर आओ,
शिक्षा संग सेहत भी पाओ।
मिल-जुल कर रहो हम ही कहते थे,
लेकिन बीता अब वो दौर।
दूर-दूर सब की सीट लगी है,
एक ओर नीतू बैठी है,मेघा बैठी है दूजे छोर।
बीतेगा एक दिन यह भी दौर।
आएगी फ़िर से नई एक भोर,
मास्क लगाकर दूरी बनाकर,
बैठो अभी कुछ दिन और।
_____✍️गीता

संकष्ट चतुर्थी

January 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

शुभ संकष्ट चतुर्थी आई है,
गणपति का आशीष लाई है।
भोग लगाएं तिलकुट का,
हर बाधा दूर भगाई है।
इस दिन गणपति की उपासना से,
हर संकट का नाश हो,
तन निरोगी और दीर्घायु बने,
घर में सुख समृद्धि का वास हो।
रिद्धि-सिद्धि का आशीष मिले,
पूजन धूप दीप नैवेद्य से हो।
पूजा में तिल लड्डू, शकरकंद चढ़ें,
सपरिवार सुखी समृद्ध हो।
प्रथम पूज्य श्री गणेश का,
आह्वाहन हो विधि विधान से।
बल, बुद्धि और विवेक प्राप्त हो,
गणपति के आशीष से।
____✍️गीता

जन्म-दिन का उपहार

January 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिशु वस्त्रालय के पुतले से,
एक बालक कर रहा था बातें ,
कितने सुंदर वस्त्र तुम्हारे
एक भी ऐसे नहीं पास हमारे।
परसों मेरा जन्म-दिन है,
नए वस्त्र पहनने का मन है,
मां को मालकिन ने पैसे नहीं दिए तो,
नई वस्त्र नहीं आएंगे।
मां के आगे कुछ ना बोलूंगा,
पर नयनों में अश्रु आएंगे,
थोड़ी देर एकान्त में रो लूंगा।
पापा भी तो नहीं हैं मेरे,
मम्मी बोली बन गए तारे।
मैं भी कुछ लेने को आई हूं,
इस बालक की बातें सुनकर
मन में ममता भर लाई हूं।
मैं घर आ गई,
लेकिन उस बालक की बातें,
मेरे मन से ना गई
अगले दिन फ़िर पहुंची उसी दुकान में,
फ़िर उसी बालक की आवाज आई मेरे कान में
वही बालक फिर पुतले से बातें कर रहा था।
मैंने तुरंत एक जोड़ा खरीदा,पैक कराया
और चौकीदार को बुलाया
उस बच्चे तक पैकेट कैसे पहुंचाना है,
यह सब उसको समझाया।
पुतला बोल पड़ा बालक से,
कल तेरा जन्म-दिन है पप्पू,
मेरे पैरों के पास एक पैकेट है देखो,
यह उपहार मेरी तरफ से रखो।
पप्पू हैरानी से बोला, तुम बोलते भी हो..
हां, कभी-कभी बोलता हूं,
तुम जैसे प्यारे बच्चों के आगे मुंह खोलता हूं।
कल अच्छे से जन्म-दिन मनाना,
लो यह नए वस्त्र ही पहनना।
भोला पप्पू पैकेट लेकर चला गया,
एक अजीब सी खुशी मिली मुझे,
मेरी आंख का एक आंसू छलक गया।
_____✍️गीता

पौष पूर्णिमा के चंद्र

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पौष पूर्णिमा के चंद्र देखो,
नभ में कैसे चमक रहे हैं।
सर्द रातों में चांदनी सहित,
देखो ना कैसे दमक रहे हैं।
चांदनी भी ठंड में सिमटी सी जाए,
चंद्र उसको देख-देख मुस्काएं।
यह ठंड का असर है या हया है,
ये तो चांदनी ही बतला पाए।
चंद्र रीझे जाते हैं अपनी चांदनी पर,
चांदनी भी इठलाती जाए।।
____✍️गीता

समय कीमती धन

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

समय कीमती धन है सबसे,
सृष्टि का निर्माण हुआ है तब से।
समय खर्च करने से आपको,
कुछ धन मिल सकता है।
किंतु धन खर्च करने से,
बीता समय नहीं मिलता है।
सोच समझ कर समय खर्च करो,
बेवजह ना इसको व्यर्थ करो।
जीवन में हमें समय देते हैं जो लोग,
हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं वो लोग।
या यूं समझो कि….
उनके लिए महत्वपूर्ण हैं हम,
तभी तो देते हैं वह हमें अपना कीमती धन।
जिसका नाम है समय
समय के साथ उनकी भी कद्र करो,
और समय पर समय की कद्र करो क्योंकि,
यदि समय बीत जाएगा तो फ़िर,
मानव तुम पछताओगे।
कितनी भी कोशिश कर लो तुम,
बीता समय न वापस पाओगे।।
_____✍️गीता

इच्छा-शक्ति

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यदि इच्छा-शक्ति हो सबल,
तो हर कार्य करना हो सरल।
योग्यता यदि कम भी है तो,
इच्छा-शक्ति का विस्तार करो।
किसी कार्य को कभी ना समझो भार,
हर दायित्व से प्यार करो।
फ़िर कठिन डगर भी कट जाएगी,
कोई बाधा होगी, वह भी हट जाएगी।
बस रहे लक्ष्य पर नजर तुम्हारी,
फ़िर तुम्हें हर राह मंजिल तक पहुंचाएगी।।
_____✍️गीता

मेरा मन भी करता है

January 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन मैले वस्त्रों में घूमूं,
अच्छा नहीं लगता है।
मैं भी कुछ बनूं,उडूं गगन को चूमूं,
मेरा मन भी करता है।
माँ संग जाना बर्तन धोना,
अच्छा नहीं लगता है।
मैं भी कुछ पढूं-लिखूं,
मेरा मन भी करता है।
फ़िर आकर अपनी झुग्गी में,
मन्द रोशनी में बैठूं,
अच्छा नहीं लगता है।
मेरे घर भी बल्ब जलें,
पढ़कर किसी परीक्षा में बैठूं
मेरा मन भी करता है।
बहुत हो चुका घर-घर का काम,
अब मैं भी विद्यालय जाऊं,
मेरा मन भी करता है।
मैंने माँ का मैला आंचल ही देखा,
सदा मन मारते देखा,पर
अब अच्छा नहीं लगता है।
पढ़ लिखकर कुछ काबिल बन कर,
माँ को सुंदर साड़ी भेंट करूं,
मेरा मन भी करता है।
____✍️गीता

गांव में आई हूं

January 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गांव में आई हूं मैं ।
बहुत दिनों के बाद।
खेतों में सरसों पीली देखी,
गगन की रंगत नीली देखी।
खूब चमकते तारे देखे,
बहुत दिनों के बाद।
गेहूं की सुनहरी बाली देखी,
तरुवर की झूलती डाली देखी।
गन्नों की हरियाली देखी,
बहुत दिनों के बाद।
चूल्हे पर बनी साग और रोटी,
दूध पर वह मलाई मोटी।
रस की बनी खीर खाई है,
बहुत दिनों के बाद।
ताजा-ताजा गुड़ बनकर आया,
गरम-गरम गाजर का हलवा खाया,
सभी छोटे बड़ों का प्रेम पाया,
बहुत दिनों के बाद।
गांव में आई हूं मैं,
बहुत दिनों के बाद।
____✍️गीता

गणतंत्र दिवस की झांकी

January 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुन्दर-सुन्दर झांकियों में समाया भारत,
आज राजधानी के राजपथ पर आया भारत।
केरल कर्नाटक आंध्र प्रदेश अरुणाचल,
सब की झांकी आई है।
केरल ने नारियल के सुनहरे फाइबर से,
सारी झांकी सजाई है।
कर्नाटक ने स्वर्ण युग की,
यादें ताजा करवाई हैं।
आंध्र प्रदेश ने देखो नंदी की मूर्ति लगाई है,
लोपाक्षी स्थापत्य कला की,
देश को भव्यता दिखलाई है।
अरुणाचल ने पूर्व से पश्चिम तक की,
पुरातन सभ्यता दिखलाई है।
यह उगते सूर्य की सुन्दर धरा कहलाई है।
यह देखो अब दिल्ली की बारी है,
इसकी झांकी बहुत ही प्यारी है।
चांदनी चौक का पुनर्विकास,
लाल किला और फतेहपुरी भी दिखलाई है।
डिजिटल इंडिया की,
विश्व को झलक दिखलाने को,
आधुनिकिकरण की झांकी बनवाई है।
तीन मॉडल रोबोट के दिखलाए,
मोबाइल में आरोग्य सेतु डलवाए,
आधुनिकिकरण की लहर भारत में आई है।
दिव्यांग जन सशक्तिकरण की,
झांकी प्रथम बार ही आई है।
बाधा मुक्त माहौल पर है जोर,
सांकेतिक भाषा भी दिखलाई है।
आयुष मंत्रालय की झांकी,
औषधीय गुण वाले पौधों का
प्रदर्शन करने आई है।
प्रतिरोधक क्षमता के बारे में बतलाया,
चवनप्राश का गुण समझाया।
स्वस्थ तन तो, स्वस्थ मन
यह मंत्र समझाने आई है।
लौह पुरुष सरदार पटेल की,
झांकी भी राजपथ पर आई है।
कोबरा कमांडोज़ के कार्यों के बारे में,
विश्व को समझाने आई है।
आत्मनिर्भर भारत की झांकी,
राजधानी के राजपथ पर आई है।
भारत के वैज्ञानिकों की बनी कोरोना की,
वैक्सीन विश्व भर में छाई है।
वैज्ञानिकों के सम्मान हेतु,
भारतीय वैज्ञानिक की,
आदम कद की प्रतिमा लगाई है।
अशांत समुंदर में भी,
साहसिक कार्य करने वाली
जय जवान की झांकी आई है।
सागर हितों की रक्षा करती,
यह तटरक्षक की झांकी कहलाई है।
साठ हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर,
सड़क बनाई, दुर्गम स्थानों पर हवाई पट्टी बिछाई
यह सेना की लाइफ लाइन कहलाई है।
फूलों से दी अमर शहीदों को श्रद्धांजलि,
इंडिया गेट, राष्ट्रीय स्मारक एवम् हेलीकॉप्टर,
सब फूलों से ही बनाए।
राजधानी के राजपथ पर
खूब सुगंधि बिखराए।
गणतंत्र दिवस की आप सभी को
बहुत-बहुत शुभकामनाएं।।
____✍️गीता

*गणतंत्र दिवस*

January 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारतीय होने पर गर्व है,
आज 26 जनवरी का पर्व है।
देश के दुश्मनों को मिलकर हराएं,
आओ हर घर में तिरंगा फ़हराएं।
ना केवल जश्न मनाना है,
ना केवल झंडा फ़हराना है,
जो कुर्बान हुए वतन पर,
उनको भी शीश नवाना है।
आचरण हुआ देश का दूषित,
चलो सब को जगाते हैं।
हुआ था लाल रंग धरा का,
देश के जिस-जिस लाल से,
उन वीर शहीदों को,
आओ मिलकर शीश झुकाते हैं।
भूख, गरीबी और लाचारी
आओ भारत भूमि से मिटाएं,
भारत के हर वासी को,
उसके सब अधिकार दिलाएं।
आओ मिलकर नए रूप में,
हम गणतंत्र दिवस मनाएं।
इस दिन को पाने को ही,
वीरों ने रक्त बहाया था।
वंदे मातरम और जय हिंद का,
नारा खूब लगाया था।
हुई थी रक्त रंजित धरा,
जिन शहीदों के लहू से,
हम गली-गली उन वीरों की गाथा गाएंगे,
नई पीढ़ी तक उनकी आवाज पहुंचाएंगे।
आओ फिर से गणतंत्र दिवस मनाएंगे।
_____✍️गीता

दीप मोहब्बत के जलते रहे

January 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वप्न पलकों पर सुहाने सजते रहे,
दीप मोहब्बत के जलते रहे।
धड़कन भी गीत गुनगुनाने लगी,
सांसे भी कविता सुनाने लगीं।
पायल के घुंघरू सरगम बजाने लगे,
कलाई के कंगन गीत गाने लगे,
धानी चुनर हवा में लहराने लगी,
पवन में तेरी ख़ुशबू मुझे आने लगी।।
______✍️गीता

*नेह तुम्हारा*

January 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस रात बहुत रोई थी,
बहुत देर में मैं सोई थी।
स्वप्न में तुम्हें बुला कर,
कांधे पर सर रखकर,
रोते-रोते सोई थी
मैं उस रात बहुत रोई थी।
यह था नेह तुम्हारा,
एक बार मेरे कहने पर
तुम मेरे ख्वाबों में आए,
आकर मुझे सहलाया था,
थोड़ा सा बहलाया था
लब मेरे मासूम थे मुस्कुरा उठे,
पर नयनों ने नीर बहाया था।
अश्रु लुढ़क पड़े थे गालों पर,
अश्रु से ही मुख धोई थी,
उस रात मैं बहुत रोई थी।।
_____✍️गीता

सर्दी के मौसम में..

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस सर्दी के मौसम में,
दिन कितनी जल्दी ढलता है।
जिसके घर में प्रतीक्षारत हो कोई,
उसका पग घर की ओर,
जल्दी-जल्दी चलता है।
इस सर्दी के मौसम में,
दिन कितनी जल्दी ढलता है।
जो है तनहा इस जगत में,
कोई प्रतीक्षारत भी ना हो घर में,
उसे कौन सी जल्दी जाने की,
वो धीरे-धीरे ही चलता है।
इस सर्दी के मौसम में,
दिन कितनी जल्दी ढलता है।।
_____✍️गीता

कोहरा

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रविवार की छुट्टी थी,
पर कोहरा कर्तव्य निभाने आ गया
सर्दियों के मौसम में,
और सर्दी बढ़ाने आ गया।
धूप भी डर कर छुप गई है,
ठंड का डंडा चलाने आ गया।
घूम रहा है बेधड़क राहों पर,
देखो सितम ढ़ाने आ गया।
अवकाश है हम भी बैठे हैं घर में,
वो कर्तव्य निभाने आ गया।
____✍️गीता

*राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई*

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटियों का कल बेहतर बनाने को,
आओ उनका आज संवारें।
बेटी पर अभिमान करो,
जन्म लेने पर उसका सम्मान करो।
बेटी को शिक्षा का अधिकार दो,
बेटी को भी बेटों जैसा ही प्यार दो।
उसकी शिक्षा में करो कोई कमी नहीं,
विवाह करने की कोई शीघ्रता नहीं।
बेटी से घर में रौनक है, मनता हर त्यौहार है
बेटी प्रभु का दिया एक सुंदर उपहार है।
तो आओ मिलकर कलंक हटाएं,
भारत भूमि से बेटी की भ्रूण हत्या का।
बेटी ही ना होगी तो बहू कहां से लाओगे
फिर वंश को कैसे बढ़ाओगे।
भ्रूण हत्या का कुकृत्य करके,
संसार को क्या मुंह दिखलाओगे।।
______✍️गीता

*कला*

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक ऐसी ज़िन्दगी,
जो किसी कला के साथ,
एकान्त में जीना सिखा दे,
स्वयं के लिए कुछ वक्त देना सिखा दे।
प्रभु ने किया मुझे सम्मानित,
एक ऐसी ही कला से
जिसे लोग प्रभु का उपहार भी कहते हैं,
लिख लेती हूं कुछ शब्द, कुछ वाक्य..
इसी आशा के साथ,
कि कदाचित कभी किसी का कर जाए भला
प्रभु की दी हुई मेरी यह कला।।
____✍️गीता

*कागज़ की कश्ती*

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कागज़ की कश्ती लेकर,
दरिया पार करने चल दिए।
हम कितने नादान थे,
अरे! यह क्या करने चल दिए।
बचपन तो नहीं था ना,
कि कागज़ की कश्ती चल जाती,
भरी दोपहर में यह क्या करने चल दिए।
दरिया बहुत बड़ा था,
आगे तूफ़ान भी खड़ा था,
तूफ़ानों में कश्ती उठाकर,
कागज़ की चल दिए।
हम भी कितने नादान थे,
अरे! यह क्या करने चल दिए।।
____✍️गीता

साथ

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन हमसे आगे निकल गया,
कौन हमसे पीछे रह गया,
केवल यही ना देखना मानव,
देखना है तो यह भी देखना कि,
कौन हमारे साथ है,
जुड़ना बहुत बड़ी बात नहीं,
जुड़े रहना बहुत बड़ी बात है।
कौन छोड़ गया बीच राह,
और किसने थामे रखा हाथ है,
कौन है हमारे साथ और,
हम स्वयं किसके साथ हैं।।
_____✍️गीता

*हिन्दी की परीक्षा*

January 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

**हास्य रचना**
हिन्दी की परीक्षा थी उस दिन,
चिंता से हृदय धड़कता था
बूंदा-बांदी भी हो रही थी,
रह-रहकर बादल गरजता था।
भीगता-भागता विद्यालय पहुंचा,
पर्चा हाथों में पकड़ लिया,
फ़िर पर्चा पढ़ने बैठ गया,
पढ़ते ही छाया अंधकार,
चक्कर आया सिर घूम गया।
इसमें सवाल वे आए थे,
जिनमें मैं गोल रहा करता,
पूछे थे वे ही प्रश्न कि जिनमें,
डावांडोल रहा करता
छंद लिखने को बोला था,
मेरी बोलती बंद हो गई।
अलंकार के प्रकार पूछे थे,
मेरी लेखनी कहीं खो गई।
यमक और श्लेष में अंतर,
कभी समझ ना आता था
उपमा और रूपक का भेद भी,
कभी जान ना पाता था।
बस एक अनुप्रास ही आता था मुझको,
वही अलंकार भाता था मुझको,
उसका प्रश्न ही नहीं आया
यमक-श्लेष और उपमा-रूपक,
दोनों प्रश्न छोड़ आया
गांधी जी पर निबंध आ गया,
मैं चाचा नेहरू रट कर आया था
लिख दिया महात्मा बुद्ध ,
महात्मा गांधी जी के चेले थे
गांधी जी के संग बचपन में,
आंख मिचौली खेले थे।
रिक्त स्थान की पूर्ति करनी थी
सूर्य की किरणों में…..रंग हैं
मैंने लिखा “सुनहरा”
बाद में पता चला सात रंग,
मैं तो हैरान था थोड़ा परेशान था
मैंने तो बस सुनहरा रंग ही देखा,
यह सात रंग कहां से आए,
खैर जो होगा अब देखा जाए
उचित मुहावरा लगाइए…
एक अनार सौ…..
मैंने लिखा खाने वाले,
बाद में पता चला,”बीमार”आना था।
यह जानकर मैं हैरान था,
थोड़ा सा परेशान था।
चिकना घड़ा का अर्थ….
मैंने लिखा बहुत सुंदर
बाद में पता चला, बेशर्म होता है
मैं फ़िर हैरान था….
चिकना घड़ा तो कितना सुंदर होता है।
अंगूर खट्टे हैं का अर्थ___
मैंने लिखा छोटे अंगूर
बाद में पता चला___
कोई वस्तु ना मिले तो बुरा बता दो
अर्थात झूठ बोल दो..
मैं हैरान था बड़ा परेशान था,
झूठ बोलने को मना करते हैं,
मुहावरे के नाम पर बोल दो
इस सच से मैं अनजान था।
मैं बालक भोला-भाला,
मेरा ह्रदय डोल गया,
छोटे अंगूर ही खट्टे होते हैं,
मैं तो सत्य ही बोल गया।
यह सौ नंबर का पर्चा था,
मुझको दो की भी आस नहीं,
चाहे सारी दुनिया पलटे,
पर मैं हो सकता पास नहीं।
परीक्षक ने सारे पर्चे जांच लिए,
जीरो नंबर दे कर के,
मेरे बाकी के नंबर काट लिए।
_____✍️गीता

*वन प्रकृति की आभा*

January 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रकृति से दूर हो रहा मानव
दु:खों से चूर हो रहा मानव,
वन प्रकृति की आभा बढ़ाते ,
शुद्ध पवन दे उम्र बढ़ाते
वृक्ष बचाओ वृक्ष लगाओ
वरना एक दिन पछताओगे,
ना खाने को भोजन होगा,
शुद्ध पवन भी ना पाओगे।
देख कुल्हाड़ी कांपा तरुवर,
रोता है चिल्लाता है,
उसकी चीख ऐ लोभी मानव,
तू क्यों ना सुन पाता है
मात्र मृदा और जल देने से,
तरु हमको क्या-क्या दे जाता है
फ़ल-फ़ूल तरकारी देता,
प्रकृति सुरम्य बनाता है,
उसकी रक्षा का दायित्व
मानव तुम पर ही आता है।।
____✍️गीता

*ज़िन्दगी में एक अच्छा मित्र*

January 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

किस्मत से ही मिलती है
जगह किसी दोस्त के दिल में,
यूं ही तो कोई शख्स,
जन्नत का हकदार नहीं होता।
अच्छे दोस्त मिलते हैं,
अच्छे नसीब से ही,
यूं ही तो किसी को किसी का,
इन्तज़ार नहीं होता।
ज़िन्दगी में मिल जाए गर,
एक भी अच्छा मित्र..
फ़िर ज़िन्दगी से कभी कोई,
शिकवा नहीं रहता।।
____✍️गीता

ऐसी होती हैं बेटियां

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नव वर्ष की उमंग सी होती है बेटियां,
संगीत की तरंग सी होती है बेटियां
मां-बाप के हर दर्द में रोती हैं बेटियां,
सागर से निकले मोती सी होती है बेटियां
सुमधुर काव्य-गायन सी होती है बेटियां,
ब्रह्म मुहूर्त सी पावन होती है बेटियां
वह घर प्रभु के आशीष से युक्त है,
इस जहां में,जहां जन्म लेती है बेटियां.. ।।
___✍️गीता

*दिनकर आए हैं कई दिनों के बाद*

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिनकर आए हैं कई दिनों के बाद,
विटामिन डी ले लो।
बांट रहे हैं मुफ्त में सौगात,
विटामिन डी ले लो।
बातें करो धूप संग कुछ देर बैठ कर,
किरणों को बैठाओ देकर आसन
दिनकर होंगे बहुत प्रसन्न,
विटामिन डी ले लो।
दिनकर आए हैं कई दिनों के बाद,
विटामिन डी ले लो।
अकड़ा सा बदन खुल जाएगा,
सर्दी में थोड़ा ताप मिल जाएगा,
आज है दिवस सुनहरा,
विटामिन डी ले लो।
दिनकर आए हैं कई दिनों के बाद,
विटामिन डी ले लो।
पवन भी मंद-मंद है, छुट्टी पर है कोहरा
है अवसर सुनहरा,
विटामिन डी ले लो।
दिनकर आए हैं कई दिनों के बाद,
विटामिन डी ले लो।
_____✍️गीता

*सरस्वती विद्यमान है*

January 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्द चाहे सरल हों,
या फिर हों जटिल
हृदय को करें प्रसन्न
तो अर्थ है,
वरना सब व्यर्थ है।
यदि आपके शब्द,
किसी के ह्रदय को करें स्पर्श
तो समझो वाणी और कलम में,
सरस्वती विद्यमान है..
वरना बोलती तो सभी की ज़ुबान है।।
_____✍️गीता

जला मशाल चलता चल

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

निर्भय आगे बढ़ता चल,
कोई रोके कोई टोके,
किसी की बात से ना जल।
किसी को देख कर बढ़ते,
अक्सर लोग करते छल।
कंटक बिछाने राहों में,
कुछ हाथ आएंगे
तो कंटक हटाने राहों से,
कुछ साथ आएंगे
उन्हें साथ लेकर चल,
ना रुक राही राहों में कभी,
ना कर परवाह अरि की पथिक,
मिलेगी मंजिल मुकद्दर साथ देगा,
जला मशाल चलता चल।।
_____✍️गीता

पूस का महीना

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोहरा घूम रहा है पथ पर,
बाहर जाते लगता है डर।
धूप सखी भी आज ना आई,
दिनकर छिपे रहे हैं दिन भर।
तारे भी सो रहे ओढ़ के चादर,
चन्द्र भी ना आए निज,
घर से बाहर निकल कर।
सर्दी का सितम है छाया,
पूस का महीना आया।।
____✍️गीता

बच्चों में हैं भगवान

January 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब बच्चों में हैं भगवान,
फिर क्यों मम्मी पापा खींचे कान
क्योंकि कभी-कभी भगवान,
शैतानी करने लगते हैं,
बन करके नादान
शोर मचाते हैं दिनभर,
चुप हो जाएं तो है इनका एहसान
अपनी मन मर्जी से सोएं-खाएं,
जब मन हो तब उधम मचाएं।
हाथ जुड़वा कर ही दम लेते,
ये तो हैं सचमुच भगवान।।
_____✍️गीता

*टीका ज़िन्दगी का*

January 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देश में कोरोना से निपटने के टीके आ गए,
बेफिक्र हो इनको लगवाया जाए।
यह है इतिहास का सबसे वृहद अभियान,
इसने भारत के सामर्थ्य को दिलवाया सम्मान।
दिलवाया सम्मान, सभी देश तारीफ़ कर रहे,
आप भी लगवा लेना ये टीका, लगवाने से क्यों डर रहे।
टीकों का हुआ शुभारंभ, किया भारत ने शंखनाद।
कोरोना को भगाने का पहला कदम है आज।
टीका ज़िन्दगी का आया, ख़ुशी की लहर है आई,
कोरोना को भगाने के पहले कदम की बधाई।।
_______✍️गीता

*धूप हवा और चाँदनी*

January 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे घर के सामने वाले पड़ोसी ने,
अपने घर की इमारत ऊंची उठाई।
घर उनका है मैं कुछ कह भी ना पाई,
पर मेरे आंगन की धूप हवा और
चांदनी ने मुझसे शिकायत लगाई,
फ़िर मैंने बोला उनको,
मत करो इमारत की इतनी लंबी परछाई
मेरे आंगन की दौलत पर,
ना डालो बुरी नज़र
ये धूप ये हवा यह चाँदनी,
मेरे मन को बहुत सुहाई
____✍️गीता

थल सेना दिवस

January 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

15 जनवरी को हम थल सेना दिवस मनाएं,
73वें थल सेना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
तिरंगे की शान हैं सैनिक,
भारत का मान हैं सैनिक,
पूरी रात जो जागे सीमा पर,
उसी का नाम है सैनिक।
रात होते ही हम, सुकून से सो जाते हैं,
वो रात दिन ना देखें , तैनात हो जाते हैं
दुश्मन की एक आहट पर चौकन्ना जो होवे,
जागते हैं रात भर ताकि चैन से हम सोएं
कैसे बताऊं मैं,छोटी सी कविता में उनकी कहानी,
सरहद पर वह देते हैं जाने कितनी कुर्बानी।
एक सैनिक का जीवन आसान नहीं होता,
कुर्बान कर देते हैं वो, देश की हिफाजत में अपनी जवानी।
साहस और शौर्य से, भारत मां की रक्षा करते,
वो वीर हैं दुश्मनों से नहीं डरते।
देश की सुरक्षा में कुर्बान जिनका जीवन,
देश के सैनिकों को मेरा शत् शत् नमन।
_____✍️गीता

मजबूरी

January 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फेंक रहे थे जब तुम खाना,
मैं भोजन की आस में थी।
रोटी संग सब्जी जी भी है क्या,
मैं वहीं पास में थी।
तुमने शायद देखा ना होगा,
मैं काले मैले लिबास में थी।
तुम तो बैठे थे कार में अपनी,
मैं वहीं अंधकार में थी
छिप कर बैठी थी राहों में,
भूख मिटानी जरूरी थी।
निर्धन हूं पर युवा भी हूं,
छिपना मेरी मजबूरी थी।
____✍️गीता

मकर संक्रान्ति की बधाई

January 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धीमी-धीमी धूप संग में,
मीठी-मीठी खुशियां लाई।
तिल, गज्जक की खुशबू लेकर,
सर्दी में संक्रान्ति आई।
मकर संक्रान्ति मनाना है,
गंगा जी में नहाना है
गंगा जी ना जा पाओ तो,
घर में जरूर नहाना है,
सर्दी है तो हुआ करें,
ना करना कोई बहाना है।
तन में हो मस्ती मन में उमंग,
नीले अम्बर में रंग-बिरंगी उड़े पतंग।
कभी-कभी किसी की कटे पतंग,
हम भी छत पर ले कर खड़े पतंग।
ऊंची उड़ान ले पतंग आपकी,
टूटे ना डोर कभी विश्वास की।
हर पल सुख हो, हर दिन हो शांति,
सबकी ऐसी हो मकर सक्रांति।
गज्जक और पकवान है लाई,
मकर संक्रान्ति की आपको बधाई।।
_____✍️गीता

*क्या हुआ..है मौसम को*

January 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या हुआ..
आज मौसम को,
बादल ही बादल हैं गगन में,
सूरज भी नहीं दिखा,
सर्दी बढ़ती ही जा रही
जाने क्या है इसके मन में,
धूप का ना नामो-निशां
कहां छिपी हैं सूर्य-रश्मियां,
थोड़ी सी तपन दे जाती
इस ठंडी-ठंडी पवन से,
कुछ तो राहत मिल जाती
_____✍️गीता

बढ़ती हुई बेरोज़गारी

January 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेरोज़गारी बढ़ती ही जा रही है,
सुरसा के मुख सम खुलती ही जा रही है।
चयन हुआ पर नियुक्ति नहीं है,
युवाओं की प्रतीक्षा बढ़ती ही जा रही है।
दो-दो वर्ष से प्रतीक्षा कर रहे युवा,
अब तो यह प्रतीक्षा खलती ही जा रही है।
कोई कैसे कहे दर्द अपना,
नौकरी पाना बन गया है एक सपना।
चयन होने के पश्चात भी, दर-दर भटक रहे हैं
ताने मारें पड़ोसी, हंसी उड़ाएं कुटुंबी,
सबके तंज की मार दिल पर,सहते ही जा रहे हैं
ये युवा यूं ही पिसते ही जा रहे हैं।।
____✍️गीता

आया लोहड़ी का त्यौहार

January 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढोल बजाकर आग जला कर,
आओ लोहड़ी मनाएं
तिल गुड़ की बर्फी बना कर,
सब मिलजुल कर खाएं
सरसों का साग और मक्का की रोटी
मक्खन संग खाओ, स्वादिष्ट बड़ी होती
रंग बिरंगी पतंग उड़ाएं
मिल-जुल कर त्यौहार मनाएं
गज्जक की खुशबू मूंगफली की बहार,
थोड़ी सी मस्ती और ढेर सारा प्यार
मुबारक हो सबको लोहड़ी का त्यौहार
____✍️गीता

*आत्म-बल*

January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी कोई कांटे बिछा दे राहों में,
कांटे चुन-चुन के दूर कर दो।
इस तरह बढ़ाओ आत्म-बल,
कि अरि के स्वप्न चूर कर दो।
अन्धकार कर दे कोई राहों में गर,
तो जला मशाल तिमिर दूर कर दो।
प्रतिकूल परिस्थिति से ना घबराओ कभी,
स्थिति अपने अनुकूल कर दो।
मेहनत और लगन चलो संग लेकर,
कि मार्ग की बाधाएं दूर कर दो।
चलते रहो निरंतर बिन रुके,
कि एक दिन मंज़िल को फ़तह कर दो।।
_____✍️गीता

*आग्रह*

January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये सर्दी का मौसम,
ये कोहरे का नज़ारा
आज है ये आग्रह हमारा
कोहरे में डूबी,
यह सुन्दर-सुन्दर सुबह
जी भर के जी लें,
आओ ना एक कप चाय,
क्यूं ना साथ-साथ पी लें..
_____✍️गीता

कला

January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छे लोगों का,
अपनी ज़िन्दगी में आना,
सौभाग्य कहलाए
उन्हें संभाल कर रखना,
कहीं जाने ना देना
हमारी योग्यता कहलाए।
अनेक कलाएं हैं इस जहां में,
सबसे सुंदर कला क्या है
किसी के हृदय को छू लेना,
अब इससे बड़ा क्या है
_____✍️गीता

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